एक भारतीय के रूप में यह गर्व का क्षण है कि पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत स्वेच्छा से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
- सुधीर मिश्रा और सिमरन गुप्ता
(सुधीर मिश्रा Trust Legal Advocates & Consultants के फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर हैं. वहीं सिमरन गुप्ता Trust Legal Advocates & Consultants में अधिवक्ता और सहयोगी हैं.)
शर्म अल-शेख, जिसे 'शांति का शहर' कहा जाता है, वह दुनिया के लिए जलवायु न्याय और जलवायु इक्विटी के लिए आशा की किरण वाला शहर बन गया. दुनिया ने जलवायु मुआवजा कोष पर आम सहमति के लिए बहुत लंबा इंतजार किया है और कई गहन वार्ताओं और चर्चाओं के बाद, रविवार को मिस्र में लाल सागर रिसॉर्ट शहर में COP27 (पार्टियों का 27वां सम्मेलन) के परिणामस्वरूप एक हानि और क्षति निधि (L&D) के निर्माण के साथ एक ऐतिहासिक समझौते को सील कर दिया गया.
इस मिशन के लिए पिछले 30 सालों से लगातार प्रयास किया जा रहा था, लेकिन कुछ अमीर और विकसित देशों द्वारा लंबे समय तक इसमें बाधा उत्पन्न की गई, पर आखिरकार तमाम बाधाओं को पार करते हुए मिस्र में इस मिशन को COP27 में सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया.
मिस्र की वार्ताओं में 'पर्यावरण मुआवजा' की जो अवधारणा चर्चा का विषय बनी थी, वह दुनिया भर के कई देशों में पहले से ही एक बहुत ही स्थापित तंत्र है. भारत की ही बात कर लें तो पर्यावरण की रक्षा के लिए 1996 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार 'Polluter Pays Principle' को लागू किया, जिसमें कहा गया कि प्रदूषण के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए प्रदूषक ही पूरी तरह उत्तरदायी होगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा लागू सिद्धांत में कहा गया कि प्रदूषक को न केवल प्रदूषण के शिकार लोगों को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी, बल्कि इससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की बहाली के लिए भी क्षतिपूर्ति करनी होगी. इसके बाद, जलवायु मुआवजे की अवधारणा को वेल्लोर नागरिक कल्याण फोरम बनाम भारत संघ [(1996) 5 एससीसी 647] के फैसले में आगे परिभाषित और पुष्टि की गई कि भारत के पर्यावरण कानून के अंतर्गत प्रदूषक सिद्धांत के अनुसार भुगतान करने के लिए बाध्य है.
जलवायु मुआवजे की इसी अवधारणा के विस्तार के रूप में, पहली बार, वैश्विक स्तर पर एक समर्पित कोष के रूप में हानि और क्षति कोष बनाया जा रहा है, जिससे भविष्य में जलवायु संबंधी नुकसान और नुकसान से निपटने के लिए विकासशील देशों की मदद हो सके.
सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों (CBDR) की अवधारणा के आधार पर, 2015 के पेरिस समझौते में भी एक मौलिक सिद्धांत पर सहमति हुई थी कि अमीर देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने का बड़ा बोझ उठाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने दशकों से अधिक ग्रीन-हाउस गैसों का उत्सर्जन किया है. इसका परिणाम विकासशील या अल्प विकसित देशों को भुगतना पड़ता है.
वास्तव में, रविवार को जलवायु न्याय के लिए मिस्र की घोषणा एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और कई अन्य अमीर देश मूल रूप से विकसित देशों द्वारा उच्च उत्सर्जन के कारण कमजोर देशों को मुआवजा देने के खिलाफ थे.
विकसित देश पर्यावरण के नुकसान के लिए अपनी जिम्मेदारी से दूर भागना चाहते थे, इसलिए COP27 में शामिल विकसित देश उच्च आय वाले देशों और चीन-भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को शामिल करने पर जोर दे रहे थे. साथ ही वे लाभार्थियों में केवल सबसे कमजोर देशों तक ही सीमित करना चाहते थे.
इसी क्रम में विकासशील और विकसित देशों के बीच भेदभाव भी देखने को मिला. संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ चीन को इस तरह के किसी भी कोष में बड़े योगदानकर्ता बनने पर जोर दे रहे थे. उनका मानना है कि चीन दुनिया में सबसे बड़े मौजूदा उत्सर्जक और ग्रीन-हाउस गैस का दूसरे सबसे बड़ा उत्सर्जक है.
23 सदस्यों वाली एक समिति (विकसित देशों से 10 और विकासशील देशों से 13) अब इसके तौर-तरीकों पर फैसला करेगी और फंड और उसका भुगतान कैसे किया जाएगा, उसके सोर्स क्या रहेंगे, इस बारे में सवालों का जवाब देगी, जिसे नवंबर, 2023 में UAE में होने वाले COP28 में आगे माना जाएगा.
इसके अलावा, भारत के व्यावहारिक सुझावों द्वारा निर्देशित, COP27 ने सभी जीवाश्म ईंधनों को परिवर्तित करने पर भी सहमति व्यक्त की, न कि सिर्फ कोयले की. COP26 में इस सुझाव की कमी थी. इसे अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित लगभग 80 देशों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन कुछ विकसित देशों के तेल और गैस को शामिल करने के विरोध का भी सामना करना पड़ा. हालांकि यह समझौता विफल हो गया और इसमें सभी जीवाश्म ईंधन पर एक एक राय नहीं बन पाई, जैसा कि भारत और कई अन्य देशों द्वारा इसे प्रस्तावित किया गया था.
COP27 का टैगलाइन - कार्यान्वयन के लिए एक साथ (Together for implementation) शुरू में इस बात पर ध्यान केंद्रित करना था कि प्रतिबद्धताएं वास्तविकता में कैसे परिवर्तित होंगी. कई लोग COP27 पर विचार कर रहे हैं और इसे भारत के दृष्टिकोण से 'एक चूका हुआ अवसर' कह रहे हैं. आपको बता दें कि इस जीत में COP27 का स्थायी जीवन शैली मिशन का समर्थन और ऊर्जा संक्रमण के संबंध में एक खंड शामिल है, जो विशेष जीवाश्म ईंधन को अलग नहीं करता है.
एक भारतीय के रूप में यह गर्व का क्षण है कि पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत स्वेच्छा से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, सभी जीवाश्म ईंधन का त्याग कर रहा है, गैर-पारंपरिक ऊर्जा को नहीं अपना रहा है और मिस्र में इस बात पर जोर दे रहा है कि हमारे ग्रह के पास अब और धैर्य नहीं है.
Disclaimer: ऊपर दिए गए लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के हैं और जरूरी नहीं कि वे इस पब्लिशिंग हाउस के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हों. लेखक ने यह लेख अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार लिखा है. उनका बिल्कुल ऐसा इरादा नहीं है कि वे किसी एजेंसी या संस्था के आधिकारिक विचारों, दृष्टिकोणों या नीतियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों.
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और जनरेटिव AI (GenAI) व्यवसायों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं.
लेखक-नीलेश कृपलानी
जैसे-जैसे हम 2025 के करीब पहुंच रहे हैं, तकनीकी परिदृश्य में उन बदलावों के लिए जगह बन रही है, जो उद्योगों को फिर से परिभाषित करेंगे और हमारे जीने और काम करने के तरीके को नया रूप देंगे. क्लोवर इंफोटेक के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर व लेखक नीलेश कृपलानी ने कुछ प्रमुख ट्रेंड्स बताए हैं, जिन्हें हमें इनोवेशन के इस नए युग में प्रवेश करते हुए देखना चाहिए:
1. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और जनरेटिव AI (GenAI)
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और जनरेटिव AI (GenAI) व्यवसायों के संचालन में और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. 2025 तक, संगठन AI का उपयोग न केवल भविष्यवाणी विश्लेषण और स्वचालन के लिए करेंगे, बल्कि कंटेंट क्रिएशन और डिजाइन के लिए भी इसका उपयोग करेंगे. कंपनियां जैसे OpenAI और Google पहले ही GenAI के क्षेत्र में सीमाओं को आगे बढ़ा रही हैं, ऐसे टूल्स के साथ जो मानवीय जैसी टेक्स्ट, चित्र, और यहां तक कि कोड भी उत्पन्न कर सकते हैं. रीटेल क्षेत्र में, Sephora AI-आधारित व्यक्तिगत सिफारिशों का उपयोग करके ऑनलाइन खरीदारों के लिए उपयुक्त उत्पादों का चयन करती है, जबकि Adobe जनरेटिव AI का उपयोग करके डिजाइनरों को आसानी से चित्र और लेआउट बनाने की सुविधा प्रदान कर रहा है. 2025 में, जिम्मेदार और ट्रांस्पेरेंट AI पर अधिक ध्यान दिया जाएगा, जिससे उपयोगकर्ताओं में विश्वास और एथिकल मानकों का पालन सुनिश्चित किया जा सके.
2. क्वांटम कंप्यूटिंग का उभार
क्वांटम कंप्यूटिंग अब भविष्यवाणी करने वाली अवधारणा नहीं रह गई है; यह उन उद्योगों के लिए गेम-चेंजर बनने के कगार पर है जो जटिल समस्या समाधान पर निर्भर हैं. 2025 तक, कंपनियां जैसे IBM और Google क्वांटम प्रोसेसिंग क्षमताओं को आगे बढ़ाने की उम्मीद कर रही हैं, जो वित्त और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेंगी. Daimler AG क्वांटम कंप्यूटिंग का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों के बैटरी सामग्री को अनुकूलित करने के लिए कर रहा है, जबकि JP Morgan वित्तीय बाजारों में जोखिम आकलन के लिए क्वांटम एल्गोरिदम का परीक्षण कर रहा है. ये क्वांटम इनोवेशन दवाओं की खोज और लॉजिस्टिक ऑप्टिमाइजेशन जैसे क्षेत्रों में नए अवसर लाने का वादा कर रहे हैं, जो पहले अपनाने वालों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करेंगे.
4. विकेंद्रीकरण और Web3 का विस्तार
विकेंद्रीकरण की दिशा में बदलाव तेजी से बढ़ेगा, जो Web3 प्रौद्योगिकियों के उदय द्वारा प्रेरित होगा. 2025 तक, विकेंद्रीकृत अनुप्रयोगों (dApps) की एक लहर आएगी जो उपयोगकर्ता गोपनीयता और डेटा स्वामित्व को प्राथमिकता देंगे. कंपनियां जैसे Uniswap और OpenSea पहले ही Web3 की संभावनाओं को प्रदर्शित कर रही हैं, जिसमें विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) और NFT मार्केटप्लेस शामिल हैं. Twitter भी अपने प्रोजेक्ट "Bluesky" के माध्यम से विकेंद्रीकृत सोशल मीडिया मॉडल का अन्वेषण कर रहा है, जिसका उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा और ऑनलाइन उपस्थिति पर अधिक नियंत्रण देना है. ब्लॉकचेन-आधारित समाधान उद्योगों को फिर से आकार देंगे, चाहे वह वित्त हो या आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, क्योंकि पारदर्शी और सुरक्षित प्रणालियों की मांग बढ़ रही है.
4. मेटावर्स का विकास
मेटावर्स, एक आभासी दुनिया है, जहां लोग इंटरएक्ट कर सकते हैं, काम कर सकते हैं और खेल सकते हैं, इनमें 2025 तक महत्वपूर्ण विकास नजर आएगा. कंपनियां जैसे Meta (पूर्व में Facebook) और Epic Games इस दिशा में अग्रणी हैं, जो आभासी वातावरण पर काम कर रहे हैं, जहां उपयोगकर्ता वर्क मीटिंग्स, सामाजिक इंटरएक्शन और मनोरंजन में संलग्न हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, Nike ने पहले ही मेटावर्स में एक आभासी स्टोर लॉन्च किया है, जो उपयोगकर्ताओं को खरीदारी करने और ब्रैंड को डिजिटल रूप में अनुभव करने की सुविधा प्रदान करता है. इस बीच, Microsoft Mesh 3D जैसे प्लेटफॉर्म आभासी स्थान में सहयोगात्मक बैठकों की सुविधा प्रदान कर रहे हैं, जिससे भौतिक और डिजिटल अनुभवों के बीच की रेखा धुंधली हो रही है. जैसे-जैसे मेटावर्स अधिक सुलभ होता जाएगा, यह परिभाषित करेगा कि लोग और व्यवसाय डिजिटल स्पेस में कैसे इंटरएक्ट करते हैं.
5. ग्रीन टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबल डेवलपमेंट की पहल
जैसे जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बन गया है, टेक इंडस्ट्री सस्टेनेबिलिटी को पहले से कहीं अधिक प्राथमिकता देगी. 2025 तक, रिन्यूएबल एनर्जी, एनर्जी एफीशिएंट टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबल मैटेरियल्स में इनोवेशन सामान्य हो जाएगा. Tesla और Siemens जैसी कंपनियां हरित ऊर्जा समाधानों में भारी निवेश कर रही हैं, Tesla जहां सौर ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, वहीं Siemens ऊर्जा-कुशल बुनियादी ढांचे पर काम कर रहा है. मैन्यूफैक्चरिंग में Apple ने 2030 तक सभी प्रोडक्ट्स में 100 प्रतिशत रिसाइकल्ड मैटेरियल का उपयोग करने का संकल्प लिया है, जो टेक कंपनियों के लिए पर्यावरणीय दृष्टिकोण अपनाने का उदाहरण प्रस्तुत करता है. General Electric के ऊर्जा प्रबंधन प्रणालियों में IoT-आधारित स्मार्ट ग्रिड टेक्नोलॉजी देखने को मिल रही है, जोकि व्यवसायों को संसाधन उपयोग की निगरानी और अनुकूलन करने में मदद करेगी, जिससे सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा.
निष्कर्ष
2025 को आकार देने वाली ये तकनीकी प्रवृत्तियाँ विभिन्न उद्योगों में नवाचार और विकास के लिए अत्यधिक अवसर प्रदान करती हैं। जैसे-जैसे व्यवसाय इन परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाते हैं, सूचित और लचीला बने रहना महत्वपूर्ण होगा। इन प्रवृत्तियों को अपनाना न केवल संगठनों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि यह एक अधिक कनेक्टिड, सस्टेनेबल और सुरक्षित भविष्य में योगदान करेगा.
रिपोर्ट कहती है कि जियोपॉलिटिकल टेंशन, उच्च ब्याज दरें और फूड इन्फ्लेशन वैश्विक आर्थिक वृद्धि के लिए संभावित जोखिम हैं.
Pantomath Group ने अपनी तिमाही रिपोर्ट "मार्केट कैलिडोस्कोप: क्वार्टरली मार्केट इनसाइट्स" (Market Kaleidoscope: Quarterly Market Insights) जारी की है, जिसमें मौजूदा बाजार रुझान, विभिन्न सेक्टर्स का प्रदर्शन और आर्थिक पूर्वानुमान शामिल हैं. इस रिपोर्ट में भारतीय और वैश्विक बाजारों का अवलोकन और भारतीय आईपीओ बाजार के बारे में भी जानकारी दी गई है.
भारत का आर्थिक भविष्य मजबूत
वित्तीय वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि के बाद, पैंटोमैथ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का आर्थिक भविष्य मजबूत है. वित्तीय वर्ष 2025 के लिए 7.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जो मुख्य रूप से मजबूत उपभोग (खपत) और निवेश से प्रेरित है, राजकोषीय घाटा GDP का 5.6 प्रतिशत रहा. 2024 के लोकसभा चुनाव के अंतिम परिणामों के बाद जून की शुरुआत में भारतीय बाजार अस्थिर रहा, लेकिन बाद में स्थिर होकर वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में और बढ़ गया. यह बढ़त Q1FY25 की मजबूत कमाई, आर्थिक आंकड़े और सकारात्मक वैश्विक संकेतों के कारण आई.
विकास के लिए सकारात्मक है माहौल
भाजपा ने 2014 और 2019 के मुकाबले कम सीटें जीतने के बावजूद सहयोगी दलों के समर्थन से 272 सीटें हासिल कीं, जिससे NDA की कुल सीटें 292 हो गईं. इसे लॉन्ग टर्म आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक माना जा रहा है, और नीतियों व सुधारों के प्रति आशावाद बना हुआ है, जिससे भारतीय शेयरों के लिए मध्यम से लंबी अवधि का सकारात्मक दृष्टिकोण है. रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया है, "हमने जुलाई में देशभर में अच्छे मानसून का विकास देखा है और IMD ने अगस्त और सितंबर में भी सामान्य से अधिक वर्षा का फिर से संकेत दिया है. यह कुल मिलाकर आर्थिक विकास और ग्रामीण विकास के पुनरुद्धार के लिए सकारात्मक है."
RBI ने 7.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान बरकरार रखा
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए RBI ने 7.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान बरकरार रखा है, जो आर्थिक मंदी के संकेतों के बावजूद आशावादी है. कुल मिलाकर, RBI एक जटिल आर्थिक माहौल को संभालने की कोशिश कर रहा है, जहां उसे विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए रखना है.
वित्तीय वर्ष 2024-25 का केंद्रीय बजट आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए वित्तीय और राजकोषीय रूप से संतुलित माना जा रहा है. ACMIIL के रिटेल रिसर्च प्रमुख देवांग शाह ने कहा कि हालिया अपडेट के अनुसार, अब तक का त्योहार सीजन सभी श्रेणियों में अच्छा रहा है, चाहे वह कंज्यूमर ड्यूरेबल्स हों या ऑटोमोबाइल, ग्राहकों का रुझान प्रीमियम उत्पादों की ओर बढ़ा है. आगे शादी का सीजन और क्रिसमस इस रफ्तार को बनाए रखने में मदद करेंगे.
वैश्विक परिदृश्य (Global Outlook)
वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ी, जो प्रारंभिक अनुमान 2.8 प्रतिशत और पहली तिमाही के 1.4 प्रतिशत से अधिक है, यह सुधार मुख्य रूप से उपभोक्ता खर्च में वृद्धि के कारण हुआ है. सितंबर 2024 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने 2,54,000 नई नौकरियां जोड़ीं, जो अगस्त में संशोधित 1,59,000 और अनुमानित 1,40,000 से काफी अधिक है. यह छह महीनों में सबसे मजबूत वृद्धि है. इन मजबूत आंकड़ों ने फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल के "अच्छी स्थिति" वाले बयान की पुष्टि की, जिससे संकेत मिला कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में जल्दी कटौती नहीं करेगा और नवंबर में बड़ी कटौती की उम्मीदें कम हो गई हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि वे फिर से चुनाव नहीं लड़ेंगे और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिया. हालांकि, विश्लेषकों ने बताया कि बाइडेन का यह फैसला बाजार में पहले से अपेक्षित था. अभी तक डोनाल्ड ट्रम्प नवंबर में जीतने के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति पद की बहस में कमला हैरिस की जीत की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
चीन ने दूसरी तिमाही में 4.7 प्रतिशत GDP वृद्धि दर्ज की, जो 5.1 प्रतिशत के अनुमान से कम है और पहली तिमाही के 5.3 प्रतिशत से भी धीमी है. संपत्ति क्षेत्र में गिरावट और नौकरी की असुरक्षा के कारण चीन की अर्थव्यवस्था की गति धीमी रही, जिससे अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने के लिए और अधिक प्रोत्साहन देने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. गौरतलब है कि चीन ने महामारी के बाद सबसे बड़े आर्थिक प्रोत्साहन उपायों का ऐलान किया है ताकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में वृद्धि को फिर से शुरू किया जा सके.
मोसेस मनोहरन के अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) की अध्यक्षता के प्रारंभ में जो निराशा और गंभीर आशंका देखी जा रही है, वह अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शुरुआत में शायद ही कभी देखने को मिली है.
पिछले सप्ताह डेमोक्रेटिक प्रत्याशी कमला हैरिस को हराकर डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ऐतिहासिक जीत और उनकी रिपब्लिकन पार्टी का कांग्रेस के दोनों सदनों पर नियंत्रण हासिल करने वाली ट्रम्प की नीतियों ने वैश्विक चिंता को और बढ़ा दिया है. कांग्रेस पर उनकी पूर्ण प्रभुत्वता, उनकी पहले की तरह एक मजबूत और उग्र राष्ट्रपति पद की शुरुआत को और भी अधिक समस्याग्रस्त बना सकती है. इस परिप्रेक्ष्य में एक ऐसा प्रशासन आ रहा है, जिसमें महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन पर संदेह करने वालों से लेकर जलवायु परिवर्तन को नकारने वालों तक, कई विभाजनकारी विचारधारा वाले वरिष्ठ व्यक्ति होंगे. हालांकि, सैन्य संघर्ष के क्षेत्र में ट्रम्प का एक सकारात्मक रिकॉर्ड है, क्योंकि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में कोई युद्ध शुरू नहीं किया, जबकि उनके कई पूर्ववर्ती ऐसा कर चुके थे.
सैन्य संघर्ष के क्षेत्र में ट्रम्प का एक सकारात्मक रिकॉर्ड
वह लंबे समय से चल रहे युद्धों को समाप्त करने के लिए उपयुक्त प्रतीत होते हैं, जैसे कि रूस का यूक्रेन के साथ संघर्ष; यह एक व्यापक धारणा पर आधारित उम्मीद है कि ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वभाव और केमिस्ट्री ऐसी है कि वे रचनात्मक संवाद में संलग्न हो सकते हैं. दरअसल, ट्रम्प ही थे जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की जल्दी वापसी का रास्ता प्रशस्त किया था, हालांकि पूरी सैनिक वापसी उनके उत्तराधिकारी जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने पर पूरी हुई थी. महत्वपूर्ण बात यह है कि वह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप के साथ बने संवेदनशील ट्रांसअटलांटिक रिश्तों में कोई खास रुचि नहीं दिखाते. यूरोप को सुरक्षा प्रदान करने और नाटो को मजबूत करने में उनकी यह उपेक्षा, शुल्क और व्यापारिक अवरोधों की नीति के साथ ही यूरोपीय संघ को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के अपने रुख को नरम करने के लिए मजबूर कर सकती है. ट्रंप के बजाय, वे प्रशांत और भारतीय महासागर के विशाल और समृद्ध बाजारों की ओर अमेरिका के ध्रुवीकरण की प्राथमिकता दे सकते हैं. ट्रम्प प्रशासन द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर और अधिक जोर देने से भारत के साथ रिश्तों में मौजूदा उथल-पुथल को हल करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि यह क्षेत्र हाल के दशकों में तेजी से विकसित हो रहा है और भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी बन चुका है. हाल के समय में वाशिंगटन ने भारत को अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति का अहम घटक माना है और चीन के सैन्य और आर्थिक प्रभुत्व को रोकने के लिए क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका) की अगुवाई कर रहा है.
रूस निश्चित रूप से चीन का मजबूत सहयोगी
रूसी हथियारों की खरीद, अमेरिकी प्रतिबंधों की अवहेलना करते हुए रूस का तेल आयात और एक अमेरिकी नागरिक को हत्या के प्रयास में भारतीय अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप, पिछले 25 वर्षों में भारत के सोवियत संघ और उसके उत्तराधिकारी रूस से अमेरिका के प्रति झुकाव की दिशा में हलचल पैदा कर चुका है. रूस के साथ रिश्तों को आंशिक रूप से फिर से स्थापित करने और चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर तनाव कम होने के पहले संकेतों को ट्रम्प के बिना समझौते वाली राष्ट्रपति पद की स्थिति में जटिलता हो सकती है. यह भारत को एक कठिन स्थिति में डाल सकता है, खासकर जब वह रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करते हुए रूस से तेल खरीदता है. रूस, निश्चित रूप से, चीन का मजबूत सहयोगी है.
चीन के खिलाफ एक गठबंधन, मध्य पूर्व में तनाव को कर सकता है कम
भारत अपने रणनीतिक स्वायत्तता को कैसे संतुलित करेगा और चीन के साथ व्यापार बढ़ाने की व्यावहारिक नीति पर कैसे आगे बढ़ेगा, यह ट्रम्प के शासनकाल में एक कठिन कार्य बन सकता है. हालांकि, सभी बातों के बीच घरेलू आर्थिक नीतियों के बारे में वैश्विक चिंता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. अगर यूक्रेन युद्ध का समाधान हो जाता है, तो अमेरिका और रूस के बीच संबंधों को संतुलित करना भारत के लिए अधिक आसान होगा, बजाय इसके कि भारत को व्यापार और निवेश के मामले में अमेरिका और चीन के बीच चयन करना पड़े, जो भारत के लिए अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाने और अवसंरचना निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है. चीन के खिलाफ एक गठबंधन को प्राथमिकता देना, मध्य पूर्व में तनाव को कम कर सकता है, जिसमें ट्रम्प अपनी ताकतवर प्रकृति और बातचीत के कौशल का उपयोग कर इजराइल के बेंजामिन नेतन्याहू को गाजा से लेकर दक्षिणी लेबनान तक हमास और हिज़बुल्लाह विद्रोहियों का पीछा करने में नियंत्रित रख सकते हैं.
ASEAN (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन) में बढ़ सकता है तनाव
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, जोकि ट्रम्प का चुना हुआ क्षेत्र है, उन्हें उम्मीद की जाती है कि वे चीन के किसी भी प्रयास को विफल करने के लिए अमेरिका से अधिक सुरक्षा प्रदान करेंगे, ताकि वह क्षेत्र को मुख्यभूमि से जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश करें. इससे ASEAN (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन) में तनाव बढ़ सकता है और भारत भी इसमें शामिल हो सकता है. ट्रम्प का ध्यान शायद इंडो-पैसिफिक रणनीतिक ढांचे पर और अधिक केंद्रित होगा — एक संगठित प्रयास चीन के उभार को नियंत्रित करने का, जो उनके प्रशासन की सीमित विदेश नीति को परिभाषित कर सकता है. यह आर्थिक नीतियों में संरक्षणवाद की प्रवृत्ति के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है. उनका "Make America Great Again" (MAGA) अभियान अमेरिका को वैश्वीकरण के युग को समाप्त करने और व्यापार के लिए एक संरक्षणवादी दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में ले जाता है. कोविड से पहले के दशकों में, व्यापार नेताओं ने माना था कि दुनिया बिना सीमाओं के, मुक्त व्यापार की ओर बढ़ रही है, जो सस्ते श्रम और पैमाने के फायदे का लाभ उठाती है. यह चीन को वैश्वीकरण के अंतिम प्रमुख रक्षक के रूप में कोने में डाल सकता है. ट्रम्प का द्रुत जनसंख्या प्रवासन को सीमित करने का वादा IT क्षेत्र में भारत जैसे देशों पर काफी असर डालेगा. वह अपने पहले कार्यकाल में आयातित वस्तुओं पर 10 प्रतिशत शुल्क और चीन पर उच्च शुल्क के रूप में व्यापार नीति को तीव्र करेंगे. यह दुनिया भर के व्यापारिक साझेदारों से प्रतिशोधी शुल्क का कारण बनेगा.
ट्रम्र इन वस्तुओं पर बढ़ा सकते हैं एक्सपोर्ट शुल्क
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भारत को अमेरिकी बाजार में कई निर्यातों पर शुल्क वृद्धि का सामना करना पड़ा था. ट्रम्प भारतीय निर्यातों पर, जैसे वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं पर शुल्क बढ़ा सकते हैं. अमेरिकी बाजार पर निर्भर भारतीय कंपनियां जैसे TCS, Infosys, और Wipro, जो मुख्य रूप से आउटसोर्सिंग पर निर्भर हैं, इन पर प्रतिबंधों या उच्च शुल्क से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती हैं. वहीं, ट्रम्प कर में कटौती या अन्य प्रोत्साहनों की शुरुआत कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में किया था, जिससे अमेरिका के साथ भारतीय व्यापार बढ़ सकता है. ट्रम्प के पहले प्रशासन में भारत ने Generalized System of Preferences (GSP) का दर्जा खो दिया था, जो कुछ क्षेत्रों में वस्त्रों और अन्य सामानों को शुल्क मुक्त निर्यात करने की अनुमति देता था. इसका असर फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और इंजीनियरिंग सामानों जैसे क्षेत्रों पर पड़ा है.
इन नीतियों से भारत में बढ़ सकती है महंगाई
अगर ट्रम्प प्रशासन H-1B जैसे कार्य वीजा पर प्रतिबंध लगाता है, तो भारतीय IT और सेवा क्षेत्र पर प्रभाव पड़ेगा. H-1B वीजा पर प्रतिबंध भारतीय IT कंपनियों को अमेरिका में काम करने में गंभीर समस्याएं उत्पन्न करेंगे. ट्रम्प की ब्याज दर और मौद्रिक नीति पर गहरी नजर रहेगी, क्योंकि दरों में वृद्धि से डॉलर की मजबूती आएगी, जिससे भारत से पूंजी का बहाव बढ़ेगा, क्योंकि निवेशक अमेरिका में उच्च रिटर्न की तलाश करेंगे, जबकि भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले घटेगा, जो निर्यातकों के लिए फायदेमंद होगा, लेकिन तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात की लागत बढ़ेगी, जिससे भारत में महंगाई बढ़ेगी. एक मजबूत डॉलर डॉलर-नामांकित कर्ज की सेवा की लागत भी बढ़ा देगा. यह भारतीय शेयरों और बॉन्डों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा. हालांकि, ट्रम्प के शासनकाल के संभावित नकारात्मक परिणामों में उनके विचित्र व्यक्तित्व और मुद्दों के प्रति उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जो जटिल दृष्टिकोण की आवश्यकता वाले मामलों में बदलाव कर सकते हैं.
लोकलुभावन नीतियों से तात्कालिक मुनाफा
इसके अलावा, ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की ढोंग और धमकियों के पीछे एक चालाक व्यवसायी के रूप में उनका असली स्वभाव सामने आ सकता है, जो पारंपरिक कूटनीतिक दृष्टिकोण को नकारते हुए तत्काल लाभ की तलाश में होता है. यही उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है — एक शातिर व्यवसायी जो लोकलुभावन नीतियों से तात्कालिक मुनाफा तलाशता है — और यही ट्रम्प के शासनकाल के गहरे तनावों का कारण है. दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क के साथ मिलकर ट्रम्प प्रशासन को दुनिया के साथ संवाद करने और ‘स्वतंत्र दुनिया के नेता’ के रूप में अपनी स्व-घोषित स्थिति को बनाए रखने के लिए एक अधिक कल्पनाशील, नवोन्मेषी दीर्घकालिक दृष्टिकोण मिल सकता है. इस प्रकार, मस्क ट्रम्प राष्ट्रपति पद के लिए एक गंभीर, विचारशील संतुलन प्रदान कर सकते हैं. लेकिन, जैसा कि हर ट्रम्प प्रशासन की विश्लेषणात्मक समीक्षा में होता है, इसके विपरीत और समान रूप से ठोस तर्क भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं.
मोसेस मनोहरन (Moses Manoharan), लेखक
लेखकों का कहना है कि इन सुधारों पर आधारित एक राष्ट्रीय बिजली बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल होगा और यह निवेशकों को आकर्षित करेगा.
हाल ही में अमेरिका दौरे पर, प्रधानमंत्री ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन (नेट-ज़ीरो) का लक्ष्य पाने की दिशा में भारत की ऊर्जा परिवर्तन की सराहना की. इस परिवर्तन में पावर सेक्टर का बड़ा योगदान है, जिसमें 25 साल पहले शुरू किए गए सुधारों और पिछले एक दशक में किए गए मजबूत कदमों ने पावर सेक्टर को तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद की है. भविष्य के पावर सेक्टर सुधारों का लक्ष्य दो मुख्य पर्यावरण और स्थिरता से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करना है, जो 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के राष्ट्रीय लक्ष्य से जुड़े हैं. ये दो लक्ष्य हैं: 2070 तक जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) से चलने वाले पावर को पूरी तरह खत्म करना और इस अवधि के दौरान ऊर्जा की कार्बन तीव्रता में धीरे-धीरे हर साल कमी लाना.
इसके लिए सरकार को इन स्थिरता लक्ष्यों के साथ-साथ तेज़ी से आर्थिक विकास और रोजगार सृजन की जरूरतों को संतुलित करना होगा, जो भारत की समृद्धि के लिए आवश्यक हैं. इसलिए, अगले चरण के पावर सेक्टर सुधारों की रणनीति में स्थिरता और आर्थिक समृद्धि के बीच समझौता करते हुए, दोनों को बेहतर तरीके से संतुलित करने पर जोर दिया जाएगा.
अब तक का सफर
आजादी के बाद, 1948 के भारतीय बिजली अधिनियम ने देश के पावर सेक्टर के विकास की नींव रखी, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और औद्योगिक विकास के लिए जरूरी था. पावर सेक्टर का विकास राज्य द्वारा संचालित और नियंत्रित बिजली बोर्डों (SEBs) के जरिये हुआ. इससे राज्य द्वारा बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन, और वितरण में एकाधिकार (मोनोपोली) बन गया. इसके बाद केंद्रीय पावर यूटिलिटीज जैसे NTPC (1975), NHPC (1975), और पावरग्रिड कॉर्पोरेशन (1989) स्थापित की गईं, ताकि राज्यों के बीच बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन से जुड़े मुद्दों को हल किया जा सके.
40 साल तक इस मॉडल पर काम करने के बाद, इसकी खामियां सामने आईं, खासकर देश की बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने में. बिजली की गुणवत्ता और कीमत की समस्याएं भी बढ़ने लगीं. इन तीनों समस्याओं (बिजली की मात्रा, गुणवत्ता, और कीमत) की जड़ SEBs की अक्षमता थी, जिसका कारण कर्मचारियों और प्रबंधकों के लिए प्रोत्साहन की कमी और बिजली के बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी थी.
1993-94 और 1998 में ओडिशा, 1997-98 में हरियाणा और 1997-98 में आंध्र प्रदेश ने पावर सेक्टर सुधारों की दिशा में सबसे पहले कदम उठाए. इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य SEBs के तीन कार्यों: उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण को अलग-अलग स्वतंत्र कंपनियों में बांटना था. स्वतंत्रता के बाद पावर सेक्टर में सबसे बड़ा सुधार 2003 में बिजली अधिनियम (Electricity Act) के पारित होने के साथ शुरू हुआ. इस अधिनियम ने बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन, वितरण और व्यापार के कानूनों को एकीकृत किया. इसका मुख्य उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना, सभी क्षेत्रों में बिजली पहुंचाना, बिजली दरों को व्यवस्थित करना, सब्सिडी के संबंध में पारदर्शी नीतियां सुनिश्चित करना, और प्रभावी व पर्यावरण-अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देना था. पहली बार, इस क्षेत्र में निष्पक्षता लाने के लिए एक स्वतंत्र नियामक प्रणाली का प्रावधान किया गया, जो उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों के दृष्टिकोण से संतुलन बनाए.
तब से बहुत कुछ बदल चुका है, राज्य बिजली बोर्ड (SEBs) को अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया है, हर राज्य में और ऊपरी स्तर पर नियामक नियम बने हुए हैं, और अब निजी क्षेत्र की पावर जनरेशन क्षमता 51 प्रतिशत हो गई है. सबसे खास बात यह है कि जून 2024 में बनाई गई कुल बिजली में से 15 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय ऊर्जा से आई थी. इस तरह, सुधारों के पहले चरण को पूरा कर लेने के बाद, भारत अब अपनी बढ़ती ऊर्जा मांग और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को संतुलित करने के रास्ते पर है. इसलिए, जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ऊर्जा में बदलाव जरूरी है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का शामिल होना, साथ ही परमाणु ऊर्जा और जैव ईंधन (बायोफ्यूल) की हिस्सेदारी बढ़ाना होगा. बेशक, इन तीनों ऊर्जा स्रोतों के साथ कुछ चुनौतियां भी आती हैं जैसे बिजली की अनियमितता, कचरा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव.
पारंपरिक थर्मल पावर और जलवायु परिवर्तन
भारत, दुनिया के पाँचवे सबसे बड़े कोयला भंडार (9.5% वैश्विक भंडार) पर निर्भर रहा है और आजादी के बाद से ही अपनी बिजली जरूरतों के लिए थर्मल ऊर्जा (कोयला/लिग्नाइट) पर भरोसा करता आया है. जून 2024 तक, भारत में थर्मल ऊर्जा की स्थापित क्षमता 243 GW है, जो कुल 446 GW क्षमता का लगभग 54% है (इसमें से 49% कोयले से है). हालांकि, हाल के वर्षों में कोयले पर आधारित क्षमता वृद्धि धीमी हो गई है क्योंकि सरकार नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर दे रही है.
भले ही अब नए थर्मल पावर प्लांट न बनें, थर्मल ऊर्जा अगले दो दशकों तक देश की बुनियादी बिजली जरूरतों को पूरा करेगी. लेकिन ऊर्जा में नवीकरणीय स्रोतों की बढ़ती भागीदारी के कारण, थर्मल पावर प्लांट्स (TPPs) को अब ज्यादा लचीलेपन के साथ काम करना होगा. इससे उपकरणों पर दबाव बढ़ेगा, ऑपरेशन और रखरखाव (O&M) की लागत बढ़ेगी, और TPPs की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ेगा. साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा के अस्थिर उत्पादन को संतुलित करने के लिए, TPPs को विशेषकर मांग के चरम समय में लचीला बनाने के लिए नई तकनीकों से लैस करना होगा.
2031-32 तक, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण का अनुमान है कि भारत को 80 GW अतिरिक्त बेसलोड पावर की आवश्यकता होगी, जबकि अभी सिर्फ 27 GW निर्माणाधीन है. भारत की ऊर्जा जरूरतों, ऊर्जा मिश्रण और आयातित परमाणु ईंधन पर निर्भरता को देखते हुए, हमें अब ऐसी योजना बनानी होगी जिससे हम धीरे-धीरे थर्मल पावर प्लांट्स को बंद कर सकें और तकनीक की मदद से नवीकरणीय ऊर्जा और बड़े ऊर्जा भंडारण का उपयोग कर सकें.
इस स्थिति में हम एक महत्वपूर्ण सुधार का सुझाव देते हैं. पहले सुधार चरण में मुख्य ध्यान क्षमता बढ़ाने पर था. अगले चरण में तकनीकी और वित्तीय कुशलता पर ध्यान देना चाहिए. तकनीकी रूप से, TPPs को नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती भूमिका को समझते हुए लचीला बनना होगा. इसका मतलब है कि उन्हें अपनी मशीनों में उन्नति और आधुनिक नियंत्रण प्रणालियां लगानी होंगी, जिससे कैपेक्स (पूंजीगत खर्च) और O&M खर्च बढ़ेंगे. इसके अलावा, उन्हें स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना होगा, जैसे कि SOx और NOx में कमी और कार्बन कैप्चर.
आगे बढ़ते हुए, हमें केवल अत्यधिक कुशल अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल थर्मल यूनिट्स ही स्थापित करनी चाहिए. ये बदलाव थर्मल पावर उत्पादन की लागत बढ़ाएंगे, जिससे बिजली शुल्क में वृद्धि हो सकती है. इसलिए, सभी मौजूदा TPPs को दक्षता बढ़ाने और लागत कम करने का लक्ष्य रखना चाहिए, जिसमें हीट रेट, सहायक ऊर्जा खपत, तेल खपत, और कोयले का समय पर प्रबंधन शामिल है.
इसके बाद एक नया राष्ट्रीय मेरिट ऑर्डर डिस्पैच सिस्टम होना चाहिए, जो सभी थर्मल प्लांट्स को शामिल करता हो. इसमें डेटा-आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया होगी, जिसमें राष्ट्रीय पावर एक्सचेंज और ग्रिड आर्थिक, तकनीकी और पर्यावरणीय नियमों के आधार पर डिस्पैच का अनुकूलन करेंगे. इसे नवीकरणीय ऊर्जा, दिन के समय (सोलर) की पीक उपलब्धता, और नवीकरणीय ऊर्जा की कम लागत को भी ध्यान में रखना होगा. फिलहाल, भारत में बिजली का विकेंद्रीकृत मॉडल है, जिसमें अलग-अलग क्षेत्रीय ग्रिड जुड़े हुए हैं. बढ़ती हुई नवीकरणीय ऊर्जा और इसकी जटिलता को देखते हुए, हमें शेड्यूलिंग और डिस्पैच को एकीकृत करना होगा ताकि आर्थिक कुशलता लाई जा सके.
सारांश में, पहला सुधार एक नए राष्ट्रीय मेरिट ऑर्डर के माध्यम से थर्मल पावर डिस्पैच का अनुकूलन करना है, ताकि सबसे सस्ते जनरेटर पहले चुने जाएं और महंगे जनरेटर बाद में. इसके साथ ही एक ऑनलाइन स्पॉट एक्सचेंज और एकीकृत राष्ट्रीय लोड डिस्पैच सिस्टम होना चाहिए. यह सभी स्रोतों (थर्मल, परमाणु, या नवीकरणीय) से ऊर्जा के लिए एक राष्ट्रीय बाजार बनाने की दिशा में पहला कदम है.
इस सुधार के फायदे यह हैं कि इससे सभी ऊर्जा स्रोतों का व्यवस्थित क्रम बन जाएगा. इससे सबसे कम कुशल थर्मल प्लांट्स को पहले बंद करने में मदद मिलेगी. साथ ही, नए प्लांट्स चाहे थर्मल, परमाणु या नवीकरणीय हों, उनकी कुशलता के आधार पर प्राथमिकता दी जा सकेगी.
रिन्यूएबल एनर्जी और ऊर्जा भंडारण की चुनौतियां
भारत की ऊर्जा बदलाव रणनीति सही दिशा में जाती दिख रही है. 197 GW की नवीकरणीय ऊर्जा (RE) स्थापित क्षमता और 443 GW की कुल स्थापित क्षमता के साथ, हमने निर्धारित लक्ष्य को समय से पहले ही हासिल कर लिया है, जिसमें 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन से बिजली है. अब लक्ष्य 2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली क्षमता हासिल करना है. हालांकि, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 2023-24 में कुल बिजली उत्पादन का लगभग 76 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से हुआ था. यानी केवल स्थापित क्षमता ही नहीं, असली उत्पादन भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उत्सर्जन को प्रभावित करता है.
सौर और पवन ऊर्जा के उपयोग में हमने अच्छी प्रगति की है, लेकिन हमें बायोमास और बायोगैस से भी बिजली उत्पादन को बढ़ावा देना होगा, क्योंकि ये 24/7 उपलब्ध स्रोत हैं. हालांकि, इन स्रोतों में अब तक बड़ी क्षमता नहीं बन पाई है, इसलिए इनके उत्पादन की लागत भी अधिक रहती है. आखिरकार, इनका उपयोग सौर और पवन ऊर्जा के साथ जोड़कर किया जाना चाहिए ताकि ये विविध स्तरों पर बिजली प्रदान कर सकें.
इस स्थिति में हम भारत के बिजली क्षेत्र के लिए दूसरा महत्वपूर्ण सुधार क्षेत्र सुझाते हैं. हमारी नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति ने पिछले दशक में बड़े बदलाव किए हैं, लेकिन अब हमें एक नई दृष्टि अपनाने की जरूरत है. सबसे पहले, हमें सौर और पवन ऊर्जा को एकीकृत करने के लिए नई तकनीकों पर ध्यान देना होगा ताकि इनका पूरे दिन सही उपयोग किया जा सके. दूसरा, मौजूदा ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर को बड़े निवेश और उन्नयन की आवश्यकता है ताकि ये नवीकरणीय ऊर्जा के उतार-चढ़ाव को संभाल सके.
टेक्नोलॉजी इनोवेशन और इन्वेस्टमेंट के संदर्भ में मुख्य क्षेत्र होंगे ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट ग्रिड, ग्रिड की स्थिरता और ऊर्जा भंडारण समाधान. तभी भारत का पावर सिस्टम नवीकरणीय ऊर्जा को आसानी से जोड़ सकेगा और एक मजबूत और टिकाऊ ग्रिड बना पाएगा. जब तक सस्ती बिजली भंडारण तकनीक नहीं आती, तब तक सौर और पवन ऊर्जा जैसी अस्थिर आपूर्ति की लागत को नियामकों द्वारा ध्यान में रखना होगा ताकि बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों को उचित मुआवजा मिल सके, चाहे वे सार्वजनिक क्षेत्र में हों या निजी क्षेत्र में. जैसे-जैसे ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ती जाएगी, इसे प्रबंधित करने के लिए ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता भी बढ़ती जाएगी.
इसमें हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन ग्रिड, जहां बड़े सौर और पवन ऊर्जा प्लांट जुड़े होते हैं, और सब-ट्रांसमिशन ग्रिड, जो रूफटॉप सोलर पैनल्स और छोटे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को समायोजित करते हैं, दोनों शामिल होंगे. इसके लिए एक ऐसी नीति की जरूरत है जो पावर यूटिलिटीज, खासकर निजी क्षेत्र में, को नियामकीय और वित्तीय स्तर पर समर्थन दे. साथ ही, ऊर्जा बदलाव को आसान बनाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण निगम, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन, इंडिया रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी और SECI को ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश का समर्थन करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी ताकि भारत का ऊर्जा बदलाव सुचारू रूप से हो सके.
ट्रांसमिशन– भारत को जोड़ना
पहले सुधार के चरण में बिजली उत्पादन और वितरण से ट्रांसमिशन को अलग किया गया था, ताकि पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही बढ़ सके. यह प्रणाली ठीक से काम कर रही है, और ज्यादातर ट्रांसमिशन कंपनियाँ अच्छा कर रही हैं, भले ही उन्हें वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ा हो. आज के ट्रांसमिशन क्षेत्र को नीति सुधार की बजाय नवाचार और निवेश की जरूरत है. नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग के कारण थर्मल पावर प्लांट्स (TPPs) और ऊर्जा भंडारण के संचालन में ज्यादा लचीलापन आ रहा है, जिससे ग्रिड को मजबूत और स्मार्ट बनाने की जरूरत होगी.
पहले सुझाए गए राष्ट्रीय मेरिट ऑर्डर डिस्पैच सुधार को ध्यान में रखते हुए, हम सुझाव देते हैं कि दूसरे सुधार में, हर राज्य की उपलब्ध ट्रांसफर क्षमता (ATC) को उसके कुल अधिकतम राज्य-स्तरीय मांग के स्तर तक बढ़ाना चाहिए, ताकि राष्ट्रीय मेरिट ऑर्डर डिस्पैच का सबसे बेहतर परिणाम मिल सके. राष्ट्रीय ग्रिड में बड़े इन्वेस्टमेंट और उन्नयन की आवश्यकता है, जैसे राइट-ऑफ-वे (बिजली लाइनों के रास्ते) की समस्या को हल करने के लिए इन्सुलेटेड क्रॉस आर्म्स के साथ मोनोपोल्स का इस्तेमाल, ताकि ट्रांसमिशन में होने वाले नुकसान कम हों और ग्रिड की स्थिरता बढ़े. इससे बिजली की गुणवत्ता और उपभोक्ताओं के लिए लागत में सुधार होगा. इन इन्वेस्टमेंट से उपभोक्ताओं, जनरेटरों और ट्रांसमिशन कंपनियों को अधिक लचीलापन और लागत के फायदे मिलेंगे.
सबसे कमजोर कड़ी, डिस्ट्रिब्यूशन
बिजली क्षेत्र की सबसे कमजोर कड़ी वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) हैं, जो करोड़ों उपभोक्ताओं तक बिजली पहुँचाने का काम करती हैं. 31 मार्च 2023 तक, इन वितरण कंपनियों की कुल संपत्ति नकारात्मक में थी, जिसका कुल घाटा ₹1,44,711 करोड़ था, और कुल उधारी 31 मार्च 2022 के ₹6,14,853 करोड़ से बढ़कर 31 मार्च 2023 को ₹6,84,379 करोड़ हो गई. पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) की 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार, वितरण कंपनियों की तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) हानि 2023 में 15.3 प्रतिशत थी, जो 2022 के 16.23 प्रतिशत से कम है. हालांकि बिजली खरीद और बिलिंग में सुधार हुआ है, फिर भी अभी काफी कुछ करना बाकी है. इस स्थिति में, हम वितरण के लिए तीसरा महत्वपूर्ण सुधार सुझाते हैं.
2003 के बाद, अधिकतर राज्य विद्युत बोर्ड (SEBs) ने अपने वितरण कार्य को एक या अधिक डिस्कॉम में विभाजित कर दिया, जबकि कुछ ने उत्पादन और वितरण को एक ही कंपनी में रखा. लेकिन बंटवारे के बाद भी अधिकतर डिस्कॉम राज्य-स्वामित्व में और सरकारी प्रबंधन में रहे, जिससे वे वित्तीय समस्याओं और भारी कर्ज का सामना कर रहे हैं.
सरकार ने राज्य-स्वामित्व वाले डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तीन बड़े प्रयास किए. लेकिन ये प्रयास बिना संगठनात्मक मुद्दों और प्रबंधन समस्याओं को हल किए गए, जिससे ये सुधार केवल थोड़े समय तक ही टिके. पहला प्रयास 5 अक्टूबर 2012 को डिस्कॉम्स के वित्तीय पुनर्गठन की योजना से हुआ. इसका उद्देश्य डिस्कॉम्स की तत्काल पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करना और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाना था. लेकिन इस योजना में केवल कुछ ही राज्यों/डिस्कॉम्स ने भाग लिया.
इसके अलावा, कुछ उपभोक्ताओं को मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली देने की प्रथा जारी रही, जिससे डिस्कॉम्स की संचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. नियामकों द्वारा डिस्कॉम्स को समय पर पर्याप्त टैरिफ प्रदान न करना निजी क्षेत्र की भागीदारी के रोडमैप को बाधित कर रहा है. इस योजना का लाभ मुख्य रूप से बैंकों/ऋणदाताओं को मिला.
इसके बाद, 20 नवंबर 2015 को सरकार ने राज्य-स्वामित्व वाले डिस्कॉम्स के सुधार के लिए उदय योजना (UDAY) की शुरुआत की. इस योजना से राज्यों ने वार्षिक टैरिफ बढ़ाने, ईंधन लागत को तिमाही आधार पर समायोजित करने और अन्य खर्चों को कम करने में सुधार किया. इस योजना से AT&C हानि में गिरावट आई और ACS-ARR (बिजली की लागत-प्राप्त राजस्व) में सुधार हुआ. लेकिन फिर भी कई डिस्कॉम्स महत्वपूर्ण संचालन समस्याओं के कारण वित्तीय संकट में आ गए. 2020-21 में सरकार ने उदय 2.0 और लिक्विडिटी इन्फ्यूजन योजना शुरू की, जिसमें स्मार्ट प्रीपेड मीटर, डिस्कॉम्स द्वारा समय पर भुगतान आदि पर ध्यान दिया गया. हालाँकि, PFC की 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार, डिस्कॉम्स के घाटे 2021-22 में ₹26,947 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में ₹57,223 करोड़ हो गए. इस प्रकार, ऊर्जा बिक्री और राजस्व बढ़ने के बावजूद, कुल घाटे में वृद्धि हुई है.
इस स्थिति में, वितरण के लिए हमारे तीसरे सुझाव में, दो मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए: AT&C हानि और ACS-ARR अंतर. अधिकतर डिस्कॉम्स में फीडर स्तर पर मीटरिंग हो चुकी है, जिससे अब वितरण इकाइयों को लाभकारी केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है. हमारा लक्ष्य है कि अगले 5 साल में AT&C हानि को वैश्विक मानक < 5 प्रतिशत पर लाया जाए. सभी डिस्कॉम्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका ACS-ARR अंतर शून्य हो जाए और 5 साल में नकारात्मक हो जाए, ताकि पिछले घाटों को समाप्त किया जा सके.
बिजली क्षेत्र भारत के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इसे अपनी संचालन और वित्तीय अक्षमताओं के कारण नुकसान का स्रोत नहीं बनना चाहिए. कई उदाहरणों में वितरण क्षेत्र के निजीकरण से सुधार देखा गया है, और निजी क्षेत्र की भागीदारी से बिजली वितरण में सुधार हो सकता है. इसलिए, जैसे हम 'विकसित भारत' की ओर बढ़ रहे हैं, वितरण में निजी भागीदारी को नियम बनाना चाहिए. साथ ही, कमजोर वर्गों की सुरक्षा के उपाय भी किए जाने चाहिए, ताकि वे इस सुधार में प्रभावित न हों.
सब्सिडी– लक्षित और डीबीटी
2022-23 की PFC रिपोर्ट के अनुसार, डिस्कॉम्स द्वारा वसूल की गई टैरिफ सब्सिडी 2021-22 में ₹1,44,469 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में ₹1,69,532 करोड़ हो गई, जो उनकी कुल आय का लगभग 17.53 प्रतिशत है. रिपोर्ट में बताया गया है कि सब्सिडी बढ़ने के साथ ही बकाया सब्सिडी का अंतर भी बढ़ा है. यह महसूस किया गया है कि गरीब नागरिकों को बिजली की उपलब्धता जरूरी है, और एक कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार को उनके घरों में इसकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए. कई राज्यों में शुरू में प्रति परिवार प्रति माह 100 यूनिट तक की खपत पर कोई बिल नहीं लगाया जाता था. लेकिन समय के साथ, सब्सिडी का दायरा बढ़ता गया, और अब कृषि के लिए नलकूप, छोटे उद्योग और धीरे-धीरे सभी उपभोक्ताओं के लिए मुफ्त बिजली की व्यवस्था कर दी गई है. कुछ राज्यों में डिस्कॉम्स की आय का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा टैरिफ सब्सिडी से आता है. हालांकि समाज के सबसे कमजोर वर्गों को लक्षित सब्सिडी देना सही है, लेकिन बिना लक्षित सब्सिडी ने राज्यों की वित्तीय स्थिति को कमजोर कर दिया है. जब बिल की गई टैरिफ सब्सिडी नहीं मिलती है, तो डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति संकट में आ जाती है. एक और समस्या यह है कि राज्य के नियामकों के टैरिफ आदेश डिस्कॉम्स की संचालन और वित्तीय दक्षता को सुधारने में असफल रहे हैं.
इस पृष्ठभूमि में, हम चौथा महत्वपूर्ण सुधार सुझाते हैं: कि सभी टैरिफ सब्सिडी सीधे लाभार्थी को दी जाए और डिस्कॉम्स पर कोई टैरिफ सब्सिडी न डाली जाए. इसका मतलब है कि जिस राज्य सरकार को किसी उपभोक्ता को बिजली सब्सिडी देनी है (जिसके लिए हर उपभोक्ता का मीटर होना अनिवार्य है), उसे वह सब्सिडी सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से देनी चाहिए. आज की तकनीक से यह संभव, पारदर्शी और प्रभावी हो सकता है. ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है कि जब सब्सिडी पाने वाला उपभोक्ता अपना बिल डिस्कॉम को चुकाए, तो राज्य सरकार से उसे सीधे उसकी सब्सिडी उसके बैंक खाते में मिल जाए. इससे डिस्कॉम्स के कामकाज में संचालन और वित्तीय सुधार आएगा. इससे सब्सिडी का प्रावधान लक्षित और पारदर्शी होगा, डिस्कॉम की वित्तीय सेहत में सुधार होगा, और राज्य सरकार भी लंबे समय में अपने सब्सिडी बजट को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकेगी.
निष्कर्ष
जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था सालाना 6 से 8 प्रतिशत की दर से तेजी से बढ़ रही है, हमारी ऊर्जा जरूरतें भी इससे तेज गति से बढ़ेंगी और हर दशक में दोगुनी हो जाएंगी. बिजली क्षेत्र को इस मांग को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से स्थायी रूप से पूरा करने के लिए बड़े निवेश की जरूरत होगी. ये निवेश तभी संभव होंगे जब हम ऊपर बताए गए चार महत्वपूर्ण सुधार लागू करेंगे. ये हैं: एक राष्ट्रीय मेरिट ऑर्डर और लोड डिस्पैच प्रणाली को स्पॉट एक्सचेंज के साथ जोड़ना; नवीकरणीय ऊर्जा के लिए ट्रांसमिशन ग्रिड और इंटरचेंज सुधार; डिस्कॉम्स का निजीकरण; और उपभोक्ताओं को सब्सिडी का डायरेक्ट-बेनेफिट ट्रांसफर. इन सुधारों पर आधारित एक राष्ट्रीय बिजली बाजार प्रतिस्पर्धी और प्रभावी होगा; यह निवेश को आकर्षित करेगा और उपभोक्ताओं को विश्वसनीय, गुणवत्तापूर्ण और सस्ती बिजली की आपूर्ति प्रदान करेगा, जो 'विकसित भारत' के लिए स्थायी ऊर्जा की दिशा में रास्ता बनाएगा.
(लेखक- करन ए सिंह, पूर्व मुख्य सचिव, पंजाब)
(लेखक- अनिरुद्ध तिवारी, महात्मा गांधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान के महानिदेशक और पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव)
1 नवंबर को हमने सिर्फ एक विद्वान को ही नहीं बल्कि एक मार्गदर्शक और एक सहयोगी को भी खो दिया. बिबेक देबरॉय का निधन हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है.
डॉ. बिबेक देबरॉय जैसे लोग बहुत ही कम होते हैं, जो इतना बड़ा और हमेशा याद रहने वाला योगदान छोड़ते हैं. कुछ लोग उन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने वाले, एक बेहतरीन लेखक, और एक ऐसे अर्थशास्त्री के रूप में याद करेंगे, जो संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान रखते थे. लेकिन हमारे लिए, जिन्हें उनसे सीखने का मौका मिला, बिबेक दा सिर्फ एक चेयरमैन या सलाहकार नहीं थे; वे सच्चे गुरु, एक मार्गदर्शक थे. अपने गुरु का भारत के विकास और सांस्कृतिक धरोहर में असाधारण योगदान को याद कर, उनके बिना गहरी उदासी महसूस हो रही है, एक दुख जो हमेशा मेरे साथ रहेगा. इस दुख के साथ, मैं उनकी बातों और प्रेरणा को भी अपने साथ रखूंगा, जो हमें भारत के विकास और बेहतर भविष्य की कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है.
एक अर्थशास्त्री के रूप में, उन्होंने वर्तमान नीति की दिशा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने 2017 से लेकर अपने निधन तक प्रधानमंत्री कार्यालय के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के रूप में सेवा की. उनके शब्दों ने उनसे बातचीत करने वालों में ज्ञान का संचार किया, और उन्होंने अपने गहरे विचारों को सभी के साथ साझा किया, खासकर युवा सोच वाले लोगों के साथ, जिनसे वे हमेशा प्रेरित होते थे. उनके आर्थिक विचार भारत की वृद्धि और विकास की दिशा से परे थे, एक विषय जिस पर उन्होंने हमेशा जोर दिया, और उन्होंने राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया. उन्हें विश्वास था कि राज्य स्तर पर केंद्रित दृष्टिकोण विकासात्मक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने और भारत के विकसित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए जरूरी है.
यह उनके योगदान में भी दिखता है, जब उन्होंने भारत की प्रतिस्पर्धा रोडमैप के एक महत्वपूर्ण स्टीयरिंग समिति सदस्य के रूप में काम किया. उन्होंने यह बताया कि असली आर्थिक प्रतिस्पर्धा व्यवसायों और सरकार की नीतियों से बने व्यापक ढांचे से आती है. उनके अनुसार, असली प्रगति के लिए सुधारों और भारत के विभिन्न क्षेत्रों की गहरी समझ जरूरी है. उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था: भारत की विकास की दिशा को बेहतर बनाने के लिए, सभी क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ानी होगी और हर राज्य की विशेषताओं को समझना होगा. उन्होंने कहा कि राज्यों को खास उद्योगों को प्रोत्साहन देने के बजाय एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो सभी के लिए फायदेमंद हो. डॉ. देबरॉय ने अक्सर इस बात पर चर्चा की कि आधुनिक प्रतिस्पर्धा में ऐसे तरीकों को बदलने की जरूरत है. इसलिए, हर राज्य को अपनी ताकतों को पहचानकर उत्पादकता बढ़ाने के लिए सही माहौल तैयार करना चाहिए.
उनके आर्थिक विचारों ने दशकों तक सार्वजनिक नीति की चर्चा को आकार दिया, लेकिन उनकी बौद्धिक विरासत उनके गहरे जुनून से भी जुड़ी हुई थी, जिसे उन्होंने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने के लिए अपनाया. उन्होंने महाभारत का संपूर्ण अनुवाद दस खंडों में किया और उसके बाद वाल्मीकि रामायण का अनुवाद तीन खंडों में किया, जो पेंगुइन क्लासिक्स के लिए था. उन्होंने इन प्राचीन ग्रंथों को विद्वता और कहानीकार के अंदाज में प्रस्तुत किया, जिससे उनके गहरे दर्शन को बरकरार रखते हुए इन्हें युवाओं के लिए भी सुलभ बना दिया. यह उनके उस दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, जो हमारी प्राचीन ज्ञान को आधुनिक पाठकों तक पहुंचाने के लिए था, उनका यह कार्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर की समृद्धि का प्रमाण है.
अपने करियर में मैंने बिबेक दा के साथ अक्सर ऐसे चर्चाओं में भाग लिया है, जिनमें रहने योग्य और समावेशी शहर बनाने की जरूरत पर बात होती थी. शहरीकरण पर हमारी बातचीत से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और उनके समाज सुधार और भारत में बेहतर जीवन स्तर के लिए उनके दृष्टिकोण को समझने का मौका मिला. मैं हमेशा उनके इस समर्पण से प्रभावित रहा हूँ कि वे सभी निवासियों के जीवन को बेहतर बनाने वाले जीवंत शहरी वातावरण बनाने के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे. अपनी किताब "द एज ऑफ अवेकनिंग" की प्रस्तावना और 2047 के लिए भारत प्रतिस्पर्धात्मकता रोडमैप में उन्होंने अक्सर "Citius, Altius, Fortius" (तेज़, ऊँचा, मज़बूत) के नारे का जिक्र किया. यह इस बात को रेखांकित करता है कि हमारे राष्ट्रीय सफर में प्रगति कितनी महत्वपूर्ण है. उनका मानना था कि हमें उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए, और यह उत्कृष्टता सही समय पर रणनीतिक कदम उठाने से ही संभव है.
उनके साथ मेरा आखिरी सहयोग किताब "ज्योतिर्लिंगम" में था, जिसे पेंगुइन ने सितंबर 2024 में प्रकाशित किया. हालांकि हमें इस काम को औपचारिक रूप से लॉन्च करने का मौका नहीं मिला, लेकिन इस यात्रा में हमने शिव के बारे में अपने विचार साझा किए और अध्यात्म पर अपने व्यक्तिगत अनुभवों और समझ को खोजा, यह अनुभव मेरे लिए जीवन बदलने वाला था. विषय के प्रति उनकी गहरी समझ और जुनून ने इस किताब को साथ में लिखने की हमारी राह को रोशन किया.
बिबेक दा, आपको खोना मेरे लिए केवल व्यक्तिगत क्षति नहीं है, बल्कि मैंने अपने गुरु को खो दिया है—एक अद्वितीय मार्गदर्शक, जिसने हमें बौद्धिक रूप से प्रेरित किया और हमारे दिलों और दिमागों को छू लिया. उनके साथ काम करने का सम्मान पाने वाले सभी के लिए, बिबेक दा का जाना सिर्फ एक विदाई नहीं है; यह एक भावुक याद दिलाता है कि सच्चा प्रभाव उस प्यार और सम्मान से मापा जाता है जो किसी के जाने के बाद भी बना रहता है.
अपने अंतिम कॉलम में, जो उनके निधन के बाद प्रकाशित हुआ, उन्होंने लिखा कि उनका जाना एक व्यक्तिगत नुकसान होगा, न कि सामाजिक. जब मैं अपने प्रिय मित्र के जाने का दुख मना रहा हूं, तो यह कहना दुखदायी है कि उन्होंने अपनी अनुपस्थिति से जो गहरा खालीपन छोड़ा है, उसे बहुत कम आंका. हमारा दुख, आखिरकार, प्यार है जो लगातार बना रहता है—उनकी बुद्धि, आदर्शों, और मार्गदर्शन के लिए, साथ ही जिस तरह से उन्होंने हमें बेहतर विचारक और भारत के विकास यात्रा में अधिक जिम्मेदार योगदानकर्ता बनाया.
जब तक हमारी अगली मुलाकात नहीं होती, आप पवित्र ज्योतिर्लिंग में मिल गए हैं. आपकी यात्रा एक गहरा याद दिलाती है कि हमारी संस्कृति में मृत्यु अंत नहीं है. यह बस एक बदलाव है, एक शारीरिक रूप को छोड़ना, और उसी मुक्ति में असली स्वतंत्रता है. शिव की तरह, जो विनाश और पुनर्जन्म के चक्र को व्यक्त करते हैं, आपकी आत्मा, विचार, और विचारधाराएं मेरे समझ को रोशन करते रहेंगे, मुझे गहरी स्पष्टता और मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करते रहेंगे. जब तक हम फिर से नहीं मिलते, मैं उस ज्ञान को साझा करूंगा जो आपने उदारता से दिया है, क्योंकि आपकी आत्मा जीवित है. मैं आपके शिक्षाओं को आगे बढ़ाऊंगा और अपने प्रयासों और सेवाओं के माध्यम से आपकी याद को सम्मानित करने की कोशिश करूंगा. ओम नमः शिवाय.
(अतिथि लेखक- अमित कपूर, अध्यक्ष और सीईओ, भारत काउंसिल ऑन कॉम्पेटिटिवनेस)
मरे ने यह भी स्पष्ट किया कि वापसी की प्रक्रिया पूरी तरह से प्रशासनिक है और इसका अन्य कानूनी या राजनयिक मामलों से कोई संबंध नहीं है.
अमेरिकी होमलैंड सुरक्षा विभाग (DHS) में बॉर्डर और इमिग्रेशन पॉलिसी की असिस्टेंट सेक्रेटरी रॉयस बर्नस्टीन मरे ने हाल ही में मीडिया ब्रीफिंग में सरकार के इमिग्रेशन कानूनों को सख्ती से लागू करने के प्रयासों पर बात कही है. खासतौर पर उन भारतीय नागरिकों के बारे में जो अवैध तरीके से अमेरिका आए हैं और अब उन्हें वापस भारत भेजा जा रहा है. मरे ने यह भी बताया कि DHS मानव तस्करी और अवैध प्रवास को रोकने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है.
मरे ने हाल ही में एक विशेष विमान द्वारा भारतीय नागरिकों को वापस भेजने के ऑपरेशन का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन उन लोगों को वापस भेजने की एक लगातार चल रही प्रक्रिया का हिस्सा है, जिनके पास अमेरिका में रहने का कानूनी अधिकार नहीं है. मरे ने कहा कि यह पहल अमेरिका के इमिग्रेशन कानूनों को लागू करने और बिना अनुमति प्रवेश करने वालों के लिए सही परिणाम सुनिश्चित करने का हिस्सा है, साथ ही वैध तरीकों से आने को प्रोत्साहित करती है.
मरे हाल ही में भारत यात्रा से वापस आईं, जहां उन्होंने वापसी प्रक्रिया को खुद देखा और दोनों देशों के बीच मानव तस्करी रोकने में मजबूत सहयोग पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारत सरकार के साथ हमारा लगातार सहयोग अवैध प्रवासन को कम करने और अमेरिका-भारत प्रवासन मामलों को कानूनी और व्यवस्थित तरीके से संभालने में महत्वपूर्ण है.
सिर्फ वित्तीय वर्ष 2024 में ही 1,100 से अधिक भारतीय नागरिकों को अमेरिका से वापस भेजा गया, जो पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामलों में बढ़ोतरी को दिखाता है. साथ ही, अमेरिकी सीमाओं पर भारतीय नागरिकों के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है. हालांकि भारत के विशेष क्षेत्रों की पूरी तरह से जानकारी नहीं रखी जाती, लेकिन हाल की उड़ान पंजाब में उतरी ताकि वापस लौटने वालों के लिए पुनर्वास प्रक्रिया आसान हो सके.
सहायक सचिव मरे ने बताया कि अमेरिका-भारत साझेदारी में जागरूकता अभियान भी शामिल हैं, जो मानव तस्करी के शिकार होने वाले युवा और कमजोर लोगों को सचेत करते हैं. DHS सोशल मीडिया और मीडिया साझेदारी का उपयोग कर यह संदेश फैला रही है कि अवैध प्रवासन के खतरे, वीजा की जरूरतें और अमेरिका में पढ़ाई या काम करने के कानूनी रास्ते क्या हैं.
मरे ने स्पष्ट किया कि यह वापसी प्रक्रिया पूरी तरह से प्रशासनिक है और इसका अमेरिका और भारत के बीच अन्य कानूनी या कूटनीतिक मामलों से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि DHS कानूनी प्रवासन के लिए प्रतिबद्ध है और कहा कि हम भारतीय सरकार के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देते हैं और अवैध प्रवासन को रोकने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह चर्चा DHS और भारतीय अधिकारियों के बीच गहरे और बहुआयामी संबंधों को दिखाती है, जिसमें वे अवैध प्रवासन की चुनौतियों का सामना करते हुए, आव्रजन कानूनों को लागू करने में जनता को जागरूक और पारदर्शिता बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं.
(लेखक- रुहैल अमीन, रिपोर्टर, सीनियर एडिटर, BW बिजनेसवर्ल्ड, एक अनुभवी पत्रकार हैं जिनकी विशेषज्ञता बिजनेस, टेक्नोलॉजी, एंटरटेनमेंट और राजनीति में है. उनकी गहरी जानकारी और विश्लेषण के लिए उन्हें जाना जाता है. उनका काम पत्रकारिता की सच्चाई और बेहतरीन कहानी कहने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में एक भरोसेमंद आवाज के रूप में पहचाना जाता है. वे कई प्लेटफार्मों पर योगदान देते हैं और ऐसा कंटेंट लाते हैं जो लोगों को जानकारी देता है और उन्हें जोड़ता है.)
आज आजाद हिंद फौज की प्रेरणादायक कहानी और हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को युवा पीढ़ी को बताया जाना चाहिए.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में बारिश का मौसम था. ब्रिटेन के हमलावरों ने चारों ओर बम बरसाये. फोर्स 136 के आठ कार्यकर्ता, ब्रिटिश खुफिया विभाग द्वारा प्रशिक्षित गुरिल्ला लड़ाकों का एक दस्ता, जापानी सेना के गढ़ों के काफी पीछे पैराशूट से उतरे थे. उन्हें तपते जंगलों में जापानी समर्थन बुनियादी ढांचे में तोड़फोड़ करने का काम सौंपा गया था. अचानक उन्हें गाने की आवाज़ और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर बूटों की आवाज़ सुनाई दी. घनी झाड़ियों के पीछे छिपकर वे यह देखकर दंग रह गए कि युवा भारतीय महिलाओं की एक सैन्य इकाई उनके ठीक सामने तेजी से आगे बढ़ रही थी.
महिला योद्धाओं के पास कई किलो सैन्य साजो-सामान, गोला-बारूद और राशन था. वे बेहद तेज़ और लड़ने लायक थीं. अपनी खाकी वर्दी, बैज और टोपी में वे बर्मा अभियान में सबसे उत्साहित सैनिक थीं. उनके होठों पर “कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा…” की भावना के साथ, वे अपराजेय लग रही थीं. वे आज़ाद हिंद फ़ौज (आईएनए) की झाँसी रेजिमेंट की रानी (आरजेआर) थीं, सैन्य इतिहास में पहली पूर्ण महिला पैदल सेना-लड़ने वाली इकाई. अटूट महिला योद्धाओं ने कठिन अभ्यासों और कठिन अभ्यासों को सहन किया था. उन्होंने हुकुमत-ए-ब्रिटानिया को नष्ट करने की भी शपथ ली थी.
उनसे एक मील ऊपर विमानों ने आईएनए सैनिकों को टेढ़े-मेढ़े जंगलों से गुजरते हुए देखा. हॉकर हरीकेन के लड़ाकू पायलटों ने ज़ूम डाउन किया. झाँसी की रानी रेजिमेंट ने दुश्मन के विमानों द्वारा गोलाबारी और ओवर-फ़्लाइट के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन किया. उन्होंने कोरियोग्राफ की गई चालों में दौड़ लगाई और जैसे-जैसे विमान के प्रोपेलर की आवाज़ करीब और करीब आती गई, छिपने की कोशिश की, फिर गोलीबारी हुई. हरिकेन पर लगे हिस्पानो सुइज़ा 404 तोपों के 20 मिमी राउंड ने पृथ्वी को हिला दिया. विमानों से बमबारी की अप्रत्याशित मात्रा बहुत सटीक थी. जब महिला सैनिक कठोर जंगल में मिट्टी की पटरियों के पास लेटी हुई थीं तो गोलियाँ उनके आर-पार हो गईं.
जीवन और मृत्यु की स्थिति में, उन्हें अपने दिल की धड़कन महसूस हुई. फिर हॉकर हरीकेन अपना गोला-बारूद ख़त्म करने के बाद बादलों में गायब हो गए, वे उड़ती धूल में अव्यवस्था छोड़ गए. आरजेआर ने तेजी से फिर से संगठित होकर एक रोल कॉल आयोजित की. अपना नाम सुनते ही, उनमें से एक युवा महिला जिसके सर से बुरी तरह खून बह रहा था, खड़ी हो गई और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए “जय हिंद” चिलायी, फिर वह गिर गई. बाकी यूनिट उसकी ओर दौड़ पड़ी. हालांकि, तमाम कोशिशों के बावजूद उसकी जान नहीं बचाई जा सकी. जैसे ही आरजेआर आगे बढ़ी, महिला योद्धाओं को पता चला कि यही वह जीवन है जिसे उन्होंने अपनाया है, और वे तब तक आराम नहीं करने वाली थीं जब तक भारत आजाद नहीं हो जाता. सभी ने एक साथ गाना शुरू किया, “कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा…”.
फ़ोर्स 136 के कार्यकर्ताओं ने गुप्त संचार के माध्यम से मेरठ में अपने मुख्यालय को आरजेआर योद्धाओं को देखे जाने की सूचना दी. फोर्स 136 को युद्धबंदियों और दक्षिण पूर्व एशिया के निवासियों से ली गई एक भारतीय विद्रोही सेना के अस्तित्व के बारे में पता था, जिसे कृपालु रूप से जिफ (जापानी प्रभावित सेना) कहा जाता है. देशभक्तों की इस सेना के नेता ने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया कमान, भारत में ब्रिटिश सेना के जीएचक्यू, वायसराय के कार्यालय और यहां तक कि 10 डाउनिंग स्ट्रीट की रातों की नींद हराम कर दी थी.
गुप्त युद्ध में अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद और हत्यारों को नियोजित करने के बाद भी, वे महामहिम के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के सामने रक्षाहीन थे, उनका नाम सुभाष चंद्र बोस था. पूरे भारत में नेता जी के नाम से लोकप्रिय, करिश्माई बोस का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा था. ऐसे समय में जब कई उच्च वर्ग के भारतीयों ने हुकुमत-ए-ब्रिटानिया को प्रोविडेंस की व्यवस्था के रूप में मान्यता दी, उनकी महिमा के गीत गाए, और नाइटहुड और शाही सम्मान प्राप्त किया, बोस एकमात्र भारतीय थे जिन्होंने प्रसिद्ध भारतीय सिविल सेवा के लिए अर्हता प्राप्त करने के बाद इस्तीफा दे दिया था. कैम्ब्रिज के पूर्व छात्र, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया था, लेकिन ब्रिटिश खुफिया जानकारी से बचकर कलकत्ता (अब कोलकाता) से साहसपूर्वक भागने में सफल रहे और जर्मनी पहुंच गये. अत्यधिक साहसी व्यक्ति, फरवरी 1942 में, उन्होंने दो चरणों वाली खतरनाक अंतरमहाद्वीपीय पनडुब्बी यात्रा की, जिसे पहले कभी प्रशिक्षित नौसेना अधिकारियों ने भी करने का प्रयास नहीं किया था, और जापान पहुंचे. अंततः जापानी नेतृत्व दृढ़ निश्चय और सांस्कृतिक परिष्कार के एक भारतीय नेता से मिला, उन्होंने उसे 'भारतीय समुराई' नाम दिया.
21 अक्टूबर 1943 को, बोस ने इतिहास रचा और सिंगापुर में एक अनंतिम निर्वासित सरकार, अर्ज़ी हकुमत-ए-आज़ाद हिंद, (आजाद हिंद सरकार) के गठन की घोषणा की. नौ देश, जापान; जर्मनी; बर्मा; फिलीपींस; क्रोएशिया; चीन और मांचुकुओ; इटली और थाईलैंड ने नये शासन को मान्यता दी. बोस अद्भुत गति से आगे बढ़े. कुछ ही महीनों में आज़ाद हिंद की अपनी नागरिक संहिता, अदालत, बैंक और राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' (बाद में जन गण मन) बन गया. अनंतिम सरकार ग्यारह मंत्रियों और आईएनए के आठ प्रतिनिधियों के साथ सिंगापुर से काम करती थी.
आईएनए का आदर्श वाक्य था, 'इत्तेहाद, इत्माद और कुर्बानी' (एकता, विश्वास और बलिदान), और इसका राष्ट्रीय अभिवादन 'जय हिंद' था. बोस की आंखों में आग थी और उन्होंने आईएनए 'दिल्ली चलो' का नारा देकर और लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराने का आग्रह किया था. उनकी देशभक्ति और आग की भावना ही थी जिसने अनगिनत बहादुर महिलाओं और पुरुषों को अपनी भूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए प्रेरित किया. बोस की प्रशंसा में, दक्षिण पूर्व एशिया में हजारों भारतीय जाति, धर्म और लिंग की सदियों पुरानी बाधाओं को तोड़कर आईएनए के लिए स्वेच्छा से आगे आए.
इस हद तक कि कोई अन्य भारतीय नहीं बल्कि स्वयं वह व्यक्ति ऐसा सोच सकता था, बोस ने एक भारत की सच्ची भावना के साथ आईएनए में भविष्य के भारत के अपने दृष्टिकोण को हासिल किया. किसी भी अन्य भारतीय नेता से अधिक अपने अनुयायियों के लिए वह एक भाग्यवान व्यक्ति थे और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनका समर्पण अतुलनीय था. उनके उपक्रमों ने उस समय स्वतंत्रता के संघर्ष को एक नई गति दी जब भारत छोड़ो आंदोलन के बाद पूरा कांग्रेस नेतृत्व जेल में डाल दिया गया था. बोस युद्ध के मैदान में हुकुमत-ए-ब्रिटानिया का सामना करने वाले एकमात्र भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे.
7 जनवरी 1944 को, बोस ने रानी झाँसी रेजिमेंट के प्रमुख कैप्टन डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन, आज़ाद हिंद सरकार के कुछ कैबिनेट मंत्रियों और कैबिनेट सचिव आनंद मोहन सहाय के साथ लेफ्टिनेंट जनरल मसाकाज़ु कावाबे रंगून में जापानी सेना कमांडर-इन-चीफ से मुलाकात की. कावाबे ने समूह को सूचित किया कि आईएनए की कुछ इकाइयों को मोर्चे पर भेज दिया गया है. बोस ने कावाबे से कहा, "मैं भगवान से केवल एक ही प्रार्थना करता हूं, और वह यह कि हम जल्द से जल्द मोर्चे पर जाएं और मातृभूमि के लिए अपना खून बहाने में सक्षम हों".
अब बोस के 'दिल्ली चलो' के नारे को हकीकत में बदलना आईएनए का काम था. लीपिंग टाइगर के प्रतीक के साथ तिरंगे को पकड़े हुए और अपने होठों पर 'दिल्ली चलो' का युद्ध घोष करते हुए, कर्नल शौकत हयात मलिक के नेतृत्व में निडर आईएनए सैनिकों ने 14 अप्रैल 1944 को भारतीय धरती पर मोइरांग में आईएनए का झंडा फहराया. मलिक को 'सरदार-ए-जंग' का अलंकरण प्रदान किया गया.
बाद में 22 जून 1944 को, कावाबे ने रंगून में फिर से बोस से मुलाकात की और अपनी डायरी में दर्ज किया, “उन्होंने (बोस ने) मोर्चे पर स्थिति का वर्णन किया जैसा कि उन्होंने आगे के क्षेत्र के अपने हालिया निरीक्षण दौरे के अवसर पर देखा था. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में आखिरी दम तक लड़ने की अपनी इच्छा व्यक्त की. उन्होंने दोबारा मोर्चे पर जाने का प्रस्ताव भी रखा... इसके विरोध में मैंने उनसे बहुत बहस की, लेकिन उन्होंने 'ठीक है' नहीं कहा. उसके उत्साह से प्रभावित होकर मैंने उससे अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने का वादा किया. इसके अलावा, उन्होंने पहले की तरह आईएनए के बाकी हिस्सों, यहां तक कि महिला इकाई को भी आगे बढ़ाने का आदेश देने पर जोर दिया. ऐसा लगता है कि चाहे युद्ध कितना भी लंबा चले, भारतीय अपनी लड़ने की भावना नहीं खोएंगे. जब तक वे अपने महान उद्देश्य - स्वतंत्रता - को पूरा नहीं कर लेते, वे खुशी-खुशी सभी कष्टों का सामना करेंगे'.
इंफाल और कोहिमा की बेहद कठिन लड़ाई, जहां बोस की आईएनए ने युद्ध में सम्मान जीता और अपने सैनिकों को खो दिया, अब द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे बड़ी लड़ाई मानी जाती है. इतिहासकार रॉबर्ट लाइमैन ने कहा है, "किसी भी ब्रिटिश सेना के सबसे कठिन दुश्मन के साथ युद्ध में महान चीजें दांव पर थीं... यह ब्रिटिश साम्राज्य की आखिरी वास्तविक लड़ाई और नए भारत की पहली लड़ाई थी". मिडवे, अल अलामीन और स्टेलिनग्राद के साथ कोहिमा में सेना की जीत द्वितीय विश्व युद्ध के निर्णायक मोड़ थे. इसके बाद, बोस ने रंगून से लेफ्टिनेंट कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों को एक पत्र लिखा, जो अग्रिम पंक्ति पर तैनात थे.
पत्र में लिखा था, ''इस वीरतापूर्ण संघर्ष के दौरान व्यक्तिगत रूप से हमारे साथ चाहे कुछ भी हो जाए, पृथ्वी पर ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो भारत को अब और गुलाम बनाए रख सके. चाहे हम जिएं और काम करें या चाहे हम लड़ते हुए मरें, हमें हर परिस्थिति में पूरा विश्वास होना चाहिए कि जिस उद्देश्य के लिए हम प्रयास कर रहे हैं वह निश्चित रूप से विजयी होगा। यह भगवान की उंगली है जो भारत की स्वतंत्रता की ओर रास्ता दिखा रही है…”
द्वितीय विश्व युद्ध अगस्त 1945 में दो परमाणु बमों के विस्फोट और जापान के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ. फिर भी आईएनए मुख्यालय में, अदम्य बोस असंभव बाधाओं पर विजय पाने के लिए दृढ़ थे. जापान के आत्मसमर्पण के बाद भी उन्होंने साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखने का निर्णय लिया. दिल्ली में लाल किले की प्राचीर पर भारतीय तिरंगा फहराने का उनका सपना बरकरार था. बोस ने घोषणा की, "दिल्ली के लिए कई रास्ते हैं और दिल्ली हमारा लक्ष्य है".
अंततः बोस की भविष्यवाणी के अनुसार आईएनए दिल्ली के लाल किले तक पहुंच गई, लेकिन युद्धबंदियों के रूप में. नवंबर 1945 में, नूर्नबर्ग अदालती मुकदमे के समानांतर, विजयी ब्रिटिश ने दिल्ली के लाल किले में सनसनीखेज आईएनए अदालती मुकदमे को अंजाम दिया. अखबार अचानक आईएनए और उन महिला योद्धाओं की मनोरम कहानियों से भर गए जो भारत की आजादी के लिए युद्ध लड़ा. तीन पूर्व ब्रिटिश सेना अधिकारी (अब आईएनए) पर अदालत में मुकदमा चलाया गया. उनके नाम थे कैप्टन (जनरल) प्रेम सहगल, कैप्टन (जनरल) शाह नवाज खान और लेफ्टिनेंट (लेफ्टिनेंट कर्नल) गुरबख्श सिंह ढिल्लियन –वे भारत के तीन मुख्य धर्मों हिंदू, मुस्लिम और सिख का प्रतिनिधित्व करते थे. आईएनए अदालती मुकदमे के कारण भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी उत्साह को उस ऊंचाई तक पहुंचाया जो पहले कभी अनुभव नहीं किया गया था. बोस और आईएनए सैनिक रातोंरात राष्ट्रीय नायक बन गए और देश के सुदूर कोनों में भी हर भारतीय के दिल और दिमाग पर कब्जा कर लिया.
भारत तीन देशभक्तों की रक्षा में ब्रिटेन के खिलाफ एकजुट खड़ा था. पहली बार, कांग्रेस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग एक ही तरफ थे. भारत के कानूनी दिग्गज, भूलाभाई देसाई ने तीन भारतीयों का बचाव करने में अग्रणी वकील की एक समूह का नेतृत्व किया, लेकिन नतीजा तो पहले से ही तय था. क्राउन के पक्ष में निर्णय के बावजूद, ब्रिटिश सेना को 1857 के ग़दर के पुनरुद्धार की आशंका थी. अभूतपूर्व हंगामे के कारण, जनवरी 1946 में तीनों को मुक्त कर दिया गया. हुकुमत-ए-ब्रिटानिया ने बाद में बाकी आईएनए अदालती मुकदमे को रद्द कर दिया.
एक महीने बाद फरवरी 1946 में, पूरे भारत में 'जय हिंद' के बैनर तले एकजुट होकर नौसेना विद्रोह शुरू हो गया और साबित हो गया कि ब्रिटानिया अब लहरों पर शासन नहीं कर रहा है. इसके बाद ख़ुफ़िया रिपोर्टें आईं और ब्रिटिश सशस्त्र बलों के कई वर्गों में विश्वासघात के स्पष्ट संकेत दिखाई दिए. हुकूमत-ए-ब्रिटानिया को जल्द ही समझ में आ गया कि आईएनए ने साम्राज्यवाद की एक महत्वपूर्ण रीढ़, उनके सशस्त्र बलों की निष्ठा को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल क्लाउड औचिनलेक ने बोस को 'वास्तविक देशभक्त' कहा और उनकी सराहना करते हुए लिखा, "सुभाष चंद्र बोस ने उन पर (ब्रिटिश सेना) जबरदस्त प्रभाव डाला और उनका व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली रहा होगा."
माइकल एडवर्डस ने अपनी पुस्तक, द लास्ट इयर्स ऑफ ब्रिटिश इंडिया में पुष्टि की है, “भारत सरकार को धीरे-धीरे यह एहसास हुआ कि ब्रिटिश शासन की रीढ़, सेना, अब भरोसेमंद नहीं रह सकती है." अंततः स्वतंत्रता के अंतिम युद्ध में बोस और आईएनए की जीत हुई. शक्तिहीन ब्रिटेन ने "ताज का गहना" त्याग दिया और तेजी से भारत छोड़ दिया.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा भावनात्मक सत्य यह है कि बोस और आईएनए ने न केवल भारत से ब्रिटेन के शासन की वापसी को प्रभावित किया, बल्कि शेष दुनिया से ब्रिटिश साम्राज्य को भी खत्म कर दिया, क्योंकि भारतीय सेनाओं को उपनिवेशवाद को मजबूत करने के लिए नियोजित किया गया था. ब्रिटेन फिर कभी दुनिया की प्रमुख शक्ति नहीं बन पाया.
16 अगस्त 1947 को भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमाई व्यारावाला ने उस पल को अमर कर दिया जब दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा फहराया गया. उस समय भारत को जिस व्यक्ति की सबसे अधिक याद आई, वह थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. बर्मा के नेता, बा माव ने दर्ज किया, “सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें आप एक बार जानने के बाद भूल नहीं सकते थे; उनकी महानता प्रकट थी. कई अन्य क्रांतिकारियों की तरह, इस महानता का सार यह था कि वह एक ही कार्य और सपने के लिए जिए और इस तरह उन पर अपनी मुहर लगा दी. एक क्षण में वह उस विशाल, व्यापक सपने का कम से कम एक हिस्सा हासिल करने के करीब आ गया. वह असफल हो गया क्योंकि विश्व की ताकतें उसके पक्ष में नहीं थीं, लेकिन बुनियादी तौर पर बोस असफल नहीं हुए. युद्ध के दौरान उन्होंने जो आज़ादी हासिल की वही आज़ादी की असली शुरुआत थी जो कुछ साल बाद भारत को मिली. केवल ऐसा हुआ: एक मनुष्य ने बोया, और दूसरे ने उसके पीछे काटा.”
आज आज़ाद हिंद फ़ौज की प्रेरणादायक कहानी और हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को युवा पीढ़ी को बताया जाना चाहिए. रानी झाँसी रेजिमेंट की वीरता की याद में दिल्ली के मध्य में आईएनए के लिए एक स्मारक और एक जय हिंद पार्क की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है और इसे जल्द ही पूरा करने की आवश्यकता है. नेताजी और आज़ाद हिन्द फ़ौज हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे.
(लेखक- भुवन लाल, चेयरमैन, Lall Entertainment)
उद्योगों की हैप्पीनेस की रैंकिंग में, फिनटेक सेक्टर सबसे खुशहाल उद्योग के रूप में उभरा है, जबकि रियल एस्टेट सेक्टर को सबसे कम खुशहाल माना गया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के करीब 70 प्रतिशत कर्मचारी अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं. साथ ही, 54 प्रतिशत कर्मचारी अपनी कंपनी छोड़ने पर विचार कर रहे हैं. यह चिंताजनक आंकड़े दिखाते हैं कि बहुत से कर्मचारी, जो काम में सपोर्ट या संतोष महसूस नहीं कर रहे, नौकरी छोड़ सकते हैं.
रिपोर्ट का नाम है "Happiness at Work - How Happy is India's Workforce? - 2024" और इसे "The Happiest Places to Work" ने "Happiness Research Academy" के साथ मिलकर जारी किया है. यह रिपोर्ट पूरे भारत में किए गए एक बड़े रिसर्च का नतीजा है, जिसमें विभिन्न लिंग, उम्र, स्थान और उद्योगों के शहरी कर्मचारियों की खुशी के पैटर्न का अध्ययन किया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, एक ही उम्र के लोग बहुत अलग-अलग स्तर की खुशी महसूस कर रहे हैं, जो दिखाता है कि उम्र के अलावा और भी कई कारक नौकरी में खुशी को प्रभावित करते हैं. इसे "एक ही उम्र समूह में खुशी के स्तर में बड़े अंतर" के तहत बताया गया है. लिंग और क्षेत्रीय आधार पर भी खुशी के अंतर पर रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है. पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में महिलाएं अधिक खुश हैं, जबकि उत्तर क्षेत्र में पुरुषों की खुशी महिलाओं से अधिक है. उद्योगों के मामले में, फिनटेक (Fintech) सेक्टर को सबसे खुश उद्योग माना गया है, जबकि रियल एस्टेट सेक्टर को सबसे कम खुश बताया गया है.
हैप्पी प्लेस
जब कर्मचारियों को एक सहायक माहौल में अपने व्यक्तिगत रुचियों को आगे बढ़ाने का मौका मिलता है, तो उनके नौकरी छोड़ने की संभावना 60 प्रतिशत कम हो जाती है. मिलेनियल्स (1981-1996 के बीच जन्मे लोग) के नौकरी बदलने का खतरा ज्यादा है, क्योंकि उनमें से 59 प्रतिशत नौकरी बदलने पर विचार कर रहे हैं।
मेथडोलॉजी (पद्धति)
"हैप्पीनेस एट वर्क" रिपोर्ट 18 उद्योग क्षेत्रों के 2,000 लोगों से प्राप्त वैज्ञानिक और ठोस आंकड़ों पर आधारित है. हैप्पीनेस रिसर्च अकादमी द्वारा तैयार किए गए विशेष शोध उपकरणों ने इन आंकड़ों का सटीक और विस्तृत विश्लेषण करने में मदद की, जिससे पूरे भारत के शहरी कार्यबल की खुशी का विस्तृत नक्शा तैयार किया गया।
नम्रता टाटा, हैप्पीस्ट प्लेसेस टू वर्क की निदेशक, ने इस रिपोर्ट के बारे में कहा कि यह रिपोर्ट भारत में कार्यस्थल पर खुशी की मौजूदा स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है. विभिन्न समूहों और क्षेत्रों में खुशी के स्तर में बड़े अंतर यह बताते हैं कि संगठनों को कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए.
हैप्पीनेस रिसर्च अकादमी इस रिपोर्ट को हर साल प्रकाशित करने की योजना बना रही है. हर नई रिपोर्ट के साथ, अकादमी का लक्ष्य ऐसे रुझानों को उजागर करना है जो भारत में सबूत आधारित प्रबंधन (एविडेंस-बेस्ड मैनेजमेंट) के लिए महत्वपूर्ण होंगे.
ज्योतिष शास्त्र मनुष्य के जीवन में काल (समय) को परख कर समुचित दिशा में निर्देशन का कार्य करता है.
शब्दों के प्रभाव में परामर्श शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमें एक प्रभावक दूसरा प्रभाव में आने वाला अर्थात् यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो लोग शामिल होते हैं एक व्यक्ति जिसे अपनी समस्या का समाधान चाहिए, दूसरा व्यक्ति समस्या का निदान करने वाला होता है, जिसे मनोचिकित्सक कहते हैं. परामर्शदाता (Counsellor) व्यक्ति के चिन्ता, अवसाद, परिवारिक समस्या, रिश्ता, आदि समस्याओं से बाहर निकलने में मदद करता है, मानव एक अन्वेषक प्राणी है. वह प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ के साथ अपना तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है. यह अपने जीवन काल में संसार का श्रेष्ठ व्यक्ति बनना चाहता है. अब विचारणीय विषय यह है कि स्कूली शिक्षा के समय एक स्कूल, समान अध्यापक, समान सुविधा फिर भी एक समान छात्रों में प्रतिभा नहीं होती? तब यहां प्रश्न उठ खड़ा होता है कि ऐसा क्यों? जबकि मनोचिकित्सक से परामर्श लेने पर भी कई बार परिवर्तन नजर नहीं आता है. तब लोगों में ऐसी धारणा या विश्वास बनने लगता है कि इसके अलावा भी कोई बाह्य शक्ति है जो हमें सहायता कर सकती है. तब लोग अच्छे ज्योतिषियों को ढूंढने लगते हैं.
क्या ज्योतिष शास्त्र द्वारा इन परेशानियों को पता लगाया जा सकता है और इससे बचाया जा सकता है क्या? इन दो प्रश्नों का उत्तर ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से इस प्रकार से दिया जा सकता है.
भारतीय दर्शन शास्त्र के “यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे” इस सूत्रानुसार जो हमारे पिण्ड (शरीर) में जो तत्त्व है वही तत्त्व ब्रह्माण्ड में है अर्थात् आकाश स्थित ब्रह्माण्ड में पाँच तत्त्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) कारक पाँच तारा ग्रह क्रम (गुरु, शनि, मंगल, शुक्र, और बुध) है सूर्य आत्मा तथा चन्द्रमा मन है इन्हीं सात पदार्थों से हमारा शरीर संचालित होता है. इन्हीं ग्रहों के स्थिति वशात् व्यक्ति का स्वरूप, गुण, धर्म, विवेक, बुद्धि आकृति आदि का निर्माण होता है. इन ग्रहों की उत्तम तथा अधम स्थिति हमारे पूर्व जन्मार्जित कर्मों के आधार पर होता है. यह कर्म तीन प्राकर के होते हैं, संचित, प्रारब्ध एवं क्रियमाण. जन्म कालीन ग्रह स्थिति उत्तम तभी होता है जब व्यक्ति का संचित कर्म उत्तम हो, और कई जन्मों में किये गये कर्मों का कालखण्डों में भोगना ही प्रारब्ध कहलाता है इन प्रारब्ध कर्म को ज्योतिष शास्त्र में दशा आदि के द्वारा ज्ञात किया जाता है. क्रियमाण कर्म को ग्रहों के वर्तमान स्थिति द्वारा ज्ञात किया जाता है अर्थात सार रूप मे कहें तो…
1. जन्मकालीन ग्रहों की योग एवं स्थिति द्वारा व्यक्तियों का प्रतिभा का बोध होता है और कर्मों में यह संचित कर्म है.
2. जन्म कुण्डली में ग्रहों की दशा के माध्यम से व्यक्ति मे प्रतिभा का विकास का बोध होता है, अर्थात् किस ग्रह की दशा व्यक्ति के जीवन काल में उत्तम फल सूचक है और किस ग्रह की दशा अधम फल सूचक है. कर्मों में यह प्रारब्ध कर्म का सूचक है.
3. जन्मकुण्डली के आधार पर वर्तमान में ग्रहों की स्थिति के द्वारा व्यक्ति के जीवन में होने वाली आकस्मिक उत्तम तथा अधम फल का बोध किया जाता है. यह एक प्रकार से आकस्मिक घटनाओं का भी द्योतक है. वर्तमान ग्रह की स्थिति वशात् व्यक्तियों को करवाए जाने वाले कर्म ही क्रियमाण कर्म है.
उपर्युक्त कर्म के तीन भेद तथा ज्योतिष के तीन महत्वपूर्ण विधा मानव जीवन के व्यक्तित्त्व का सांगोपांग अध्ययन करता है. इस सन्दर्भ में वराहमिहिर का वचन यह है कि व्यक्ति अपने ओर से अत्यधिक प्रयत्न करता है परन्तु फल वैसा नहीं मिलता है. मिलता वही है जैसा जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति है. ग्रह अपने अनुरूप व्यक्ति का निर्माण करता है. एक विचारणीय विषय है कि किसी स्कूल, समाज या नगर में एक प्रतिभावान बच्चा या व्यक्ति पहले दौड़ में आगे रहता हैं फिर उसमें से कई ऐसे होते हैं जो अत्यन्त पिछड़ जाते है या किसी न किसी गलत आदतों में पड़ जाते हैं.
दूसरी तरफ एक सामान्य बच्चा या व्यक्ति पहले दौड़ में पीछे रहता है, फिर बाद में उसमें कई बच्चे या व्यक्ति अपनी अथक प्रयत्न एवं लगन से कार्य को सम्पादन करते हुए जीवन में आगे बढ़ते चले जाते हैं कई ऐसे होते हैं जो कम से कम परिश्रम में सामान्य प्रतिभा के साथ सबसे ज्यादा सफल जीवन बना लेते हैं. एक बात और है कि इन सभी के जीवन में एक जैसी उन्नति एवं अवनति नहीं रहती हैं, इसी बात को महाकवि भास ने अपने ग्रन्थ (स्वप्नवासवदत्ता) में काल (समय) की महिमा का गुण गान बड़े रोचक ढंग से किया है, अर्थात् दैहिक शक्ति का संचार दैविक शक्ति ही करती है अन्यथा हर पैसे वाला का बच्चा संसार में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा होता, परन्तु ऐसा नहीं है. यही ज्योतिष है और यहीं से ज्योतिष का महत्व समझ में आने लगता है.
सभी स्कूली छात्रों के अभिभावकों से निवेदन करना चाहता हूं कि आप अपने बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव न बनावें. उसके आधारभूत प्रयत्न एवं परेशानियों को जानने कि कोशिश करें, बाह्य प्रयत्न एवं परेशानी उनके क्रिया कलापों से ज्ञान हो जाता है. लेकिन आन्तरिक प्रयत्न एवं परेशानियों का ज्ञान नहीं हो पाता है. तब ऐसी परिस्थिति में एक उत्तम ज्योतिषी से परामर्श लेना समुचित होगा, अन्यथा बच्चा सफर कर सकता है.
उत्तम विचार अच्छे कर्मों को करवाता है, अधिकतर बड़े से बड़े विद्वान अनुभवी लोग भी बड़े मंच पर जाने के बाद उनमें घबराहट होती है, टाँगे थर-थराने लगती हैं अतः यह परिस्थिति बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए. बच्चा अपनी शक्ति के अनुरूप प्रयत्न करता है परन्तु असफल होने पर अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को डराते हैं परन्तु ऐसा नहीं करना चाहिए. सदैव सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए. परेशानी आने पर उत्तम ज्योतिषी से परामर्श (Counselling) लेना चाहिए. मनमानी नहीं करना चाहिए बल्कि बुद्धिमानी करनी चाहिए. बुद्धिमानी करने वाले सदैव सफल होते हैं और मनमानी करने वाले सदैव विफल होते हैं, कोई भी शास्त्र बिना उद्देश्य का नहीं होता. ज्योतिष शास्त्र मनुष्य के जीवन में काल (समय) को परख कर समुचित दिशा में निर्देशन का कार्य करता है. अतः स्कूली शिक्षा में अभिभावक के परेशानियों को देखते हुए देश के सभी स्कूलों में परामर्श दाता के रूप में उत्तम ज्योतिषी का प्रयोग करना चाहिए. मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक उत्तम ज्योतिषी किसी अन्य परामर्श दाता (Counsellor) से उत्तम परामर्श दे सकेंगे.
(लेखक- प्रो० डॉ० फणीन्द्र कुमार चौधरी, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली 110016)
चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया, जिसके चलते अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संघ द्वारा प्रतिष्ठित वर्ल्ड स्पेस अवार्ड से सम्मानित किया गया.
सितंबर 6, 2019 की रात को, जब लाखों भारतीयों ने सांसें थाम रखी थीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों के साथ खड़े थे. चंद्रयान-2 मिशन के दौरान, विक्रम लैंडर की चंद्रमा पर उतरने की कोशिश विफल हो गई और यह एक सॉफ़्टवेयर गलती के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे प्रज्ञान रोवर भी खो गया. इस असफलता के बावजूद, यह क्षण भारत की अंतरिक्ष यात्रा की एक महत्वपूर्ण कहानी बन गया, जो मेहनत और संकल्प की प्रतीक था. जब मिशन असफल हुआ और कमरे में सन्नाटा छा गया, तो सबको डर लगने लगा कि प्रधानमंत्री कैसे प्रतिक्रिया देंगे और भारत की अंतरिक्ष योजनाओं का क्या होगा?
इस अनिश्चितता के क्षण में, प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ ऐसा किया जो भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर स्थायी प्रभाव छोड़ गया, उन्होंने ISRO के प्रमुख को गले लगाया और निराशा की बातें करने के बजाय, साहस और आशा का संदेश दिया. अगले दिन, उनकी बातों ने पूरे देश को प्रोत्साहित किया. यह कोई सामान्य प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक प्रेरणादायक क्षण था जो भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए एक नया मोड़ साबित हुआ. प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी ने भारत की अंतरिक्ष तकनीक में नए युग की शुरुआत की.
23 अगस्त, 2023 को, चंद्रयान-3 के साथ उस संकल्प को सफलता मिली. विक्रम लैंडर का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग शाम 6:03 बजे IST पर सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी; यह राष्ट्रीय गर्व का पल था. प्रज्ञान रोवर के बाद में चंद्रमा की सतह की खोज ने ISRO के वैज्ञानिकों की प्रतिभा और समर्पण को दर्शाया. इस उपलब्धि को मान्यता देने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी ने 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया—एक दिन जो अगले पीढ़ी को विज्ञान और तकनीक में करियर की ओर प्रेरित करने के लिए समर्पित है. एक सम्मानजनक श्रद्धांजलि के रूप में, उन्होंने लैंडिंग स्थल का नाम “शिव शक्ति” रखा और चंद्रयान-2 द्वारा बनाई गई प्रभाव स्थल को “तिरंगा” नाम दिया, जो एक ऐसा नाम है जो एक राष्ट्र की अडिग भावना को दर्शाता है जो असफलताओं से निराश नहीं होता.
पिछले महीने, चंद्रयान-3 की सफलता, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया, को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संघ द्वारा प्रतिष्ठित वर्ल्ड स्पेस अवार्ड से सम्मानित किया गया. यह मान्यता भारत की तकनीकी क्षमता को पुष्ट करती है और इसे अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नेता के रूप में मजबूत करती है, भविष्य की चंद्रमा की खोजों, जिसमें मानव अन्वेषण भी शामिल है, के लिए रास्ता बनाती है.
प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता के तहत, भारत एक शक्तिशाली अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है, जिसका वैश्विक महत्व है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसे सस्ते अंतरिक्ष मिशनों के लिए जाना जाता है, हमेशा से एक नेता रहा है. अंतरिक्ष अन्वेषण की बदलती गतिशीलता को पहचानते हुए, मोदी सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं. न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन और ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) जैसी पहलों के माध्यम से, भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्धी वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता दर्शाई है. यह आगे की सोच भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण और तकनीक में अग्रणी बनाए रखती है.
मोदी की नेतृत्व में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियाँ कई और विविध हैं. इसमें स्वदेशी लॉन्च क्षमता, चंद्रमा और मंगल पर सफल मिशन, विभिन्न कक्षाओं में उपग्रहों की लॉन्चिंग, और मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा अंतरिक्ष इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास शामिल है. इन उपलब्धियों की गति और पैमाना अद्वितीय हैं. मार्च 2024 तक, ISRO ने कुल 124 अंतरिक्ष यान मिशन किए हैं, जिनमें 17 उपग्रह निजी खिलाड़ियों या छात्रों द्वारा विकसित किए गए हैं और 432 विदेशी उपग्रहों को लॉन्च किया गया है; इसके अतिरिक्त, ISRO ने 96 लॉन्च मिशन, छह पुनः-प्रवेश मिशन, और POEMS जैसे प्रोजेक्ट भी पूरे किए हैं.
ISRO की निरंतर नवाचार की एक प्रमुख मिसाल है आदित्य-L1 मिशन, जो 2 सितंबर, 2023 को लॉन्च हुआ। आदित्य-L1, जो 6 जनवरी, 2024 को अपने निर्धारित कक्ष L1—पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर—पर पहुंच गया, सूरज के वातावरण के रहस्यों की खोज करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह मिशन सूर्य की कोरोना और क्रोमोस्फियर को समझने, कोरोना को लाखों डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने की प्रक्रियाओं की जांच करने, और भविष्य के सौर मिशनों के लिए स्वदेशी तकनीकों को विकसित करने का लक्ष्य रखता है.
मोदी सरकार की रणनीतिक दृष्टि और अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अडिग प्रतिबद्धता ने भारत को वैश्विक मंच पर प्रमुख स्थिति में ला खड़ा किया है. यह दृष्टि केवल अन्वेषण तक सीमित नहीं है; इसमें उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का विकास भी शामिल है, जैसे कि एंटी-सैटेलाइट तकनीक (ASAT)। 2019 में सफल मिशन शक्ति परीक्षण के माध्यम से, भारत ने ASAT में अपनी क्षमताओं को दिखाया, और ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. यह रणनीतिक कदम भारत की अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा और बाहरी अंतरिक्ष के जिम्मेदार उपयोग पर वैश्विक वार्तालाप में भागीदारी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
मोदी की तकनीकी नवाचार की दृष्टि के अनुसार, PSLV-C43 मिशन, जिसने नवंबर 2018 में हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (HySIS) को लॉन्च किया, पृथ्वी की सतह का अध्ययन करने में एक महत्वपूर्ण प्रगति है. यह मिशन विभिन्न तरंग दैर्ध्यों पर हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कृषि, वनवृक्ष, भूगोल और आपदा प्रबंधन जैसे कई क्षेत्रों में उपयोगी है. HySIS और Astrosat तथा KalamSAT जैसे अन्य मिशन भारत की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मंच पर बढ़ती भूमिका को दर्शाते हैं.
मोदी सरकार के तहत, गगनयान मिशन बड़े ध्यान से प्रगति कर रहा है और महत्वपूर्ण मील के पत्थर हासिल कर रहा है. गगनयान की सफलता भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं वाले चौथे देश (अमेरिका, रूस और चीन के बाद) के रूप में मान्यता दिलाएगी और यह भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.
आगे देखते हुए, मोदी की मार्गदर्शन में भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में और प्रगति के लिए तैयार है. भारत 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर उतारने की महत्वाकांक्षी योजना बना रहा है. 2040 तक 100 अरब डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था प्राप्त करने की दिशा में ये मील के पत्थर भारत को वैश्विक अंतरिक्ष नेता के रूप में स्थापित करेंगे और नए युग की अंतरिक्ष अन्वेषण और नवाचार की शुरुआत करेंगे.
सीमित बजट और आयात पर तकनीकी निर्भरता जैसी चुनौतियों के बावजूद, मोदी सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता और बढ़ती निजी क्षेत्र की भागीदारी भविष्य के लिए आशाजनक है. नीतिगत सुधारों, तकनीकी उन्नति, और महत्वाकांक्षी मिशनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत मोदी के नेतृत्व में वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर एक प्रमुख शक्ति बनने के लिए तैयार है.
भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण में महत्वाकांक्षी प्रगति केवल सफल मिशनों और तकनीकी उन्नति तक सीमित नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की अनुमति देकर वैश्विक सहयोग और नवाचार के लिए नए रास्ते खोले हैं. यह रणनीतिक कदम भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए है और इसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को आकर्षित करने, स्थानीय स्टार्टअप्स को समर्थन देने, और उच्च-तकनीक अनुसंधान और विकास को प्रेरित करने के रूप में सराहा गया है. यह नीति बदलाव न केवल निजी निवेश को आकर्षित करता है, बल्कि भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी बनाता है और नवाचार और उत्कृष्टता को बढ़ावा देता है। ISRO के पास आने वाले अंतरिक्ष मिशनों की महत्वाकांक्षी सूची है, जैसे NISAR, गगनयान 1, गगनयान 2, शुक्रयान (Venus Orbiter Mission), मंगलयान 2 (Mars Orbiter Mission 2) और चंद्रयान-4, इत्यादि.
(लेखक- तुषिन ए. सिन्हा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, BJP और प्रसिद्ध लेखक)