यह टेस्ट एजुकेशन सेक्टर के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकता है. वहीं इसका असर 10वीं और 12वीं के पढ़ाई और एग्जाम पर भी पड़ सकता है.
नई दिल्लीः हाल ही में शुरू की गई सेंट्रल यूनिवर्सिटीज कॉमन एंट्रेंस टेस्ट या कॉमन यूनिवर्सिटी एडमिशन टेस्ट (CUET) पर रार मची हुई है. सीयूईटी को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. सरकार द्वारा इस साल से लागू किए गए इस टेस्ट ने उच्च शिक्षा के भविष्य, बोर्ड परीक्षाओं की भूमिका और शायद कोचिंग कक्षाओं में शामिल होने के लिए एक नए किस्म की प्रतिक्रियाओं की एक पूरी श्रृंखला को तैयार कर दिया है. यह टेस्ट एजुकेशन सेक्टर के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकता है. वहीं इसका असर 10वीं और 12वीं के पढ़ाई और एग्जाम पर भी पड़ सकता है.
केवल एक राज्य में नहीं होगा CUET
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल केवल एक राज्य मेघालय को अपनी प्रवेश प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने की इजाजत दी है. इसका मतलब यह है कि यह टेस्ट रहने वाला है, क्योंकि कोर्ट भी इसको लागू करने के पक्ष में है। हालांकि शिक्षाविद् इसको लेकर के दो धड़ों में बंट गए हैं. प्रवेश परीक्षा ने राजनीतिक आयाम भी हासिल कर लिया है.
2020 में केंद्र ने की थी घोषणा
यह सब 2020 में शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने स्कूल और कॉलेज शिक्षा में परिवर्तन लाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की थी. इसी समय, कई बोर्डों में स्कूल छोड़ने वाली परीक्षाओं में अत्यधिक उदार मार्किंग का चलन भी था, जिससे उन्हें अन्य बोर्डों के छात्रों के मुकाबले लाभ भी मिला. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत, शिक्षा मंत्रालय ने शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीयूईटी की शुरुआत की है। यह परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के द्वारा आयोजित की जाएगी, जिसकी स्थापना 2017 में उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए की गई थी.
46 सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में होगा लागू
यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने अपनी घोषणा में स्पष्ट किया कि 46 सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में प्रवेश के लिए केवल सीयूईटी स्कोर अनिवार्य होगा. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि यूजी कार्यक्रम में प्रवेश के लिए बारहवीं कक्षा के अंक अब लागू नहीं होंगे और केंद्रीय विश्वविद्यालय अपने न्यूनतम योग्यता मानदंड तय कर सकते हैं. स्नातकोत्तर स्तर पर भी प्रवेश सीयूईटी-पीजी के आधार पर किया जाएगा.
छात्रों ने व्यक्त की चिंताएं
परीक्षा का पहला संस्करण छात्रों के लिए प्रश्नों का एक पूल तैयार कर रहा है. सीएल एजुकेट की एड-टेक शाखा, करियर लॉन्चर के कार्यकारी निदेशक, निखिल महाजन कहते हैं, "9 लाख से अधिक उम्मीदवारों के साथ परीक्षा के कठिनाई स्तर को लेकर जो भी आशंकाएं हैं, सीयूईटी निस्संदेह सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी प्रवेश परीक्षाओं में से एक होगी. सीयूईटी एक नई परीक्षा है जिसके आसपास कोई ऐतिहासिक डेटा नहीं है और छात्र इससे परेशान हैं."
ऑर्किड इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई के छात्र बुरहानुद्दीन माला, 2022 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रवेश के तरीके के बारे में चिंतित हैं, जबकि पहली बार केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के लिए कमर कस रहे हैं. “बारहवीं कक्षा की सीबीएसई बोर्ड परीक्षा के कुछ ही दिनों बाद परीक्षा देना थोड़ा थका देने वाला होने वाला है. हालांकि, मैंने परीक्षा के लिए खुद को तैयार किया है और मैं आने वाली चुनौतियों के लिए मानसिक रूप से तैयार हूं.”
हल्द्वानी की दीया आराम महसूस कर रही है क्योंकि कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए अच्छे अंक प्राप्त करने का कोई दबाव नहीं होगा. "निश्चित रूप से, हमें बारहवीं कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने हैं, लेकिन माता-पिता और शिक्षकों के प्रदर्शन के दबाव के बिना ऐसा करना है." दीया खुश हैं क्योंकि यूजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए छात्रों के केवल सीयूईटी अंकों पर विचार किया जाएगा, जिससे उन्हें कई घंटों की पढ़ाई से राहत मिली है. हालांकि, यह शिक्षकों को चिंतित करता है क्योंकि उन्हें डर है कि छात्र बोर्ड परीक्षाओं की अनदेखी कर सकते हैं।
रजिस्ट्रेशन करने वाले छात्रों की संख्या काफी ज्यादा
परीक्षा के लिए पंजीकृत छात्रों की संख्या पहले ही सभी मौजूदा परीक्षा संख्या को पार कर चुकी है. वर्ष 2022-23 की होने वाली कंप्यूटर आधारित टेस्ट (सीबीटी) परीक्षा के लिए लिए 10 लाख से अधिक छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कर लिया है। कुल 87 विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों ने परीक्षा का हिस्सा बनने के लिए अपनी सहमति दी है. दूसरी ओर, कुछ राज्य विश्वविद्यालयों ने 2022 में होने वाली परीक्षा का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया है.
एनटीए के अनुसार, यह 13 भाषाओं में आयोजित किया जाएगा, जिसमें मल्टीपल च्वाइस आधारित प्रश्न होंगे. दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर आभा देव हबीब कहती हैं, "कहा जा रहा है कि यह 13 भाषाओं में उपलब्ध होगा, लेकिन टेस्टिंग की वेबसाइट पर केवल दो भाषा विकल्प हिंदी और अंग्रेजी हैं. यह परीक्षा बारहवीं कक्षा के अंकों के मूल्य को कम करने जा रही है, जो विश्वविद्यालय में प्रवेश का आधार हुआ करता था. यह प्रणाली ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा की पढ़ाई को समाप्त कर देगी. ” वह अपना डर व्यक्त करती हैं.
एड-टेक की सोने की खान
सभी का मानना है कि सीयूईटी छात्रों के जीवन को आसान बना देगा क्योंकि यह बारहवीं कक्षा में छात्रों ने जो अध्ययन किया है, उस पर आधारित होगा. कई कोचिंग सेंटर पहले ही फीस और क्रैश कोर्स की घोषणा कर चुके हैं. करियर लॉन्चर के महाजन बताते हैं, "सीयूईटी कोचिंग के लिए संस्थानों में पहले से ही पूछताछ बढ़ रही है. तथ्य यह है कि छात्र प्रशिक्षित होना चाहते हैं ताकि वे इसके बारे में अधिक जान सकें और प्रतियोगिता को समझ सकें."
ऑर्किड इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई के बारहवीं कक्षा के छात्र दर्शील राठौड़ के अनुसार, बोर्ड परीक्षा के बाद होने वाली प्रवेश परीक्षा आमतौर पर बोर्ड परीक्षा पैटर्न को दर्शाती है. इस प्रकार, बोर्ड परीक्षा के ठीक बाद परीक्षा का प्रयास करना तनावपूर्ण और एक ही समय में आराम देने वाला हो सकता है.
सिंगल स्ट्रेस पॉइंट
यह परीक्षा शिक्षा के मूल्य को खराब करने के लिए नहीं बल्कि शीर्ष विश्वविद्यालयों में एक सीट सुनिश्चित करने के लिए 99 फीसदी अंक प्राप्त करने के तनाव को दूर करने के लिए बनाई गई है, महाजन कहते हैं. सीयूईटी की कमी यह होगी कि एक परीक्षा छात्रों के प्रदर्शन में सुधार करने का मौका छीन लेगी. अगर एक परीक्षा उनके लिए अच्छी नहीं होती है तो वे एक पूरे साल को खो देंगे या उन्हें उस विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए विचार करना होगा जहां वे नहीं जाना चाहते थे. इसके विपरीत, विश्वविद्यालयों द्वारा कई प्रवेशों ने तनाव को बढ़ाया, लेकिन छात्रों को एक परीक्षा में गलतियों से सीखने की अनुमति दी, जिसे दूसरे में सुधारा जा सकता था.
भारत जैसे देश में, जहां माता-पिता हमेशा कोचिंग संस्थानों पर निर्भर रहते हैं. एनईपी 2022 के तहत इन पहलों को शिक्षा क्षेत्र में भी व्यावसायीकरण बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है. आभा देव हबीब को चिंता है कि वे परीक्षा देना तो सिखा सकते हैं, लेकिन शिक्षा का महत्व नहीं. राज्य सरकार, छात्रों और शिक्षकों को कोई भी नीति बनाने से पहले परामर्श लेना चाहिए था. वह कहती हैं, "एनसीईआरटी पर ध्यान देने के साथ, केंद्र राज्य बोर्डों को हाशिए पर रख रहा है."
मारुति सुजुकी ने अपने तिमाही नतीजों से उत्साहित होकर डिविडेंड का ऐलान किया है. आइए जानते हैं कि ये होता क्या है.
इस समय कंपनियां बीते वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही (Q4 Results) के नतीजे घोषित कर रही हैं. कल यानी 26 अप्रैल को देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया ने अपने नतीजे जारी किए. कंपनी का शुद्ध लाभ 47.8% उछलकर 3,877.8 करोड़ रुपए रहा. इन नतीजों से उत्साहित कंपनी ने 125 रुपए प्रति शेयर के डिविडेंड (Dividend) का ऐलान किया है. मारुति की तरह कई दूसरी कंपनियां भी डिविडेंड देने की घोषणा कर चुके हैं. डिविडेंड कुछ ऐसा है जिसकी घोषणा से निवेशकों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है. चलिए सरल भाषा में जानते हैं कि आखिर डिविडेंड क्या होता है.
मुनाफे का है बंटवारा
हर कंपनी मुनाफा कमाने के लिए काम करती है. कई कंपनियां अपने मुनाफे में अपने शेयरहोल्डर्स को भी हिस्सेदार मानती हैं, ऐसे में जब कोई कंपनी साल भर में कमाए गए अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा शेयरहोल्डर्स में बांटती है, तो उसे ही डिविडेंड कहते हैं. हालांकि कई बार ऐसे भी होता है कि कंपनियां मुनाफे के बजाय सरप्लस कैश से भी शेयरहोल्डर्स को डिविडेंड बांटती हैं.
क्या हर कंपनी देती है डिविडेंड?
कंपनियों के लिए डिविडेंड देना जरूरी नहीं होता, क्योंकि इससे कंपनियों को कुछ हासिल नहीं होता, सिवाय शेयरहोल्डर्स की खुशी और भरोसे के. इसलिए कंपनी चाहे तो वो अपने मुनाफे में से एक भी पैसा शेयरहोल्डर्स को डिविडेंड के रूप में न दे. अक्सर देखा गया है कि छोटी-छोटी कंपनियां या जिन्होंने अभी अभी अपना काम शुरू किया है वो कंपनियों डिविडेंड नहीं देतीं. क्योंकि वो अपने मुनाफे को शेयरहोल्डर्स में बांटने के बजाए वापस बिजनेस के विस्तार और ग्रोथ में लगा देती हैं. जो कंपनियां डिविडेंड देती हैं वो आमतौर पर पूरी तरह से स्थापित और बड़ी कंपनियां होती हैं, लेकिन हर बड़ी कंपनी डिविडेंड दे ये भी जरूरी नहीं.
क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया?
कंपनी द्वारा जो भी डिविडेंड जारी किया जाता है, वो फेस वैल्यू पर होता है. फेस वैल्यू किसी भी शेयर की एक नॉमिनल वैल्यू होती है, जो कुछ खास मौकों को छोड़कर कभी नहीं बदलती. ऐसा नहीं है कि डिविडेंड कर निवेशक को मिलता है. यदि आप कंपनी के डिविडेंड के ऐलान के बाद यह सोचकर शेयर खरीद लेते हैं कि आपको डिविडेंड मिलेगा, तो ऐसा नहीं है. एक निर्धारित अवधि से पहले के शेयरहोल्डर्स को ही कंपनी डिविडेंड देती है. कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स के नामों की लिस्ट देखती है और उनमें उन नामों को छांटकर अलग करती है जो डिविडेंड के पात्र हैं. उस दिन को रिकॉर्ड डेट कहते हैं. कंपनी इस दिन ये बताती है कि वो कितने परसेंट का डिविडेंड देने वाली है.
आपको क्या होता है फायदा?
कंपनियां डिविडेंड को वित्त वर्ष के दौरान कभी भी दे सकती हैं. यदि डिविडेंड साल के बीच में दिया जाता है, तो उसे अंतरिम डिविडेंड कहते हैं और अगर साल के अंत में दिया गया तो फाइनल डिविडेंड कहा जाता है. चलिए अब सबसे महत्वपूर्ण बात भी समझ लेते हैं कि डिविडेंड से आम निवेशक को क्या फायदा होता है. दरअसल, डिविडेंड एक तरह का रिटर्न गिफ्ट है. सीधे शब्दों में कहें तो कंपनी आपको उस पर भरोसा दर्शाने के लिए कुछ डिविडेंड के रूप में कुछ पैसा देती है. अब ये पैसा कितना होगा, यह आपके पास मौजूद शेयर्स की संख्या पर निर्भर करता है. उदाहरण के तौर पर, यदि आपके पास किसी कंपनी ने 500 शेयर्स हैं और वह कंपनी 10 रुपए प्रति शेयर का डिविडेंड का ऐलान करती है, तो आपको 500 शेयर्स पर कुल 5000 का डिविडेंड मिलेगा. यानी शेयर के भाव चढ़ने से आपको जो फायदा हुआ, उसके अलावा आपकी 5000 रुपए की अतिरिक्त कमाई हो गई. इसलिए डिविडेंड के नाम सुनते ही निवेशकों के चेहरे पर चमक आ जाती है.
कैसे चेक करें डिविडेंड का पैसा?
किसी कंपनी द्वारा डिविडेंड की घोषणा करने के बाद आपके पास जितने शेयर्स होते है, उसी के हिसाब से आपको डिविडेंड मिलता है. डिविडेंट का पैसा सीधे आपके उस बैंक अकाउंट में आता है, जो आपके डिमैट खाते से लिंक होता है. शेयर बाजार में निवेश के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है. खाता खुलवाते समय आपको बैंक अकाउंट का विवरण देना होता है. आप जो बैंक अकाउंट डिमैट खाते से लिंक करते हैं, उसी में डिविडेंड का पैसा आता है. लिहाजा, डिविडेंड पे आउट डेट के बाद आप बैंक अकाउंट का स्टेटमेंट चेक कर सकते हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने कथित शराब नीति घोटाले में दिल्ली के CM को गिरफ्तार किया था, तब से वह सलाखों के पीछे हैं.
कथित शराब घोटाले में गिरफ्तार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जिस तरह के सबूत अदालत के समक्ष पेश किए हैं, उससे केजरीवाल की जल्द रिहाई की सभी संभावनाएं कमजोर हो गई हैं. ऐसे में यह सवाल अहम है कि क्या केजरीवाल लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में वोट डाल पाएंगे? क्या कानून जेल में बंद किसी व्यक्ति को मतदान का अधिकार देता है?
25 मई को होगी वोटिंग
केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए अदालत से राहत की गुहार लगाई थी, लेकिन हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कहीं से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. दिल्ली में लोकसभा चुनाव के छठे चरण में 25 मई को वोट डाले जाएंगे. यदि तब तक केजरीवाल जेल से बाहर आ जाते हैं, तो ठीक वरना वह इस बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. कानून में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि जेल में बंद किसी भी व्यक्ति को मतदान का अधिकार नहीं है.
इसलिए नहीं है अधिकार
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) 1951 की धारा 62(5) के अनुसार, जेल में बंद कोई भी व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता, फिर चाहे उसे हिरासत में लिया गया हो या किसी मामले में सजा काट रहा हो. दरअसल, वोट डालना एक कानूनी अधिकार है. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है, तो अपने इस अधिकार को खो देता है. उसका ये अधिकार अपने-आप निरस्त हो जाता है. दोषी करार दिए व्यक्ति के अलावा ऐसे लोग जिन पर ट्रायल चल रहा हो, उन्हें भी चुना में मतदान की इजाजत नहीं होती. यानी यह साफ है कि जेल में रहते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल वोट नहीं डाल पाएंगे.
केवल इन्हें मिलती है छूट
कैदियों से वोटिंग राइट छीनने का इतिहास बहुत पुराना है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 के तहत भी ऐसी व्यवस्था थी. राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषियों को अयोग्य ठहराते हुए उनसे वोट का अधिकार छीन लिया जाता था. गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी यही नियम लागू हुआ. इसके तहत कुछ खास तरह के अपराधों में सता काट रहे लोगों को मतदान से वंचित रखा गया. लेकिन 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जेल में बंद हर शख्स से वोटिंग अधिकार वापस ले लिया जाए. हालांकि, इस प्रावधान में ऐसे लोगों को छूट मिलती है, जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में होते हैं. यानी कि यदि सरकार को शक हो कि उनके बाहर रहने से उपद्रव हो सकता है और इस वजह से उन्हें नजरबंद किया गया हो. ऐसे लोग पुलिस की मौजूदगी में वोट डाल सकते हैं.
जेल से लड़ सकते हैं चुनाव
गौर करने वाली बात ये है कि जेल में बंद व्यक्ति वोट नही डाल सकता, लेकिन उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है. चलिए आपको बताते हैं कि इसके पीछे क्या कहानी है. दरअसल, करीब डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट से एक कैदी ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई. इस पर अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं है, तो वो चुनाव कैसे लड़ सकते हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन शीर्ष अदालत ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए जेल में बंद लोगों को चुनाव में लड़ने की इजाजत दे दी, तब से यही व्यवस्था कायम है. कई बार अदालत में इस कानून को चुनौती भी दी गई, लेकिन यह तर्क काम कर गया कि कई बार नेता सियासी लड़ाई के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में जेल में बंद होने की वजह से ही काबिल व्यक्ति को चुनाव लड़ने से डिसक्वालिफाई किया जा सकता है. इसलिए उन्हें जेल से चुनाव लड़ने की छूट मिलनी चाहिए.
कोटक महिंद्रा बैंक के नए क्रेडिट कार्ड जारी करने पर रोक है. वहीं, ICICI बैंक ने सैकड़ों क्रेडिट कार्ड ब्लॉक कर दिए हैं.
क्रेडिट कार्ड (Credit Card) इस समय काफी ज्यादा चर्चा में हैं. एक तरफ जहां RBI ने कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank) के नए क्रेडिट कार्ड जारी करने पर रोक लगा दी है. वहीं, दूसरी तरफ आईसीआईसीआई बैंक ने अपने 17 हजार क्रेडिट कार्ड ब्लॉक कर दिए हैं. कोटक पर नियमों के उल्लंघन के चलते कार्रवाई हुई है. जबकि ICICI ने हाल ही में सामने आई खामी की वजह से ऐसा किया है. अब जब बात क्रेडिट कार्ड की निकली है, तो कुछ ऐसी बातें हैं जिनका ध्यान आपको भी रखना चाहिए, ताकि यह सुविधा आपकी दुविधा की वजह न बन जाए.
ये अनदेखी पड़ेगी भारी
क्रेडिट कार्ड कई तरह से फायदेमंद है. खासकर यदि आपकी कमाई कम है, तो खर्चों के मैनेजमेंट को यह आसान बना देता है. लेकिन क्रेडिट कार्ड के भुगतान का मैनेजमेंट कभी-कभी उलझन बन जाता है. जैसे समय पर न किया गया पेमेंट, ब्याज की वजह बन सकता है और यह एक बड़े कर्ज में बदल सकता है. कई बार लोग इसकी अनदेखी कर देते हैं और समय पर समाधान तलाशने की कोशिश नहीं करते. इसके परिणामस्वरूप कर्ज का चक्र शुरू हो जाता है जो स्ट्रेस की वजह बन सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि कम कमाई के साथ क्रेडिट कार्ड को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आप एक बजट बनाएं. बजट में जरूरी खर्चों को प्राथमिकता दें और ऐसे खर्चों से बचें जिन्हें आसानी से टाला जा सकता है.
खर्च की लिमिट बनाएं
क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने से पैसा तुरंत आपकी जेब से नहीं कटता, इसलिए लोग अक्सर बिना कुछ सोचे-समझे खर्च करते जाते हैं. आखिरी में जब बिल चुकाने की बारी आती है, तो उनके हाथ-पांव फूलने लगते हैं. यहीं से समस्या शुरू हो जाती है. इसलिए क्रेडिट कार्ड के लिए एक लिमिट सेट करें. बेहतर रहेगा यदि आप अपना क्रेडिट उपयोग अनुपात (UCR) 30% से कम रखते हैं. उदाहरण के लिए, यदि आपके क्रेडिट कार्ड की मंथली लिमिट 1 लाख रुपए है, तो सुनिश्चित करें कि आप उस लिमिट के 30%, (करीब 30,000 रुपए) से अधिक का इस्तेमाल न करें.
समय पर पेमेंट करें
क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वालों के लिए उसके बिल का समय पर भुगतान बेहद जरूरी है. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आपका क्रेडिट स्कोर तो खराब होगा कि भविष्य में आपको नया क्रेडिट कार्ड मिलने की संभावना भी प्रभावित होगी. साथ ही यदि आप भविष्य में अपने कार्ड की सीमा को अपग्रेड करना चाहेंगे, तो उसमें भी मुश्किल होगी. एक और महत्वपूर्ण बात जो आपको ध्यान रखनी है, वो है क्रेडिट कार्ड की ब्याज दर संरचना. आमतौर पर, क्रेडिट कार्ड पर भुगतान न करने की स्थिति में बैंक के जोखिम की भरपाई के लिए ज्यादा ब्याज लग सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि आप कार्ड के लिए आवेदन करने से पहले उसकी ब्याज दर संरचना को समझें. सभी विकल्पों पर विचार करने के बाद उस बैंक को चुनें, जो सर्वोत्तम ब्याज दर के साथ सबसे कम प्रोसेसिंग शुल्क वसूलता है.
जोश और लालच से बचें
चूंकि क्रेडिट कार्ड बाद में पेमेंट की सुविधा देता है, इसलिए लोग बड़े-बड़े खर्चे भी इसी से कर देते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जोश में किए गए इन बड़े खर्चों के लिए बाद में पछताना पड़ता है. इसलिए बड़ी खरीदारी से पहले यह जरूर सोच लें कि बाद में भुगतान कैसे करेंगे और इसमें किसी तरह की समस्या तो नहीं आएगी. बेहतर यही है एक बजट बनाकर उसी के अनुरूप क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करें. इसके अलावा, क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाले रिवॉर्ड पॉइंट के लालच में सीमित आय वाले भी कार्ड से ज्यादा खर्च के लिए प्रेरित हो जाते हैं, जो उनके लिए हानिकारक हो सकता है. लिहाजा, जब तक कैश फ्लो ज्यादा न हो, जरूरत से ज्यादा कार्ड के इस्तेमाल से बचें.
बाबा रामदेव के पास आज पैसों की कोई कमी नहीं है. वहीं, पतंजलि भी लगातार विस्तार करती जा रही है.
पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन को लेकर बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और उनके सखा आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balkrishna) को सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा है. संभवतः यह पहली बार होगा जब रामदेव को अदालत से कितनी फटकार खानी पड़ी है. बाबा और बालकृष्ण कई बार माफी भी मांग चुके हैं. सोमवार को पतंजलि ने बड़े फॉन्ट साइज में अखबारों में माफीनामा प्रकाशित किया था. अब यह देखना है कि 30 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में अदालत का क्या रुख रहता है.
आज इतना है कंपनी का टर्नओवर
पतंजलि (Patanjali) आज एक बहुत बड़ी कंपनी बन गई है और रामदेव की गिनती देश के दिग्गज कारोबारियों में होती है. कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन लगभग 55,490 करोड़ रुपए है. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब बाबा के पास कंपनी शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने अपनी एक भक्त से आर्थिक सहायता लेकर पतंजलि की नींव रखी थी. चलिए आपको बताते हैं कि पतंजलि की शुरुआत कैसे हुई और इसमें सबसे पहले किसका पैसा लगा था.
इन्होंने दिया था पर्सनल लोन
NRI सुनीता और उनके पति सरवन सैम पोद्दार (Sunita and Sarwan Sam Poddar) ने पतंजलि की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दोनों रामदेव के फॉलोअर हैं. उन्होंने ही बाबा को 50 से 60 करोड़ रुपए का पर्सनल लोन दिया था, जिसकी बदौलत 2006 में रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना कर पाए. पोद्दार दंपत्ति ने बाबा को यह लोन बिजनेस (Personal Loan For Business) शुरू करने के लिए दिया था और उनकी पतंजलि आयुर्वेद में हिस्सेदारी भी थी. यह वो दौर था जब रामदेव के पास अपना बैंक खाता भी नहीं था.
उस समय थे दूसरे बड़े स्टेकहोल्डर
2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरवन 'सैम' पोद्दार और उनकी पत्नी सुनीता स्कॉटलैंड में रहते हैं. उन्होंने 20 लाख पाउंड में लिटिल कुम्ब्रे नामक एक द्वीप खरीदा था, जिसे उन्होंने 2009 में बाबा रामदेव को बतौर गिफ्ट दिया था. 2011 तक दोनों के पास पतंजलि आयुर्वेद में 24.92 लाख शेयर थे. इस तरह, उनकी कंपनी में 7.2 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. पोद्दार दंपत्ति आचार्य बालकृष्ण के बाद पतंजलि आयुर्वेद में दूसरे सबसे बड़े हितधारक थे. बालकृष्ण के पास कंपनी में 92% से अधिक शेयर हैं. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान में NRI पति-पत्नी की कंपनी में हिस्सेदारी है या नहीं.
एक DVD ने बनाया भक्त
सुनीता बाबा रामदेव की भक्त थीं. बाबा के योग ज्ञान के चलते उन्होंने अपना काफी वजन कम किया था. वह स्वामी रामदेव से इतनी ज्यादा प्रभावित थीं कि उन्होंने बाबा को आइलैंड गिफ्ट करने के लिए अपने पति को राजी कर लिया. सुनीता बाद में यूके के पतंजलि पीठ ट्रस्ट की ट्रस्टी भी बन गईं. सुनीता के पति सरवन का जन्म बिहार के बेतिया में हुआ था. जबकि सुनीता मुंबई में पैदा हुईं और काठमांडू में पली-बढ़ीं. सुनीता को कहीं से बाबा रामदेव की योग क्लासेस की DVD मिली थी. इसके बाद जब रामदेव ग्लासगो गए तब वहां सुनीता ने उनसे मुलाकात की. इसके बाद वह बाबा की भक्त हो गईं.
पंजीकरण के भी नहीं थे पैसे
सैम पोद्दार के पिता ग्लासगो में डॉक्टर थे. जब सैम सिर्फ 4 साल के थे, तब उनके पिता भारत छोड़कर ग्लासगो शिफ्ट हो गए थे. सैम इंजीनियर हैं उन्होंने 1980 के दशक में एक परिचित का होम-केयर व्यवसाय खरीदा था. 1982 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बिजनेस में पूरी तरह से उतर गए. जबकि सुनीता गैस स्टेशन चलाती थीं, बाद में वह भी पति का बिजनेस में हाथ बंटाने लगीं. रामदेव ने एक बार कहा था कि 1995 में उनके पास दिव्य फार्मेसी के पंजीकरण तक के लिए पैसे नहीं थे. उस समय योग गुरु के तौर पर उन्हें इतनी पहचान नहीं मिली थी.
बाबा के पास है दौलत का पहाड़
बाद में जब रामदेव ने लोकप्रियता हासिल की, तो उन्होंने कुछ बड़ा करने का फैसला लिया. तब सरवन और सुनीता पोद्दार ने उन्हें काफी बड़ा कर्ज दिया था. उनके साथ ही गोविंद अग्रवाल नामक शख्स ने भी उनकी मदद की थी. सुनीता ओकमिनस्टर हेल्थकेयर (Oakminster Healthcare) की सीईओ और संस्थापक हैं. यह कंपनी स्कॉटलैंड की लीडिंग होम केयर प्रदान करने वाली कंपनी है. बाबा रामदेव आज योगगुरु के साथ-साथ बिजनेसमैन भी बन चुके हैं. साल 2022 में उनकी नेटवर्थ 190 मिलियन डॉलर यानी करीब 1400 करोड़ रुपए थी. जबकि आचार्य बालकृष्ण की कुल संपत्ति 29,680 करोड़ रुपए थी.
साधारण जीवन पर लग्जरी कारों का शौक
बाबा रामदेव ने एक बार कहा था कि उनकी कमाई चैरिटी में जाती है और वह साधारण जीवन जीना पसंद करते हैं. हालांकि, ये बात अलग है कि वह अक्सर लग्जरी कारों में घूमते नजर आ जाते हैं. पिछले साल उनकी लैंड रोवर डिफेंडर 130 (Land Rover Defender 130) को लेकर काफी चर्चा हुई थी, जिसकी कीमत 1.41 करोड़ रुपए के आसपास है. इससे पहले, उनके नई Mahindra XUV700 खरीदने की बात भी सामने आई थी. बताया जाता है कि इसके अलावा, बाबा रामदेव के पास लैंड रोवर डिस्कवरी, रेंज रोवर इवोक, महिंद्रा स्कॉर्पियो, और जगुआर एक्सजेएल भी है.
अंकिती बोस ने थोड़े से समय में ही काफी नाम कमा लिया था. 2018 में अंकिती का नाम फोर्ब्स एशिया की 30 अंडर 30 लिस्ट में आया था.
सिंगापुर की फैशन कंपनी जिलिंगों (Zilingo) एक बार फिर सुर्खियों में है. वजह है कंपनी की पूर्व सीईओ और फाउंडर अंकिती बोस (Ankiti Bose) की FIR. बोस ने कंपनी के दो अधिकारियों के खिलाफ मुंबई में शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने ध्रुव कपूर और वैद्य पर ठगी, धोखाधड़ी, डराने-धमकाने के साथ-साथ यौन उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है. अंकिती बोस ने महज थोड़े से समय में बेशुमार दौलत और शौहरत हासिल कर ली थी. उनके नेतृत्व में कंपनी सफलता के शिखर पर पहुंच गई थी, लेकिन उसकी बर्बादी की कहानी भी उन्होंने खुद ही अपने हाथों से लिख डाली.
ऐसे शुरू हुई थी परेशानी
साल 2020 में Zilingo की चर्चा तब हुई थी जब उसमें निवेश करने वालों ने अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए हैं. दरअसल, जिलिंगो ने टेमसेक होल्डिंग्स और सिकोइया कैपिटल इंडिया जैसे कई बड़े निवेशकों से करीब 30 करोड़ डॉलर जुटाए थे. जैसे ही कंपनी ने वित्तीय गड़बड़ी के आरोपों के चलते अंकिती बोस की बर्खास्तगी का ऐलान किया, निवेशकों ने अपने पैसे मांगने शुरू कर दिया. कंपनी गंभीर आर्थिक संकट में घिर गई, उसके कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकने लगी. इस अच्छी-खासी कंपनी को बर्बादी के कगार पर पहुंचाने के लिए उसकी पूर्व सेलिब्रिटी सीईओ रहीं अंकिती बोस ठहराया गया.
केवल खुद पर था फोकस
अंकिती का काम करने का तरीका ऐसा हो गया था कि कंपनी लगातार नुकसान में जाने लगी थी. हालांकि, ये बात अलग है कि 2019 में जिलिंगों की वैल्युएशन जब 97 करोड़ डॉलर पर पहुंच गई, तब अंकिती के काम को खूब सराहा गया. यह भी कहा जाने लगा था कि जिलिंगों 1 अरब डॉलर की वैल्युएशन को हासिल कर यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो जाएगी. जिलिंगो के कई कर्मचारियों ने स्वीकार किया था कि अंकिती बोस के नेतृत्व में कंपनी कई सालों से खराब प्रदर्शन कर रही थी. बोस के काम करने का तरीका ऐसा था कि कंपनी के अधिकांश कर्मचारी खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे थे. बोस ने बिजनेस को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया था और उनका पूरा फोकस केवल खुद पर था.
रिश्तों में आ गई थी खटास
अंकिती का जन्म 1992 में भारत में हुआ. उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई और ग्रेजुएशन मुंबई से की. बोस ने अपने करियर की शुरुआत मैकेन्जी एंड कंपनी से की. इसके बाद वह सिकोइया कैपिटल से जुड़ गईं. कहा यह गया कि जिलिंगो को बर्बादी के कगार पर लाने के पीछे अंकिती बोस और शैलेंद्र सिंह के बीच पनपा विवाद भी जिम्मेदार रहा. पहले इन दोनों के बीच अच्छा रिश्ता था, लेकिन बाद में संबंधों खटास आ गई. शैलेंद्र सिंह उस समय सिकोइया इंडिया (Sequoia India) के MD थे. हालांकि, दोनों ने कभी अपने रिश्ते पर खुलकर बात नहीं की.
पड़ोसी के साथ की थी शुरुआत
अंकिती को फैशन कंपनी शुरू करने का आइडिया बैंकॉक में छुट्टियां बिताते समय आया था. इसके बाद उन्होंने 2015 में अपने पड़ोसी ध्रुव कपूर से इस बारे में चर्चा की. उस समय ध्रुव कपूर गेमिंग स्टूडियो 'कीवी इंक' में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. कुछ महीनों की चर्चा के बाद दोनों ने नौकरी छोड़कर जिलिंगो की शुरुआत की. इसके लिए उन्होंने अपनी 30000 डॉलर की सेविंग्स लगाई. जिलिंगो का मकसद दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के छोटे व्यवसायों को अपना सामान ऑनलाइन बेचने में मदद करना था. इस कंपनी का हेडक्वॉर्टर सिंगापुर में है और इसकी एक टीम बेंगलुरु में बैठती है.
कई पुरस्कार भी मिले थे
2016 में बोस सिंगापुर चली गईं, जहां उन्होंने जिलिंगो सॉफ्टवेयर और सप्लाई चेन सॉल्युशंस को शुरू किया. अंकिती बोस ने थोड़े से समय में ही काफी नाम कमा लिया था. 2018 में अंकिती का नाम फोर्ब्स एशिया की 30 अंडर 30 लिस्ट में आया. 2019 में उन्हें फॉर्च्यून की 30 अंडर 30 और ब्लूमबर्ग 50 में जगह मिली. इतना ही नहीं, 2019 में ही उन्हें बिजनेस वर्ल्डवाइड मैगजीन मोस्ट इनोवेटिव सीईओ ऑफ द ईयर-सिंगापुर का अवॉर्ड मिला. 2020 में उन्हें सिंगापुर 100 वुमन में जगह मिली. लेकिन बाद में उनका नाम दूसरी वजहों से चर्चा में रहा. आज अपने पूर्व सहकर्मियों पर गंभीर आरोप लगाकर वह फिर से खबरों में बनी हुई हैं.
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है.
दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क (Elon Musk) की इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) की भारत में एंट्री कब होगी? इस सवाल का जवाब देना फिलहाल मुश्किल हो गया है. मस्क की 21-22 अप्रैल की प्रस्तावित भारत यात्रा में इस संबंध में ऐलान की पूरी उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त पर मस्क ने भारत आने का इरादा टाल दिया. हालांकि, वह इस साल के अंत में भारत आने की बात कह रहे हैं पर उसमें अभी बहुत समय है और इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि तब इस बार की तरह दौरा न टले. लिहाजा, ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो गया है कि क्या एलन मस्क की भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ है?
चुनौतियों का दिया था हवाला
एलन मस्क ने अपनी भारत यात्रा टालने का ऐलान चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में छपी उस रिपोर्ट के बाद किया, जिसमें टेस्ला की भारत में सफलता पर शंका जाहिर की गई थी. ग्लोबल टाइम्स ने टेस्ला के भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक तरह से यह साफ कर दिया था कि चीनी सरकार इससे खुश नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया था कि टेस्ला के भारत में EV प्लांट लगाने से भारत को जरूर फायदा होगा, लेकिन यह टेस्ला के लिए फायदे का सौदा नहीं रहने वाला. तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.
पूरी तस्वीर बदलने की है शंका
अमेरिका के बाद चीन टेस्ला का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. ऐसे में कंपनी का चीन के बजाए भारत पर फोकस करना बीजिंग को बिल्कुल भी रास नहीं आएगा. मस्क पहले चाहते थे कि वह चीन में निर्मित अपनी कारों को भारतीय बाजार में उतारें और संभावनाओं का पता लगाने के बाद यहां प्लांट लगाने का फैसला लें. लेकिन भारत सरकार के इंकार के बाद उनके लिए प्लांट लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. चीनी सरकार को मस्क की पहली वाली चाहत से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि उससे चीन में टेस्ला के उत्पादन में ही इजाफा होता. मगर प्लांट लगाने से तस्वीर पूरी तरह पलट सकती है.
चीन को सता रहा नुकसान का डर
भारत में बिजनेस के लिए अनुकूल स्थितियां मस्क को बीजिंग के बजाए नई दिल्ली पर फोकस करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं. और यदि ऐसा होता है, तो चीन को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना होगा. लिहाजा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मस्क की प्रस्तावित भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ हो. बता दें कि टेस्ला वैश्विक स्तर पर कैलिफोर्निया, चीन, टेक्सास और जर्मनी में इलेक्ट्रिक कार कारखाने संचालित करती है. चीन स्थित फैक्ट्री टेस्ला के ग्लोबल प्रोडक्शन नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हाल के वर्षों में यहां टेस्ला की EV कारों के कुल उत्पादन का आधे से अधिक तैयार हुआ है.
परेशान करने में माहिर है China
चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत के प्रति प्यार दर्शाने वाली कंपनियों को परेशान करने की कला में माहिर है. आईफोन बनाने वाली Apple से चीनी सरकार काफी नाराज है, क्योंकि वह भारत के काफी करीब आ गई है. कुछ समय पहले कम्युनिस्ट सरकार ने अपने अधिकारियों को iPhone इस्तेमाल न करने का अघोषित फरमान सुनाया था. इसे Apple की भारत से करीबी के परिणाम के तौर पर ही देखा गया था. इसी तरह, जब ताइवान की दिग्गज कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी फॉक्सकॉन (Foxconn) ने भारत में बड़े निवेश की इच्छा जाहिर की, तो चीन इसे पचा नहीं पाया. उसने फॉक्सकॉन के खिलाफ जांच शुरू कर दी. स्थानीय टैक्स विभाग ने फॉक्सकॉन की सहयोगी कंपनियों का ऑडिट किया. इसके अलावा, नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री ने हेनान और हुबेई प्रांतों में कंपनी के लैंड यूज की जांच के भी आदेश दिए.
Luxshare ने बदल लिया था रास्ता
चीनी सरकार की बदले की इस कार्रवाई के चलते उन कंपनियों में भय व्याप्त हो गया है, जो Apple और Foxconn की तरह भारत में संभावनाएं तलाशना चाहती हैं. शायद यही वजह रही कि लक्सशेयर (Luxshare) ने भारत का रुख करने के बजाए वियतनाम में पिछले साल 330 मिलियन डॉलर का निवेश कर दिया. इस चीनी कंपनी ने पहले भारत में निवेश का फैसला किया था, लेकिन अचानक योजना में बदलाव करते हुए उसने वियतनाम में निवेश कर डाला. Luxshare भी Foxconn की तरह Apple के लिए कंपोनेंट बनाती है. Foxconn जहां कॉन्ट्रैक्ट पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. वहीं, Luxshare बड़ी कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में शुमार है.
क्या मस्क को किया गया विवश?
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है. इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि शी जिनपिंग की सरकार ने टेस्ला के खिलाफ इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित कर दी हों कि मस्क को फिलहाल भारत से दूरी बनाने को विवश होना पड़ा हो. ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से चीनी सरकार ने अपनी नाखुशी तो जाहिर कर ही दी थी. मस्क के लिए चीन टेस्ला का जमा हुआ बाजार है और भारत में अभी उन्हें पैर जमाने हैं. ऐसे में उनके लिए चीन को नाराज करना मुश्किल है. चलिए यह भी जान लेते हैं कि ग्लोबल टाइम्स ने किस तरह मस्क को डराने की कोशिश की.
Tesla चीफ को इस तरह डराया गया
ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें ऐसे कई कारणों का हवाला दिया गया है जिसकी वजह से भारत में टेस्ला का सफर अच्छा नहीं रहेगा. रिपोर्ट में कहा गया कि टेस्ला मिड एवं हाई-एंड सेक्टर और परिपक्व बाजारों पर ध्यान केंद्रित करती है. ऐसे में भारत के बेहद कम तैयारी वाले और अपरिपक्व बाजार में उसे सफलता मिलेगी या नहीं, कहना मुश्किल है. चीन के मुताबिक, भारत का ईवी बाजार बढ़ रहा है, लेकिन इसका आकार अभी काफी छोटा है. भारत में EV के लिए बुनियाद ढांचे का अभाव है. यहां पर्याप्त संख्या में पब्लिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. ऐसे में तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.
अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती.
इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) के चीफ एलन मस्क (Elon Musk) का भारत दौरा टल गया है. मस्क 2 दिवसीय यात्रा पर कल भारत आने वाले थे, लेकिन अब उनकी यात्रा इस साल के अंत तक के लिए टल गई है. माना जा रहा था कि मस्क भारत यात्रा के दौरान टेस्ला के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को लेकर घोषणा कर सकते हैं. अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस घोषणा के लिए भी साल के अंत तक इंतजार करना होगा.
टाटा और महिंद्रा को थी ये आपत्ति
एलन मस्क लंबे समय से टेस्ला की कारों को भारत में दौड़ते देखना चाहते हैं. हाल ही में मोदी सरकार द्वारा पेश की गई नई EV नीति से वह बेहद खुश हैं. हालांकि, टाटा मोटर्स (Tata Motors) और महिंद्रा (Mahindra) जैसी भारतीय कंपनियों को इस नीति से खास खुशी नहीं हुई होगी. क्योंकि उन्होंने इम्पोर्ट ड्यूटी में जिस छूट पर आपत्ति जताई थी, उसका जिक्र इस नीति में है. दरअसल, यह माना जा रहा है कि टेस्ला की एंट्री से घरेलू कंपनियों के लिए प्रतियोगिता बढ़ जाएगी. साथ ही EV बाजार में उनकी हिस्सेदारी पर भी असर पड़ेगा. लेकिन क्या वास्तव में Tesla, टाटा मोटर्स या महिंद्रा के लिए चुनौती बन सकती है? क्या वाकई इन कंपनियों को परेशान होने की जरूरत है? चलिए इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.
इस समय TATA का है दबदबा
मौजूदा समय में भारत के EV मार्केट में टाटा मोटर्स का दबदबा है. टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड (TPEML) की देश के EV मार्केट में 73 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. पिछले वित्त वर्ष में कंपनी 53,000 से अधिक EV बेच चुकी है. वैसे, टाटा मोटर्स के पोर्टफोलियो में ईवी की हिस्सेदारी केवल 12 फीसदी है, लेकिन इसमें तेजी से विस्तार हो रहा है. वहीं, महिंद्रा भी अपने EV पोर्टफोलियो को मजबूत करने की योजना पर काम कर रही है. आने वाले समय में कंपनी कुछ नई EV कारें बाजार में उतार सकती है. टाटा के EV पोर्टफोलियो में इस समय चार कारें हैं - Tata Nexon EV, टाटा टियागो EV, टाटा टिगॉर EV और टाटा पंच EV. टाटा ने 2019 में अपना इलेक्ट्रिक व्हीकल्स बिजनेस शुरू किया था. निजी इक्विटी फर्म TPG और अबू धाबी की होल्डिंग कंपनी एडीक्यू ने 2021 में टाटा की इस कंपनी में 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया था.
दोनों के अलग-अलग हैं Target
वहीं, अगर टेस्ला की बात करें, तो इसमें पोर्टफोलियो में मुख्यतौर पर मॉडल 3, मॉडल Y, मॉडल X और मॉडल S शामिल हैं. कीमत के मामले में टेस्ला के ये सभी मॉडल टाटा और महिंद्रा की देश में बिकने वालीं इलेक्ट्रिक कारों से काफी महंगे हैं. टाटा पंच ईवी की दिल्ली में एक्स शोरूम कीमत 10.99 से 15.49 लाख रुपए है. टाटा नेक्सन ईवी की 14.74 से 19.99 लाख, टाटा टियागो ईवी की 7.99 से 11.89 लाख और टिगॉर इलेक्ट्रिक की 12.49 से 13.75 लाख रुपए है. महिंद्रा एक्सयूवी400 ईवी की कीमत 15.49-19.39 लाख रुपए है. जबकि टेस्ला मॉडल 3 की शुरुआती कीमत 40,240 डॉलर है और भारत में इसकी अनुमानित कीमत 39 से 40 लाख रुपए तक रह सकती है. इसी तरह, मॉडल Y की 49 लाख, मॉडल S की 85 लाख और मॉडल X की भारत में अनुमानित कीमत 95 लाख रुपए हो सकती है. इस लिहाज से देखें तो टाटा और टेस्ला की टारगेट ऑडियंस अलग है. टाटा जहां मिडिल क्लास के लिए EV कार बनाती है. वहीं, टेस्ला का फोकस अमीरों पर होगा.
इन कंपनियों को मिलेगी चुनौती
अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती. हां, यदि भारत में लॉन्च के अगले कुछ सालों में टेस्ला मिडिल क्लास पर फोकस करती है, तब टाटा को चुनौती मिल सकती है. लेकिन इसकी संभावना भी कम है. भारत में टेस्ला के आने से उन लग्जरी कार निर्माताओं को परेशानी हो सकती है, जो पहले से भारत में मौजूद हैं. चीन की कंपनी BYD (Build Your Dreams भारत में तीन कारें लॉन्च कर चुकी है. इसकी नई नवेली EV कार Seal की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 41 लाख और टॉप वैरिएंट की कीमत 53 लाख रुपए तक है. साउथ कोरियाई ऑटोमोबाइल कंपनी Hyundai को भी टक्कर मिल सकती है. कंपनी के मौजूदा EV पोर्टफोलियो में Kona और IONIQ 5 शामिल हैं. Kona की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत करीब 24 लाख रुपए है. जबकि IONIQ 5 की 45 लाख. इसी तरह, Kia की EV6 प्रीमियम इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 60 लाख रुपए है. इसके अलावा, BMW और स्वीडन का कार मेकर Volvo को भी टेस्ला से प्रतियोगिता मिल सकती है. वोल्वो की इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती कीमत 55 लाख रुपए है.
कुछ साल पहले शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा खबरों में आए थे और अब फिर से उनकी चर्चा हो रही है.
बिजनेसमैन और बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) एक बार फिर खबरों में हैं. कुछ साल पहले उन पर अश्लील फिल्में बनाने का आरोप लगा था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से वह चर्चा में आ गए हैं. दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने कुंद्रा और उनकी वाइफ शिल्पा शेट्टी की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. ED ने यह कार्रवाई 2002 के बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले (Bitcoin Ponzi Scam) में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले (Money Laundering Case) में की है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला है क्या.
2001 में जाना पड़ा था जेल
ED की कार्रवाई के बारे में विस्तार से बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं और जानते हैं कि 2001 में क्यों हर नजर राज कुंद्रा पर आकर ठहर गई थी. जुलाई 2021 में, राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस ने चार महिलाओं की शिकायत पर गिरफ्तार किया था. महिलाओं ने आरोप लगाया था कि एक वेब सीरीज में काम का वादा करके उन्हें अश्लील कंटेंट मामले (Pornographic Content) शूट करने के लिए मजबूर किया गया. इस मामले को लेकर कुंद्रा परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. दो महीने की कैद के बाद सितंबर 2021 में कुंद्रा को आर्थर रोड जेल से रिहा कर दिया गया था.
इनके खिलाफ हुई FIR
अब राज कुंद्रा बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले में फंस गए हैं. यह घोटाला तब सुर्खियों में आया जब महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस द्वारा 2017 में 'गेन बिटकॉइन' नामक योजना में पैसा लगाने वाले निवेशकों की शिकायत पर FIR दर्ज की गईं. बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम के प्रमोटर अजय और महेंद्र भारद्वाज ने निवेशकों को बिटकॉइन के रूप में प्रति माह 10 प्रतिशत रिटर्न का वादा किया था, लेकिन ये वादा कभी पूरा नहीं हुआ. इस मामले में वेरिएबल टेक पीटीई लिमिटेड नामक कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई थीं. इस कंपनी के प्रमोटर्स अमित भारद्वाज, अजय भारद्वाज, विवेक भारद्वाज, सिम्पी भारद्वाज और महेंद्र भारद्वाज का भी नाम एफआईआर में शामिल था.
6,600 करोड़ रुपए जुटाए
FIR के मुताबिक, आरोपियों ने 2017 में अपने निवेशकों से 6,600 करोड़ रुपए जुटाए थे. कथित तौर पर निवेशकों को शुरुआत में नए निवेश से भुगतान किया गया था. लेकिन, पेमेंट तब रुक गया जब भारद्वाज समूह नए निवेशकों को स्कीम में पैसा लगाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया. इसके बाद आरोपियों ने बचे हुए पैसे से बिटकॉइन खरीदे और उन्हें ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. दरअसल, इन बिटकॉइन का इस्तेमाल बिटकॉइन माइनिंग में होना था, लेकिन प्रमोटरों ने निवेशकों को धोखा दिया, उन्होंने गलत तरीके से अर्जित बिटकॉइन को ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया.
ऐसे हुई राज कुंद्रा की एंट्री
ED का कहना है कि राज कुंद्रा को यूक्रेन में बिटकॉइन माइनिंग फर्म स्थापित करने के लिए बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले के मास्टरमाइंड और प्रमोटर अमित भारद्वाज से 285 बिटकॉइन मिले थे. ईडी के अनुसार, कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है. हालांकि, राज कुंद्रा इस मामले में मुख्य आरोपी नहीं हैं. ED ने इस मामले में शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. जिसमें शिल्पा का जुहू वाला फ्लैट, राज के नाम पर पुणे में रजिस्टर्ड बंगला और इक्विटी शेयर शामिल हैं. वहीं, राज के वकील प्रशांत पाटिल का कहना है कि ED की जांच में राज और शिल्पा पूरा सहयोग करेंगे. हमें निष्पक्ष जांच पर भी पूरा भरोसा है.
DRMC की 'क्यूरेटिव पिटीशन' पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है. BW आपके लिए मध्यस्थता पुरस्कारों के इतिहास में अब तक के 'ऐतिहासिक मामले' का सबसे गहन 'विश्लेषण' लेकर आया है.
पलक शाह
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा हाल ही में 'Arbitration Award' में 'क्यूरेटिव पिटीशन' को अनुमति देने और उन्हें बरकरार रखने का निर्णय विश्व स्तर पर कानूनी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि यह देश की छवि को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रभावित करता है, जहां वाणिज्यिक मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 'क्यूरेटिव पिटीशन' न्यायशास्त्र की एक अत्यंत संकीर्ण गली है जो 'Doctrine of Finality' या Res Judicata को चुनौती देती है, इसे केवल 'दुर्लभतम मामलों' में ही लागू किया जा सकता है, लेकिन यह 'Arbitration Award' के मामले में न्यायालयों का हस्तक्षेप के बिल में फिट नहीं हो सकता है.
सच यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कानूनी बिरादरी को भी झकझोर देने की क्षमता थी, इसका अंदाजा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जे. डीवाई चंद्रचूड़ और बेंच के दो अन्य न्यायाधीशों जे. बीआर गवई और जे. सूर्यकांत द्वारा 'क्यूरेटिव याचिका' पर जारी चेतावनी से लगाया जा सकता है. फैसला सुनाने से पहले, तीनों न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि हम स्पष्ट करते हैं कि इस न्यायालय के क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग सामान्य तौर पर नहीं किया जाना चाहिए.
DMRC बनाम DAMEL केस है स्टडी का विषय
DMRC बनाम DAMEL मध्यस्थता निर्णय पहले से ही कोलंबिया लॉ स्कूल में केस स्टडी का विषय है और इसे अमेरिकन रिव्यू ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि दुनिया की नजर भारत में मध्यस्थता निर्णयों से संबंधित प्रक्रियाओं पर है. एक ओर, सुप्रीम कोर्ट ने DMRC के आदेश में 'क्यूरेटिव पिटीशन' के लिए दरवाजे खोलने पर रोक लगा दी है, वहीं फरवरी में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने नागपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर GMR's के अधिकारों को बरकरार रखने वाले फैसले के खिलाफ एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की एक और क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने पर सहमति जताई. अगर क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला GMR's के खिलाफ जाता है, तो भारत में अन्य एयरपोर्ट संचालकों के लिए नागपुर हवाई अड्डे के लिए बोली लगाने का रास्ता खुल जाएगा.
कानूनी दांवपेंच का मामला है DMRC बनाम DAMEL
DMRC ने नवंबर 2021 में जे.एल. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट द्वारा अपनी समीक्षा याचिका खारिज किए जाने के लगभग 8 महीने बाद जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर की. क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से राहत पाने से पहले, DMRC ने 4.5 साल तक चली एक मध्यस्थता खो दी थी जो मई 2017 में DAMEL के पक्ष में समाप्त हुई थी. क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई, इसके दायर होने के लगभग 18 महीने बाद हुई और DMRC को क्यूरेटिव याचिका दायर करने के बाद जे. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट दोनों के सेवानिवृत्त होने तक 'टाइम शॉपिंग' का लाभ मिला. अगर क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई पहले हुई होती, तो पूरी संभावना थी कि जे.एस.आर. भट उसी पर सुनवाई करने वाली बेंच में हो सकते थे, क्योंकि वह DMRC द्वारा क्यूरेटिव याचिका दायर करने के एक साल बाद अक्टूबर 2023 में सेवानिवृत्त हुए थे.
कुल मिलाकर, डिवीजन बेंच ने 15 जनवरी 2019 को अपना फैसला सुनाया, जो 11 मई 2017 को दिए गए फैसले के 1.5 साल बाद आया. लेकिन जस्टिस खन्ना का आदेश और DMRC को मिली राहत कुछ ही समय के लिए रही, क्योंकि J. नागेश्वरराव और J. भट की अगुवाई वाली SC की डिवीजन बेंच ने जस्टिस खन्ना के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसने मध्यस्थता के मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप के सिद्धांत को प्रभावित किया है. DMRC की समीक्षा याचिका को भी J. नागेश्वरराव और J. भट ने SC में खारिज कर दिया, जिससे 'Doctrine of Finality’ को मजबूती मिली, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने, पक्षों को बार-बार होने वाले मुकदमों और कार्रवाइयों से उत्पीड़न से बचाने और न्यायिक संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक नीति विचारों पर आधारित सिद्धांत है.
क्यूरेटिव पिटीशन जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के फैसलों को खराब करती है?
सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर मध्यस्थ पुरस्कारों की वैधता की जांच में न्यायिक संयम की आवश्यकता पर जोर दिया है और आम तौर पर न्यूनतम न्यायिक जांच की वकालत की है. सरकार द्वारा गठित मध्यस्थता पर न्यायमूर्ति सराफ समिति का विचार था कि प्रस्तावित संशोधन (2015) न्यायालय द्वारा पर्याप्त हस्तक्षेप की गुंजाइश देते हैं और विवादास्पद भी हैं. इसके बाद विधि आयोग ने संशोधनों का व्यापक अध्ययन किया और दोषों को दूर करने के लिए आगे की सिफारिशें कीं. इससे पता चलता है कि इरादा हमेशा स्पष्ट था: यानी मध्यस्थता के मामलों में अदालतों की खोज को न्यूनतम रखना.
अपने शानदार करियर के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. रोहिंटन फली नरीमन ने मध्यस्थता कानून पर कई फैसले सुनाए लेकिन उनके 25 ऐतिहासिक फैसलों ने भारत में मध्यस्थता कार्यवाही को आकार दिया है। 25 में से, नरीमन के दो फैसलों, "सैंगयोंग इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण" और "एसोसिएट बिल्डर्स बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण" ने "मध्यस्थता पुरस्कारों में न्यायालयों के हस्तक्षेप के दायरे" को अच्छी तरह से परिभाषित किया था. हालांकि, अब क्यूरेटिव याचिका के बाद, जिसने HC की डिवीजन बेंच के आदेश को बरकरार रखा है, मध्यस्थता पुरस्कारों को अदालतों में चुनौती देने का क्षेत्र खुला है, जो DMRC मामले में दिल्ली HC की डिवीजन बेंच के आदेश के अनुरूप इसकी जांच कर सकते हैं, भले ही वे J. नरीमन और J. MB शाह के निर्णयों की कसौटी पर खरे न उतरते हों.
एक पुरस्कार पेटेंट अवैध कब होता है?
मध्यस्थ पुरस्कार भारत की सार्वजनिक नीति के साथ तभी संघर्ष में होता है जब (i) पुरस्कार का निर्माण धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था या धारा 75 या धारा 81 का उल्लंघन था. या (ii) यह भारतीय कानून की मूल नीति का उल्लंघन करता है. या (iii) यह नैतिकता या न्याय की सबसे बुनियादी धारणाओं के साथ संघर्ष में है.
दुनियाभर में चल रही उथल-पुथल से सोना और भी ज्यादा मजबूत हो सकता है. पहले से ही इसकी कीमत काफी ज्यादा है.
इजरायल और ईरान के बीच तनाव (Israel-Iran Tension) बना हुआ है. ईरान के हमले के बाद अब इजरायल जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. यदि ऐसा होता है, तो स्थिति काफी खतरनाक हो जाएगी. दो देशों के बीच की इस लड़ाई से पूरी दुनिया के बाजार प्रभावित होंगे. हालांकि, सोने की कीमतें (Gold Price) जंग के माहौल में और चढ़ सकती हैं. भारत में पहले से ही सोना और चांदी के भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. आज भले ही इसमें मामूली गिरावट आई है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके रॉकेट की रफ्तार से दौड़ने की संभावना है.
इतनी चढ़ सकती हैं कीमतें
पिछले कुछ समय से सोने-चांदी के भाव लगातार बढ़ रहे हैं. युद्ध के हालातों ने इसे हवा दे दी है. ग्लोबल फर्म गोल्डमैन सैक्स को लगता है कि इस साल के अंत तक सोना 2,700 डॉलर प्रति औंस के पार जा सकता है, जबकि पहले यह अनुमान 2,300 डॉलर का था. जबकि, कुछ विशेषज्ञ इसके 3000 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सोने का इजरायल-ईरान से ऐसा क्या कनेक्शन है, जो वहां हालात बिगड़ते ही इसकी कीमतों में आग लगने की बात कही जा रही है.
कुछ न कुछ रिटर्न मिलना ही है
इजरायल-ईरान संघर्ष से सोने की कीमतों में आग लगने की आशंका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भविष्य की अस्थिरता को देखते हुए Gold में निवेश बढ़ेगा. जब डिमांड ज्यादा हो और सप्लाई लिमिटेड, तो कीमतों में उछाल आना स्वभाविक है. दरअसल, Gold यानी सोने को निवेश का बेहतरीन विकल्प माना जाता है, इसलिए जब भी युद्ध या किसी अन्य संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोग बड़े पैमाने पर सोने में निवेश करने लगते हैं. वह जानते हैं कि स्टॉक मार्केट भले ही क्रैश हो जाए, लेकिन गोल्ड में किया हुआ निवेश कुछ न कुछ देकर ही जाएगा.
इंश्योरेंस की तरह करता है काम
मुश्किल समय में लोग सोने में सबसे ज्यादा निवेश इसलिए करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए इंश्योरेंस की तरह काम करता है. इजरायल-ईरान तनाव से पहले इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन के वक्त भी यही स्थिति थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों के चलते जियो पॉलिटिकल तनाव लंबे समय तक देखने को मिल सकता है. इस वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन और वित्तीय बाजार प्रभावित हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में लोग अपना जोखिम कम करने के लिए सोने में निवेश सकते हैं. जब सोने की डिमांड बढ़ेगी, तो इसके दाम बढ़ना लाजमी है.
सोना सबसे अच्छा विकल्प
अमेरिकी फर्म स्पार्टन कैपिटल सिक्योरिटीज के चीफ मार्केट इकोनॉमिस्ट पीटर कार्डिलो इजरायल-हमास युद्ध के समय कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल के दौरान इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की सुरक्षा के लिए सोना अच्छा विकल्प है. तब से अब तक सोने के भाव काफी बढ़ चुके हैं. आज यानी 18 अप्रैल को सोने के दाम की बात करें, तो राजधानी दिल्ली में 24 कैरेट वाले 10 ग्राम सोने के दाम करीब 74,120 रुपए हैं. वहीं, चांदी 86,400 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर मिल रही है.
कौन तय करता है Gold Price?
जब सोने की बात निकली है, तो यह भी जान लेते हैं कि इसकी कीमत कैसे तय होती है. दुनियाभर में लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) द्वारा सोने की कीमत तय की जाती है. वह यूएस डॉलर में सोने की कीमत प्रकाशित करता है। यह कीमत बैंकरों और बुलियन व्यापारियों के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है. भारत में, इंडियन बुलियन ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आयात शुल्क और अन्य लागू टैक्स को जोड़कर यह तय करता है कि रिटेल विक्रेताओं को सोना किस दर पर दिया जाएगा.
Bharat यहां से करता है इम्पोर्ट
भारत के लिए स्विट्जरलैंड सोने के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. यहां से हमारे कुल गोल्ड आयात की हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत है. इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात से भारत लगभग 13 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका से करीब 10 प्रतिशत सोना आयात करता है. भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा Gold कंज्यूमर है. देश में सोने का आयात मुख्य रूप से ज्वैलरी इंडस्ट्री की मांग पूरी करने के लिए किया जाता है. देश के कुल आयात में सोने की हिस्सेदारी पांच प्रतिशत से ज्यादा की है.