भारत छोड़ क्यों भागे ये विदेशी बैंक, वजह जानकार रह जायेंगे हैरान

2011 से लेकर अब तक कई विदेशी बैंक भारत में अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. ऐसा क्या हुआ कि इन बैंकों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा?

Last Modified:
Tuesday, 21 March, 2023
file image

 

पिछले कुछ दिनों के दौरान अमेरिका में पैदा हुए बैंकिंग संकट की वजह से पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है. जहां सोने और चांदी के दामों में बढ़त देखने को मिल रही है वहीं, इस संकट की वजह से बहुत से स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों पर खतरा होने कि आशंका भी जताई जा रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, 2011 से लेकर अब तक 12 विदेशी बैंक भारत में अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इन बैंकों को भारत में अपना कारोबार बंद करना पड़ा? 

इस वजह से बंद किया अपना कारोबार: 2011 से लेकर अब तक लगभग 12 विदेशी बैंकों ने भारत में या तो अपना बिजनेस बंद कर दिया है या फिर अपने ऑपरेशंस को बिलकुल कम कर दिया है. आइये जानते हैं ऐसा होने के पीछे प्रमुख वजहें क्या हैं?

1.    विदेशी बैंकों के साथ अलग बर्ताव: विदेशी बैंकों और भारतीय बैंकों के बीच लोन देने और टैक्स लगाने जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर अक्सर ही खींचातानी होती रही है. विदेशी बैंकों को इन मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह से एक सब्सिडियरी बनाने का सुझाव दिया गया था, लेकिन ज्यादातर विदेशी बैंकों ने इस सुझाव को इसलिए नहीं माना क्योंकि भारतीय रूपया पूरी तरह कनवर्टिबल नहीं हो सकता था. 

2.    एसेट्स की खराब क्वालिटी: साल 2018 में IL&FS का संकट पैदा हुआ था जिसकी वजह से बहुत से प्रमुख बैंकों और विदेशी बैंकों द्वारा लोन देने की क्षमता में कमी आई. इस वजह से विदेशी बैंकों के पास अच्छी क्रेडिट क्वालिटी रेटिंग्स होने के बावजूद उनकी लोन देने की क्षमता को खारिज कर दिया गया. 

3.    लिक्विडिटी ज्यादा और इंटरेस्ट रेट्स कम: महामारी की वजह से बहुत लम्बे समय तक RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) और सरकार की वित्तीय पॉलिसी में एक ढीलापन बना रहा. इसकी वजह से लिक्विडिटी बढ़ गयी और इंटरेस्ट रेट बहुत ही कम हो गए. रिटेल बैंकिंग का बिजनेस ज्यादा मार्जिन का नहीं बल्कि ज्यादा मात्रा का बिजनेस होता है और बैंकों को यह बात हमेशा से पता थी. लेकिन ज्यादातर बैंक इस बिजनेस में फंड की कमी की वजह से घुसे और जब कुछ और समझ नहीं आया तो उन्होंने बड़े-बड़े बिजनेसों को कैपिटल आवंटित करना शुरू किया. 

4.    घरेलु बैंकों से मिला बहुत कॉम्पिटिशन: टेक्नोलॉजी के मामले में भारत के घरेलु फाइनेंशियल संस्थानों ने अपना लेवल पहले से बहुत ऊपर कर लिया है और इसकी वजह से बदलती हुई मार्केट की जरूरतों को पूरा करने की उनकी क्षमता में भी वृद्धि हुई है. हालांकि विदेशी बैंकों की मैनेजमेंट भारतीय है लेकिन ज्यादातर बड़े फैसले अभी भी ग्लोबल लेवल पर लिए जाते हैं और इस वजह से विदेशी बैंक भारतीय मार्केट में होने वाले बदलावों के प्रति इतनी जल्दी रियेक्ट नहीं कर पाते. 

इन विदेशी बैंकों ने छोड़ा भारतीय मार्केट: 

Deutsche Bank: Deutsche बैंक भी दुनिया भर में बहुत तेजी से बढ़ते बैंकों में से एक है. बैंक ने अपना क्रेडिट कार्ड बिजनेस साल 2011 में Indusind बैंक को बेच दिया था. 

Barclays: साल 2012 में Barclays ने अपने ऑपरेशंस को बहुत बड़े स्तर पर कम कर लिया था. 

UBS, Morgan Stanley: जहां UBS ने भारत में अपने ऑपरेशंस को साल 2013 में ही बंद कर लिया था वहीं Morgan Stanley ने अपना बैंकिंग लाइसेंस खोने की वजह से भारत में अपना बिजनेस बंद कर दिया था. 

Merrill Lynch, Barclays, Standard Chartered: साल 2015 में Merrill Lynch, Barclays और Standard Chartered जैसे प्रमुख बैंकों ने भारत में अपने ऑपरेशंस को समेट लिया था. 

Commonwealth Bank Of Australia, RBS & HSBC: Commonwealth Bank Of Australia ने साल 2016 में अपने ऑपरेशंस को बंद कर दिया था जबकि RBS (रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड) ने अपने कॉर्पोरेट, रिटेल और संस्थागत बिजनेस को पूरी तरह समेट लिया था. इतना ही नहीं इसी साल HSBC ने देशभर में मौजूद अपनी शाखाओं को घटाकर आधा कर दिया था. 

BNP Paribas: BNP Paribas ने साल 2020 में भारत के अन्दर अपने वेल्थ मैनेजमेंट बिजनेस को बंद कर लिया था. 

Citi Bank: इस साल, बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख विदेशी बैंक Citi बैंक ने अपना रिटेल बिजनेस एक्सिस बैंक को बेच दिया है. 
 

यह भी पढ़ें: रिलायंस की एंट्री से Soft Drink बाजार में छिड़ी Price War, Coke ने इतने कम किए दाम 

 


जिस घोटाले में फंसे Shilpa Shetty के पति राज कुंद्रा, क्या है उसकी पूरी कहानी?

कुछ साल पहले शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा खबरों में आए थे और अब फिर से उनकी चर्चा हो रही है.

Last Modified:
Friday, 19 April, 2024
file photo

बिजनेसमैन और बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) एक बार फिर खबरों में हैं. कुछ साल पहले उन पर अश्लील फिल्में बनाने का आरोप लगा था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से वह चर्चा में आ गए हैं. दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने कुंद्रा और उनकी वाइफ शिल्पा शेट्टी की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. ED ने यह कार्रवाई 2002 के बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले (Bitcoin Ponzi Scam) में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले (Money Laundering Case) में की है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला है क्या.

2001 में जाना पड़ा था जेल
ED की कार्रवाई के बारे में विस्तार से बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं और जानते हैं कि 2001 में क्यों हर नजर राज कुंद्रा पर आकर ठहर गई थी. जुलाई 2021 में, राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस ने चार महिलाओं की शिकायत पर गिरफ्तार किया था. महिलाओं ने आरोप लगाया था कि एक वेब सीरीज में काम का वादा करके उन्हें अश्लील कंटेंट मामले (Pornographic Content) शूट करने के लिए मजबूर किया गया. इस मामले को लेकर कुंद्रा परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. दो महीने की कैद के बाद सितंबर 2021 में कुंद्रा को आर्थर रोड जेल से रिहा कर दिया गया था.

इनके खिलाफ हुई FIR
अब राज कुंद्रा बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले में फंस गए हैं. यह घोटाला तब सुर्खियों में आया जब महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस द्वारा 2017 में 'गेन बिटकॉइन' नामक योजना में पैसा लगाने वाले निवेशकों की शिकायत पर FIR दर्ज की गईं. बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम के प्रमोटर अजय और महेंद्र भारद्वाज ने निवेशकों को बिटकॉइन के रूप में प्रति माह 10 प्रतिशत रिटर्न का वादा किया था, लेकिन ये वादा कभी पूरा नहीं हुआ. इस मामले में वेरिएबल टेक पीटीई लिमिटेड नामक कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई थीं. इस कंपनी के प्रमोटर्स अमित भारद्वाज, अजय भारद्वाज, विवेक भारद्वाज, सिम्पी भारद्वाज और महेंद्र भारद्वाज का भी नाम एफआईआर में शामिल था.

6,600 करोड़ रुपए जुटाए
FIR के मुताबिक, आरोपियों ने 2017 में अपने निवेशकों से 6,600 करोड़ रुपए जुटाए थे. कथित तौर पर निवेशकों को शुरुआत में नए निवेश से भुगतान किया गया था. लेकिन, पेमेंट तब रुक गया जब भारद्वाज समूह नए निवेशकों को स्कीम में पैसा लगाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया. इसके बाद आरोपियों ने बचे हुए पैसे से बिटकॉइन खरीदे और उन्हें ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. दरअसल, इन बिटकॉइन का इस्तेमाल बिटकॉइन माइनिंग में होना था, लेकिन प्रमोटरों ने निवेशकों को धोखा दिया, उन्होंने गलत तरीके से अर्जित बिटकॉइन को ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. 

ऐसे हुई राज कुंद्रा की एंट्री
ED का कहना है कि राज कुंद्रा को यूक्रेन में बिटकॉइन माइनिंग फर्म स्थापित करने के लिए बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले के मास्टरमाइंड और प्रमोटर अमित भारद्वाज से 285 बिटकॉइन मिले थे. ईडी के अनुसार, कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है. हालांकि, राज कुंद्रा इस मामले में मुख्य आरोपी नहीं हैं. ED ने इस मामले में शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. जिसमें शिल्पा का जुहू वाला फ्लैट, राज के नाम पर पुणे में रजिस्टर्ड बंगला और इक्विटी शेयर शामिल हैं. वहीं, राज के वकील प्रशांत पाटिल का कहना है कि ED की जांच में राज और शिल्पा पूरा सहयोग करेंगे. हमें निष्पक्ष जांच पर भी पूरा भरोसा है.


क्या सुप्रीम कोर्ट का DRMC फैसला कानून को प्रभावित कर रहा है? जानिए कैसे

DRMC की 'क्यूरेटिव पिटीशन' पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है. BW आपके लिए मध्यस्थता पुरस्कारों के इतिहास में अब तक के 'ऐतिहासिक मामले' का सबसे गहन 'विश्लेषण' लेकर आया है.

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
Judicial

पलक शाह

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा हाल ही में 'Arbitration Award' में 'क्यूरेटिव पिटीशन' को अनुमति देने और उन्हें बरकरार रखने का निर्णय विश्व स्तर पर कानूनी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि यह देश की छवि को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रभावित करता है, जहां वाणिज्यिक मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 'क्यूरेटिव पिटीशन' न्यायशास्त्र की एक अत्यंत संकीर्ण गली है जो 'Doctrine of Finality' या Res Judicata को चुनौती देती है, इसे केवल 'दुर्लभतम मामलों' में ही लागू किया जा सकता है, लेकिन यह 'Arbitration Award' के मामले में न्यायालयों का हस्तक्षेप के बिल में फिट नहीं हो सकता है.

सच यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कानूनी बिरादरी को भी झकझोर देने की क्षमता थी, इसका अंदाजा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जे. डीवाई चंद्रचूड़ और बेंच के दो अन्य न्यायाधीशों जे. बीआर गवई और जे. सूर्यकांत द्वारा 'क्यूरेटिव याचिका' पर जारी चेतावनी से लगाया जा सकता है. फैसला सुनाने से पहले, तीनों न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि हम स्पष्ट करते हैं कि इस न्यायालय के क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग सामान्य तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. 

DMRC बनाम DAMEL केस है स्टडी का विषय 

DMRC बनाम DAMEL मध्यस्थता निर्णय पहले से ही कोलंबिया लॉ स्कूल में केस स्टडी का विषय है और इसे अमेरिकन रिव्यू ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि दुनिया की नजर भारत में मध्यस्थता निर्णयों से संबंधित प्रक्रियाओं पर है. एक ओर, सुप्रीम कोर्ट ने DMRC के आदेश में 'क्यूरेटिव पिटीशन' के लिए दरवाजे खोलने पर रोक लगा दी है, वहीं फरवरी में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने नागपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर GMR's के अधिकारों को बरकरार रखने वाले फैसले के खिलाफ एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की एक और क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने पर सहमति जताई. अगर क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला GMR's के खिलाफ जाता है, तो भारत में अन्य एयरपोर्ट संचालकों के लिए नागपुर हवाई अड्डे के लिए बोली लगाने का रास्ता खुल जाएगा.

कानूनी दांवपेंच का मामला है DMRC बनाम DAMEL

DMRC ने नवंबर 2021 में जे.एल. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट द्वारा अपनी समीक्षा याचिका खारिज किए जाने के लगभग 8 महीने बाद जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर की. क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से राहत पाने से पहले, DMRC ने 4.5 साल तक चली एक मध्यस्थता खो दी थी जो मई 2017 में DAMEL के पक्ष में समाप्त हुई थी. क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई, इसके दायर होने के लगभग 18 महीने बाद हुई और DMRC को क्यूरेटिव याचिका दायर करने के बाद जे. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट दोनों के सेवानिवृत्त होने तक 'टाइम शॉपिंग' का लाभ मिला. अगर क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई पहले हुई होती, तो पूरी संभावना थी कि जे.एस.आर. भट उसी पर सुनवाई करने वाली बेंच में हो सकते थे, क्योंकि वह DMRC द्वारा क्यूरेटिव याचिका दायर करने के एक साल बाद अक्टूबर 2023 में सेवानिवृत्त हुए थे.

कुल मिलाकर, डिवीजन बेंच ने 15 जनवरी 2019 को अपना फैसला सुनाया, जो 11 मई 2017 को दिए गए फैसले के 1.5 साल बाद आया. लेकिन जस्टिस खन्ना का आदेश और DMRC को मिली राहत कुछ ही समय के लिए रही, क्योंकि J. नागेश्वरराव और J. भट की अगुवाई वाली SC की डिवीजन बेंच ने जस्टिस खन्ना के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसने मध्यस्थता के मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप के सिद्धांत को प्रभावित किया है. DMRC की समीक्षा याचिका को भी J. नागेश्वरराव और J. भट ने SC में खारिज कर दिया, जिससे 'Doctrine of Finality’ को मजबूती मिली, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने, पक्षों को बार-बार होने वाले मुकदमों और कार्रवाइयों से उत्पीड़न से बचाने और न्यायिक संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक नीति विचारों पर आधारित सिद्धांत है. 

क्यूरेटिव पिटीशन जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के फैसलों को खराब करती है?

सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर मध्यस्थ पुरस्कारों की वैधता की जांच में न्यायिक संयम की आवश्यकता पर जोर दिया है और आम तौर पर न्यूनतम न्यायिक जांच की वकालत की है. सरकार द्वारा गठित मध्यस्थता पर न्यायमूर्ति सराफ समिति का विचार था कि प्रस्तावित संशोधन (2015) न्यायालय द्वारा पर्याप्त हस्तक्षेप की गुंजाइश देते हैं और विवादास्पद भी हैं. इसके बाद विधि आयोग ने संशोधनों का व्यापक अध्ययन किया और दोषों को दूर करने के लिए आगे की सिफारिशें कीं. इससे पता चलता है कि इरादा हमेशा स्पष्ट था: यानी मध्यस्थता के मामलों में अदालतों की खोज को न्यूनतम रखना. 

अपने शानदार करियर के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. रोहिंटन फली नरीमन ने मध्यस्थता कानून पर कई फैसले सुनाए लेकिन उनके 25 ऐतिहासिक फैसलों ने भारत में मध्यस्थता कार्यवाही को आकार दिया है। 25 में से, नरीमन के दो फैसलों, "सैंगयोंग इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण" और "एसोसिएट बिल्डर्स बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण" ने "मध्यस्थता पुरस्कारों में न्यायालयों के हस्तक्षेप के दायरे" को अच्छी तरह से परिभाषित किया था. हालांकि, अब क्यूरेटिव याचिका के बाद, जिसने HC की डिवीजन बेंच के आदेश को बरकरार रखा है, मध्यस्थता पुरस्कारों को अदालतों में चुनौती देने का क्षेत्र खुला है, जो DMRC मामले में दिल्ली HC की डिवीजन बेंच के आदेश के अनुरूप इसकी जांच कर सकते हैं, भले ही वे J. नरीमन और J. MB शाह के निर्णयों की कसौटी पर खरे न उतरते हों.

एक पुरस्कार पेटेंट अवैध कब होता है?

मध्यस्थ पुरस्कार भारत की सार्वजनिक नीति के साथ तभी संघर्ष में होता है जब (i) पुरस्कार का निर्माण धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था या धारा 75 या धारा 81 का उल्लंघन था. या (ii) यह भारतीय कानून की मूल नीति का उल्लंघन करता है. या (iii) यह नैतिकता या न्याय की सबसे बुनियादी धारणाओं के साथ संघर्ष में है. 
 


आखिर इजरायल-ईरान की टेंशन से Gold का क्या है नाता, क्यों चढ़ सकते हैं दाम?

दुनियाभर में चल रही उथल-पुथल से सोना और भी ज्यादा मजबूत हो सकता है. पहले से ही इसकी कीमत काफी ज्यादा है.

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
file photo

इजरायल और ईरान के बीच तनाव (Israel-Iran Tension) बना हुआ है. ईरान के हमले के बाद अब इजरायल जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. यदि ऐसा होता है, तो स्थिति काफी खतरनाक हो जाएगी. दो देशों के बीच की इस लड़ाई से पूरी दुनिया के बाजार प्रभावित होंगे. हालांकि, सोने की कीमतें (Gold Price) जंग के माहौल में और चढ़ सकती हैं. भारत में पहले से ही सोना और चांदी के भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. आज भले ही इसमें मामूली गिरावट आई है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके रॉकेट की रफ्तार से दौड़ने की संभावना है. 

इतनी चढ़ सकती हैं कीमतें
पिछले कुछ समय से सोने-चांदी के भाव लगातार बढ़ रहे हैं. युद्ध के हालातों ने इसे हवा दे दी है. ग्लोबल फर्म गोल्डमैन सैक्स को लगता है कि इस साल के अंत तक सोना 2,700 डॉलर प्रति औंस के पार जा सकता है, जबकि पहले यह अनुमान 2,300 डॉलर का था. जबकि, कुछ विशेषज्ञ इसके 3000 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सोने का इजरायल-ईरान से ऐसा क्या कनेक्शन है, जो वहां हालात बिगड़ते ही इसकी कीमतों में आग लगने की बात कही जा रही है. 

कुछ न कुछ रिटर्न मिलना ही है
इजरायल-ईरान संघर्ष से सोने की कीमतों में आग लगने की आशंका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भविष्य की अस्थिरता को देखते हुए Gold में निवेश बढ़ेगा. जब डिमांड ज्यादा हो और सप्लाई लिमिटेड, तो कीमतों में उछाल आना स्वभाविक है. दरअसल, Gold यानी सोने को निवेश का बेहतरीन विकल्प माना जाता है, इसलिए जब भी युद्ध या किसी अन्य संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोग बड़े पैमाने पर सोने में निवेश करने लगते हैं. वह जानते हैं कि स्टॉक मार्केट भले ही क्रैश हो जाए, लेकिन गोल्ड में किया हुआ निवेश कुछ न कुछ देकर ही जाएगा. 

इंश्योरेंस की तरह करता है काम
मुश्किल समय में लोग सोने में सबसे ज्यादा निवेश इसलिए करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए इंश्योरेंस की तरह काम करता है. इजरायल-ईरान तनाव से पहले इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन के वक्त भी यही स्थिति थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों के चलते जियो पॉलिटिकल तनाव लंबे समय तक देखने को मिल सकता है. इस वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन और वित्तीय बाजार प्रभावित हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में लोग अपना जोखिम कम करने के लिए सोने में निवेश सकते हैं. जब सोने की डिमांड बढ़ेगी, तो इसके दाम बढ़ना लाजमी है. 

सोना सबसे अच्छा विकल्प
अमेरिकी फर्म स्पार्टन कैपिटल सिक्योरिटीज के चीफ मार्केट इकोनॉमिस्ट पीटर कार्डिलो इजरायल-हमास युद्ध के समय कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल के दौरान इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की सुरक्षा के लिए सोना अच्छा विकल्प है. तब से अब तक सोने के भाव काफी बढ़ चुके हैं. आज यानी 18 अप्रैल को सोने के दाम की बात करें, तो राजधानी दिल्ली में 24 कैरेट वाले 10 ग्राम सोने के दाम करीब 74,120 रुपए हैं. वहीं, चांदी 86,400 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर मिल रही है.   

कौन तय करता है Gold Price?
जब सोने की बात निकली है, तो यह भी जान लेते हैं कि इसकी कीमत कैसे तय होती है. दुनियाभर में लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) द्वारा सोने की कीमत तय की जाती है. वह यूएस डॉलर में सोने की कीमत प्रकाशित करता है। यह कीमत बैंकरों और बुलियन व्यापारियों के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है. भारत में, इंडियन बुलियन ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आयात शुल्क और अन्य लागू टैक्स को जोड़कर यह तय करता है कि रिटेल विक्रेताओं को सोना किस दर पर दिया जाएगा. 

Bharat यहां से करता है इम्पोर्ट
भारत के लिए स्विट्जरलैंड सोने के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. यहां से हमारे कुल गोल्ड आयात की हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत है. इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात से भारत लगभग 13 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका से करीब 10 प्रतिशत सोना आयात करता है. भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा Gold कंज्यूमर है. देश में सोने का आयात मुख्य रूप से ज्वैलरी इंडस्ट्री की मांग पूरी करने के लिए किया जाता है. देश के कुल आयात में सोने की हिस्सेदारी पांच प्रतिशत से ज्यादा की है.


Dubai: बारिश कराने चले थे बाढ़ आ गई, जानें Artificial Rain से जुड़ी हर बात 

क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. दुबई में यही कोशिश हो रही थी.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 17 April, 2024
Last Modified:
Wednesday, 17 April, 2024
Photo Credit: Al Jazeera

दुबई (Dubai) इस वक्त बाढ़ का सामना कर रहा है. इस बाढ़ की वजह प्रकृति नहीं बल्कि इंसान खुद है. दरअसल, दुबई में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) करवाई जा रही थी, लेकिन इस कोशिश के दौरान बदल फट गया और पूरा शहर पानी-पानी हो गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुबई शॉपिंग मॉल्स में पानी भर गया है. सड़कें तालाब बन गई हैं और पार्किंग में गाड़ियां तैर रहीं हैं. इतना ही नहीं, एयरपोर्ट भी बाढ़ के पानी में डूब गया है. हवाई पट्टी नजर नहीं आ रही है. इस वजह से विमानों के संचालन में परेशानी हो रही है. 

चंद मिनटों में रिकॉर्ड बारिश
दुबई में सोमवार और मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के लिए विमान उड़ाए गए थे. क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. हालांकि, ये पूरा प्लान उस वक्त फेल हो गया जब आर्टिफिशियल रेन की कोशिश में बादल फट गया. बताया जा रहा है कि महज कुछ ही देर में दुबई में इतनी बारिश रिकॉर्ड हो गई, जिसके लिए डेढ़ साल का इंतजार करना पड़ता था. जाहिर है जब इतनी ज्यादा बारिश होगी, तो व्यवस्थाएं बिगड़ेंगी ही. देखते ही देखते पूरा शहर जलमग्न हो गया.

75 सालों में ऐसा मंजर नहीं देखा
दुबई के अलावा फुजैराह में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं. यहां 5.7 इंच तक बारिश हुई है. इस बाढ़ में अब तक एक व्यक्ति के मरने की खबर है. वहीं, दुनिया के सबसे बड़े शॉपिंग सेंटर्स में शुमार मॉल ऑफ अमीरात में कई दुकानों की छत गिर गई हैं. दुबई के जानकारों का कहना है कि बीते 75 सालों के इतिहास में कभी इतनी बारिश नहीं हुई. बादल फटने से शारजाह सिटी सेंटर और दिएरा सिटी सेंटर को भी नुकसान पहुंचा है. दुबई प्रशासन पंप के जरिए पानी निकाल रहा है. 

खाड़ी देशों में कम होती है बारिश
दुबई में महज 24 घंटे के अंदर ही 142 मिलीमीटर बारिश हुई है. जबकि आमतौर पर यहां एक साल में 94.7 मिलियन बारिश होती है. बता दें कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में बारिश काफी कम होती है. पूरा साल एक तरह से सूखा ही गुजरता है. सर्दी के मौसम में जरूर कुछ समय तक हल्की बारिश होती है. यूएई के अलावा सऊदी अरब, बहरीन, कतर जैसे खाड़ी देशों में बारिश कम होती है. वैसे, कृत्रिम बारिश कोई नई चीज नहीं है. अब तक कई देशों में ऐसा हो चुका है. भारत की राजधानी दिल्ली में भी इस तरह के प्रयास की कोशिश हुई थी. 

Delhi में भी होनी थी ऐसी बारिश
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से लोगों को कुछ राहत देने के लिए आर्टिफिशियल बारिश की योजना तैयार की गई थी. आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश करवाने वाली थी, लेकिन बाद में इस योजना को टाल दिया गया. 20 और 21 नवंबर 2023 को दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश करवाने की बात कही थी. मगर प्रदूषण में कमी आने के बाद ऐसा नहीं किया गया. इसकी एक वजह यह भी थी कि मौसम विभाग की तरफ से बादलों की संभावना से इनकार किया गया था. विभाग ने कहा था कि 21 नवंबर को बादल छाए रह सकते हैं, लेकिन ये कृत्रिम बारिश करवाने के लिए काफी नहीं है. कृत्रिम बारिश तभी हो सकती है जब आसमान में बदल छाए हों. 

कैसे होती है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश के लिए केमिकल एजेंट्स जैसे कि सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ा जाता है. इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और वो इन केमिकल एजेंट्स को छोड़ते हैं. इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं, जो बाद में बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. इसे टेक्निकल भाषा में इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का होना सबसे जरूरी है. वैसे, 2023 से पहले 2019 में भी दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारियां की गई थीं. 

कितना आता है खर्चा?
कृत्रिम बारिश काफी महंगी पड़ती है. दिल्ली में 2 दिनों की इस बारिश पर करीब 13 करोड़ रुपए खर्च के का अनुमान लगाया गया था. एक इंटरव्यू में IIT-Kanpur के प्रोफेसर Maninder Agarwal ने बताया था कि प्रत्येक वर्ग किमी क्लाउड सीडिंग की लागत लगभग 1,00,000 रुपए आती है. भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयास 1951 में वेस्टर्न घाट में बारिश के लिए हुआ था. इसके बाद 1973 में आंध्र प्रदेश में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई गई. 1993 में भी तमिलनाडु में ऐसी बारिश करवाई गई थी. भारत ही नहीं, 50 से ज्यादा देशों में इस तरह का प्रयोग हो चुका है. 


Lok Sabha Election: नेताओं की अग्निपरीक्षा में कारोबारियों के चमक रहे चेहरे

लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर पैसा खर्च हो रहा है. प्रत्याशी और पार्टी जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

Last Modified:
Tuesday, 16 April, 2024
file photo

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) को लेकर पार्टियों से लेकर प्रत्याशी तक हर कोई जोश में है. जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं. वैसे, तो चुनावी माहौल में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. लेकिन इस बार इस 'बहाव' की रफ्तार पहले से ज्यादा रहने का अनुमान है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के आम चुनाव में 2019 की तुलना में दोगुना से अधिक खर्च होगा. पिछले चुनाव में कुल उम्मीदवारों ने जहां करीब 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे. वहीं, इस बार यह राशि 1.20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रह सकती है. जाहिर है, जब इतने बड़े पैमाने पर खर्चा होगा, तो इससे कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी और कारोबारियों के चेहरे भी चमक जाएंगे.  

प्रचार पर जमकर हो रहा खर्चा 
चुनाव के मौसम में कई तरह के रोजगार उत्पन्न होते हैं और कई सेक्टर्स के कारोबार को बूस्ट मिलता है. उदाहरण के तौर पर चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने, प्रचार अभियान का हिस्सा बनने के लिए बड़े पैमाने पर युवाओं को रोजगार मिलता है. भले ही यह मौसमी रोजगार हो, लेकिन इससे कुछ न कुछ आमदनी तो हो ही जाती है. प्रचार के लिए जिस बैनर, झंडे, पैम्पलेट आदि की जरूरत होती है, उससे जुड़े कारोबारियों के लिए चुनावी सीजन मानसून जैसी राहत लेकर आता है. इस बार का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ-साथ संपूर्ण विपक्ष के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रचार में पूरी ताकत झोंकी जा रही है. इस वजह से फ्लैक्स-बैनर का रोजगार भी चमक रहा है. इस सेक्टर को कम से कम 15 हजार करोड़ रुपए की कमाई होने का अनुमान है.

इन सेक्टर्स को सबसे ज्यादा फायदा
ढाई महीनों के इस चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा फायदा, हॉस्पिटैलिटी, ट्रैवल, सर्विस प्रोवाइडर, फूड इंडस्ट्री, टेंट-कैटरर्स कारोबारियों को होगा. साथ ही इस दौरान, कम से कम डेढ़ लाख ऐसे लोगों को नया रोजगार भी मिलेगा. चुनावी मौसम में नेताओं को कार्यकर्ताओं की खुशी का पूरा ख्याल रखना पड़ता है. उनके खाने-पीने की जिम्मेदारी भी प्रत्याशी उठाता है. ऐसे में बड़ी मात्र में फूड पैकेट तैयार करवाए जाते हैं, जिसके चलते क्लाउड किचन से जुड़े व्यापारियों की अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. इन क्लाउड किचन को लंच और डिनर संबंधित केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौप दी जाती है. उत्तर होटल-रेस्टोरेंट-कैटरर्स एसोसिएशन का मानना है कि इस चुनावी सीजन में सेक्टर के पास कम से कम 2000 करोड़ के अतिरिक्त ऑर्डर होंगे.

पानी के कारोबार में लगी आग
फेडरेशन ऑफ एमपी टेंट एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी रिंकू भटेजा का कहना है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में कारोबार अपेक्षाकृत कुछ कम रहता है. मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कारोबार का आंकड़ा मोटे तौर पर 50 करोड़ रुपए को पार कर गया था. लोकसभा चुनाव में यह कुछ कम रह सकता है. वहीं, लोकसभा चुनाव में इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों की भी मोटी कमाई हो रही है. ये कंपनियां प्रत्याशियों के लिए हर तरह का इंतजाम करती हैं. इसमें नुक्कड़ नाटक से लेकर डोर-टू-डोर कैंपेन, स्टार प्रचारकों की व्यवस्था आदि. इसके साथ ही नेताओं के भाषण लिखने के लिए कंटेंट राइटर की व्यवस्था का जिम्मा भी अक्सर इन्हीं के पास रहता है. चुनावी मौसम में आसमान से बरस रही आग के मद्देनजर ठंडे का बाजार भी उफान पर है. पानी के साथ-साथ सॉफ्ट ड्रिंक की मांग भी बढ़ गई है. पिछले दो महीने में यूपी और एनसीआर में 176 वॉटर बोटलिंग प्लांट पंजीकृत हुए हैं.

कार से विमान तक की भारी डिमांड 
इस लोकसभा चुनाव में ट्रैवल इंडस्ट्री को भी अच्छे दोनों का अहसास हो रहा है. गर्मी के कारण इस बार कार्यकर्ताओं में चार पहिया वाहनों की डिमांड ज्यादा है. ऐसे में कई बड़े ट्रैवल ऑपरेटरों ने खास चुनावी सीजन के लिए नई कारें खरीदी हैं. कुछ का तो कहना है कि डिमांड इतनी ज्यादा है कि मुंहमांगा पैसा मिल रहा है. ऐसे में महज तीन महीने में अगले एक साल की किश्त का इंतजाम हो जाएगा. वहीं, बड़े नेता चुनावी रैलियों के लिए हेलिकॉप्‍टर और चार्टर्ड विमान से पहुंच रहे हैं, तो इनकी डिमांड पर 40% ज्यादा हो गई है. इसके चलते निजी विमान और हेलीकॉप्टर संचालकों को 15-20 प्रतिशत अधिक कमाई होने की उम्मीद है. मौके का फायदा उठाने के लिए चार्टर्ड सेवाओं के लिए प्रति घंटा दरें भी बढ़ गई हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि एक विमान के लिए शुल्क करीब 4.5 – 5.25 लाख रुपए और दो इंजन वाले हेलीकॉप्टर के लिए करीब 1.5- 1.7 लाख रुपए प्रति घंटा लिया जा रहा है. 

इससे लगाइए कमाई का अंदाजा 
जिन राज्यों में मतदान की तारीख करीब आ रही है, वहां प्रचार काफी तेज हो गया है और कारोबारियों की कमाई में भी तेजी आई है. उदाहण के तौर पर राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 12 सीटों पर वोटिंग 19 अप्रैल को होगी. इसके मद्देनजर पार्टियों के स्टार प्रचारक राजस्थान में सभा और रैलियों के लिए पहुंच रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में चुनाव आयोग के समक्ष प्रत्याशियों की ओर से पेश किए गए खर्चे की जानकारी दी गई है. उसके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो सभा और रोड-शो पर ही 76 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं. 5 अप्रैल को चूरू में प्रधानमंत्री मोदी के रोड-शो और जनसभा में 11 लाख रुपए कारपेट बिछाने पर खर्च हुए थे. 18.90 लाख रुपए का वॉटर प्रूफ टेंट लगा था और 72 हजार रुपए का विशेष पांडाल बनाया गया था. सभा में बैठने के लिए 30 हजार कुर्सियां पर 2.10 लाख रुपए खर्च हुए थे. इससे चुनाव में कारोबारियों की आमदनी का अंदाजा लगाया जा सकता है. जब काम बढ़ता है, तो कर्मचारी भी बढ़ाने पड़ते हैं. यानी रोजगार में भी इजाफा होता है.


 


मौसम विभाग से आई इस खबर से आप तो खुश होंगे ही, RBI का भी खिल जाएगा चेहरा; ये है पूरा गणित

रिजर्व बैंक को पिछले कुछ समय से महंगाई के मोर्चे पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है.

Last Modified:
Monday, 15 April, 2024
file photo

भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने सोमवार को ऐसी खबर सुनाई है, जिससे आम आदमी के साथ-साथ सरकार और RBI के चेहरे पर भी सुकून भरी मुस्कान खिल जाएगी. दरअसल, मौसम विभाग का कहना है कि इस बार जून से सितंबर तक मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा. बता दें कि 104 से 110% के बीच बारिश को सामान्य से बेहतर माना जाता है. मानसून का सामान्य से बेहतर रहने का मतलब है कि फसलों के लिए किसानों को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा.  

1 जून को देता है दस्तक 
मौसम विभाग के मुताबिक, इस साल 106% यानी करीब 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है. जबकि 4 महीने के मानसून सीजन के लिए लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) 86.86 सेंटीमीटर होता है. इसका मतलब है कि इस बार के मानसून सीजन में 86.86 सेंटीमीटर बारिश होगी. देश में आमतौर पर मानसून 1 जून के आसपास केरल के रास्ते प्रवेश करता है और सितंबर के अंत में राजस्थान के रास्ते वापस चला जाता है.

ऐसा रहेगा राज्यों का हाल
IMD ने जिन 25 राज्यों में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है, उसमें केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, सिक्किम, मेघालय, बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन-दीव, दादरा और नगर हवेली शामिल हैं. जबकि छत्तीसगढ़, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सामान्य बारिश का अनुमान है. 

ये भी पढ़ें - UltraTech से मुकाबले के लिए मजबूत हो रहे Adani, साल की दूसरी बड़ी डील की फाइनल

Repo Rate में कटौती संभव!
मानसून के सामान्य रहने का अनुमान सरकार और RBI के लिए बड़ी राहत के समान है, जिन्हें महंगाई को नियंत्रित करने को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ी है. मानसून की बेरुखी से खेती प्रभावित होती है. ऐसे में मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ता जाता है. नतीजतन महंगाई का चक्का तेजी से घूमने लगता है. IMD की इस भविष्यवाणी के बाद यह उम्मीद भी बढ़ गई है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) नीतिगत ब्याज दरों में कुछ कटौती करे. पिछले ने पिछले कई बार से नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट (Repo Rate) में कोई बदलाव नहीं किया है. रेपो रेट 6.50% पर यथावत है. हाल ही में कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि RBI ब्याज दरों में कटौती से पहले मानसून की तस्वीर साफ होने का इंतजार करेगा, क्योंकि मानसून की चाल पर महंगाई की चाल निर्भर करती है.  अब जब तस्वीर साफ हो गई है, तो इस मोर्चे पर कुछ राहत मिल सकती है.

RBI के लिए इसलिए है राहत
महंगाई पिछले कुछ समय से सरकार और रिजर्व बैंक की परेशानी की वजह रही है. ऐसे में यदि मानसून सामान्य से कम रहता है, तो इस परेशानी में इजाफा हो सकता है. आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत यदि महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. कुछ वक्त पहले रिजर्व बैंक को बाकायदा ऐसा करना पड़ा था. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद यह पहली बार था कि RBI को महंगाई नियंत्रित न कर पाने को लेकर केंद्र को सफाई देनी पड़ी. इस लिहाज से मानसून के सामान्य रहने की खबर RBI से RBI ने राहत की सांस ली होगी.

इसलिए जरूरी है अच्छी बारिश 
एक रिपोर्ट बताती है कि देश में सालभर होने वाली कुल बारिश का 70% पानी मानसून में ही बरसता है. हमारे देश में में 70 से 80 प्रतिशत किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं. इसका सीधा मतलब है कि मानसून के अच्छा न रहने की स्थिति में पैदावार प्रभावित हो सकती है और महंगाई बढ़ सकती है. भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है. ऐसे में मानसून का अच्छा रहना अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद जरूरी है.

ऐसा है मानसून का गणित
अब यह भी समझ लेते हैं कि मानसून का सामान्य से कम या ज्यादा होने का क्या मतलब है. यदि बारिश के 90% से कम होने का अनुमान हो, तो इसका मतलब है कि देश में काफी कम बरसात होगी. 90-95% का अर्थ है कि मानसून सामान्य से कम रहेगा. 96 से 104% का मतलब है मानसून सामान्य रहेगा. जबकि 104-110% का मतलब है कि सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. इसी तरह, 110% से ऊपर का अर्थ है कि देश में बहुत ज्यादा बारिश की संभावना है. 
 


महायुद्ध की दहलीज पर दुनिया, Bharat को कितना प्रभावित कर सकता है Israel-Iran विवाद? 

यदि ईरान और इजरायल के बीच युद्ध होता है, तो फिर ये केवल दो देशों के बीच की लड़ाई ही नहीं रह जाएगी.

नीरज नैयर by
Published - Saturday, 13 April, 2024
Last Modified:
Saturday, 13 April, 2024
Photo Credit: JISS

दुनिया एक बार फिर युद्ध की दहलीज पर पहुंच गई है. ईरान और इजराइल (Iran-Israel Tension) में तनाव इस कदर बढ़ गया है कि युद्ध की आशंका जताई जा रही है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईरान अगले 2 दिन के भीतर इजराइल पर अटैक कर सकता है. यदि ऐसा होता है, तो यह केवल 2 देशों की लड़ाई नहीं रह जाएगी. इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी दुनिया प्रभावित होगी और भारत भी अछूता नहीं रहेगा.   

भारत ने जारी की एडवाइजरी 
इस बीच, खबर है कि अमेरिका का एयरक्राफ्ट कैरियर 'USS ड्वाइट आइजनहावर' लाल सागर के रास्ते इजराइल पहुंच रहा है. ये अमेरिकी जंगी जहाज इजरायल को ईरान की तरफ से दागी जाने वाली मिसाइल और ड्रोन से सुरक्षा प्रदान करेगा. वहीं, बिगड़ते हालात को देखते हुए भारत सहित 6 देशों - अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और जर्मनी ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की है. भारत ने अपने नागरिकों को ईरान और इजराइल न जाने की सलाह दी गई है.

इस वजह से बिगड़े हैं हालात
युद्ध जैसे हालात निर्मित होने के पीछे इजरायल की एक एयरस्ट्राइक है. बताया जा रहा है कि एक अप्रैल को इजराइल ने सीरिया में ईरानी एंबेसी के पास एयरस्ट्राइक की थी. इस हमले में ईरान के दो टॉप आर्मी कमांडर्स सहित कुल 13 लोगों की मौत हुई थी. इसका बदला लेने के लिए अब ईरान ने इजराइल पर हमले की धमकी दी है. इस लड़ाई में इजरायल को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, लेकिन ईरान का साथ देने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे में यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए संकट बन सकता है. इससे कई देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है. 

कौन War में किसका देगा साथ?
ईरान और इजरायल में युद्ध का मतलब होगा दुनिया का दो हिस्सों में बंट जाना. इराक, सीरिया, लेबनान, तुर्किए, कतर, जॉर्डन आदि मुस्लिम ईरान का साथ दे सकते हैं. जबकि अमेरिका-ब्रिटेन और उनके सहयोगी देश इजरायल के साथ हैं. इस युद्ध में रूस की भी एंट्री हो सकती है. रूस पहले से ही ईरान का सैन्य सहयोगी रहा है. यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय एवं पश्चिमी देशों से रूस की ठनी हुई है. इसलिए उसके ईरान के पाले में जाने की संभावना काफी ज्यादा है. यह भी संभव है कि रूस अपने मित्र देश चीन और उत्तर कोरिया को भी ईरान के पक्ष में लामबंद कर ले. वैसे, पाकिस्तान और सऊदी अरब ईरान को पसंद नहीं करते, लेकिन इनके बारे में कुछ साफ-साफ नहीं कहा जा सकता. भारत हमेशा की तरह इस मामले में तटस्थ भूमिका निभा सकता है. 

तेल की कीमतों में लगेगी आग!
अगर युद्ध छिड़ता है, तो पूरी दुनिया में तेल की कीमतों पर गंभीर असर पड़ सकता है. जैसे-जैसे युद्ध का दायरा बढ़ेगा, दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होना शुरू हो जाएंगी. तेल की कीमतों में आग से महंगाई भड़क जाएगी. दुनिया को ऊर्जा और खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है. भारत के ईरान और इजरायल देशों के साथ व्यापारिक संबंध हैं, युद्ध की स्थिति में उनका प्रभावित होना लाजमी है. ईरान के साथ हमारे व्यापार में भले ही पहले के मुकाबले कुछ कमी आई है, लेकिन व्यापारिक रिश्ते कायम हैं और उनके प्रभावित होने से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. वित्त वर्ष 2019-20 में भारत और ईरान के बीच कुल व्यापार 4.77 बिलियन डॉलर (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का था, जो कि अप्रैल से जुलाई 2023 के बीच 0.66 बिलियन डॉलर (5500 करोड़ रुपए) रह गया है.  

भारत को ऐसे होगा नुकसान
भारत की तरफ ईरान को कई सामान निर्यात किए जाते हैं. इसमें प्रमुख रूप से बासमती चावल, चाय, चीनी, ताजे फल, दवाएं/फार्मास्यूटिकल्स, सॉफ्ट ड्रिंक -शरबत और दालें आदि शामिल हैं. इसी तरह, ईरान से भारत मेथनॉल, पेट्रोलियम बिटुमेन, सेब, लिक्विफाइड प्रोपेन, सूखे खजूर, अकार्बनिक/कार्बनिक कैमिकल, बादाम आदि आयात करता है. युद्ध की स्थिति में आयात-निर्यात के प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता. वहीं, भारत के इजरायल से भी व्यापारिक संबंध है. एशिया में इजरायल के लिए भारत तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. उसकी कंपनियों ने यहां निवेश किया हुआ है, जिसके युद्ध लंबा खिंचने की स्थिति में प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता. भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में इजरायल की हिस्सेदारी 1.8% है. इजरायल भारत से लगभग 5.5 से 6 बिलियन डॉलर के परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद (Refined Petroleum Products) खरीदता है. वित्तवर्ष 23 में, इजराइल को भारत का कुल निर्यात 8.4 बिलियन डॉलर था. जबकि आयात 2.3 बिलियन डॉलर रहा. इस तरह, दोनों देशों के बीच करीब 10 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है.

बदल सकती है ये तस्वीर 
इजरायल भारत से परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के साथ-साथ ज्लैवरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोडक्ट्स मंगाता है. जबकि भारत मोती, हीरे, डिफेंस मशीनरी, पेट्रोलियम ऑयल्स, फर्टिलाइजर्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट आदि आयात करता है. एक रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2000 से मार्च 2023 के दौरान, भारत में इजरायल का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी FDI 284.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर था. कई भारतीय कंपनियों ने भी इजरायल में बड़ा निवेश किया हुआ है. यदि युद्ध होता है, तो तस्वीर काफी हद तक बदल सकती है. 

डरे हुए हैं Tea Exporters
इसके अलावा, ईरान भारतीय चाय के प्रमुख खरीदारों में शामिल है. ऐसे में वहां उथलपुथल का भारतीय निर्यातकों के कारोबार पर असर लाजमी है. जनवरी-दिसंबर 2022 के दौरान भारत ने सबसे ज्यादा चाय का निर्यात संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को किया. UAE को 4.23 करोड़ किलोग्राम चाय भेजी गई. इसी तरह, रूस में 4.11 करोड़ किलोग्राम और ईरान में 2.16 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ. ईरान मुख्य रूप से भारत के लिए एक परंपरागत चाय बाजार है. असम से ईरान सबसे ज्यादा चाय भेजी जाती है. भारतीय चाय निर्यातक पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं. वह जल्दी से जल्दी ऑर्डर पूरा करने की कोशिश में हैं, लेकिन साथ ही भुगतान को लेकर आशंकित हैं. उन्हें इस बात का भी डर है कि युद्ध के चलते माल की आवाजाही में कोई दिक्कत न हो जाए. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ईरान हमारी चाय का बड़ा खरीदार है. अगर वहां हालात बिगड़ते हैं, तो सप्लाई प्रभावित होना लाजमी है. इसके अलावा, निर्यातकों का पेमेंट भी अटक सकता है.  
 


कैसे लिखी गई कर्ज चुकाने के लिए मॉल बेचने को मजबूर Kishore Biyani की बर्बादी की कहानी?

फ्यूचर ग्रुप के मालिक किशोर बियानी ने बंसी मॉल मैनेजमेंट कंपनी के कर्जदाताओं को 571 करोड़ रुपए का बकाया चुकाया है.

Last Modified:
Saturday, 13 April, 2024
file photo

किसी जमाने में सफलता की ऊंचाइयां छूने वाले बिजनेसमैन किशोर बियानी (Kishore Biyani) आज जमीन पर हैं. उनका साम्राज्य दरक चुका है. फ्यूचर ग्रुप के कई कंपनियां दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही हैं. पिछले साल बिग बाजार चेन की पैरंट फ्यूचर रिटेल के लिए कई कंपनियों ने बोली लगाई थी. अब खबर आ रही है कि कर्ज में फंसे किशोर बियानी ने अपना एक मॉल बेचकर 571 करोड़ रुपए की देनदारी चुकाई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बियानी ने मुंबई स्थित Sobo Central मॉल को बेच दिया है.

K रहेजा कॉर्प ने खरीदा मॉल
फ्यूचर ग्रुप के मालिक किशोर बियानी ने बंसी मॉल मैनेजमेंट कंपनी के कर्जदाताओं को 571 करोड़ रुपए का बकाया चुकाया है. यह लेनदारों के लिए 83% की वसूली है, यानी अभी बियानी को और भी कर्ज चुकाना है. इस मॉल को K रहेजा कॉर्प ने खरीदा है. इसके लिए 28.56 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी का भुगतान किया गया है. रिपोर्ट्स में बताया गया है कि K रहेजा कॉर्प ने बंसी मॉल मैनेजमेंट कंपनी के लेंडर्स बैंकों को सीधे भुगतान किया जिसके बदले में मॉल कंपनी को ट्रांसफर कर दिया गया. K रहेजा की ग्रुप कंपनी K रहेजा कॉर्प रियल एस्टेट ने लगभग 150,000 वर्ग फुट के पट्टे योग्य क्षेत्र के साथ मॉल का अधिग्रहण कर लिया है. 

दक्षिण मुंबई में है मॉल
Sobo सेंट्रल देश का पहला मॉल है, जो 1990 के दशक के अंत में दक्षिण मुंबई के हाजी अली इलाके में खोला गया था. यह डील फ्यूचर ग्रुप के कर्जदाताओं के लिए राहत जैसी है, क्योंकि उन्हें बड़े पैमाने पर नुकसान का सामना करना पड़ा है. फ्यूचर रिटेल और फ्यूचर एंटरप्राइजेज को दिए कर्ज की पूरी रिकवरी अब तक नहीं हो पाई है. Bansi Mall Management Company, फ्यूचर ग्रुप का ही हिस्सा है. इसकी पैरेंट कंपनी Future Corporate Resources Limited है. बंसी मॉल मैनेजमेंट के कर्ज को चुकाने के लिए ही किशोर बियानी ने अपना मॉल बेचा है. 

छिन गया रिटेल किंग का ताज
किशोर बियानी ने बड़ी मेहनत से फ्यूचर रिटेल को खड़ा किया था. बियानी को रिटेल किंग कहा जाता था, उन्होंने ऐसे समय इस सेक्टर में कदम रखा जब इसके भविष्य को लेकर कोई भी बड़ा दावा मुश्किल था. फ्यूचर रिटेल 'बिग बाजार' चेन की पैरंट कंपनी है, वही बिग बाजार जिसने थोड़े ही समय में पूरे देश का दिल जीत लिया था. जिससे सामान खरीदने के लिए हर रोज सैकड़ों लोगों की लाइन लगती थी, लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है. फ्यूचर रिटेल दिवालिया घोषित हो चुकी है. 'बिग बाजार' के अधिकांश स्टोर बंद हो गए हैं और किशोर बियानी के सिर से रिटेल किंग का ताज लगभग छिन गया है.

इस तरह की थी शुरुआत
कुछ वक्त पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्यूचर ग्रुप (Future Group) पर करीब 29000 करोड़ रुपए का कर्ज है, जिसमें फ्यूचर रिटेल की हिस्सेदारी 21000 करोड़ है. समूह की कंपनी फ्यूचर एंटरप्राइजेज भी कर्ज के बोझ में दबी है. किशोर बियानी, जिन्होंने अपने दम पर इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित किया, कैसे अपनी कंपनियों को कर्ज में ले आए, यह सबसे बड़ा सवाल है. बियानी ने 1980 के दशक में मुंबई में स्टोन वॉश डेनिम फैब्रिक बेचने से अपना कारोबारी सफर शुरू किया था. उसके बाद उन्होंने Erstwhile Manz Wear नाम से रिटेल कारोबार में कदम रखा. बाद में इसका नाम बदलकर पैंटालून्स किया गया.  

2001 में खोला पहला स्टोर
किशोर बियानी धीरे-धीरे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते गए 1987 में फ्यूचर ग्रुप अस्तित्व में आया. 2001 में समूह ने भारत में पहला 'बिग बाजार स्टोर' खोला. बियानी का यह कांसेप्ट लोगों को इतना पसंद आया कि 6 साल के अंदर देश में इसके लगभग 100 स्टोर हो गए. इस सफलता के बाद बियानी के 'फ्यूचर ग्रुप' ने दूसरे सेक्टर्स में पैर फैलाना शुरू किया और 2007 में फ्यूचर जनरल इंश्योरेंस को लॉन्च किया गया. उसी साल फ्यूचर कैपिटल भी अस्तित्व में आई. बियानी के लिए यहां तक सबकुछ ठीक चल रहा था, फिर आने वाले सालों में उनका मुश्किल दौर शुरू हो गया.

कई बार बेचनी पड़ी संपत्ति
2008 की आर्थिक मंदी और कुछ गलत फैसलों ने फ्यूचर समूह को प्रभावित किया, लेकिन इससे भी बुरा समय आगे आने वाला था. फ्यूचर रिटेल के साथ फ्यूचर समूह पर कर्ज का बोझ बढ़ने लगा. जिसके चलते उन्होंने 2012 में 'पैंटालून्स' में अपनी अधिकांश हिस्सेदारी आदित्य बिड़ला ग्रुप को बेच दी. इसके साथ ही उन्हें फ्यूचर कैपिटल होल्डिंग्स में भी अपनी ज़्यादातर हिस्सेदारी अमेरिका की प्राइवेट इक्विटी Warburg Pincus को बेचनी पड़ी. यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 2019 में किशोर बियानी ने फ्यूचर कूपन्स में 49 फीसदी हिस्सेदारी Amazon को बेची. इससे बियानी को कर्ज के बोझ को कुछ कम करने में मदद जरूर मिली, लेकिन यही फैसला उनके लिए मुश्किलों का पहाड़ बनकर सामने आया.

संकट, उम्मीद और नाकामी
'फ्यूचर ग्रुप' पर वित्तीय संकट 2020 की शुरुआत में तब बढ़ा, जब फ्यूचर रिटेल डेट रीपेमेंट यानी कर्ज चुकाने में असफल रही और कर्जदाताओं ने शेयरों को गिरवीं रखने की बात कही. कोरोना महामारी ने बियानी की रही-सही उम्मीद को भी खत्म कर दिया. मार्च 2020 के आखिरी हफ्ते में देशभर में लगे लॉकडाउन ने 'बिग बाजार' की कमर तोड़ दी. इसके बाद स्थिति बयानी के हाथों से निकलती चली गई. तभी, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की तरफ से फ्यूचर रिटेल को मिला ऑफर उसके लिए एक बेहतरीन समाधान की तरह नजर आया, मगर भविष्य को कुछ और ही मंजूर था. कई महीनों के मोलभाव के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने फ्यूचर ग्रुप की संपत्ति 24,713 करोड़ में खरीदने का फैसला किया. फ्यूचर रिटेल लिमिटेड पहले अपने 19 कारोबार को रिलायंस रिटेल के साथ मर्ज करने को तैयार हो गया. हालांकि, फ्यूचर ग्रुप की संपत्ति रिलायंस के पास आने के बाद भी इसे किशोर बियानी ही चलाते. उसी वक्त Amazon और किशोर बियानी के बीच हुई एक डील सामने आ गई और रिलायंस से उनकी डील खटाई में पड़ गई.

किराया भरने के भी पैसे नहीं
इसके बाद कई फ्यूचर स्टोर शटरडॉउन होते चले गए. स्थिति ये पहुंच गई कि किशोर बयानी के पास स्टोर्स का किराया देने के भी पैसे नहीं थे. नतीजतन उनके कई स्टोर्स रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के हाथों में चले गए. इस बीच, बैंक ऑफ इंडिया ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में याचिका दायर करते हुए फ्यूचर रिटेल के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने की अपील की, जिसे NCLT ने स्वीकार कर लिया. हालांकि, अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन नहीं चाहती थी कि फ्यूचर रिटेल को दिवालिया घोषित किया जाए. उसने इसे बैंक और कंपनी की मिलीभगत करार दिया था. अमेजन ने दिवालिया प्रक्रिया रोकने के लिए NCLT में अपील की, उसने कहा कि अभी इस मामले में फ्यूचर रिटेल को दिवालिया घोषित करने की कार्रवाई शुरू करने से उसके अधिकारों के साथ ‘समझौता’ होगा, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.

एक डील बनी बियानी की मुसीबत
किशोर बियानी चाहते थे कि रिलायंस को कुछ हिस्सेदारी बेचकर जो पैसा आएगा, उससे वह कर्ज का बोझ कम करके फिर से खुद को खड़ा करने की कोशिश कर पाएंगे. लेकिन अमेजन से की गई डील ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 2019 में अमेजन ने फ्यूचर समूह की कंपनी फ्यूचर कूपंस की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी. यह डील 1431 करोड़ रुपए में फाइनल हुई थी और फ्यूचर कूपंस की फ्यूचर रिटेल में 9.8 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके अलावा 2019 की डील में इस बात पर सहमति बनी थी कि अगले 3-10 साल के भीतर अमेजन, फ्यूचर रिटेल की हिस्सेदारी खरीदने की हकदार होगी. ऐसे में जब बयानी ने रिलायंस से समझौता किया, तो अमेजन ने उसे कानूनी लड़ाई में उलझा दिया. इसे देखते हुए रिलायंस भी उसका साथ छोड़ गई, उल्टा कंपनी ने किराया नहीं मिलने पर फ्यूचर ग्रुप के कई स्टोर्स बंद करवा दिए. इस तरह, फर्श से अर्श पर पहुंचने वाले किशोर बयानी वापस फर्श पर आ गए.


हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार हो रहा इजाफा, कितना जरूरी है इस भंडार का भरे रहना?

विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्त होना हर देश के लिए महत्वपूर्ण है. इसे देश की हेल्थ का मीटर कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

Last Modified:
Saturday, 13 April, 2024
file photo

विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) के मोर्चे पर भारत को लगातार अच्छी खबर सुनने को मिल रही है. हमारे इस भंडार में पांच अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में 2.98 अरब डॉलर से अधिक का इजाफा हुआ है. इसके साथ ही यह बढ़कर 648.56 अरब डॉलर के नए सर्वकालिक उच्च स्‍तर पर जा पहुंचा है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, पिछले कारोबारी सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.95 अरब डॉलर बढ़कर 645.58 अरब डॉलर हो गया. इससे पहले, सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 अरब डॉलर के अब तक के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया था.

गोल्ड रिजर्व में भी इजाफा
इसी तरह, विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाले फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) में भी इस दौरान बढ़ोत्तरी हुई है. यह 54.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 571.17 अरब डॉलर हो गया है. RBI ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान गोल्‍ड रिजर्व (Gold Reserve) भी 2.39 अरब डॉलर बढ़कर 54.56 अरब डॉलर हो गया. ऐसे ही, विशेष आहरण अधिकार (SDR) 2.4 करोड़ डॉलर चढ़कर 18.17 अरब डॉलर पहुंच गया. रिजर्व बैंक के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष यानी IMF के पास भारत की आरक्षित जमा भी 90 लाख डॉलर बढ़कर 4.669 अरब डॉलर हो गई.

देश की हेल्थ का मीटर
अब जब बात विदेशी मुद्रा भंडार की निकली है, तो यह भी समझ लेते हैं कि आखिर ये क्या होता है और इस भंडार का भरे रहना क्यों जरूरी है. विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्त संख्या में होना हर देश के लिए महत्वपूर्ण है. इसे देश की हेल्थ का मीटर कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इसमें विदेशी करेंसीज, गोल्ड रिजर्व, SDR, IMF के पास जमा राशि और ट्रेजरी बिल्स आदि आते हैं और इन्हें केंद्रीय बैंक या अन्य मौद्रिक संस्थाएं संभालती हैं. इन संस्थाओं का काम पेमेंट बैलेंस की निगरानी करना, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर पर नज़र रखना और वित्तीय बाजार स्थिरता बनाए रखना है. विदेशी मुद्रा भंडार में दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों की ओर से जारी की जाने वाली मुद्राएं शामिल होती हैं. अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ा भाग US डॉलर के रूप में होता है.

इसलिए है महत्वपूर्ण 
किसी भी देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार काफी महत्वपूर्ण होता है और इसका इस्तेमाल देश की देनदारियों को पूरा करने के साथ ही कई कामों में किया जाता है. वैसे, दुनिया के अधिकतर देश अपना विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में रखना पसंद करते हैं, क्योंकि अधिकांश व्यापार डॉलर में ही होता है. लेकिन इसमें सीमित संख्या में ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन भी हो सकते हैं. विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि रुपया तेजी से नीचे गिरता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है तो RBI के पास बैकअप फंड मौजूद हो. इसके साथ ही गिरते रुपए को संभालने के लिए आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर को बेच सकता है. यदि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार अच्छी स्थिति में है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी निखरती है, क्योंकि उस स्थिति में व्यापारिक देश अपने भुगतान के बारे में सुनिश्चित हो सकते हैं.

भरे भंडार के कई फायदे
विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है. इससे देश के लिए आयात बिल का भुगतान करना मुश्किल हो जाता है. इस भंडार के भरे रहने से संकट के समय भी देश एक आरामदायक स्थिति का अनुभव कर सकता है. सरकार और आरबीआई किसी भी बाहरी या अंदरुनी वित्तीय संकट से निपटने में सक्षम हो जाते हैं. RBI देश के विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन या मैनेजर के रूप में कार्य करता है. उसे कार्य सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार करना होता है. रिजव बैंक रुपए की स्थिति को मजबूत रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, देश का 64% विदेशी मुद्रा भंडार विदेशों में ट्रेजरी बिल आदि के रूप में होता है और यह मुख्य रूप से अमेरिका में रखा होता है.
 


बदलते मौसम से RBI के माथे पर क्यों आ गया पसीना, क्या होने वाला है कुछ बुरा?

मौसम विभाग ने इस साल अत्यधिक गर्मी पड़ने की भविष्यवाणी की है, इससे RBI की टेंशन बढ़ गई है.

Last Modified:
Monday, 08 April, 2024
file photo

मौसम के बदलते मिजाज ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. RBI को आशंका है कि कहीं उसकी कोशिशों पर क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन पानी न फेर दे. दरअसल, मौसम विभाग ने इस साल ज्यादा गर्मी पड़ने की भविष्यवाणी जताई है. ज्यादा गर्मी से फसलें प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है. गेहूं की अधिकांश फसल की कटाई हो चुकी है. ऐसे में फल-सब्जियों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है. रिजर्व बैंक को डर है कि अगर सब्जियों का उत्पादन प्रभावित होता है, तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

सब्जियों पर रहेगी नजर 
RBI के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने हाल ही में कहा था कि हमें यह देखना होगा कि उच्च तापमान विशेष रूप से खाद्य फसलों पर क्या असर पड़ता है. गेहूं को लेकर ऐसी कोई चिंता नहीं है, क्योंकि उसकी कटाई लगभग पूरी हो चुकी है. लेकिन हमें सब्जियों की कीमतों पर नजर रखनी होगी और लू के कई अन्य प्रभाव हो सकते हैं. बता दें कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने देश के कई हिस्सों में इस साल जून तक लू चलने का पूर्वानुमान लगाया है. इसी तरह, RBI के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने कहा था कि खाद्य मुद्रास्फीति हाल के दिनों में अस्थिर रही है. इसे बढ़ाने वाले कारक लगातार बदलते रहते हैं. हम यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दे रहे हैं कि इसका असर उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) पर व्यापक प्रभाव न पड़े. हाल के दिनों में अनाज, सब्जियों के कारण भी खाद्य मुद्रास्फीति में इजाफा हुआ है. 

राहत छिनने का सता रहा डर
यदि सब्जियों का उत्पादन प्रभावित होता है, तो मांग और आपूर्ति के बीच की खाई चौड़ी हो जाएगी. ऐसे में सब्जियों की कीमतों में इजाफा होगा और महंगाई का चक्का तेजी से घूमने लगेगा. रिजर्व बैंक महंगाई के मोर्चे पर अब तक मनमाफिक परिणाम हासिल नहीं कर पाया है. इसी वजह से उसे इतिहास में पहली बार सरकार को स्पष्टीकरण भी देना पड़ा है. हालांकि, महंगाई दर में आई कुछ नरमी उसके लिए राहत जरूर है. अब यदि सब्जियों की महंगाई बढ़ती है, जो थोड़ी-बहुत राहत मिली है, वो भी छिन जाएगी. 

कारगर नहीं रहा प्रमुख अस्त्र
आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत यदि महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. कुछ वक्त पहले रिजर्व बैंक को बाकायदा ऐसा करना पड़ा था. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद यह पहली बार था कि RBI को महंगाई नियंत्रित न कर पाने को लेकर केंद्र को सफाई देनी पड़ी. रिजर्व बैंक कई तरीकों से महंगाई नियंत्रित करने की कोशिश करता है. इसमें सबसे प्रमुख है रेपो रेट में वृद्धि. हालांकि, RBI का ये अस्त्र भी ज्यादा कारगर नहीं रहा है. लिहाजा, RBI यही चाहेगा कि न गर्मी ज्यादा पड़े और न ही सब्जियों का उत्पादन प्रभावित हो.