कर्नाटक में दो करोड़ की लागत से चामुंडी हिल्स पर मंकी पार्क बनाया जाना है.
देश के कई शहरों में बंदरों की बढ़ती संख्या मुश्किल बन गई है. मुश्किल इस लिहाज से कि सिकुड़ते वन क्षेत्र की वजह से बंदर खाने के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं. ऐसे में उनका मनुष्यों के साथ संघर्ष बढ़ रहा है. भूख की वजह से कभी-कभी वो हिंसक हो जाते हैं और लोगों को काट लेते हैं. नतीजतन बंदरों के खिलाफ क्रूरता में भी तेजी आती है. इस समस्या को दूर करने के लिए कर्नाटक में ‘मंकी पार्क’ की योजना पर काम चल रहा है.
क्या है सरकार का तर्क?
कई सरकारी एजेंसियां इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं और इसे दो करोड़ की लागत से चामुंडी हिल्स पर बनाया जाना है. इस पार्क में बंदरों के खाने-पीने और चिकित्सीय देखभाल की भी व्यवस्था होगी. सरकार का मानना है कि जब बंदरों को पार्क में भरपूर खाना मिलेगा तो वो शहरों का रुख नहीं करेंगे और मनुष्यों के साथ उनका संघर्ष नहीं होगा. वैसे, मंकी पार्क का कांसेप्ट नया नहीं है. बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक में ऐसी बातें हो चुकी हैं.
यहां भी हुईं थीं घोषणाएं
कुछ साल पहले गाजियाबाद में हिंडन नदी के किनारे पार्क बनाने की बात कही गई थी. इसके लिए नगर निगम ने जमीन तलाशना भी शुरू कर दिया था. लेकिन अब इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसी तरह, पिछले साल बिहार के वन पर्यावरण मंत्री नीरज कुमार सिंह ने भी मंकी पार्क बनाने की घोषणा की थी, मगर वो भी कागजों तक ही सीमित रह गई. इतना ही नहीं, कर्नाटक के शिवमोगा जिले में भी मंकी पार्क बनाने का प्रस्ताव था, पर काम आगे नहीं बढ़ा. अब चामुंडी हिल्स पर पार्क निर्माण की कोशिश की जा रही है.
वन विभाग देगा जमीन
कर्नाटक के विधायक एसए रामदास का कहना है कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बंदरों को फूड, शेल्टर और मेडिकल केयर उपलब्ध कराना है. इसे मैसूर सिटी कारपोरेशन (MCC) के वेटनरी और एनीमल हसबेंडरी सेक्शन द्वारा तैयार किया जाएगा. रामदास के मुताबिक, चूंकि जमीन वन विभाग उपलब्ध करा रहा है, इसलिए प्रोजेक्ट पर अमल में कोई दिक्कत नहीं आएगी. लोगों को पार्क में जाकर बंदरों को खाना खिलाने के भी अनुमति होगी.
केवल इसी सूरत में होगा सफल
कर्नाटक में बंदरों द्वारा लोगों को काटने और बदले में बंदरों के खिलाफ क्रूरता के मामले आये दिन सामने आते रहते हैं. ऐसे में क्या यह प्रोजेक्ट मनुष्य और बंदर दोनों के लिए फायदेमंद होगा, क्या इससे बंदरों की बढ़ती समस्या से निपटा जा सकेगा? इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश वन विभाग के रिटायर्ड IFS अधिकारी सुहास कुमार ने कहा, ‘सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि पार्क खुला होगा या फिर इसे ज़ू की तरह निर्मित किया जाएगा. क्योंकि अगर ये ओपन पार्क होगा, तो फिर बंदरों को रोककर रखना लगभग नामुमकिन है, फिर भले ही उनके लिए रसदार फलों के कितने भी पेड़ क्यों न लगे हों. इसकी वजह ये है कि जो बंदर सालों से मनुष्यों के आसपास रह रहे हैं, उनके जैसा खाना खा रहे हैं, उनका पुन: ऐसे माहौल में ढलना, जिससे वो सालों पहले बाहर निकल आए हैं, मुश्किल है’.
‘नसबंदी पर फोकस ज़रूरी’
सुहास कुमार के मुताबिक, अगर पार्क ज़ू स्टाइल में बनाया जाता है, केवल तभी बंदरों को वहां रोका जा सकता है, क्योंकि उनके पास भाग निकलने का कोई रास्ता नहीं होगा. उनका यह भी कहना है कि बंदरों की समस्या से निपटने का एकमात्र कारगर तरीका है, उनकी जनसंख्या को सीमित करना और ये तभी संभव है कि जब नसबंदी के लिए व्यापक स्तर पर अभियान चलाया जाए. कुमार ने आगे कहा, ‘नसबंदी खर्चीला तरीका ज़रूर है, लेकिन इससे बंदरों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है’.
COC ने CCI की मंजूरी से पहले AGI ग्रीनपैक की समाधान योजना को मंजूरी दे दी, जो दिवाला दिवालियापन संहिता के अनुसार अनिवार्य है.
पलक शाह
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश व वाणिज्यिक विवादों, दिवालियापन और मध्यस्थता से संबंधित मामलों के एक विशेषज्ञ जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा है कि हिंदुस्तान नेशनल ग्लास (HNG) के अधिग्रहण के लिए AGI ग्रीनपैक की समाधान योजना कानून के विपरीत है. नरीमन सर्वोच्च न्यायालय के तीसरे न्यायाधीश हैं जिन्होंने अपनी राय में दिवालियापन कार्यवाही के दुरुपयोग को उजागर किया है. उनसे पहले, न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और न्यायमूर्ति एन.वी. रमना, दो सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीशों ने भी मामले में कदाचार (Malpractice) को उजागर किया था.
कानून के विपरित दी गई मंजूरी
जस्टिस नरीमन ने इस मामले पर अपनी राय देते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि COC और न्यायाधिकरण द्वारा AGI की समाधान योजना को मंजूरी देना कानून के विपरीत होगा, क्योंकि यह स्पष्ट है कि AGI को 28 अक्टूबर, 2022 को सफल समाधान आवेदक (Successful Resolution Applicant) घोषित किया गया था, जबकि आयोग (Competition Commission of India) से सशर्त मंजूरी 15 मार्च, 2023 को ही प्राप्त हुई थी.
COC ने CCI की मंजूरी के बिना दी मंजूरी
HNG CIRP में सबसे बड़ा विवाद यह है कि Edelweiss ARC के साथ बैंकों के एक संघ के नेतृत्व में COC ने आरपी जुनेजा द्वारा मतदान के लिए रखी गई एजीआई ग्रीनपैक (AGI Greenpac) की समाधान योजना को मंजूरी दे दी, भले ही इसमें भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) से पूर्व अप्रूवल नहीं था, चूंकि HNG और एजीआई ग्रीनपैक (AGI Greenpac) दोनों भारत में कंटेनर ग्लास निर्माण के एक ही व्यवसाय में हैं, इसलिए उनके संयोजन के लिए पूरी तरह से जांच और CCI की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है. लेकिन RO और COC पर आरोप है कि उन्होंने CCI की मंजूरी मिलने से पहले ही AGI की योजना को मंजूरी दे दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दी मंजूरी
सबसे दिलचस्प बात यह है कि COC द्वारा AGI की योजना को मंजूरी दिए जाने के बाद, CCI ने केवल सशर्त मंजूरी दी, जो फिर से सुप्रीम कोर्ट की स्थापित मिसालों और भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के फैसलों के खिलाफ है. Ebix Singapore Private Limited और अन्य Educomp Solutions Limited के लेनदारों की समिति में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह के फैसले के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा समाधान योजना को मंजूरी देने के संबंध में शर्तें पेश करने की अनुमति देने से बातचीत का एक अतिरिक्त स्तर शुरू हो जाएगा, जिसकी भारतीय दिवालियापन संहिता (IBC) की योजना के तहत अनुमति नहीं है.
CCI की पूर्व स्वीकृति लेना आवश्यक
न्यायमूर्ति नरीमन के अनुसार, 2018 में IBC के नए प्रावधान से यह स्पष्ट होता है कि जहां समाधान योजना में संयोजन का प्रावधान है, वहां आवेदक को COC द्वारा ऐसे समाधान को मंजूरी देने से पहले CCI की पूर्व स्वीकृति लेनी होगी. न्यायमूर्ति नरीमन ने इसके साथ ही कहा कि यह स्थापित कानून है कि किसी प्रावधान को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, यदि कानून में ऐसे प्रावधान के उल्लंघन का परिणाम हो. इस प्रावधान के उल्लंघन का स्पष्ट परिणाम यह है कि कानून में कोई समाधान योजना नहीं है क्योंकि समाधान योजना कानून के विपरीत होगी और इसलिए IBC की धाराओं का उल्लंघन करेगी. सीधे शब्दों में कहें तो, उनका कहना है कि अगर CCI की पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई, जो इस मामले में अनिवार्य थी, तो AGI के समाधान का उल्लंघन होगा.
Edelweiss को छोड़कर सभी ने मतदान किया
बोली की शर्तों के अनुसार आरपी जुनेजा ने बोलीदाताओं को ईमेल भेजा था जिसमें कहा गया था कि CCI की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी. लेकिन जब AGI Greenpac की CCI से पूर्व स्वीकृति के लिए पहली बार की गई अपील खारिज कर दी गई, तो आरपी ने मानदंडों में ढील दी और CCI की मंजूरी न होने के बावजूद COC के समक्ष मतदान की अपनी योजना रखी. Edelweiss को छोड़कर COC के सभी अन्य सदस्यों ने दो बोलीदाताओं के पक्ष में समान रूप से मतदान किया, जिनमें से एक के पास पहले से CCI की मंजूरी थी. बाद में यह पता चला कि Edelweiss Alternative Asset Advisors, जो Edelweiss ARC के समान समूह से संबंधित एक कंपनी है उसने AGI को 1100 करोड़ रुपये के फंडिंग का वादा किया था.
RP के पास कोड के तहत कोई न्यायिक शक्तियां नहीं
जस्टिस नरीमन की राय में 25 अगस्त 2022 को आरपी जुनेजा द्वारा भेजा गया ईमेल स्पष्ट रूप से आईबीसी की धारा 31 (4) के अनिवार्य प्रावधानों के विरुद्ध है. यह आरपी का वही ईमेल है जिसमें उन्होंने बोली लगाने वालों से कहा था कि वे सौदे के लिए सीसीआई से पूर्व स्वीकृति लें. जस्टिस नरीमन ने कहा कि आरपी द्वारा इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है कि ऐसा प्रावधान निर्देशात्मक क्यों होगा - और किसी भी मामले में यह घोषित करना कि कानून क्या है और छूट प्रदान करना आरपी के अधिकार क्षेत्र से पूरी तरह बाहर है. यह अच्छी तरह से स्थापित है कि आरपी के पास कोड के तहत कोई न्यायिक शक्तियां नहीं हैं.
RP के पास कानून का कोई अधिकार नहीं
क्या RP और COC, CIRP कार्यवाही को निष्पक्ष रूप से तथा IBC की योजना और उद्देश्य और उसके अंतर्गत विनियमों के अनुसार संचालित करने में विफल रहे? इस सवाल के जवाब में जस्टिस नरीमन ने कहा कि हां, आर.पी. के पास कानून के किसी भी अनिवार्य प्रावधान को माफ करने का कोई अधिकार नहीं है. कानून नहीं, बल्कि ऋणदाताओं की व्यावसायिक समझदारी के प्रश्न पर न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि यह पूरी तरह से COC के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किस समाधान योजना को प्राथमिकता देना चाहती है.
क्या है मामला?
HNG भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी कंटेनर ग्लास निर्माण कंपनी है जो अब कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान कार्यवाही (CIRP) से गुजर रही है. HNG के लिए AGI की समाधान योजना को ऋणदाताओं की समिति (COC) द्वारा अनुमोदित किया गया था, जब इसे समाधान पेशेवर (RP) गिरीश जुनेजा द्वारा निर्धारित शर्तों के उल्लंघन में वोट के लिए रखा गया था. HNG CIRP कदाचार (Malpractice) के आरोपों से घिरी हुई है और इसके आसपास के विभिन्न विवादों के कारण यह भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाले ऋण समाधानों में से एक है.
टाटा समूह की एयर इंडिया एक्सप्रेस ने सिक लीव पर जाने वाले अपने 25 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है.
टाटा समूह (TATA Group) के एयरलाइन कारोबार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. पिछले महीने बड़ी संख्या में विस्तारा के पायलट बीमारी का हवाला देकर सिक लीव पर चले गए थे. इसके चलते कंपनी को 100 से अधिक उड़ानें रद्द करनी पड़ी थीं. अब इसी स्थिति से टाटा समूह की दूसरी एयरलाइन 'एयर इंडिया एक्सप्रेस' (Air India Express) भी गुजर रही है. मंगलवार से बुधवार के बीच कंपनी के 300 कर्मचारियों ने बीमार होने की बात कहकर छुट्टी ले थी. नतीजतन एयर इंडिया एक्सप्रेस को कई फ्लाइट्स कैंसिल करने को मजबूर होना पड़ा. अब कंपनी ने ऐसा करने वाले 25 केबिन क्रू मेंबर्स को बर्खास्त कर दिया है.
तब 900 उड़ानें हुईं थीं प्रभावित
यदि सिक लीव पर गए बाकी कर्मचारी जल्द काम पर नहीं लौटे, तो एयर इंडिया एक्सप्रेस कुछ और की छुट्टी कर सकती है. लेकिन उसके लिए सभी को नौकरी से बाहर करना मुश्किल है, क्योंकि ऐसी स्थिति में संकट और गहरा जाएगा. करीब 2 साल पहले देश की नंबर 1 एयरलाइन इंडिगो को भी इसी स्थिति से गुजरना पड़ा था. बड़ी संख्या में उसके कर्मचारी बीमारी की बात कहकर छुट्टी पर चले गए थे. इसके चलते कंपनी की 900 फ्लाइट्स देरी से उड़ान भर सकी थीं. तब यह भी सामने आया था कि इंडिगो के बीमर क्रू मेंबर्स ने एयर इंडिया के वॉक-इन इंटरव्यू में हिसा लिया था. तो अब सवाल यह है कि आखिर टाटा की एयरलाइन इंडिगो वाली मुसीबत में कैसे फंस गई हैं?
आखिर चल क्या रहा है?
पहले समझते हैं कि आखिर विस्तारा और एयर इंडिया एक्सप्रेस में चल क्या रहा है. टाटा समूह की इन दोनों ही कंपनियों के कर्मचारियों की समस्या विलय यानी मर्जर से जुड़ी हुई है. विस्तारा के पायलट कंपनी के एयर इंडिया में विलय को लेकर परेशान हैं. दरअसल, एयर इंडिया का सैलरी स्ट्रक्चर 40 घंटे उड़ान की न्यूनतम एश्योर्ड-पे पर आधारित है. जबकि विस्तारा का न्यूनतम एश्योर्ड-पे 70 घंटे का है. टाटा समूह विलय की गई एयरलाइन के लिए एयर इंडिया के पे-स्ट्रक्चर को अपनाया है. इस वजह से विस्तारा के पायलटों के वेतन में कटौती हुई, जिससे वे काफी नाराज हुए और नौकरी के नए कॉन्ट्रैक्ट का विरोध शुरू कर दिया. सामूहिक सिक लीव इसी विरोध का हिस्सा थीं.
असमानता का लगाया आरोप
एयर इंडिया एक्सप्रेस, एयर इंडिया की सहायक इकाई है और इसके भी मर्जर की प्रक्रिया चल रही है. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एयरलाइन के कर्मचारी नई रोजगार शर्तों का विरोध कर रहे हैं. खासकर चालक दल के सदस्यों ने अपने साथ असमानता का आरोप लगाया है. खबर तो यहां तक है कि कुछ स्टाफ सदस्यों को सीनियर पोजीशन के लिए इंटरव्यू पास करने के बावजूद छोटे पदों की पेशकश की गई है. एयर इंडिया एक्सप्रेस इम्प्लॉयीज यूनियन ने टाटा समूह के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन को 26 अप्रैल को इस संबंध में एक पत्र भी लिखा था. पत्र में यूनियन ने कहा था कि कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा रहा है. वेतन, अनुभव और योग्यता की उपेक्षा की जा रही है.
हालात की गंभीरता नहीं समझी
अब जानते हैं कि इंडिगो में विरोध की जो चिंगारी दिखाई दी थी, वो टाटा की इन कंपनियों तक पहुंची कैसे? इसका एकदम सीधा जवाब है - हालात की गंभीरता को समझने में नाकामी. एयर इंडिया एक्सप्रेस में कई हफ्तों से कर्मचारियों के बीच असंतोष की सुगबुगाहट थी. प्रबंधन पूरी स्थिति से अच्छे से वाकिफ था, लेकिन उसने इस मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखाई. अब जब हालात बदतर हो गए हैं, तब कंपनी की तरफ से कहा गया है कि प्रबंधन सामूहिक छुट्टी के पीछे के कारणों को समझने के लिए क्रू मेंबर्स के साथ बातचीत कर रहा है. इंडिगो के मामले में भी यही हुआ था. कर्मचारियों में इंडिगो प्रबंधन को लेकर असंतोष इतना बढ़ गया था कि वे सामूहिक रूप से छुट्टी पर चले गए. कर्मचारी कोरोना महामारी के दौरान हुई सैलरी में कटौती सहित कुछ मुद्दों को लेकर परेशान थे, लेकिन प्रबंधन ने बीच का रास्ता निकालने का प्रयास नहीं किया. जब पानी सिर से ऊपर हो गया, तब कहीं जाकर वो हरकत में आया.
कंपनियों पर होनी चाहिए कार्रवाई
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे मामलों में विमानन कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए, क्योंकि प्रबंधन और कर्मचारियों की लड़ाई में यात्रियों को परेशान होना पड़ता है. इंडिगो को उस समय कई उड़ानें रद्द करनी पड़ी थीं और 900 फ्लाइट्स देरी से उड़ान भर पाई थीं. उसकी लगभग 55% फ्लाइटों पर सामूहिक छुट्टी का असर पड़ा था. विस्तारा और एयर इंडिया एक्सप्रेस को भी कई उड़ानें रद्द करनी पड़ी. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सरकार को इन कंपनियों को स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो, यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है और इसमें विफल रहने पर उन्हें कार्रवाई का सामना भी करना होगा.
विदेशी निवेशक लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय बाजार में पैसा लगाने के प्रति सावधानी बरत रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में इस बार बहुत कुछ दांव पर लगा है. कांग्रेस को जहां अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा. वहीं, भाजपा को खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए 400 का आंकड़ा छूना होगा. यह श्रेष्ठता का कोई मापदंड नहीं है, भाजपा ने खुद ही अपने लिए यह टार्गेट तय किया है. ऐसे में यदि भाजपा गठबंधन 400 से कम सीटें लाता है, तो उसके लिए अजीब स्थिति निर्मित हो जाएगी. भाजपा के 400 के इस दावे से केवल उसके समर्थक ही नहीं बल्कि बाजार भी उत्साहित है.
सरप्राइज की उम्मीद नहीं
एक्सपर्ट्स का कहना है कि भाजपा नीत गठबंधन NDA के सत्ता में वापसी के अनुमान के चलते बाजार एक सही रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है. बाजार में आने वाले दिनों में किसी सरप्राज़िंग एलिमेंट के नजर आने की उम्मीद नहीं है. मार्केट में ऐसा माहौल निर्मित हो रहा है, जिसमें निवेशकों को ऐसी कोई उम्मीद नहीं है कि 4 जून को आने वाले लोकसभा चुनाव परिणाम से पहले बाजार की वॉलिटिलिटी बढ़ेगी. उनका यह भी कहना है कि शेयर बाजार भाजपा की जीत के तथ्य को पहले ही अवशोषित कर रहा है.
पिछली बार अलग था माहौल
बाजार पर नजर रखने वालों का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में निवेशक अप्रत्याशित परिणाम से खुद को बचाने के लिए तमाम जतन कर रहे थे, लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा. क्योंकि यह मानकर चला जा रहा है कि चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में रहेंगे. यानी सत्ता परिवर्तन की उम्मीद नहीं है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि सत्ता में परिवर्तन की स्थिति में बाजार में शॉर्ट टर्म में करेक्शन हो सकता है. उनके मुताबिक, सवाल यह नहीं है कि BJP जीतती है या नहीं, क्योंकि उसकी जीत लगभग तय मानी जा रही है. बल्कि सवाल यह है कि जीत का अंतर कितना होगा? भाजपा 400 का दावा कर रही है, जबकि अनुमान यह है कि वो अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर 300 से अधिक सीटें जीतेगी. बता दें कि पूर्ण बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है.
...लग सकता है झटका
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि भाजपा गठबंधन 400 से कम सीटें जीतता है, तो इससे बाजार प्रभावित हो सकता है. इसी तरह, अगर NDA की सीटों की संख्या 300 से कम रही, तो यह बाजार के लिए एक बड़ा झटका होगा. उनके अनुसार, चुनाव परिणाम को लेकर मार्केट में निवेशकों को किसी सरप्राइस की उम्मीद बिल्कुल नहीं है, लेकिन फिर भी यदि भाजपा गठबंधन की सीटें 300 से कम हुईं, तो मार्केट को बड़ा झटका लग सकता है. गौरतलब है कि भाजपा नेता पूरे विश्वास के साथ दावा कर रहे हैं कि इस बारे के चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा और उनके गठबंधन को 400 से ज्यादा सीटें हासिल होंगी.
मई में बनी रहेगी तेजी
आमतौर पर चुनावी मौसम के चलते मई में बाजार में अस्थिरता दिखाई देती है, लेकिन इस बार मई में भी बाजार में तेजी बने रहने की संभावना है. इसका कारण इकोनॉमिक ग्रोथ बेहतर रहने की उम्मीद के साथ ही लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार की वापसी की संभावना है. एक्सपर्ट का कहना है कि निवेशक आमतौर पर मई में बिकवाली की रणनीति अपनाते थे, लेकिन इस साल यह ट्रेंड बदल सकता है. बता दें कि पिछले कुछ समय से बाजार में मजबूती बनी हुई है. एक-दो मौकों पर जरूर गिरावट आई है, लेकिन कुल मिलाकर मार्केट में रौनक है.
यूएस प्रेसिडेंट जो बाइडेन का कहना है कि भारत जैसे देश जेनोफोबिक हैं और इसका उनकी इकॉनमी पर असर पड़ा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) का भारत को लेकर दिया गया बयान चर्चा का विषय बन गया है. बाइडेन ने अपने बयान में एक ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसका मतलब जानने के लिए लोग Google का सहारा ले रहे हैं. हालांकि, आपको गूगल करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि हम आपको बताने जा रहे हैं कि यूएस प्रेसिडेंट ने क्या कहा और उसका क्या मतलब है. बाइडेन ने कहा कि भारत जैसे देश जेनोफोबिक (xenophobic) हैं और यही उनके आर्थिक शक्ति के तौर पर पीछे रहने का प्रमुख कारण है.
इन देशों का दिया हवाला
यूएस प्रेसिडेंट बाइडेन ने कहा कि भारत, चीन, जापान और रूस जैसे देश xenophobic हैं. इसके चलते उनकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और वे आर्थिक शक्ति के तौर पर पीछे रह जाते हैं. वॉशिगटन में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए बाइडेन ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ने का बड़ा कारण आप और अन्य लोग हैं. क्यों? क्योंकि हम प्रवासियों का स्वागत करते हैं. चीन आर्थिक रूप से क्यों तबाह हो रहा है, जापान क्यों परेशान है? रूस और भारत के साथ क्या समस्याएं हैं? ये देश इसलिए परेशान हैं, क्योंकि ये जेनोफोबिक हैं. ये देश प्रवासियों को नही चाहते, लेकिन हमें प्रवासियों ने ही मजबूत बनाया है.
Xenophobic का मतलब डर
अब जानते हैं कि Xenophobic का क्या मतलब होता है? इस शब्द का अर्थ है एक प्रकार का डर, जो बाहरी लोगों को आने से रोकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो विदेशी लोगों के प्रति अत्यधिक नापसंदगी रखना या उनके प्रति डर दिखाना. अमेरिकी राष्ट्रपति के कहने का मतलब है कि भारत जैसे देश विदेशियों को लेकर कुछ हद तक खौफ में रहते हैं. यही वजह है कि उनकी इकॉनमी ज्यादा ग्रोथ नहीं कर पाई है. गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF ने इस साल 2023 के मुकाबले ग्लोबल स्लोडाउन की आशंका जताई है. उसका अनुमान है कि जापान की ग्रोथ 0.9% रहेगी. भारत जैसे विकासशील देश की ग्रोथ 6.8% रहेगी. जबकि अमेरिका की आर्थिक विकास दर 2.7% रहेगी, जो पिछले साल की 2.5% के मुकाबले कुछ ज्यादा है.
यूएस के हाथ हुए मजबूत
कई एक्सपर्ट्स अमेरिकी इकॉनमी में इस सुधार का श्रेय आंशिक तौर पर देश की श्रम शक्ति को बढ़ाने वाले प्रवासियों को देते हैं. यूएस अक्सर कहता रहा है कि हम अफ्रीका से लेकर एशिया तक के लोगों का स्वागत करते हैं और इसी के चलते हमारी ग्रोथ हुई है. अमेरिका में भारतीय मूल के भी लाखों लोग रह रहे हैं. हालांकि, यह भी सच्चाई है कि अमेरिका की राजनीति में प्रवासियों की बढ़ती संख्या भी एक मुद्दा है. इस साल नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. लिहाजा उनके प्रवासियों के प्रति प्यार को चुनावी फायदे की आस के तौर पर देखा जा रहा है.
भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका, हांगकांग, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और मालदीव को लगभग 69.25 करोड़ डॉलर के मसालों का निर्यात किया है.
भारतीय मसालों की पूरी दुनिया दीवानी है. चीन से लेकर थाईलैंड तक हमारे मसाले लोगों के खाने का जायका बढ़ा रहे हैं. भारतीय कंपनियां सालों से दुनिया के तमाम देशों में अपने मसाले भेज रही हैं और इसकी डिमांड लगातार बढ़ी है. ऐसे में MDH और Everest के खिलाफ सिंगापुर और हांगकांग में हुई कार्रवाई कई सवाल खड़े करती है. एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या हमारी इन दिग्गज कंपनियों को जानबूझकर निशाना बनाया गया है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल किया जा सके? क्या वैश्विक स्तर पर MDH और Everest के बढ़ते कारोबार को प्रभावित करने के लिए कोई साजिश रची गई है?
क्या ऐसी गलती हो सकती है?
MDH और Everest स्पाइस इंडस्ट्री की दिग्गज कंपनियां हैं और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार की माहिर खिलाड़ी हैं. ऐसे में यह मानना थोड़ा मुश्किल है कि विदेशों के सख्त फूड सेफ्टी स्टैण्डर्ड की जानकारी होने के बावजूद वह कोई ऐसी गलती कर सकती हैं, जिससे उनका कारोबार और प्रतिष्ठा दांव पर लग जाए. सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग का दावा है कि इन कंपनियों के उत्पादों में एथिलीन ऑक्साइड की काफी अधिक मात्रा पाई गई है, जो कैंसर की वजह बन सकता है. इसके चलते इन देशों ने MDH और एरेस्ट के उत्पादों पर बैन लगा दिया है. वहीं, अमेरिका का फूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन (FDA) भी MDH और एवरेस्ट के उत्पादों की जांच कर रहा है. साथ ही ऑस्ट्रेलिया की एजेंसियां भी इस मामले को लेकर हरकत में आ गई हैं.
180 देशों में जाते हैं मसाले
इलायची, मिर्च, धनिया, जीरा, हल्दी, अदरक, लहसुन, मेथी, सरसों और काली मिर्च सहित 75 से अधिक किस्मों के मसालों के साथ वैश्विक उत्पादन में भारत का योगदान एक तिहाई से अधिक है. हमारे प्रमुख मसाला उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु हैं. 2020-21 में महामारी के प्रभाव के बावजूद, भारत का मसालों का निर्यात पिछले दस वर्षों में तीन गुना से अधिक बढ़ गया है. 225 विशिष्ट किस्मों के भारतीय मसाले और मसाला उत्पाद दुनिया भर के 180 से अधिक देशों में भेजे जाते हैं. ऐसे में हमारी दो दिग्गज कंपनियों को निशाना बनाकर देश के पूरे मसाला उद्योग पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं.
यह भी गौर करने वाली बात
विदेशों में हमारी कंपनियों को जानबूझकर निशाने की घटनाएं पहले भी सामने आती रही हैं. लिहाजा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी सोची-समझी साजिश के तहत MDH और Everest के उत्पादों पर सवाल खड़े किए गए हों. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि जिन दो देशों में इन कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए गए हैं, वहां चीन का दबदबा जगजाहिर है. सिंगापुर ने इसी साल चीन के साथ बिजनेस बढ़ाने के लिए तीन MoU पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत सरकार भी अपने स्तर पर मामले की जांच कर रही है और जल्द ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि आरोपों में इतना दम है, लेकिन इस पूरे एपिसोड से वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों की छवि जरूर प्रभावित हो सकती है.
...तो गंभीर हो जाएगी स्थिति
आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRRI) की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशों में भारत का मसाला कारोबार काफी बड़ा है. ऐसे में यदि यूरोप, चीन और आसियान देश भी सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग की राह चलते हैं, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है. इन देशों सरकारों द्वारा कार्रवाई का मतलब होगा भारत के मसाला एक्सपोर्ट को 50 फीसदी से ज्यादा नुकसान. GTRRI का कहना है कि हर दिन नए देश भारतीय मसालों की क्वालिटी को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. लिहाजा इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
जल्द कदम उठाने की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन आरोपों के चलते हांगकांग, सिंगापुर, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और मालदीव के बाजारों में भारत का 70 करोड़ डॉलर यानी 5800 करोड़ का निर्यात दांव पर लगा हुआ है. GTRRI का मानना है कि भारत को क्वालिटी संबंधी मुद्दों को जल्द और पारदर्शिता के साथ हल करने की जरूरत है. भारतीय मसालों में दुनिया का विश्वास बनाए रखने के लिए त्वरित जांच और निष्कर्षों का पब्लिश होना काफी जरूरी हो गया है. जीटीआरआई के को-फाउंडर अजीत श्रीवास्तव ने कहा कि यदि यूरोपीय संघ बैन जैसा कोई कदम उठता है, तो स्थिति और खराब हो सकती है. इससे अतिरिक्त 2.5 अरब डॉलर के निर्यात पर असर हो सकता है. भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका, हांगकांग, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और मालदीव को लगभग 69.25 करोड़ डॉलर के मसालों का निर्यात किया है.
दिल्ली के स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी वाले मामले में यह पता चला है कि ईमेल का सोर्स रूस है.
दिल्ली-NCR के 60 के आसपास स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी वाला ईमेल मिलने से हड़कंप मच गया है. ऐहतियात के तौर पर दिल्ली-नोएडा के दर्जनों स्कूलों को खाली कराया गया है. खबर मिलते ही पुलिस, बम स्क्वॉड, डॉग स्क्वॉड और फायर ब्रिगेड की टीमें मौके पर पहुंच गई हैं. अब तक किसी भी स्कूल में कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली है. बच्चों को वापस उनके घर भेज दिया गया है. जिन स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली है, वो शहर के नामचीन स्कूल हैं.
पहले भी मिली स्कूलों को धमकी
पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि ईमेल किसने और क्यों भेजा है. अब तक की जांच में यह सामने आया है कि ईमेल का सोर्स रूस है. इस साल जनवरी में, आरके पुरम और फरवरी में साउथ दिल्ली के पुष्प विहार स्थित दो स्कूलों को भी ईमेल से धमकी मिली थी. इन स्कूलों को भी उड़ाने की बात कही गई थी. इसी तरह, पिछले साल कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के कम से कम 48 स्कूलों को ईमेल के माध्यम से एक साथ बम से उड़ाने की धमकी मिली थी. हालांकि, ईमेल में जिन स्कूलों का जिक्र था, वहां बम जैसा कुछ नहीं मिला था. यह धमकी फेक न्यूज साबित हुई थी.
अफवाह से यहां भी अफरा-तफरी
कल यानी मंगलवार को राष्ट्रपति भवन और ईस्ट दिल्ली के चाचा नेहरू अस्पताल को बम से उड़ाने का ई-मेल दिल्ली पुलिस को मिला था. पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत चाचा नेहरू अस्पताल में बम स्क्वॉड, डॉग स्क्वॉड और फायर ब्रिगेड के मदद से जांच की, लेकिन कुछ नहीं मिला. इसके साथ ही दिल्ली की 103 सरकारी बिल्डिंग या कार्यालयों को भी धमाके से उड़ाने की धमकी भरा ईमेल भेजा गया था. इसके अलावा, हाल ही में एयरपोर्ट्स और पटना के सरकारी कार्यालय के साथ-साथ राजभवन को बम से उड़ाने की धमकी ईमेल द्वारा दी गई थी. बम स्क्वायड की टीम ने राजभवन और प्रमुख सरकारी कार्यालयों में करीब 3 घंटे तक जांच की, लेकिन कोई भी संदिग्ध समान नहीं मिला.
China से आया धमकीभरा कॉल
दिल्ली के स्कूलों को मिली बम की झूठी खबर में रूस का एंगल सामने आ रहा है. वैसे रूस और चीन इस तरह की फेक न्यूज फैलाने में माहिर हैं. पिछले साल मुंबई के जॉइंट कमिश्नर (ट्रैफिक) प्रवीण पडवाल को फोन पर बम विस्फोट की धमकी मिली थी. बाद में जांच में सामने आया कि कॉल चीन से आया था. इस पूरे मामले में सबसे खास बात ये थी कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने प्रॉक्सी वीपीएन और तकनीकी इस्तेमाल करके NCP MLA Yashwant Mane के मोबाइल नंबर से छेड़छाड़ की थी. कॉलर ने खुद को विधायक माने बताया था. जब पुलिस ने MLA से पूछताछ की, तो पता चला कि उन्होंने कॉल नहीं किया था. फोन करने वाले ने Mira-Bhayander में धमाके की बात कही थी, लेकिन वहां बम जैसा कुछ नहीं मिला था.
फेक न्यूज का लेते हैं सहारा
रूस और चीन से बड़ी संख्या में फेक न्यूज फैलाई जाती हैं. कोरोना काल में चीन की तरफ से फेक न्यूज की बाढ़ आ गई थी. ताइवान को लेकर भी चीन यही करता रहा है. इसी तरह, रूस भी पिछले कुछ वक्त से इस मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है. यूक्रेन से युद्ध के समय रूस ने जमकर फर्जी खबरें चलाई थीं. रूस ने अपनी नीतियों के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए फेक न्यूज का सहारा लिया था. कनाडा ने रूसी फर्जी खबरों से निपटने के लिए बाकायदा एक अभियान भी चलाया था. केवल यूक्रेन युद्ध के समय ही नहीं, रूस पहले भी अपने पक्ष में माहौल बनाने या अपनी सच्चाई दुनिया से छिपाने के लिए फेक खबरों का सहारा लेता रहा है.
चीन की ऐसी 100 वेबसाइट
इसी साल आई एक रिपोर्ट बताती है कि चीन द्वारा संचालित 100 से अधिक फर्जी समाचार वेबसाइटें 30 देशों में प्रोपगेंडा फैला रही हैं. सिटीजन लैब की रिपोर्ट के अनुसार, चीन से संचालित 123 वेबसाइट्स एशिया, यूरोप और लैटिन अमेरिका के तीस देशों में स्थानीय समाचार आउटलेट के रूप में काम कर रही हैं. नवंबर 2023 में, दक्षिण कोरिया की जासूसी एजेंसी, नेशनल इंटेलिजेंस सर्विस (एनआईएस) ने 38 फर्जी कोरियाई भाषा वाली न्यूज़ वेबसाइट्स की पहचान की थी, जिन पर चीन की जनसंपर्क फर्म्स हैमाई और हैक्सुन से संबंध होने का संदेह था.
चीन खुद भी हुआ परेशान
वैसे, दूसरों को परेशान करने वाला चीन खुद भी फेक न्यूज फैलाने वालों से परेशान है. उसने कुछ वक्त पहले बड़ी संख्या में ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट्स को बैन किया था जो फर्जी खबरें फैला रहे थे. पिछले साल मई में खबर आई थी कि अब चीन ने एक लाख ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट बंद करने का फैसला किया है, जो फेक न्यूज फैला रहे थे. इनमें सबसे ज्यादा Weibo के अकाउंट हैं, जिसे चाइनीज ट्विटर कहा जाता है.
मामला SC में है और अगले 2-3 हफ्ते में अंतिम फैसला आने की संभावना है. फिर भी, यदि COC कंपनियों को ARC को बेचने का कदम उठाती है तो कर्मचारी संघ विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.
पलक शाह
HNG रिजोल्यूशन भारत में सबसे लंबी चलने वाली कॉर्पोरेट दिवाला प्रक्रियाओं में से एक है. दो वर्षों से अधिक समय से, यह सौदा गंभीर विवाद से गुजर रहा है, जहां भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम तीन पूर्व न्यायाधीशों ने रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की कमियों को उजागर किया है. मामला अब मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के पास है. BW आपको इस तरह के विवादों से रूबरू कराता है.
COC, RP से हुई देरी
भारत की सबसे पुरानी ग्लास बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान नेशनल ग्लास (HNG) के कर्मचारियों ने कंपनी के दिवालियापन समाधान को पूरा करने में लंबी देरी के लिए ऋणदाताओं की समिति (COC) और रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को दोषी ठहराया है. जबकि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के नेतृत्व वाली COC रिज़ॉल्यूशन को अंतिम रूप देने में देरी के लिए न्यायपालिका को दोषी ठहरा रही थी, कर्मचारियों का कहना है कि OC और RP ने पिछले कुछ वर्षों में गलत कदम उठाए हैं. सबसे बड़े HNG कर्मचारी संघ द्वारा लिखे गए पत्र इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कंपनी को संभालने के लिए आवेदक की प्रारंभिक पसंद ही देरी का मुख्य कारण था.
जस्टिस सीकरी ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके सीकरी ने अपनी राय देते हुए कहा था कि कंडीशन रिज्युलेशन प्लान को कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के नियमों का अनुपालन नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा, न्यायमूर्ति सीकरी ने यह भी कहा कि RP द्वारा लिया गया निर्णय स्पष्ट रूप से एक आवेदक के पक्ष में था. RP द्वारा लिया गया निर्णय स्पष्ट रूप से केवल AGI के पक्ष में था जो एकमात्र अन्य था बोली लगाने वाले और जिनके पास सीसीआई की मंजूरी नहीं थी, यदि आरपी का निर्णय नहीं लिया गया होता, तो एजीआई की संकल्प योजना मतदान के लिए पात्र नहीं होती.
क्या कहते हैं जस्टिस एनवी रमन्ना?
वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना की राय में RP के कार्यों ने AGI को अनुचित लाभ दिया होगा. दिलचस्प बात यह है कि रमन्ना ने यह भी कहा कि AGI की रिज़ॉल्यूशन प्लान पहली बार में मतदान के लिए पात्र नहीं होगी क्योंकि योजना जमा करने के साथ-साथ मतदान की तारीख पर एजीआई के पास सीसीआई के समक्ष कोई आवेदन लंबित नहीं था. फिर भी RP ने AGI की समाधान योजना पर अत्यधिक भरोसा जताया है. इस तर्क में दम है कि RP की कार्रवाई एक बोली लगाने वाले को विशेष प्राथमिकता देने के लिए थी और CIRP के रेगुलेशन 36 के तहत NCLT द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए.
CCI कंडीशनल अप्रूवल का रहस्य
15 मार्च, 2023 के CCI ऑर्डर से पता चलता है कि CCI की पहली राय यह थी कि HNG और AGI के संयोजन के परिणामस्वरूप सामान्य रूप से और उप-कंटेनर ग्लास पैकेजिंग में 'कंपटीशन पर सराहनीय प्रतिकूल प्रभाव' पड़ने की संभावना है. हालाँकि, CCI ने AGI द्वारा संशोधनों का प्रस्ताव रखा जिसमें HNG के ऋषिकेश संयंत्र का डिवेस्टमेंट शामिल था, जिससे AGI के प्रस्तुतीकरण से प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव कम हो जाएगा. इस प्रकार, CCI ने इस संशोधन के आधार पर ही AGI को मंजूरी दे दी. संशोधन केवल 10 और 14 मार्च को प्रस्तुत किए गए थे और CCI ऑर्डर 15 मार्च को पारित किया गया था. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि CCI ऑर्डर पूरी तरह से AGI की प्रस्तुति पर आधारित है और इसे सत्यापित करने और जांचने का मौका नहीं मिला है. यदि AGI की दलीलें झूठी साबित हुईं तो CCI ऑर्डर का आधार गलत हो जाएगा और रद्द कर दिया जाएगा.
क्या सशर्त मंजूरी की अनुमति है?
जस्टिस रमन्ना ने कहा इसके साथ ही कहा कि किसी रिज़ॉल्यूशन प्लान को सशर्त मंजूरी नहीं दी जा सकती. पूर्व CJI ने Ebix Singapore v/s CoC of Educomp Ltd के COC मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जहां यह माना गया था कि भविष्य की घटनाओं/बातचीत के लिए सशर्त एक रिज़ॉल्यूशन प्लान को वर्तमान स्वरूप में अप्रूव्ड नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि HNG के अधिग्रहण से प्रत्यक्ष होरिजेंटल ओवरलैप और वर्टिकल ओवरलैप भी होंगे और कंपटीशन एक्ट की धारा 5 की कठोरता को आकर्षित किया जाएगा. मामला अब SC में है और अगले 2-3 हफ्ते में अंतिम फैसला आने की संभावना है. फिर भी, यदि COC कंपनियों को ARC को बेचने का कदम उठाती है तो कर्मचारी संघ कड़ा विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.
HNG इनसोलवेंसी मामला भारत में सबसे लंबे समय से लंबित डेब्ट रिज्यूलेशन में से एक है और यह कई विवादों से घिरा रहा है, मुख्य रूप से रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) द्वारा अपनाई गई अत्यधिक खराब प्रक्रिया के कारण. भारत के दो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एनवी रमना और एके सीकरी ने HNG समाधान मामले में RP की संदिग्ध भूमिका पर विस्तृत राय दी है.
फॉर्म H के पीछे की कहानी
फॉर्म H, IBC डेब्ट रिज्यूलेशन में एक कंपाइलेशन सर्टिफिकेट है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सौदे के लिए कोई शर्त नहीं हो सकती है. HNG ग्लास मामले में फॉर्म H आवेदक के लिए भविष्य के CCI अप्रूवल पर निर्भर करता है. रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल की ओर से निर्णायक एप्लीकेंट को यह फॉर्म H देता है. इससे पता चलता है कि HNG के संबंध में फाइनल प्लान कंडीशन पर आधारित थी, जिसकी भारतीय दिवालियापन संहिता के तहत अनुमति नहीं है. इसके अलावा RP ने फॉर्म H में यह भी उल्लेख किया है कि HNG एक चालू चिंता का विषय है, जो 15 मार्च, 2023 के सीसीआई के आदेश का खंडन करता है, जिसमें पैरा 87 में निष्कर्ष निकाला गया है कि HNG एक चिंता का विषय नहीं है. यदि कंपनी एक चालू संस्था थी तो उसकी संपत्तियां नहीं बेची जा सकतीं.
AGI ग्रीनपैक के स्टॉक एक्सचेंज खुलासे पर मंडरा रहा है संकट
कर्नाटक के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन का मानना है कि AGI ने CCI की मंजूरी के बारे में खुलासा किया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन ने राय दी है कि शेयरधारकों को भौतिक जानकारी का खुलासा करने में विफलता के लिए बाजार नियामक सेबी को AGI और HNG दोनों के खिलाफ जांच और कार्रवाई करनी चाहिए. BW ने न्यायमूर्ति सेन के दृष्टिकोण से संबंधित दस्तावेजों को देखा है, जिसमें कहा गया है कि सौदे के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की सशर्त मंजूरी के संबंध में AGI और HNG द्वारा चयनात्मक खुलासे SEBI और स्टॉक एक्सचेंज डिस्क्लोजर रूल्स का उल्लंघन हैं.
एजीआई शेयर मूल्य का ड्रीम रन
अप्रैल और अक्टूबर के बीच AGI के शेयर की कीमत में 334 रुपये के निचले स्तर से लेकर 1089 रुपये के उच्चतम स्तर तक 236 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. विशेष रूप से, एजीआई ग्रीनपैक द्वारा 16.03.2023 को भेजा गया पत्र स्टॉक एक्सचेंजों को CCI की मंजूरी के बारे में सूचित करता है, यह उल्लेख करने में स्पष्ट रूप से विफल रहता है कि दी गई मंजूरी एजीआई द्वारा प्रस्तावित संशोधन को क्रियान्वित करने पर सशर्त थी, जो कि HNG के ऋषिकेश संयंत्र का स्वैच्छिक डिवेस्टमेंट है. AGI ने अपने पत्र दिनांक 16.03.2023 के माध्यम से स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया कि CCI ऑर्डर अभी इंतजार है.
भारतीय मूल के तरुण गुलाटी के पास फाइनेंस सेक्टर में लंबा अनुभव है. वह लंदन के मेयर पद का चुनाव लड़ रहे हैं.
भारतीय मूल के एक बिजनेसमैन ब्रिटेन की सियासत में पैर जमाने की कोशिश में लगे हैं. वह लंदन के मेयर (London Mayor) पद के चुनाव में हिस्सा लेने वाले हैं. आगामी 2 मई को यह साफ हो जाएगा कि स्थानीय जनता उनकी दावेदारी को कितना पसंद करती है. दिल्ली से रिश्ता रखने वाले तरुण गुलाटी (Tarun Ghulati) का कहना है कि लंदन के नागरिकों को सभी दलों ने निराश किया है. इसलिए वह चुनावी मैदान में उतरे हैं, ताकि इस शहर को एक अनुभवी सीईओ की तरह संभाल सकें.
सादिक खान से मुकाबला
भारतीय मूल के तरुण गुलाटी का मुकाबला पाकिस्तानी मूल के लेबर पार्टी लीडर सादिक खान से है. सादिक लंदन के पहले मुस्लिम मेयर ही नहीं, बल्कि यूरोपियन यूनियन की किसी भी राजधानी के पहले मुस्लिम मेयर भी हैं. उन्होंने 2016 में कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार जैक गोल्डस्मिथ को हराया था. गुलाटी के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी, लेकिन माना जाता है कि लंदन में रहने वाले भारतीयों के साथ ही उनकी दूसरे समुदायों के बीच भी अच्छी पकड़ है और इसका फायदा उन्हें मिल सकता है.
13 उम्मीदवार हैं मैदान में
दिल्ली में जन्मे 63 वर्षीय बिजनेसमैन तरुण गुलाटी लंदन की तस्वीर बदलना चाहते हैं. 2 मई को होने वाले चुनाव के लिए कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं. गुलाटी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. अपने चुनावी भाषण में उन्होंने कहा था - मैं मेयर के रूप में लंदन की बैलेंसशीट इस तरह बनाऊंगा कि यह निवेशकों का सबसे पसंदीदा और सुविधाजनक विकल्प हो. सभी शहरवासियों की सुरक्षा और समृद्धि की रक्षा की जाएगी. मैं एक अनुभवी सीईओ की तरह लंदन की तस्वीर बदलना चाहता हूं.
कैसा है गुलाटी का प्रोफाइल?
तरुण गुलाटी का जन्म भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ था, लेकिन वह पिछले 20 सालों से लंदन में रह रहे हैं. वह Squared Watermelon Ltd के फाउंडर एवं सीईओ हैं. गुलाटी एशिया पैसेफिक, मिडिल ईस्ट अफ्रीका के 7 देशों में काम कर चुके हैं. वह HSBC के साथ इंटरनेशनल मैनेजर के तौर पर भी जुड़े रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने भारत की सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी UTI के ग्लोबल सीईओ के रूप में भी सेवाएं दी हैं. तरुण गुलाटी Citibank India में रीजनल हेड सेल्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन, क्रेडिट एंड रिस्क की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. साथ ही विभिन्न समितियों और कंपनियों के बोर्ड में भी शामिल हैं. उनके पास वित्तीय क्षेत्र में एक लंबा अनुभव है.
पिछले कुछ समय से बैंक डिपॉजिट में कमी से जूझ रहे हैं. यानी कि लोग अब बैंकों में पैसा जमा कराने में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे.
बैंक (Banks) आजकल एक नई समस्या का सामना कर रहे हैं. बैंकों में पैसा जमा (Bank Deposit) कराने वालों की संख्या में कमी आई है या कह सकते हैं कि लोगों ने अब बैंकों में अपना पैसा डिपॉजिट करना कम कर दिया है. देश के अधिकांश बैंक इस समस्या से जूझ रहे हैं, जो उनके भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) ने इस स्थिति पर चिंता जताई है. साथ ही उसने यह भी कहा है कि अगर यही हालात बने रहते हैं, तो लोगों के लिए लोन लेना कठिन हो जाएगा.
चिंतित बैंकों ने कस ली कमर
बैंक पिछले कुछ समय से घटते डिपॉजिट की समस्या से जूझ रहे हैं. S&P ने भले ही इस पर अभी चिंता जाहिर की हो, लेकिन बैंकों को बिगड़ती स्थिति का आभास है. इसलिए उन्होंने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है. कुछ सरकारी बैंकों ने इसके लिए बाकायदा अलग टीम तैयार की है, जिसका काम काम केवल घटते डिपॉजिट को बढ़ाना है. इसके अलावा भी बैंक लोगों को पैसा जमा कराने के लिए अलग-अलग तरह से प्रेरित करने में जुटे हैं.
Loan लेने वालों की संख्या बढ़ी
बैंक डिपॉजिट भले ही घट रहा है, लेकिन बैंकों से लोन लेने वालों की कोई कमी नहीं है. बैंकों की लोन ग्रोथ लगातार बढ़ रही है. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि डिपॉजिट में लगातार कमी से बैंक लोन संबंधी नियमों को सख्त बना सकते हैं और लोगों के लिए लोन लेना वर्तमान जितना सरल नहीं रह जाएगा. दरअसल, बैंकों में लोग जो पैसा जमा करते हैं, बैंक उसी को कर्ज के रूप में देकर ब्याज से मुनाफा कमाते हैं. ऐसे में अगर बैंकों में पैसा ही जमा नहीं होगा, तो उनके पास लोन देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं होगा. लिहाजा, लोन के आसान नियमों को कड़ा कर देंगे.
बैंक ऐसा करने को होंगे मजबूर
चालू वित्त वर्ष में भारतीय बैंकों की लोन वृद्धि, प्रॉफिटेबिलिटी और संपत्ति की गुणवत्ता मजबूत रहेगी. हालांकि, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि बैंक अपनी लोन वृद्धि को धीमा करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि जमा राशि समान गति से नहीं बढ़ रही है. एशिया-प्रशांत में बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बैंकिंग अपडेट में S&P ग्लोबल रेटिंग्स की निदेशक एसएसईए निकिता आनंद ने कहा चालू वित्त वर्ष में यदि जमा वृद्धि, विशेष रूप से खुदरा जमा की गति धीमी रहती है, तो क्षेत्र की मजबूत ऋण वृद्धि 16% से घटकर 14% रह जाएगी.
लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट
आनंद ने कहा कि प्रत्येक बैंक में लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट आई है. लोन वृद्धि डिपॉजिट वृद्धि की तुलना में दो-तीन प्रतिशत अधिक है. लोन वृद्धि सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में हुई है. इनमें यह लगभग 17-18 प्रतिशत रही है. जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यानी कि सरकारी बैंकों में यह 12-14 प्रतिशत देखी गई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिपॉजिट के घटने से बैंकों को लोन देने में परेशानी होगी. लिहाजा, वे कर्ज देने की प्रक्रिया को मुश्किल कर सकते हैं. इसका मतलब है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं रह जाएगी कि आवेदन करने वालों को लोन मिल ही जाए.
इस वजह से घट रहा आकर्षण
बैंकिंग सेक्टर्स से जुड़े एक्सपर्ट्स का मानना है कि डिपॉजिट में कमी की एक सबसे बड़ी वजह है इन्वेस्टमेंट के ढेरों विकल्प. उनके अनुसार, बैंकों में पैसा रखना अब उतना आकर्षक नहीं रहा है. सेविंग अकाउंट पर बैंक साधारण ब्याज देते हैं. बैंक में खुलाए जाने वाले बचत खाते पर सामान्यतः 3 से 5 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है. कुछ प्राइवेट और स्मॉल फाइनेंस बैंक बचत खाते पर 7% तक इंटरेस्ट रेट भी ऑफर करते हैं, लेकिन यह डिपॉजिट रकम की सीमा पर निर्भर करता है. वहीं, म्यूचुअल फंड या कुछ दूसरी इन्वेस्टमेंट स्कीम्स में इससे ज्यादा अच्छा रिटर्न मिल जाता है. इसलिए लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए अब उसे म्यूचुअल फंड आदि में निवेश करने लगे हैं. इसी तरह, शेयर बाजार की तरफ भी लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है, निसंदेह बाजार में जोखिम बैंक डिपॉजिट से ज्यादा है. मगर रिटर्न की संभावना भी ज्यादा रहती है. उनका कहना है कि बैंकों को लोगों को आकर्षित करने के लिए कुछ नया करना होगा.
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है.
दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क (Elon Musk) की इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) की भारत में एंट्री कब होगी? इस सवाल का जवाब देना फिलहाल मुश्किल हो गया है. मस्क की 21-22 अप्रैल की प्रस्तावित भारत यात्रा में इस संबंध में ऐलान की पूरी उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त पर मस्क ने भारत आने का इरादा टाल दिया. हालांकि, वह इस साल के अंत में भारत आने की बात कह रहे हैं पर उसमें अभी बहुत समय है और इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि तब इस बार की तरह दौरा न टले. लिहाजा, ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो गया है कि क्या एलन मस्क की भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ है?
चुनौतियों का दिया था हवाला
एलन मस्क ने अपनी भारत यात्रा टालने का ऐलान चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में छपी उस रिपोर्ट के बाद किया, जिसमें टेस्ला की भारत में सफलता पर शंका जाहिर की गई थी. ग्लोबल टाइम्स ने टेस्ला के भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक तरह से यह साफ कर दिया था कि चीनी सरकार इससे खुश नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया था कि टेस्ला के भारत में EV प्लांट लगाने से भारत को जरूर फायदा होगा, लेकिन यह टेस्ला के लिए फायदे का सौदा नहीं रहने वाला. तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.
पूरी तस्वीर बदलने की है शंका
अमेरिका के बाद चीन टेस्ला का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. ऐसे में कंपनी का चीन के बजाए भारत पर फोकस करना बीजिंग को बिल्कुल भी रास नहीं आएगा. मस्क पहले चाहते थे कि वह चीन में निर्मित अपनी कारों को भारतीय बाजार में उतारें और संभावनाओं का पता लगाने के बाद यहां प्लांट लगाने का फैसला लें. लेकिन भारत सरकार के इंकार के बाद उनके लिए प्लांट लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. चीनी सरकार को मस्क की पहली वाली चाहत से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि उससे चीन में टेस्ला के उत्पादन में ही इजाफा होता. मगर प्लांट लगाने से तस्वीर पूरी तरह पलट सकती है.
चीन को सता रहा नुकसान का डर
भारत में बिजनेस के लिए अनुकूल स्थितियां मस्क को बीजिंग के बजाए नई दिल्ली पर फोकस करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं. और यदि ऐसा होता है, तो चीन को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना होगा. लिहाजा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मस्क की प्रस्तावित भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ हो. बता दें कि टेस्ला वैश्विक स्तर पर कैलिफोर्निया, चीन, टेक्सास और जर्मनी में इलेक्ट्रिक कार कारखाने संचालित करती है. चीन स्थित फैक्ट्री टेस्ला के ग्लोबल प्रोडक्शन नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हाल के वर्षों में यहां टेस्ला की EV कारों के कुल उत्पादन का आधे से अधिक तैयार हुआ है.
परेशान करने में माहिर है China
चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत के प्रति प्यार दर्शाने वाली कंपनियों को परेशान करने की कला में माहिर है. आईफोन बनाने वाली Apple से चीनी सरकार काफी नाराज है, क्योंकि वह भारत के काफी करीब आ गई है. कुछ समय पहले कम्युनिस्ट सरकार ने अपने अधिकारियों को iPhone इस्तेमाल न करने का अघोषित फरमान सुनाया था. इसे Apple की भारत से करीबी के परिणाम के तौर पर ही देखा गया था. इसी तरह, जब ताइवान की दिग्गज कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी फॉक्सकॉन (Foxconn) ने भारत में बड़े निवेश की इच्छा जाहिर की, तो चीन इसे पचा नहीं पाया. उसने फॉक्सकॉन के खिलाफ जांच शुरू कर दी. स्थानीय टैक्स विभाग ने फॉक्सकॉन की सहयोगी कंपनियों का ऑडिट किया. इसके अलावा, नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री ने हेनान और हुबेई प्रांतों में कंपनी के लैंड यूज की जांच के भी आदेश दिए.
Luxshare ने बदल लिया था रास्ता
चीनी सरकार की बदले की इस कार्रवाई के चलते उन कंपनियों में भय व्याप्त हो गया है, जो Apple और Foxconn की तरह भारत में संभावनाएं तलाशना चाहती हैं. शायद यही वजह रही कि लक्सशेयर (Luxshare) ने भारत का रुख करने के बजाए वियतनाम में पिछले साल 330 मिलियन डॉलर का निवेश कर दिया. इस चीनी कंपनी ने पहले भारत में निवेश का फैसला किया था, लेकिन अचानक योजना में बदलाव करते हुए उसने वियतनाम में निवेश कर डाला. Luxshare भी Foxconn की तरह Apple के लिए कंपोनेंट बनाती है. Foxconn जहां कॉन्ट्रैक्ट पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. वहीं, Luxshare बड़ी कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में शुमार है.
क्या मस्क को किया गया विवश?
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है. इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि शी जिनपिंग की सरकार ने टेस्ला के खिलाफ इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित कर दी हों कि मस्क को फिलहाल भारत से दूरी बनाने को विवश होना पड़ा हो. ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से चीनी सरकार ने अपनी नाखुशी तो जाहिर कर ही दी थी. मस्क के लिए चीन टेस्ला का जमा हुआ बाजार है और भारत में अभी उन्हें पैर जमाने हैं. ऐसे में उनके लिए चीन को नाराज करना मुश्किल है. चलिए यह भी जान लेते हैं कि ग्लोबल टाइम्स ने किस तरह मस्क को डराने की कोशिश की.
Tesla चीफ को इस तरह डराया गया
ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें ऐसे कई कारणों का हवाला दिया गया है जिसकी वजह से भारत में टेस्ला का सफर अच्छा नहीं रहेगा. रिपोर्ट में कहा गया कि टेस्ला मिड एवं हाई-एंड सेक्टर और परिपक्व बाजारों पर ध्यान केंद्रित करती है. ऐसे में भारत के बेहद कम तैयारी वाले और अपरिपक्व बाजार में उसे सफलता मिलेगी या नहीं, कहना मुश्किल है. चीन के मुताबिक, भारत का ईवी बाजार बढ़ रहा है, लेकिन इसका आकार अभी काफी छोटा है. भारत में EV के लिए बुनियाद ढांचे का अभाव है. यहां पर्याप्त संख्या में पब्लिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. ऐसे में तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.