CJI ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, महिला अधिकार और लैंगिक समानता तथा दिव्यांगों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए कई ऐतिहासिक फैसले दिए.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे. सीजेआई के दो सालों की उपलब्धियों पर गौर किया जाए तो वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने न्यायिक या प्रशासनिक पक्ष में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भारतीय न्यायपालिका को पूरी तरह से बदलने के मिशन को सफलतापूर्वक शुरू किया. साथ ही सभी स्तरों पर अदालतों को अधिक सुलभ, समावेशी बनाकर नागरिक-केंद्रित सेवाएं प्रदान करने की कोशिश की.
चंद्रचूड़ ने दिए ये अहम फैसले
CJI का यह कार्यकाल असाधरण रहा, क्योंकि इस दौरान कई महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत हुई, जिनमें न्याय और दक्षता तक पहुंच में सुधार के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना शामिल रहा. इस दौरान व्यक्तिगत स्वतंत्रता, महिला अधिकार और लैंगिक समानता तथा दिव्यांगों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए कई ऐतिहासिक फैसले दिए.
मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने जो फैसले सुनाए थे, उनसे उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं. लेकिन सीजेआई के रूप में उनसे कई लोग निराश हुए, कुछ ऐसे मामले थे जिन्हें उन्होंने अनदेखा कर दिया, और अदालत के बाहर उनका आचरण और बयान भी इसमें अहम हैं. सबसे पहले, आइए उन फैसलों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने जस्टिस चंद्रचूड़ को उदारवादियों का पसंदीदा बना दिया:
1. ADM जबलपुर मामला- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 1976 में उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ वाली पीठ की ओर से सुनाए गए एक फैसले को पलट दिया था. 1976 का फैसला, जो ADM जबलपुर मामले के नाम से मशहूर है. इसमें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों को न्यायिक मदद लेने से रोक दिया था. अगस्त 2017 में, नौ जजों की एक पीठ ने 1976 के फैसले को 'गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण' बताते हुए पलट दिया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने लिखा, 'जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता मानव अस्तित्व के लिए अपरिहार्य हैं. वे प्राकृतिक कानून के तहत अधिकार बनाते हैं.'
2. एडल्ट्री कानून- जस्टिस चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने एडल्ट्री पर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि एक महिला को उसके पति की 'संपत्ति' नहीं माना जा सकता है. धारा 497 में व्यभिचार को 'किसी व्यक्ति की पत्नी के साथ उसकी सहमति या जानकारी के बिना यौन संबंध बनाना' के रूप में परिभाषित किया गया है. हालांकि, महिलाओं को इस धारा के तहत मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी.
3. समलैंगिकता- दो वयस्कों के बीच समलैंगिक गतिविधि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अपने फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह प्रावधान एक ' पुराना और औपनिवेशिक कानून' था जो लोगों के जीवन और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
4. लव जिहाद- जस्टिस चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 'लव जिहाद' मामले में हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था. हाईकोर्ट ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी थी. उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि एक महिला अपना जीवन कैसे जीना चाहती है यह पूरी तरह से उसके अपने फैसले की बात है.'
5. आधार कार्ड- आधार अधिनियम मामले में उनके एकमात्र असहमतिपूर्ण फैसले ने इस एक्ट को पूरी तरह से यह कहते हुए रद्द कर दिया कि 2009 से आधार कार्यक्रम संवैधानिक खामियों और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से ग्रस्त है.
6. भीमा-कोरेगांव हिंसा- भीमा-कोरेगांव मामले में अपने एकमात्र असहमतिपूर्ण फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, 'न्यायिक घोषणाओं में बुलंद आदेशों का नागरिक के लिए कोई अर्थ नहीं हो सकता है जब तक कि मानव स्वतंत्रता की संवैधानिक तलाश उन व्यक्तियों के लिए न्याय हासिल करने में तब्दील न हो जाए जिनकी स्वतंत्रता खतरे में है.'
7. मनी बिल्स पर दिए अहम फैसले- 2023 और 2024 के बीच तीन अलग-अलग मौकों पर, जस्टिस चंद्रचूड़ से अनुरोध किया गया कि वे मनी बिल्स के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण और दूरगामी कानून/संशोधन पारित करने वाली सरकार के मुद्दे पर फैसला करने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन करें. सरकार ने ऐसा राज्यसभा को दरकिनार करने के लिए किया, जहां उसके पास बहुमत नहीं था. इस शॉर्ट-कट का इस्तेमाल करके पारित किए गए कुछ बिलों में प्रीवेंशन मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना और आधार में संशोधन शामिल थे. हालांकि, CJI ने कहा कि वह इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए पीठ का गठन करेंगे, लेकिन उन्होंने अभी तक पीठ को अधिसूचित नहीं किया है.
कुछ फैसलों पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश 'रोस्टर के मास्टर' भी होते हैं, इसका मतलब है कि वह अन्य जजों को मामले सौंपते हैं। पिछले साल दिसंबर में, तत्कालीन दूसरे मोस्ट सीनियर जज संजय किशन कौल ने पाया कि उनके केसों की लिस्ट से कुछ मामले हटा दिए गए हैं। उनसे छीने गए मामलों में से एक केस केंद्र सरकार की ओर से कॉलेजियम द्वारा रिकमेंड जजों की नियुक्तियों, पदोन्नति और ट्रांसफर पर कार्रवाई न करने के बारे में था।
मंदिर दौरे को लेकर बटोरी सुर्खियां
एक मुख्य न्यायाधीश के पास अपनी पसंद के पूजा स्थलों पर जाने का पूरा अधिकार है, यहां तक कि हाई ज्यूडिशियल अधिकारियों के लिए आचार संहिता में भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं है जो उन्हें ऐसा करने से रोकता हो. लेकिन ये दौरे निजी प्रकृति के होने चाहिए या प्रचार के साथ, यह तय करना हर जज के विवेक पर निर्भर करता है, जस्टिस चंद्रचूड़ के मंदिर दौरे चर्चा का विषय बने रहे. उन्होंने अपने कार्यकाल में द्वारकाधीश मंदिर (गुजरात), राम मंदिर (अयोध्या), जगन्नाथ पुरी मंदिर (ओडिशा), पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाल), और तिरुपति मंदिर (आंध्र प्रदेश) जैसे प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन किए, इन यात्राओं को लेकर काफी प्रचार भी हुआ.
गणेश पूजा में CJI के घर जब पहुंचे पीएम मोदी
इसके बाद, 10 दिवसीय गणेश उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को CJI के आधिकारिक आवास पर गणपति आरती में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया. एक बार फिर, कैमरों ने पीछा किया, जिस पर कई सियासी पार्टियों और नेताओं ने सवाल उठाए.
भारत सरकार विजय माल्या और नीरव मोदी को भारत वापस लाने की कोशिश कर रही है. PM मोदी ने इस संबंध में ब्रिटिश प्रधानमंत्री से भी बात की है.
विजय माल्या भारत को लूटकर ब्रिटेन में बड़े आराम से जिंदगी गुजार रहा है, लेकिन अब माना जा रहा है कि उसके आराम में खलल पड़ने वाली है. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने G20 समिट के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर से इस मुद्दे पर बात की है बताया जा रहा है कि PM मोदी ने किएर स्टार्मर से कहा है कि माल्या और नीरव को अब भारत को सौंप दिया जाना चाहिए. बता दें कि दोनों के प्रत्यर्पण की पहले भी कई बार कोशिश हो चुकी है, मगर कोई सफलता नहीं मिली.
रिश्ते सुधरे हैं, लेकिन...
भले ही PM मोदी की ब्रिटिश PM से विजय माल्या और नीरव मोदी के प्रत्यर्पण पर बातचीत को भारतीय मीडिया 'दबाव' करार दे रहा हो, लेकिन जानकारों का मानना है यह इतना भी आसान नहीं है. पूर्व में कोशिशें हुई हैं और माल्या कानूनी दांवपेंच के चलते बचता रहा है. ब्रिटेन भारत के वांटेड अपराधियों के प्रत्यर्पण को लेकर खास गंभीर नहीं रहा है. उसने रेमंड वर्ले, रवि शंकरन, वेलू बूपालन, अजय प्रसाद खेतान, वीरेंद्र कुमार रस्तोगी और आनंद कुमार जैन के प्रत्यर्पण की अर्जी पूर्व में ठुकराई थी. हालांकि, ये बात अलग है कि पहले के मुकाबले ब्रिटेन और भारत के रिश्ते अब ज्यादा मजबूत हुए हैं. लेकिन प्रत्यर्पण जैसे मामलों पर ब्रिटेन से तत्परता के उम्मीद जल्दबाजी होगी.
इसलिए बंधी है उम्मीद
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर के कार्यकाल में भारत के वांटेड अपराधियों के प्रत्यर्पण की उम्मीद इसलिए ज्यादा है, क्योंकि स्टारमर ने भारत के पहले वांछित अपराधी के प्रत्यर्पण प्राप्त के लिए अदालत में बहस की थी. उन्होंने इतनी मजबूती से भारत का पक्ष रखा था कि अदालत को उनकी बात सुननी पड़ी. वह 2008 से 2013 के बीच पब्लिक प्रॉसिक्यूशन रहे थे. मोहम्मद हनीफ उमरजी पटेल उर्फ टाइगर हनीफ अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का कथित सहयोगी था. हनीफ सूरत में 1993 के हुए बम विस्फोटों में वांछित था, मार्च 2010 में ग्रेटर मैनचेस्टर के बोल्टन में एक किराने की दुकान से उसे गिरफ्तार किया गया था. वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में किएर स्टार्मर ने भारत के ओर दमदार बहस की थी. इसलिए भारत को उम्मीद कि उनके ब्रिटिश PM की कुर्सी पर बैठने से प्रत्यर्पण की अर्जियों पर जल्द फैसला हो सकता है.
कितना लूटकर भागे?
लिकर किंग रहे विजय माल्या किंगफिशर एयरलाइंस से जुड़े 9,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज नहीं चुकाने के मामले में वांछित है. वह 2016 से ब्रिटेन में रह रहा है. जबकि नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाले में 13,000 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोपी है. वह पिछले पांच साल से लंदन की जेल में बंद है. भारत की तरफ से माल्या और नीरव मोदी को वापस लाने के कई प्रयास हुए हैं. इस साल जनवरी में CBI, प्रवर्तन निदेशालय (ED), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA ) और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों सहित एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल इस संबंध में ब्रिटेन गया था.
GlobalData की नई रिपोर्ट, “Global Risk Report Quarterly Update – Q3 2024”, के अनुसार यूरोप, एशिया-प्रशांत और अमेरिका में रिस्क स्कोर थोड़ा कम हुआ है.
वैश्विक आर्थिक संभावनाओं को भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं (Geopolitical uncertainties) ने चुनौती दी है. चल रहे संघर्षों के कारण सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ रहा है. हालांकि, घटती महंगाई और ब्याज दरों में कटौती से सकारात्मक माहौल बना है. Q3 2024 में ग्लोबल रिस्क लेवल 55.6 (100 में से) स्थिर रहा, जो पिछली तिमाही जैसा ही था. लेकिन यह Q1 2024 (57.2) और Q4 2023 (57.3) के मुकाबले कम है. यह जानकारी डेटा और एनालिटिक्स कंपनी GlobalData ने दी है.
GlobalData की नई रिपोर्ट, “Global Risk Report Quarterly Update – Q3 2024”, के अनुसार यूरोप, एशिया-प्रशांत और अमेरिका में रिस्क स्कोर थोड़ा कम हुआ है. यूरोप में रिस्क स्कोर सबसे कम रहा, जबकि मध्य पूर्व और अफ्रीका में यह बढ़ा है. GlobalData की आर्थिक रिसर्च विश्लेषक, गायत्री गणपूले ने कहा कि 2024 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि 3.1% रहने का अनुमान है, जो 2023 के 3.2% से थोड़ी कम है. यह दर्शाता है कि चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था में मजबूती भी है. घटती महंगाई और ब्याज दरों में कटौती से सुधार को बल मिल रहा है, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव और बढ़ते मालभाड़े ने सप्लाई चेन पर दबाव बना रखा है, जिससे प्रगति की गति धीमी हो रही है. GCRI Q3 2024 में शामिल 153 देशों में से 24.2% देश कम जोखिम वाले हैं. 32% देश मध्यम जोखिम वाले हैं. 37.9% देश उच्च जोखिम वाले हैं वही 5.9% देश बहुत उच्च जोखिम वाले हैं.
यूरोप– सुधार जारी, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव बरकरार
यूरोप दुनिया का सबसे कम जोखिम वाला क्षेत्र है. इसका जोखिम स्कोर Q2 2024 में 41.8 से Q3 2024 में 41.4 तक थोड़ा बेहतर हुआ है. यूरोप में सुधार के कारण अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे बढ़ रही है, महंगाई कम हो रही है. ब्याज दरों में कटौती (ECB द्वारा भी), जिससे निवेश बढ़ा है. अगर चुनौतियों को बात करें तो भू-राजनीतिक तनाव, श्रमिकों की कमी, जलवायु से जुड़ी समस्याएं है. वहीं Q3 2024 GCRI अपडेट के अनुसार सबसे कम जोखिम वाले देश स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, लक्ज़मबर्ग और सबसे ज्यादा जोखिम वाले देश यूक्रेन, तुर्किये, बेलारूस है.
एशिया-पैसिफिक- जोखिम कम, लेकिन धीमी वृद्धि चिंता का कारण
एशिया-प्रशांत क्षेत्र का जोखिम स्कोर Q2 2024 में 54.1 से घटकर Q3 2024 में 54.0 हो गया है. यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सकारात्मक आर्थिक रुझानों और चीन से मिलने वाले नीति समर्थन को दिखाता है. यह क्षेत्र 2024 में दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र रहने की उम्मीद है, खासकर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मजबूत योगदान के कारण. हालांकि, चीन और भारत में धीमी वृद्धि के कारण जोखिम बने हुए हैं. चीन की वृद्धि Q3 2024 में 4.6% तक घट गई, जो Q1 2023 के बाद सबसे कम है, इसके पीछे संपत्ति क्षेत्र की समस्याएं और मँहगाई कम होने का खतरा है. इसी तरह, भारत की वृद्धि Q2 2024 में 6.7% तक घट गई, जो Q2 2023 के बाद सबसे कम है, और इसके संकेत मिल रहे हैं कि अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है. Q3 2024 GCRI अपडेट के अनुसार सबसे ज्यादा जोखिम वाले देश पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश है और सबसे कम जोखिम वाले देश ताइवान (चीन प्रांत), सिंगापुर, हांगकांग (चीन SAR) है.
अमेरिका–जोखिम में हल्की गिरावट
अमेरिका का जोखिम स्कोर Q2 2024 में 57.1 से घटकर Q3 2024 में 57.0 हो गया है, जो महंगाई कम होने और नीति दरों में कटौती के कारण हुआ है. हालांकि, अमेरिका का बढ़ा हुआ कर्ज, लैटिन अमेरिका में चल रहे वित्तीय समस्याएं, क्षेत्र भर में राजनीतिक अशांति, जैसे लैटिन अमेरिका में प्रदर्शन और वेनेजुएला चुनाव पर विवाद जैसी समस्याएं चुनौतियां बनी हुई हैं. डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद पर लौटने से राजनीतिक माहौल अस्थिर बना हुआ है, जिससे आर्थिक रणनीतियों और स्थिरता पर असर पड़ सकता है. वहीं इस क्षेत्र में कम जोखिम वाले देश कनाडा, अमेरिका, कोस्टा रिका है और उच्च जोखिम वाले देश, हैती, वेनेजुएला, अर्जेंटीना है.
मध्य पूर्व और अफ्रीका– संघर्ष के कारण जोखिम बढ़ना
मध्य पूर्व और अफ्रीका का जोखिम स्कोर Q2 2024 में 65.9 से बढ़कर Q3 2024 में 66.3 हो गया है, जो मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, और शिपिंग में रुकावट के कारण है. अफ्रीका में भी कई समस्याएँ हैं जैसे- पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में बाढ़ के कारण लाखों लोग विस्थापित हो गए हैं और खाद्य सुरक्षा की स्थिति और खराब हो गई है. ग्रेटर हॉर्न ऑफ अफ्रीका में गंभीर कुपोषण से लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं, खासकर बच्चे. इन संकटों के साथ-साथ, उच्च कर्ज और चल रहे संघर्षों ने क्षेत्रीय अस्थिरता और जोखिम को बढ़ा दिया है. Q3 2024 GCRI अपडेट के अनुसार, दुनिया के 10 सबसे उच्च जोखिम वाले देशों में से 7 देशों का संबंध मध्य पूर्व और अफ्रीका क्षेत्र से है: यमन, सीरिया, बुरुंडी, ईरान, जिम्बाब्वे, नाइजीरिया, और मलावी.
गायत्री गणपूले का निष्कर्ष:
GlobalData की आर्थिक रिसर्च विश्लेषक, गायत्री गणपूले के अनुसार वैश्विक जोखिम स्तर स्थिर हैं, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियां अलग-अलग हैं. कुछ क्षेत्र मजबूती और प्रगति दिखाते हैं, जबकि अन्य क्षेत्र भू-राजनीतिक तनाव, प्राकृतिक आपदाओं, और अस्थिरता के कारण बढ़ते जोखिम का सामना कर रहे हैं. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए ध्यानपूर्वक समायोजन और दीर्घकालिक स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
क्या बिज़नेस और सरकार के नेता इस बदलाव की क्रांति को सही दिशा दे सकते हैं? Ipsos Understanding Asia रिपोर्ट में यही सवाल उठाया गया है.
एशिया-पैसिफिक क्षेत्र (जिसमें भारत समेत 11 देश शामिल हैं) के लोग, नई तकनीक और AI को अपनाने के बावजूद, भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं. यह जानकारी इप्सॉस (Ipsos) की एक नई रिपोर्ट में सामने आई है. इप्सॉस, जो मार्केट रिसर्च में ग्लोबल लीडर है, ने Global Trends: Understanding Asia रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाले खास मुद्दों पर गहराई से नजर डालती है.
यह रिपोर्ट Ipsos Global Trends के 8वें एडिशन के डेटा पर आधारित है. इस सर्वे में 50 देशों के 50,000 लोगों से बातचीत की गई, जो इप्सॉस के इतिहास का सबसे बड़ा पब्लिक सर्वे है. 2025 तक एशिया-पैसिफिक के उपभोक्ताओं के लिए तीन प्रमुख रुझान (Trends):
Technowonder (तकनीक की अद्भुत दुनिया)
दुनिया के कई हिस्सों में लोग AI के फायदों और नुकसानों पर बंटे हुए हैं, लेकिन एशिया में लोग तकनीकी प्रगति को लेकर उत्साहित हैं. एशिया-पैसिफिक में 68% लोग मानते हैं कि AI दुनिया पर सकारात्मक असर डाल रहा है, जबकि ग्लोबली यह आंकड़ा सिर्फ 57% है. वहीं चीन नए टेक्नोलॉजी को अपनाने में सबसे आगे है और सर्वे में शामिल 50 देशों में पहले स्थान पर है.
हालांकि, इसके बावजूद, कई APAC देशों ने AI को लेकर चिंताएं जाहिर की हैं. भारत में 2013 से अब तक, 19% ज्यादा लोग मानते हैं कि तकनीकी प्रगति उनके जीवन को नुकसान पहुंचा रही है. जापान में यह आंकड़ा 18% बढ़ा है. वहीं AI और डेटा सुरक्षा को लेकर चिंताएं काफी ज्यादा हैं. एशिया-पैसिफिक में 70% लोग इस बात से परेशान हैं कि कंपनियां उनकी जानकारी कैसे इकट्ठा कर रही हैं. यह डर फिलीपींस (86%), थाईलैंड और सिंगापुर (दोनों 81%) में सबसे अधिक है.
पुराने तरीकों की ओर वापसी (Retreat to old systems)
दिलचस्प बात यह है कि एशिया के युवा (खासतौर पर Gen Z) भविष्य को लेकर चिंतित हैं. एशिया-पैसिफिक के 57% Gen Z ने कहा कि वे चाहते कि वे अपने माता-पिता के बचपन के समय में बड़े हुए होते यह आंकड़ा वैश्विक स्तर (51%) से अधिक है. ब्रांड्स इस नॉस्टेल्जिया ट्रेंड (पुरानी यादों) का फ़ायदा उठा सकते हैं, जहां वे पुराने समय की परंपराओं को आधुनिक इनोवेशन के साथ जोड़कर पेश करें.
जलवायु परिवर्तन पर सहमति (Climate convergence)
जलवायु परिवर्तन (climate change) को लेकर सहमति है कि यह सच है और तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है. 10 में से 8 (84%) लोग मानते हैं कि अगर एशिया-पैसिफिक के देशों ने अपनी आदतें नहीं बदलीं, तो पर्यावरणीय आपदा होगी. वहीं ऑस्ट्रेलिया में यह चिंता 2013 के बाद से 15% बढ़ गई है.
एशिया-पैसिफिक के 73% लोग कहते हैं कि वे पहले से ही पर्यावरण बचाने के लिए जितना कर सकते हैं, कर रहे हैं. यह भावना खासतौर पर इंडोनेशिया (91%), थाईलैंड (89%), और फिलीपींस (87%) में सबसे अधिक है. वहीं 75% लोग मानते हैं कि कंपनियां पर्यावरण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही हैं. भारत, ताइवान, इंडोनेशिया और थाईलैंड के अधिकांश लोगों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है.
Ipsos के अधिकारियों का क्या कहना है?
Ipsos APEC के CEO हैमिश मुनरो ने कहा कि जैसे-जैसे एशिया-पैसिफिक का आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव एक जटिल और आपस में जुड़े हुए विश्व में बढ़ रहा है, इस क्षेत्र को समझने का महत्व पहले से कहीं ज्यादा हो गया है. यह रिपोर्ट दिखाती है कि उपभोक्ता और नागरिक तेज़ी से बदलती दुनिया में, खासतौर पर तकनीकी विकास, सामाजिक बदलाव और जलवायु परिवर्तन को लेकर क्या सोचते और महसूस करते हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र है जो बदलाव को अपनाने के लिए तैयार है, लेकिन चाहता है कि बिज़नेस आगे बढ़कर नेतृत्व करें और बदलाव के इस सफर का मार्गदर्शन करें.
जहां तक जलवायु परिवर्तन की बात है, उपभोक्ता मानते हैं कि ब्रांड्स का महत्वपूर्ण रोल है पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों को कम करने में ब्रांड्स के लिए यह एक बड़ा मौका है कि वे पर्यावरणीय नेतृत्व दिखाएं और जलवायु परिवर्तन की कोशिशों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित करें.
वहीं Ipsos इंडिया के CEO अमित अडारकर ने कहा कि भारत की कहानी मुख्य रूप से दो प्रमुख समूहों पर आधारित है – शहरी जनता और डिजिटल भारतीय. शहरी जनता इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती. वहीं डिजिटल भारतीय, डिजिटल थकान (fatigue) महसूस कर रहे हैं और अपनी ज़िंदगी को आसान बनाना चाहते हैं.
भारत में स्वतंत्रता (individualism) के ट्रेंड को अपनाना दिलचस्प रहा. लोग तकनीक को अपनी स्थिति सुधारने और सीखने के लिए एक सहायक और साथी के रूप में देख रहे हैं. यह ट्रेंड खासतौर पर मिलेनियल्स और जेन Z में दिखा और इसे सकारात्मक माना गया. हालांकि, चिंता की बात यह है कि भारतीयों में जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता घट रही है, जबकि यह समस्या सबको प्रभावित कर रही है. भारतीय ‘शुतुरमुर्ग नीति’ (Ostrich Policy) अपना रहे हैं, यानी तत्काल खतरे को नजरअंदाज करना और इसे भविष्य की समस्या मानना, यह एक गंभीर चिंता का विषय है.
आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. खुद को केजरीवाल का हनुमान बताने वाले कैलाश गहलोत ने AAP छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है.
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को करारा झटका देते हुए कैलाश गहलोत भाजपा में शामिल हो गए हैं. गहलोत के इस्तीफे की खबर अचानक सामने आई, लेकिन 'आप' से उनका मोहभंग अचानक नहीं हुआ. पिछले कुछ समय, खासकर अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसने कैलाश गहलोत को 'आप' की टोपी उतारकर भाजपा का कमल थामने के लिए मजबूर किया. दरअसल, गहलोत खुद को साइडलाइन महसूस करने लगे थे. खबर है कि भाजपा को जैसे ही उनकी स्थिति का पता चला पार्टी नेता गहलोत को अपने खेमे में लाने के लिए सक्रिय हो गए. वैसे भी भाजपा दूसरे दलों को तोड़ने में खुद को माहिर साबित कर चुकी है.
ऐसे बिगड़ने लगे रिश्ते
सियासी पंडितों की मानें, तो केजरीवाल के जेल जाने के बाद गहलोत का पार्टी से रिश्ता खराब होने लगा था. फरवरी 2023 में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के कैबिनेट पदों से इस्तीफा देने के बाद, गहलोत दिल्ली कैबिनेट में दूसरे नंबर के पावरफुल नेता बन गए थे. उन्होंने कई विभागों का प्रबंधन किया और वित्त मंत्री के रूप में दिल्ली का बजट भी पेश किया. हालांकि, जून में आतिशी को राजस्व, योजना और वित्त विभागों की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली, जो पहले गहलोत के अधिकार क्षेत्र में थे. कानून विभाग भी उनके प्रभार से हटा दिया गया था, जिसने गहलोत को नाखुश कर दिया.
BJP के साथ थी करीबी?
इसके बाद अगस्त में 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अरविंद केजरीवाल के एक कदम से भी गहलोत नाराज हो गए. दरअसल, केजरीवाल उस समय कथित शराब नीति घोटाले के सिलसिले में जेल में बंद थे. ऐसे में दुविधा यह थी कि CM के जेल में रहते हुए तिरंगा कौन फहराएगा. सीनियर होने के नाते कैलाश गहलोत को उम्मीद थे कि केजरीवाल उनका नाम लेंगे, मगर केजरीवाल ने आतिशी का नाम आगे कर दिया. हालांकि, केजरीवाल की इच्छा पूरी नहीं हो पाई. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इस काम के लिए कैलाश गहलोत को नियुक्त किया और उन्होंने ही तिरंगा फहराया. इस घटनाक्रम से आम आदमी पार्टी को यह संकेत गया कि गहलोत भाजपा से नजदीकी बढ़ा रहे हैं.
अब बढ़ाएंगे मुश्किलें
AAP के कई नेता यह मानने लगे थे कि गहलोत भाजपा के साथ मिलकर कोई गेम खेल रहे हैं. ऐसे में कैलाश गहलोत का फिर से पार्टी में पहले वाली पोजीशन हासिल करना लगभग नामुमकिन था. इसलिए उन्होंने भाजपा का दामन थामने में ही भलाई समझी. गौरतलब है कि स्वाति मालीवाल पहले से ही केजरीवाल और AAP के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. अब गहलोत भी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं. मालूम ही कि करीब दो महीने पहले ही गहलोत ने खुद को अरविंद केजरीवाल का हनुमान घोषित किया था.
बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उन्हें सलमान खान से नजदीकी के चलते लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने निशाना बनाया.
मुंबई में NCP नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या से सलमान के करीबियों में दहशत का माहौल है. बाबा सिद्दीकी सलमान खान (Salman Khan) के करीबी थी. उन्होंने ही सलमान और शाहरुख खान के बीच की जंग खत्म कराई थी. इस हत्याकांड की जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गैंग (Lawrence Bishnoi Gang)ने ली है. एक कथित सोशल मीडिया पोस्ट में गैंग की तरफ से कहा गया कि जो सलमान का दोस्त वो हमारा दुश्मन. हालांकि, बाद में इस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया. बाबा सिद्दीकी हत्याकांड में फरार आरोपी जीशान अख्तर को लेकर बड़ी जानकारी सामने आई है. बताया जा रहा है कि जीशान, लॉरेंस गैंग से जुड़ा हुआ है और वो लगातार अमनोल बिश्नोई के संपर्क में था. ऐसे में सलमान से नजदीकी रखने वालों का दहशत में आना लाजमी है.
लगातार कर रहा पीछा
लॉरेंस बिश्नोई गैंग लंबे समय से सलमान खान के पीछे पड़ा हुआ है. सलमान और उनके पिता सलीम खान को कई बार धमकियां मिल चुकी हैं और कुछ वक्त पहले सलमान के घर फायरिंग भी हुई थी. 14 अप्रैल को सलमान खान के बांद्रा स्थित गैलेक्सी अपार्टमेंट के सामने सुबह 5 बजे फायरिंग हुई थी. दो बाइकसवार हमलावरों ने 5 राउंड गोली चलाई थी. फायरिंग के समय सलमान अपने घर में ही थे. लॉरेंस के भाई अनमोल बिश्नोई ने सोशल मीडिया पर इस वारदात की जिम्मेदारी ली थी. हमले के दो दिन बाद हमलावरों को गुजरात से गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद मुंबई पुलिस ने गैंग के चार और लोगों को गिरफ्तार किया था, जो पनवेल में सलमान की कार पर अटैक करने की योजना बना रहे थे.
बनाई थी खौफनाक योजना
इसी साल जून में सलमान खान पर काफी खतरनाक अटैक की योजना बनाई गई थी. इसके लिए खासतौर पर पाकिस्तान से AK-47, M-16 और AK-92 मंगवाए जाने थे. हालांकि, पुलिस की मुस्तैदी से यह साजिश सफल नहीं हो पाई. पकडे गए आरोपियों ने सलमान के घर, फार्म हाउस और कई शूटिंग स्पॉट्स की रेकी भी की थी. दरअसल, पुलिस को खबर मिली थी कि लॉरेंस बिश्नोई और संपत नेहरा गैंग के करीब 60 से 70 गुर्गे सलमान खान पर नजर रखे हुए हैं. बिश्नोई गैंग नाबालिगों के जरिए सलमान पर अटैक करने का प्लान बना रहा है. वारदात को अंजाम देने के बाद हमलावरों को बोट के जरिए कन्याकुमारी से श्रीलंका भगाने की भी योजना थी.
ऐसे शुरू हुई दुश्मनी
चलिए जानते हैं कि आखिर लॉरेंस बिश्नोई गैंग की सलमान से ऐसी क्या दुश्मनी है कि वो लगातार उन्हें धमका रहा है, हमले की साजिश रच रहा है. पूरे मामले को समझने के लिए कुछ साल पीछे जाना होगा. बात 1998 की है, जब सलमान खान फिल्म 'हम साथ-साथ हैं' की शूटिंग के लिए राजस्थान गए थे. इस दौरान, जोधपुर से सटे कांकाणी गांव के पास उन्होंने दो काले हिरणों का शिकार किया था. उनके साथ फिल्म के कुछ अन्य कलाकार भी मौजूद थे. जैसे ही यह खबर सामने आई बवाल मच गया. राजस्थान का बिश्नोई समाज काले हिरण को अपने परिवार का हिस्सा मानता है और वहां काले हिरण की पूजा की जाती है. इस घटना से बिश्नोई समाज बेहद नाराज हुआ और इस नाराजगी से बदले की आग भड़क गई. अप्रैल 2018 में अदालत ने सलमान खान को इस मामले में दोषी करार देते हुए 5 साल की सजा सुनाई. हालांकि, उसी दिन सलमान 50 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत लेकर बाहर आ गए. तब से सलमान खान बिश्नोई समाज के निशाने पर हैं.
जेल से चल रहा कारोबार?
साल 2023 में लॉरेंस बिश्नोई ने जेल से ही एक वीडियो जारी किया था. इस वीडियो में लॉरेंस ने धमकी देते हुए कहा था कि यदि सलमान खान ने माफी नहीं मांगी, दो अंजाम बहुत बुरा होगा. इस वीडियो को जारी करने से पहले लॉरेंस दो बार बॉलीवुड एक्टर की हत्या की साजिश रच चुका था. 2021 में लॉरेंस बिश्नोई को राजस्थान की जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल शिफ्ट किया गया था. अगस्त 2023 से वो गुजरात की साबरमती जेल में बंद है. बताया जाता है कि वो जेल से ही खौफ का कारोबार चला रहा है. वहीं, लॉरेंस का भाई अनमोल बिश्नोई कनाडा को अपने ठिकाना बनाये हुए है. वह अमेरिका आता-जाता रहता है. अनमोल सिद्धू मूसेवाला केस में भी आरोपी है. जानकारी के अनुसार, अनमोल अक्सर अपनी लोकेशन बदलता रहता है.
त्योहारी सीजन को लेकर भारतीय उपभोक्ताओं में आशावाद बना हुआ है. यही कारण है कि भारतीय उपभोक्ता इस त्योहारी सीजन में बड़ी खरीदारी की तैयारी कर रहे हैं.
Rediffusion विज्ञापन एजेंसी और लखनऊ यूनिवर्सिटी के सहयोग से बने भारत लैब ने दिवाली पल्स 2024 रिपोर्ट पेश की है, जिसमें भारत के हिंदी क्षेत्रों में दिवाली से पहले खरीदारी के रुझान और ग्राहकों की भावनाओं के बारे में बताया गया है. 3,480 लोगों से मिली जानकारी के आधार पर, रिपोर्ट दिखाती है कि महंगाई के बावजूद एक सकारात्मक माहौल बना हुआ है, और अधिकतर लोग अपनी खर्च करने की आदतों को बनाए रखना या बढ़ाना चाहते हैं. फैशन, इलेक्ट्रॉनिक्स, और होम डेकोर जैसी श्रेणियों को कवर करते हुए, रिपोर्ट यह बताती है कि त्योहारों के करीब आते ही भारत की पसंद कैसे बदल रही है.
Rediffusion के चेयरमैन डॉ. संदीप गोयल ने इस अध्ययन के बारे में जानकारी दी, उन्होंने कहा कि हमने पिछले साल त्योहारों से पहले 'मूड ऑफ भारत' अध्ययन शुरू किया था. इस साल का अध्ययन और बड़ा, गहरा और व्यापक है - इसमें मीडिया से जुड़े कई और पहलुओं को भी शामिल किया गया है, जो लोगों की खरीदारी की योजनाओं को प्रभावित करते हैं.
रिपोर्टों में दिखाया गया है कि उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा (36.18%) पिछले साल की तुलना में अपने त्योहारों पर खर्च बढ़ाने की योजना बना रहा है, जबकि 35.02% अपने पिछले खर्च को बनाए रखेंगे. हालांकि, 29.52% बढ़ती लागत के कारण अपने खर्च को कम कर रहे हैं. उपभोक्ता की उम्मीद और सावधानी के बीच यह संतुलन उद्योग के नेताओं द्वारा भी महसूस किया गया है. पीएमजे ज्वेल्स (PMJ Jewels) के प्रबंध निदेशक दिनेश जैन ने कहा कि महामारी के बाद की रिकवरी के कारण उपभोक्ता खर्च बढ़ा है, और पारंपरिक और आधुनिक गहनों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
मुख्य उपभोक्ता रुझान बताते हैं कि फैशन सबसे प्रमुख श्रेणी है, जिसमें 86.35% उत्तरदाता अपने कपड़े नए करने की योजना बना रहे हैं. व्यक्तिगत उपहार (72.84%), होम डेकोर (70.83%), और इलेक्ट्रॉनिक्स (60.92%) इसके बाद आते हैं. स्थिरता का आंदोलन भी बढ़ रहा है, जिसमें 83.36% खरीददार पर्यावरण संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हैं, खासकर फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स की खरीदारी में.
रिपोर्ट में दिखाया गया है कि 86.35% उपभोक्ता नए कपड़े और एक्सेसरीज़ खरीदने की योजना बना रहे हैं, जिसमें पुरुष थोड़े आगे हैं, 51.75% पुरुष और 47.92% महिलाएं. इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, पुरुषों का रुझान अधिक है, जहां 55.66% खरीदारी की योजना पुरुषों की है, जबकि महिलाओं की हिस्सेदारी 43.87% है. इसके विपरीत, होम डेकोर श्रेणी में महिलाएं अधिक सक्रिय हैं, जहाँ 73.31% महिलाएं खरीदारी करने की योजना बना रही हैं.
ऑनलाइन शॉपिंग लगातार बढ़ रही है, जहाँ 58% से अधिक उपभोक्ता ऑनलाइन और ऑफलाइन खरीदारी का मिश्रित तरीका पसंद कर रहे हैं. मिलेनियल्स और जनरेशन Z इस डिजिटल बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें 85% से अधिक लोग ऑनलाइन खरीदारी को चुन रहे हैं. इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग भी अहम भूमिका निभा रही है, जहाँ 53.69% उपभोक्ता सोशल मीडिया से प्रभावित हैं, खासकर फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी श्रेणियों में.
त्योहारी सीजन के दौरान निवेश की योजनाएं भी बढ़ रही हैं, जहां लगभग आधे उत्तरदाता पारंपरिक संपत्तियों जैसे सोना (55.26%) और रियल एस्टेट (40.74%) में निवेश करने की योजना बना रहे हैं. ये रुझान वित्तीय सुरक्षा पर बढ़ते ध्यान को दर्शाते हैं, जैसा कि लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक के. राय ने बताया कि भारत इस दीवाली खुश और खर्च करने को तैयार नजर आ रहा है. उपभोक्ता शायद बढ़ते शेयर बाजार और सरकार व अर्थव्यवस्था की स्थिरता से प्रोत्साहित हैं.
महंगाई एक चिंता का विषय होने के बावजूद, यह पूरी तरह से लोगों के उत्साह को कम नहीं कर रही है. 70% से अधिक उपभोक्ता बताते हैं कि महंगाई उनके खर्च के फैसलों को ज्यादा प्रभावित नहीं करेगी. वास्तव में, 30.42% लोग अपने बजट को 25-50% तक बढ़ाने की योजना बना रहे हैं ताकि बढ़ती कीमतों के साथ तालमेल बैठा सकें, जो उपभोक्ता व्यवहार में लचीलापन दिखाता है. पारले के सीनियर कैटेगरी हेड, कृष्णाराव बुद्धा ने कहा कि हम त्योहारी सीजन के दौरान 25% से अधिक की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं, और इस मांग को पूरा करने के लिए हम विभिन्न गिफ्टिंग विकल्प लॉन्च कर रहे हैं.
इसके अलावा, लगभग 50% उपभोक्ता त्योहारी सीजन के दौरान यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें 54.12% यात्रा परिवार के साथ होगी. यह रुझान दिखाता है कि लोग दीवाली के दौरान परंपरा और अवकाश के बीच संतुलन बना रहे हैं. जैसे-जैसे त्योहार करीब आता है, ब्रांड्स और व्यवसायों के पास उपभोक्ताओं की उम्मीदों को भुनाने का अच्छा मौका है, खासकर छूट, डिजिटल जुड़ाव और स्थायी विकल्पों के माध्यम से.
राकेश गंगवाल ने हाल ही में एक बड़ी ब्लॉक डील के जरिए देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच दी है.
ऐसे समय में जब एविएशन सेक्टर में एंट्री एयर टर्बुलेंस में फंसे विमान जितनी ही जोखिमभरी थी, राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल ने इंडिगो को लॉन्च किया. अपने अनुभव और रणनीति की बदौलत उन्होंने इंडिगो की सफलता की कहानी लिखी. दोनों के बीच गज़ब का तालमेल था. मार्केट की ज़रूरत के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता और बाजार की चुनौतियों को हर हाल में मात देने के जुनून ने इस जोड़ी को सफल लीडर के रूप में पेश किया. फिर अचानक फेविकोल सी मजबूत नज़र आने वाले इस रिश्ते में दरार आ गई. राकेश गंगवाल इंडिगो का कॉकपिट छोड़कर बाहर आ गए.
11,000 करोड़ के शेयर बेचे
साल 2022 की शुरुआत में राकेश गंगवाल ने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया और धीरे-धीरे कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचने की घोषणा कर डाली. यानी उन्होंने इंडिगो को हमेशा के लिए अलविदा कहना का मन बना लिया था. इसके बाद वह बीच-बीच में अपनी हिस्सेदारी घटाते चले गए और अभी हाल ही में उन्होंने ब्लॉक डील के जरिए लगभग 11,000 करोड़ रुपए शेयर बेच दिए. बताया जा रहा है कि अब राकेश गंगवाल की इंडिगो में कोई हिस्सेदारी शेष नहीं है. जून 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, राकेश गंगवाल के पास कंपनी की लगभग 6 प्रतिशत इक्विटी थी. जबकि उनके फैमिली ट्रस्ट द चिंकरपू फैमिली ट्रस्ट के पास 13.49% हिस्सेदारी थी.
2006 में हुई थी शुरुआत
इंडिगो की शुरुआत साल 2006 में राहुल भाटिया ने राकेश गंगवाल के साथ मिलकर की थी. आज के समय में यह देश की सबसे बड़ी एयरलाइन है. एविएशन सेक्टर में इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से ज्यादा है. राहुल भाटिया दिल्ली के रहने वाले हैं, जबकि राकेश गंगवाल अमेरिका में रहते हैं. बिज़नेस की डोर दोनों को करीब लेकर आई थी. गंगवाल कई बड़ी एयरवेज कंपनियों में काम कर चुके थे. उन्हें एविएशन सेक्टर की काफी नॉलेज थी. लिहाजा, भाटिया ने उनके सामने एयरलाइन शुरू करने का प्रस्ताव रखा. दोनों ने तमाम चुनौतियों के बावजूद इस दिशा में कदम बढ़ाया. इंडिगो को 2004 में ही लाइसेंस मिल गया था, लेकिन इसकी सेवाएं 2006 तक शुरू हो सकीं क्योंकि उसके पास विमान नहीं थे.
गंगवाल की बदौलत मिले प्लेन
राकेश गंगवाल ने अपने कांटेक्ट और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए एयरबस से उधार पर 100 विमान हासिल किए और इस तरह चार अगस्त 2006 को इंडिगो ने अपनी पहली उड़ान भरी. हालांकि, नई-नवेली इंडिगो के सामने चुनौतियों का अंबार था. उसे ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को अपनी तरफ आकर्षित करना था, ताकि आकाश में मौजूद दूसरी दिग्गज कंपनियों के बीच खुद को बचाए रखा जाए. नई एयरलाइन पर भरोसा एकदम से नहीं होता, इसलिए इसकी संभावना ज्यादा नहीं थी कि अमीर यात्री इंडिगो के लिए अपनी फेवरेट एयरलाइन से नाता तोड़ेंगे. ये वो दौर था जब हवाई सफर आज जितना आसान नहीं था. इसकी सबसे बड़ी वजह थी किराया. इसलिए इसे अमीरों का साधन करार दे दिया गया था. इसी को ध्यान में रखते हुए IndiGo ने पहले आम यात्रियों पर फोकस का निर्णय लिया.
काम कर गया दांव
कहने का मतलब है कि इंडिगो ने सस्ते हवाई टिकट पर जोर दिया. महंगे पेशे में सस्ते की पेशकश जोखिम भरा काम तो था, लेकिन राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल ने दांव खेला और उनका ये दांव काम कर गया. इंडिगो के टिकट हाथों बिकने लगे और कंपनी जोखिम की आशंका को दूर छोड़ती हुई आगे निकल गई. इंडिगो ने बड़ी छलांग लगाने के लिए छोटे-छोटे मुद्दों पर भी गौर किया. उदाहरण के तौर पर कंपनी ने अपने टर्नअराउंड समय को कम करने के लिए कई ऐसे कदम उठाए, जिनकी बदौलत उसके विमानों के फेरे बढ़ गए. जाहिर है जब फेरे बढ़ेंगे तो मुनाफा भी होगा. इस तरह, कंपनी देश की सबसे बड़ी एयरलाइन बन पाई.
मनमुटाव और मनभेद
अक्सर सफलता की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद अपनों में मनमुटाव और मनभेद उजागर हो जाते हैं. इंडिगो के मामले में भी ऐसा हुआ. राकेश और राहुल की सफल जोड़ी में पहले वाली अंडरस्टैंडिंग का अभाव नज़र आने लगा. उनके बीच मुद्दों पर असहमति आम हो गई. दोनों में इस बात को लेकर झगड़ा हुआ कि एयरलाइन को कौन और कैसे चलाएगा. 2022 की शुरुआत में जब इंडिगो ने राहुल भाटिया को प्रबंध निदेशक के रूप में नामित किया, तब गंगवाल ने निदेशक पद इस्तीफे से दे दिया. बताया जाता है कि गंगवाल ने कंपनी के आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन के नियमों में बदलाव की मांग की थी, लेकिन उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया गया. गंगवाल इससे इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने इंडिगो से पूरी तरह नाता तोड़ने का ऐलान कर डाला. हाल ही में कंपनी में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने के साथ ही उन्होंने बाकायदा ऐसा कर दिखाया है.
राजनीतिक के इस शतरंज के खेल में, पीएम मोदी जो वर्तमान में एक गठबंधन सरकार चला रहे हैं, धीरे-धीरे अपने कदम उठा रहे हैं.
राजनीति और शतरंज में, पहले से सोच समझकर चाल चलने से ही खेल का अंत तय होता है. सुब्रमण्यम स्वामी की दिल्ली हाई कोर्ट में कांग्रेस पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री (PM) पद के दावेदार राहुल गांधी के खिलाफ दायर याचिका बहुत सही समय पर आई है, लेकिन इस कहानी के बारे में बाद में और बात करेंगे.
बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ता से बेदखल के बाद वैश्विक राजनीति में गर्मी बढ़ गई है. पीएम मोदी की वजह से, हसीना एक बर्बर हमले से बच गईं, जब उग्रवादियों ने उनके आधिकारिक निवास को लूट लिया. हसीना उन लोगों को कभी नहीं भूलेंगी जिन्होंने उनके गिराने की साजिश की. हसीना ने अमेरिका पर निशाना साधा है, उन्होंने एक मीडिया साक्षात्कार में कहा कि वर्तमान अमेरिकी प्रशासन ने उनकी गिरावट को अंजाम दिया, क्योंकि वे सेंट मार्टिन का द्वीप, जो बांग्लादेश के नियंत्रण में है, अमेरिका को एक सैन्य अड्डे के लिए देने से इनकार कर रही थीं.
हसीना ने पहले भी कहा था कि एक अमेरिकी अधिकारी ने उन्हें सेंट मार्टिन के आधार पर सुचारू पुन: चुनाव की पेशकश की थी. सेंट मार्टिन के नियंत्रण में होने से, अमेरिका महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग, "मलक्का की खाड़ी" पर प्रभाव डाल सकेगा और युद्ध के समय में चीन और अन्य एशियाई देशों को काट सकेगा. शांतिपूर्ण समय में, यह चीन को म्यांमार सीमा के पास होने से परेशान कर सकता है. इस प्रकार, हसीना के खुलासे एशिया की वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी को उजागर करते हैं, दूसरा खिलाड़ी भारत है.
भारत के कदम उठाने का समय
बांग्लादेश में फिलहाल भारत के खिलाफ माहौल है. वहां के कट्टरपंथी हिंदुओं की हत्या कर रहे हैं जबकि हसीना के राजनीतिक विरोधी खुलकर भारत की आलोचना कर रहे हैं. लेकिन क्या बांग्लादेश लंबे समय तक भारत को नाराज कर सकता है? जब तक भारत में एक दाएं पंथ की सरकार है, बांग्लादेश पाकिस्तानी तरीके से जीने लगेगा (यानी भिक्षाटन के रास्ते पर चलेगा), अगर वह जल्दी सही रास्ते पर नहीं आता, कैसे?
अमेरिका, जो बांग्लादेश से हजारों मील दूर है और सेंट मार्टिन पर केवल जमीन का नियंत्रण रखता है, बांग्लादेश को विकास, व्यापार और कारोबार की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता. बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी दबाव है क्योंकि उसका चीन के साथ व्यापार घाटा बहुत बड़ा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव आम बांग्लादेशियों की ज़िंदगी पर पड़ रहा है. 2023 में, बांग्लादेश का द्विपक्षीय व्यापार 168.4 बिलियन युआन (23.6 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गया, जिसमें चीन से बांग्लादेश को निर्यात 161.1 बिलियन युआन था. सीधे शब्दों में कहें, जैसे चीन ने पाकिस्तान के साथ किया, वैसे ही चीन ने बांग्लादेश को भी 96 प्रतिशत निर्यात और केवल 4 प्रतिशत आयात के साथ निचोड़ लिया है.
बांग्लादेश अकेले चीन की उपनिवेशी रणनीतियों या उसकी आर्थिक ताकत का सामना नहीं कर सकता, बिना भारत की मदद के. इसके अलावा, अधिकांश बांग्लादेशी मुस्लिम हैं और उन्हें समझ में आएगा कि चीन के कम्युनिस्ट शासन द्वारा उइगर मुस्लिमों को कुचलने के तरीकों का क्या हाल है. केवल वही लोग, जो बांग्लादेश के नेताओं की तरह मूर्ख हैं, या फिर अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस जैसे लोग जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, ही नहीं देख पाएंगे कि कोरोना महामारी के बाद दुनिया ने चीन के विस्तारवादी दृष्टिकोण और व्यापार साझेदार के रूप में उपनिवेशी खेल को कैसे समझा.
भारत के कदम और बांग्लादेश की स्थिति
काफी समय पहले, दुनिया ने देखा था कि चीन ने तिब्बत को कैसे दमनकारी और खूनी तरीके से अपने नियंत्रण में लिया. दक्षिण एशिया में भारत के महत्व का हालिया उदाहरण प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव नीति में स्पष्ट है. मालदीव के प्रधानमंत्री मोहम्मद मुइज्जू और अन्य अधिकारियों ने, जो भारत को छोटे समुद्री देश से निकालने की कोशिश कर रहे थे और चीन के प्रभाव में थे, अब भारत की दोस्ती के लिए मोहताज हो गए हैं. हाल ही में, मालदीव ने भारत को विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28 द्वीप सौंपे हैं. अगर इन उदाहरणों को देखा जाए, तो बांग्लादेश का कोई भी नया शासन, चाहे वह कितना भी कट्टरपंथी क्यों न हो, मौजूदा परिस्थितियों में भारत को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार के रूप में देखेगा.
भारत ने बांग्लादेशियों के समझने के लिए पहला बड़ा कदम उठाया है. भारत में 2018 के नियम के अनुसार, घरेलू पावर कंपनियों को पड़ोसी देशों को आवंटित पूरी बिजली की आपूर्ति करनी थी. 12 अगस्त को, सरकार ने इस नियम को संशोधित किया और पावर कंपनियों को पड़ोसी देशों के लिए आवंटित पूरी बिजली भारत में बेचने की अनुमति दे दी.
बांग्लादेश पहले से ही ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, जिसमें बड़ी मात्रा में बिजली की कमी और पावर कट्स ने कई क्षेत्रों, जैसे कृषि और निर्माण को प्रभावित किया है. देश की रेडी-मेड गारमेंट (RMG) उद्योग ने पिछले साल में कम से कम 50 प्रतिशत उत्पादन में गिरावट देखी है, जो देश की कुल निर्यात आय का 80 प्रतिशत से अधिक है. बांग्लादेश व्यापार में गिरावट के साथ ईंधन आयात बिल चुकाने में संघर्ष कर रहा है, और इसके राष्ट्रीय ग्रिड, जिसकी 23,482 मेगावाट उत्पादन क्षमता है, केवल 14,000 मेगावाट तक ही आपूर्ति कर सकता है, जबकि दैनिक मांग 16,000 मेगावाट है. इस कमी के कारण पूरे देश में कई बार 2,500 मेगावाट की 'लोड शेडिंग' होती है. पावर कट्स बांग्लादेशियों को दिन में कई बार भारत की याद दिलाएंगे, क्योंकि बांग्लादेश-चीन पावर कंपनी द्वारा 2018 में स्थापित 1,320 मेगावाट प्लांट का पहला यूनिट 25 मई 2023 को बंद हो गया था.
बांग्लादेश की ऊर्जा और राजनीति की चुनौतियां
बांग्लादेश का एकमात्र संसाधन, प्राकृतिक गैस, केवल 2033 तक ही देश की ज़रूरतें पूरी कर पाएगा. इसके कारण, ढाका महंगे सौदों की बातचीत कर रहा है ताकि जापान, ओमान, और कतर से तरलीकृत प्राकृतिक गैस आयात कर सके, जैसे कि इसका पावर सिस्टम मास्टर प्लान 2016 का उद्देश्य है. बांग्लादेश ने भारत, चीन, और रूस के साथ गैर-नवीकरणीय ऊर्जा सौदे भी किए हैं. बांग्लादेश जल्द ही महसूस करेगा कि अमेरिका को अपनी ज़मीन पर आने देने की कीमत क्या होगी, जब चीन और रूस इसे नवीकरणीय ऊर्जा सौदों पर घेरेंगे. इससे बांग्लादेशी फैक्ट्री मालिकों को उत्पादन लागत बढ़ाने या गारमेंट व्यवसाय की आउटपुट घटाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो मुख्य रूप से सस्ते श्रम पर निर्भर है. बिजली संकट के कारण RMG उत्पादन पहले ही प्रभावित हो चुका है और इसके वैश्विक साझेदार अब भारत या चीन से अधिक सस्ता सामान मांग रहे हैं.
जैसे-जैसे भू-राजनीति गर्म हो रही है, बांग्लादेश को भारत के खिलाफ अपने रुख की कीमत समझ में आएगी, क्योंकि मोदी सरकार बिजली के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कदम उठा रही है, क्योंकि बांग्लादेश मुख्य रूप से भारत पर कई मूलभूत ज़रूरतों के लिए निर्भर है. जैसे-जैसे भारत का रुख सख्त होता जाएगा, बांग्लादेश, पाकिस्तान की तरह, केवल भीख मांगने की स्थिति में रह जाएगा या पूरी तरह से अमेरिका पर दान और फंड के लिए निर्भर हो जाएगा - एक ऐसा बुरा चक्र जिसमें पाकिस्तान कभी नहीं निकला. भारत की दया के बिना, बांग्लादेश एक और दुखी देश बन जाएगा जहां विदेशी रिश्वत पर जी रहे अमीर सेना जनरल और राजनेता ही दिखेंगे.
भारत में खेल
मोदी सरकार पश्चिमी दबाव, जैसे कि रूस से कच्चे तेल की खरीद और अन्य हथियार सौदों पर, झुकती नहीं दिखती है, और साथ ही भारत चीन, अमेरिका (खासकर डेमोक्रेट्स के तहत) और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपनी खुद की दिशा तय कर रहा है, जिससे ये देश निराश महसूस कर रहे हैं.
अमेरिकी राजनयिकों को स्पष्ट है कि भारत की सॉफ्ट पावर रणनीतियाँ बांग्लादेश को बिना टैंक और सेना भेजे ही अपनी ओर मोड़ सकती हैं. इसलिए, बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या और बलात्कार की खबरों के बीच, जिसने भारत में गहरी भावनाएँ भड़काई थीं, अमेरिका ने अपने कांसुल जनरल जेनिफर लार्सन को हैदराबाद भेजा. लार्सन ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात की. लार्सन की नायडू के साथ बैठक को सोशल मीडिया पर काफी ध्यान मिला, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व भी है. यह एक खुला राज है कि नायडू जून में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और उन्होंने मोदी सरकार को समर्थन दिया था, जो बहुमत से थोड़ी सी कमी पर गिर गई थी. अगर अमेरिका नायडू को समय पर अपनी ओर कर सकता है और वह अपने 16 सांसदों का समर्थन वापस ले लेता है, तो मोदी सरकार गिर सकती है (जैसे हसीना की सरकार बांग्लादेश में गिरी थी) - अमेरिका ने भू-राजनीति और शासन परिवर्तन के संकेत देने की कला में माहिर हो चुका है.
यह स्पष्ट नहीं है कि लार्सन से मुलाकात के पहले या बाद में नायडू ने मोदी सरकार के वक्फ बिल का विरोध करने का निर्णय लिया. लेकिन कुछ दिन पहले, नायडू ने हाल ही में संसद में पेश किए गए "यूनिफाइड वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम" का विरोध किया. भाजपा-समर्थित बिल वक्फ बोर्ड द्वारा प्रबंधित संपत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, जो मुख्य रूप से इस्लामी संस्थानों द्वारा संचालित होती हैं और भारत में किसी भी भूमि पर अपना अधिकार स्थापित कर सकती हैं. वक्फ भारत के सरकारी कंपनियों और सशस्त्र बलों के बाद तीसरे सबसे बड़े भूमि मालिक हैं. नायडू के बिल के विरोध के बाद, भाजपा ने इसे संसद समिति को समीक्षा के लिए भेजा, जहां विपक्षी दलों की भी राय होती है, इससे मोदी सरकार को समय मिल जाएगा.
अमेरिका के कदम और रूस की राय
रूस के सरकारी मीडिया स्पूतनिक ने अमेरिका की रणनीति के बारे में एक दिलचस्प टिप्पणी की है. स्पूतनिक का कहना है कि रूसी खुफिया जानकारी के अनुसार, "अमेरिका आंध्र बैपटिस्ट चर्च का इस्तेमाल चंद्रबाबू नायडू पर दबाव डालने के लिए कर सकता है. आंध्र बैपटिस्ट चर्च, जो अमेरिकी बैपटिस्ट चर्च की देखरेख और वित्तीय समर्थन के तहत है, सीआईए का एक बड़ा औजार है जिसे नायडू के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है."
यह भी एक खुला राज है कि भारत में कई मुस्लिम कट्टरपंथी मौजूदा भाजपा सरकार को सत्ता से हटाना चाहते हैं. इस संदर्भ में, स्पूतनिक का कहना है, "एक अन्य खुफिया स्रोत ने लार्सन-ओवैसी की मुलाकात पर अलग नजरिया पेश किया: विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का भारतीय विपक्षी नेताओं से मिलना एक स्थापित राजनीतिक परंपरा है. भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम जनसंख्या है और ओवैसी उस समुदाय की आवाज हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि एक अमेरिकी राजनयिक उनसे मिलना चाहेगा." असदुद्दीन और उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी के पास विरोध प्रदर्शन को सड़क पर लाने की कला है.
भारतीय थिंक टैंक उसनास फाउंडेशन के संस्थापक और निदेशक अभिनव पांडे ने स्पूतनिक से कहा कि अमेरिका द्वारा "अशांति फैलाने वाली ताकतों" के समर्थन के प्रति "वास्तविक आशंकाएं" हैं. पांडे का कहना है, "भाजपा-आरएसएस के दायरे में यह एक 'मजबूत धारणा' है कि अमेरिका ने लोकसभा चुनावों के दौरान गंभीर हस्तक्षेप किया, प्रधानमंत्री मोदी की परिपक्व विदेश नीति के कारण उनकी हार की कोशिश की."
अमेरिका ने हमेशा भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने के किसी भी दावे को नकारा है और हसीना सरकार के गिरने के पीछे अमेरिका की भूमिका के सभी आरोपों को भी खारिज किया है. लेकिन लार्सन और डोनाल्ड लू जैसे पात्र अमेरिका द्वारा शासन परिवर्तन की थ्योरी को रंग देते हैं. इसके अलावा, बांग्लादेश में शासन परिवर्तन की थ्योरी और अफवाहें पिछले साल से शुरू हुईं, जब तब के अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने बांग्लादेश के विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी. हास पर आरोप था कि वे चुनावों का बहिष्कार करने वाली विपक्षी पार्टियों का समर्थन कर रहे थे.
लार्सन और डोनाल्ड लू से डर क्यों?
जब लार्सन 2009-2010 के बीच काहिरा, मिस्र में अमेरिकी दूतावास में आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्यरत थीं, तो मिस्र में श्रमिक हड़तालें, युवा विरोध और विभिन्न क्षेत्रों में असंतोष बढ़ने लगे, जिसने अंततः ARAB SPRING विद्रोह को जन्म दिया. लार्सन 2010 से 2012 तक बेनगाजी, लीबिया में अमेरिकी कांसुल जनरल रहीं और उनके कार्यकाल के दौरान स्थानीय नेताओं के साथ संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 2011 में लीबियाई क्रांति हुई. इसके अलावा, लार्सन ने नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में अमेरिकी दूतावास में कार्यकारी उप सहायक सचिव के रूप में भी काम किया. बांग्लादेश से पहले, श्रीलंका में एक विद्रोह हुआ और राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा. उनके भाई महिंदा राजपक्षे को भी प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.
अमेरिकी सीनेट की सुनवाई में, दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के सहायक सचिव डोनाल्ड लू से पूछा गया कि क्या उन्होंने तब के पाकिस्तानी राजदूत को वॉशिंगटन में एक चेतावनी दी थी. लू ने कथित तौर पर सुझाव दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पद से हटाना वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच संबंधों को सुधारने में मदद करेगा. यह विवाद पहली बार 27 मार्च 2022 को उभरा. इमरान खान ने एक सार्वजनिक रैली के दौरान एक पत्र लहराया, जिसमें दावा किया गया था कि यह एक विदेशी राष्ट्र से एक सायफर था. पत्र में उनके राजनीतिक विरोधियों के साथ एक साजिश का आरोप था, जो PTI सरकार को गिराने के लिए थी. उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिकी सांसद डोनाल्ड लू ने उनकी हटाने की मांग की थी, लू ने आरोपों को खारिज किया और उन्हें साजिश का सिद्धांत बताया.
इस साल मई में, स्पूतनिक ने रिपोर्ट किया कि डोनाल्ड लू ने भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश (हसीना की सत्ता में वापसी के बाद बांग्लादेश की दूसरी यात्रा) की यात्रा की. डोनाल्ड लू की यात्राओं के एक महीने से भी कम समय में, कट्टरपंथी तत्व जो छात्र प्रदर्शनकारियों के रूप में छिपे हुए थे, ने हसीना सरकार के खिलाफ अपने आक्रमणों को तेज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सरकार गिर गई.
डोनाल्ड लू को लेकर भारतीय मीडिया की राय
भारतीय दक्षिणपंथी मीडिया ने डोनाल्ड लू को अमेरिकी 'चाइनीज वुल्फ वॉरियर' के समान करार दिया है, जो अक्सर भारत में मानवाधिकार मुद्दों और मोदी सरकार के तहत मुसलमानों के हाशिए पर होने की चिंता व्यक्त करते रहे हैं. भारत के राष्ट्रीय चुनावों के समय, रिपोर्ट्स के अनुसार, डोनाल्ड लू चेन्नई पहुंचे, जो तमिलनाडु की राजधानी है और जहां भाजपा कमजोर मानी जाती है. तमिलनाडु की DMK पार्टी अक्सर एक अलग देश 'द्रविड़ा नाडू' की मांग करती रही है. इस संदर्भ में, जब अमेरिका ने विवादास्पद प्रेस रिलीज जारी किया जिसमें कहा गया कि डोनाल्ड लू ने दक्षिण भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के लिए चेन्नई की यात्रा की, तो इस पर सवाल उठे.
रिपोर्ट्स के अनुसार, यह आरोप है कि डोनाल्ड लू ने पिछले साल राहुल गांधी की मेज़बानी की थी जब वह अमेरिका गए थे. जब लू मार्च 2023 में अमेरिकी 'सेनेट फॉरेन अफेयर्स कमिटी' के सामने पेश हुए, तो उन्होंने भारत में विशेष रूप से कश्मीर में मानवाधिकार मुद्दों पर चिंता व्यक्त की.
सुब्रमण्यम स्वामी की नई राजनीतिक चाल और अमेरिकी चुनाव
भारत में कोई भी राजनीति के शौकीन व्यक्ति शायद नहीं भूलेगा कि कैसे सुब्रमण्यम स्वामी ने 2004 में सोनिया गांधी की भारत की प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं को खत्म कर दिया था. सोनिया गांधी जब राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के निवास पर प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन पत्र लेकर पहुंचने वाली थीं, स्वामी ने राष्ट्रपति भवन में 'बुरी' सबूत के साथ पहुंचकर यह साबित किया कि गांधी अब भी एक विदेशी नागरिक थीं और प्रधानमंत्री पद का दावा नहीं कर सकती थीं. इसके बाद स्वामी ने कहा कि कलाम ने गांधी को निमंत्रण रद्द कर दिया क्योंकि कानूनी राय उनके खिलाफ गई थी, और इस तरह से 'रबर स्टांप' पीएम मनमोहन सिंह आए.
हाल ही में, स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में राहुल गांधी की विदेशी नागरिकता के मुद्दे पर याचिका दायर की है. स्वामी के अनुसार, राहुल गांधी के पास एक ब्रिटिश पासपोर्ट है. अगर यह सही है, तो गांधी को न केवल संसद में विपक्ष के नेता के पद से हटा दिया जाएगा, बल्कि कांग्रेस पार्टी में भी उनका पद छिन सकता है. स्वामी ने दावा किया कि पूर्व भाजपा गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी राहुल गांधी को उनकी विदेशी नागरिकता के बारे में नोटिस जारी किया था, लेकिन मामला बिना किसी निष्कर्ष के खत्म हो गया था. स्वामी के हमले के अलावा, बांग्लादेशी पत्रकार सलाहुद्दीन शोएब चौधरी (वीकली ब्लिट्ज) द्वारा राहुल गांधी के विदेशी मामलों की जानकारी भी स्थिति को और अधिक गरम कर रही है - अब तक, गांधी ने इनमें से किसी का भी जवाब नहीं दिया है.
राजनीतिक के इस शतरंज के खेल में, पीएम मोदी जो वर्तमान में एक गठबंधन सरकार चला रहे हैं, धीरे-धीरे अपने कदम उठा रहे हैं. लेकिन खेल नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद और भी तेज हो सकता है. अगर डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में रिपब्लिकन सत्ता में लौटते हैं, जैसा कि उम्मीद की जा रही है, तो भारत-अमेरिका संबंध बदल सकते हैं. रिपब्लिकन और भाजपा एक-दूसरे पर ज्यादा भरोसा करते हैं, जबकि डेमोक्रेट्स वर्तमान में विपक्षी पार्टियों में एक अनुकूल साझेदार देख सकते हैं. ट्रंप की वापसी के बाद अमेरिका चीन के साथ टैरिफ युद्ध में अधिक व्यस्त रहेगा - ट्रंप ने पहले ही 60 प्रतिशत टैरिफ का संकेत दिया है.
(लेखक- पलक शाह, BW रिपोर्टर. पलक शाह ने "द मार्केट माफिया-क्रॉनिकल ऑफ इंडिया हाई-टेक स्टॉक मार्केट स्कैंडल एंड द कबाल दैट वेंट स्कॉट-फ्री" नामक पुस्तक लिखी है. पलक लगभग दो दशकों से मुंबई में पत्रकारिता कर रहे हैं, उन्होंने द इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड, द फाइनेंशियल एक्सप्रेस और द हिंदू बिजनेस लाइन जैसी प्रमुख वित्तीय अखबारों के लिए काम किया है).
ईरान ने इजरायल के खिलाफ एक खतरनाक योजना तैयार की है, जिसके बाद युद्ध की आशंका और भी ज्यादा बढ़ गई है.
ईरान और इजरायल के बीच तनाव (Iran-Israel Tension) चरम पर पहुंच गया है. हमास सुप्रीमो इस्माइल हानिया की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान इजरायल पर बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो ईरान ने लेबनान के चरमपंथी संगठन हिज्बुल्ला और हूती विद्रोहियों के साथ मिलकर इजरायल पर मिसाइल, रॉकेट और विस्फोटक ड्रोन से हमला बोलने की योजना बनाई है. हूती विद्रोही इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर किए जा रहे हमलों से नाराज हैं और यह नाराज़गी वह लाल सागर (Red Sea) से गुजरने वाले कमर्शियल जहाजों को निशाना बनाकर पहले भी व्यक्त कर चुके हैं. यदि ईरान अपनी योजना में सफल होता है, तो हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे.
जारी की है एडवाइजरी
पश्चिम एशिया के इस घटनाक्रम पर भारत करीबी से नजर बनाए हुए है. सरकार ने इजरायल और लेबनान में रह रहे भारतीयों के लिए एडवाइजरी जारी की है. एक अनुमान के मुताबिक, ईरान, इजरायल और लेबनान में कुल मिलाकर 40 हजार भारतीय रह रहे हैं. भारत की एक टेंशन यह भी है कि अगर हालात जल्द सामान्य होने बजाए बिगड़ जाते हैं, तो उसका व्यापार भी बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा. भारत के इन तीनों ही देशों से व्यापारिक रिश्ते हैं.
इतना रहा है व्यापार
ईरान के साथ हमारे व्यापार में भले ही पहले के मुकाबले कुछ कमी आई है, लेकिन व्यापारिक रिश्ते कायम हैं और उनके प्रभावित होने से हमें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. वित्त वर्ष 2019-20 में भारत और ईरान के बीच कुल व्यापार 4.77 बिलियन डॉलर (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का था, जो कि अप्रैल से जुलाई 2023 के बीच 0.66 बिलियन डॉलर (5500 करोड़ रुपए) रह गया. भारत की तरफ ईरान को कई सामान निर्यात किए जाते हैं. इसमें प्रमुख रूप से बासमती चावल, चाय, चीनी, ताजे फल, दवाएं/फार्मास्यूटिकल्स, सॉफ्ट ड्रिंक -शरबत और दालें आदि शामिल हैं.
ईरान से भारत का इम्पोर्ट
इसी तरह, ईरान से भारत मेथनॉल, पेट्रोलियम बिटुमेन, सेब, लिक्विफाइड प्रोपेन, सूखे खजूर, अकार्बनिक/कार्बनिक कैमिकल, बादाम आदि आयात करता है. युद्ध की स्थिति में आयात-निर्यात के प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता. वहीं, भारत के इजरायल से भी व्यापारिक संबंध हैं. एशिया में इजरायल के लिए भारत तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में इजरायल की हिस्सेदारी 1.8% है. इजरायल भारत से लगभग 5.5 से 6 बिलियन डॉलर के परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद (Refined Petroleum Products) खरीदता है. वित्तवर्ष 23 में, इजराइल को भारत का कुल निर्यात 8.4 बिलियन डॉलर था. जबकि आयात 2.3 बिलियन डॉलर रहा. इस तरह, दोनों देशों के बीच करीब 10 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ है.
इजरायल से इनका आयात
इजरायल भारत से परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के साथ-साथ ज्लैवरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोडक्ट्स मंगाता है. जबकि भारत मोती, हीरे, डिफेंस मशीनरी, पेट्रोलियम ऑयल्स, फर्टिलाइजर्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट आदि आयात करता है. एक रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2000 से मार्च 2023 के दौरान, भारत में इजरायल का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी FDI 284.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर था. कई भारतीय कंपनियों ने भी इजरायल में बड़ा निवेश किया हुआ है. यदि हालात बिगड़ते हैं और युद्ध होता है, तो यह तस्वीर काफी हद तक बदल सकती है.
लेबनान से हमारा कारोबार
लेबनान और इजरायल के बीच संघर्ष में तेजी आ सकती है. यदि ईरान की योजना अनुसार हिज्बुल्ला ने ईरान और हूती विद्रोहियों के साथ मिलकर इजरायल पर धावा बोला तो इजरायली हमले भी तेज हो जाएंगे. ऐसे में भारत के लेबनान से व्यापारिक रिश्तों पर भी असर पड़ेगा. एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत ने लेबनान को कुल 308 मिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया था. लेबनान भारत से काफी कुछ आयात करता है, इसमें इलेक्ट्रिक बैटरी, रिफाइंड पेट्रोलियम, मांस, मोती और प्लास्टिक आदि का योगदान सबसे ज्यादा है. संघर्ष बढ़ने की स्थिति में इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट दोनों प्रभावित होगा. इसलिए दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत भी यही चाहता है कि पश्चिम एशिया में युद्ध का खतरा टल जाए .
देश के कई इलाके इस समय पर्याप्त बारिश की कमी का सामना कर रहे है, तो कहीं पर बारिश प्रलय बनकर सामने आई है.
मौसम का मिजाज पहेली बनता जा रहा है. एक तरफ जहां आधा मानसून बीतने के बाद भी कई इलाके कम बारिश का सामना कर रहे हैं. वहीं, कुछ जगहों पर 'रहमत' वाली बारिश कहर बनकर टूटी है. खासकर, केरल और हिमाचल में बारिश ने कोहराम मचा दिया है. मौसम के इस दोहरे रूप का खामियाजा आने वाले दिनों में पूरे देशों को अपनी जेब ज्यादा ढीली करके उठाना पड़ सकता है. सीधे शब्दों में कहें तो इस असंतुलित बारिश के चलते महंगाई का चक्का तेजी से घूमने की आशंका उत्पन्न हो गई है.
अनुमान के उलट नजारा
मानसून के आने से पहले मौसम विभाग ने 25 राज्यों में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान जताया था. इसमें केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र , गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, सिक्किम, मेघालय, बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षदीप, दमन-दीव, दादरा और नगर हवेली शामिल थे. जबकि छत्तीसगढ़, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सामान्य बारिश की बात कही थी. जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी इलाकों और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में बारिश 25 प्रतिशत से कम हुई है. इसी तरह, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर भी कम बारिश का सामना कर रहे हैं. यहां कमी का प्रतिशत 35 से 45 तक है.
संतुलित बारिश ज़रूरी
देश में सालभर होने वाली कुल बारिश का 70% पानी मानसून में ही बरसता है. हमारे देश में में 70 से 80 प्रतिशत किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं. इसलिए हर साल संतुलित मानसून की उम्मीद लगाई जाती है.भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है. ऐसे में मानसून का अच्छा रहना अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद जरूरी है. लेकिन अब तक कई राज्यों में बादल झूमकर नहीं बरसे हैं. इसमें वो राज्य भी शामिल हैं, जहां के कृषि उत्पाद पूरे देश का पेट भरते हैं. उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश अपने हिस्से की बारिश से अब तक वंचित है. पूर्वी यूपी में काफी कम बारिश हुई है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है. खासतौर पर धान की खेती के लिए पर्याप्त पानी की ज़रूरत होती है.
अच्छी बारिश का इंतजार
पंजाब भी कम बारिश का सामना कर रहा है. देश में उत्पादित अनाज में लगभग 12% हिस्सेदारी पंजाब की होती है. यहां गेहूं के साथ-साथ धान, कपास, गन्ना, बाजरा, मक्का, जौ आदि की भी खेती होती है. पंजाब अपने फल-सब्जियों की पैदावार के लिए भी प्रसिद्ध है. जाहिर है ऐसे में पर्याप्त बारिश के अभाव में फसलें प्रभावित होने का खतरा बना रहेगा. इसी तरह, बिहार सब्जियों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. यहां आलू , प्याज , बैंगन और फूलगोभी की अच्छी पैदावार होती है. झारखंड में भी चावल की खूब खेती होती है. इन सब पर कम बारिश ने संकट खड़ा कर दिया है.
ज्यादा बारिश से बुरे हाल
दूसरी तरफ, केरल और हिमाचल के लिए बारिश आफत बन गई है. केरल के वायनाड में बारिश ने तबाही मचाई है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मंडी और शिमला में तीन जगहों पर बादल फटने से हालात खराब हो गए हैं. केरल में कई तरह की फसलों की खेती होती है, लेकिन राज्य के लिए सबसे आवश्यक फसल धान है. केरल के विशाल क्षेत्र में धान की 600 किस्में उगाई जाती हैं. बेशक धान यानी चावल के लिए पानी ज्यादा चाहिए, लेकिन उतना भी नहीं जितना केरल में बरस रहा है. जिस वायनाड में कहर मचा है, वहां भी चावल के साथ-साथ कॉफ़ी, चाय, कोको, काली मिर्च, केला, वेनिला, नारियल, इलायची, चाय और अदरक का काफी उत्पादन होता है. ऐसे में आने वाले समय में इनकी कीमतों में ज़बरदस्त इजाफा संभव है.
और लाल होगा टमाटर
हिमाचल की फल और सब्जियां देश के अधिकांश इलाकों तक पहुंचती हैं. खासतौर पर यहां के टमाटर की 'लाली' सबको आकर्षित करती है, लेकिन भारी बारिश ने टमाटर की फसलों को नुकसान पहुंचाया है. इसके अलावा, हिमाचल के कई हिस्सों में सड़कें भी बह गई हैं, जिसने आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया है. ऐसे में आने वाले दिनों में टमाटर के दाम रॉकेट की तरह भाग सकते हैं. इस समय दिल्ली-NCR में टमाटर की कीमत 60-70 रुपए प्रति किलो है. मगर हिमाचल में बारिश से हुए नुकसान के चलते यह 100 रुपए के आंकड़े को अगले कुछ दिनों में ही पार कर सकती है. गौरतलब है कि पिछले साल भी भारी बारिश के चलते टमाटर की कीमतें असमान पर पहुंच गई थीं.
पहले गर्मी ने मारा, अब बारिश
इससे पहले, भीषण गर्मी के चलते महंगाई का चक्का काफी तेजी से घूम चुका है. फल-सब्जियों से लेकर अनाज तक के दामों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. ऐसे में अब असंतुलित बारिश की वजह से हालात और खराब हो सकते हैं. कुल मिलाकर आने वाला समय आम आदमी के लिए मुश्किलों की सुनामी लेकर आएगा. खाने-पीने पर उसके खर्चों में पहले से ज्यादा इजाफा हो सकता है.