प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhanmantri Jan Dhan Yojna) की बदौलत अब लाखों लोग बैंकिंग क्षेत्र में शामिल हो पाए हैं.
Dr. Anil Aggarwal, Member of Parliament, Rajya Sabha
2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने पर प्रमुख रूप से ध्यान दे रहा है. देश के नागरिकों के लिए कई महत्वपूर्ण अभियानों की शुरुआत की गई और उनके माध्यम से भी इस लक्ष्य को प्रदर्शित किया गया है. स्वच्छ भारत अभियान (Swachch Bharat Mission) का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करना है और यह अभियान सभी के जीवन में सुधार लाने की सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है. मिशन LiFE, (Mission LiFE) पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर भारत द्वारा चलाया गया एक वैश्विक जन आंदोलन है.
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास
प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhanmantri Jan Dhan Yojna) की बदौलत अब लाखों लोग बैंकिंग क्षेत्र में शामिल हो पाए हैं. आयुष्मान भारत-पीएम जन आरोग्य योजना (Ayushman Bharat-PM Jan Arogya Yojna) ने क्वालिटी हेल्थकेयर को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए काफी सुलभ बनाया है. 'नारी शक्ति' देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण घटक है और 2014 की शुरुआत से ही भारत सरकार ने 2015 में शुरू की गई ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ (Beti Bachao Beti Padhao) जैसी पहल के माध्यम से भारतीय समाज में व्यवहारिक बदलाव को प्रोत्साहित किया है. विश्व स्तर पर भी इस योजना की काफी तारीफ की गई है. इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को समर्थन देना और उन्हें सशक्त बनाना है. सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की भावना में महिलाएं सामान रूप से सभी सरकारी योजनाओं और पहलों की लाभार्थी रही हैं.
डिजिटल इंडिया मिशन से मिला डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
‘डिजिटल इंडिया अभियान’ (Digital India Mission) तकनीकी रूप से कुशल जनता के लिए एक काफी महत्वपूर्ण कदम है. ऑनलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर और इंटरनेट कनेक्टिविटी के माध्यम से नागरिकों के लिए सरकारी सेवाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए 2015 में यह मिशन शुरू किया गया था. आज के युग में इंटरनेट तक पहुंच सार्वभौमिक है और हर नागरिक को महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने, मांग पर गवर्नेंस, हमारे देश के लोगों को सशक्त बनाने और डिजिटलाइजेशन के हमारी सरकार के विजन की बदौलत ही संभव हुआ है.
Start-Up India से बिजनेस को मिला सहारा
2016 में शुरू की गई स्टार्ट-अप इंडिया (Start-Up India) जैसी योजनाओं के माध्यम से, हमने इनोवेशन का केंद्र बनने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. 2021-22 में भारतीय स्टार्ट-अप्स ने रिकॉर्ड 35 बिलियन डॉलर्स जुटाए और 2022-23 में इन स्टार्ट अप्स ने 24 बिलियन डॉलर की फंडिंग हासिल की थी. आज भारत दुनिया में उद्यमियों का दूसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बन गया है. NEP 2020 शिक्षा प्रदान करने के लिए क्वालिटी को केंद्र में रखता है. यह पॉलिसी बचपन की प्रारंभिक शिक्षा को औपचारिक बनाना, बहुभाषावाद, विभिन्न धाराओं (कला, विज्ञान एवं कॉमर्स) के बीच किसी प्रकार के अलगाव नहीं होने, सीखने की इच्छा को बढ़ावा देने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल जैसे कई सुधारों का सुझाव देती है.
आत्मनिर्भरता है सबसे बड़ा लक्ष्य
आने वाले 25 वर्षों में भारत के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य 'आत्मनिर्भरता' को प्राप्त करना है. आज, हमारे पास दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी है जो इस लक्ष्य को पूरा कर सकती है. इस वक्त सामाजिक क्षेत्र पर भारत सरकार 21.03 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है और यह संख्या कुल केंद्रीय बजट का लगभग 46% है. NDA की सरकार के तहत उपलब्धियों की यह श्रृंखला 'विश्वगुरु' बनने की दिशा में हमारे द्वारा लिए गए कदमों को दर्शाती है.
इधर ध्यान देना भी है जरूरी
अमृत काल में भारत प्रगति और समृद्धि की ओर अग्रसर है, लेकिन यह विकास सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक भी है और नागरिक समाज संगठन (CSO) इस यात्रा का समर्थन करने वाले सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक के रूप में काम करते हैं. UNDP की मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) जैसे विश्वसनीय स्त्रोतों के अध्ययन से पता चलता है कि सामाजिक क्षेत्र के कल्याण और किसी देश के विकास के बीच सीधा संबंध होता है. UNDP की मानव विकास रिपोर्ट सुझाती है कि किसी राष्ट्र की सफलता का मूल्यांकन केवल आर्थिक उत्पादन पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इस बात पर भी किया जाना चाहिए कि विकास किस हद तक लोगों के जीवन में सुधार ला रहा है.
लोगों को शामिल करने से होगा समाज का विकास
OECD का जीवन सूचकांक, देश के विकास और समृद्धि के महत्वपूर्ण संकेतक के रूप में सभी लोगों को विकास में शामिल करने पर भी जोर देता है. यह रेखांकित करता है कि एक राष्ट्र की सफलता आर्थिक मापदंडों से परे है और इसमें सामाजिक एकता, समान अवसर और असमानता के निम्न स्तर जैसे कारक शामिल होने चाहिए. सूचकांक इस बात को भी स्वीकार करता है कि लोगों को शामिल करने की सोच को बढ़ावा देने वाली सोसायटी लोगों के कल्याण, जीवन की बेहतर क्वालिटी और सतत विकास का अनुभव करती है, जो देश की प्रगति को मापने के विजन को दर्शाता है.
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खालिस्तान के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. इस तनाव का असर दोनों देशों के व्यापार पर भी पड़ रहा है.
भारत से बैर लेकर कनाडा (India-Canada Tension) मुश्किल में पड़ गया है. एक तरफ जहां भारत सरकार कनाडा के खिलाफ कड़े कदम उठा रही है. वहीं, भारतीय कंपनियां भी कनाडा को झटका दे रही हैं. आनंद महिंद्रा के नेतृत्व वाले महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह ने कनाडा से अपना कारोबार समेट लिया है. इसी तरह, JSW स्टील ने भी कनाडा की टेक रिसोर्सेज के साथ होने वाली एक डील की रफ्तार धीमी कर दी है. माना जा रहा है कि आने वाले समय में कुछ और कंपनियां भी कनाडा को लेकर कठोर फैसले ले सकती हैं.
इन कंपनियों का बड़ा निवेश
भारत और कनाडा के रिश्ते अच्छे रहे हैं. इस वजह से भारतीय कंपनियों ने कनाडा में बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है. हमारी दिग्गज IT कंपनियां Wipro, TCS और Infosys कनाडा की इकॉनमी में अच्छा-खासा योगदान देती हैं. यदि आगे दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ता है और ये कंपनियां कनाडा को गुडबाय बोलती हैं, तो उत्तरी अमेरिका के इस देश के सामने गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा. हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे. इन भारतीय कंपनियों ने टोरंटो सहित कनाडा के कई शहरों में सेंटर खोले हुए हैं.
लगाए हैं 6.6 अरब डॉलर
Confederation of Indian Industry (CII) की एक रिपोर्ट बताती है कि करीब 30 भारतीय कंपनियों ने कनाडा में 6.6 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया हुआ है. ये कंपनियां हजारों लोगों को नौकरी भी दे रही हैं. ऐसे में यदि बढ़ते तनाव के मद्देनजर भारतीय कंपनियां कनाडा से कारोबार समेटती हैं, तो कनाडा की मुश्किलों में भारी इजाफा हो जाएगा. बता दें कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध काफी अच्छे रहे हैं. दोनों देश एक-दूसरे के यहां से कुछ न कुछ मंगवाते रहे हैं और अपनी जरूरतों को पूरा करते रहे हैं. फाइनेंशियल ईयर 2023 में भारत ने कनाडा 4.11 अरब डॉलर (करीब 34 हजार करोड़ रुपए) का सामान निर्यात किया था. जबकि उसका आयात 4.17 अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपए) का था. वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान दोनों देशों के बीच 7 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा बढ़कर 8.16 अरब डॉलर पहुंच गया.
कनाडा की भी हिस्सेदारी
कनाडा ने भी भारतीय बाजार में पैसा लगा रखा है. एक रिपोर्ट बताती है कि कनाडा के बड़े पेंशन फंड्स का भारत में अगस्त तक 1.77 लाख करोड़ रुपए का निवेश था. इसमें से 1.5 लाख करोड़ इक्विटी मार्केट्स में इन्वेस्ट किए हुए हैं. कनाडा के पेंशन फंड CPPIB का भारत की कई कंपनियों में पैसा लगा है. इस लिस्ट में लॉजिस्टिक्स कंपनी डेल्हीवरी, कोटक महिंद्रा बैंक, जोमैटो, ब्लिंकिट, पेटीएम, इंडस टावर, नायका, विप्रो, इन्फोसिस और ICICI बैंक शामिल हैं. इसके अलावा, CPPIB ने देश की कई अनलिस्टेड कंपनियों में भी निवेश किया हुआ है.
इनका होता है आयात-निर्यात
भारत द्वारा कनाडा से मंगाए जाने वाले सामान की बात करें, तो उसमें न्यूजप्रिंट, कोयला, फर्टिलाइजर, वुड पल्प और एल्युमीनियम जैसे सामान शामिल हैं. इसके अलावा, भारत में कनाडा की दाल की काफी खपत है. साथ ही, भारत कनाडा से कृषि-बागबानी से जुड़े उत्पाद भी खरीदता है. विवाद बढ़ने की सूरत में भारत इन आइटम्स की खरीदारी के लिए किसी दूसरे देश का रुख कर सकता है, जिसका सीधा असर कनाडा की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. इसी तरह, कनाडा मेडिसिन, रेडीमेड कपड़े, अनस्टिच कपड़े, लोहा- स्टील, हीरे-जवाहरात आदि भारत से आयात करता है.
खालिस्तान के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. भारत ने कनाडा के नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं भी निलंबित कर दी हैं.
भारत और कनाडा के बीच विवाद (India-Canada Tension) बढ़ने से एक सवाल यह भी उत्पन्न हो गया है कि क्या देश में दालों के दाम बढ़ने वाले हैं? दरअसल, भारत कनाडा से बड़ी मात्रा में दाल, खासकर मसूर खरीदता है. अब जब दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई को आतुर नजर आ रहे हैं, तो क्या आयात प्रभावित होगा? खालिस्तान आतंकी की मौत को लेकर भारत और कनाडा आमने-सामने हैं. दोनों के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया है कि भारत सरकार ने कनाडा के नागरिकों की देश में एंट्री बैन कर दी है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में भारत और भी कुछ कड़े फैसले ले सकता है.
खपत से कम होती है पैदावार
भारत में दलहन की खपत सालाना करीब 230 लाख टन है, जबकि पैदावार इससे कम होती है. इसलिए भारत कनाडा से दाल आयात करता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 22-23 में भारत ने 8.58 लाख टन मसूर दाल का आयात किया था, जिसमें से 4.8 लाख टन अकेले कनाडा से था. जबकि इस जून तिमाही के दौरान 3 लाख टन मसूर का आयात किया गया और इसमें कनाडा की हिस्सेदारी 2 लाख टन से ज्यादा रही. इसलिए आशंका जताई जा रही है कि दोनों देशों के बीच बढ़ते विवाद से आम आदमी की थाली से मसूर गायब हो सकती है, क्योंकि डिमांड के अनुरूप सप्लाई नहीं होने से कीमत बढ़ना लाजमी है.
इसलिए नहीं पड़ेगा कोई फर्क
हालांकि, सरकार का कहना है कि कनाडा के साथ ताजा विवाद के चलते दाल के आयात या इसकी कीमतों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. क्योंकि भारत किसी एक देश पर निर्भर नहीं है. एक मीडिया रिपोर्ट में कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और व्यापार निकायों के हवाले से बताया गया है कि मौजूदा हालातों से मसूर के आयात पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. भारत पिछले कुछ समय से दाल के आयात में विविधता लेकर आया है और अब वो किसी एक देश पर बहुत अधिक निर्भर नहीं है. इसके अलावा, भारत ने हाल ही में अमेरिका से मसूर दाल के आयात को किसी भी प्रकार के सीमा शुल्क से पूरी तरह मुक्त कर दिया है. लिहाजा, दाल की कमी या कीमतें बढ़ने की आशंका नहीं है.
कनाडा को होगा बड़ा नुकसान
अधिकारियों का कहना है कि कनाडा से पहले ही बड़ी मात्रा में दाल आयात हो चुकी है. अब अमेरिकी दाल आयात पर सीमा शुल्क में छूट की अनुमति भी मिल गई है. लिहाजा, आपूर्ति संबंधी कोई समस्या नहीं है. भारत ने इस साल ऑस्ट्रेलिया से भी मसूर दाल का काफी आयात किया है. एक्सपर्ट मानते हैं कि यदि दोनों देशों के रिश्ते जल्द नहीं सुधरते और भारत सरकार कनाडा से दाल न खरीदने का फैसला लेती है, तो कनाडा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. गौरतलब है कि भारत और कनाडा दोनों एक-दूसरे से कुछ न कुछ इम्पोर्ट करते हैं. भारत द्वारा कनाडा से मंगाए जाने वाले सामान की बात करें, तो उसमें दाल के साथ-साथ न्यूजप्रिंट, कोयला, फर्टिलाइजर, वुड पल्प और एल्युमीनियम जैसे सामान शामिल हैं.
India-Canada के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है ऐसे में यह समझना ज्यादा जरूरी होता है कि इससे व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत और कनाडा (India-Canada) के बीच अब तनाव अपने उच्चतम स्टार पर पहुंचता हुआ नजर आ रहा है. मामले की शुरुआत हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) की ह्त्या से हुई थी लेकिन बा बात इतनी ज्यादा आगे जा पहुंची है कि आज भारत ने कैनेडियन नागरिकों (Canadian) के लिए वीजा बन करने का फैसला किया है. इससे पहले भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव था, लेकिन अब यह तनाव काफी ज्यादा बड़ा रूप लेता जा रहा है.
क्या है तनाव की वजह?
हरदीप सिंह निज्जर एक भारतीय कैनेडियन सिख अलगाववादी था जो खालिस्तान से जुड़ा हुआ था. इस साल जून में हरदीप सिंह की गोली मरकर हत्या कर दी गई थी. हरदीप सिंह कई भाररतीय संस्थाओं की वांटेड लिस्ट में शामिल था. 18 सितंबर को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudo) ने अपने बयान में कहा कि कनाडा की सरकार द्वारा इकट्ठा किए गए सबूतों के बाद यह बात सामने आई है कि भारतीय सरकार के एजेंट्स द्वारा ही हरदीप सिंह की ह्त्या की गई थी. कैनेडियन प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद ही भारत और कनाडा के (India-Canada) के बीच रिश्तों में तनाव काफी ज्यादा बढ़ गया था.
India-Canada का रिश्ता और व्यापार
भारत और कनाडा (India-Canada) के बीच रिश्ते काफी लंबे समय से तनाव भरे बेशक चल रहे हों, लेकिन व्यापारिक नजरिये से दोनों देशों के रिश्ते कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं. इतना ही नहीं, 2021 के दौरान कनाडा में हुई एक जनसंख्या गणना में यह बात भी सामने आई थी कि कनाडा में 14 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं और यह देश की कुल जनसंख्या का 3.7% हिस्सा हैं. इसके अलावा भारत कनाडा को प्रतिवर्ष 4.1 बिलियन डॉलर्स के एक्सपोर्ट करता है जिनमें फार्मास्यूटिकल, ज्वेलरी, टेक्सटाइल और मशीनरी जैसी वस्तुओं का प्रमुख योगदान है. दूसरी तरफ कनाडा भारत को दालों, लकड़ियों और पेपर जैसी वस्तुओं की सप्लाई प्रदान करता है.
India-Canada के बीच नहीं होगा FTA?
Assiduus Global की फाउंडर एवं CEO और भारत सरकार की सलाहकार, डॉक्टर सोमदत्ता सिंह भारत और कनाडा (India-Canada) के बीच बढ़ते तनाव के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि 2023 में भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक समझौते की बातचीत पर पूरी तरह से रोक लग गई है. भारत, कनाडा का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है. 2022 के दौरान व्यापारिक डेटा में ये बात सामने आई है कि भारत और कनाडा के बीच केवल 13.7 बिलियन डॉलर्स का व्यापार होता है जबकि कनाडा के ग्लोबल व्यापार की कीमत लगभग 1.52 ट्रिलियन डॉलर्स है. दूसरी तरफ PHD चैम्बर ऑफ कॉमर्स एवं इंडस्ट्री (PHDCCI) के प्रेसिडेंट साकेत डालमिया कहते हैं कि दोनों देशों के बीच तनाव केवल कुछ ही समय के लिए है और दोनों देशों की सरकारें जल्द ही किसी समाधान पर पहुंच जाएंगी और व्यापार को लेकर दोनों देश अपनी बातचीत आगे भी जारी रखेंगे.
India-Canada तनाव से व्यापार पर पड़ेगा असर?
साकेत कहते हैं कि क्योंकि भारत और कनाडा (India-Canada) के बीच जारी यह बातचीत डिप्लोमेटिक है तो इससे व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए. डॉक्टर सोमदत्ता सिंह का भी यही मानना है कि भारत और कनाडा के बीच जारी तनाव से व्यापार पर प्रमुख रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि दो देशों के बीच व्यापारिक संबंध कमर्शियल पहलुओं पर सोच-विचार करने के बाद ही बनते हैं और अपनी व्यापारिक इच्छाओं के अनुसार दोनों देशों में आगे भी व्यापार जारी रहेगा. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दो देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नियमों की बदौलत भी तय किये जाते हैं और तनाव के समय पर ये समझौते काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
India-Canada के बीच कैसे होगा व्यापार?
ज्यादातर कंपनियों को अपने देश की सरकार से उम्मीद होती है कि वह कंपनियों को व्यापार की सुविधापूर्ण स्थिति प्रदान करें. ऐसे में यह जानना काफी जरूरी हो जाता है कि तनाव के बीच सरकार किस तरह से व्यापार को सुलभ बना सकती है? इस विषय पर बात करते हुए डॉक्टर सोमदत्ता कहते हैं कि सबसे पहले तो कंपनियों को आशा होगी की भारत सरकार कैनेडियन सरकार के साथ मिलकर, बातचीत करके, द्विपक्षीय बातचीत के लिए और व्यापारिक समझौतों के लिए उचित स्थिति का निर्माण करेगी. दूसरा भारतीय कंपनियों को उम्मीद होगी कि उनके उत्पादों को बढ़ावा देने में सरकार उनकी सहायता करेगी. दूसरी तरफ साकेत डालमिया कहते हैं कि भारत विकासशील इकॉनमियों से संबंध बनाने में हमेशा आगे रहता है और कनाडा ऐसी ही इकॉनमियों में से एक है.
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भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक रिश्ते अच्छे रहे हैं, लेकिन अब उनके प्रभावित होने की आशंका है.
भारत और कनाडा (India-Canada) के रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही है. वैसे, खालिस्तान के मुद्दे पर दोनों के बीच मनमुटाव पुराना है, लेकिन G-20 शिखर सम्मेलन के बाद से स्थिति ज्यादा खराब हो गई है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा देश में हुई एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप लगाए जाने के बाद हालातों के जल्द सुधरने की संभावना और भी ज्यादा कम हो गई है. दोनों देशों के बीच बढ़ रहे इस तनाव का असर व्यापार पर भी पड़ा है. कनाडा ने भारत के साथ ट्रेड मिशन पर रोक लगा दी है और भारत की भी फिलहाल उससे व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने में कोई खास दिलचस्पी नहीं है.
अच्छे रहे हैं व्यापारिक संबंध
भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक संबंध काफी अच्छे रहे हैं. दोनों देश एक-दूसरे के यहां से कुछ न कुछ मंगवाते रहे हैं और अपनी जरूरतों को पूरा करते रहे हैं. फाइनेंशियल ईयर 2023 में भारत ने कनाडा 4.11 अरब डॉलर (करीब 34 हजार करोड़ रुपए) का सामान निर्यात किया था. जबकि उसका आयात 4.17 अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपए) का था. वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान दोनों देशों के बीच 7 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा बढ़कर 8.16 अरब डॉलर पहुंच गया.
भारत में किया है बड़ा निवेश
व्यापारिक रिश्तों में मधुरता दोनों देशों के लिए जरूरी है. कनाडा ने भारतीय बाजार में अच्छा-खासा निवेश कर रखा है. एक रिपोर्ट बताती है कि कनाडा के बड़े पेंशन फंड्स का भारत में अगस्त तक 1.77 लाख करोड़ रुपए का निवेश था. इसमें से 1.5 लाख करोड़ इक्विटी मार्केट्स में इन्वेस्ट किए हुए हैं. कनाडा के पेंशन फंड CPPIB का भारत की कई कंपनियों में पैसा लगा है. इस लिस्ट में लॉजिस्टिक्स कंपनी डेल्हीवरी, कोटक महिंद्रा बैंक, जोमैटो, ब्लिंकिट, पेटीएम, इंडस टावर, नायका, विप्रो, इन्फोसिस और ICICI बैंक शामिल हैं. इसके अलावा, CPPIB ने देश की कई अनलिस्टेड कंपनियों में भी निवेश किया हुआ है. यदि दोनों देशों के रिश्ते नहीं सुधरते, तो इस निवेश में कमी आ सकती है.
इनका होता है आयात-निर्यात
भारत द्वारा कनाडा से मंगाए जाने वाले सामान की बात करें, तो उसमें न्यूजप्रिंट, कोयला, फर्टिलाइजर, वुड पल्प और एल्युमीनियम जैसे सामान शामिल हैं. इसके अलावा, भारत में कनाडा की दाल की काफी खपत है. साथ ही, भारत कनाडा से कृषि-बागबानी से जुड़े उत्पाद भी खरीदता है. विवाद बढ़ने की सूरत में भारत इन आइटम्स की खरीदारी के लिए किसी दूसरे देश का रुख कर सकता है, जिसका सीधा असर कनाडा की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. इसी तरह, कनाडा मेडिसिन, रेडीमेड कपड़े, अनस्टिच कपड़े, लोहा- स्टील, हीरे-जवाहरात आदि भारत से आयात करता है. कुल मिलाकर कहें, तो अच्छे रिश्ते दोनों देशों के लिए जरूरी हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो नुकसान ज्यादा कनाडा का होगा.
प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी जांच में पाया है कि महादेव बेटिंग ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकार ने अपनी शादी में 200 करोड़ खर्च किए थे.
क्या आपने सौरभ चंद्राकार (Saurabh Chandrakar) का नाम सुना है? कुछ समय पहले तक इस नाम के खास चर्चे नहीं थे, लेकिन अब एकदम से सुर्खियों में आ गया है. इसकी वजह है प्रवर्तन निदेशालय (ED) की सौरभ चंद्राकार पर नजर और जांच में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी. चौंकाने वाली इस लिहाज से कि सौरभ ने अपनी शादी पर जो खर्चा किया है, उसे जानने के बाद आपको स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल (Lakshmi Mittal) और मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के परिवार की शादियां याद आ जाएंगी. इन शादियों में दिल खोलकर खर्चा किया गया था. बता दें कि लक्ष्मी मित्तल ने अपनी बेटी की शादी पेरिस में की थी, जिसमें 240 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.
रिश्तेदारों के लिए प्राइवेट जेट
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ED ने जांच में पाया है कि महादेव बेटिंग ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकार (Saurabh Chandrakar) ने दुबई में धूमधाम से शादी रचाई थी. इस शादी पर उसने करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे. नागपुर से अपने रिश्तेदारों और सिलेब्रिटीज दुबई लाने के लिए उसने प्राइवेट जेट का इंतजाम किया था. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि शादी का अधिकांश खर्चा उसने कैश में किया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सौरभ के पास कितनी दौलत होगी.
स्टॉक मार्केट में लगाया पैसा
ED ने इस सिलसिले में गुरुवार को महादेव ऐप से जुड़े 39 ठिकानों पर छापेमारी कर 417 करोड़ रुपए के शेयर और दूसरे एसेट्स बरामद किए थे. मूल रूप से छत्तीसगढ़ के भिलाई का रहने वाले सौरभ चंद्राकर ने दुबई को अपना ठिकाना बनाया है. वहीं से वो ऑनलाइन सट्टे का गिरोह चलाता है. जांच में यह बात भी सामने आई है कि उसने सट्टेबाजी से हुई कमाई का एक बड़ा हिस्सा भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर रखा है. चंद्राकर और उसका पार्टनर रवि उप्पल 'महादेव ऐप' के प्रमोटर हैं. दुबई में बैठकर भारत में सट्टेबाजी का कारोबार चलाते हैं.
कई सिलेब्रिटीज हुईं शामिल
सौरभ चंद्राकर की शादी इसी साल UAE के छठे सबसे बड़े शहर आरएके में हुई थी. उसने अपनी शादी के लिए वेडिंग प्लानर को 120 करोड़ रुपए का भुगतान किया था. सौरभ ने नागपुर से अपने रिश्तेदारों दुबई लाने के लिए प्राइवेट जेट भेजे थे. बताया तो यह भी जा रहा है कि शादी में परफॉर्म करने के लिए बॉलीवुड की सिलेब्रिटीज को भी बुलाया गया था और इसके लिए सारा भुगतान हवाला के जरिए कैश में किया गया. ED के मुताबिक, डिजिटल सबूतों से पता चला है कि हवाला के जरिए 112 करोड़ रुपए योगेश बापट की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी आर-1 इवेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए. इसी तरह होटल बुकिंग के लिए 42 करोड़ रुपए का पेमेंट यूएई की करेंसी में किया गया था.
भारत-अमेरिका-यूरोपीय यूनियन और सऊदी अरब के बीच जिस इकॉनोमिक कॉरिडोर पर सहमति बनी है, उससे चीन के साथ-साथ तुर्की को भी मिर्ची लग रही है.
दुनिया के सबसे शक्तिशाली समूह G-20 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके भारत ने बहुत कुछ हासिल किया है. कूटनीतिक, रणनीतिक और कारोबार के लिहाज से आने वाले समय में भारत को बड़े फायदे मिलने वाले हैं. इस दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor) पर बनी सहमति को देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है. भारत, यूरोपियन यूनियन (EU), अमेरिका और सऊदी अरब ने G-20 समिट के इतर इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट पर सहमति जताते हुए एक एमओयू पर दस्तखत किए थे. इस प्रोजेक्ट में कुल 8 देश शामिल हैं.
कुल कितना आएगा खर्चा?
माना जा रहा है कि ये आर्थिक गलियारा यूरोप से एशिया तक दोनों महाद्वीपों में आर्थिक विकास को गति देगा. अमेरिका इस इकनॉमिक कॉरिडोर से बेहद खुश है और उसका कहना है कि इससे यूरोप से एशिया तक संपर्क के नए युग की शुरुआत होगी. इस कॉरिडोर के अमल में आने के बाद रेल और जहाज से भारत से यूरोप तक पहुंचा जा सकेगा. इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का जवाब माना जा रहा. इस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर कितना खर्च आएगा, फिलहाल इसकी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमान है कि इसकी लागत 20 अरब डॉलर के आसपास होगी. जानकारी के अनुसार, इस कॉरिडोर के दो हिस्से होंगे. पहला- ईस्टर्न कॉरिडोर, जो भारत को खाड़ी देशों से जोड़ेगा और दूसरा- नॉर्दर्न कॉरिडोर, जो खाड़ी देशों को यूरोप से जोड़ेगा. इस कॉरिडोर में केवल रेल नेटवर्क ही नहीं होगा, बल्कि इसके साथ-साथ शिपिंग नेटवर्क भी होगा.
चीन के बाद तुर्की का फूला मुंह
भारत की इस उपलब्धि से चीन तो चिढ़ा ही है, तुर्की को भी मिर्ची लग रही है. दरअसल, इकनॉमिक कॉरिडोर को आकार देने के लिए कुल 8 देश आगे आए हैं, इनमें भारत, UAE, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और EU शामिल हैं. हालांकि, इस प्रोजेक्ट का फायदा इस्राइल और जॉर्डन को भी मिलेगा, लेकिन ये कॉरिडोर तुर्की को बायपास करता है. इसी को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति नाराज हैं. उनका यहां तक कहना है कि तुर्की के बिना कोई गलियारा नहीं हो सकता. क्योंकि पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले ट्रैफिक को तुर्की से होकर गुजरना होगा. तुर्की उत्पादन और व्यापार का महत्वपूर्ण आधार है.
शिपिंग टाइम हो जाएगा काफी कम
माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट इकनॉमिक कॉरिडोर के अमल में आने के बाद शिपिंग टाइम 40% तक कम हो सकता है. जिसका सीधा मतलब है कि समय और पैसे की बचत. भारत से निकला सामान यूरोप कम समय में पहुंच सकेगा. इससे व्यापार बढ़ने की संभावनाएं भी उत्पन्न होंगी. एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में भारत से समुद्री रास्ते से जर्मनी तक सामान पहुंचने में एक महीना लगता है, लेकिन कॉरिडोर बनने के बाद सामान महज दो हफ्ते में पहुंच जाएगा. फिलहाल, मुंबई से निकलने वाले कार्गो कंटनेर स्वेज नहर के रास्ते यूरोप पहुंचते हैं. कॉरिडोर बनने के बाद ये कंटेनर दुबई से इजरायल के हाइफा पोर्ट तक ट्रेन से जा सकेंगे.
कारोबार नहीं होगा प्रभावित
स्वेज नहर एशिया को यूरोप से और यूरोप को एशिया से जोड़ती है. तेल का अधिकतर कारोबार इसी नहर के रास्ते होता है. ऐसे में यदि इस रूट पर कोई दिक्कत आती है, जैसे कि 2021 में एक बड़े जहाज के फंसने से हुई थी, तो कॉरिडोर के रूप में एक विकल्प भी होगा और किसी भी सूरत में अंतरराष्ट्रीय कारोबार प्रभावित नहीं होगा. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस कॉरिडोर के जरिए भारत से लेकर मिडिल ईस्ट और फिर यूरोप तक कारोबार करना तो आसान होगा ही, साथ ही एनर्जी रिसोर्सेस के ट्रांसपोर्ट और डिजिटल कनेक्टिविटी में भी मजबूती आएगी.
भारतीय प्रेस परिषद ने WHO द्वारा दिए गए सुझावों के अनुरूप आत्महत्या पर रिपोर्टिंग के लिए गाइडलाइन्स को अपनाया था.
Dr. Srinath Sridharan - Author, Policy Researcher & Corporate Advisor.
हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां ज्यादा से ज्यादा लोग आगे बढ़ना चाहते हैं और सफल होना चाहते हैं. लोगों के सफल होने की आकांक्षाओं के साथ-साथ आगे बढ़ने के मौके और सपने सीमित भी हैं और इनमें बहुत ज्यादा मुकाबला भी देखने को मिलता है. इसी बीच कोटा में जारी आत्महत्या की श्रृंखला ने हम सभी को चौंका कर रख दिया है. इन नौजवानों पर मौजूद दबाव, परिवार की उम्मीदों और कोचिंग संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका की बदौलत एक ऐसा परिदृश्य तैयार हुआ है जो पूरी तरह अनिश्चितताओं से भरा हुआ है. इन आत्महत्याओं के परिदृश्य की न्यूज कवरेज के दौरान मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर सकता है. यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भारत में आत्महत्याओं की रिपोर्टिंग उस स्तर की नहीं है जिस स्तर पर उसे होना चाहिए, जबकि इसका प्रभाव पूर्ण रूप से मौजूद है.
मीडिया निभाए अपनी जिम्मेदारी
सितंबर 2019 में भारतीय प्रेस परिषद ने न्यायधीश CK प्रसाद की अध्यक्षता में WHO द्वारा दिए गए सुझावों के अनुरूप आत्महत्याओं पर रिपोर्टिंग करने के लिए गाइडलाइन्स को अपनाया था. इन गाइडलाइन्स में साफ तौर पर कहा गया है कि जब भी कोई न्यूज एजेंसी या फिर अखबार आत्महत्या पर रिपोर्टिंग कर रहे होते हैं तो उन्हें विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए. साथ ही गाइडलाइन्स में यह भी कहा गया है कि न्यूज एजेंसियों और अखबारों को आत्महत्या के मामलों को प्रमुखता नहीं देनी चाहिए और न ही उन्हें बार-बार दोहराया जाना चाहिए. ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जो आत्महत्या के मामलों को सनसनीखेज बनाए या फिर उन्हें सामान्य दिखाए. न ही ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिनकी बदौलत लोग आत्महत्या को समस्याओं के समाधान के रूप में देखने लगें. आत्महत्या में इस्स्तेमाल किए गए तरीकों और आत्महत्या की जगह व अन्य जानकारी को साझा नहीं करना चाहिए. इतना ही नही, आत्महत्या के मामलों में सनसनीखेज हैडलाइन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. साथ ही, आत्महत्या के मामले से जुड़ी तस्वीरें, विडियो फुटेज और सोशल मीडिया लिंक पर रोक लगानी चाहिए. इन गाइडलाइन्स का बस एक ही मकसद है कि आत्महत्या के मामलों पर जिम्मेदार और संवेदनशील रिपोर्टिंग की जाए.
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस
हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है और यह इस बात पर जोर देता है कि हमें एक साथ मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने बीच से आत्महत्या की इस समस्या को दूर कर सकें. इस वक्त हमें जरूरत है कि हम एक साथ खड़े होकर करुणा और समझदारी को बढ़ावा दें, और बिना थके साथ मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाएं जहां हर जिंदगी की कीमत को समझा जाए और हर व्यक्ति मुश्किल के समय में किसी का साथ ढूंढ सके.
रिपोर्टिंग के वक्त मीडिया रखे ध्यान
हमारी सोसायटी में मीडिया प्रिंट, वेब, डिजिटल और सोशल जैसे अपने सभी रूपों में काफी शक्तिशाली रूप से मौजूद है. यह वह आइना है जो न सिर्फ हमारी दुनिया में होने वाली घटनाओं को दर्शाता है बल्कि जनता की राय भी बनाता है. जब छात्र आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दों की बात आती है तो मीडिया की जिम्मेदारी और बड़ी हो जाती है. आत्महत्या से संबंधित मुद्दों की रिपोर्टिंग करते हुए मीडिया को बहुत ज्यादा ध्यान रखना चाहिए और सहानुभूति का भी ध्यान रखना चाहिए. सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर हैडलाइन और आंकड़े के पीछे असली जिंदगियां, परिवार और समुदाय मौजूद हैं और इन आत्महत्याओं की रिपोर्टिंग से इन सभी पर असर पड़ता है. इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को सनसनीखेज बनाने से न सिर्फ मामले से जुड़े लोगों की निजता और गरिमा का हनन होता है बल्कि यह समस्या को अविरत बनाता है और इस संस्कृति को बढ़ावा भी देता है.
मीडिया का योगदान है जरूरी
इसके साथ ही आपको बता दें कि सिस्टम से जुडी उन समस्याओं को संबोधित करने में भी मीडिया काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिनकी बदौलत ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं. मीडिया ऐसी समस्याओं पर निगरानी रख सकता है और सिस्टम में, खासकर इस समस्या से संबंधित मौजूद कमियों को सामने लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस समस्या की गहराई में उतरकर एक संतुलित कवरेज प्रदान करते हुए मीडिया आवश्यक बातचीत और बदलावों में महत्त्वपूर्ण योगदान भी कर सकता है.
दिखानी चाहिए सफलता की कहानियां
आत्महत्या कोई ऐसी घटना नहीं है जिसे टाला नहीं जा सकता है. आत्महत्या को किसी द्वारा किए गए जुर्म की तरह नहीं बल्कि मानसिक समस्या के रूप में देखना चाहिए. सामाजिक दबाव, पढ़ाई का दबाव, और मानसिक हेल्थ के लिए मदद मिलने जैसे विभिन्न दबाव की जड़ों तक पहुंच कर मीडिया ज्यादा सूक्ष्म समझदारी में योगदान प्रदान कर सकता है. ऐसे लोगों की सफलता की कहानियां दिखाई जानी चाहिए जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के चुनौतियों का मुकाबला किया है और जीतकर सामने आए हैं. मीडिया के पास ताकत है कि वह हमारे समाज के लिए उम्मीद और सच्चाई का ध्वज वाहक बन सकता है.
मीडिया से आएगा सकारात्मक बदलाव
एक ऐसे देश में जहां सैकड़ों TV चैनल हैं, हजारों न्यूज पोर्टल हैं और कंटेंट की ढेर सारी मांग है, यहां कभी कभार एक जोखिम भरी दौड़ जारी रहती है और इसका आधार सनसनीखेज खबरें होती हैं. इस भीड़भाड़ वाले परिदृश्य में मीडिया ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान चाहता है, और इस दौड़ में आचार और नीति के स्टैण्डर्ड के साथ कभी-कभी समझौता भी करना पड़ता है. लेकिन समाज के पथ-प्रदर्शक के रूप में मीडिया की जिम्मेदारी काफी महत्त्वपूर्ण है. यह सिर्फ खबरें पहुंचाने का काम नहीं करता बल्कि लोगों को उनका मत बनाने में और मान्यताओं और धारणाओं को नियंत्रित करने में भी काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उम्मीद है कि आने वाले समय में मीडिया, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका को बड़ा करेगा और न सिर्फ जानकारी पहुंचाने का काम करेगा बल्कि सकारात्मक बदलाव लाने वाली प्रमुख शक्ति के रूप में भी काम करेगा.
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चीन और अमेरिका के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर टकराव है. दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ कड़े फैसले लेते रहे हैं.
चीन (China) की अर्थव्यवस्था के लिए पिछला कुछ समय अच्छा नहीं रहा है. उसे तमाम मोर्चों पर परेशानियों का सामना करना पड़ा है. वैश्विक कंपनियां तेजी से China + 1 की पॉलिसी अपना रही हैं, जिससे उसकी परेशानियों की खाई और चौड़ी हो गई है. इस बीच, चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए iPhone पर अघोषित बैन लगा दिया है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने अपनी सरकारी एजेंसियों के स्टॉफ को आईफोन ऑफिस नहीं लाने का निर्देश दिया है.
बैन का दायरा बढ़ाने की तैयारी
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी बताया गया है कि चीनी सरकार इस प्रतिबंध को कई राज्य-स्वामित्व वाले इंटरप्राइज और अन्य सरकारी संगठनों तक बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है. हालांकि अभी तक इस बारे में कोई लिखित आदेश नहीं दिया गया है, इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि कितनी एजेंसियों ने इस प्रतिबंध को अपनाया है. कहा जा रहा है कि सरकार के इस रुख को ध्यान में रखते हुए कई दूसरी कंपनियां भी अपने वर्कप्लेस पर Apple डिवाइस को बैन कर सकती हैं या कर्मचारियों को इसके उपयोग से पूरी तरह बचने का निर्देश दे सकती हैं.
चीनी कदम की ये है वजह
चीन के इस कदम के कई मायने निकाले जा रहे हैं. कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते टकराव का नतीजा है. ताइवान सहित विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के बीच टकराव है. दोनों एक-दूसरे की आर्थिक नब्ज दबाने के लिए कदम उठाते रहते हैं. Apple अमेरिकी कंपनी है और उसे चोट पहुंचाकर शी जिनपिंग सरकार अमेरिका को चोट पहुंचाना चाहती है. वहीं, कुछ मानते हैं कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार Apple पर दबाव डालना चाहती है, ताकि वो भारत पर फोकस करने के बजाए उसी पर केंद्रित रहे. दरअसल, Apple चीन से iPhone की मैन्युफैक्चरिंग भारत और वियतनाम जैसे देश में शिफ्ट कर रही है. भारत को लेकर Apple की बड़ी योजनाएं हैं, जो चीन को पसंद नहीं आ रही हैं.
Apple के सबसे मार्केट में शामिल
चीन ने भले ही आम पब्लिक के लिए iPhone बैन नहीं किया है, लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता. चीन के मौजूदा कदम से ही Apple को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस अमेरिकी कंपनी के लिए चीन सबसे बड़े मार्केट में से एक है. Apple की पिछले वर्ष की कुल इनकम में चीन की हिस्सेदारी लगभग 20% थी. इतना ही नहीं, पिछली तिमाही में चीन में बेचे गए आईफोन की कुल संख्या अमेरिका से भी ज्यादा रही थी. बैन की खबर सामने आने के बाद Apple के शेयरों में 2.9% की गिरावट आई थी और कंपनी को मात्र दो दिनों 200 बिलियन डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ा है.
दुनिया के सबसे शक्तिशाली समूह G20 का शिखर सम्मेलन भारत में शुरू हो चुका है. 2 दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में कई मुद्दों पर बातचीत होगी.
भारत की अध्यक्षता में G20 शिखर सम्मेलन का आगाज हो चुका है. नई दिल्ली में वर्ल्ड लीडर्स की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के संबोधन के साथ इस समिट की शुरुआत हुई. 2 दिवसीय शिखर सम्मेलन में कई मुद्दों पर चर्चा होनी है. चीन और रूस के राष्ट्रपतियों ने इस समिट से दूरी बनाई हुई है. दोनों ने खुद आने के बजाए अपने प्रतिनिधियों को भेजा है. माना जा रहा है कि चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग ने G20 में शामिल न होकर बड़ी भूल कर दी है, जिसका खामियाजा उन्हें कई तरह से उठाना पड़ सकता है.
भारत के लिए गर्व का विषय
G20 दुनिया का सबसे शक्तिशाली समूह है. इसके स्थाई सदस्यों में भारत के अलावा फ्रांस, चीन, कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अमेरिका, यूके, तुर्की, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, रूस, मैक्सिको, जापान, इटली, इंडोनेशिया और यूरोपीय संघ शामिल हैं. ग्लोबल इकॉनमी में G20 की 80% से ज्यादा हिस्सेदारी है. लिहाजा, ऐसे समूह के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करना भारत के लिए गर्व का विषय है. भारत ने इससे पहले कभी भी एक साथ इतने अंतरराष्ट्रीय नेताओं की मेजबानी नहीं की है.
इतनी है भारत की हिस्सेदारी
G20 को सबसे शक्तिशाली समूह इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 80% से ज्यादा है. चलिए अब ये भी जान लेते हैं कि समूह के प्रमुख देशों की ग्लोबल इकोनॉमी में कितनी हिस्स्सेदारी है. इस साल का शिखर सम्मेलन भारत होस्ट कर रहा है, इसलिए शुरुआत भारत से करते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक GDP में हिस्सेदारी के मामले में भारत का नंबर अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद आता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान 3.54% है. यहां ये भी बताना जरूरी है कि वैश्विक जनसंख्या के मामले में हम अब पहले नंबर पर आते हैं.
अमेरिका है सबसे मजबूत
जी20 में शामिल देशों में सबसे मजबूत अमेरिका है. ग्लोबल इकोनॉमी अमेरिका की हिस्सेदारी 25.44% है, जो बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा है. वहीं, रूस की बात करें, तो वर्ल्ड GDP में उसकी हिस्सेदारी 1.95% है. पूरी दुनिया की नाक में दम करने वाला हमारा पड़ोसी चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में 18.35 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है. इस मामले में अमेरिका के बाद उसका दूसरा नंबर है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चौथा नंबर जापान का है, उसकी वर्ल्ड GDP में 4.18% हिस्सेदारी है.
अन्य प्रमुख देशों की स्थिति
जर्मनी की बात करें, तो इसका शेयर 4.08% है. इसी तरह, फ्रांस की ग्लोबल इकॉनमी में हिस्सेदारी 2.77%, ऑस्ट्रेलिया की 1.62%, कनाडा की 1.98%, ब्राजील की 1.97%, अर्जेंटीना की 0.61%, इंडोनेशिया की 1.32%, इटली की 2.06%, मैक्सिको की 1.58%, सउदी अरब की 1.01%, दक्षिण अफ्रीका की 0.38%, तुर्की की 0.98%, ब्रिटेन की वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 2.99% है.
G-20 समिट के लिए ग्लोबल लीडर्स के भारत पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है. यह शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को आयोजित होगा.
भारत की अध्यक्षता में G-20 समिट का आयोजन कल यानी 9 सितंबर से होने जा रहा है. दो दिवसीय इस समिट के लिए 20 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत आ रहे हैं. भारत ने इससे पहले कभी भी एक साथ इतने अंतरराष्ट्रीय नेताओं की मेजबानी नहीं की, लिहाजा हर छोटी बात पर भी हजार बार ध्यान दिया गया है, ताकि किसी गलती की कोई गुंजाइश न रहे. बता दें कि पिछले साल दिसंबर में भारत को G-20 की अध्यक्षता मिली थी.
समिट से पहले 200 बैठकें
G-20 समिट के लिए राजधानी दिल्ली किसी छावनी में तब्दील हो गई है. राजधानी के रूप को निखारने पर भी अच्छा-खासा खर्चा किया गया है. इस समिट के आयोजन पर 10 करोड़ डॉलर से अधिक के खर्चे का अनुमान है. 50 से अधिक शहरों में G-20 शिखर सम्मेलन से पहले लगभग 200 बैठकों का आयोजन हुआ था. ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस खर्चीले और भव्य आयोजन से भारत को क्या हासिल होगा? क्या दुनिया के समक्ष भारत एक मजबूत ताकत के रूप में उभरेगा?
भारत के पास ये मौका
एक्सपर्ट मानते हैं कि G-20 भारत के लिए न केवल अपनी बात वैश्विक मंच पर मजबूती के साथ रखने का एक मौका है, बल्कि 20 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्षों को देश की डेवलपमेंट स्टोरी से रूबरू कराने का एक अवसर भी है. यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया भारत की ग्रोथ से आकर्षित है, चीन से ज्यादा भारत को तवज्जो दी जाने लगी है. हमारी इकॉनमी पर दुनिया का विश्वास बढ़ा है और G-20 समिट होस्ट करके भारत उस विश्वास को और मजबूत कर सकता है. इसके अलावा, भारत के पास एक मौका दुनिया को यह बताने का भी है कि अब समय आ गया है कि उसे विकासशील देशों की जमात से निकालकर विकसित देशों में शुमार किया जाए.
विदेशी निवेश होगा आकर्षित
जानकार यह भी मानते हैं कि इस आयोजन के चलते पूरी दुनिया की नजरें भारत पर हैं, ऐसे में भारत का विकास, विभिन्न सेक्टर्स में उसकी मजबूती से दुनिया खुद-ब-खुद परिचित हो जाएगी. इससे तेज गति से भाग रहे क्षेत्रों में विदेशी निवेश के आकर्षित होने की संभावना काफी ज्यादा है. पिछले कुछ समय में भारत ने मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन एनर्जी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और एविएशन सेक्टर में काफी अच्छा काम किया है. लिहाजा, भारत आ रहे विदेशी मेहमान, इन सेक्टर्स की ग्रोथ से अपनी ग्रोथ की संभावनाओं पर गौर जरूर करेंगे. इसके अलावा, इस आयोजन से भारतीय शेयर बाजार को भी गति मिल सकती है.
भारत की छवि में आएगा निखार
यदि यह आयोजन पूरी तरह सफल होता है, जिसकी पूरी संभावना है, तो वैश्विक स्तर पर भारत की छवि में और निखार आना लाजमी है. दुनिया को यह अहसास हो जाएगा कि भारत एक साथ इतने अंतरराष्ट्रीय नेताओं की मेजबानी करने में भी सक्षम है. इससे भविष्य में होने वाले बड़े आयोजनों की मेजबानी भारत के खाते में आने से किसी को ऐतराज नहीं होगा. इसके साथ ही, चीन और पाकिस्तान को पूरी तरह साइडलाइन करने के भारतीय अभियान को भी बल मिल सकेगा.