सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों का मानना है कि आज के समय में महंगाई उनके लिए सबसे बड़ी चिंता है.
महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जो मोदी सरकार के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है. पेट्रोल-डीजल से लेकर गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान पर हैं, लेकिन सरकार ‘ऑल इज वेल’ किए जा रही है. आटा-चावल से लेकर दूध तक आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, मगर सरकार का मानना है कि महंगाई जैसा कुछ नहीं. सच्चाई को स्वीकारने से डरने वाली सरकार को Ipsos के हालिया सर्वेक्षण पर गौर करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि देशवासियों के लिए आज के वक्त में सबसे बड़ी चिंता महंगाई है.
दूसरी चिंता बेरोजगारी
‘Ipsos What Worries the World monthly Survey’ के अनुसार, मुद्रास्फीति यानी महंगाई शहरी भारतीयों के लिए चिंता का प्रमुख कारण है. हर 2 में से 1 शहरी (52%) ने इसे अपनी सबसे बड़ी चिंता करार दिया है. महंगाई के बाद दूसरा नंबर बेरोजगारी का है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से कम से कम 45% ने माना कि बेरोजगारी उनके लिए दूसरी बड़ी चिंता है.
ऐसी है लोगों की राय
इप्सोस व्हाट वरीज द वर्ल्ड मंथली सर्वे महीने दर महीने 28 देशों में सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनता की राय जानता है. साथ ही यह भी कि उनकी नजर में उनका देश कैसा प्रदर्शन कर रहा है. फरवरी में किए गए सर्वेक्षण में भारत के लोग महंगाई से सबसे ज्यादा चिंतित नजर आए. सर्वे के परिणामों के मुताबिक, शहरी भारतीयों के लिए सबसे बड़ी चिंता मुद्रास्फीति है, करीब 52% लोगों का यही मानना है. इसके बाद बेरोजगारी (45%), गरीबी और सामाजिक असमानता (28%), वित्तीय / राजनीतिक भ्रष्टाचार (24%), अपराध और हिंसा (19%), कोरोना वायरस (14%) और जलवायु परिवर्तन (7%) का नंबर आता है.
जॉब्स क्रिएशन धीमा
Ipsos India के सीईओ अमित अदारकर ने कहा, 'शहरी भारतीय चढ़ती कीमतें और बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग से परेशान हैं. महंगाई आज उनकी सबसे बड़ी चिंता है. इसके बाद बेरोजगारी नंबर है. जॉब्स क्रिएशन की स्पीड अब तक उम्मीद के अनुरूप नहीं रही है. बता दें कि हाल ही में 14.2 किलोग्राम वाले LPG सिलेंडर की कीमत में 50 रुपए की बढ़ोतरी हुई है, जिससे दाम 1100 रुपए के पार निकल गए हैं. पिछले कुछ सालों में पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ गैस की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है.
इस तरह बढ़े दाम
एक रिपोर्ट के अनुसार, LPG सिलेंडर की कीमतों में पिछले चार वर्षों में लगभग 56 फीसदी की वृद्धि हुई है. 1 अप्रैल, 2019 को घरेलू LPG सिलेंडर का खुदरा बिक्री मूल्य 706.50 रुपए था. यह 2020 में बढ़कर 744 रुपए हो गया. इसके बाद 2021 में 809 और 2022 में 949.50 रुपए के लेवल पर पहुंच गया था. हाल ही में यानी 1 मार्च को कीमत 1053 रुपए से बढ़कर अब 1100 रुपए के पार निकल गई है. इसके साथ ही पेट्रोल-डीजल के दाम भी आसमान पर पहुंच चुके हैं. इन सबके चलते खाने-पीने की लगभग हर वस्तु महंगाई हो गई है, लेकिन सरकार को लगता है कि महंगाई जैसा कुछ है ही नहीं.
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को नई इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी (EV Policy) को मंजूरी दे दी है.
इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) के इस्तेमाल में पिछले कुछ समय में तेजी आई है. केवल टू-व्हीलर ही नहीं, चार पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों का क्रेज भी बढ़ा है. ऐसे में ऑटो कंपनियां EV पर ज्यादा फोकस कर रही हैं. हालांकि, कुछ दूसरे देशों के मुकाबले हमारा EV एडॉप्शन रेट कम है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है, लेकिन हमारे यहां EV कारों की सेल महज 2 प्रतिशत है. इस बीच, नई EV पॉलिसी को मंजूरी मिल गई है. सरकार का मानना है कि नई नीति से देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाया जा सकेगा. इससे लेटेस्ट टेक्नोलॉजी तक पहुंच प्रदान करने, ईवी इकोसिस्टम को बढ़ाने और मेक इन इंडिया इनिशिएटिव को सपोर्ट करने में मदद मिलेगी. हालांकि, इस नीति को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं. सबसे पहला तो यही कि क्या इससे घरेलू कंपनियों की चुनौतियों में इजाफा होगा?
कई कंपनियों की होगी एंट्री
इस पॉलिसी में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क घटाकर 15 प्रतिशत किया जा सकता है, यदि उनकी कीमत 35,000 डॉलर (लगभग 29 लाख रुपए) से ज्यादा नहीं है. मौजूदा व्यवस्था के तहत भारत में लाई जाने वाली इलेक्ट्रिक कारों पर 60 से 100 प्रतिशत तक इंपोर्ट ड्यूटी लगती है. हालांकि, ये छूट केवल उन्हीं कंपनियों को मिलेगी जो भारत में प्लांट लगाएंगी और कम से कम 4150 करोड़ रुपए का निवेश करेंगी. टेस्ला सहित कई EV निर्माता इस शर्त को पूरा करने के लिए आसानी से तैयार हो जाएंगे, क्योंकि उन्हें भारतीय बाजार में मौजूद संभावनाओं का इल्म है. ऐसे में आने वाले समय में भारत में कई विदेशी कंपनियों की मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता.
बढ़ जाएगी प्रतियोगिता
फिलहाल भारत के EV कारों के बाजार में टाटा मोटर्स का दबदबा है. महिंद्रा भी इस दिशा में तेजी से काम कर रही है. टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड (TPEML) की देश के EV मार्केट में 73 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इस वित्त वर्ष में कंपनी 53,000 से अधिक EV बेच चुकी है. वैसे, टाटा मोटर्स के पोर्टफोलियो में ईवी की हिस्सेदारी केवल 12 फीसदी है, लेकिन इसमें तेजी से विस्तार हो रहा है. टाटा और महिंद्रा दोनों ने EV पोर्टफोलियो को मजबूत करने के लिए योजनाएं तैयार की हैं. फिलहाल, उनके सामने ज्यादा प्रतियोगिता नहीं है. लेकिन नई EV नीति का फायदा उठाने के लिए जब Tesla जैसी विदेशी कंपनियां भारत में कदम रखेंगी, तो निश्चित तौर पर उन्हें कड़ी टक्कर मिलेगी. उनकी बाजार हिस्सेदारी भी प्रभावित होगी.
टेस्ला को ऐसे होगा फायदा
भारत अब तक इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर भारी-भरकम आयात शुल्क लेता रहा है. कुछ वक्त पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में करीब 30 लाख रुपए तक कीमत वाली इलेक्ट्रिक कारों पर 60% तक टैक्स लगता है. कीमत ज्यादा होने पर टैक्स की दर भी बढ़ जाती है. अमेरिकी बाजार में Tesla की कारों के मॉडल की प्राइज रेंज करीब 27 लाख से 2 करोड़ रुपए तक हैं. इसमें कंपनी के मॉडल 3, मॉडल Y, मॉडल X और मॉडल S शामिल हैं. मॉडल 3 की कीमत सबसे कम है. यदि इम्पोर्ट ड्यूटी के हिसाब से देखें, तो टेस्ला की कुछ कारों के बेस मॉडल पर ही 60% टैक्स लगता. इस तरह कारों की कीमत भारत में काफी ज्यादा हो जाती, लेकिन अब टेस्ला को इतनी इम्पोर्ट ड्यूटी नहीं देनी होगी.
इस मामले में है एडवांटेज
अब तक Tesla जैसी विदेशी कंपनियां केवल इसलिए अपनी कारों को भारत लाने से बचती रही थीं कि इम्पोर्ट ड्यूटी काफी ज्यादा थी. इस वजह से भारतीय कंपनियों के सामने चुनौतियां कम थीं, लेकिन आने वाले समय में तस्वीर पूरी तरह से बदल जाएगी. चीनी कंपनी BYD भारत में पहले ही एंट्री कर चुकी है. अब Tesla के भारत आने का रास्ता साफ हो गया है. इसी तरह कुछ और कंपनियां भी भारत में अपनी कारों को उतारने का फैसला ले सकती हैं. जिसका सीधा असर टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों पर होगा. इसी वजह से ये कंपनियां आयात शुल्क में राहत का विरोध कर रही थीं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि Tesla के आने से घरेलू कंपनियों को चुनौती मिलना लाजमी है, लेकिन कीमत के मामले में उनके पास एडवांटेज रहेगी. टाटा या महिंद्रा जितनी सस्ती EV तैयार कर रही हैं, उसे मैच करना फिलहाल टेस्ला के लिए संभव नहीं होगा. हां, इतना जरूर है कि समय के साथ यह एडवांटेज कम हो सकती है.
दिल्ली के कथित शराब घोटाले में ED ने बड़ी कार्रवाई की है. चंद्रशेखर राव की बेटी कविता को गिरफ्तार किया गया है.
दिल्ली शराब घोटाले (Delhi Liquor Scam) में प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक बड़ी कार्रवाई की है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ED ने तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता (K Kavitha) को गिरफ्तार कर लिया है. कविता भारत राष्ट्र समिति (BRS) की विधान परिषद सदस्य (MLC) की सदस्य हैं. ED की टीम ने शुक्रवार को उनके परिसरों पर तलाशी ली और उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया. कविता को साथ दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय लाया गया है. आज उन्हें कोर्ट के सामने पेश किया जा सकता है.
विरोध में प्रदर्शन
इधर, BRS नेता टी हरीश राव ने बताया कि पार्टी ED की कार्रवाई के विरोध में आज सभी विधानसभा क्षेत्रों के मुख्यालयों में विरोध प्रदर्शन करेगी. प्रवर्तन निदेशालय कविता से दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ कर रही है. ED पहले भी कविता से इस मामले में पूछताछ कर चुकी है. बताया जा रहा है कि उन्हें दो बार समन भेजा गया था, लेकिन जब वह पूछताछ के लिए नहीं आईं तो ED ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
अवैध है गिरफ्तारी
BRS लीडर के वकील, पी मोहित राव ने कहा कि मामला आज सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध था, जिस पर 19 मार्च को सुनवाई होनी है. ईडी ने अदालत में जो अंडरटेकिंग दी है उसमें कहा गया कि कोई भी कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा. इसके बावजूद ईडी की टीम ने कविता के घर में घुसकर उन्हें गिरफ्तार किया. यह गिरफ्तारी पूरी तरह से अवैध है, क्योंकि इस मामले में कविता की याचिका में कार्रवाई न करने की अपील भी शामिल है. लिहाजा याचिका लंबित रहने तक उनके खिलाफ कोई भी जबरदस्ती वाली कार्रवाई नहीं की जा सकती. हम इस अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ जरूरी कानूनी कदम उठाएंगे.
कैसे जुड़ा कनेक्शन?
ईडी का दावा है कि के. कविता शराब कारोबारियों की 'साउथ ग्रुप' लॉबी से कनेक्टेड हैं. इस ग्रुप ने दिल्ली सरकार की 2021-22 की शराब नीति (एक्साइज पॉलिसी) में बड़ी भूमिका निभाई थी. बताया जा रहा है कि शराब घोटाले के आरोपी विजय नायर को कथित रूप से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत साउथ ग्रुप से ही मिली थी, जिसे संबंधित लोगों उपलब्ध कराया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईडी हैदराबाद के कारोबारी अरुण रामचंद्रन पिल्लई और कविता का आमना-सामना भी करवा चुकी है. पिल्लई को कविता का करीबी माना जाता है. उसने पूछताछ में बताया था कि कविता और आम आदमी पार्टी के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत 100 करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ और कविता की कंपनी 'इंडोस्पिरिट्स' को दिल्ली के शराब कारोबार में एंट्री मिली.पिछले साल फरवरी में CBI ने बुचीबाबू गोरंतला नामक व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार किया था. ED ने भी बुचीबाबू से का बयान दर्ज किया था. माना जाता है कि बुचीबाबू कविता का अकाउंट संभाला करता था.
आखिर क्या है South Group?
ED के मुताबिक, 'साउथ ग्रुप' दक्षिण के राजनेताओं, कारोबारियों और नौकरशाहों का समूह है. इसमें सरथ रेड्डी, एम. श्रीनिवासुलु रेड्डी, उनके बेटे राघव मगुंटा और कविता शामिल हैं. जबकि इस ग्रुप का प्रतिनिधित्व अरुण पिल्लई, अभिषेक बोइनपल्ली और बुचीबाबू ने किया था, तीनों को ही शराब घोटाले में गिरफ्तार किया जा चुका है. प्रब्वर्तन निदेशालय दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को भी इस मामले में गिरफ्तार कर चुकी है. कविता की गिरफ्तारी शराब घोटाले में तीसरी बड़ी गिरफ्तारी है.
क्या है शराब घोटाला?
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को एक्साइज पॉलिसी 2021-22 लागू की थी. नई नीति के तहत, सरकार शराब कारोबार से बाहर आ गई और पूरी दुकानें निजी हाथों में सौंप दी गईं. सरकार का दावा था कि नई शराब नीति से माफिया राज पूरी तरह खत्म हो जाएगा और उसके रिवेन्यु में बढ़ोतरी होगी. हालांकि, ये नीति शुरू से ही विवादों में रही. जब बवाल ज्यादा बढ़ गया तो 28 जुलाई 2022 को केजरीवाल सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया. इस कथित शराब घोटाले का खुलासा 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से हुआ था. तब से अब तक ED इस मामले में कार्रवाई कर रही है.
रिजर्व बैंक ने पिछले काफी समय से रेपो रेट को स्थिर रखा हुआ है, यानी इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.
महंगाई (Inflation) के मोर्चे पर कुछ राहत मिली है. खुदरा महंगाई दर फरवरी में घटकर 5.09% रह गई. जनवरी में यह 5.10% थी. महंगाई की दर में यह गिरावट अनुमानों के अनुरूप है. खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्धारित 2 6% के निर्धारित लक्ष्य के भीतर बनी हुई है. महंगाई दर में आई इस गिरावट के साथ ही अब ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या महंगे कर्ज से मुक्ति मिलेगी? क्या RBI रेपो रेट में कोई कटौती करेगा?
दूसरी तिमाही से शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक्सपर्ट्स का मानना है कि महंगाई में स्थिरता से कर्ज दरों में कटौती की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन रेपो रेट में कटौती के लिए अभी कुछ और इंतजार करना होगा. रिजर्व बैंक अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से दरों में कटौती की शुरुआत कर सकता है. आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि महंगाई दर अनुमान के मुताबिक ही है. ऐसे में उम्मीद है कि महंगाई अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगी. यदि ऐसा होता है, तो रिजर्व बैंक अगस्त से दरों में कटौती की शुरुआत कर सकता है.
मानसून पर रहेगी नजर
वहीं, कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती से पहले मानसून की तस्वीर साफ होने का इंतजार कर सकता है. क्योंकि मानसून की चाल पर महंगाई की चाल निर्भर करती है. यदि मानसून उम्मीद अनुरूप नहीं रहता, तो महंगाई फिर से बेकाबू ही सकती है. कुछ के अनुसार, संभावना है कि अगस्त में होने वाली पॉलिसी समीक्षा बैठक तक रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होगा. जून समीक्षा से रिजर्व बैंक के रुख में नरमी के संकेत देखने को मिल सकते हैं. बता दें कि पिछले साल महंगाई को नियंत्रित करने के लिए RBI ने लगातार कई बार रेपो रेट में इजाफा किया था, जिससे सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए थे.
क्या है RBI की जिम्मेदारी?
मालूम ही कि RBI के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि उसे पिछले साल महंगाई को नियंत्रित करने में अपनी असफलता पर सरकार को स्पष्टीकरण देने पड़ा. दरअसल, रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ जब RBI को इस संबंध में केंद्र को रिपोर्ट भेजनी पड़ी. आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में नाकाम रहा था.
क्या होती है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है. बैंक इस पैसे से कस्टमर्स को LOAN देते हैं. रेपो रेट बढ़ने का सीधा सा मतलब है कि बैंकों को मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाएगा और इसकी भरपाई वो ग्राहकों से करेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि Repo Rate बढ़ने से होम लोन, वाहन लोन आदि की EMI ज्यादा हो सकती है. इसके उलट जब यह दर कम होती है तो बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते होने की संभावना बढ़ जाती है.
सुधा मूर्ति के पास मौजूदा समय में इंफोसिस के करोड़ों शेयर हैं. इन शेयरों की वैल्यू करोड़ों रुपये है. आज इंफोसिस के एक शेयर की वैल्यू 1612 रुपये है.
मूर्ति ट्रस्ट की चेयरमैन सुधा मूर्ति अब जल्द ही राज्यसभा में अपनी आवाज बुलंद करती हुई दिखाई देंगी. सुधा जितना समाज सेवा में आगे रही हैं उतनी ही दिलचस्पी उनकी साहित्य में है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुधा मूर्ति के पास कितनी दौलत है. सुधा मूर्ति की नेटवर्थ आखिर कितनी है. सुधा के पास आज भी इंफोसिस की 0.83 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इस हिस्सेदारी को अगर हम रुपयों में समझाए तो इसकी कीमत आज 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा हैं. आज अपनी इस स्टोरी में हम आपको यही बताने जा रहे हैं.
सुधा मूर्ति के पास इतनी है दौलत
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, BSE में दी गई सूचना के आधार पर सुधा के पास इंफोसिस जैसी कंपनी के 3.45 करोड़ शेयर हैं. अगर कंपनी के शेयर का भाव देखें तो 1612 रुपये है. इस हिसाब से देखा जाए तो उनके पास 55 अरब 61 करोड़ 40 लाख रुपये की दौलत है. ये अकेले इंफोसिस के शेयरों का आज का मार्केट प्राइस है. वहीं उनके पति नारायण मूर्ति के पास 1.66 करोड़ इक्विटी शेयर हैं जिनकी कीमत 2691 करोड़ रुपये है. सुधा मूर्ति को 2006 में पद्मश्री और 2023 में पद्म भूषण मिल चुका है.
इतना है इंफोसिस का मार्केट कैप
इंफोसिस देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है. अगर कंपनी को उसके मार्केट कैप के हिसाब से देखा जाए तो वो 671121 लाख करोड़ रुपये है. इंफोसिस की वैल्यू देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी से ज्यादा है. इंफोसिस से पहले जो कंपनियां हैं उनमें रिलायंस, टीसीएस, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एसबीआई और भारती एयरटेल है. इंफोसिस देश में आईटी सॉफ्टवेयर को लेकर काम करने के लिए मशहूर है. वो देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई और देशों में भी काम करती है.
पीएम मोदी ने दी बधाई
शुक्रवार को उनके चयन के बाद पीएम मोदी ने उन्हें राज्यसभा भेजे जाने को लेकर ट्वीट भी किया और लिखा
मुझे खुशी है कि भारत के राष्ट्रपति ने सुधा मूर्ति को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है. सुधा मूर्ति का सामाजिक कार्य, परोपकार और शिक्षा सहित विविध क्षेत्रों में योगदान अतुलनीय और प्रेरणादायक रहा है. राज्यसभा में उनकी उपस्थिति हमारी 'नारी शक्ति' का एक शक्तिशाली प्रमाण है, जो हमारे देश की नियति को आकार देने में महिलाओं की ताकत और क्षमता का उदाहरण है. उनके सफल संसदीय कार्यकाल की कामना करता हूं.
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बेंगलुरु को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है. हालात इतने खराब हैं कि सैकड़ों घरों में एक बूंद भी पानी नहीं है.
आईटी हब कहा जाने वाले बेंगलुरु का कंठ सूख गया है (Bengaluru Water Crisis). इस अत्याधुनिक शहर के पास अपने लोगों की प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं है. शहरवासी अब पूरी तरह से वॉटर टैंकर्स पर निर्भर हैं, और टैंकर ऑपरेटरों ने इस प्राकृतिक आपदा को अवसर मान लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1000 लीटर पानी के टैंकर की कीमत पहले 600-800 रुपए के बीच थी, लेकिन अब उसके लिए 2000 रुपए से ज्यादा वसूले जा रहे हैं. बता दें कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में Walmart और Google से लेकर कई ग्लोबल कंपनियों के भी ऑफिस हैं.
इन गतिविधियों पर रोक
गंभीर जल संकट को देखते हुए अधिकांश रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस ने अपने इलाकों में पानी की राशनिंग शुरू कर दी है. वाहन धोने, गार्डनिंग जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई गई है. स्विमिंग पूल को भी बंद दिया गया है. वहीं, कंपनियों की तरफ से भी वॉटर फाउंटेन और निर्माण गतिविधियों को रोक दिया गया है. कुछ हाउसिंग सोसाइटियों में पानी की खपत को सीमित कर दिया गया है. साथ ही नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना लगाया जा रहा है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि लोग वॉशरूम आदि इस्तेमाल करने के लिए शॉपिंग मॉल का रुख करने को मजबूर हैं. जबकि कुछ लोगों ने शहर से दूर अस्थाई ठिकाने तलाश लिए हैं.
कावेरी का जल स्तर गिरा
बेंगलुरु में पानी की किल्लत कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि आखिर ऐसा कैसे हो गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पर्याप्त बारिश न होने के कारण कावेरी नदी के जल स्तर में काफी गिरावट आई है. इससे पेयजल आपूर्ति और कृषि सिंचाई दोनों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा धरती का सीना चीरकर पानी निकालने की बोरवेल तकनीक ने भी संकट बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. शहर में बीते कुछ वक्त में निर्माण कार्य बहुत तेजी से चले हैं, जिनके लिए बड़े पैमाने पर पानी की जरूरत होती है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सरकार स्थिति की गंभीरता को समय रहते भांपने में नाकाम रही. इसके लिए मौजूद सरकार से ज्यादा पिछले सरकार कुसूरवार है.
सूखे पड़े हैं इतने बोरवेल
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 16,781 बोरवेल में से 6,997 बोरवेल सूख गए हैं. शेष 7,784 बोरवेल चालू हैं. कावेरी और स्थानीय झीलें बेंगलुरु के लिए वरदान साबित होती रही हैं. 1961 तक यहां कम से कम 260 से ज्यादा झीलें थीं. बाद में इनकी संख्या घटकर 81 रह गई और अब इनमें से महज 33 'जीवित' की श्रेणी में आती हैं. बाकी की झीलें शहर के विस्तार की भेंट चढ़ गई हैं. इस वजह से शहर में पहले जितना पानी हुआ करता था, वो लगातार कम होता गया. वहीं, कमजोर मानसून भी समय-समय पर शहर की समस्या बढ़ाता रहा है.
सरकारें नहीं रहीं गंभीर
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि शहर के विस्तार की वजह से निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं और इसके लिए पानी का जमकर इस्तेमाल होता है. बोरवेलों पर अधिक निर्भरता ने शहर में भूजल स्तर को कम कर दिया है. शहर पर आबादी का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. जाहिर है ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव बना है. बेंगलुरु का जल आपूर्ति इंफ्रास्ट्रक्चर काफी पुराना है, जो बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी साबित हो रहा है. उनका ये भी कहना है कि यदि राज्य सरकारों ने शुरुआत से इस पर ध्यान दिया होता तो हालात इतने नहीं बिगड़ते.
चीन में आईफोन की घटती सेल के चलते Apple अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गई है.
कुछ समय पहले तक चीन अमेरिकी कंपनी एपल (Apple) का सबसे बड़ा बाजार था. चीन में iPhone को लेकर जबरदस्त क्रेज दिखाई देता था, लेकिन अब तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है. चीनी आईफोन से दूरी बना रहे हैं और Apple को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है. पिछले कुछ वक्त में जिस तरह से चीन में iPhone की बिक्री में गिरावट आई है, उसे देखते हुए इस देश में Apple का भविष्य अंधकारमय हो गया है. मीडिया रिपोर्ट्स में इन्वेस्टमेंट फर्म जेपी मॉर्गन के हवाले से बताया गया है कि चीन में एपल के आईफोन की बिक्री तेजी से घट रही है.
भारत से नजदीकी
इस साल यानी 2024 के पहले 6 हफ्तों में चीन में iPhone सेल में गिरावट देखने को मिली है. कुछ एनालिस्ट का मानना है कि इस गिरावट की मुख्य वजह 2024 में शिपमेंट में आई कमी रही है. पिछले साल के मुकाबले इस साल आईफोन का चीन में सिपमेंट कम हुआ है. हालांकि, कुछ का कहना है कि Apple के भारत के अधिक नजदीक जाने से चीनी सरकार नजर है. वह पर्दे के पीछे रहकर iPhone के इस्तेमाल को कम करने की योजनाओं पर काम कर रही है. पिछले साल सरकारी कर्मचरियों को iPhone से दूरी बनाने के लिए कहा गया था. आईफोन के सेल में गिरावट की ये भी एक बड़ी वजह है.
Huawei ने पीछे छोड़ा
रिपोर्ट में कहा गया है कि जेनरेटिव AI सर्विस और फोल्डेबल डिजाइन वाले स्मार्टफोन को चीनी जनता को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. साथ ही हुआवेई (Huawei) जैसे ब्रैंड की चीन में दोबारा एंट्री ने Apple के मार्केट शेयर को प्रभावित किया है. हुआवेई ने आईफोन सेल को पीछे छोड़ दिया है. 2024 के शुरुआती हफ्ते में Apple चीन के स्मार्टफोन बाजार में चौथे स्थान पर रहा है. इस बीच, एपल ने अपनी कमाई बढ़ाने के लिए Apple TV+ और iCloud जैसी Apple सर्विस पर फोकस करना शुरू कर दिया है.
बैटरी भी यहीं बनेगी
एपल अपना अधिकांश प्रोडक्शन चीन से भारत शिफ्ट करने पर तेजी से काम कर रही है. पिछले साल खबर आई थी कि Apple अपने न्यू जनरेशन आईफोन की बैटरी भी भारत में तैयार करवाना चाहती है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि Apple ने अपने कंपोनेंट सप्लायर्स से कहा है कि iPhone 16 के लिए बैटरी को भारतीय कारखानों को प्राथमिकता दें. Apple ने चीन की कंपनी डेसाई से भारत में एक बैटरी मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री लगाने की अपील की है. इसी तरह, ताइवान के बैटरी सप्लायर सिम्पलो टेक्नोलॉजो से कहा गया है कि भविष्य के ऑर्डर्स के लिए भारत में उत्पादन बढ़ाने पर विचार करें. माना जा रहा है कि अगर आईफोन 16 के लिए बैटरी सप्लाई का ये फैसला कारगर होता है, तो एपल दूसरे iPhones की बैटरी उत्पादन को भी भारत में ट्रांसफर कर सकती है.
तनाव भी है एक वजह
Apple के चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयासों के पीछे चीन और अमेरिका के बीच का तनाव है. एपल को भारत, चीन के बेहतरीन विकल्प के तौर पर नजर आ रहा है. वैसे भी भारत पहले से ही Apple के लिए आईफोन को असेंबल करने के लिए एक बेस रहा है. अब कंपनी चीन से अपने अधिकांश प्रोडक्शन को भारत ट्रांसफर करने की योजना पर कम कर रही है. केवल एपल ही नहीं, दुनिया की कई दूसरी बड़ी कंपनियां भी चीन+1 की रणनीति को अमल में ला रही हैं. सीधे शब्दों में कहें तो वे अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स के लिए चीन का विकल्प तलाश रही हैं.
वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल कंपनी पर कर्ज का बोझ कम करना चाहते हैं, इसके लिए उन्होंने कई योजनाएं बनाई हैं.
माइनिंग और मेटल सेक्टर की दिग्गज कंपनी वेदांता (Vedanta) के मालिक अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) अपना स्टील कारोबार बेच रहे हैं. वेदांता लिमिटेड के स्वामित्व वाली ESL स्टील बिकने जा रही है. ESL की वर्तमान क्षमता 1.5 मिलियन टन है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अग्रवाल के स्टील कारोबार को खरीदने वालों की दौड़ में आर्सेलर मित्तल के लक्ष्मी मित्तल (Lakshmi Mittal) और जय सराफ की कंपनी निथिया कैपिटल शामिल हैं. जय सराफ आर्सेलर मित्तल के पूर्व एग्जीक्यूटिव हैं और वह ESL स्टील पर बोली लगाने के लिए एक कंसोर्टियम बना रहे हैं, जिसमें निथिया कैपिटल सहित कुछ अन्य इन्वेस्टर्स शामिल हो सकते हैं.
वैल्यूएशन से मिलेगा कम
आर्सेलर मित्तल से अलग होकर जय सराफ ने 2010 में निथिया कैपिटल की स्थापना की थी. जय सराफ को कई देशों में फंसे स्टील संयंत्रों को सफलतापूर्वक चालू करने का अनुभव है. इसलिए उनकी दावेदारी ज्यादा मजबूत मानी जा रही है. हालांकि, इस संबंध में तीनों की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. वहीं, बताया जा रहा है कि ESL स्टील का वैल्यूएशन 10,000 करोड़ रुपए है, लेकिन वेदांता को इससे कम पर समझौता करना पड़ सकता है.
कर्ज कम करने की कोशिश
वेदांता लिमिटेड के मालिकाना हक वाली ईएसएल स्टील की वर्तमान क्षमता 1.5 मिलियन टन है, जिसे कंपनी ने दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. हालांकि, अब कंपनी अपनी इस यूनिट को बेच रही है. दरअसल, अनिल अग्रवाल वेदांता के कर्ज को जल्द से जल्द कम करना चाहते हैं. इसी क्रम में वह अपने नॉन-कोर एसेट्स को बेच रहे हैं. ईएसएल स्टील की बिक्री अग्रवाल की इसी योजना का हिस्सा है. बता दें कि वेदांता लिमिटेड ने कुछ वक्त पहले विभिन्न व्यवसायों को अलग करने के लिए छह लिस्टेड यूनिट्स बनाने की घोषणा की थी. कंपनी पर करीब 20,000 करोड़ रुपए का कर्ज है.
पहले भी बनाई थी योजना
वेदांता ने 2022 के आखिरी में भी ईएसएल स्टील को बेचने की बात कही थी, मगर बाद में इस योजना को रोक दिया गया. अब कंपनी फिर से स्टील कारोबार को बेचने की दिशा में आगे बढ़ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्टील कारोबार को कुछ खरीदने में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है. अगले कुछ महीनों में डील पूरी हो सकती है. वेदांता ने 2018 में 5,320 करोड़ में ईएसएल स्टील का अधिग्रहण किया था. गौरतलब है कि अडानी समूह को लेकर पिछले साल आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद से वेदांता जैसी कंपनियां अपना कर्ज कम करने पर ज्यादा फोकस कर रही हैं.
जेट एयरवेज के फाउंडर नरेश गोयल को कैंसर ने जकड़ लिया है. उन्होंने अदालत से इलाज के लिए जमानत मांगी है.
किसी जमाने में आसमान पर राज करने वाले नरेश गोयल आज जेल में दिन गुजर रहे हैं. उनकी हालिया तस्वीरों को देखकर समझा जा सकता है कि वक्त जब बुरा हो तो व्यक्ति किस कदर टूट जाता है. जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल को मुसीबतों के साथ अब कैंसर ने भी जकड़ लिया है. गोयल इलाज के लिए अंतरिम जमानत की गुहार लगा रहे हैं. उनकी इस गुहार पर अदालत का रुख क्या रहता है, यह 20 फरवरी को स्पष्ट होगा. पिछले साल सितंबर से जेल में बंद गोयल की मानसिक स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह छह जनवरी को अदालत में रो पड़े थे. गोयल ने कहा था कि उन्होंने जीने की उम्मीद खो दी है और वह जेल में ही मर जाना पसंद करेंगे.
आगाह करती है बर्बादी
नरेश गोयल की कामयाबी जहां लोगों को प्रेरित करती थी. वहीं, उनकी बर्बादी लोगों को आगाह करती है कि सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद उन्हें क्या नहीं करना चाहिए. गोयल की गलतियों ने जेट एयरवेज को आसमान से जमीन पर ला दिया और वह खुद भी अंतहीन परेशानियों में घिर गए. चलिए जानते हैं कि जब सबकुछ अच्छा चल रहा था, तो गोयल ऐसा क्या कर बैठे कि जेट एयरवेज बर्बाद हो गई. अब वह खुद कैंसर की चपेट में आ चुके हैं और इलाज के लिए अंतरिम जमानत की राह तक रहे हैं.
बनाई थी एक अलग पहचान
नरेश गोयल किसी जमाने में ट्रैवल एजेंसी चलाया करते थे. उन्होंने केवल दो बोइंग 737 के साथ जेट एयरवेज की शुरुआत की थी. बताया जाता है कि जेट एयरवेज देश की पहली प्राइवेट एयरलाइन रही, जिसका उद्घाटन JRD टाटा ने किया था. महज थोड़े से समय में इस एयरलाइन ने भारतीय आसमान में अपनी एक अलग जगह बना ली. सस्ते दर पर हवाई यात्रा ऑफर करके जेट इतनी फेमस हो गई कि बाकी एयरलाइन को खतरा महसूस होने लगा, लेकिन फिर वक्त ने करवट ली और हवा से बातें करने वाली जेट एयरलाइन जमीन पर आ गई.
किसी न सुनना पड़ा भारी
गोयल ने बड़ी मेहनत से जेट एयरवेज को खड़ा किया, उसे हवाई यात्रियों की पहली पसंद बनाया, लेकिन उसके क्रैश होने की कहानी भी उन्होंने खुद ही लिख डाली. आर्थिक संकट के चलते जेट एयरवेज का कामकाज 17 अप्रैल 2019 को बंद हो गया था. इससे पहले नरेश गोयल ने कंपनी को बचाने के लिए खूब हाथ-पैर मारे, लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने अपने फाइनेंशियल एडवाइजर्स से लेकर तमाम एक्सपर्ट्स से राय मांगी, ताकि संकट से कंपनी को बचाया जा सके. उस वक्त, कुछ एडवाइजर्स ने उन्हें पीछे हटकर नए निवेशकों को मौका देने की सलाह दी. उस दौर में टाटा ग्रुप ने जेट में इन्वेस्ट करने में दिलचस्पी दिखाई थी, मगर गोयल ने किसी सलाह पर ध्यान नहीं दिया. गोयल अपने मन की करते रहे और कंपनी बंद होने की दहलीज पर पहुंच गई. हर दिन बढ़ते कर्ज के साथ आखिरकार एक दिन ऐसा आया, जब जेट एयरवेज के विमान केवल शो-पीस बनकर रह गए.
'अपनों' पर भरोसा न करना भूल
जानकार मानते हैं कि गोयल ने एक नहीं, कई गलतियां की. उनकी एक गलती यह भी थी कि जिन लोगों को उन्होंने हायर किया, उन पर भरोसा नहीं दिखाया. उन्हें 'मैं' से ज्यादा प्यार हो गया था. नरेश गोयल मानने लगे थे कि उनके मुंह से निकली हर बात सही होती है और उसे काटा नहीं जा सकता. गोयल को लगता था कि वो ही जेट एयरवेज हैं. सीधे शब्दों में कहें तो अहंकार उनमें तेजी से पनपने लगा था. हालांकि, वह बातचीत में माहिर थे और इस वजह से कई छोटे-मोटे संकट से जेट को आसानी से निकालकर ले गए.
सौदेबाजी पड़ गई भारी
एक रिपोर्ट की मानें, तो कारोबार बंद करने से कुछ दिन पहले तक जेट एयरवेज को हर दिन 21 करोड़ का नुकसान हो रहा था. 2017 में डेल्टा एयरलाइन ने भी जेट में कुछ स्टेक खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी. अबू धाबी की सरकारी एयरलाइन कंपनी एतिहाद पहले से ही जेट की पार्टनर थी, मगर नरेश गोयल सौदेबाजी में उलझे रहे. डेल्टा ने गोयल को स्टेक लेने के लिए 300 रुपए प्रति शेयर का ऑफर दिया, लेकिन गोयल 400 रुपए प्रति शेयर से नीचे आने को तैयार नहीं थे. जबकि कंपनी के शेयर 400 रुपए से नीचे ही ट्रेड कर रहे थे. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर उस वक्त गोयल ने सही फैसला लिया होता, तो शायद जेट के सिर से कर्ज का बोझ कुछ कम हो जाता.
सहारा ने बिगाड़ा गणित
2004 में बाजार के 40% हिस्से पर जेट का ही कब्जा था, लेकिन जब नए प्लेयर मार्केट में आए तो नरेश गोयल एक अलग ही रणनीति पर काम करने लगे. इंडिगो और स्पाइस जेट को टक्कर देने के लिए वह पहले सस्ते की जंग में फंसे, फिर उन्होंने 2007 में 1450 करोड़ रुपए में एयर सहारा को खरीदा. इस डील के साथ ही कंपनी फाइनेंशियल और लीगल सहित तमाम तरह की मुश्किलों में फंस गई. इतना ही नहीं, गोयल ने IPO का पैसा कर्ज का बोझ कम करने के बजाए नए प्लेन ऑर्डर करने में खर्च कर दिया.
कमाई पर खुद चलाई कैंची
2012 में जब किंगफिशर बंद हुई, तो नरेश गोयल के पास एक मौका था किंगफिशर के गलत फैसलों से सीख लेने का पर उन्होंने यह मौका भी गंवा दिया. कंपनी के कर्ज में दबे होने के बावजूद उन्होंने 10 एयरबस A330 और बोइंग 777 प्लेन का ऑर्डर दे दिया. गोयल के इस कदम से केवल जेट का खर्चा ही बढ़ा. बात यहीं खत्म नहीं होती. गोयल ने इन जहाजों में सीट भी कम रखीं. एक रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबल प्रैक्टिस में जहां 400 सीटें होती हैं, वहीं इसमें सिर्फ 308 सीटें थीं. यानी एक तरह से उन्होंने कमाई पर खुद कैंची चला दी.
सलाह पर नहीं किया अमल
जेट के विमानों में फर्स्टक्लास की 8 सीटें थीं, जिनसे कमाई न के बराबर हो रही थी. ऐसे में अधिकारियों ने उन्हें इन सीट्स को सामान्य सीट्स में बदलने की सलाह दी थी, लेकिन गोयल ने इसे अनसुना कर दिया. यही एक गलती जेट एयरवेज के चेयरमैन और फाउंडर के रूप में गोयल बार-बार करते रहे - अधिकारियों पर भरोसा नहीं करना. कहा जाता है कि गोयल को एयर सहारा से डील नहीं करने की सलाह दी गई थी, इसके बावजूद उन्होंने करोड़ों खर्च का सौदा कर डाला. इस तरह 1992 में जिस कंपनी को उन्होंने उम्मीदों के साथ शुरू किया, उसे नंबर वन की पोजीशन दिलवाई, उसे खुद ही बर्बाद कर दिया.
इसलिए ED ने कसा है शिकंजा
जेट एयरवेज एक बार फिर से उड़ान भरने की कोशिश कर रही है. यूएई के बिजनसमैन मुरारी लाल जालान और लंदन की कंपनी कालरॉक कैपिटल (Kalrock Capital) के कंसोर्टियम ने जून 2021 में दिवालिया प्रक्रिया के तहत इस एयरलाइन को खरीदा था. हालांकि, अब तक इसका ऑपरेशन शुरू नहीं हो सकता है. इधर, जेट एयरवेज से जुड़े मामलों की जांच कई एजेंसियां कर रही हैं. इनमें ED, सीबीआई और इनकम टैक्स शामिल हैं. CBI ने अपनी जांच में नरेश गोयल, उनकी पत्नी अनीता गोयल और जेट एयरवेज एयरलाइन के डायरेक्टर रहे गौरंग आनंद शेट्टी को आरोपी बनाया है. सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार पर ने ED मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पिछले साल नरेश गोयल को गिरफ्तार किया था. सीबीआई ने ये मामला केनरा बैंक की शिकायत के बाद दायर किया था, जिसमें कथित धोखाधड़ी के आरोप नरेश गोयल पर लगे हैं.
सरकार कृषि क्षेत्र में ड्रोन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने पर काम कर रही है और यह योजना उसी का एक हिस्सा है.
बजट 2024 में कई बड़ी घोषणाएं हुईं, इनमें से एक है 'नमो ड्रोन दीदी योजना' (Namo Drone Didi Scheme) के लिए 500 करोड़ रुपए का आवंटन. पिछले साल इसके लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. इस लिहाज से देखें, तो इस बार 'नमो ड्रोन दीदी योजना' को 2.5 गुना ज्यादा बजट दिया गया है. दरअसल, सरकार कृषि क्षेत्र में ड्रोन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने पर काम कर रही है और यह योजना उसी का एक हिस्सा है. सरकार ने इस योजना की शुरुआत महिलाओं को सशक्त बनाने और कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए की है. चलिए इस स्कीम के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या होगा ट्रेनिंग में?
'नमो ड्रोन दीदी योजना' की शुरुआत 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने की थी. इस योजना के तहत 1 लाख महिलाओं को अगले 5 सालों में प्रशिक्षित किया जाएगा. स्कीम को देशभर के कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के जरिए लागू किया जा रहा है. नमो ड्रोन दीदी योजना में महिलाओं को ड्रोन उड़ाने से लेकर डेटा विश्लेषण और ड्रोन के रखरखाव के संबंध में ट्रेनिंग दी जाती है. चयनित महिलाओं को ड्रोन का इस्तेमाल करके अलग-अलग कृषि कार्यों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है. इनमें फसलों की निगरानी, कीटनाशकों-उर्वरकों का छिड़काव और बीज बुआई आदि शामिल हैं.
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क्या है योजना का फायदा?
सरकार का मानना है कि ड्रोन दीदी योजना महिलाओं को सशक्त और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाएगी. साथ ही इससे कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और दक्षता में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. इस योजना से कृषि से जुड़ी लागत में भी कमी आ सकती है. इससे रोजगार के मौके भी मिलेंगे. 1 फरवरी को पेश किए गए अंतरिम बजट में ड्रोन दीदी स्कीम के लिए पहले से ज्यादा फंड का प्रावधान किया गया है. ऐसा इसलिए कि ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा सके. इस बीच, अयोध्या में स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं छह महिलाओं का इस योजना के लिए किया गया है. सभी ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में 15 दिवसीय प्रशिक्षण पूरा किया है. अब इन्हें 10 लाख रुपए की लागत से ड्रोन उपलब्ध कराया जाएगा, जिसका इस्तेमाल खेतों में कीटनाशक व खाद के छिड़काव के लिए किया जाएगा.
सत्ता में रहते हुए कर्पूरी ठाकुर ने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक के लिए इतने कार्य किए कि उनका राजनीतिक कद बढ़ता चला गया.
कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक के रूप में भी होती है. वह इतने ज्यादा लोकप्रियता थे कि उन्हें जन-नायक भी कहा जाता था. ठाकुर बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और 2 बार मुख्यमंत्री रहे हैं. साधारण नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने राज्य की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाई थी.
स्वतंत्रता आंदोलन में थे शामिल
कर्पूरी ठाकुर पटना से 1940 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. 1942 में उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और इसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा. 1945 में जेल से बाहर आने के बाद ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए. कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने राज्य की कमान संभाली. हालांकि, उनका पहला कार्यकाल केवल 163 दिन का रहा. लेकिन इसके बावजूद उनके हौसले बुलंद रहे.
पूरा नहीं कर पाए कार्यकाल
1977 में कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. लेकिन अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर पाए. हालांकि, महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों तबके के हितों के लिए उल्लेखनीय काम किया. बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त करवा दी. इसके अलावा, उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया. सत्ता में रहते हुए कर्पूरी ठाकुर ने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक के लिए इतने कार्य किए कि उनका राजनीतिक कद बढ़ता चला गया. और वह बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए.
लालू-नीतीश रहे हैं शागिर्द
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं. लिहाजा जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया. इसी तरह, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के लिए कई कार्य किए. 1988 में कर्पूरी ठाकुर दुनिया से रुखसत हो गए. लेकिन इतने साल बाद भी वह बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय बने हुए हैं. ठाकुर लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. भारत रत्न मिलने की घोषणा पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि हमें 36 साल की तपस्या का फल मिला है.