क्या भाग्य जैसा कुछ होता है? यदि हां, तो कैसे निर्धारित होता है भाग्य?

संचित कर्म का मतलब है कि हम जो भी काम करते हैं, परमात्मा का सिस्टम उन कर्मों का हिसाब रखता है और हमारे पिछले सभी जन्मों के कर्म इस जन्म में हमें किस्मत के रूप में मिलते हैं.

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Thursday, 22 June, 2023
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  • पी. के. खुराना, हैपीनेस गुरू

हमारा अज्ञान हमसे कैसे-कैसे अन्याय करवा लेता है इसकी कहानी बहुत अजीब है. हम किसी की असफलता की कहानियां पढ़ते हैं और असफल लोगों द्वारा की गई गलतियों का विश्लेषण करते हैं तथा उन गलतियों से बचने की कोशिश करते हैं. जो आदमी सफल हो जाता है उसके बारे में हम मान लेते हैं कि उसने अनुभव से या प्रशिक्षण के माध्यम से सही फैसला लेने की तकनीक सीख ली है और जो व्यक्ति असफल हो जाता है उसके बारे में हम धारणा बना लेते हैं कि उसमें अनुशासन की कमी थी, लोगों से व्यवहार सही नहीं था, और उसने अहंकारवश गलत फैसले लिये, वगैरह, वगैरह. लेकिन अगर और बारीकी में जाएं तो हमें समझ आ जाता है कि हमारी धारणा पूर्वाग्रह ग्रसित थी. 

भाग्य बिल गेट्स के साथ था
दरअसल हर सफलता और असफलता में मेहनत, कौशल, अनुशासन, निरंतरता और भाग्य की भूमिका होती है. समस्या यह है कि यह सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं है कि इसमें भाग्य की भूमिका कितनी बड़ी है. कभी-कभी तो यह लगता है कि एक विशेष संयोग ही किसी खास सफलता या असफलता का कारण बना. आइये, इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं. हम बिल गेट्स की सफलता की कहानियां पढ़ते हैं, उनकी समृद्धि के चर्चे सुनते हैं और सुनाते हैं. पर क्या हमने उनके जीवन वृत्त को समग्रता में समझने की कोशिश की है? संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के मुताबिक सन 1968 में विश्व भर में हाई स्कूल की उम्र के बच्चों की संख्या सवा तीस करोड़ के आसपास थी. इनमें से लगभग एक करोड़ अस्सी लाख बच्चे अमेरिका में रहते थे. इनमें से भी लगभग पौने तीन लाख बच्चे वाशिंगटन राज्य में रहते थे. इन बच्चों में से एक लाख बच्चे सियेटल क्षेत्र के निवासी थे. इन एक लाख बच्चों में से 300 बच्चों लेकसाइड स्कूल के विद्यार्थी थे. लेकसाइड स्कूल उस समय विश्व का अकेला ऐसा स्कूल था जिसके पास कंप्यूटर भी था और लेकसाइड स्कूल के विद्यार्थी के रूप में बिल गेट्स को कंप्यूटर चलाना सीखने और कंप्यूटर का प्रयोग करने की सुविधा उपलब्ध थी. यह सुविधा हाई स्कूल जाने की उम्र के सवा तीस करोड़ बच्चों में से केवल 300 बच्चों को उपलब्ध थी और बिल गेट्स उनमें से एक थे. क्या यह भाग्य नहीं है? 

भाग्य ने केंट से अवसर छीन लिया
सन् 2005 में अपने स्कूल के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए खुद बिल गेट्स ने स्वीकार किया कि अगर लेकसाइड स्कूल न होता तो माइक्रोसॉफ्ट भी न होती. माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना में ही नहीं, उसके सह-संस्थापकों के चुनाव में भी भाग्य की भूमिका रही है. स्कूल में केंट इवान्स और बिल गेट्स पक्के दोस्त थे. दोनों को स्कूल का कंप्यूटर उपलब्ध था. दोनों दोस्त कंप्यूटर के दीवाने थे और कंप्यूटर के प्रयोग में सिद्धहस्त थे. केंट इवान्स और बिल गेट्स में गहरी छनती थी और दोनों घंटो बतियाते रहते थे. दुर्भाग्यवश पर्वतारोहण के एक कार्यक्रम में केंट इवान्स की मृत्यु हो गई वरना माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापकों में बिल गेट्स और पॉल एलेन के अलावा केंट इवान्स का भी नाम होता. भाग्य ने केंट से यह अवसर छीन लिया. हां, यह किस्मत ही थी, और आज हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि किस्मत बनती कैसे है?

ऐसे बनता है भाग्य
अब हम यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि भाग्य निर्धारित कैसे होता है, बनता कैसे है? हमारे धर्म ग्रंथों में कर्म और संचित कर्म का जिक्र किया गया है. संचित कर्म का मतलब है कि हम जो भी काम करते हैं, परमात्मा का सिस्टम उन कर्मों का हिसाब रखता है और हमारे पिछले सभी जन्मों के कर्म इस जन्म में हमें किस्मत के रूप में मिलते हैं. हमने अपने पिछले जन्म में अच्छे या बुरे जो भी काम किये थे, इस जन्म के लिए वो सभी कर्म हमारी किस्मत बन जाएंगे. इसी तरह, इस जन्म में हम जो भी काम करेंगे, अगर इसी जन्म में उनका फल न मिला तो वो अगले जन्मों के लिए हमारी किस्मत बन जाएंगे. संचित कर्म का मतलब उन कामों से है जो हमारी गुल्लक में जमा होते रहते हैं, वो हमारी किस्मत बन जाते हैं. इसीलिए सभी धर्म हमें अच्छे काम करने, दयावान रहने, सबका भला करने की प्रेरणा देते हैं ताकि हमारे संचित कर्म इतने अच्छे हों कि हमारा भाग्य भी हमारी सफलता में सहायक होता रहे.

 

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रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, 70% भारतीय काम असंतुष्ट, मिलेनियल्स भी नौकरी छोड़ने के इच्छुक

उद्योगों की हैप्पीनेस की रैंकिंग में, फिनटेक सेक्टर सबसे खुशहाल उद्योग के रूप में उभरा है, जबकि रियल एस्टेट सेक्टर को सबसे कम खुशहाल माना गया है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Thursday, 19 September, 2024
Last Modified:
Thursday, 19 September, 2024
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एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के करीब 70 प्रतिशत कर्मचारी अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं. साथ ही, 54 प्रतिशत कर्मचारी अपनी कंपनी छोड़ने पर विचार कर रहे हैं. यह चिंताजनक आंकड़े दिखाते हैं कि बहुत से कर्मचारी, जो काम में सपोर्ट या संतोष महसूस नहीं कर रहे, नौकरी छोड़ सकते हैं.

रिपोर्ट का नाम है "Happiness at Work - How Happy is India's Workforce? - 2024" और इसे "The Happiest Places to Work" ने "Happiness Research Academy" के साथ मिलकर जारी किया है. यह रिपोर्ट पूरे भारत में किए गए एक बड़े रिसर्च का नतीजा है, जिसमें विभिन्न लिंग, उम्र, स्थान और उद्योगों के शहरी कर्मचारियों की खुशी के पैटर्न का अध्ययन किया गया है. 

रिपोर्ट के मुताबिक, एक ही उम्र के लोग बहुत अलग-अलग स्तर की खुशी महसूस कर रहे हैं, जो दिखाता है कि उम्र के अलावा और भी कई कारक नौकरी में खुशी को प्रभावित करते हैं. इसे "एक ही उम्र समूह में खुशी के स्तर में बड़े अंतर" के तहत बताया गया है. लिंग और क्षेत्रीय आधार पर भी खुशी के अंतर पर रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है. पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में महिलाएं अधिक खुश हैं, जबकि उत्तर क्षेत्र में पुरुषों की खुशी महिलाओं से अधिक है. उद्योगों के मामले में, फिनटेक (Fintech) सेक्टर को सबसे खुश उद्योग माना गया है, जबकि रियल एस्टेट सेक्टर को सबसे कम खुश बताया गया है.

हैप्पी प्लेस

जब कर्मचारियों को एक सहायक माहौल में अपने व्यक्तिगत रुचियों को आगे बढ़ाने का मौका मिलता है, तो उनके नौकरी छोड़ने की संभावना 60 प्रतिशत कम हो जाती है. मिलेनियल्स (1981-1996 के बीच जन्मे लोग) के नौकरी बदलने का खतरा ज्यादा है, क्योंकि उनमें से 59 प्रतिशत नौकरी बदलने पर विचार कर रहे हैं।

मेथडोलॉजी (पद्धति)

"हैप्पीनेस एट वर्क" रिपोर्ट 18 उद्योग क्षेत्रों के 2,000 लोगों से प्राप्त वैज्ञानिक और ठोस आंकड़ों पर आधारित है. हैप्पीनेस रिसर्च अकादमी द्वारा तैयार किए गए विशेष शोध उपकरणों ने इन आंकड़ों का सटीक और विस्तृत विश्लेषण करने में मदद की, जिससे पूरे भारत के शहरी कार्यबल की खुशी का विस्तृत नक्शा तैयार किया गया।

नम्रता टाटा, हैप्पीस्ट प्लेसेस टू वर्क की निदेशक, ने इस रिपोर्ट के बारे में कहा कि यह रिपोर्ट भारत में कार्यस्थल पर खुशी की मौजूदा स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है. विभिन्न समूहों और क्षेत्रों में खुशी के स्तर में बड़े अंतर यह बताते हैं कि संगठनों को कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए. 

हैप्पीनेस रिसर्च अकादमी इस रिपोर्ट को हर साल प्रकाशित करने की योजना बना रही है. हर नई रिपोर्ट के साथ, अकादमी का लक्ष्य ऐसे रुझानों को उजागर करना है जो भारत में सबूत आधारित प्रबंधन (एविडेंस-बेस्ड मैनेजमेंट) के लिए महत्वपूर्ण होंगे.
 


स्कूली शिक्षा में ज्योतिषीय काउंसलिंग की कितनी है आवश्यता, इस रिपोर्ट से समझिए

ज्योतिष शास्त्र मनुष्य के जीवन में काल (समय) को परख कर समुचित दिशा में निर्देशन का कार्य करता है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Thursday, 12 September, 2024
Last Modified:
Thursday, 12 September, 2024
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शब्दों के प्रभाव में परामर्श शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमें एक प्रभावक दूसरा प्रभाव में आने वाला अर्थात् यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो लोग शामिल होते हैं एक व्यक्ति जिसे अपनी समस्या का समाधान चाहिए, दूसरा व्यक्ति समस्या का निदान करने वाला होता है, जिसे मनोचिकित्सक कहते हैं. परामर्शदाता (Counsellor) व्यक्ति के चिन्ता, अवसाद, परिवारिक समस्या, रिश्ता, आदि समस्याओं से बाहर निकलने में मदद करता है, मानव एक अन्वेषक प्राणी है. वह प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ के साथ अपना तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है. यह अपने जीवन काल में संसार का श्रेष्ठ व्यक्ति बनना चाहता है. अब विचारणीय विषय यह है कि स्कूली शिक्षा के समय एक स्कूल, समान अध्यापक, समान सुविधा फिर भी एक समान छात्रों में प्रतिभा नहीं होती? तब यहां प्रश्न उठ खड़ा होता है कि ऐसा क्यों? जबकि मनोचिकित्सक से परामर्श लेने पर भी कई बार परिवर्तन नजर नहीं आता है. तब लोगों में ऐसी धारणा या विश्वास बनने लगता है कि इसके अलावा भी कोई बाह्य शक्ति है जो हमें सहायता कर सकती है. तब लोग अच्छे ज्योतिषियों को ढूंढने लगते हैं.

क्या ज्योतिष शास्त्र द्वारा इन परेशानियों को पता लगाया जा सकता है और इससे बचाया जा सकता है क्या? इन दो प्रश्नों का उत्तर ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से इस प्रकार से दिया जा सकता है.

भारतीय दर्शन शास्त्र के “यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे” इस सूत्रानुसार जो हमारे पिण्ड (शरीर) में जो तत्त्व है वही तत्त्व ब्रह्माण्ड में है अर्थात् आकाश स्थित ब्रह्माण्ड में पाँच तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) कारक पाँच तारा ग्रह क्रम (गुरु, शनि, मंगल, शुक्र, और बुध) है सूर्य आत्मा तथा चन्द्रमा मन है इन्हीं सात पदार्थों से हमारा शरीर संचालित होता है. इन्हीं ग्रहों के स्थिति वशात् व्यक्ति का स्वरूप, गुण, धर्म, विवेक, बुद्धि आकृति आदि का निर्माण होता है. इन ग्रहों की  उत्तम तथा अधम स्थिति हमारे पूर्व जन्मार्जित कर्मों के आधार पर होता है. यह कर्म तीन प्राकर के होते हैं, संचित, प्रारब्ध एवं क्रियमाण. जन्म कालीन ग्रह स्थिति उत्तम तभी होता है जब व्यक्ति का संचित कर्म उत्तम हो, और कई जन्मों में किये गये कर्मों का कालखण्डों में भोगना ही प्रारब्ध कहलाता है इन प्रारब्ध कर्म को ज्योतिष शास्त्र में दशा आदि के द्वारा ज्ञात किया जाता है. क्रियमाण कर्म को ग्रहों के वर्तमान स्थिति द्वारा ज्ञात किया जाता है अर्थात सार रूप मे कहें तो…

1.    जन्मकालीन ग्रहों की योग एवं स्थिति द्वारा व्यक्तियों का प्रतिभा का बोध होता है और कर्मों में यह संचित कर्म है.
2.    जन्म कुण्डली में ग्रहों की दशा के माध्यम से व्यक्ति मे प्रतिभा का विकास का बोध होता है, अर्थात् किस ग्रह की दशा व्यक्ति के जीवन काल में उत्तम फल सूचक है और किस ग्रह की दशा अधम फल सूचक है. कर्मों में यह प्रारब्ध कर्म का सूचक है.
3.    जन्मकुण्डली के आधार पर वर्तमान में ग्रहों की स्थिति के द्वारा व्यक्ति के जीवन में होने वाली आकस्मिक उत्तम तथा अधम फल का बोध किया जाता है. यह एक प्रकार से आकस्मिक घटनाओं का भी द्योतक है. वर्तमान ग्रह की स्थिति वशात् व्यक्तियों को करवाए जाने वाले कर्म ही क्रियमाण कर्म है.

उपर्युक्त कर्म के तीन भेद तथा ज्योतिष के तीन महत्वपूर्ण विधा मानव जीवन के व्यक्तित्त्व का सांगोपांग अध्ययन करता है. इस सन्दर्भ में वराहमिहिर का वचन यह है कि व्यक्ति अपने ओर से अत्यधिक प्रयत्न करता है परन्तु फल वैसा नहीं मिलता है. मिलता वही है जैसा जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति है. ग्रह अपने अनुरूप व्यक्ति का निर्माण करता है. एक विचारणीय विषय है कि किसी स्कूल, समाज या नगर में एक प्रतिभावान बच्चा या व्यक्ति पहले दौड़ में आगे रहता हैं फिर उसमें से कई ऐसे होते हैं जो अत्यन्त पिछड़ जाते है या किसी न किसी गलत आदतों में पड़ जाते हैं.

दूसरी तरफ एक सामान्य बच्चा या व्यक्ति पहले दौड़ में पीछे रहता है, फिर बाद में उसमें कई बच्चे या व्यक्ति अपनी अथक प्रयत्न एवं लगन से कार्य को सम्पादन करते हुए जीवन में आगे बढ़ते चले जाते हैं कई ऐसे होते हैं जो कम से कम परिश्रम में सामान्य प्रतिभा के साथ सबसे ज्यादा सफल जीवन बना लेते हैं. एक बात और है कि इन सभी के जीवन में एक जैसी उन्नति एवं अवनति नहीं रहती हैं, इसी बात को महाकवि भास ने अपने ग्रन्थ (स्वप्नवासवदत्ता) में काल (समय) की महिमा का गुण गान बड़े रोचक ढंग से किया है, अर्थात् दैहिक शक्ति का संचार दैविक शक्ति ही करती है अन्यथा हर पैसे वाला का बच्चा संसार में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा होता, परन्तु ऐसा नहीं है. यही ज्योतिष है और यहीं से ज्योतिष का महत्व समझ में आने लगता है.

सभी स्कूली छात्रों के अभिभावकों से निवेदन करना चाहता हूं कि आप अपने बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव न बनावें. उसके आधारभूत प्रयत्न एवं परेशानियों को जानने कि कोशिश करें, बाह्य प्रयत्न एवं परेशानी उनके क्रिया कलापों से ज्ञान हो जाता है. लेकिन आन्तरिक प्रयत्न एवं परेशानियों का ज्ञान नहीं हो पाता है. तब ऐसी परिस्थिति में एक उत्तम ज्योतिषी से परामर्श लेना समुचित होगा, अन्यथा बच्चा सफर कर सकता है.

उत्तम विचार अच्छे कर्मों को करवाता है, अधिकतर बड़े से बड़े विद्वान अनुभवी लोग भी बड़े मंच पर जाने के बाद उनमें घबराहट होती है, टाँगे थर-थराने लगती हैं अतः यह परिस्थिति बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए. बच्चा अपनी शक्ति के अनुरूप प्रयत्न करता है परन्तु असफल होने पर अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को डराते हैं परन्तु ऐसा नहीं करना चाहिए. सदैव सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए. परेशानी आने पर उत्तम ज्योतिषी से परामर्श (Counselling) लेना चाहिए. मनमानी नहीं करना चाहिए बल्कि बुद्धिमानी करनी चाहिए. बुद्धिमानी करने वाले सदैव सफल होते हैं और मनमानी करने वाले सदैव विफल होते हैं, कोई भी शास्त्र बिना उद्देश्य का नहीं होता. ज्योतिष शास्त्र मनुष्य के जीवन में काल (समय) को परख कर समुचित दिशा में निर्देशन का कार्य करता है. अतः स्कूली शिक्षा में अभिभावक के परेशानियों को देखते हुए देश के सभी स्कूलों में परामर्श दाता के रूप में उत्तम ज्योतिषी का प्रयोग करना चाहिए. मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक उत्तम ज्योतिषी किसी अन्य परामर्श दाता (Counsellor) से उत्तम परामर्श दे सकेंगे.


(लेखक- प्रो० डॉ० फणीन्द्र कुमार चौधरी, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली 110016)

 

भारत की अंतरिक्ष क्रांति: पीएम मोदी के विजन ने देश को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया

चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया, जिसके चलते अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संघ द्वारा प्रतिष्ठित वर्ल्ड स्पेस अवार्ड से सम्मानित किया गया.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Saturday, 24 August, 2024
Last Modified:
Saturday, 24 August, 2024
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सितंबर 6, 2019 की रात को, जब लाखों भारतीयों ने सांसें थाम रखी थीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों के साथ खड़े थे. चंद्रयान-2 मिशन के दौरान, विक्रम लैंडर की चंद्रमा पर उतरने की कोशिश विफल हो गई और यह एक सॉफ़्टवेयर गलती के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे प्रज्ञान रोवर भी खो गया. इस असफलता के बावजूद, यह क्षण भारत की अंतरिक्ष यात्रा की एक महत्वपूर्ण कहानी बन गया, जो मेहनत और संकल्प की प्रतीक था. जब मिशन असफल हुआ और कमरे में सन्नाटा छा गया, तो सबको डर लगने लगा कि प्रधानमंत्री कैसे प्रतिक्रिया देंगे और भारत की अंतरिक्ष योजनाओं का क्या होगा?

इस अनिश्चितता के क्षण में, प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ ऐसा किया जो भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर स्थायी प्रभाव छोड़ गया, उन्होंने ISRO के प्रमुख को गले लगाया और निराशा की बातें करने के बजाय, साहस और आशा का संदेश दिया. अगले दिन, उनकी बातों ने पूरे देश को प्रोत्साहित किया. यह कोई सामान्य प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक प्रेरणादायक क्षण था जो भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए एक नया मोड़ साबित हुआ. प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी ने भारत की अंतरिक्ष तकनीक में नए युग की शुरुआत की.

23 अगस्त, 2023 को, चंद्रयान-3 के साथ उस संकल्प को सफलता मिली. विक्रम लैंडर का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग शाम 6:03 बजे IST पर सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी; यह राष्ट्रीय गर्व का पल था. प्रज्ञान रोवर के बाद में चंद्रमा की सतह की खोज ने ISRO के वैज्ञानिकों की प्रतिभा और समर्पण को दर्शाया. इस उपलब्धि को मान्यता देने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी ने 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया—एक दिन जो अगले पीढ़ी को विज्ञान और तकनीक में करियर की ओर प्रेरित करने के लिए समर्पित है. एक सम्मानजनक श्रद्धांजलि के रूप में, उन्होंने लैंडिंग स्थल का नाम “शिव शक्ति” रखा और चंद्रयान-2 द्वारा बनाई गई प्रभाव स्थल को “तिरंगा” नाम दिया, जो एक ऐसा नाम है जो एक राष्ट्र की अडिग भावना को दर्शाता है जो असफलताओं से निराश नहीं होता. 

पिछले महीने, चंद्रयान-3 की सफलता, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया, को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संघ द्वारा प्रतिष्ठित वर्ल्ड स्पेस अवार्ड से सम्मानित किया गया. यह मान्यता भारत की तकनीकी क्षमता को पुष्ट करती है और इसे अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नेता के रूप में मजबूत करती है, भविष्य की चंद्रमा की खोजों, जिसमें मानव अन्वेषण भी शामिल है, के लिए रास्ता बनाती है.

प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता के तहत, भारत एक शक्तिशाली अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है, जिसका वैश्विक महत्व है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसे सस्ते अंतरिक्ष मिशनों के लिए जाना जाता है, हमेशा से एक नेता रहा है. अंतरिक्ष अन्वेषण की बदलती गतिशीलता को पहचानते हुए, मोदी सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं. न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन और ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) जैसी पहलों के माध्यम से, भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्धी वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता दर्शाई है. यह आगे की सोच भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण और तकनीक में अग्रणी बनाए रखती है.

मोदी की नेतृत्व में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियाँ कई और विविध हैं. इसमें स्वदेशी लॉन्च क्षमता, चंद्रमा और मंगल पर सफल मिशन, विभिन्न कक्षाओं में उपग्रहों की लॉन्चिंग, और मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा अंतरिक्ष इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास शामिल है. इन उपलब्धियों की गति और पैमाना अद्वितीय हैं. मार्च 2024 तक, ISRO ने कुल 124 अंतरिक्ष यान मिशन किए हैं, जिनमें 17 उपग्रह निजी खिलाड़ियों या छात्रों द्वारा विकसित किए गए हैं और 432 विदेशी उपग्रहों को लॉन्च किया गया है; इसके अतिरिक्त, ISRO ने 96 लॉन्च मिशन, छह पुनः-प्रवेश मिशन, और POEMS जैसे प्रोजेक्ट भी पूरे किए हैं.

ISRO की निरंतर नवाचार की एक प्रमुख मिसाल है आदित्य-L1 मिशन, जो 2 सितंबर, 2023 को लॉन्च हुआ। आदित्य-L1, जो 6 जनवरी, 2024 को अपने निर्धारित कक्ष L1—पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर—पर पहुंच गया, सूरज के वातावरण के रहस्यों की खोज करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह मिशन सूर्य की कोरोना और क्रोमोस्फियर को समझने, कोरोना को लाखों डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने की प्रक्रियाओं की जांच करने, और भविष्य के सौर मिशनों के लिए स्वदेशी तकनीकों को विकसित करने का लक्ष्य रखता है.

मोदी सरकार की रणनीतिक दृष्टि और अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अडिग प्रतिबद्धता ने भारत को वैश्विक मंच पर प्रमुख स्थिति में ला खड़ा किया है. यह दृष्टि केवल अन्वेषण तक सीमित नहीं है; इसमें उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का विकास भी शामिल है, जैसे कि एंटी-सैटेलाइट तकनीक (ASAT)। 2019 में सफल मिशन शक्ति परीक्षण के माध्यम से, भारत ने ASAT में अपनी क्षमताओं को दिखाया, और ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. यह रणनीतिक कदम भारत की अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा और बाहरी अंतरिक्ष के जिम्मेदार उपयोग पर वैश्विक वार्तालाप में भागीदारी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

मोदी की तकनीकी नवाचार की दृष्टि के अनुसार, PSLV-C43 मिशन, जिसने नवंबर 2018 में हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (HySIS) को लॉन्च किया, पृथ्वी की सतह का अध्ययन करने में एक महत्वपूर्ण प्रगति है. यह मिशन विभिन्न तरंग दैर्ध्यों पर हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कृषि, वनवृक्ष, भूगोल और आपदा प्रबंधन जैसे कई क्षेत्रों में उपयोगी है. HySIS और Astrosat तथा KalamSAT जैसे अन्य मिशन भारत की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मंच पर बढ़ती भूमिका को दर्शाते हैं.

मोदी सरकार के तहत, गगनयान मिशन बड़े ध्यान से प्रगति कर रहा है और महत्वपूर्ण मील के पत्थर हासिल कर रहा है. गगनयान की सफलता भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं वाले चौथे देश (अमेरिका, रूस और चीन के बाद) के रूप में मान्यता दिलाएगी और यह भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

आगे देखते हुए, मोदी की मार्गदर्शन में भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में और प्रगति के लिए तैयार है. भारत 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर उतारने की महत्वाकांक्षी योजना बना रहा है. 2040 तक 100 अरब डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था प्राप्त करने की दिशा में ये मील के पत्थर भारत को वैश्विक अंतरिक्ष नेता के रूप में स्थापित करेंगे और नए युग की अंतरिक्ष अन्वेषण और नवाचार की शुरुआत करेंगे.

सीमित बजट और आयात पर तकनीकी निर्भरता जैसी चुनौतियों के बावजूद, मोदी सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता और बढ़ती निजी क्षेत्र की भागीदारी भविष्य के लिए आशाजनक है. नीतिगत सुधारों, तकनीकी उन्नति, और महत्वाकांक्षी मिशनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत मोदी के नेतृत्व में वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर एक प्रमुख शक्ति बनने के लिए तैयार है.

भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण में महत्वाकांक्षी प्रगति केवल सफल मिशनों और तकनीकी उन्नति तक सीमित नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की अनुमति देकर वैश्विक सहयोग और नवाचार के लिए नए रास्ते खोले हैं. यह रणनीतिक कदम भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए है और इसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को आकर्षित करने, स्थानीय स्टार्टअप्स को समर्थन देने, और उच्च-तकनीक अनुसंधान और विकास को प्रेरित करने के रूप में सराहा गया है. यह नीति बदलाव न केवल निजी निवेश को आकर्षित करता है, बल्कि भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी बनाता है और नवाचार और उत्कृष्टता को बढ़ावा देता है। ISRO के पास आने वाले अंतरिक्ष मिशनों की महत्वाकांक्षी सूची है, जैसे NISAR, गगनयान 1, गगनयान 2, शुक्रयान (Venus Orbiter Mission), मंगलयान 2 (Mars Orbiter Mission 2) और चंद्रयान-4, इत्यादि.

(लेखक- तुषिन ए. सिन्हा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, BJP और प्रसिद्ध लेखक)
 


दूरदर्शी नेतृत्व का प्रमाण, भारत के हेल्थकेयर सेक्टर में आ रहा बदलाव

केंद्रीय बजट 2024–25, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, स्वास्थ्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं और प्रमुख योजनाएं लेकर आया है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 21 August, 2024
Last Modified:
Wednesday, 21 August, 2024
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भारत अपने हेल्थकेयर सिस्टम को तेजी से सुधार रहा है और इस साल का केंद्रीय बजट, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी नेतृत्व में, हमारे सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है. "विकसित भारत" की ओर हमारी यात्रा अद्वितीय है. स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के नेतृत्व में स्वास्थ्य बजट में वृद्धि से पूरे स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ा बदलाव आने वाला है.

केंद्रीय बजट 2024-25 सरकार की हाई कैपिटल एक्सपेंडिचर और मजबूत कल्याणकारी खर्च को संतुलित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. यह बजट समाज के हर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए बनाया गया है, जिससे देश भर में सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रगति हो. यह बजट यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार की समर्पण को दर्शाता है कि भारत के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, लिंग या आयु के हों, अपने जीवन के लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण प्रगति करें. सरकार ने समावेशी विकास पर जोर दिया है, खासकर चार प्रमुख वर्गों पर: ‘गरीब’, ‘महिलाएं’, ‘युवा’, और ‘अन्नदाता’.

वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद, जैसे कि उच्च संपत्ति की कीमतें, कुछ देशों में राजनीतिक अस्थिरता, और शिपिंग में व्यवधान, भारत की आर्थिक वृद्धि स्थिरता का प्रतीक बनी हुई है. भारत में मुद्रास्फीति (महंगाई) कम और स्थिर है, जो 4% के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, और मौलिक मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) वर्तमान में 3.1% है. सरकार द्वारा जल्द ही खराब हो सकने वाले सामानों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों ने इस स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का बजट वित्तीय वर्ष 2023–24 में 77,625 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024–25 में 87,657 करोड़ रुपये हो गया है, जो 13% की बढ़ोतरी है. स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (DHR) का बजट भी 14% बढ़ा है, जबकि आयुष मंत्रालय के बजट में 24% की भारी बढ़ोतरी हुई है.

केंद्रीय बजट 2024–25, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, स्वास्थ्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं और प्रमुख योजनाएं लेकर आया है. वित्त मंत्री ने चिकित्सा उपकरणों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD), जैसे कि एक्स-रे ट्यूब और फ्लैट पैनल डिटेक्टर्स, को 15% से घटाकर 5% कर दिया है. इसके अलावा, तीन कैंसर दवाओं—ट्रास्टुज़ुमैब डेरक्सटेकन, ओसिमर्टिनिब, और डूर्वालुमैब—को BCD से छूट दी गई है, जिससे इनकी उपलब्धता और सस्ती कीमत पर असर पड़ेगा. स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन (HTA) के लिए 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो नई और मौजूदा स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों की उपयुक्तता और लागत-प्रभावशीलता की जांच करेंगे.

प्रमुख योजनाओं का बजट भी बढ़ाया गया है: आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (ABHIM) का बजट 2,100 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,200 करोड़ रुपये हो गया है; राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट 31,500 करोड़ रुपये से बढ़कर 36,000 करोड़ रुपये हो गया है; और पीएम-जय आयुष्मान योजना (PM-JAY) का बजट 6,800 करोड़ रुपये से बढ़कर 7,300 करोड़ रुपये हो गया है.

योजना विश्लेषण में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट वित्तीय वर्ष 2023-24 में 31,551 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 36,000 करोड़ रुपये हो गया है. पीएम-जाय का बजट 6,800 करोड़ रुपये से बढ़कर 7,300 करोड़ रुपये हो गया है, और पीएम-एबीएचआईएम का बजट 2,100 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,200 करोड़ रुपये हो गया है. यह बजट सरकार की उच्च पूंजी खर्च और मजबूत कल्याण खर्च को संतुलित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, साथ ही एक समावेशी समाज को प्रोत्साहित करता है.

सरकार ने अंतरिम बजट से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने और समावेशिता बढ़ाने की दिशा में निरंतरता दिखाई है, जैसे कि PM-JAY को सभी अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों (आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, और सहायकों) तक बढ़ाया गया है. इसके अलावा, भारत भर में और अधिक चिकित्सा कॉलेजों की योजना बनाई जा रही है. U-Win की शुरुआत, जो कि गर्भाशय के कैंसर के खिलाफ टीकाकरण और इम्यूनाइजेशन को प्रबंधित करने के लिए है, यह दर्शाती है कि सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन के लिए अलग-अलग आवंटन यह दिखाते हैं कि सरकार पारदर्शी और सबूत आधारित निर्णय लेने को कैसे सक्षम बनाना चाहती है. कैंसर देखभाल में की गई पहलों से पहुंच और उपलब्धता में सुधार की उम्मीद है.

अंत में, केंद्रीय बजट 'विकसित भारत' सामाजिक-आर्थिक विकास को पर्यावरणीय मुद्दों के साथ संतुलित करता है. यह समावेशी विकास की एक दृष्टि को आगे बढ़ाता है, जहां हर नागरिक देश की प्रगति से लाभान्वित हो सकता है. इन पहलों के साथ, भारत अपने स्वास्थ्य क्षेत्र को बदलने के लिए तैयार है, जिससे सभी के लिए एक स्वस्थ, मजबूत, और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित होगा.

 

(लेखक- डॉ. किरीट पी. सोलंकी, पूर्व सांसद, लोकसभा)
(लेखक- अरुणांश बी. गोस्वामी, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया)

 


स्मृति शेष: आपदा से भी अवसर खोज निकालने वाले जादूगर थे अनिल अग्रवाल   

"केजरीवाल ने वैश्विक व्यापार साम्राज्य खड़ा किया और सिंगापुर के प्रधानमंत्री , रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एवं बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना मित्र माना."

Last Modified:
Friday, 16 August, 2024
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  • समीर अहलूवालिया

मैं 2017 की गर्मियों में पहली बार अनिल केजरीवाल से मिला था. मेरे दोस्तर स्वप्निल, जो उनके वेल्थ मैनेजर थे, ने मुझे स्टार्ट-अप में संभावित निवेश के लिए उनसे मिलने के लिए बुलाया, जिसकी मैंने योजना बनाई थी. मुझे नहीं पता था कि गुड़गांव में उनके आलीशान अरालियास पेंटहाउस में एक घंटे की यह संक्षिप्त मुलाकात एक ऐसे रिश्ते में बदल जाएगी, जिसे मैं न तो विशुद्ध रूप से पेशेवर कह सकता हूं  और न ही व्यक्तिगत.

IITians के थे दीवाने
इस लेख के माध्यम से मैं कुछ ऐसे किस्से साझा करके उस व्यक्ति को याद करने की कोशिश करूंगा, जो 70 साल की उम्र में 27 साल जैसा युवा था, जिन्होंने न केवल मुझ पर, बल्कि उन लोगों के जीवन पर भी अमिट छाप छोड़ी, जो किसी न किसी रूप में उनसे जुड़े रहे. IIT कानपुर में पढ़ाई करने के बाद, अनिल केजरीवाल IIT की जीवनशैली और आमतौर पर IITians के दीवाने थे. अपनी पहली मुलाकात के बाद, मुझे अहसास हुआ कि उनसे निवेश प्राप्त करना मुश्किल है, क्योंकि मैंने उस प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई नहीं की है. अनिल केजरीवाल आईआईटी के पर्याय थे. उन्होंने 1992 में सिंगापुर में आईआईटी एलुमनाई का पहला ग्लोबल चैप्टर स्थापित किया, वे इसी देश के नागरिक थे. उनकी अग्रणी पहलों में दिल्ली एनसीआर, कोलकाता और बेंगलुरु में शायद भारत के पहले आईटी पार्क स्थापित करना शामिल है. 1980 के दशक में, वे भारत से कंप्यूटर के सबसे बड़े निर्यातक थे, ये वो दौर था जब भारत में कंप्यूटर दुर्लभ माने जाते थे.

तैयार रखते थे प्लान B
पहली मुलाकात के कुछ हफ़्ते बाद, अनिल केजरीवाल, जिन्हें मैं अनिल सर कहता था, ने मुझे फ़ोन करके लंच पर मिलने के लिए कहा. यह ऐसी कई बैठकों में से संभवतः पहली थी जहां हमने लगभग हर विषय पर चर्चा की. राजनीति, शासन, हमारा काम और उनका व्यवसाय करने का तरीका, जो दूरदर्शी और अग्रणी था लेकिन अपने दृष्टिकोण में मितव्ययी था. उनकी जो बात सबसे अलग थी वह यह कि जब भी मैं उनसे मिला, वे अपनी योजनाओं पर आगे बढ़ चुके थे, और प्लान बी भी तैयार कर लिया था, जो पीछे हटने पर नहीं बल्कि उनके अगले बिग मूव पर केन्द्रित था.

ऐसे शुरू की ग्लोबल कंपनी 
हम लगभग हर महीने मिलने लगे, या तो अरालियास क्लब में या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में. उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा आकर्षण था जो मुझे उनकी ओर खींचता था और समय के साथ मुझे अहसास हुआ कि दूसरे लोग भी ऐसा ही महसूस करते हैं. उनके सरल व्यक्तित्व और युवा दिल वाली बातचीत ने हमारी उम्र और पृष्ठभूमि के अंतर को धुंधला कर दिया. हम दोस्त बन गए थे जो साथ में घूमते भी थे. उनकी जिंदगी में एक अहम् मोड़ तब आया जब 2020 में कोरोना महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में लिया. अनिल सर ने मुझे लॉकडाउन के दौरान एक दिन बुलाया और आयोडीन और इसके लाभों के बारे में एक बताया. साथ ही यह भी कि यह वायरस के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव कैसे है. जब हम सब केवल लॉकडाउन के प्रभाव के बारे में सोच रहे थे, अनिल सर ने एक व्यावसायिक अवसर को महसूस किया. अगले कुछ हफ्तों में, उन्होंने 70 साल की उम्र में एक स्टार्ट-अप के रूप में i2 Cure लॉन्च किया. इस तरह जब दुनिया लॉकडाउन में थी, एक ग्लोबल कंपनी का जन्म हुआ.  कुछ ऐसा था अनिल केजरीवाल का जादू.

परिवार का सदस्य माना
अनिल सर ने कंपनी को एक सच्चे स्टार्टअप की तरह चलाया. लीन टीम, सिंपल ऑफिस और सैलरीज पर एक कैप. मैं अक्सर उनसे इसका कारण पूछता और वे कहते कि वे बिना किसी बाहरी निवेश की आवश्यकता के, एक स्टार्टअप को कैसे चलाना चाहिए, इसे फिर से परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं. मेरी कंपनी ने i2 Cure उत्पादों की रेंज के लिए ज्ञान-आधारित सामग्री बनाने के लिए कुछ काम किया. वे मुझे याद दिलाते रहे कि यह एक स्टार्टअप है और इसलिए वे इस प्रोजेक्ट  लिए मुझे केवल अपनी जेब से ही भुगतान कर सकते हैं. "कोई चिंता नहीं अनिल सर, केवल हमारी जेब से लगने वाले खर्चों की पूर्ति ही काफी है. जब कंपनी बढ़ेगी, तो मैं सब वसूल लूंगा," यह मेरा जवाब था. इस एक वाक्य ने अगले कुछ वर्षों में हमारे रिश्ते को परिभाषित किया. उन्होंने मुझे i2 Cure की संस्थापक टीम का हिस्सा बताया और सभी से अपने परिवार के सदस्य के रूप में पर परिचय कराया.  पेशेवर और व्यक्तिगत रिश्ते के बीच की रेखा अब हमेशा के लिए मिट चुकी थी.

ऐसे थे उनके दोस्त
केजरीवाल ने वैश्विक व्यापार साम्राज्य खड़ा किया और सिंगापुर के प्रधानमंत्री , रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन  और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना मित्र माना. उन्होंने पिछले दो वर्षों में अधिकांश समय बांग्लादेश में बिताया, जहां उन्होंने बड़े पैमाने पर डायलिसिस केंद्र स्थापित करने और कॉक्स बाज़ार समुद्र तट क्षेत्र को वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई. वह बांग्लादेश में आईआईटी-प्रकार के संस्थान की स्थापना के लिए भी चर्चा के अंतिम चरण में थे. कुछ महीने पहले उन्होंने मुझे व्लादिमीर पुतिन के एक करीबी विश्वासपात्र बोरिस टिटोव से मिलने के लिए बुलाया, जो रूस में एक टॉप पॉलिटिकल लीडर होने के साथ-साथ रूस की सबसे बड़ी वाइन कंपनी अब्रू-डुरसो के मालिक हैं. उन्होंने सब से मेरा अपने परिवार के सदस्य के रूप में परिचय कराया. अनिल सर रूसियों के साथ मिलकर भारतीय बाजार में डिब्बाबंद संगरिया लॉन्च करने के इच्छुक थे.

वो आखिरी मुलाकात 
मैं उनसे आखिरी बार 29 जुलाई को मिला था, जिस दिन वे आईआईटी स्टडी टूर के लिए तंजानिया जा रहे थे, जो उनकी अंतिम विश्राम स्थली में तब्दील हो गया. हम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लंच पर मिले. वे हमेशा की तरह ही खुशमिजाज, नए विचारों से भरे हुए थे और अफ्रीका में व्यापार के अवसरों की तलाश करने को लेकर उत्साहित थे, उनका पहले से ही तंजानिया जाने का प्लान था. हम खान मार्केट गए क्योंकि अनिल सर को अपनी एसिडिटी की समस्या से निपटने के लिए दवाइयां खरीदनी थीं. मैंने उन्हें अजवाइन और सेंधा नमक का एक देसी मिश्रण भी दिया, जिसे मैं अपने साथ रखता हूं, और उन्हें बेहतर महसूस हुआ. पहली बार, उन्होंने अपने परिवार के बारे में विस्तार से बात की, जो उनके सामान्य चरित्र का हिस्सा नहीं था. मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. अनिल केजरीवाल ने जो ऊर्जा, भावना और उद्यमशीलता का जज्बा दिखाया, उसकी बराबरी बहुत कम लोग कर सकते हैं. वे भले ही हमें छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन मैं जब भी आसमान को देखता हूं तो लगता है कि वे वहां किसी नए बिज़नेस आईडिया को आकार दे रहे होंगे.
 

(लेखक Content Advisory Group के पार्टनर हैं)

 


सच्ची स्वतंत्रता: समावेशी समाज के लिए सार्वभौमिक रचना और सहायक प्रौद्योगिकी अनिवार्य

NCPEDP के कार्यकारी निदेशक अरमान अली के अनुसार प्रत्येक नागरिक को अवसरों और संसाधनों तक समान पहुंच प्राप्त होना ही सच्ची स्वतंत्रता है.  

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 14 August, 2024
Last Modified:
Wednesday, 14 August, 2024
BWHindia

भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. ऐसे में स्वतंत्रता की अवधारणा पर गहन शोध की आवश्यकता है. सच्ची स्वतंत्रता राजनीतिक स्वायत्तता से अलग है. सच्ची स्वतंत्रता वहां है जहां प्रत्येक नागरिक को उनकी क्षमताओं की परवाह किए बिना, अवसरों और संसाधनों तक समान पहुंच प्राप्त है. ये विचार नेशनल सेंटर फॉर प्रोमोशन ऑफ इम्पलायमेंट फॉर डिसएबल्ड पीपुल (NCPEDP) के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने व्यक्त किए हैं. अरमान अली ने देश में समावेशी समाज के निर्माण को लेकर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, तो आइए जानते हैं उनके इस लेख में समाज के लिए क्या संदेश है?  

सार्वभौमिक रचना (Universal Design) क्या है?
सार्वभौमिक रचना समावेशी स्वतंत्रता की बुनियाद है. यह सिर्फ रचना या बनावट का एक दर्शन नहीं है, बल्कि एक समावेशी समाज का खाका है. यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि बिना किसी भेदभाव के एक ऐसे  वातावरण का निर्माण किया जाए जहां उत्पाद और सेवाओं का उपयोग हर किसी के लिए अधिकतम सीमा तक संभव हो. 
 

दिव्यांगजनों के लिए सार्वभौमिक रचना की आवश्यकता

भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता है. इस देश में दिव्यांगजनों की विभिन्न आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक सार्वभौमिक रचना की आवश्यक है. सार्वभौमिक रचना का अर्थ है एक ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें उत्पादों, इमारतों और स्थानों का निर्माण इस तरह से किया जाए कि इसका अधिकतम इस्तेमाल हर कोई बिना किसी परेशानी के सहजता से कर सके. सार्वभौमिक रचना का अर्थ है एक ऐसा वातावरण बनाना जहां दिव्यांगजन शिक्षा और रोजगार से लेकर सामाजिक और नागरिक गतिविधियों तक जीवन के हर पहलू में बिना किसी बाधा के पूरी तरह से भाग ले सकें. यह दृष्टिकोण केवल सामाजिक न्याय का मामला नहीं है, यह देश के भविष्य में एक रणनीतिक बदलाव का भी परिचायक है. 

सहायक प्रौद्योगिकी (Assistive Technology) की परिवर्तनकारी भूमिका

सहायक प्रौद्योगिकी (AT) और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सार्वभौमिक रचना की दृष्टि को साकार करने में पूमहत्वर्ण घटक हैं. ये प्रौद्योगिकियां केवल उपकरण नहीं हैं. ये दिव्यांगता और समाज में पूर्ण भागीदारी के बीच की खाई को पाटती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्थानों ने दिव्यांगजनों के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी क्षमता पर जोर दिया है. उदाहरण के लिए, स्पीच-टू-टेक्स्ट सॉफ्टवेयर, संचार बोर्ड और श्रवण यंत्र जैसी प्रौद्योगिकियां संचार क्षमताओं को बढ़ाती हैं, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और त्वरित संदेश जैसे आईटी समाधान कनेक्टिविटी और पहुंच में इजाफा करती हैं. वहीं, रैंप, लिफ्ट और गति प्रदान करने वाली अन्य सहायक उपकरणों से दिव्यांगजनों को प्रत्यक्ष सहायता सुनिश्चित की जाती है. साथ में, सहायक प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी बाधाओं को कम करती हैं, जिससे दिव्यांगजनों के लिए सेवाओं तक पहुंच, शिक्षा में संलग्न होना और कार्यबल में भाग लेना आसान हो जाता है.

सहायक प्रौद्योगिकी में निवेश नैतिक अनिवार्यता के साथ आर्थिक आवश्यकता भी 

सहायक प्रौद्योगिकी में निवेश करना केवल एक नैतिक अनिवार्यता नहीं है; यह एक आर्थिक आवश्यकता भी है. सहायक प्रौद्योगिकी तक अधिक पहुंच से दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होगी, स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम होगी और शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर 3 में से 1 व्यक्ति को 2050 तक सहायक उत्पादों की आवश्यकता होगी, फिर भी उच्च लागत और उपलब्धता की कमी के कारण वर्तमान में केवल 5-15 प्रतिशत तक ही पहुंच है.

इसे भी पढ़ें-आर्थिक और सामाजिक प्रगति के माध्यम से भारत को एकीकृत करना है मोदी 3.0 और NDA का लक्ष्य

2030 तक इतना हो जाएगा भारत के सहायक उपकरण बाजार का मूल्य 

भारत का सहायक उपकरण बाजार, जिसका मूल्य 2023 में 613.65 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, 5.5 प्रतिशत की सीएजीआर के साथ 2030 तक 904.60 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. यह आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है. देश सहायक प्रौद्योगिकी बाजार में खुद को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है. भारत सरकार का अपने “मेक इन इंडिया” पहल के तहत देश को एक शीर्ष निर्माता के रूप में स्थापित करने पर ध्यान इस लक्ष्य के साथ पूरी तरह से मेल खाता है.

वैश्विक बाजार में इतना है सहायक प्रौद्योगिकी का मूल्य 
सहायक प्रौद्योगिकी का केंद्र बनकर, भारत न केवल घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में भी प्रवेश कर सकता है, जिसका मूल्य 2021 में 21.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और 2028 तक 28.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

रणनीतिक निवेश के लिए एक आह्वान

भारत को वास्तव में स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों को अपनाने के लिए सहायक प्रौद्योगिकी  और सूचना प्रौद्योगिकी में निवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसमें अनुसंधान और विकास के लिए बढ़े हुए बजट आवंटन के साथ-साथ ऐसी नीतियां भी शामिल हैं, जो इन प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देती हैं. सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया और एनसीपीईडीपी के नेतृत्व में सहायक प्रौद्योगिकी हब जैसी पहल की स्थापना, इस दिशा में एक यही कदम है. इस हब का लक्ष्य भारत को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में सहायक प्रौद्योगिकी, नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता का वैश्विक केंद्र बनाना है.

नौकरियों में दिव्यांगजनों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण जरूरी

इसके अलावा सहायक प्रौद्योगिकी केवल उपकरण उपलब्ध कराने के विषय में नहीं है; यह एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के विषय में है जो इन प्रौद्योगिकियों के प्रभावी उपयोग का समर्थन करता है. इसमें कर्मियों को प्रशिक्षण देना, जागरूकता बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सहायक उत्पाद उन लोगों के लिए किफायती और सुलभ हों जिन्हें उनकी आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत सभी नौकरियों में 4 प्रतिशत आरक्षण देना जरूरी है. हालांकि, कम साक्षरता स्तर, कौशल और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की कमी और सामाजिक पूर्वाग्रह जैसी चुनौतियों के कारण कई कंपनियां इस लक्ष्य से पीछे रह जाती हैं. सहायक प्रौद्योगिकी तक पहुंच बढ़ाकर इन चुनौतियों का समाधान संभव है. इससे दिव्यांगजनों के लिए रोजगार के अवसरों में सुधारकर उनको आर्थिक रूप से और मजबूत किया सकता है.

निष्कर्ष: वास्तव में समावेशी स्वतंत्रता की ओर

जैसा कि हम भारत की आजादी के 77वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं, यह चिन्हित करना जरूरी है कि सच्ची आजादी तभी हासिल की जा सकती है जब प्रत्येक नागरिक को अवसरों, संसाधनों और एक पूर्ण जीवन जीने का समान अवसर मिले. सार्वभौमिक रचना और सहायक तकनीक केवल दिव्यांगजनों को समायोजित करने के विषय में नहीं हैं, वे व्यक्तियों को समाज में योगदान करने और उनकी पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए सशक्त बनाने के बारे में हैं.

स्वतंत्र ही नहीं समावेशी समाज के निर्माण की जरूरत
एनसीपीईडीपी-एमफैसिस (MPhasis) यूनिवर्सल डिजाइन अवार्ड्स, अब अपने 15वें वर्ष में, एक समावेशी समाज के निर्माण में सुगम्यता की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करेगा. यह स्मरण करता है कि स्वतंत्रता की ओर यात्रा जारी है, और यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि कोई भी पीछे न छूटे. सहायक प्रौद्योगिकी में निवेश करके और सार्वभौमिक रचना के सिद्धांतों को अपनाकर, भारत एक ऐसे समाज का निर्माण करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो न केवल स्वतंत्र हो बल्कि वास्तव में समावेशी भी हो.


Gossip & Tales: माधबी पुरी बुच को किया गया दिल्ली तलब, क्या सरकार उठा सकती है बड़ा कदम?

सूत्रों का कहना है कि सरकार सोच रही है कि बुक से पद छोड़ने के लिए कहा जाए या नहीं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 14 August, 2024
Last Modified:
Wednesday, 14 August, 2024
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US शॉर्ट सेलर हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुक को नई दिल्ली बुलाया गया. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा और वित्त मंत्री से मुलाकात की. दरअसल, 11 अगस्त को हिंडेनबर्ग ने भारत पर अपनी दूसरी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें SEBI प्रमुख पर कई आरोप लगाए गए हैं. नई दिल्ली में चर्चा है कि अगर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचता है और सुप्रीम कोर्ट जांच के लिए एक समिति गठित करता है, जैसा कि जनवरी 2023 में अडानी ग्रुप पर पहली हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के बाद किया था, तो बुच को अस्थायी रूप से अपने पद से हटने के लिए कहा जा सकता है.

पिछले 10 वर्षों में, नरेंद्र मोदी की सरकार ने बहुत ही कम बार किसी नियामक प्रमुख को उनके कार्यकाल के समाप्त होने से पहले हटाया है. बुच का तीन साल का कार्यकाल मार्च 2025 में समाप्त होगा, लेकिन सरकार के भीतर यह राय है कि वर्तमान में SEBI प्रमुख पर लगे टकराव के आरोपों और नकारात्मक खबरों के चलते, बुच का पद पर बने रहना बहुत लंबा हो सकता है. अगर संभावित सुप्रीम कोर्ट जांच समिति बुक के कार्यकाल के दौरान कोई गंभीर रिपोर्ट देती है, तो इससे सरकार की भी बदनामी हो सकती है, खासकर अगर सरकार ने उन्हें समर्थन दिया.

ब्लैकस्टोन भी बना चिंता का कारण

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में ब्लैकस्टोन से जुड़ा आरोप सरकार को चिंतित कर रहा है. हिंडेनबर्ग के अनुसार, SEBI प्रमुख REIT (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) को बढ़ावा दे रही थीं और उन्होंने इसे अपनी पसंदीदा चीजों में से एक घोषित किया था. इस दौरान, उनके पति को अमेरिका के सबसे बड़े फंड मैनेजर्स में से एक ब्लैकस्टोन ने सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था, जिसका REITs में बड़ा निवेश था. हिंडनबर्ग का कहना है कि बुक के कार्यकाल के दौरान SEBI की नीतियां इतनी सहायक थीं कि ब्लैकस्टोन ने REIT उत्पादों से 7100 करोड़ रुपये से अधिक निकाल लिए, जबकि उनके पति धवल बुक ब्लैकस्टोन के साथ काम कर रहे थे. दिलचस्प बात यह है कि धवल बुच का फंड मैनेजमेंट या रियल-एस्टेट में कोई अनुभव नहीं था, क्योंकि उन्होंने हिंदुस्तान यूनिलीवर के सप्लाई चेन और प्रोक्योरमेंट विभाग में काम किया था. फिर भी, हिंडनबर्ग का आरोप है कि ब्लैकस्टोन ने बुक को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया ताकि SEBI प्रमुख को प्रभावित किया जा सके.

अडानी मुद्दा

SEBI प्रमुख का कहना है कि उन्होंने 22 मार्च 2017 को, SEBI में पूरी तरह से शामिल होने से पहले, IIFL वेल्थ द्वारा चलाए जा रहे मॉरीशस आधारित ग्लोबल डायनैमिक ऑपर्चुनिटीज फंड में अपनी लगभग 7 करोड़ रुपये की निवेश की हिस्सेदारी छोड़ दी थी. इसके अलावा, फंड ने स्पष्ट किया है कि उसने अडानी कंपनियों के किसी भी उपकरण में निवेश नहीं किया था. हिंडनबर्ग का कहना है (प्राइवेट ईमेल पत्राचार के अनुसार) कि धवल बुच ने इन निवेशों को फरवरी 2018 तक रखा, बुच को अप्रैल 2022 में SEBI प्रमुख नियुक्त किया गया था. हिंडनबर्ग का कहना है कि IIFL वेल्थ द्वारा बनाए गए इसी संरचना का उपयोग गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ने टैक्स हेवन्स में फंड मूव करने और भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के लिए किया. इसलिए, हिंडनबर्ग का कहना है कि जब SEBI अडानी ग्रुप की विभिन्न उल्लंघनों की जांच कर रही थी, तब SEBI प्रमुख ने खुद को जांच से अलग नहीं किया, जिससे टकराव का मुद्दा उठता है.

अन्य आरोप अब तक प्रभावी नहीं लगे हैं, क्योंकि हिंडनबर्ग SEBI प्रमुख के खिलाफ किसी भी आपराधिक इरादे या पैसे की तस्करी, रिश्वत या किसी अन्य दुष्कर्म को साबित करने में विफल रही है. इसके अलावा, हिंडनबर्ग को जनवरी 2023 में अपनी पिछली रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले शॉर्ट सेलिंग गतिविधियों और फ्रंट रनिंग में शामिल होने के लिए SEBI से एक शो-कॉज नोटिस भी मिला है.

(लेखक- पलक शाह, BW रिपोर्टर. पलक शाह ने "द मार्केट माफिया-क्रॉनिकल ऑफ इंडिया हाई-टेक स्टॉक मार्केट स्कैंडल एंड द कबाल दैट वेंट स्कॉट-फ्री" नामक पुस्तक लिखी है. पलक लगभग दो दशकों से मुंबई में पत्रकारिता कर रहे हैं, उन्होंने द इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड, द फाइनेंशियल एक्सप्रेस और द हिंदू बिजनेस लाइन जैसी प्रमुख वित्तीय अखबारों के लिए काम किया है).
 


आर्थिक और सामाजिक प्रगति के माध्यम से भारत को एकीकृत करना है मोदी 3.0 और NDA का लक्ष्य

मोदी 3.0 के आगमन और मजबूत एनडीए गठबंधन के साथ, भारत "एक राष्ट्र, एक एजेंडा: विकास" के एकीकृत बैनर के तहत एक परिवर्तनकारी यात्रा शुरू करने के लिए तैयार है. 

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 14 August, 2024
Last Modified:
Wednesday, 14 August, 2024
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2024 के भारतीय आम चुनावों के मद्देनजर, राजनीतिक परिदृश्य में एक उल्लेखनीय बदलाव देखा गया है. इसे देखते हुए राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल अग्रवाल ने अपने लेख में सरकार की नई विकास-आधारित पहलों और नीतियों पर प्रकाश डाला है. तो आइए जानते हैं भारत की विकास यात्रा को लेकर उनके विचार क्या हैं?

नई विकास-आधारित पहल और नीतियों पर प्रकाश डालने का समय 

2024 के भारतीय आम चुनावों के मद्देनजर, राजनीतिक परिदृश्य में एक उल्लेखनीय बदलाव देखा गया है. यह नया राजनीतिक संतुलन अपने साथ अवसर लाता है, विशेष रूप से विकास के क्षेत्र में - एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जो राजनीतिक संबद्धता से परे है. भारत की जनता, ठोस विकासात्मक प्रगति की अपनी मांग के बारे में पहले से कहीं अधिक मुखर है. अब नई विकास-आधारित पहलों और नीतियों पर प्रकाश डालने का समय आ गया है. 2024 के बाद की चुनाव अवधि भारत के राजनीतिक वर्ग के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठने और देश के विकास को प्राथमिकता देने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करती है.

विकास-आधारित पहल शासन रणनीतियों के मूल में बनी रहे

राष्ट्र का स्पष्ट संदेश यह है कि वे अपने जीवन की गुणवत्ता में प्रगति और ठोस सुधार चाहते हैं, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो. सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों गठबंधनों को इस आह्वान पर ध्यान देना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास-आधारित पहल उनकी शासन रणनीतियों के मूल में बनी रहे. जैसे-जैसे भारत इस नए राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ रहा है, विकास पर ध्यान न केवल इसमें शामिल राजनीतिक संस्थाओं को बनाए रखेगा बल्कि देश को अधिक समृद्ध और न्यायसंगत भविष्य की ओर भी प्रेरित करेगा.

जमीनी स्तर के विकास की आवश्यकता 
राजनीतिक जनादेश के केंद्र में जमीनी स्तर के विकास की निर्विवाद आवश्यकता है. दोनों गठबंधन समझते हैं कि अपनी राजनीतिक व्यवहार्यता बनाए रखने और जनता के सामने अपनी योग्यता साबित करने के लिए, उन्हें जमीनी स्तर पर ठोस विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा.

सरकार विकास की परिवर्तनकारी यात्रा के लिए तैयार
मोदी 3.0 के आगमन और मजबूत एनडीए गठबंधन के साथ, भारत "एक राष्ट्र, एक एजेंडा: विकास" के एकीकृत बैनर के तहत एक परिवर्तनकारी यात्रा शुरू करने के लिए तैयार है. यह नवीनीकृत जनादेश राष्ट्र को अभूतपूर्व विकास और आधुनिकीकरण की दिशा में आगे बढ़ाने की मजबूत प्रतिबद्धता का संकेत देता है. विकास पर ध्यान राजनीतिक विभाजन से परे है, जिसका लक्ष्य समाज के हर वर्ग का उत्थान करना और क्षेत्रीय असमानताओं को पाटना है. बुनियादी ढांचे, डिजिटल नवाचार और सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता देकर, सरकार एक सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध भारत बनाने के लिए तैयार है, जहां प्रगति सिर्फ एक लक्ष्य नहीं है बल्कि सभी नागरिकों के लिए एक साझा वास्तविकता है. एकीकृत दृष्टि के इस युग में विकास वह आधारशिला होगी जो आर्थिक लचीलेपन और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देते हुए देश के आगे के मार्ग को परिभाषित करेगी.

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शिक्षा, रोजगार से लेकर स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सरकार का ध्यान
एनडीए का ध्यान संभवतः शासन में कमियों को उजागर करने और आम आदमी के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचा परियोजनाएं, स्वास्थ्य देखभाल में सुधार, शैक्षिक सुधार, जमीनी स्तर पर विकास, पर्यावरण और आर्थिक नीतियां, ग्रामीण और शहरी गरीबों का उत्थान आदि पर एकीकृत मोर्चा पेश करने पर होगा. सत्तारूढ़ गठबंधन प्रमुख विकास परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए अपने शासन अनुभव का लाभ उठाएगा. हालांकि, सरकार की गठबंधन प्रकृति का मतलब है कि गठबंधन के भीतर सर्वसम्मति बनाना और विविध दृष्टिकोणों को समायोजित करना महत्वपूर्ण होगा. नई नीतियों की शुरूआत का लक्ष्य न केवल अल्पकालिक लाभ होना चाहिए बल्कि टिकाऊ और समावेशी विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. ऐसी नीतियां जो ग्रामीण विकास को बढ़ावा देती हैं, कृषि उत्पादकता बढ़ाती हैं, तकनीकी परिवर्तनों और डिजिटल बुनियादी ढांचे का समर्थन करती हैं और छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) का समर्थन करती हैं, वे दीर्घकालिक समृद्धि के लिए आवश्यक होंगी.

एक राष्ट्र, एक एजेंडा 
"एक राष्ट्र, एक एजेंडा: विकास" में भारत की विकास यात्रा की जटिल और बहुआयामी प्रकृति को मानवतावादी लेंस के माध्यम से खोजा जाना चाहिए. एक आदर्श परिदृश्य में, एनडीए को समग्र विकास प्राप्त करने में निहित असंख्य चुनौतियों और जटिलताओं को स्वीकार करके शुरुआत करनी चाहिए. एक राष्ट्र, एक एजेंडा नीति निर्माताओं से लेकर जमीनी स्तर के संगठनों तक, शहरी योजनाकारों से लेकर ग्रामीण समुदायों तक पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाने के महत्व पर बल देते हुए सहयोगात्मक और सामूहिक प्रयासों का आह्वान करता है. यह उन नवीन नीतियों और दृष्टिकोणों को अपनाने का आह्वान करता है, जो समावेशी और न्यायसंगत हों. यह सुनिश्चित करते हुए कि देश के विकास के प्रयास में कोई भी पीछे न रहे. 

सामाजिक विकास पर जीडीपी का लगभग 18-19 प्रतिशत खर्च 

द कन्वर्जेंस फाउंडेशन की ‘Systemic Impact Exemplars: Unique Approaches Towards Solving India's Development Challenges’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार सामाजिक विकास पर जीडीपी का लगभग 18-19  प्रतिशत खर्च करती है. 2022-23 में, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कुल मिलाकर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स पर 48 लाख करोड़ (600 बिलियन अमेरिकी डॉलर) बजट खर्च किया. 

भारत अब भी एसडीजी लक्ष्यों तक पहुंचने से बहुत दूर 

सरकार और सिविल सोसायटी के इन सभी प्रयासों के बावजूद, भारत अपने एसडीजी लक्ष्यों तक पहुंचने से बहुत दूर है. निस्संदेह प्रगति हुई है, लेकिन हम अभी भी 166 देशों में से 112वें स्थान पर हैं. इस अंतर के कई कारण हैं, विशेष रूप से सीमित संसाधन, मुद्दों की जटिलता और अंतर्संबंध, अभिनेताओं और हितधारकों की विस्तृत श्रृंखला और स्थानीय आवश्यकताओं के समाधानों को प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता आदि शामिल हैं. 

सिस्टम परिवर्तन एक राष्ट्र, एक एजेंडा को प्राप्त करने का मार्ग है.

भारत को अब बड़े पैमाने पर प्रभाव के लिए सिस्टम परिवर्तन दृष्टिकोण की आवश्यकता है. ऐसे में दीर्घकालिक समाधान विकसित करने के लिए समस्याओं के मूल कारणों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. सिस्टम परिवर्तन को किसी भी सामाजिक-उद्देश्यीय संगठन द्वारा अपनाया जा सकता है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र या डोमेन का हो. भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में, मुद्दों को बड़े पैमाने पर और स्थायी रूप से संबोधित करना महत्वपूर्ण है. ये सामाजिक-उद्देश्यीय संगठन अपनी प्रभावशीलता और क्षमता को बढ़ाने के लिए सरकारों के साथ मिलकर काम करते हैं, यह मानते हुए कि सरकारें भारत की वृद्धि और विकास चुनौतियों का समाधान करने में प्राथमिक भूमिका निभाती हैं. सिस्टम परिवर्तन एक राष्ट्र, एक एजेंडा को प्राप्त करने का मार्ग है.

"एक राष्ट्र, एक एजेंडा" समग्र विकास के लिए एक रोडमैप 
भारत खुद को एक वैश्विक नेता और वास्तव में विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, "एक राष्ट्र, एक एजेंडा" एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक और प्रेरणा के रूप में कार्य करता है. यह सार्थक और समग्र विकास के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है, पाठकों से सभी के लिए बेहतर भविष्य के रास्ते पर पुनर्विचार करने और फिर से कल्पना करने का आग्रह करता है. मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए, यह अवधारणा विकास की एक शक्तिशाली दृष्टि प्रदान करती है, जो न केवल आर्थिक मैट्रिक्स के बारे में है बल्कि जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने और एक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने के बारे में भी है.

डॉ. अनिल अग्रवाल, अतिथि लेखक, राज्यसभा सांसद
(नोट- इस लेख में व्यक्ति विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं और ये बीडब्ल्यू बिजनेसवर्ल्ड के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं.)


वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन का आयोजन, भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर दिया गया जोर

वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन में दुनिया में हो रहे युद्धों को समाप्त करने का आह्वान, प्रमुख राजनीतिक दलों के सांसदों और नेताओं को डॉ. के. ए. पॉल ने किया आमंत्रित.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Saturday, 10 August, 2024
Last Modified:
Saturday, 10 August, 2024
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दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में आयोजित एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में भारत के प्रमुख दलों के राजनीतिक नेताओं ने वैश्विक शांति के लिए अपनी सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया. इस सम्मेलन का आयोजन वैश्विक शांति राजदूत डॉ. के. ए. पॉल द्वारा किया गया था, जिसमें उन्होंने युद्धों को समाप्त करने और वैश्विक सद्भाव को बढ़ावा देने का आह्वान किया. डॉ. पॉल ने वैश्विक शांति पहलों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और कहा कि भारत इन प्रयासों में अग्रणी रहा है.

कई नेताओं ने की शिरकत

इस महत्वपूर्ण आयोजन में भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद पुरुषोत्तम रूपाला, राज्यसभा सांसद संतोष (CPI), डॉ. पीपी सुनीर (CPI), गायत्री रवि चंद्रा (BRS), डॉ. वी. शिवदास (CPM) और डॉ. फौबिया खान (NCP) के साथ-साथ शिलांग से सांसद डॉ. रिकी एंड्रयू जे. सिंगकोन, DMK फ्लोर लीडर डॉ. शिवा, कांग्रेस सांसद बलराम नाइक और डॉ. मल्लू रवि और भाजपा सांसद रमेश अवस्थी की उपस्थिति रही. सभी ने वैश्विक संघर्षों के बीच शांति के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला.

डॉ. के.ए. पॉल ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत करते हुए इस बात पर जोर दिया, युद्ध इसका जवाब नहीं है, अब समय आ गया है कि भारत उदाहरण पेश करे और वैश्विक मंच पर शांति के लिए काम करे. हमारे देश के पास युद्धरत गुटों को बातचीत की मेज पर लाने और समझ के एक नए युग को बढ़ावा देने का नैतिक अधिकार और जिम्मेदारी है. 

भारत लोकतंत्र और शांति का प्रतीक

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद मल्लू रवि ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि अनेक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, भारत लोकतंत्र और शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहा है. यह शिखर सम्मेलन हमारे सामूहिक विश्वास को रेखांकित करता है कि शांति का मतलब केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण है. 

शिलांग से सांसद डॉ. रिकी एंड्रयू जे. सिंगकोन ने आधुनिक युद्ध के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 16वीं शताब्दी में 59 से अधिक युद्ध हुए, लेकिन आज के संघर्ष अधिक घातक हैं, जो अक्सर सबसे असहाय लोगों, हमारे बच्चों को निशाना बनाते हैं. यह जरूरी है कि हम उन्हें युद्ध की भयावहता से बचाने के लिए मिलकर काम करें.

भारत शांति के लिए बने वैश्विक राजदूत

बीआरएस से राज्यसभा सांसद गायत्री रविचंद्र ने सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत को इस तरह की पहल में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, शांति के लिए वैश्विक राजदूत बनना चाहिए. हमारी आवाज सीमाओं के पार गूंजनी चाहिए, एक ऐसी दुनिया की वकालत करनी चाहिए जहां संघर्ष पर कूटनीति और संवाद हावी हो. 

शिखर सम्मेलन में विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमियों से 12 सांसदों ने भाग लिया, सभी एक ही लक्ष्य से एकजुट हुए थे- शांति को बढ़ावा देना और संघर्ष से त्रस्त दुनिया में भारत को आशा की किरण के रूप में स्थापित करना. सम्मेलन में चर्चाएं यूक्रेन-रूस युद्ध, इज़राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष, ईरान-इराक संघर्ष और बांग्लादेश और श्रीलंका में क्षेत्रीय तनाव सहित चल रहे वैश्विक मुद्दों पर केंद्रित थीं.

शांति के लिए भारत की भूमिका महत्वपूर्ण

इस कार्यक्रम के माध्यम से डॉ. पॉल ने यह स्पष्ट किया कि वैश्विक शांति के लिए भारत की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, उन्होंने कहा कि भारत के पास दुनिया को एकजुट करने की शक्ति है और यह शांति के प्रयासों में अग्रणी बन सकता है. उन्होंने इस दिशा में सभी राजनीतिक दलों से सहयोग और समर्थन की अपील की. इस शिखर सम्मेलन ने न केवल शांति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एकजुट होकर हम एक शांतिपूर्ण और स्थिर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं.
 


हर घर तिरंगा: एकता, गर्व और आर्थिक उत्थान का उत्सव

आइए इस गर्व और एकता के प्रतीक का सम्मान करें और 'हर घर तिरंगा' पहल को उस सम्मान और गर्व के साथ अपनाएं जो यह योग्य है.

Last Modified:
Friday, 09 August, 2024
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भारत के भीतर चल रहे संघर्षों के बीच, पीएम मोदी की 'हर घर तिरंगा' पहल आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है. महाभारत के युद्धभूमि के शांत क्षणों में, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को एक शांत स्थान पर ले जाकर रथ पर से उतार दिया और घोड़ों को आज़ाद कर दिया. एक नाटकीय पल में, भगवान हनुमान जो अर्जुन की रथ के ऊपर थे, गायब हो गए और सिर्फ एक लहराता हुआ कपड़ा रह गया. उसके बाद, रथ में आग लग गई और केवल धूआं ही बचा. कृष्ण ने बताया कि भीष्म, द्रोण और कर्ण द्वारा चलाए जा रहे दिव्य अस्त्रों से रथ पहले ही नष्ट हो गया होता अगर भगवान हनुमान का पवित्र झंडा वहां नहीं होता जो उसे सुरक्षा प्रदान कर रहा था.

यह पुरानी कथा भारतीय परंपरा में ध्वजों के गहरे प्रतीकात्मक महत्व को उजागर करती है—ये सुरक्षा, एकता और दिव्य संरक्षण के प्रतीक हैं. कार्तिकेय के 'सेवल कोडी' से लेकर भगवान रामचंद्र के 'सूर्य ध्वज' तक, जो उन्होंने लंका के विजय के लिए उठाया था, राजा युधिष्ठिर के 'गोल्डन मून ध्वज' और पुरी के जगन्नाथ मंदिर में लहराते 'पतित पावन ध्वज' तक, ध्वज हमेशा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहे हैं. 'निशान साहिब', जो दोनों भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है, सिख परंपरा में एक सम्मानित स्थान रखता है.

इस प्रकार, यह उचित है कि जैसे-जैसे भारत आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, यह गहराई से जुड़ी परंपरा भी बनी रहे. तिरंगा केवल हमारे भविष्य के सपने का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारे समृद्ध और गौरवशाली अतीत का भी एक संकेत है, जो हमारी सभ्यता के शाश्वत मूल्यों और महानता को दर्शाता है.

जिस दुनिया में बांग्लादेश जैसे देशों में अराजकता फैल रही है और बलकानिस्तान का खतरा मंडरा रहा है, वहां भारत का तिरंगा पर गर्व हमें एकजुट करता है. वैश्विक अराजकता के बीच, तिरंगा एक आशा और एकता का प्रतीक है, जो हमारे विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और पहचानों को एक साथ बांधता है. हमारा राष्ट्रीय झंडा हमें एकजुट करता है, भिन्नताओं को पार करता है और एक सामूहिक ताकत को बढ़ावा देता है जो भारत को मुश्किल समय में स्थिरता और एकता का स्तंभ बनाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा है कि तिरंगा स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता की भावना को दर्शाता है. हर भारतीय का तिरंगे से भावनात्मक संबंध है, और यह हमें राष्ट्रीय प्रगति के लिए और मेहनत करने की प्रेरणा देता है. जब हम भारत की स्वतंत्रता की 77वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तब 'हर घर तिरंगा' अभियान हमारे देश की एकता, गर्व और सामाजिक-आर्थिक विकास का एक बड़ा प्रमाण है. 'हर घर तिरंगा' पहल, जो 2022 में आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी, राष्ट्रीय एकता और गर्व को बढ़ावा देने के लिए हर घर में तिरंगा दिखाने का आह्वान करती है. यह हर भारतीय को तिरंगे को केवल प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक आकांक्षाओं और ऐतिहासिक मूल्यों को जीने के लिए प्रेरित करती है. 22 जुलाई 2022 को इस पहल को शुरू करते हुए, पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आज, हम उन सभी लोगों की अडिग साहस और प्रयासों को याद करते हैं जिन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए झंडा सपना देखा था जब हम उपनिवेशीय शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे. हम उनके सपनों के भारत को बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं.

तिरंगे के महत्व

हमारा राष्ट्रीय झंडा, तिरंगा, हमारे देश की आत्मा का रंगीन प्रतीक है, जिसमें हर रंग का गहरा मतलब है.

•    केसरिया (साफ़्रन) पट्टी: साहस और बलिदान को दर्शाती है, जो हमारी बहादुरी और निःस्वार्थता को दिखाती है.
•    सफेद पट्टी: शांति और सच्चाई का प्रतीक है, जो हमारे सामंजस्य और ईमानदारी की प्रतिबद्धता को दर्शाती है.
•    हरा पट्टी: विश्वास और बहादुरी का प्रतीक है, जो न्याय और सम्मान के प्रति हमारी समर्पण को मनाती है.
•    नीला अशोक चक्र: हमारे समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और विरासत का प्रतीक है.

ये रंग न सिर्फ हमारे राष्ट्रीय मूल्यों को दर्शाते हैं, बल्कि हमारे सामूहिकता और मूलभूत सिद्धांतों- साहस, सच्चाई, विश्वास और सांस्कृतिक गर्व के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं. 
पिंगलि वेंकैया द्वारा डिजाइन किया गया और 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया तिरंगा, स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और जीतों का प्रतीक है और हमारे लोकतंत्र की नींव पर आधारित है. झंडे हमारे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहे हैं, जो समय की परवाह किए बिना गर्व, धर्म और एकता का प्रतीक हैं. इसलिए, तिरंगा हमारे गौरवमयी अतीत और उज्जवल भविष्य को जोड़ने वाला एक पुल है.

स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त बनाना

'हर घर तिरंगा' अभियान ने खादी उद्योग में नई जान फूंक दी है. तिरंगा दिखाने के लिए प्रेरित करने से खादी झंडों की मांग में बढ़ोतरी हुई है, जो छोटे कारीगरों और विक्रेताओं द्वारा बनाए जाते हैं. यह बढ़ावा केवल एक पुरानी उद्योग को पुनर्जीवित करता है बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और छोटे विक्रेताओं की भी मदद करता है, जिससे आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है. जब नागरिक इस अभियान को अपनाते हैं, तो वे सीधे तौर पर खादी की स्थिरता और इसके कारीगरों के कल्याण में योगदान करते हैं, जिससे देशभर में आर्थिक लाभ का एक प्रभाव पैदा होता है.

16 अगस्त 2022 को, ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने रिपोर्ट में बताया कि 'हर घर तिरंगा' आंदोलन ने 30 करोड़ से अधिक राष्ट्रीय झंडों की बिक्री की, जिससे लगभग 500 करोड़ रुपये की आय हुई. इस साल भी "आत्मनिर्भर भारत" और "लोकल के लिए वोकल" के दृष्टिकोण का समर्थन जारी रखें, और मोदी 3.0 के आने की उम्मीदों के साथ, भविष्य के अभियानों में और भी बड़ी सफलता और प्रभाव की आशा है. 'हर घर तिरंगा' पहल ने न केवल राष्ट्रीय गर्व की लहर को जन्म दिया है, बल्कि खादी उद्योग को भी महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया है, जिससे इसके विकास और दृश्यता में वृद्धि हुई है.

सेना का गर्व, राष्ट्रीय एकता और अखंडता

पिछले कुछ वर्षों में, हमने देखा है कि कुछ विशेष समूह और राजनीतिज्ञ भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को खराब करने के लिए काम कर रहे हैं. ये लोग न केवल भारत के मजबूत लोकतांत्रिक संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि देश के भीतर जाति विभाजन को भी बढ़ावा दे रहे हैं. इसके अलावा, उन्होंने अग्निवीर योजना के बारे में गलत जानकारी और झूठ फैलाया है, जिसका उद्देश्य हमारे सशस्त्र बलों को उकसाना है. यह "लोकतंत्र खतरे में है" की कथा हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा है.

सेना के जवानों के लिए, तिरंगा केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि गर्व और प्रेरणा का एक गहरा स्रोत है. 'हर घर तिरंगा' अभियान एकता और देशभक्ति की गहरी भावना को बढ़ावा देता है, और हमारे सैनिकों को यह आश्वस्त करता है कि हर भारतीय उनके साथ खड़ा है. घरों पर तिरंगे को गर्व से देखा जाना उनके समर्पण को मजबूत करता है, यह जानते हुए कि उनके बलिदान को हर नागरिक द्वारा मान्यता और मूल्य दिया गया है. हमारी सशस्त्र बलों ने 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में अडिग संकल्प के साथ लड़ा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि तिरंगा ऊंचा और अशुद्ध न रहे. उनके बलिदान और साहस ने हमारे झंडे को ऊंचा और गर्वित रखने के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाया.

जियो पॉलिटिकल संकट और क्षेत्रीय संघर्षों से भरी दुनिया में, तिरंगा भारत के लिए एकता का प्रतीक है. 'हर घर तिरंगा' अभियान हमारे राष्ट्रीय पहचान की ताकत और एकता की शक्ति को दिखाता है, जो विभाजनों को पार करने में मदद करता है. जब हमारे पड़ोसी अशांति और विघटन का सामना कर रहे हैं, तो यह अभियान तिरंगा की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है, जो विविध और जीवंत राष्ट्र भारत में अपने पन और एकता की भावना को बढ़ावा देता है.

व्यक्तिगत और ऐतिहासिक संबंध

एक झंडा किसी देश की संस्कृति, धरोहर और संप्रभुता का प्रतीक होता है. पिछले दशक में, तिरंगा ने वैश्विक मंच पर चमक बिखेरी है और हमारी संस्कृति और सामूहिकता की ताकत को मजबूत किया है. 'हर घर तिरंगा' पहल हर भारतीय को तिरंगे से व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए प्रेरित करती है, इसे एक औपचारिक प्रतीक से बदलकर रोज़मर्रा की जिंदगी का प्रिय हिस्सा बनाती है. 

हमारी स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को फिर से देखने और महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, और भगत सिंह जैसे नेताओं की विरासत को सम्मानित करने के द्वारा, 'हर घर तिरंगा' पहल अतीत और वर्तमान के बीच का अंतर पाटने की कोशिश करती है. यह युवा पीढ़ी के लिए एक अवसर है कि वे उन मूल्यों और बलिदानों से जुड़ सकें जिन्होंने हमारे देश को आकार दिया, जिससे उनकी हमारे इतिहास पर गर्व और भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता को फिर से जीवित किया जा सके.

नींव से ऊपर तक पहल

'हर घर तिरंगा' अभियान समुदाय की भागीदारी और सरकारी सुविधा का उदाहरण है. झंडा कोड में संशोधन ने तिरंगे को अधिक सुलभ बना दिया है, जिससे हर भारतीय इसे गर्व से प्रदर्शित कर सकता है. सरकार ने पोस्ट ऑफिस, ई-कॉमर्स पोर्टल्स, और स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से झंडों की उपलब्धता सुनिश्चित की है, जिससे हर घर इस देशभक्ति प्रयास में भाग ले सकता है.

देशभक्ति की गूंज

संघर्ष और आंतरिक अशांति से भरी दुनिया में, पीएम मोदी का 'हर घर तिरंगा' पहल एकता और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है. भारत की अपनी आंतरिक चुनौतियों के बीच, यह पहल अब पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. यह न केवल राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है बल्कि हमारी सामूहिक ताकत और सहनशीलता की भी एक शक्तिशाली याददाश्त है.जब विभाजन एकता को छुपाने की धमकी देता है, तब 'हर घर तिरंगा' पहल हर नागरिक के लिए एक स्पष्ट संदेश है, जो देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता के मूल्यों को मजबूत करता है.

तिरंगे के तहत, सभी समान हैं—कोई राजा या किसान नहीं, कोई अमीर या गरीब नहीं. यहाँ, विशेषाधिकार गायब हो जाता है, और केवल कर्तव्य, जिम्मेदारी और बलिदान ही रह जाते हैं. 'हर घर तिरंगा' अभियान हमारी एकता को मनाने, हमारे अतीत को सम्मानित करने और एक उज्जवल भविष्य की दिशा में मिलकर काम करने का एक दिल से आह्वान है.

हर लहराता तिरंगा हमें केवल एक झंडा नहीं दिखाता, बल्कि हमारे साझा सपनों, सहनशीलता और अडिग भावना की झलक दिखाता है. जैसे ही तिरंगा भारत भर के घरों में पहुंचता है, यह हमारी सामूहिक गर्व और एक एकजुट और समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रतिबद्धता का प्रतीक बने. 2014 से, तिरंगा ने एक नया मान हासिल किया है और वैश्विक मंच पर काफी सम्मान प्राप्त किया है. आइए हम इस गर्व और एकता के प्रतीक का सम्मान करें और 'हर घर तिरंगा' पहल को उस सम्मान और गर्व के साथ अपनाएं जो यह योग्य है.


(गेस्ट लेखक- डॉ. नरेश बंसल, राज्यसभा के सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष.)
(गेस्ट लेखक- तुहिन ए. सिन्हा, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और एक लोकप्रिय लेखक.)