अश्नीर ग्रोवर को लेकर कोर्ट ने कहा था कि वो उनके व्यवहार से स्तब्ध हैं. सबसे गौरतलब बात ये है कि कोर्ट इस बात से ज्यादा स्तब्ध था कि मना करने के बाद भी उन्होंने ऐसा किया.
सोशल मीडिया पर अक्सर चर्चा में रहने वाले भारत पे के पूर्व एमडी अश्नीर ग्रोवर पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक असंसदीय पोस्ट के लिए 2 लाख रुपये का फाइन लगाया है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि अश्नीर ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि वो ऐसा नहीं करेंगे. बावजूद उसके उन्होंने भारत पे के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. इसके लिए उन्होंने कोर्ट से माफी मांगी है. कोर्ट ने उन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
कोर्ट ने अश्नीर को लेकर क्या कहा?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि वो अश्नीर ग्रोवर के व्यवहार से स्तब्ध हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि वो उसके आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में उन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगा रहे हैं. गौरतलब है कि अश्नीर ग्रोवर ने हाल ही में भारत पे की सीरिज ई फंडिंग राउंड में शामिल इक्विटी आवंटन और दूसरी जानकारियों को सोशल मीडिया पर साझा कर दिया था. इसके बाद भारत पे की मूल कंपनी रेजिलिएंट इनोवेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामला दायर करते हुए कोर्ट से उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई थी.
भारत ने जुटाए थे इस फंडिंग से इतने करोड़ रुपये
टाइगर ग्लोबल की लीडरशिप में और ड्रैगनियर इंवेस्टर ग्रुप और दूसरे प्रतिभागियों की मौजूदगी में भारत पे इस राउंड में 370 मिलियन डॉलर की रकम जुटाने में कामयाब रही थी. इतनी बड़ी फंडिंग को जुटाए जाने के कारण भारत पे का वैल्यूएशन 2.86 बिलियन डॉलर हो गया था. हालांकि ट्वीट करने के कुछ देर बाद अश्नीर ने इसे हटा दिया था.
दिल्ली पुलिस के सामने भी पेश हुए थे अश्नीर
अश्नीर ग्रोवर इन दिनों कई तरह की परेशानियों में घिरे हुए हैं. दिल्ली हाईकोर्ट की इस इकोनॉमिक विंग के सामने भी पेश हो चुके हैं. ये फिनटेक यूनिकॉर्न के साथ 81 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के संबंध में था. उन पर ईओब्डल्यू ने इस मामले में पिछली तारीखों के चालान का इस्तेमाल करके पैसा निकालने के मामले की जांच कर रहा था.
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दिल्ली मेट्रो में रील्स बनाने वाले सावधान हो जाएं, नहीं तो अगली कार्रवाई उनके खिलाफ हो सकती है। मेट्रो में नियमों के उल्लंघन को लेकर डीएमआरसी ने सख्ती दिखाई है.
DMRC की तरफ से मेट्रो ट्रेन और प्लेटफॉर्म पर अश्लील हरकत, डांस व दूसरे यात्रियों को असहज करने वाली हरकतों को लेकर कई बार हिदायत देते हुए सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है लेकिन अभी भी आए दिनों दिल्ली मेट्रो से लगातार सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहे हैं. अनेक प्रयास के बावजूद ऐसे लोगों पर कोई खास प्रभाव नहीं देखा जा रहा है. DMRC ने ऐसी ऊटपटांग हड़कत करने वाले 1600 लोगों पर मामला दर्ज किया है. पिछले साल भी DMRC ने बड़ी कार्रवाई की थी, लेकिन इस बार पिछले साल के मुकाबले तीन फीसदी ऐसे मामले बढ़े हैं.
1647 लोगों पर लगाया गया जुर्माना
दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- सिर्फ रील्स बनाने वाले लोगों का डेटा अलग से उपलब्ध नहीं था. अभी जिन लोगों कार्रवाई की गई है, उनमें उपद्रव पैदा करने, ट्रेन के फर्श पर बैठना और ट्रेन के अंदर खाना खाने जैसे अपराध भी शामिल हो सकते हैं. आंकड़ों के अनुसार, मेट्रो रेलवे (संचालन और रखरखाव) अधिनियम की धारा 59 के तहत उपद्रव पैदा करने के लिए 1,647 जुर्माना जारी किए गए.
पिछले साल 1600 लोगों पर मामले दर्ज
DMRC ने पिछले साल, ऐसी घटना के लिए करीब 1600 लोगों पर मामला दर्ज किया था. DMRC के मुताबिक, अप्रैल में 610, मई में 518 और जून में 519 मामले दर्ज किए गए हैं. डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक विकास कुमार ने बताया कि मेट्रो क्षेत्र में उपद्रव करने वाले लोगों को दंडित किया है. उन्होंने कहा, "हम अपनी मशीनरी का उपयोग करते हैं ताकि मेट्रो परिसर में इस तरह की घटनाएं न हों. हमारे पास दंड का प्रावधान है, अगर कोई मेट्रो परिसर में उपद्रव करता है और हम उन्हें दंडित करते हैं
कई तरह से चलाए जा रहे अभियान
DMRC ने यात्रियों को रील बनाने और असुविधा पैदा करने से रोकने के लिए कई मेट्रो स्टेशनों पर पोस्टर भी लगाए हैं. अप्रैल में, डीएमआरसी ने दिल्ली पुलिस से एक ट्रेन के अंदर दो महिलाओं द्वारा एक-दूसरे पर रंग लगाने का वीडियो ऑनलाइन सामने आने के बाद जांच करने को कहा था. होली से पहले सामने आए इस वीडियो की यात्रियों के एक बड़े वर्ग ने आलोचना की थी. डीएमआरसी ने उस समय कहा था कि वह यात्रियों को किसी भी ऐसी गतिविधि में शामिल होने से रोकने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के अभियान चला रहा है, जिससे अन्य यात्रियों को असुविधा हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को फायदा होगा.
खनिज प्रधान राज्यों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत की खबर आई है. सुप्रीम कोर्ट ने खनिज वाली जमीनों पर रॉयल्टी लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों के पास ऐसा करने की क्षमता और शक्ति है. सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला ओडिशा, झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे खनिज समृद्ध राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है. क्योंकि ये राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में काम करने वाली माइनिंग कंपनियों से खनिजों पर टैक्स वसूल सकेंगी.
रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है: SC
9 जजों की बेंच का ये ऐतिहासिक फैसला 8:1 के बहुमत से आया है. जिसमें बेंच की अगुवाई कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रॉयल्टी टैक्स के समान नहीं है. जबकि जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले पर अपनी असहमति जताई. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की इजाजत देने से 'आय कमाने के लिए राज्यों के बीच एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, इससे बाजार का शोषण किया जा सकता है, इससे खनिज विकास के संदर्भ में संघीय प्रणाली टूट जाएगी'. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को खनिज समृद्ध राज्यों की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में खनिज-युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखा है.
माइनिंग कंपनियों ने राज्य के अधिकार पर उठाए थे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्राइवेट माइनिंग कंपननियों की तरफ से फाइल की गईं 80 से ज्यादा अपील पर सुनवाई की. प्राइवेट माइनिंग कंपनियों ने राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मिनरल्स पर सेस लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को चुनौती दी थी. माइनिंग कंपनियों के वकीलों की दलील थी कि मिनरल्स पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार को है. उन्होंने यह दलीली भी दी कि मिनरल्स पर सेस लगाने से प्राइवेट माइनिंग कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिसका असर मिडनरल डेवलपमेंट पर पड़ता है.
क्या था विवाद?
अब जरा मामला समझते हैं, दरअसल इसे लेकर पहले कंफ्यूजन था कि राज्यों में मौजूद खनिज जमीन पर जो मिनरल्स निकाला जा रहा है, क्या राज्य उस पर टैक्स लगा सकते हैं या नहीं. 1989 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया था कि रॉयल्टी एक टैक्स है. सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले में 1989 के उस फैसले को पलटते हुए कहा कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है और राज्यों के पास ये शक्ति है कि वो अपनी जमीन पर मौजूद खनिज पर पर टैक्स लगा सकें, जो भी खनिज उनकी जमीन से निकाला जा रहा है वो उस पर सेस ले सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केंद्र सरकार और माइनिंग कंपनियों के लिए एक झटका है. क्योंकि माइनर्स को अब ज्यादा टैक्स देना होगा और केंद्र सरकार खनिजों पर टैक्स लगाने के मामले में अपनी पकड़ खो देगी.
अंजलि बिरला की तरफ दाखिल मुकदमे में कहा गया कि सोशल मीडिया के जरिए जानबूझकर झूठी और अपमानजनक जानकारी फैलाने का इरादा है, जो उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘X’ और ‘Google’ को निर्देश दिया है कि वे इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस (IRPS) अधिकारी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि बिरला के खिलाफ आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट 24 घंटे के भीतर हटाएं. जस्टिस नवीन चावला ने मामले में अंतरिम आदेश पारित करते हुए अज्ञात पक्षों को याचिकाकर्ता अंजलि बिरला के खिलाफ मानहानिकारक सामग्री को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पोस्ट करने, प्रसारित करने, सर्कुलेट करने, ट्वीट करने या रीट्वीट करने से भी रोक दिया. कोर्ट ने इस मामले में ‘एक्स’, ‘गूगल’, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अज्ञात पक्षों को भी नोटिस जारी किया है.
मानहानि केस में कोर्ट ने दिया आदेश
हाई कोर्ट ने अंजलि की ओर से दायर मानहानि मुकदमे की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया. इसी में दाखिल अर्जी में अंजलि ने सोशल मीडिया पर उन पोस्ट को हटाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने पिता के प्रभाव के कारण पहले ही अटेंप्ट में UPSC एग्जाम पास कर लिया और IAS अधिकारी बन गईं. अंजलि के वकील ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने यूपीएससी के सिविल सर्विस एग्जाम (SSE) दिए थे और उनका चुनाव 2019 की में हुआ था. वह IRPS अधिकारी के रूप में भारतीय रेलवे में शामिल हुईं.
2019 में पास की थी UPSC परीक्षा
अपनी याचिका में, अंजलि बिरला ने दावा किया कि अपमानजनक सोशल मीडिया पोस्ट उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे थे और सार्वजनिक कार्यालय में उनकी स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे थे. अंजलि बिरला ने उनके बारे में भ्रामक और झूठी जानकारी के प्रसार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था. उन्होंने सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ डाले गए पोस्ट को हटाने की मांग की है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि ने 2019 में यूपीएससी परीक्षा दी थी. पिछले साल 2023 में उन्होंने ट्रेनिंग पूरी की। वह आईआरपीएस अधिकारी हैं. लेकिन, सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि अंजलि एक आईएएस अधिकारी हैं.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक चेक बाउंस (Cheque Bounce) की सुनवाई करते हुए लोअर कोर्ट और आम लोगों के लिए एक सलाह दी है. इस सलाह को मानते हुए लोग कोर्ट आने के चक्कर से बच सकते हैं.
आजकल डिजिटल पेमेंट के चलते चेक के आदान-प्रदान का चलन कम हुआ है, लेकिन अभी भी कई मामलों में चेक बाउंस (Cheque Bounce) के चलते लोगों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं. अगर आपका चेक बाउंस हुआ है, या आपको किसी ने चेक दिया और उसका पेमेंट क्लियर ही नहीं हुआ. तो आपको जानकारी होगी कि चेक बाउंस के मामलों में कितनी बार कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चेक बाउंस के ही एक मामले की सुनवाई के दौरान एक जबरदस्त सलाह दी है, जिसकी वजह से आप चेक बाउंस के मामले में कोर्ट के झंझट से बच सकते हैं. तो आइए जानते हैं सुप्रीम ने क्या सलाह ही है?
बड़ी संख्या में कोर्ट में लंबित पड़े चेक बाउंस के मामले
देश की विभन्न कोर्ट में चेक बाउंस से जुड़े मामले बड़ी संख्या में लंबित पड़े हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ‘गंभीर चिंता’ व्यक्त की है. ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस के मामलों के तेजी से निपटारे के लिए अपनी सलाह भी दी.
कोर्ट ने अभियुक्त की सजा को किया रद्द
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस मामले की सुनवाई के बाद मामले में अभियुक्त (Accused) पी. कुमारसामी नाम के एक व्यक्ति की सजा रद्द कर दी. पीठ ने अपने आब्जर्वेशन में पाया कि दोनों पक्षों के बीच चेक बाउंस के मामले में समझौता हो चुका है. वहीं, अभियुक्त की ओर से शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
सजा देने की जगह निपटान को दी जाए प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि देश की विभिन्न कोर्ट में चेक बाउंस से जुड़े मामले बड़ी संख्या में लंबित हैं. ये देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है. इसे ध्यान में रखते हुए इनका निपटान करने के तरीके को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ना कि सजा देने के तरीके पर फोकस करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को कानून के दायरे में रहते हुए निपटान को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए, अगर दोनों पक्ष ऐसा करने के इच्छुक हैं. कोर्ट के अलावा दोनों पक्ष भी आपस में मिलकर चेक बाउंस जैसे मामलों का निपटान कर सकते हैं, जिससे कोर्ट आने से बचा जा सके.
इन सब मामलों में भी काम आएगी ये सलाह
सुप्रीम कोर्ट की ये सलाह सिर्फ चेक बाउंस के केस में ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर लिखे गए सभी तरह के वचन पत्रों में विवाद की स्थिति पैदा होने पर मामलों के निपटारे में काम आ सकती है. पीठ ने 11 जुलाई को जो आदेश पारित किया, उसमें ये भी कहा कि समझौता योग्य अपराध ऐसे होते हैं, जिनमें प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच समझौता हो सकता है. हमें यह याद रखना होगा कि चेक का बाउंस होना एक रेग्युलेटरी क्राइम है जिसे केवल सार्वजनिक हित को देखते हुए अपराध की श्रेणी में लाया गया है, ताकि संबंधित नियमों की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके.
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Supreme Court ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में अपने फ्लैट का कब्जा न मिलने से परेशान घर खरीदारों को बड़ी राहत दी है. अब होम लोन की ईएमआई नहीं चुकाने पर बैंक और बिल्डर उन्हें परेशान नहीं करेंगे.
बैंकों व फाइनेंस कंपनियों से परेशान हो रहे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region-NCR) के घर खरीदारों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इंटेरेस्ट सबवेंशन स्कीम (Interest subvention scheme) के तहत घर खरीदने वाले खरीदारों को बकाए के लिए बैंक या वित्तीाय संस्थान परेशान नहीं कर सकते हैं. इसके अलावा उनके खिलाफ चेक बाउंस का भी कोई मामला नहीं चलेगा. तो आइए जानते हैं ये पूरा मामला क्या है और कोर्ट ने ये फैसला क्यों सुनाया है?
क्या है पूरा मामला
एक सबवेंशन स्कीम (Interest subvention scheme) के तहत, बैंक सीधे बिल्डरों को लोन का अमाउंट देते हैं, जो बदले में खरीदारों द्वारा उनके फ्लैटों का कब्जा लेने तक ईएमआई का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. हालांकि कई बार बिल्डरों ने इन भुगतानों में चूक की है, जिसकी वजह से बैंकों को खरीदारों से दोबारा भुगतान की मांग करनी पड़ी है. ऐसे ही एक मामले में बैंक और बिल्डरों द्वारा परेशान किए जाने पर एनसीआर में घर खरीदने वालों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उन्हें वहां से राहत नहीं मिली, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि जिन लोगों ने इंटेरेस्ट सबवेंशन स्कीम के तहत फ्लैट बुक किया है और अभी तक उन्हें कब्जा नहीं मिला है, ऐसे स्थिति में उन घर खरीदारों के खिलाफ कोअर्सिव एक्शन नहीं लिए जा सकते हैं. इसका मतलब हुआ कि ऐसे घर खरीदारों को ईएमआई के पेमेंट या चेक बाउंस जैसे मामलों में न तो बिल्डर परेशान कर सकते हैं, न ही बैंक उन्हें परेशान कर सकते हैं.
क्या है इंटेरेस्ट सबवेंशन स्कीम?
इंटेरेस्ट सबवेंशन स्कीम (Interest subvention scheme) के तहत बैंक सीधे बिल्डर को लोन डिस्बर्स करते हैं. जब तक बिल्डर फ्लैट का कब्जा घर खरीदार को नहीं देते हैं, तब तक ईएमआई भरने की जिम्मेदारी बिल्डर की होती है. इस स्कीम के तहत ऐसे कई मामले सामने आ रहे थे, जिनमें बिल्डर ने डिफॉल्ट कर दिया है और उसके बाद बैंक पेमेंट के लिए खरीदारों के पास पहुंच रहे हैं. इसके चलते घर खरीदारों को परेशानियां हो रही थीं.
कोर्ट ने बिल्डर्स को दिया ये आदेश
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यों वाली पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए अब तक लिए गए सभी कोअर्सिव एक्शन पर रोक लगाने का आदेश दिया. यह रोक नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट, 1881 के सेक्शन 138 के तहत मिलीं शिकायतों पर भी लागू है. सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों को राहत देने के साथ ही बिल्डर्स को फटकार भी लगाई है. बिल्डर्स को 2 सप्ताह के भीतर शपथपत्र दाखिल कर अपने एसेट की जानकारी देने के लिए कहा गया है. अगर बिल्डर इस आदेश का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने एक्शन लेने की भी चेतावनी दी है.
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महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएस पूजा खेडकर की मुश्किलों में इजाफा हो गया है. संघ लोक सेवा आयोग ने उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई है.
ट्रेनी IAS ऑफिसर पूजा खेडकर (Trainee IAS Officer Puja Khedkar) की नौकरी जाने की पूरे आसार बन गए हैं. तमाम आरोपों में घिरीं खेडकर के खिलाफ पहले से ही जांच चल रही है और इस बीच संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने उन्हें बड़ा झटका दिया है. UPSC ने इस विवादास्पद IAS के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है. इसके अलावा, संस्था ने नोटिस भेजकर उनसे पूछा है क्यों न आपकी उम्मीदवारी को रद्द कर दिया जाए? पूजा को भविष्य में होने वालीं परीक्षाओं से भी वंचित किया जा सकता है.
पूजा पर लगे कई आरोप
महाराष्ट्र की ट्रेनी IAS पूजा खेडकर पर तमाम आरोप हैं. इसमें ओबीसी कोटे के लिए धोखाधड़ी और तैनाती के तुरंत बाद नियम विरुद्ध मांगें प्रमुख हैं. पुणे कलेक्टर की शिकायत के बाद जब पूजा खेडकर की फाइल खुली, तो एक के बाद एक गड़बड़ियां सामने आती चली गईं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूपीएससी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पूजा खेडकर के खिलाफ विस्तृत जांच कराई गई है. इसमें पता चला है कि वह सिविल सेवा परीक्षा-2022 में नियमों का उल्लंघन करके बैठी थीं. जानकारों का मानना है कि UPSC के एक्शन के बाद पूजा खेडकर की नौकरी बचना बेहद मुश्किल है. अब केवल कोई चमत्कार ही उनसे IAS का तमगा छिनने से रोक सकता है.
इस तरह की धोखेबाजी
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने बताया है कि पूजा खेडकर की परीक्षा में बैठने की लिमिट पूरी हो गई थी. इसलिए उन्होंने धोखाधड़ी करते हुए अपनी पहचान बदल ली. उन्होंने अपना, माता-पिता का नाम, अपनी तस्वीर और हस्ताक्षर तक बदल लिए. इसके अलावा, अपना मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी और पता भी बदल डाला. इस तरह उन्हें निर्धारित सीमा से ज्यादा बार परीक्षा में बैठने का मौका मिला. UPSC ने कहा कि जांच के बाद पूजा खेडकर के खिलाफ FIR दर्ज कराई है. साथ ही नोटिस जारी करके उनसे पूछा गया है कि क्यों न आपके चयन को रद्द कर दिया जाए? इससे पहले, उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एडमिनिस्ट्रेशन एकेडमी ने पूजा खेडकर का महाराष्ट्र से ट्रेनिंग प्रोग्राम रद्द कर दिया था.
परिवार भी रडार पर
पूजा खेडकर का पूरा परिवार इस समय जांच एजेंसियों के रडार पर है. किसानों पर पिस्टल तानने वालीं पूजा की मां को गुरुवार को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया है. मनोरमा खेडकर को पुलिस ने रायगढ़ के महाड के एक होटल से गिरफ्तार किया. मनोरमा यहां पहचान बदलकर रह रही थीं. पिस्टल लहराने का वीडियो वायरल होने के बाद से मनोरमा खेडकर गायब चल रही थीं. पुलिस पर उनकी गिरफ्तारी का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. उधर, पूजा के पिता दिलीप खेडकर के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने जांच शुरू कर दी है. ACB को दिलीप के खिलाफ सबूत मिले हैं कि उन्होंने अपनी सेवा के दौरान आय से अधिक संपत्ति अर्जित की. वह 2020 में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे. दिलीप लगातार अपनी बेटी का बचाव करते आ रहे हैं.
मुंबई पुलिस की प्रॉपर्टी सेल ने मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है. जिसने शेयर बाजार में निवेश पर उच्च रिटर्न का वादा करके 400 से अधिक लोगों को ठगा था
मुंबई क्राइम ब्रांच के प्रॉपर्टी सेल ने मध्य प्रदेश से आशीष शाह नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, जो कि लोगों को शेयर मार्केट से मोटा मुनाफा दिलाने का झांसा देकर उन्हें चुना लगाने का काम करता था. आरोपी ने 500 लोगों के साथ करीब 170 करोड़ का फर्जी इन्वेस्टमेंट स्कैम किया है. पुलिस के मुताबिक, मुंबई के वर्सोवा का रहने वाला आशीष शाह निवेशकों को 84% तक रिटर्न्स देने का वादा करता था और अपने आप को सेबी रजिस्टर्ड एजेंट बताता था. लोगों का भरोसा जीतने के बाद वो ठगी की वारदात को अंजाम देता था.
छतरपुर से गिरफ्तार हुआ आरोपी
जब लोगों को आशीष से मनचाहा रिटर्न नहीं मिला था, तो उन्होंने उसके खिलाफ मई 2024 में वर्सोवा पुलिस स्टेशन में चीटिंग की शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद केस को सीधा क्राइम ब्रांच को सौप दिया. रिपोर्ट्स के अनुसार आरोपी ने करीब 400 लोगों के साथ करीब 170 करोड़ रुपए का चूना लगा चुका है. आशीष शाह को पकड़ने के लिए मुम्बई क्राइम ब्रांच ने करीब 3 टीम तैनात किए थे, जिन्होंने आरोपी को मध्य प्रदेश के छतरपुर से गिरफ्तार किया.
फर्जी कंपनी से लगाया चूना
पुलिस ने जब छानबीन शुरू की तब मालूम हुआ कि आरोपी आशीष शाह, समर्याश ट्रेडर्स एलएलपी नामक कंपनी शुरू की जिसमें, वो निवेशकों से पैसे कोविड के दौरान 2022 से मई 2024 तक लोगों के पैसे निवेश शेयर मार्केट में निवेश करने की बात कही. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.शुरुआत में लोगों को रिटर्न्स/मुनाफे के नाम पर अच्छे पैसे दिए गए, लेकिन उसके कुछ दिनों बाद पैसे मिलने रुक गए और लोगों को ठगी का शक होने लगा.
आरोपी को गिरफ्तार कर पुलिस ने मूवेबल और इमोवेबल प्रॉपर्टीज को आइडेंटिफाई किया है. जिनमें आरोपी के नाम से 2 फ्लैट, 2 लैंड पार्सल, गुजरात में 4 गाडियां और 6 बैंक अकाउंट्स 25 लाख कैश और करीब 2 किलो गोल्ड बार सीज किए हैं. पुलिस ने ब्रीच ऑफ ट्रस्ट, चीटिंग और एमआईडीपी (महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ इंट्रेस्ट ऑफ डिपॉजिटर्स) समेत कई धाराएं लगाई है.
सरकार की ये सलाह जरूर मानें
इन्वेस्टमेंट फ्रॉड के बढ़ते संख्या को देख सरकार, मार्केट रेगुलेटर सेबी, आरबीआई और एक्सचेंज समय समय से लोगों में अवेयरनेस कर रहे हैं कि मार्केट में निवेश करने से पहले सारी जानकारी एक बार खुद जरूर चेक करें और सोच कर, समझ कर निवेश करें.
हैकरों ने बैंक का RTGS सिस्टम हैक कर 16 करोड़ से ज्यादा की राशि उड़ा दी. साइबर क्राइम थाने में बैंक के आईटी मैनेजर ने शिकायत दर्ज कराई है.
दिल्ली-एनसीआर के नोएडा के सेक्टर 62 स्थित नैनीताल बैंक लिमिटेड में साइबर अटैक का एक बड़ा मामला सामने आया है. हैकरों ने बैंक के रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) चैनल को हैक करके 16 करोड़ 1 लाख 83 हजार 261 रुपये ट्रांसफर कर लिए हैं. जानकारी के मुताबिक, हैकरों ने ये पैसे 89 बैंक खातों में ट्रांसफर किए हैं. इस मामले में साइबर क्राइम थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है. प्राथमिक जांच में पता चला है कि बैंक के सर्वर को हैक कर पूरी जालसाजी की घटना को अंजाम दिया गया. जब बैंक में बैलेंस शीट का मिलान किया गया, तब इस जालसाजी के बारे में पता चला.
बैलेंस सीट के मिलान में हुआ खुलासा
यह खुलासा बैंक की बैलेंस सीट के मिलान के दौरान हुआ. इसके बाद बैंक के आईटी मैनेजर सुमित श्रीवास्तव ने नोएडा के साइबर क्राइम थाने में केस दर्ज कराया है. इसके अलावा बैंक की ओर मामले की जांच के लिए सर्ट-इन (इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम) से भी आग्रह किया है. आईटी मैनेजर सुमित कुमार श्रीवास्तव ने नोएडा पुलिस को दिए शिकायत में बताया कि पिछले महीने 17 जून को आरटीजीएस खातों के बैलेंस सीट का मिलान किया गया. इस दौरान पाया गया कि मूल रिकार्ड में 36 करोड़ 9 लाख 4 हजार 20 रुपये का अंतर है.
सर्वर में छेड़छाड़ कर वारदात
मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच कराई गई. इसमें बैंक के सर्वर में कुछ संदिग्ध गतिविधियां चिन्हित की गई. शुरूआती जांच में शक हुआ कि सिस्टम लाइन में गड़बड़ी की वजह से रकम का मिलान नहीं हो पा रहा, लेकिन 20 जून को आरबीआई प्रणाली को रिव्यू किया गया तो पता चला कि 84 बार संदिग्ध लेनदेन हुई है. आईटी मैनेजर के मुताबिक यह सारी लेनदेन 17 से 21 जून के बीच हुई हैं. आरटीजीएस सेटलमेंट के जरिए रुपये खाते से निकाले गए हैं.
पुलिस ने दर्ज किया केस
यह राशि कई बैंकों के अलग अलग खातों में ट्रांसफर हुई हैं. इस खुलासे के बाद उन सभी बैंक खातों को फ्रीज कराते हुए खाता धारकों को KYC कराने को कहा गया है. इस प्रक्रिया के तहत बैंक ने 69 करोड़ 49 हजार 960 रुपये तो रिकवर कर लिए हैं, लेकिन अभी 16 करोड़ 1 लाख 83 हजार 261 रुपये की ठगी की रकम रिकवर नहीं हो सकी है. नोएडा साइबर क्राइम विंग के एसीपी विवेक रंजन राय के मुताबिक बैंक प्रबंधन की शिकायत पर अज्ञात जालसाजों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है. पुलिस जालसाजों के कंप्यूटर का आईपी एड्रेस ट्रेस कर बदमाशों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. पुलिस को बदमाशों के कुछ डंप मिले हैं. पुलिस मामले की जांच कर रही है.
एक ग्राहक को आर्डर की डिलीवरी नहीं करने के मामले में कंज्यूमर कोर्ट ने जोमैटो (Zomato) को दोषी माना है. कोर्ट ने जोमैटो से ग्राहक को 60 हजार रुपये हर्जाना देने के लिए कहा है.
फूड डिलीवरी ऐप जोमैटो (Zomato) को कर्नाटक में एक महिला ग्राहक को मोमो की डिलीवरी न करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. दरअसल, ग्राहक ने मोमो की डिलीवरी न करने पर जोमैटो के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट का रूख किया. इसके बाद कोर्ट ने जोमैटो को 60 हजार रुपये का हर्जाना भरने का आदेश दिया है. आइए, आपको पूरे मामले की जानकारी देते हैं.
कंफर्मेशन आने के बाद भी डिलीवर नहीं हुआ ऑर्डर
जोमैटो (Zomato) को मोमो की डिलीवरी न करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. दरअसल, कर्नाटक के एक ग्राहक ने जोमैटो पर मोमो आर्डर किए और उसके पास डिलीवरी का कंफर्मेशन भी आया, लेकिन मोमोज की डिलीवरी नहीं हुई. इसके बाद ग्राहक ने जोमैटो के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और ग्राहक की शिकायत पर कोर्ट ने जोमैटो को हर्जाना भरने के आदेश दिए.
ये है पूरा मामला
यह मामला है कर्नाकट के धारवाड़ इलाके का है. वहां रहने वाली शीतल नाम की महिला ने 31 अगस्त 2023 को जोमैटो प्लेटफार्म पर मोमो का आर्डर दिया. वहां से आर्डर कंफर्म भी हुआ, लेकिन घंटों बीतने के बाद भी उसे मोमो की डिलीवरी नहीं मिली. इसके बाद शीतल ने जोमैटो से और जिस रेस्टोरेंट में आर्डर दिया था, उससे संपर्क किया. बार बार फोन करने पर जोमैटो ने कहा कि वह 72 घंटे वेट करे, कंपनी मामले की जांच कर रही है. उसके बाद भी कोई समाधान नहीं निकला. इसके बाद शीतल ने सितंबर 2023 में जोमैटो के खिलाफ धारवाड़ के जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (District Consumer Disputes Redressal Commission-DCDRC) का दरवाजा खटखटाया और इस पूरे मामले की शिकायत देकर कार्रवाई की मांग की.
9 महीने बाद रिफंड किए ऑर्डर के पैसे
जोमैटो ने कंज्यूमर कोर्ट में अपनी किसी भी तरह की गलती से इनकार किया. हालांकि, कोर्ट ने जोमैटो के महीनों तक कोई कदम ना उठाने पर सवाल उठाए, जबकि शुरुआत में जोमैटो ने मामले को सुलझाने के लिए समय मांगा था. आखिरकार मई 2024 में जोमैटो ने शीतल को मोमोज की कीमत (133.25 रुपये) वापस कर दी. इसके बाद कोर्ट ने माना कि जोमैटो अपनी सेवा में कमी का दोषी है और शीतल को हुई असुविधा के लिए जिम्मेदार है.
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कोर्ट ने जोमैटो को माना दोषी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कंज्यूमर कोर्ट ने जोमैटो को सेवा में कमी का दोषी मानते हुए उसे ग्राहक को हुई मानसिक परेशानी के लिए 50 हजार रुपये का हर्जाना भरने को कहा है. इसके साथ ही कानूनी खर्च के लिए 10 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया है. इसका मतलब है कि जोमैटो अब ग्राहक को कुल 60 हजार रुपये की राशि का भुगतान करेगा. कंज्यूमर कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जोमैटो ग्राहकों द्वारा ऑनलाइन दिए गए ऑर्डर पर सामग्री की आपूर्ति का व्यवसाय करता है. खरीद मूल्य प्राप्त होने के बावजूद, जोमैटो ने शिकायतकर्ता को उसका ऑर्डर नहीं दिया. इस मामले के इन तथ्यों को देखते हुए, हमारी राय में, ऑप नंबर 1 (जोमैटो) ही शिकायतकर्ता के दावे का जवाब देने के लिए उत्तरदायी है.
ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास के बेटे पर एक अधिकारी ने गंभीर आरोप लगाए हैं. अधिकारी का कहना है कि लग्जरी कार न भेजने पर उसके साथ मारपीट हुई.
ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि राज्यपाल के बेटे ललित कुमार ने राजभवन में कार्यरत एक अधिकारी के साथ मारपीट की. संबंधित अधिकारी का आरोप है कि गवर्नर का बेटा महज इस बात से नाराज था कि पुरी रेलवे स्टेशन से उसे रिसीव करने के लिए 2 लग्जरी कारें क्यों नहीं भेजी गईं. इन आरोपों पर अब तक राजभवन का कोई बयान सामने नहीं आया है. यह घटना पिछले हफ्ते राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की पुरी यात्रा के दौरान की बताई जा रही है.
ASO हैं बैकुंठनाथ प्रधान
राज्यपाल के बेटे पर जिस अधिकारी को मारने का आरोप लगा है, वह राजभवन के स्टेट पार्लियामेंट्री विभाग में असिस्टेंट सेक्शन ऑफिसर (ASO) बैकुंठनाथ प्रधान हैं. प्रधान ने इस मामले में राज्यपाल के सचिव शाश्वत मिश्रा को अपनी शिकायत भेजी है. 7 जुलाई की इस घटना में पांच अन्य लोगों के भी शामिल होने की बात कही गई है. दरअसल, राष्ट्रपति रथयात्रा महोत्सव में शामिल होने ओडिशा पहुंचीं थीं. वह सात जुलाई की शाम से आठ जुलाई की सुबह तक पुरी राजभवन में थीं. पुरी राजभवन का इंचार्ज होने के नाते प्रधान 5 जुलाई से वहीँ मौजूद थे और राष्ट्रपति के आगमन से जुड़ी तैयारियां संभाल रहे थे.
अपशब्द भी कहे
अधिकारी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि ललित कुमार ने उनके ऊपर सात जुलाई को हमला किया, इस दौरान वह ड्यूटी पर थे. प्रधान ने अपनी शिकायत में लिखा है - रात 11.45 बजे मैं अपने ऑफिस में बैठा हुआ था. तभी ओडिशा के राज्यपाल का निजी कुक आकाश सिंह मेरे पास आया और कहा कि ललित कुमार आपसे सुइट नंबर 4 में मिलना चाहते हैं. जैसे ही मैं वहां पहुंचा, ललित ने मुझे थप्पड़ मारना शुरू कर दिया. वह मुझे अपशब्द भी कहते रहे. मैं किसी तरह वहां से भागकर एनेक्सी बिल्डिंग के पीछे जाकर छिप गया. लेकिन ललित कुमार के दो सुरक्षा अधिकारी वहां आए और मुझे खींचकर वापस रूम नंबर 4 तक ले गए. सुरक्षा में तैनात जवान और अन्य लोग भी इस घटना के गवाह हैं.
CM भी रहे हैं रघुबर दास
प्रधान ने आने लिखा है कि इन लोगों ने फिर से मुझे बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं, ललित ने धमकी भी दी कि अगर किसी से इस घटना के बारे में बताया तो तुम्हारी हत्या हो जाएगी. इस मामले में राजभवन और ललित कुमार की तरफ से अब तक कोई बयान नहीं आया है. वहीं, रघुबर दास की बात करें, तो वह राज्यपाल की कुर्सी संभालने से पहले पहले झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं. 2019 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी संपत्ति की जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि पिछले पांच सालों में उनकी वार्षिक आय 19 लाख 37 हजार 924 रही है. उस समय उनके पास 41 हजार 600 रुपए कैश था. उनके बैंक जमा, शेयर और जेवरात का कुल मूल्य 66 लाख 57 हजार रुपए था. उस समय उनके पास न तो कोई जमीन था और न ही कोई मकान.