एमएस स्वामीनाथन वो वैज्ञानिक थे जिन्हें देश में हरित क्रांति के जनक के तौर पर जाना जाता था. स्वामीनाथन का चेन्नई में निधन हो गया है.
भारत में अधिक उपज वाले धान की किस्म को पैदा करने वाले महान वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन अब हमारे बीच नहीं रहे. स्वामीनाथन 98 साल के थे जब उन्होंने आखिरी सांस ली. एमएस स्वामीनाथन की इस खोज के कारण ही आज हमारे देश में किसान धान जैसी फसल से अच्छी आमदनी कर पा रहे हैं. एमएस स्वामीनाथन का अंतिम संस्कार रविवार को किया जा सकता है. वो आईसीसीआर से लेकर कृषि मंत्रालय तक कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके थे. उन्हें भारत सरकार के द्वारा कृषि में योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था.
किन –किन पदों पर कर चुके थे काम ?
एम एस स्वामीनाथन देश के कृषि मंत्रालय से लेकर कई महत्वपूर्ण संगठनों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके थे. वो 1961 से लेकर 1972 तक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक रहे. इसी तरह वो 1972 से लेकर 1979 तक आईसीएआर के महानिदेशक और भारत सरकार के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव भी रहे. उन्हें 1979-80 तक कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव पद पर भी नियुक्त किया गया. वो विज्ञान और कृषि विभाग में कार्यवाहक उपाध्यक्ष और बाद में सदस्य भी रहे. इसी तरह 1980 से लेकर 1982 तक योजना आयोग के महानिदेशक और 1982 से 1988 तक अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस में भी तैनात रहे.
स्वामीनाथन आयोग के रहे प्रमुख
वर्ष 2004 में किसानों के द्वारा की जा रही आत्महत्या के मामले में भारत सरकार की ओर से एक राष्ट्रीय आयोग बनाया गया. इसका अध्यक्ष एम एस स्वामीनाथन को बनाया गया. इस स्वामीनाथन कमिशन ने बाद में सिफारिश दी कि किसानों को दिया जाने वाला फसल का एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) किसान की भारित लागत का 50 प्रतिशत से ज्यादा होना चाहिए.
स्वामीनाथन को मिले हैं दुनिया के कई पुरस्कार
स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार के बाद उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की. उन्हें भारत सरकार की ओर से कृषि में योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था. उन्हें 1971 में रैमन मैग्सेसे और उन्हें 1986 में अल्बर्ट आइंसटीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से भी सममानित किया जा चुका था. उन्हें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार, एच के फिरोदिया पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार भी दिया जा चुका था.