महंगाई पर Ipsos का यह सर्वेक्षण देखकर शायद सरकार की आंखें खुल जाएं 

सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों का मानना है कि आज के समय में महंगाई उनके लिए सबसे बड़ी चिंता है.

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Tuesday, 07 March, 2023
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महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जो मोदी सरकार के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है. पेट्रोल-डीजल से लेकर गैस सिलेंडर की कीमतें आसमान पर हैं, लेकिन सरकार ‘ऑल इज वेल’ किए जा रही है. आटा-चावल से लेकर दूध तक आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, मगर सरकार का मानना है कि महंगाई जैसा कुछ नहीं. सच्चाई को स्वीकारने से डरने वाली सरकार को Ipsos के हालिया सर्वेक्षण पर गौर करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि देशवासियों के लिए आज के वक्त में सबसे बड़ी चिंता महंगाई है.

दूसरी चिंता बेरोजगारी  
‘Ipsos What Worries the World monthly Survey’ के अनुसार, मुद्रास्फीति यानी महंगाई शहरी भारतीयों के लिए चिंता का प्रमुख कारण है. हर 2 में से 1 शहरी (52%) ने इसे अपनी सबसे बड़ी चिंता करार दिया है. महंगाई के बाद दूसरा नंबर बेरोजगारी का है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से कम से कम 45% ने माना कि बेरोजगारी उनके लिए दूसरी बड़ी चिंता है. 

ऐसी है लोगों की राय
इप्सोस व्हाट वरीज द वर्ल्ड मंथली सर्वे महीने दर महीने 28 देशों में सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनता की राय जानता है. साथ ही यह भी कि उनकी नजर में उनका देश कैसा प्रदर्शन कर रहा है. फरवरी में किए गए सर्वेक्षण में भारत के लोग महंगाई से सबसे ज्यादा चिंतित नजर आए. सर्वे के परिणामों के मुताबिक, शहरी भारतीयों के लिए सबसे बड़ी चिंता मुद्रास्फीति है, करीब 52% लोगों का यही मानना है. इसके बाद बेरोजगारी (45%), गरीबी और सामाजिक असमानता (28%), वित्तीय / राजनीतिक भ्रष्टाचार (24%), अपराध और हिंसा (19%), कोरोना वायरस (14%) और जलवायु परिवर्तन (7%) का नंबर आता है.

जॉब्स क्रिएशन धीमा
Ipsos India के सीईओ अमित अदारकर ने कहा, 'शहरी भारतीय चढ़ती कीमतें और बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग से परेशान हैं. महंगाई आज उनकी सबसे बड़ी चिंता है. इसके बाद बेरोजगारी नंबर है. जॉब्स क्रिएशन की स्पीड अब तक उम्मीद के अनुरूप नहीं रही है. बता दें कि हाल ही में 14.2 किलोग्राम वाले LPG सिलेंडर की कीमत में 50 रुपए की बढ़ोतरी हुई है, जिससे दाम 1100 रुपए के पार निकल गए हैं. पिछले कुछ सालों में पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ गैस की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है.

इस तरह बढ़े दाम
एक रिपोर्ट के अनुसार, LPG सिलेंडर की कीमतों में पिछले चार वर्षों में लगभग 56 फीसदी की वृद्धि हुई है. 1 अप्रैल, 2019 को घरेलू LPG सिलेंडर का खुदरा बिक्री मूल्य 706.50 रुपए था. यह 2020 में बढ़कर 744 रुपए हो गया. इसके बाद 2021 में 809 और 2022 में 949.50 रुपए के लेवल पर पहुंच गया था. हाल ही में यानी 1 मार्च को कीमत 1053 रुपए से बढ़कर अब 1100 रुपए के पार निकल गई है. इसके साथ ही पेट्रोल-डीजल के दाम भी आसमान पर पहुंच चुके हैं. इन सबके चलते खाने-पीने की लगभग हर वस्तु महंगाई हो गई है, लेकिन सरकार को लगता है कि महंगाई जैसा कुछ है ही नहीं.

 


दुनिया भर में बैंकों के गिरने से भारत पर पड़ेगा कुछ ऐसा Impact

इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी बैंकिंग संकट की शुरुआत हुई जिसके बाद फेडरल इंश्योरेंस डिपॉजिट काउंसिल ने SVB और सिग्नेचर बैंक को कब्जे में ले लिया था.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 22 March, 2023
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Wednesday, 22 March, 2023
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हालांकि SVB (सिलिकॉन वैली बैंक) और सिग्नेचर बैंक को अमेरिकी सरकार का समर्थन मिलने और UBS द्वारा Credit Suisse को खरीदे जाने से फाइनेंशियल संकट के बीच थोड़ा आराम तो मिला है लेकिन इस ग्लोबल बैंकिंग संकट का असर काफी लम्बे समय तक रहेगा. इस महीने की शुरुआत में अमेरिका में बैंकिंग संकट की शुरुआत हुई थी जिसके बाद फेडरल इंश्योरेंस डिपॉजिट काउंसिल ने SVB और सिग्नेचर बैंक को अपने कब्जे में ले लिया था और ब्रिटेन में SVB के बिजनेस को HSBC ने खरीद लिया था. यूरोपियन रेगुलेटर्स द्वारा ग्लोबल बैंकिंग सिस्टम में पैदा हुए संकट को काबू करने के लिए एक डील तय की गयी और इसी डील के तहत UBS, संकट में फंसे Credit Suisse को अपने कब्जे में ले रहा है. 

फिलहाल संकट से दूर नजर आ रहा है भारत
फिलहाल भारत इस बैंकिंग संकट से पैदा हुए प्रभावों से दूर नजर आ रहा है. माना जा रहा है कि यह बैंकिंग संकट तब तक भारतीय बैंकिंग सिस्टम या उसकी मैक्रो-इकॉनोमिक स्थिरता को किसी तरह से प्रभावित नहीं कर पायेगा जब तक अमेरिका और यूरोप में और ज्यादा बैंक असफल नहीं हो जाते और यह संकट और बड़ा नहीं हो जाता. लेकिन कुछ एनालिस्ट और इकोनॉमिस्ट का मानना है कि, इस बैंकिंग संकट का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से भारत की इकॉनमी पर पड़ सकता है और भारत के टेक क्षेत्र, मार्केट और स्टार्टअप्स पर भी देखा जा सकता है. 

भारत के टेक क्षेत्र पर बैंकिंग संकट का प्रभाव
एनालिस्टों की मानें तो अमेरिका और यूरोप में पैदा हुआ बैंकिंग संकट 245 बिलियन डॉलर्स के भारतीय IT बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट क्षेत्र पर थोड़ा सा भारी पड़ सकता है क्योंकि इस क्षेत्र की 41% कमाई बैंकिंग, फाइनेंशियल सुविधाओं और इंश्योरेंस (BFSI) के क्षेत्र से ही आती है. लेकिन सारा प्रभाव सिर्फ नेगेटिव ही हो यह जरूरी नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इतने बड़े और मशहूर बैंकिंग संस्थानों के गिरने से न सिर्फ पुराने बिजनेस में कमी आएगी बल्कि इसकी वजह से भविष्य में टेक के क्षेत्र पर होने वाले खर्चों में भी कमी आएगी और डील क्लोजर्स में भी देरी देखने को मिल सकती है. अगर यह बैंकिंग संकट और बढ़ता है तो TCS (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज), इन्फोसिस (Infosys), विप्रो (Wipro) और LTIमाइंडट्री (LTIMindtree) जैसी कंपनियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका है क्योंकि अमेरिकी बैंकिंग संस्थानों में इन कंपनियों की ज्यादा पहुंच है. 

BFSI बन सकता है परेशानी का विषय
इंडस्ट्री प्रमुख Nasscom की मानें तो वित्त वर्ष 2023 में टेक इंडस्ट्री में BFSI का योगदान लगभग 41% का है और BFSI एंटरप्राइज टेक खर्च और देश से बाहर आउट-सोर्सिंग जैसे क्षेत्रों में प्रमुख रूप से शासन करता है. टेक क्षेत्र की कंपनियों की कमाई में नॉर्थ अमेरिका का हिस्सा 50% से ज्यादा है. विप्रो, BFSI से 35% की कमाई करता है जो BFSI से होने वाली सबसे ज्यादा कमाई है. BFSI से TCS को 31.5%, इन्फोसिस को 29.3%, एचसीएल टेक (HCLTech) को 20% और टेक महिंद्रा को 16% की कमाई होती है. टेक महिंद्रा को BFSI से सबसे कम कमाई होती है. 

IT क्षेत्र पर बैंकिंग संकट के पॉजिटिव प्रभाव
लेकिन इस बैंकिंग संकट से IT क्षेत्र पर कुछ पॉजिटिव प्रभाव भी देखने को मिलेंगे. IT कंसल्टेंसी और रिसर्च फर्म एवरेस्ट के फाउंडर Peter Bendor-Samuel की मानें तो TCS और इन्फोसिस जैसी फर्म्स अब कॉस्ट ऑप्टिमाइजेशन प्रोजेक्ट्स को जीतने के लिए इस वक्त सबसे सही स्थान पर हैं क्योंकि इस वक्त टेक के क्षेत्र में एक परेशानी का माहौल बना हुआ है और सिर्फ एक बड़ी डील भी कंपनियों के विकास की रफ़्तार बढाने के लिए काफी है. एचसीएल टेक्नोलॉजी के पूर्व CEO और भारतीय IT क्षेत्र के अनुभवी विनीत नायर का मानना है कि, अब आगे क्या होगा यह कह पाना तो बहुत मुश्किल है लेकिन माहौल में बनी हुई इस अस्थिरता की वजह से IT क्षेत्र के नए प्रोजेक्ट्स पर प्रभाव पड़ेगा. 

भारत के बैंकिंग क्षेत्र पर कुछ ऐसा होगा प्रभाव
एसेट्स में 6%, लोन में 4% और डिपॉजिट में 5% के हिस्से के साथ भारत में विदेशी बैंकों की मौजूदगी बहुत ही कम है. विदेशी बैंक, फॉरेक्स और इंटरेस्ट रेट जैसी डेरिवेटिव मार्केट्स में ज्यादा एक्टिव हैं और यहां उनकी हिस्सेदारी लगभग 50% की है. Credit Suisse को भारत के लिए सीधे तौर पर खतरा नहीं माना जा रहा क्योंकि भारत के बैंकिंग सिस्टम के एसेट्स में इसकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.1% की है. भारत में यह 12वां सबसे बड़ा विदेशी बैंक है और इसके एसेट्स की कीमत लगभग 20,700 करोड़ रुपये है. 
 

भारत में कम हैं UBS की शाखाएं
भारत में UBS की शाखाएं भी बहुत कम हैं और देश में मौजूद अपनी इकलौती शाखा को बैंक 2013 में बंद कर चुका है. यह बैंक कैश इक्विटी बिजनेस चलाता था जिसकी वजह से FII (Foreign Institutional Investors) को देश में पार्टिसिपेटरी नोट्स के माध्यम से ट्रांजेक्शन करने का मौका मिलता था. अभी भी भारत की अपनी इकलौती शाखा के लिए Credit Suisse के पास लाइसेंस मौजूद है और वेल्थ मैनेजमेंट, इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और ब्रोकरेज सुविधाओं के साथ एक काफी बड़ा बिजनेस भी मौजूद है. साथ ही यह बैंक शेयर्स के बदले ‘हाई-यील्ड प्रमोटर फाइनेंसिंग’ की सुविधा प्रदान करने में भी बहुत एक्टिव रहता है. 

डेरीवेटिव मार्केट का प्रमुख है Credit Suisse
जेफरिज द्वारा की गयी एक स्टडी की मानें तो Credit Suisse की मौजूदगी प्रमुख रूप से डेरिवेटिव मार्केट में है और इसके 60% एसेट्स का फंड लोन के माध्यम से आता है. इतना ही नहीं इस 60% एसेट्स में से 96% हिस्से की अवधि लगभग 2 महीने है. भारत के बैंकिंग सेक्टर में Credit Suisse की योग्यता को देखते हुए एनालिस्टों का मानना है कि काउंटर-पार्टी रिस्क की जांच में थोड़ा बहुत एडजस्टमेंट देखने को मिल सकता है, खासकर डेरिवेटिव मार्केट्स में. 

बैक-ऑफिस जॉब्स पर कुछ ऐसा हो सकता है प्रभाव
UBS द्वारा Credit Suisse को खरीदे जाने के बाद से यह आशंका जताई जा रही है कि ऑपरेशंस के रिस्ट्रक्चर होने और खर्च कम करने के लिए उठाये गए फैसलों से भारत में उसके बिजनेस और खासकर नौकरियों पर पर प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ेगा. UBS और Credit Suisse के भारत स्थित टेक्नोलॉजी बैंक ऑफिसों में लगभग 14,000 लोग काम करते हैं. UBS द्वारा अपने परेशान विरोधी बैंक का कब्जा करने और भूमिकाओं में बदलाव के साथ-साथ खर्चा कम करने के लिए उठाये गए फैसलों से इन ऑफिसों पर सबसे बड़ा प्रभाव पड़ेगा. साथ ही, मल्टी-सिटी फैसिलिटीज, जिन्हें ग्लोबल-इन-हाउस सेंटर्स के रूप में जाना जाता है, में छंटनी भी देखने को मिल सकती है.

7000 लोगों की नौकरी को हो सकता है खतरा? 
भारत के 3 शहरों में स्थित अपने टेक्नोलॉजी सेंटर्स में UBS और Credit Suisse के लगभग 7000 लोग काम करते हैं. मर्जर पूरा होने के बाद भूमिकाओं की व्यवस्था में बदलाव किया जाएगा जिससे इन सेंटर्स में काम करने वाले बहुत से लोगों की नौकरी को खतरा हो सकता है क्योंकि UBS, Credit Suisse से सिर्फ बेस्ट टैलेंट को ही चुनकर नौकरी पर रखेगा. भारत में दोनों बैंकों के ऑपरेशंस से अच्छी तरह परिचित एक बैंकर ने कहा कि, उन्हें शायद इतने ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं होगी और शायद इसीलिए भूमिकाओं की व्यवस्था में बदलाव अटल है. बैंकिंग की बात करें तो UBS पहले से ही भारत में बहुत कमजोर था और इसलिए जो सबसे बड़ा सवाल सामने आता है वह यह है कि, क्या UBS Credit Suisse के ऑपरेशंस के साथ आगे बढ़ता है या फिर कैपिटल-कम करने की कोशिश के तहत उसमें भी कमी देखने को मिलेगी. 

भारतीय स्टार्ट-अप्स पर बैंकिंग संकट का प्रभाव
जब अमेरिकी रेगुलेटर्स ने सभी जमाकर्ताओं को एक करने का वादा किया तो SVB के जमाकर्ताओं ने चैन की सांस ली थी. फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस द्वारा बनायीं गयी इकाई सिलिकॉन वैली ब्रिज बैंक असफल हो चुके SVB बैंक को अपने कब्जे में लेगा. लेकिन बहुत से स्टार्टअप्स को SVB के गिरने से पैदा हुए प्रभाव थोड़े लम्बे समय तक महसूस होते रहेंगे. इस बैंकिंग संकट ने बाहरी SaaS फर्मों और Y कोम्बिनेटर के पोर्टफोलियो समेत बहुत से भारतीय स्टार्टअप्स को प्रभावित किया है. अमेरिकी रेगुलेटर्स द्वारा बंद हो चुके बैंक के जमाकर्ताओं को उनके पैसे का फिर से एक्सेस देने के बावजूद वह स्टार्टअप्स अपने पैसों को कहीं और ट्रान्सफर करने के प्रमुख तरीके ढूंढ रहे हैं जिनके फंड्स SVB में जमा हैं. भारतीय IT मंत्री राजीव चन्द्रसेखर के अनुसार, SVB में भारतीय स्टार्टअप्स के लगभग 1 बिलियन डॉलर्स जमा हैं. 

स्टार्टअप इकोसिस्टम पर कुछ ऐसा होगा प्रभाव 
SVB के गिरने से घरेलु स्टार्टअप इकोसिस्टम में अस्थायी रूप से लिक्विडिटी की कमी और फंड्स इकट्ठा करने में चुनौतियों के साथ-साथ हजारों कर्मचारियों की छंटनी भी देखने को मिल सकती है. साथ ही, यह ख्याल भी सबको परेशान कर रहा है कि, क्या नयी मैनेजमेंट उसी प्रकार से स्टार्टअप्स को समर्थन देगी जिस प्रकार से SVB पहले देता आया था? अपनी फ्लेक्सिबिलिटी, स्पेशल फायदों और कस्टमाइज्ड सोल्यूशंस की वजह से SVB टेक स्टार्टअप्स का पसंदीदा बैंक बन गया था. 

भारतीय मार्केटों पर ऐसा होगा बैंकिंग संकट का प्रभाव
ग्लोबल बैंकिंग संकट की वजह से मार्केटों में प्रमुख रूप से एक नेगेटिव भावना फैल गयी और ज्यादातर कैपिटल सीधा सेफ-हेवेन्स में पहुंच गयी. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ब्रोकरेज फर्म आनंद राठी का कहना है कि, SVB के साथ हुई इस घटना से भारतीय शेयर मार्किट पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ सकता है. इन घटनाओं की वजह से इंटरेस्ट रेट के दृष्टिकोण में सुधार हो सकता है. इससे इंडियन इक्विटीज की कीमत तय करने वाले प्राइज-टू-अर्निंग्स के मल्टीपल्स में वृद्धि देखने को मिल सकती है. हमें अभी भी विश्वास है कि इंडियन इक्विटी मार्केट लगभग 12% रिटर्न्स हासिल कर सकती है. घरेलु ब्रोकरेज फर्म ने यह भी कहा कि, संभावित तौर पर RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) अप्रैल में होने वाली अपनी MPC (मोनेटरी पॉलिसी कमेटी) की मीटिंग में एक ज्यादा नर्म मोनेटरी पॉलिसी अपना सकता है जैसा फेडरल रिजर्व अपनी फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की मीटिंग में करेगा. इस वक्त देश में इंटरेस्ट रेट का माहौल पहले से ज्यादा अच्छा है. 
 

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भारत छोड़ क्यों भागे ये विदेशी बैंक, वजह जानकार रह जायेंगे हैरान

2011 से लेकर अब तक कई विदेशी बैंक भारत में अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. ऐसा क्या हुआ कि इन बैंकों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा?

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Tuesday, 21 March, 2023
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पिछले कुछ दिनों के दौरान अमेरिका में पैदा हुए बैंकिंग संकट की वजह से पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है. जहां सोने और चांदी के दामों में बढ़त देखने को मिल रही है वहीं, इस संकट की वजह से बहुत से स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों पर खतरा होने कि आशंका भी जताई जा रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, 2011 से लेकर अब तक 12 विदेशी बैंक भारत में अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इन बैंकों को भारत में अपना कारोबार बंद करना पड़ा? 

इस वजह से बंद किया अपना कारोबार: 2011 से लेकर अब तक लगभग 12 विदेशी बैंकों ने भारत में या तो अपना बिजनेस बंद कर दिया है या फिर अपने ऑपरेशंस को बिलकुल कम कर दिया है. आइये जानते हैं ऐसा होने के पीछे प्रमुख वजहें क्या हैं?

1.    विदेशी बैंकों के साथ अलग बर्ताव: विदेशी बैंकों और भारतीय बैंकों के बीच लोन देने और टैक्स लगाने जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर अक्सर ही खींचातानी होती रही है. विदेशी बैंकों को इन मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह से एक सब्सिडियरी बनाने का सुझाव दिया गया था, लेकिन ज्यादातर विदेशी बैंकों ने इस सुझाव को इसलिए नहीं माना क्योंकि भारतीय रूपया पूरी तरह कनवर्टिबल नहीं हो सकता था. 

2.    एसेट्स की खराब क्वालिटी: साल 2018 में IL&FS का संकट पैदा हुआ था जिसकी वजह से बहुत से प्रमुख बैंकों और विदेशी बैंकों द्वारा लोन देने की क्षमता में कमी आई. इस वजह से विदेशी बैंकों के पास अच्छी क्रेडिट क्वालिटी रेटिंग्स होने के बावजूद उनकी लोन देने की क्षमता को खारिज कर दिया गया. 

3.    लिक्विडिटी ज्यादा और इंटरेस्ट रेट्स कम: महामारी की वजह से बहुत लम्बे समय तक RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) और सरकार की वित्तीय पॉलिसी में एक ढीलापन बना रहा. इसकी वजह से लिक्विडिटी बढ़ गयी और इंटरेस्ट रेट बहुत ही कम हो गए. रिटेल बैंकिंग का बिजनेस ज्यादा मार्जिन का नहीं बल्कि ज्यादा मात्रा का बिजनेस होता है और बैंकों को यह बात हमेशा से पता थी. लेकिन ज्यादातर बैंक इस बिजनेस में फंड की कमी की वजह से घुसे और जब कुछ और समझ नहीं आया तो उन्होंने बड़े-बड़े बिजनेसों को कैपिटल आवंटित करना शुरू किया. 

4.    घरेलु बैंकों से मिला बहुत कॉम्पिटिशन: टेक्नोलॉजी के मामले में भारत के घरेलु फाइनेंशियल संस्थानों ने अपना लेवल पहले से बहुत ऊपर कर लिया है और इसकी वजह से बदलती हुई मार्केट की जरूरतों को पूरा करने की उनकी क्षमता में भी वृद्धि हुई है. हालांकि विदेशी बैंकों की मैनेजमेंट भारतीय है लेकिन ज्यादातर बड़े फैसले अभी भी ग्लोबल लेवल पर लिए जाते हैं और इस वजह से विदेशी बैंक भारतीय मार्केट में होने वाले बदलावों के प्रति इतनी जल्दी रियेक्ट नहीं कर पाते. 

इन विदेशी बैंकों ने छोड़ा भारतीय मार्केट: 

Deutsche Bank: Deutsche बैंक भी दुनिया भर में बहुत तेजी से बढ़ते बैंकों में से एक है. बैंक ने अपना क्रेडिट कार्ड बिजनेस साल 2011 में Indusind बैंक को बेच दिया था. 

Barclays: साल 2012 में Barclays ने अपने ऑपरेशंस को बहुत बड़े स्तर पर कम कर लिया था. 

UBS, Morgan Stanley: जहां UBS ने भारत में अपने ऑपरेशंस को साल 2013 में ही बंद कर लिया था वहीं Morgan Stanley ने अपना बैंकिंग लाइसेंस खोने की वजह से भारत में अपना बिजनेस बंद कर दिया था. 

Merrill Lynch, Barclays, Standard Chartered: साल 2015 में Merrill Lynch, Barclays और Standard Chartered जैसे प्रमुख बैंकों ने भारत में अपने ऑपरेशंस को समेट लिया था. 

Commonwealth Bank Of Australia, RBS & HSBC: Commonwealth Bank Of Australia ने साल 2016 में अपने ऑपरेशंस को बंद कर दिया था जबकि RBS (रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड) ने अपने कॉर्पोरेट, रिटेल और संस्थागत बिजनेस को पूरी तरह समेट लिया था. इतना ही नहीं इसी साल HSBC ने देशभर में मौजूद अपनी शाखाओं को घटाकर आधा कर दिया था. 

BNP Paribas: BNP Paribas ने साल 2020 में भारत के अन्दर अपने वेल्थ मैनेजमेंट बिजनेस को बंद कर लिया था. 

Citi Bank: इस साल, बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख विदेशी बैंक Citi बैंक ने अपना रिटेल बिजनेस एक्सिस बैंक को बेच दिया है. 
 

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Credit Suisse ने खुद लिखी अपनी बर्बादी की कहानी, लगातार करता रहा 'गलतियां' 

क्रेडिट स्विस का 167 सालों का इतिहास है और इस दौरान कई बार बैंक की तरफ से ऐसे काम हुए हैं, जिसने उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया.

Last Modified:
Tuesday, 21 March, 2023
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मुश्किल दौर से गुजर रहा स्विट्जरलैंड का दिग्गज बैंक क्रेडिट स्विस (Credit Suisse) बिकने जा रहा है. लंबे समय तक क्रेडिट स्विस के प्रतिद्वंदी बैंक रहे UBS ने उसे 3.2 अरब डॉलर में खरीदने का ऐलान किया है. क्रेडिट स्विस की गिनती, दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में होती है और यह अपने ग्राहकों को कई तरह की फाइनेंशियल सेवाएं मुहैया कराता है. क्रेडिट स्विस की वित्तीय परेशानियों का अहसास सभी को था, लेकिन ये किसी ने नहीं सोचा था कि इतना बड़ा बैंक एकदम से धराशाही हो जाएगा. 

167 सालों का इतिहास
करीब 8 महीने पहले तक क्रेडिट स्विस के चेयरमैन एक्सेल लीमैन (Axel Lehmann) बैंक की वित्तीय स्थिति को मजबूत बताते नहीं थक रहे थे. उन्होंने बैंक के किसी दूसरे संस्थान में मर्ज करने की खबरों को भी बकवास करार दिया था. वह लगातार ये जताने की कोशिश कर रहे थे कि सबकुछ ठीक है, लेकिन जब हालात बेकाबू हो गए और बैंक पर ताला लगने की नौबत आ गई, तो बैंक प्रबंधन ने रातोंरात अपने प्रतिद्वंदी UBS से हाथ मिला लिया. क्रेडिट स्विस का 167 सालों का इतिहास है और इस दौरान कई बार बैंक की तरफ से ऐसे काम हुए हैं, जिसने उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया और उसे आर्थिक नुकसान भी सहना पड़ा है.

टैक्स चोरी में मदद का आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, क्रेडिट स्विस से जुड़े सबसे शुरुआती घोटालों में से एक 1997 में हुआ था. इस दौरान बैंक पर अमेरिका में अपने अमीर ग्राहकों को टैक्स चोरी करने में मदद का आरोप लगा था. आरोप लगाया गया था कि बैंक ने केमैन आइलैंड्स जैसे टैक्स हेवन देशों में अपने ग्राहकों के बैंक खाते खुलवाये, ताकि वे अपनी संपत्ति को अमेरिकी सरकार से छुपा सकें और टैक्स का भुगतान करने से बच सकें. इसके चलते बैंक को अमेरिकी सरकार ने भारी भरकम हर्जाना भी देना पड़ा था.

हाई-प्रोफाइल घोटाला
2008 में भी इस बैंक की भूमिका पर सवाल उठे. बैंक ने सबप्राइम मॉर्गेज-के सपोर्ट वाली सिक्योरिटीज में भारी निवेश किया था, जो बाद में बेहद जोखिम भरा साबित हुआ और बैंक के लिए बड़े नुकसान का कारण बना. इसी तरह, 2014 में, क्रेडिट स्विस पर अमेरिकी नागरिकों को टैक्स बचाने में मदद करने के आरोप में $2.6 अरब डॉलर का जुर्माना लगा था. साल 2018 में क्रेडिट स्विस मलेशिया में धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल घोटाले को लेकर सुर्खियों में रहा. बैंक पर मलेशिया के एक सॉवरेन वेल्थ फंड से अरबों डॉलर के फ्रॉड में मदद करने का आरोप था. इस मामले में भी स्विस अधिकारियों ने क्रेडिट स्विस पर $47 मिलियन का जुर्माना लगाया था. 

गलत जगह किया निवेश
साल 2022 में क्रेडिट स्विस का नाम एक फाइनेंशियल फर्म 'ग्रीन्सिल कैपिटल' से जुड़ा था, जिसने दिवालिया के याचिका दायर किया था. ग्रीन्सिल कैपिटल पर कई फ्रॉड के मामलों में शामिल होने का आरोप था. क्रेडिट स्विस ने इस फर्म में भारी निवेश किया था और इस फ्रॉड के चलते क्रेडिट स्विस को काफी ज्यादा नुकसान हुआ था. लिहाजा, ये कहना गलत नहीं होगा कि Credit Suisse ने अपनी बर्बादी की कहानी खुद लिखी. बैंक लगातार गलतियां करता गया और उससे कोई सबक नहीं लिया. नतीजतन, आज उसे अपने 'दुश्मन' बैंक के हाथों बिकना पड़ रहा है. 


क्‍या US बैंकिंग संकट का असर भारत के IT सेक्‍टर पड़ेगा, जानिए क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट? 

इस बात को कई एक्‍सपर्ट मान रहे हैं कि BFSI का भारत के आईटी सेक्‍टर में बड़ा योगदान है लेकिन सभी एक्‍सपर्ट ये मानते हैं कि इससे बड़ा असर नहीं पड़ेगा. असर आंशिक ही रहेगा.

Last Modified:
Monday, 20 March, 2023
It Companies

अमेरिका में आए बैंक संकट को लेकर वहां की सरकार तेजी से काम कर रही है. सवाल ये है कि क्‍या अमेरिका के बैंकिंग सेक्‍टर के संकट का असर भारत की किसी इंडस्‍ट्री पर पड़ने जा रहा है. आईटी कंपनियों की आय के आंकड़े बताते हैं कि उनकी 40 प्रतिशत बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा (बीएफएसआई) कंपनियों से आती है. ऐसे में जब अमेरिका के तीन बड़े बैंकों पर संकट आया है तो क्‍या पिछले लंबे समय से BFSI आईटी कंपनियों के राजस्‍व में एक बड़ी भूमिका निभाता आया है. खुद एक्‍सपर्ट मानते हैं कि इससे भारत का आईटी सेक्‍टर प्रभावित हो सकता है, लेकिन वो इंडस्‍ट्री के नजरिए के बारे में अभी भी आशावादी हैं.आईटी सेक्‍टर की ग्रोथ या उसके रेवेन्‍यू पर कोई असर पड़ने वाला है. कई लोगों का मानना है कि सिलिकॉन वैली बैंक, क्रेडिट सुइस, सिल्वरगेट और फर्स्ट रिपब्लिक बैंक के संकट के कारण शॉर्ट टर्म में आईटी फर्मों के नए सौदों पर इसका असर दिख सकता है. 

क्‍या मानती है सरकार 
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वास्तव में, भारतीय केंद्रीय आईटी राज्य मंत्री, राजीव चंद्रशेखर, चिंताओं को भली भांति समझ रहे हैं. वह इस बात से सहमत हैं कि बीएफएसआई से आईटी कंपनियों के रेवेन्‍यू पर इसका असर पड़ सकता है, लेकिन वह इंडस्‍ट्री के इसे लेकर नजरिए के बार में काफी आशावादी हैं. 
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उनका कहना है कि मैं समझता हूं कि भारतीय आईटी कंपनियों में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र (BFSI) का बड़ा योगदान है. हमें इसे चलने देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यह भारतीय आईटी के लिए कोई ऐसी समस्‍या सामने आ रही है जिससे उसके अस्तित्‍व पर संकट पड़े, लेकिन निश्चित रूप से, एक क्षेत्र में गिरावट दिख सकती है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में वृद्धि हो सकती है. 

क्‍या मानते हैं एक्‍सपर्ट 
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक एक्‍सपर्ट ने बताया कि अमेरिकी बैंकों पर आए इस संकट को लेकर अलग-अलग एक्‍सपर्ट की अपनी राय है. इस बीच, इंडस्‍ट्री के एक्‍सपर्ट मानते हैं कि भारतीय आईटी क्षेत्र पर अमेरिका के बैंकिंग संकट का सीधा असर नए सौदों की संख्या में कमी और मौजूदा अनुबंधों की आगे की बातचीत के रूप में दिखाई दे सकता है.  सबसे पहले, अनिश्चित वातावरण नए प्रोजेक्‍ट को प्रभावित करता है. इसलिए, हम ऑर्डर में इसकी कमी का असर देख सकते हैं. दूसरा, यह लागत पर दबाव डालता है. इस प्रकार, हम मौजूदा कॉन्‍ट्रैक्‍ट के लिए आउटसोर्सिंग और आगे की बातचीत पर इसका असर देख सकते हैं. साथ ही,  कुछ एजेंसियां ये भी कह रही हैं कि भारतीय आईटी क्षेत्र BFSI कंपनियों के सौदों में मंदी का गवाह बन सकता है. वहीं एक नामी संस्‍था का मानना है कि टीसीएस, इंफोसिस और एलटीआई माइंडट्री का मौजूदा संकट के प्रति सबसे अधिक रिस्‍क है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाल ही में ढह चुके सिलिकॉन वैली बैंक में उनका एक्सपोजर 10-20 आधार अंक हो सकता है.

कुछ ज्‍यादा असर न पड़ने की है उम्‍मीद 
बाजार को ठीक से समझने वाले मान रहे हैं कि भारतीय आईटी क्षेत्र पर बैंकिंग संकट का नेगेटिव असर का अनुमान है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक कंपनी के प्रमुख ने कहा कि फिलहाल भारतीय आईटी सेक्टर कमजोर है. आईटी कंपनियों के रेवेन्यू में BFSI का बड़ा योगदान है. अभी आउटलुक बहुत रूढ़िवादी है,  मैं अभी आईटी खरीदने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वे पहले से ही विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. एक बाजार के एक्‍सपर्ट कहते हैं कि आईटी सेक्टर में 2-3 फीसदी कटौती से इंकार नहीं किया जा सकता है.  विश्लेषकों और उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पकालिक आशंकाओं के बावजूद, दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के हस्तक्षेप से संकट समाप्त हो सकता है.
 


1 अप्रैल से बदलने जा रही है असली गोल्ड की पहचान, ऐसे पहचान सकते हैं असली सोना

बहुत से ऐसे रस्म और रिवाज हैं जिनमें सोने का अपना महत्त्व है और इसीलिए इन्वेस्टमेंट के साथ सोना इमोशनल रूप से भी भारतीय समाज और परिवारों से जुड़ा हुआ है.

Last Modified:
Friday, 17 March, 2023
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भारतीय परिवारों और लोगों के लिए गोल्ड यानी सोना, इन्वेस्टमेंट का एक काफी पसंदीदा तरीका है. इतना ही नहीं भारतीय परिवारों में नए बच्चे के जन्म से लेकर शादी तक बहुत से ऐसे रस्म और रिवाज हैं जिनमें सोने का अपना अलग महत्त्व है और इसीलिए इन्वेस्टमेंट के साथ-साथ सोना इमोशनल रूप से भी भारतीय समाज और भारतीय परिवारों से जुड़ा हुआ है. लेकिन सोना खरीदने के लिए उसकी सही पहचान और समझ होना बहुत जरूरी है. गोल्ड हॉलमार्किंग एक ऐसा ही तरीका है जो कंज्यूमर्स को सोने की ज्वेलरी और आर्टिफैक्ट्स यानी कलाकृतियों में इस्तेमाल किये गए सोने की शुद्धता के बारे में बताता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, 1 अप्रैल 2023 से गोल्ड हॉलमार्किंग के नियमों में बदलाव होने जा रहा है?

1 अप्रैल से बदल जाएगा सिस्टम
1 अप्रैल 2023 से सोने के सभी ज्वेलरी और आर्टिफैक्ट्स पर 6 अंकों का HUID यानी हॉलमार्क यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर अनिवार्य हो जाएगा. इस नंबर के माध्यम से आप न सिर्फ इस्तेमाल किये गए सोने की शुद्धता के बारे में जान पायेंगे बल्कि ज्वेलरी बनाने वाले ज्वेलर के बारे में भी आप जानकारी इकट्ठी कर सकेंगे. मार्केट में इस वक्त 4 डिजिट और 6 डिजिट के HUID वाली गोल्ड ज्वेलरी मिल रही है जिसकी वजह से कंज्यूमर अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं कि दोनों में अंतर क्या है और दोनों में से ज्यादा शुद्ध ज्वेलरी कौन सी होती है?
 

भारत में कब आई हॉलमार्किंग?
भारत में सोने के हॉलमार्किंग की प्रक्रिया साल 2000 में शुरू हुई थी. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की मानें तो इस वक्त देश भर में हर रोज सोने के लगभग 3 लाख सामानों की हॉलमार्किंग HUID के साथ की जा रही है. इतना ही नहीं, देश के लगभग 339 जिलों में सोने को परखने के लिए एक हॉलमार्क सेंटर मौजूद है इन सेंटर्स को AHC (Assaying Hallmark Centre) के नाम से भी जाना जाता है. 

 

ये है हॉलमार्किंग का इतिहास
गोल्ड हॉलमार्किंग का इतिहास बहुत पुराना है. पुराने समय में कीमती मेटल्स को जांचने के लिए पंच मार्क का इस्तेमाल किया जाता था. सबसे पहले चांदी पर हॉलमार्किंग का इतिहास आपको चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट Augustinian के पास ले जाता है और यह कस्टमर प्रोटेक्शन का सबसे पुराना सबूत है. इसके बाद मध्यकालीन समय में इंग्लैंड और फ़्रांस जैसे यूरोपीय देशों में हॉलमार्किंग का प्रचलन बढ़ने लगा. आधुनिक हॉलमार्किंग की शुरुआत ब्रिटेन से हुई और भारत को आधुनिक हॉलमार्किंग की शुरुआत करने में भी लगभग 20 सालों का समय लगा लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हॉलमार्किंग का भारतीय सिस्टम सबसे अच्छा और आगे है. 

BIS केयर से आपको मिलेगी ज्वेलरी की सारी जानकारी
यह जानने के लिए कि आपकी ज्वेलरी कितनी शुद्ध है, आप BIS केयर ऐप डाउनलोड कर सकते हैं. डाउनलोड करने के बाद इसमें जाकर अपना 6 अंकों का HUID नंबर डालें और उसके बाद आपको आपकी ज्वेलरी के बारे में सारी जानकारी आपकी स्क्रीन पर मिल जायेगी. आपकी ज्वेलरी किस ज्वेलर ने बनायीं इसे कौन से AHC द्वारा जांचा गया और उसमें इस्तेमाल किये गए सोने की शुद्धता का स्टैण्डर्ड क्या है? इन सभी सवालों के जवाब आपको BIS के केयर ऐप में HUID नंबर डालकर मिल जायेंगे. 

क्यों बदला जा रहा है हॉलमार्किंग का पुराना सिस्टम?
पुराने सिस्टम में किसी भी ज्वेलरी पर 4 तरह के चिन्ह देखने को मिलते थे. पुराने हॉलमार्किंग सिस्टम में आपको ज्वेलरी पर BIS (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड) का लोगो, कैरेट में सोने की शुद्धता, AHC का निशान और ज्वेलर का निशान देखने को मिलता था लेकिन इस सिस्टम के साथ सबसे बड़ी समस्या है ये है कि यह ट्रेसेबल नहीं है. यानी, इस सिस्टम से आपको ज्वेलरी बनाने वाले और उसको जांचने वाले AHC की जानकारी नहीं मिलती थी. नए सिस्टम में BIS के लोगो, और क्रेट में सोने की शुद्धता के साथ-साथ 6 अंकों का एक HUID नंबर दिया जाता है जिसे BIS केयर ऐप में डालकर आप अपनी ज्वेलरी के बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. 

नया सिस्टम है बेहतर
इस वक्त देश में लगभग 1400 AHC काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं, देश में बेची जाने वाली लगभग 90% ज्वेलरी पर हॉलमार्किंग के माध्यम से कंज्यूमर्स को गारंटी प्रदान कर रहे हैं. साथ ही नए सिस्टम के अंतर्गत अभी तक लगभग 1.5 लाख ज्वेलर्स खुदको रजिस्टर कर चुके हैं और 17 करोड़ ज्वेलरी और आर्टिफैक्ट्स की हॉलमार्किंग की जा चुका है. 
 

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क्या नए MD-CEO के सही सेलेक्शन में चूक गया HUL!

Priya Nair का विकास किसी उदाहरण से कम नहीं है. ब्यूटी उत्पादों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के बाद पिछले साल उन्हें यूनिलीवर में एक ग्लोबल भूमिका दी थी.

Last Modified:
Saturday, 11 March, 2023
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Noor Fathima Warsia,

Group Editorial Director,BW Businessworld

यूनिलीवर और हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) के नेतृत्व की अपॉइंटमेंट  खत्म होने के साथ ही कंपनी की कमान जल्द नए चेहरों के हाथों में देखने को मिलेगी. जहां Hein Schumacher जुलाई 2023 से ग्लोबल स्तर पर बॉस की भूमिका संभालेंगे, वहीं जून के महीने से ही Rohit Jawa के रूप में  HUL (हिंदुस्तान यूनिलीवर) के पास एक नया बॉस होगा. 


दो दशकों के बाद होगी Rohit Jawa की वापसी
दो दशकों बाद देश में वापसी करने वाले Rohit Jawa, बेशक HUL के टॉप बॉस की भूमिका के लिए सबसे अच्छे ऑप्शंस में से एक हैं. साल 2004 से ही वियतनाम, सिंगापुर, फिलीपींस और चीन जैसी कई प्रमुख मार्केटों में यूनिलीवर का बिजनेस चलाने के बाद Rohit को पिछले साल अप्रैल में कंपनी के ट्रांसफॉर्मेशन चीफ की भूमिका दी गयी थी. सबसे बेहतरीन नेताओं में से एक के रूप में Rohit ने बाजार की मुश्किल स्थितियों के दौरान कंपनी का नेतृत्व किया है और साथ ही फंक्शन से लेकर ट्रांसफॉर्मेशन तक के क्षेत्रों की कई प्रमुख  भूमिकाओं को भी निभाया है. इसलिए यूनिलीवर द्वारा Rohit Jawa को HUL की अध्यक्षता का चमचमाता हुआ ताज देने का फैसला कोई हैरानी वाली बात नहीं है. Rohit Jawa जिस HUL की कमान संभालने जा रहे हैं उसमें शायद ही पुरानी कंपनी वाली कोई बात होगी लेकिन वर्तमान में कंपनी का स्ट्रक्चर कुछ ऐसा है जिससे Rohit Jawa ज्यादा बेहतर तरीके से परिचित होंगे. 


पिछले एक दशक में HUL की शानदार परफॉरमेंस
Sanjiv Mehta की अध्यक्षता में पिछले एक दशक के अंदर HUL ने अपनी संस्कृति, विविधता और इकोसिस्टम के साथ-साथ अपनी क्षमता में भी बड़े बदलाव किये हैं और साथ ही शानदार प्रदर्शन भी किया है. पिछले साल वित्त वर्ष 2022 में 50,000 करोड़ रुपयों का आंकड़ा पार करने वाली यह एकमात्र FMCG (फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनी थी. डिजिटल क्षेत्र में प्रमुख रूप से उभरकर, अपने निर्णय लेने में अधिक फुर्ती लाकर और वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के उपभोक्ताओं के लिए भी पोर्टफोलियो स्थापित करके HUL का उदय सभी मामलों में महत्त्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है. HUL के इस उदय के पीछे Sanjiv Mehta का नेतृत्व और काम करने का अनूठा तरीका भी शामिल है. Sanjiv Mehta की अध्यक्षता सबके मिले जुले विकास, भविष्य के लिए तैयारी और लीडर्स को तैयार करने के बारे में रही है और उनकी अध्यक्षता का एक उदाहरण Priya Nair हैं. 
 

काम के लिए सबसे बेस्ट हैं Priya Nair
HUL में Priya Nair का विकास किसी उदाहरण से कम नहीं है. भारत में ब्यूटी उत्पादों और व्यक्तिगत देखभाल की केटेगरी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के बाद पिछले साल उन्हें यूनिलीवर में ब्यूटी और वेलबिंग क्षेत्र के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में एक ग्लोबल भूमिका दी गयी थी. साल 1995 में कंपनी के साथ अपनी यात्रा शुरू करने के बाद उन्हें 'यूनिलीवर के प्रोडक्ट'  के रूप में पहचाना जाने लगा.  कंपनी के साथ अपनी लगभग तीन दशक लम्बी यात्रा के दौरान उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं और कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं. इन फैसलों ने ही महामारी जैसे कठिन समय में HUL को मजबूत स्थिति में बनाये रखा था.
 

Priya Nair को है भारतीय मार्केट का अच्छा अनुभव
Priya Nair भारतीय बाजार के हर पहलू से बखूबी परिचित हैं और उस प्रक्रिया को भी जानती हैं जिसने पिछले दशक में कंपनी के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. Priya ने इन निर्णयों में पूरी तरह भाग लिया है और पूरी दृढ़ता से इन्हें लागू किया है. वह कंपनी के सिस्टम की ताकत और कमजोरियों को तो जानती ही हैं लेकिन साथ-साथ इस सिस्टम की क्षमता को बढ़ाने के सबसे अच्छे तरीकों के बारे में भी जानती हैं. पूरी दुनिया की व्यवस्था बदल रही है और भारत में कम्पटीशन भी बढ़ रहा है. लेकिन HUL को अपने इतिहास के आधार पर पता है कि कम्पटीशन कहीं से भी आ सकता है.
 

बहुत सी बड़ी कंपनियों को HUL ने दिए हैं CEO
इन सभी वजहों से किसी को भी लग सकता है कि कंपनी को इस समय विकसित करने के लिए Priya Nair ही सबसे सही व्यक्ति होंगी. हिंदुस्तान यूनिलीवर ने पिछले साल ही कई बड़ी कंपनियों को CEO के रूप में महत्त्वपूर्ण लोग प्रदान किये थे. फिर चाहे वह Colgate-Palmolive के भारतीय क्षेत्र की अध्यक्षता करने वाली Prabha Narasimhan हों, या गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के CEO Sudhir Sitapati, दोनों की पहचान तब से है जब वे HUL की एग्जीक्यूटिव कमेटी का हिस्सा थे. 

भारतीय लीडर्स को मिला वैश्विक मंच पर जाने का मौका
किसी बाहरी व्यक्ति का दृष्टिकोण बिल्कुल ऐसा ही होता है. ऐसा लगता है मानो Priya Nair और यूनिलीवर दोनों अलग-अलग तरीके से सोचते हैं. हालांकि इस दौरान HUL ने एक महिला नेता की अध्यक्षता में काम करने का मौका खो दिया है. कोई भी निर्णय जेंडर को ध्यान में रखकर नहीं लेना चाहिए. इसीलिए यूनिलीवर द्वारा लिए गए निर्णय को सभी के लिए निष्पक्षता के लेंस के माध्यम से समझा जाना चाहिए. Priya Nair की नई भूमिका से भारतीय लीडर्स को वैश्विक मंच पर जाने का एक नया  मौका मिला है जो रोमांचक होने के साथ-साथ अपने आप में काफी चुनौतीयों से भरा हुआ भी है. लेकिन जब भारत को लेकर दावा किया जाता है कि लैंगिक समानता तक पहुंचने में देश को लगभग दो सदियों जितना समय लगेगा तो एक व्यक्ति पूछ सकता है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा? 
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किसी से कम नहीं हैं 'छोटे अंबानी' के बड़े बेटे की बहू, खुद बनाई अपनी पहचान  

अनिल अंबानी के बेटे जय अनमोल ने पिछले महीने 20 तारीख को कृशा शाह के साथ सात फेरे लिए थे.

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Saturday, 11 March, 2023
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अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के घर होने वाले हर छोटे-बड़े फंक्शन की खबरें मीडिया में महीनों तक चलती रहती हैं, लेकिन उनके छोटे भाई यानी अनिल अंबानी (Anil Ambani) का परिवार लाइमलाइट में बहुत कम रहता है. एक जमाना था, जब हर जगह अनिल अंबानी के चर्चे होते थे. उनकी फिटनेस की मिसाल दी जाती थी, मगर कारोबार में लगातार लगते झटकों ने उनके लिए सबकुछ बदल दिया. पिछले महीने अंबानी परिवार के इस छोटे बेटे के घर खुशी आई थी. मौका था अनिल के बेटे जय अनमोल अंबानी (Jai Anmol Ambani) की शादी.  

20 फरवरी को हुई थी शादी
जय अनमोल अंबानी अनिल और टीना अंबानी (Tina Ambani) के बड़े बेटे हैं. उन्होंने 20 फरवरी को अपनी मंगेतर कृशा शाह (Krisha Shah) से शादी की थी. दोनों खासकर, कृशा शाह के बारे में अभी लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है. चलिए, आपको अनिल अंबानी की बहू कृशा के बारे में कुछ बताते हैं. लेकिन पहले बात करते हैं जय अनमोल की. जय मौजूदा समय में रिलायंस कैपिटल का कामकाज देख रहे हैं. उनकी प्रारंभिक पढ़ाई मुंबई के जॉन कॉनन स्कूल से हुई है. इसके बाद वे बिजनेस की पढ़ाई करने के लिए यूके चले गए थे. जय अनमोल को लग्जरी गाड़ियों का शौक है. उनके कार कलेक्शन में रोल्स-रॉयस फैंटम, लेम्बोर्गिनी गैलार्डो जैसी कई कारें शामिल है.

बिजनेस वुमन हैं कृशा
वहीं, कृशा शाह बिजनेस वुमन के साथ-साथ सोशल वर्कर हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से राजनीतिक अर्थशास्त्र के साथ ग्रेजुएशन किया है. बाद में उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की थी. कृशा अपने भाई के साथ मिलकर DYSCO नाम की कंपनी चलाती हैं. यह एक बिजनेस नेटवर्किंग कंपनी है. DYSCO की स्थापना से पहले वह यूके में दिग्गज IT कंपनी Accenture में काम करती थीं. कृशा की मां नीलम शाह फैशन डिजाइनर हैं और बड़ी बहन फैशन ब्लॉगर हैं.  

इतने करोड़ की है संपत्ति
कृशा शाह करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कृशा की नेटवर्थ करीब 4 करोड़ रुपए है. अंबानी परिवार का हिस्सा बनने के बाद भी वह बिजनेस वुमेन की अपनी भूमिका को निभाती रहेंगी. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वह DYSCO को पहले की तरह संभालती रहेंगी या फिर उनके भाई की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाएगी. 
 


क्या करती हैं OYO वाले रितेश अग्रवाल की Wife गीतांशा सूद? जानें यहां 

OYO के मालिक रितेश अग्रवाल ने 7 मार्च को गीतांशा सूद से शादी की थी. उनके रिसेप्शन में कई नामी हस्तियां शामिल हुईं थीं.

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Thursday, 09 March, 2023
Photo Credit: Weddingz.in

सस्ते होटल रूम उपलब्ध कराने के लिए फेमस हॉस्पिटैलिटी फर्म ओयो (OYO) के फाउंडर रितेश अग्रवाल ने शादी कर ली है. उनकी वाइफ का नाम गीतांशा सूद है. दिल्ली के एक 5 स्टॉर होटल में हुए शादी के रिसेप्शन में Paytm के सीईओ विजय शेखर और सॉफ्टबैंक के प्रमुख मासोयोशी सोन सहित कई नामी हस्तियां शामिल हुईं थीं. रितेश ने PM मोदी को भी अपनी शादी का आमंत्रण दिया था. 

इस शहर से है नाता
रितेश अग्रवाल ने 2013 में ओयो की शुरुआत की थी. उनकी गिनती देश के सबसे युवा अरबपतियों में होती है. चलिए अब उनकी पत्नी गीतांशा सूद के बारे में जानते हैं. हालांकि, उनके बारे में अभी ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गीतांशा सूद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहती हैं. वह फार्मेशन वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक हैं. यह एक निजी कंपनी है और 22 अगस्त 2020 को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज, कानपुर के साथ पंजीकृत है. 

80 देशों में कर रही काम
गीतांशा सूद की नेटवर्थ कितनी है, इसके बारे में कोई सही जानकारी मौजूद नहीं है. हालांकि, उनके पति रितेश अग्रवाल अरबपतियों में शुमार हैं. 2020 के डेटा के अनुसार, 1 बिलियन डॉलर थी. जाहिर है अब तक इसमें अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो गई होगी. रितेश की कंपनी ओयो रूम्स 80 देशों के 800 से ज्यादा शहरों में काम कर रही है. यह बजट यानी सस्ते होटल रूम्स उपलब्ध कराने के लिए फेमस है.

आईपीओ में हो रही देरी
बता दें कि रितेश अग्रवाल OYO का आईपीओ भी लेकर आना चाहते हैं. हालांकि, इसमें लगातार देरी हो रही है. इसी साल जनवरी में खबर आई थी कि बाजार नियामक सेबी ने कंपनी के आईपीओ संबंधी आवेदन को खारिज कर दिया था. सेबी ने नए अपडेट के साथ दोबारा आवेदन करने को कहा था. ओयो ने सितंबर 2021 में सेबी के पास शुरुआती डाक्यूमेंट्स जमा किए थे. यह आवेदन 8430 करोड़ रुपए का IPO लाने के लिए था. 

 


Weekend Special: अंबानी परिवार में किसने की थी सबसे पहले Love Marriage?

धीरूभाई अंबानी के दो बेटों मुकेश और अनिल के अलावा दो बेटियां भी हैं. हालांकि, दोनों ही लाइमलाइट से दूर रहती हैं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Saturday, 18 February, 2023
Last Modified:
Saturday, 18 February, 2023
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रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और उनका परिवार अक्सर चर्चा में रहता है. कभी फैमिली फंक्शन को लेकर तो कभी बिजनेस को लेकर अंबानी परिवार के सदस्यों की खबरें सामने आती रहती हैं. लेकिन अंबानी की बहनों यानी कि धीरूभाई अंबानी की बेटियों के बारे में कोई चर्चा नहीं होती. धीरूभाई के दो बेटों मुकेश और अनिल के अलावा दो बेटियां भी हैं. हालांकि, दोनों ही लाइमलाइट से दूर रहती हैं. इसलिए उनके बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आती. अंबानी और अनिल अंबानी की बहनों का नाम नीना कोठारी और दीप्ति सालगांवकर है. दीप्ति धीरूभाई की सबसे छोटी और नीना तीसरे नंबर की संतान हैं. 

कौन हैं नीना कोठारी?
सबसे पहले जानते हैं नीना कोठारी के बारे में. नीना की शादी 1986 में एचसी कोठारी ग्रुप के चेयरमैन भद्रश्याम कोठारी के साथ हुई थी, लेकिन 2015 में भद्रश्याम का कैंसर की वजह से निधन हो गया. एचसी कोठारी ग्रुप मुख्य रूप से शुगर, केमिकल और पेट्रोकेमिकल के क्षेत्र में कारोबार करता है. नीना की एक बेटी नयनतारा और बेटा अर्जुन कोठारी हैं. दोनों की शादी हो चुकी है. नयनतारा की शादी केके बिरला के पोते शमित से हुई है और उनका प्री वेंडिग फंक्शन मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया में हुआ था. बताया जाता है कि नीना अंबानी परिवार के लगभग हर फंक्‍शन का हिस्‍सा होती हैं. हालांकि, इसके बावजूद वह कैमरे की नजर में ज्यादा नहीं आतीं.

कौन हैं दीप्ति सालगांवकर?
अब जानते हैं अंबानी परिवार में पहली लव मैरिज करने वालीं दीप्ति के बारे में. दीप्ति की शादी 1983 में राज सालगांवकर से हुई थी. दरअसल, दीप्ति के पिता धीरूभाई और राज के पिता वासुदेव सलगांवकर दोनों अच्छे दोस्त थे और एक ही बिल्डिंग में रहते थे. जबकि दत्तराज सलगांवकर और मुकेश अंबानी भी अच्छे दोस्त थे. अंबानी परिवार में सबसे पहले दीप्ति ने लव मैरिज की थी. दीप्ति सलगांवकर अपने परिवार के साथ गोवा में रहती हैं. उनके पति देश की प्रसिद्ध फुटबॉल टीम सलगांवकर के मालिक हैं. इसके अलावा वह वीएम सलगावकर ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक हैं, जो अयस्क खनन, लौह अयस्क के निर्यात, रियल एस्टेट और स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी हुई है.

ऐसे आए थे दोनों नजदीक
धीरूभाई अंबानी काफी समय पहले साल 1978 में मुंबई की उषा किरण सोसायटी के 22वें मंजिल पर रहते थे. इसी बिल्डिंग की 14 मंजिल पर बिजनेसमैन बासुदेव सलगांवकर अपने परिवार के साथ रहते थे. दोनों के बीच अच्छे संबंध थे. दोनों का एक-दूसरे के घर अक्सर आना-जाना होता है. इस वजह से राज और मुकेश अंबानी की अच्छी दोस्ती हो गई. इसके बाद राज सलगांवकर की अंबानी परिवार से नजदीकी बढ़ी और वह मुकेश अंबानी की बहन दीप्ति को दिल दे बैठे. जब उन्होंने अपने परिजनों को यह बात बताई, तो वह उनकी शादी के लिए तुरंत तैयार हो गए. दीप्ति और राज की शादी साल 1983 में हुई थी. इस कपल के दो बच्‍चे हैं. बेटा विक्रम और बेटी इशेता.  


Sunday Special: खूबियों की खान है दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे, आज PM करेंगे उद्घाटन

ये एशिया का पहला ऐसा हाईवे होगा, जहां वन्यजीवों के लिए ग्रीन ओवरपास (Green Overpass) की सुविधा दी जाएगी.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Sunday, 12 February, 2023
Last Modified:
Sunday, 12 February, 2023
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) रविवार यानी आज दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे (Delhi-Mumbai Expressway) के 246 किलोमीटर लंबे दिल्ली-दौसा-लालसोट खंड का उद्घाटन करेंगे. एक्सप्रेस-वे के इस खंड के शुरू होने से दिल्ली से जयपुर तक का यात्रा समय घट जाएगा. कुल 1,390 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस-वे को देश ही नहीं दुनिया का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे बताया जा रहा है. कई ऐसी बातें हैं, जो इस प्रोजेक्ट को खास बनाती हैं. चलिए उन पर नजर डालते हैं.

चलते-चलते रिचार्ज होंगे EV 
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे को जर्मन तकनीक से बनाया जा रहा है और अगले 50 साल तक इसमें किसी भी तरह की टूट-फूट नहीं की जाएगी. इस एक्सप्रेसवे को बनाने में 12 लाख टन स्टील, 35 करोड़ क्यूबिक मीटर मिट्टी और लगभग 80 लाख टन सीमेंट का इस्तेमाल हो रहा है. फिलहाल इसमें 8 लेन होंगी, लेकिन भविष्य में इसे बढ़ाकर 12 लेन का किया जा सकता है. यहां 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां चलेंगी. सबसे ज्यादा खास बात ये है कि देश का पहला इलेक्ट्रिक हाईवे भी इस पर ही बन रहा है, जहां इलेक्ट्रिक गाड़ियां (EV) चलते-चलते रिचार्ज होंगी. 

बनेगा Green Overpass 
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे छह राज्यों दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरेगा. एक्सप्रेस-वे को इस तरह बनाया जा रहा है कि वन्यजीवों को भविष्य में कोई परेशानी न हो. कहने का मतलब है कि ये एशिया का पहला ऐसा हाईवे होगा, जहां वन्यजीवों के लिए ग्रीन ओवरपास (Green Overpass) की सुविधा दी जाएगी. इस एक्सप्रेस-वे को भारतमाला परियोजना के पहले चरण के हिस्से के रूप में बनाया जा रहा है. इसके अगले साल मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है.  

हैलीपैड भी बनाया जाएगा
PM मोदी आज जिस सोहना-दौसा खंड का उद्घाटन करेंगे, उसके खुलने से दिल्ली और जयपुर के बीच यात्रा का समय घटकर लगभग दो घंटे हो जाएगा.  NHAI यानी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने इस खंड में करीब डेढ़ लाख पौधे लगाए हैं. यह पूरा स्ट्रेच सीसीटीवी से लैस है, यानी यहां होने वाली हर हरकत पर हाईवे अथॉरिटी और पुलिस की नजर होगी. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर हैलीपैड भी बनाने की भी योजना है, ताकि दुर्घटना आदि की स्थिति में प्रभावितों तक जल्द से जल्द मदद पहुंचाई जा सके. 

दूरी घटेगी, फ्यूल बचेगा
चूंकि इस एक्सप्रेस-वे के बनने के बाद दिल्ली से मुंबई और बीच में कनेक्ट होने वाले अन्य शहरों के बीच यात्रा का समय कम होगा, यानी उनके बीच की दूरी घट जाएगी, तो ऐसे में फ्यूल की बचत भी होगी. बताया जा रहा है कि इस एक्सप्रेस-वे के अस्तित्व में आने के बाद फ्यूल की खपत में 32 करोड़ लीटर की कमी आएगी और इससे सालाना करीब 3200 करोड़ रुपए की बचत होगी. इतना ही नहीं, कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में भी काफी कमी आएगी, जो पर्यावरण के लिहाज से अच्छी बात है. हाइवे के हर 500 मीटर पर रेन वॉटर हार्वेसटिंग सिस्टम और एक्सप्रेस-वे के दोनों तरफ कुल 40 लाख पेड़ लगाए जाने की योजना है.

दिल्ली टू मुंबई @ 12 घंटे
इस एक्सप्रेस-वे पर टोल वसूली का सिस्टम भी सबसे अलग होगा. इसमें आपको एंट्री करते समय कोई टोल नहीं लगेगा, भुगतान एग्जिट करने पर देना होगा. हर 50 किलोमीटर पर रेस्ट एरिया होगा, जहां पेट्रोल पंप के साथ-साथ रेस्टोरेंट्स आदि काफी कुछ होगा. दिल्ली और मुंबई के बीच इस एक्सप्रेस-वे से सफर करने वालों के समय की बचत होगी. दिल्ली से मुंबई जाने में अभी 24 घंटे का समय लगता है, लेकिन इस एक्सप्रेस-वे के शुरू होने के बाद इसको पूरा करने में करीब 12 घंटे लगेंगे. यानी यात्रा आधे समय में ही पूरी हो जाएगी. यह एक्सप्रेस-वे छह राज्यों दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर गुजरेगा और कोटा, इंदौर, जयपुर, भोपाल, वडोदरा और सूरत जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ेगा.

मध्य प्रदेश को मिलेगा फायदा
मध्य प्रदेश को इस एक्सप्रेस-वे से काफी फायदा मिलने वाला है. क्योंकि इसका 245 किमी हिस्सा प्रदेश से गुजरेगा. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे, वडोदरा की ओर से मध्य प्रदेश के मेघनगर से लगी अनास नदी के पास से प्रदेश में प्रवेश करेगा. यह थांदला, सैलाना, खेजड़िया, शामगढ़, गरोठ, भवानीमंडी, कोटा होकर दिल्ली पहुंचेगा जबकि दिल्ली की ओर से यह राजस्थान के भवानीमंडी क्षेत्र से प्रदेश की सीमा में एंट्री करेगा. मध्य प्रदेश में 8 इंटरसेक्शन एक्सप्रेस-वे में बनाए जाएंगे, जिनके जरिए प्रदेश की सड़कें जुड़ेंगी. राजधानी भोपाल, उज्जैन, देवास, इंदौर को भी इससे जोड़ा जाएगा. हाइवे के दोनों तरफ बैरिकेडिंग की जाएगी, ताकि आवारा जानवर सड़क पर ना जाएं.