RBI गवर्नर ने बैंकों और फाइनेंशियल सेक्टर में महिला कर्मचारियों की संख्या में इजाफा करने के लिए महिलाओं को और अधिक रोजगार देने पर जोर दिया है.
अगर आप एक महिला हैं और नौकरी की तलाश में तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है. दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों में महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा नौकरी देने की बात कही है. इसके लिए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने खुद बैंकों को निर्देश दिए हैं. तो चलिए जानते हैं आरबीआई ने ऐसा क्यों कहा है और इससे महिलाओं को कितना फायदा होगा?
हर नागरिक को वित्तीय साक्षरता हासिल हो
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने एक बयान में कहा कि वित्तीय क्षेत्र महिलाओं को अधिक रोजगार के अवसर देकर और महिला-संचालित उद्यमों के लिए खास योजनाएं लाकर महिला-पुरुष असमानता को कम करने में मदद कर सकता है. दास ने इंडियन बैंक एसोसिएशन और फिक्की के एक संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि विकसित भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर नागरिक की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से परे वित्तीय सेवाओं तक पहुंच हो और उसे जरूरी वित्तीय साक्षरता भी हासिल हो.
वर्क फोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए करना होगा ये काम
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि भारत में महिलाओं की वर्क फोर्स में भागीदारी वैश्विक औसत की तुलना में काफी कम है, ऐसे में उन्हें अधिक रोजगार देने की जरूरत है. इस फासले को कम करने के लिए लड़कियों की शिक्षा, कौशल विकास, कार्यस्थल पर सुरक्षा और सामाजिक बाधाएं दूर करने की दिशा में प्रयास करने होंगे. आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोली इकाइयों (MSMEs) का पांचवां हिस्सा महिलाओं के नियंत्रण में होने के बावजूद महिला उद्यमियों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. वित्तीय क्षेत्र को महिला-पुरुष असमानता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. मददगार नीतियां लाकर, महिलाओं के लिए खास वित्तीय उत्पाद पेश कर और वित्तीय-प्रौद्योगिकी नवाचार के सहारे वित्तीय पहुंच को आसान बनाकर ऐसा किया जा सकता है.
अधिक संख्या में बैंक सखियों को जोड़ने का काम करें बैंक
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस काम को वित्तीय संस्थानों में अधिक महिलाओं को रोजगार देकर और महिला-संचालित उद्यमों के लिए खासतौर पर तैयार वित्तीय उत्पाद लाकर पूरा किया जा सकता है. उन्होंने बैंकों को अधिक संख्या में बैंक सखियों को अपने साथ जोड़ने का सुझाव भी दिया.
इसे भी पढ़ें-सहारा ग्रुप को 15 दिन में जमा करने होंगे 1000 करोड़, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला!
सैमसंग को भारत में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, खासतौर पर कंपनी का मोबाइल कारोबार प्रभावित हुआ है.
भारतीय मोबाइल बाजार में कई विदेशी कंपनियां मौजूद हैं. दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग (Samsung) भी काफी समय में भारत में कारोबार कर रही है. हालांकि, पिछला कुछ समय उसके लिए परेशानियों भरा रहा है. कंपनी की सेल्स के आंकड़े लगातार नीचे आ रहे हैं और अब इस इसका असर उसके कर्मचारियों पर पड़ने वाला है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो सैमसंग ने भारत में छंटनी का फैसला लिया है.
यहां चलेगी कैंची
छंटनी की जद में कंपनी के सेल्स, मार्केटिंग और ऑपरेशंस से जुड़े कर्मचारी आ सकते हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि सैमसंग के भारत में जितने कर्मचारी हैं, उनमें से 20 फीसदी तक की छुट्टी हो सकती है. हालांकि, Samsung की तरफ से इस बारे में अब तक कोई बयान सामने नहीं आया है. रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सैमसंग अपने स्मार्टफोन, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और होम एप्लाएंसेज कारोबार के ढांचे में बदलाव कर रही है. इसके चलते कंपनी कुछ प्रमुख एग्जीक्यूटिव्स की भी छुट्टी कर सकती है. गौर करने वाली बात यह है कि एग्जीक्यूटिव्स के जो पद खाली पड़े हैं उन्हें भी नहीं भरा जा रहा है.
चेन्नई प्लांट में हड़ताल
सैमसंग में छंटनी की खबर ऐसे समय सामने आई है जब उसके चेन्नई स्थित मैनुफैक्चरिंग प्लांट के कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. इस हड़ताल के चलते कंपनी का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. फेस्टिवल सीजन में मोबाइल के साथ-साथ टीवी, फ्रिज और वॉशिंग मशीन जैसे उत्पादों की जमकर बिक्री होती है. यदि हड़ताल जल्द खत्म नहीं होती, तो सैमसंग को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सैमसंग के मैनेजमेंट ने भारतीय अधिकारियों को दक्षिण कोरिया बुलाया है.
कई परेशानियां एक साथ
मोबाइल सेक्टर में सैमसंग को भारत में मौजूद चीनी कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. एक मार्केट रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-जून 2024 तिमाही में वॉल्यूम के हिसाब से सैमसंग तीसरे स्थान पर खिसक गई है. इस दौरान कंपनी के स्मार्टफोन शिपमेंट्स में 15.4% की कमी आई है. सैमसंग एक साथ कई मोर्चों पर परेशानियों का सामना कर रही है. शाओमी और वीवो जैसे ब्रैंड उसके सामने कड़ी प्रतियोगिता पेश कर रहे हैं. ऑफलाइन रिटेलर्स के साथ कंपनी का विवाद चल रहा है. इसके अलावा, सेल्स और मार्केटिंग के कुछ टॉप एग्जीक्यूटिव्स से कंपनी छोड़ने से सैमसंग की दिक्कतें बढ़ी हैं.
सोशल मीडिया पर वायरल हुए उनके वीडियो में लोग ये भी सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर उन्हें होम कैडर कैसे मिल सकता है. लोग कई तरह के सवाल उठा रहे हैं.
महाराष्ट्र बैच की ट्रेनी आईएएस अधिकारी डॉ. पूजा खेड़कर इन दिनों सोशल मीडिया में अपनी मांगों और पिता की आय को लेकर गलत जानकारी देने को लेकर विवादों में बनी हुई हैं. उनकी इस मांग और व्यवहार के बाद पूजा का तबादला कर दिया है. उन्होंने पुणे में तैनाती के दौरान अपनी गाड़ी के वीआईपी नंबर और सेपरेट ऑफिस की मांग की थी जिसे पूरा नहीं किया जा सकता था. वहीं दूसरी ओर उनके मॉक इंटरव्यू का वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें पता चलता है कि पॉलिटिकल पार्टी के नेता बेटी होने के बावजूद उन्होंने उनकी आय को जीरो बताया है.
आखिर क्या है ये पूरा मामला?
2023 बैच की महाराष्ट्र कैडर की आईएएस अधिकारी पूजा ने 821वीं रैंक हासिल की है. पूजा पर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा है. उन पर आरोप है कि वो अपनी ऑडी कार में लाल और नीली बत्ती के साथ-साथ महाराष्ट्र सरकार का चिन्ह लगाकर चलती हैं. सोशल मीडिया पर उनका ये वीडियो वायरल होते ही पूणे कलेक्टर ने उनका तबादला वाशिम में कर दिया. एक ट्रेनी प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ उन्होंने सरकार से इन सुविधाओं की मांग की थी. उन्हें इस साल मार्च में ही पुणे कलेक्टर कार्यालय में ज्वॉइन किया था. उनका कार्यकाल जुलाई 2025 में खत्म होना था.
ये भी पढ़ें: Yes Bank में मैज्योरिटी हिस्सेदारी खरीदने के लिए कई विदेशी बैंकों ने दिखाई दिलचस्पी! शेयर में दिखी तेजी
पिता की आय को लेकर भी पूजा सवालों के घेरे में
पूजा खेड़कर के विवादों का समाधान यही नहीं होता है. पूजा के मॉक इंटरव्यू का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें इंटरव्यू करने वाले अधिकारी उनसे कह रहे हैं कि आपने अपने पिता की आय जीरो बताई है. इसका जवाब देते हुए पूजा कहती हैं कि उनके माता पिता अब अलग हो चुके हैं और उनके पिता एक सिविल सर्वेंट हैं और वो उनके संपर्क में नहीं हैं. उनके इस वीडियो पर सोशल मीडिया में जबरदस्त प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कोई उनके चयन को फर्जी बता रहा है तो कोई उनकी डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट पर सवाल उठा रहा है.
IAS Officer Dr.Pooja Khedkar issue needs to be investigated as the huge anger amongst the UPSC/MPSC aspirants. Now this video clip (of her mock interview taken by her coaching academy) gets viral on social media. If what’s she says is true then, she might have escaped the crème… pic.twitter.com/sKJTBgQGdE
— Ashish Jadhao (@ashish_jadhao) July 10, 2024
लेकिन पिता के पास है 40 करोड़ की संपत्ति
पूजा खेड़कर ने भले ही अपने पिता की आय को जीरो बताया हो लेकिन हाल ही में उनके पिता ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उनके पिता ने चुनाव आयोग में जमा कराए अपने हलफनामे में अपनी 40 करोड़ रुपये की अनुमानित संपत्ति और 49 लाख रुपये की आय दिखाई है. पूजा पर ये भी आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने अपनी विक्लांगता से लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र जमा की थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जब पूजा को उनकी विक्लांगता को साबित करने के लिए एम्स द्वारा सत्यापन के लिए बुलाया गया तो उन्होंने कोविड का हवाला देकर जाने से मना कर दिया.
भारत का क्विक कॉमर्स मार्केट पिछले साल ग्रॉस मर्चेंडाइज वैल्यू (GMV) के मामले में सालाना आधार पर 77 प्रतिशत बढ़कर 2.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
भारत में क्विक कॉमर्स का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. खासकर युवाओं के बीच ये काफी लोकप्रिय है, वे अपनी जरूरत के हर छोटे-बड़े सामान के लिए इन्हीं पर निर्भर हो रहे हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि क्विक कॉमर्स दुनिया के बाकी देशों में ज्यादा सफल नहीं रहा, लेकिन भारत में ये कारोबार खूब तेजी से बढ़ रहा है. आप जानते हैं ऐसा क्यों है? अगर नहीं, तो चलिए आज आपको इसकी वजह बताते हैं.
घर बैठे आसानी से मिलता है जरूरत का सामान
मान लीजिए आपका ऑफिस जाने से पहले ब्रेड के साथ चाय पीने का मन है. किचन पहुंचे, तो देखा कि चायपत्ती और ब्रेड दोनों खत्म हैं, तो आपने फोन निकाला और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ऑर्डर प्लेस करके दूसरे कामों में लग गए और थोड़ी देर में ही आपका ऑर्डर दरवाजे पर पहुंच जाएगा. आधे घंटे के अंदर ही ये आपके पास सामान पहुंचा देते हैं. इस सर्विस ने शहरी डिजिटल उपभोक्ताओं के बीच अपनी गहरी पैठ बना ली है, उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का क्विक कॉमर्स मार्केट पिछले साल ग्रॉस मर्चेंडाइज वैल्यू (GMV) के मामले में सालाना आधार पर 77 प्रतिशत बढ़कर 2.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
भारत में इन कारणों से सफल हो रहे क्विक कॉमर्स
1. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में जनसंख्या काफी अधिक है. साथ ही, गली-गली में किराना स्टोरों की भी भरमार है. ऐसे में ब्लिंकइट और जेप्टो जैसी कंपनियों को काफी कम लागत में अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने का मौका मिल जाता है.
2. युवा पीढ़ी (GenZ) हर रोज अपने जरूरत का सामान ऑनलाइन मंगा रही है. शुरुआत में ये प्लेटफॉर्म सिर्फ किराने का सामान डिलीवर करते थे. लेकिन, जल्द ही अपना दायरा सभी सेगमेंट तक फैला लिया. इसमें आटा-दाल से लेकर सब्जियां और साबुन-शैंपू के साथ शेविंग प्रोडक्ट्स तक शामिल हैं.
3. ग्राहक को क्विक कॉमर्स में कई बार मार्केट रेट से कम कीमत पर सामान मिल जाता है. मार्केट जाना भी नहीं पड़ता, समय की भी बचत हो जाती है.
इसे भी पढ़ें-Happy Birthday: जानिए कहां तक फैला है बॉलीवुड के टॉप Filmmaker Karan Johar का कारोबार?
ये हैं क्विक कॉमर्स की बड़ी कंपनियां
भारत में क्विक कॉमर्स की 3 बड़ी कंपनियां हैं, जिनमें जोमैटो का ब्लिंकइट, स्विगी का इंस्टामार्ट और जेप्टो शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार क्विक ग्रॉसरी कॉमर्स दुनिया के अन्य देशों में सफल नहीं हो पाए, लेकिन भारत में वे कामयाबी की नई ऊंचाईयां हासिल कर रहे हैं. हालांकि, पाकिस्तान में क्विक कॉमर्स कुछ हद तक सफल रहा, वहां किराने के सामान की इंस्टैंट डिलीवरी करने वाला एयरलिफ्ट एक्सप्रेस देश का पहला यूनिकॉर्न बनने की कगार पर भी था, लेकिन वह भी जल्द ही बर्बाद हो गया.
डार्क स्टोर बढ़ा रहीं कंपनियां
क्विक कॉमर्स कंपनियां अपने डार्क स्टोर की संख्या लगातार बढ़ा रही हैं. डार्क स्टोर कंपनियों के गोदाम की तरह होते हैं. यहां कंपनियां अपने प्रोडक्ट को स्टोर करती हैं, लेकिन आप यहां सीधे जाकर खरीदारी नहीं कर सकते. आपको ऑनलाइन ही ऑर्डर प्लेस करना होगा. कंपनी सामान डिलीवरी आपके बताए पते पर करती है. आपको बता दें, भारत में स्विगी इंस्टामार्ट के 500, ब्लिंकइट के 450 और जेप्टो के 340 स्टोर्स हैं.
हालांकि पंकज उधास ने अपने जीवन काल में गजलें भी बहुत गाई. लेकिन चिट्ठी आई है गीत पंकज उधास की एक बड़ी पहचान बनकर सामने आया.
चिट्ठी आई है गीत गाने वाले पंकज उधास का 72 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया. उनकी मौत की जानकारी उनकी बेटी नयाब उधास ने इंस्टाग्राम के जरिए दी. पंकज उधास लंबे से बीमार थे और उन्हें 10 दिन पहले मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पंकज उधास को पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था. उनके निधन पर इंडस्ट्री के कई मशहूर अभिनेताओं से लेकर गीतकारों ने दुख जताया है और इसे एक युग का अंत बताया है.
उनकी बेटी ने इंस्टाग्राम के जरिए दी जानकारी
पंकज उधास की बेटी नयाब उधास ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्टर के जरिए जानकारी देते हुए बताया कि बड़े भारी मन से आपको संबोधित करते हुए कहना पड़ रहा है कि पद्ममश्री पंकज उधास का 26 फरवरी को निधन हो गया. वो लंबे समय से बीमारी से ग्रसित थे.
बॉलीवुड के कई फनकारों ने जताया दुख
मशहूर गजल गायक पंकज उधास के निधन पर बॉलीवुड के गायक सोनू निगम और शंकर महादेवन ने दुख जताया है. इंस्टाग्राम पर इस संबंध में शोक जताते हुए लिखा कि मेरे बचपन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आज खो गया है. पंकज उधास जी, मैं आपको हमेशा याद करूंगा. यह जानकर मेरा दिल रोता है कि आप नहीं रहे. शांति
अगर सच में समाज में ‘राम-राज्य’ लाना है, तो श्रीराम को आध्यात्मिक रूप से देखना और समझना बेहद जरूरी है.
भारत में किसी से दुआ-सलाम करनी हो तो अक्सर ‘राम-राम’ कह दिया जाता है. इस छोटी सी बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ‘राम’ का नाम हमारे जीवन में कितनी गहराई तक बसा हुआ है. लेकिन अक्सर ही ‘राम’ नाम राजनीति के गलियारों में भी गूंजता सुनाई देता है. ऐसे में कभी-कभी लगता है कि आखिर राम हैं किसके? इन्हीं सवालों को तलाशने की कोशिश में हमने कई किताबें पढ़ी और इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक, फजले गुफरान की किताब ‘मेरे राम सबके राम’ को पढ़ने का मौका मिला.
राम नाम का सच्चा अर्थ
फजले गुफरान की किताब को पढ़ते हुए राम नाम का सच्चा अर्थ और उसकी व्याख्या तो समझ आते ही हैं साथ ही यह भी समझ आता है कि राम को सिर्फ एक संप्रदाय से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. अगर समाज में ‘राम-राज्य’ लाना है, तो श्रीराम को आध्यात्मिक रूप से देखना और समझना बेहद जरूरी है. किताब में आपको श्रीराम से जुड़े कई सवालों के जवाब तो मिलेंगे ही, साथ ही उनकी वंशावली से लेकर राम मंदिर से जुड़े कई रोचक किस्सों को इस तरह से गढ़ा गया है कि आप इस किताब से आंखें नहीं हटा पाएंगे.
विदेशों में श्रीराम
वैसे तो श्रीराम का स्वरूप इतना ज्यादा बड़ा है कि आपने उनके कई स्वरूपों के दर्शन किताबों, फिल्मों और नाटकों के जरिए किए ही होंगे. लेकिन असल में राम के आदर्शों, जीवन मूल्यों और उनकी सत्यनिष्ठा से रूबरू कराती इस किताब से हमें विदेशों में ‘राम’ नाम का महत्व जानने का मौका भी मिलता है. किताब पढ़कर गर्व महसूस हुआ कि हमारा देश कितना महान है, जिसके राम दुनिया के हर देश के राम हैं.
युवाओं के लिए संजीवनी बूटी
'मेरे राम सबके राम' में कई ऐसे सवाल भी उठाए गए हैं कि क्या कलियुग में राम राज्य लाना मुमकिन है? क्या हम श्रीराम की तरह कड़े संघर्षों से गुज़रकर आजीवन आदर्शों का पालन कर सकते हैं? कई ऐसे सवालों के जवाब बहुत ही सरल और सीधे तरीके से दिए गए हैं. इस किताब को पढ़कर लगा कि लेखक ने किताब की हर कथा और कथन को बेहद गहराई से समझाने की कोशिश की है. किताब आज के युवाओं के लिए संजीवनी बूटी है, जिसे पढ़कर वह असल राम की पहचान कर पाएंगें.
भारत और श्रीराम
प्रभात प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित हुई इस किताब में लेखक फजले गुफरान ने भारतीय संविधान के संदर्भ में भी श्रीराम के आदर्शों को बड़े अच्छे तरीके से उकेरा है. श्रीराम के शासन को भारतीय परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से पेश किया है, आम आदमी को उसे समझने की बहुत ज्यादा जरूरत है और किताब में इसे बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है. किताब में श्रीराम के पौराणिक किस्से और कहानियों की बजाय उनके इतिहास को साक्ष्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है. इसे पढ़कर श्रीराम का इतिहास समझ आता है.
क्यों किसी एक के नहीं हैं राम?
लेखक फजले गुफरान ने इस किताब में श्रीराम को हर इंसान से जोड़ने की कोशिश की है और किताब का शीर्षक मेरे राम सबके राम इस बात को सिद्ध करता है. वैसे भी राम किसी एक संप्रदाय के हो ही नहीं सकते क्योंकि उनके आदर्शों को पूरी दुनिया मानती है. अगर आप राम को अलग नजरिए से जानना चाहते हैं, तो यह बेहतरीन किताब है, जिसे आपको जरूर पढ़ना चाहिए.
यह भी पढ़ें: चुनावी मौसम में क्या फिर मिलने वाला है सस्ते सिलेंडर का तोहफा? 1 अक्टूबर को हो जाएगा साफ
कुछ अंग्रेजी के दबाव व कुछ अंतर्विरोधों के कारण हिंदी कुछ समय के लिए दबी जरूर रही लेकिन अब हिंदी की स्थिति लगातार बहुत अच्छी होती जा रही है.
सीमाराम गुप्ता मन द्वारा उपचार’ पुस्तक के लेखक और कई भाषाओं के जानकार
कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. यदि किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं होगी तो उसका आविष्कार भी नहीं होगा और आविष्कार हो गया तो वो व्यर्थ जाएगा. समाज को उसका कोई लाभ नहीं होगा. इसी आवश्यकता के अंतर्गत दुनिया में अनेक भाषाओं और भाषा शैलियों का विकास हुआ और अब भी हो रहा है. व्यावसायिक दृष्टि से ये और भी महत्त्वपूर्ण है. यदि हिंदी के संदर्भ में देखें तो यह आज पहले से अधिक महत्त्वपूर्ण व प्रासंगिक हो गया है जिसकी उपेक्षा असंभव है. हिंदी का विकास किसी विवशता के कारण नहीं हुआ. यह स्वाभाविक रूप से स्वतः विकसित एक महत्त्वपूर्ण भाषा है. जब किसी आवश्यकता के लिए किन्हीं नई भाषाओं अथवा भाषा शैलियों का विकास संभव है तो ऐसे में हिंदी जैसी स्थापित भाषा की स्थिति तो पहले से ही अत्यंत सुदृढ़ है.
हिंदी सिर्फ व्यवहार की नहीं, बल्कि व्यापार की भी भाषा बन चुकी है
कुछ अंग्रेजी के दबाव व कुछ अंतर्विरोधों के कारण हिंदी कुछ समय के लिए दबी जरूर रही लेकिन अब हिंदी की स्थिति लगातार बहुत अच्छी होती जा रही है. यह भारतीय संस्कृति व हिंदी साहित्य के साथ-साथ विश्व व्यापार की भाषा भी बन चुकी है. आज भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है. दुनिया के इस सबसे अधिक आबादी वाले देश में हिंदी न केवल सबसे अधिक लोगों द्वारा व्यवहार में लाई जाती है अपितु आपसी संपर्क की भी एकमात्र भाषा है. इसलिए स्वाभाविक रूप से हिंदी का बहुत अधिक महत्त्व है. जब भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है तो विश्व व्यापार की दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है. इससे देश की प्रमुख भाषा हिंदी की उपयोगिता स्वतः बढ़ जाती है.
पूरी दुनिया के कारोबारी हिंदी सीखने को उत्सुक हैं
भारत एक बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक देश है. अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और लाभ के लिए ही सही लेकिन दुनिया के लोग हिंदी को महत्त्व देने लगे हैं जो हिंदी के अधिकाधिक विकास के लिए एक अच्छा अवसर है. हिंदी के विकास के लिए इस अवसर का लाभ उठाना अनुचित नहीं होगा. जिस प्रकार से पिछले एक-डेढ़ दशकों में चीन से सामान लाने वाले व्यापारियों ने चीनी भाषा सीखने और व्यवहार में लाने के प्रयास किए हैं उसी प्रकार से आज पूरी दुनिया के लोग हिंदी सीखने और उसे व्यावहार में लाने के लिए उत्सुक हैं. यदि हिंदी सीखने के लिए इन व्यक्तियों की मदद की जाए तो हिंदी के विकास के लिए ये एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा. इससे हिंदी में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकते हैं. आज व्यापार में हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है. व्यापार में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी का प्रयोग दुनिया की अन्य भाषाओं की तरह ही किया जा रहा है.
विज्ञापन की दुनिया में हिंदी का है एकाधिकार
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी के प्रयोग का बीजारोपण बहुत पहले ही हो चुका है. हमारे देश के प्रधानमंत्री दुनिया में जहां भी जाते हैं हिंदी भाषा ही व्यवहार में लाने का प्रयास करते हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ाने के साथ-साथ इसे वैश्विक स्तर पर स्वीकृति दिलवाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है. जी-20 में जिस स्तर पर हिंदी का प्रयोग किया गया वह हिंदी को व्यवसायिक जगत में महत्त्व दिलाने के लिए पर्याप्त होगा. विज्ञापन व्यावसायिक जगत का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है. विज्ञापन जगत की बात करें तो भारत में हिंदी का एकाधिकार स्थापित हो चुका है. देश-दुनिया के सभी उत्पादों को हम हिंदी में जान सकते हैं. इससे उत्पादों को बड़ा बाज़ार मिलने के साथ-साथ हिंदी का विकास भी हो रहा है. हिंदी की व्यावसयिक जगत में पहुंच बढ़ रही है. हम कह सकते हैं कि व्यावसायिक जगत में हिंदी की सक्रियता व वर्चस्व निरंतर नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं. यह हिंदी भाषा और व्यावसायिक जगत दोनों के लिए प्रसन्नता की बात है.
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा मिला हुआ है, उनमें हिंदी भी एक है. फिलहाल, भारत की कोई 'राष्ट्रभाषा' नहीं है.
उमेश जोशी "वरिष्ठ पत्रकार" की कलम से....
आजादी के 76 साल बाद भी 'राष्ट्रभाषा' ना बन पाने की टीस से बिलबिलाती हिंदी को आज के दिन याद कर सम्मान देने की हम महज रस्म अदायगी करते हैं. इसकी बेहतरी के लिए कोई कोई ठोस उपाय करने की दिशा में सोचा भी नहीं जाता. यही वजह है कि 'भारत' की 'हिंदी', 'हिंदुस्तान' की 'हिंदी' अभी तक 'राजभाषा' या राजकीय भाषा या आधिकारिक भाषा (संविधान में अंग्रेजी में Official Language लिखा हुआ है) ही कहलाती है, 'राष्ट्रभाषा' का दर्जा नहीं मिल पाया. अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए गंभीर प्रयास ही नहीं किए गए. गंभीर प्रयास के बावजूद 'राष्ट्रभाषा' का दर्जा ना मिले, यह नामुमकिन है. संविधान से अनुच्छेद 370 (जिसे धारा 370 कहते हैं) हटाना नामुमकिन-सा लगता था. जब वो काम मुमकिन हो सकता है तो हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने का काम भी 'नामुमकिन' नहीं होना चाहिए.
अंग्रेजी अखबार के ऊंचे भाव
कई बार लिख चुका हूं कि हिंदी के साथ सिर्फ राजनेता और मीडिया के संस्थान ही सौतेला व्यवहार नहीं करते, रद्दी अखबार खरीदने वाला भी करता है. वो हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी अखबार हमेशा अपेक्षाकृत ऊंचे भाव पर खरीदता है. एक बार मैंने उसे समझाया कि मैं खुद अखबार में काम करता हूं. हिंदी और अंग्रेजी अखबार एक कागज और एक ही स्याही से मशीन पर छपते हैं फिर दोनों में फर्क कैसे हो सकता है! वो कतई मानने को तैयार नहीं था. उसने हमेशा हिंदी अख़बार के कम भाव दिए. उसने परोक्ष रूप से मुझे समझा भी दिया कि हिंदी की 'वैल्यू' अंग्रेजी के मुकाबले कम है. यह सच भी है और इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं. मेरी हठधर्मिता थी कि रद्दीवाले का ज्ञान स्वीकार नहीं कर रहा था.
राष्ट्रगान है पर राष्ट्रभाषा नहीं
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा मिला हुआ है उनमें हिंदी भी एक है. फिलहाल, भारत की कोई 'राष्ट्रभाषा' नहीं है. भारत का राष्ट्रीय गान है, राष्ट्रीय ध्वज है, राष्ट्रीय पक्षी है, राष्ट्रीय पशु है, राष्ट्रीय जलीय जीव है, और भी कई राष्ट्रीय प्रतीक हैं लेकिन राष्ट्रीय भाषा नहीं है. अब हिंदी जैसी है, 'वैसी ही हिंदी' की शुभकामनाएं स्वीकार करें. टीवी चैनल के पत्रकारों से विनम्र निवेदन और प्रार्थना करता हूं कि हिंदी पर उपकार करें; उसका स्वरूप बिगाड़ने का 'अपराध' ना करें. किसी भी भाषा का स्वरूप बिगाड़ना 'सांस्कृतिक अपराध' है. दुनिया की कोई भी भाषा हो, उसका एक व्याकरण होता है. उससे हटने का अर्थ है स्वरूप बिगाड़ना. टीवी चैनलों पर इस्तेमाल हिंदी का व्याकरण से कोई नाता नहीं है. घर के नियम बच्चे को अनुशासन सिखाते हैं, वैसे ही व्याकरण भाषा को अनुशासन सिखाती है. अनुशासनहीनता बेहद घातक होती है इसलिए जिम्मेदार ओहदों पर बैठे लोग भाषा को अनुशासनहीन ना खुद बनाएं और ना किसी को बनाने दें.
आज के दिन अवश्य विचार करें
टीवी चैनल के एक संपादक को स्क्रीन पर दिख रहा गलत शब्द दुरुस्त करने का आग्रह किया तो उन्होंने दलील दी कि बिगड़ा हुआ शब्द अब प्रचलन में आ गया है. हम सभी ऐसा ही सोचते हैं. हमने कभी सोचा है कि यह प्रचलन में क्यों आया! इस बात पर कम से कम आज के दिन विचार अवश्य करें.
हिंदी की बात चली है तो एक किस्सा भी सुना देता हूं. हिंदी दिवस से इसका कोई संबंध नहीं है. मैं हमेशा महसूस करता हूं कि कोई जुमला चलन में आ जाता है तो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है. आमजन बिना सोचे समझे उसे इस्तेमाल करता है. पिछले 50 साल से दिल्लीवासियों से हूबहू एक जैसा जुमला सुनता आ रहा हूं; कोई बदलाव नहीं आया. बस से उतरने वाला हर यात्री (50 साल के सुन रहा हूं) ड्राइवर से कहता है- यहां रोक कर चलना. कोई उनसे पूछे कि रोकना और चलना दो विरोधाभासी शब्द हैं. कोई 'रोक कर' कैसे चल सकता है! ड्राइवर भी उसी श्रेणी का है. वह भी बस 'रोक' कर 'चलता' है. मेरा मानना है कि आमजन भी मीडिया से प्रभावित होता है इसलिए मीडिया जिम्मेदारी और ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करे.
माधोपुर का घर एक ऐसा उपन्यास है, जिसे नई विधा में लिखा गया है साथ ही इसे बेहद रोचक तरीके से लिखा गया है. ये एक ऐसी कहानी है जिसमें कई दिलचस्प किरदार हैं जो कहानी को और मार्मिक बना देते हैं.
समाज में घटित होने वाली घटनाओं को एक नए रोचक तरीके से सामने लाता उपन्यास ‘माधोपुर का घर’ एक दिलचस्प कहानी है. इस उपन्यास को बिहार के पूर्व चीफ सेक्रेट्री और कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रहे त्रिपुरारी शरण ने लिखा है. माधोपुर का घर समाज के उन अनछुए पहलुओं को आपके सामने लेकर आता है, जिसे आपने शायद अभी तक नहीं पढ़ा होगा. इस पुस्तक पर दिल्ली के आईआईसी में एक व्याख्यान आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में इसके लेखक त्रिपुरारी शरण, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका अनामिका और उपन्यासकार वंदना राग मौजूद रहीं.
लेखक बोले एक नई विधा में लिखी है पुस्तक
‘माधोपुर का घर’ को लेकर त्रिपुरारी शरण कहते हैं कि ये एक ऐसा उपन्यास है जो तीन पीढ़ियों के इतिहास को कहता है. इसमें समाज और व्यक्ति के इतिहास को मिलाकर अपनी कहानी कहता है. इसे एक नए तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है. इसके पात्रों के बारे में बताते हुए वो कहते हैं कि, इसमें एक बाबा हैं, एक दादी हैं और एक लोरा है जो एक डॉग है. जो इसकी मुख्य पात्रा है जो कहानी कहती है. अब कहानी में क्या गुण है और क्या अवगुण है ये आपको कहानी को पढ़ने के बाद ही पता चलेगा. इस पुस्तक को लिखने के उद्देश्य के बारे में बताते हुए वो कहते हैं कि, जिसे मैंने देखा है, सुना है, उसे अपने पाठकों तक उसे अपनी व्याख्या और विश्लेषण के साथ पहुंचा पांऊ. उन्होंने ये भी कहा कि मैंने इसे इस तरीके से पहुंचाने की कोशिश की है, जिससे पाठक के दिल तक ये बात पहुंच पाए. उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को लिखने में उन्हें 2 साल का समय लगा.
उनकी सबसे बनती है लेकिन घर में नहीं बनती
लेखक अनामिका ‘माधोपुर का घर’ के बारे में अपनी बात रखते हुए कहती हैं कि बड़े किसानों का अपने परिवेश के वंचित किसानों से जो खट्टा-मीठा रिश्ता होता है, खासकर मुसलमानों से या नीची जाति के लोगों से एक सौहार्द का रिश्ता बन जाता है, जो बातें वो घर पर नहीं कर पाते हैं वो बाहर उनके साथ दिखा देते हैं. अनामिका कहती हैं कि इस पक्ष पर अभी तक कम लिखा गया है. जमींदारों के अन्याय की कहानी तो बहुत लिखी गई है, लेकिन ये जो अनदेखा पक्ष है उस पर कम लिखा गया है, किसी प्रधान इलाके में कोई आदमी है वो छोटे-छोटे उद्योग करता है लेकिन बाहर वो विफल होता है, उसकी विफलता का जो इतिहास है उसकी भी एक करुण कहानी है. इस कहानी में जो बाबा है वो कई तरह के उपक्रम करते हैं, कभी गन्ना लगाते हैं, कभी डेयरी चलवाते हैं, लेकिन वो फेल होता रहता है, लेकिन उन सबका परिताप उनके घरेलू रिश्तों पर पड़ता है. कुत्ते को प्यार करते हैं, पड़ोस के लोगों को प्यार करते हैं लेकिन घर में तनातनी है. ये इस उपन्यास का अजीब पहलू है जो दिखाई देता है.
माधोपुर का घर पर क्या कहती है वंदना राग?
मुझे लगता है कि माधोपुर का घर एक रूपक है. ये सिर्फ एक लेखक की कहानी नहीं है, ये टूटते हुए समाज की कहानी है और बाद में पुनर्सृजित होते समाज की कहानी है. परिवार की कहानी उतनी ही है, जितनी देश की कहानी है. लेखक ने एक लंबे समयकाल को इसमें संजोने की कोशिश की है. देश में जितनी भी घटनाएं हुई, जिन्होंने हमें तोड़ा, सृजत किया, ये उन सबका आख्यान है. उन्होंने ये भी कहा कि पुस्तक में कई ऐसे पहलुु हैं जो पहली बार पाठकों के सामने आ रहा है.पुस्तक आज के मौजूदा समय में एक गंभीर संदेश देती है.
इस कार्यक्रम के जरिए FICCI लर्निंग, इनोवेशन, रिसर्च के क्षेत्र में बीते लंबे समय से काम कर रहे कई लोगों को संगठन सम्मानित करने जा रहा है.
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) पब्लिकॉन 2023 का आयोजन करने जा रहा है. ये FICCI का ये एक प्रतिष्ठित कार्यक्रम है जो लर्निंग, रिसर्च और नोवेशन के क्षेत्र में प्रकाशकों की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पूरी तरह से समर्पित है. यह कार्यक्रम देश की राजधानी दिल्ली में 8 अगस्त, 2023 के तानसेन मार्ग स्थित फेडरेशन हाउस में आयोजित किया जाएगा. इसका उद्घाटन केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी करेंगी.
अवॉर्डस का भी किया जाएगा आयोजन
FICCI दवारा आयोजित होने वाले पब्लिकॉन 2023 में बहुप्रतीक्षित 'फिक्की पब्लिशिंग अवार्ड्स' शामिल होंगे, जो बिजनेस, ट्रांसलेशन, डिजाइनिंग, फिक्शन, नॉन-फिक्शन और चिल्ड्रन लिटरेचर सहित विभिन्न श्रेणियों में प्रकाशकों के असाधारण योगदान को लेकर दिए जाएंगे. इस कार्यक्रम में, बिना स्ट्रेस के पढ़ाई करवाना (leisure reading), भारत के ग्लोबल रिसर्च आउटपुट में वैज्ञानिक प्रकाशन की भूमिका, रिसर्च के लिए फंडिंग में चुनौतियां और उनका रिसर्च आउटपुट और इसके प्रकाशन पर प्रभाव आदि विषयों पर चर्चा होगी.
कौन-कौन होगा कार्यक्रम में शामिल?
इस कार्यक्रम का उद्घाटन महिला एवं बाल, अल्पसंख्यक कार्य मंत्री, भारत सरकार, स्मृति ईरानी करेंगी. जबकि विदेश व शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस प्रतिभा सिंह व जस्टिस जसमीत सिह, भाजपा राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर, संसद सदस्य प्रशांत नंदा, नेशनल बुक ट्रस्ट के निदेशक लेफ्टिनेंट कर्नल युवराज मलिक और साहित्य अकादमी सचिव डॉ. के श्रीनिवासन राव सहित अन्य प्रभावशाली हस्तियां इसमें शामिल होंगी. इस कार्यक्रम में साहित्यिक और अकादमिक क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्तियां शामिल होंगी. सम्मानित वक्ताओं में साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव, डीएसटी भारत सरकार के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता, वैज्ञानिक जी' एंड हेड, सीड भारत सरकार, डॉ. देबप्रिया दत्ता, तथा नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) इंडिया की मुख्य संपादक व शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार की संयुक्त निदेशक नीरा जैन शामिल हैं.
क्या बोले पब्लिशिंग कमेटी के चेयरमैन
FICCI पब्लिशिंग कमेटी के चेयरमैन नीरज जैन ने इस कार्यक्रम को लेकर कहा कि हम मानते हैं कि प्रकाशक हमारे बौद्धिक इकोसिस्टम को आकार देने में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं. पब्लिकॉन 2023 उनके अमूल्य योगदान का उत्सव मनाने और प्रकाशन उद्योग के भीतर सहयोग और विकास के माहौल को बढ़ावा देने का एक अनूठा अवसर है.
Netflix इस पोस्ट के लिए दे रहा है 7.4 करोड़ की सैलरी
इस उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है, ऐसा लगता है जैसे सब कुछ आप अपने आसपास घटित होते हुए देख रहे हों.
जयंती रंगनाथन ने हाल के वर्षों में लेखन में जितने प्रयोग किए हैं शायद ही किसी लेखक ने किए हों. उनके नए उपन्यास ‘मैमराजी’ को पढ़ते हुए यह विचार और पुख़्ता हुआ. छोटी सी रोचक कहानी है, लेकिन कस्बाई जीवन की तथाकथित सामाजिकता पर करारा व्यंग्य है. दिल्ली से शशांक नामक एक युवक भिलाई के स्टील प्लांट में इंजीनियर बनकर जाता है और वहां मैमराजी के फेर में आ जाता है. स्वीटी आंटी का किरदार ग़ज़ब गढ़ा है जयंती जी ने. महानगरीय जीवन से एक आदमी भिलाई नामक अलसाये हुए कस्बे में पहुंचता है और जैसे सारे शहर की नींद खुल जाती है. सबको एक नया काम मिल जाता है उस नये कुंवारे इंजीनियर के निजी जीवन में ताकझांक करना.
निजता का सवाल
मजाक मजाक में ही यह उपन्यास एक इंसान की निजता के सवाल को उठाता है. किस तरह तथाकथित सामाजिकता की आड़ में किसी के निजी जीवन का कोई महत्व ही नहीं रह जाता है - उपन्यास की कथा का यही विमर्श है. बहुत रोचक कहानी, लगता है जैसे सब कुछ आप अपने आसपास घटित होते हुए देख रहे हों. शशांक का जीवन जैसे लाइव शो हो जाता है शहर की मैमराजियों के लिए. बहुत करारा व्यंग्य है. स्वीटी मैम के किरदार में 1990 के दशक के टीवी धारावाहिक ‘हमराही’ की देवकी भौजाई की याद आ जाती है. साथ ही यह हाल में प्रकाशित अनुकृति उपाध्याय के उपन्यास ‘नीना आंटी’ की याद भी दिलाता है. किसी समानता के कारण नहीं बल्कि ये सारे किरदार भी कस्बाई जीवन की जड़ता को तोड़ने वाले हैं. उपन्यास हिन्द युग्म से प्रकाशित है.