हल्के टैंक बनाने के लिए भारत ने किया अमेरिका का रुख, क्या है पूरा मामला?

प्रोजेक्ट पिछले साल मंजूर किया था और L&T (Larsen and Toubro) ने DRDO के साथ मिलकर एक प्रोटोटाइप भी बनाया था.

Last Modified:
Saturday, 14 October, 2023
Tank

भारत ने देश में बनाये जाने वाले हलके टैंकों के इंजन के लिए अमेरिकी कंपनी Cummins का रुख किया है. आपको बता दें कि ऊंची जगहों पर आम टैंक नहीं बल्कि कम वजह वाले हलके टैंक ही नियुक्त किये जाते हैं और फिलहाल चीन द्वारा ऊंची जगहों पर टैंकों की नियुक्ति की गई है और चीन की इसी रणनीति को टक्कर देने के लिए भारत द्वारा हलके टैंक बनाने की कोशिश की जा रही है. 

प्रोजेक्ट में हुई देरी
देश में हल्के टैंकों को विकसित करने का प्रोजेक्ट पिछले साल मंजूर किया था और L&T (Larsen and Toubro) ने DRDO के साथ मिलकर एक प्रोटोटाइप भी बनाया था. लेकिन इंजन प्रदान करने के लिए जिस जर्मन कंपनी का चयन किया गया था वह वजन कम होने और ताकत ज्यादा होने की वजह से मुसीबतों में फंस गई और उसके बाद कंपनी और भारत के बीच समझौता नहीं हो पाया. मामले से जुड़े लोगों ने मीडिया को बताया है कि कई महीनों तक लगातार मोल-भाव करने के बावजूद जर्मन कंपनी समय पर इंजन की सप्लाई करने के लिए तैयार नहीं हो पाई और इस वजह से हलके टैंक बनाने के प्रोजेक्ट में देरी होने लगी. 

क्या है पूरा मामला?
इसके बाद DRDO और L&T (Larsen and Toubro) ने फैसला लिया कि अमेरिकी कंपनियों के साथ ही बातचीत की जाए और इसी फैसले के मद्देनजर Cummins के ऑफर को मंजूरी दे दी गई. भारतीय सेना (Indian Army) का अनुमान है कि लद्दाख में नियुक्ति के लिए उन्हें लगभग 354 हलके टैंकों की जरूरत होगी. आपको बता दें कि L&T और DRDO साथ मिलकर लगभग 59 टैंकों का निर्माण करेंगे और उसके बाद भारतीय सेना द्वारा अन्य टैंकों के निर्माण के लिए किसी और भारतीय कंपनी की खोज की जायेगी और इसके लिए कॉन्ट्रैक्ट भी जारी किया जाएगा. 

कहां इस्तेमाल होंगे हल्के टैंक?
देश में ही हलके टैंक विकसित करने के इस प्रोजेक्ट को ‘जोरावर’ का नाम दिया गया है. इन टैंकों में AI, ड्रोन वॉरफेयर और एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम जैसे आधुनिक फीचर्स भी प्रदान किये जायेंगे. L&T और DRDO द्वारा निर्मित टैंकों को K9 वज्र आर्टिलरी की चेसिस पर ही बनाया जाएगा. ये हलके टैंक हर प्रकार के क्षेत्र में सर्विस प्रदान कर पाएंगे, फिर चाहे वो ऊंची जगहें हों या फिर आइलैंड ही क्यों न हों.
 

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