कंपनी के दावे से मेल नहीं खाया गाड़ी का माइलेज, अब करनी होगी जेब ढीली

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया है.

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Friday, 08 March, 2024
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कंपनियां अक्सर अपनी गाड़ियों के माइलेज (Mileage) को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हैं. लेकिन इन दावों के सच न होने पर क्या कंपनी को दोषी ठहराया जा सकता है? इस सवाल का जवाब राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के एक फैसले से मिल गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, NCDRC ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना है कि यदि निर्माता कंपनी द्वारा किए गए वादे के मुताबिक वाहन माइलेज नहीं दे रहा है, तो यह निर्माण संबंधी कमी है. इसके साथ ही उपभोक्ता अदालत ने वाहन निर्माता कंपनी की अपील को खारिज कर दिया.

पहले का आदेश बरकरार
वाहन निर्माता कंपनी व अन्य ने राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले को NCDRC में चुनौती दी थी. आयोग के सदस्य डॉक्टर इंदरजीत सिंह ने पूर्व के फैसले में दखल देने से इंकार करते हुए कहा कि इसमें किसी तरह की कोई खामी नहीं है, लिहाजा इसे बहाल रखा जाता है. आयोग ने वाहन बनाने वाली कंपनी की उन दलीलों को ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि शिकायकर्ता ऑटो चालक ने करीब साढ़े चार साल गाड़ी चलाने के बाद उपभोक्ता फोरम में माइलेज सहित कई खामियों के बारे में ‌शिकायत की थी. 

काम नहीं आई दलील
कंपनी ने अपने बचाव में यह दलील भी दी कि शिकायतकर्ता ने ऑटो का रखरखाव सही से नहीं किया और नि:शुल्क सर्विस भी नहीं कराई. कंपनी ने राज्य उपभोक्ता आयोग व जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने की मांग के साथ NCDRC का दरवाजा खटखटाया था. सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया. साथ ही राज्य उपभोक्ता आयोग के उस तर्क पर सहमति जताई, जिसमें कहा गया कि कंपनी के वादे के मुताबिक माइलेज नहीं देना, गाड़ी के विनिर्माण में कमी है. 

अब देना होगा हर्जाना
केरल निवासी रविंद्रन ने सितंबर 2006 में फोर्स मोटर लिमिटेड से लाख 68 हजार रुपए में एक ऑटो खरीदा था. 2011 में उन्होंने जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दाखिल कर आरोप लगाया कि ऑटो कंपनी द्वारा किए गए वादे के मुताबिक माइलेज नहीं दे रहा है. शिकायतकर्ता ने कहा कि कंपनी ने 2006 मॉडल ऑटोरिक्शा का 35 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज देने का वादा किया था, जबकि माइलेज इससे काफी कम है. रविंद्रन‌ ने यह भी कहा कि कंपनी का अधिकृत डीलर कई प्रयास के बाद भी खामी को दूर नहीं कर पाया. विनिर्माण में कमी होने के चलते उन्हें वित्तीय हानि और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा. इस मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने ऑटो चालक के पक्ष में फैसला देते हुए कंपनी से 84 हजार रुपए हर्जाना और 3000 रुपए मुकदमा खर्च देने को कहा था. राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी यह फैसला बरकरार रखा और अब कंपनी को NCDRC से भी झटका लगा है.


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आखिर क्यों घबराए बैंक कर्मचारी, आप भी जानिए 

बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों की यूनियन ने आयकर (Income Tax) विभाग के एक नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट के फैसले के बाद बैंक कर्मचारियों के हाथ सिर्फ निराशा लगी.   

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Thursday, 09 May, 2024
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक फैसले ने बैंक कर्मचारियों को बड़ा झटका दे दिया है. कोर्ट ने गुरुवार को एक फैसले में कहा है कि बैंक कर्मचारियों को उनके एम्पलॉयर बैंकों की ओर से इंटरेस्ट फ्री या कम इंटरेस्ट रेट के लोन की जो सुविधा मिलती है, उस पर उन्हें टैक्स का भुगतान करना होगा. इस फैसले के बाद बैंक कर्मचारी काफी निराश हुए है.  

क्या था पूरा मामला? 
दरअसल, बैंक कर्मचारियों के संगठनों ने आयकर (Income Tax) विभाग के एक नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके तहत बैंक कर्मचारियों को खास तौर पर मिलने वाली लोन की सुविधा को टैक्सेबल बनाया गया है. आईटी एक्ट 1961 के सेक्शन 17(2)(viii) और आईटी रूल्स 1962 के नियम 3(7)(i) के तहत अनुलाभ (perquisites) को परिभाषित किया गया है. अनुलाभ उन सुविधाओं को कहा जाता है, जो किसी भी व्यक्ति को उसके काम/नौकरी के चलते सैलरी के अतिरिक्त मिलती हैं.  

देना पड़ेगा टैक्स 
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले में आय कर के नियमों को सही ठहराया. कोर्ट ने कहा कि बैंक कर्मचारियों को बैंकों की ओर से खास तौर पर यह सुविधा दी जाती है, जिसमें उन्हें या तो कम ब्याज पर या बिना ब्याज के लोन मिल जाता है. अदालत के हिसाब से यह यूनिक सुविधा है, जो सिर्फ बैंक कर्मचारियों को ही मिलती है. इसे सुप्रीम कोर्ट ने फ्रिंज बेनेफिट या अमेनिटीज करार दिया और कहा कि इस कारण ऐसे लोन टैक्सेबल हो जाते हैं.  

कोर्ट ने सुनाया ये फैसला 
कोर्ट की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बैंक अपने कर्मचारियों को कम ब्याज पर या बिना ब्याज के जो लोन की सुविध देते हैं, वह उनकी अब तक की नौकरी या आने वाले समय की नौकरी से जुड़ी हुई है. ऐसे में यह कर्मचारियों को सैलरी के अलावा मिलने वाली सुविधाओं में शामिल हो जाती है और इसे अतिरिक्त लाभ माना जा सकता है. इसका मतलब हुआ कि आयकर के संबंधित नियमों के हिसाब से यह सुविधा टैक्सेबल हो जाती है. पीठ ने टैक्स के कैलकुलेशन के लिए एसबीआई के प्राइम लेंडिंग रेट को बेंचमार्क की तरह इस्तेमाल करने को भी स्वीकृति प्रदान कर दी.
 

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केजरीवाल की जमानत रोकने के लिए कल मास्टर स्ट्रोक खेलेगी ED, पहली बार होगा ऐसा 

सुप्रीम कोर्ट कल अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर फैसला सुना सकता है. केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था.

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Thursday, 09 May, 2024
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की मुश्किलों का अंत होता नजर नहीं आ रहा है. कथित शराब घोटाले (Delhi Liquor Scam) में प्रवर्तन निदेशालय (ED) कल यानी शुक्रवार को केजरीवाल के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दायर कर सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स में वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि चार्जशीट में पहली बार केजरीवाल को आरोपी बनाया जाएगा. बता दें कि ED ने इस मामले में 21 मार्च को केजरीवाल को गिरफ्तार किया था. तब से वह सलाखों के पीछे हैं. निचली अदालत के साथ-साथ हाई कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली है. 

चार्जशीट की टाइमिंग अहम 
ED द्वारा केजरीवाल के खिलाफ कल दायर की जाने वाली चार्जशीट की टाइमिंग बेहद अहम है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर फैसला सुनाएगा और उसी दिन ईडी दिल्ली के मुख्यमंत्री को आरोपी बनाएगी. प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल को अभी तक आरोपी नहीं बनाया गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, ED की ताजा चार्जशीट में केजरीवाल के साथ-साथ कुछ अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया जा सकता है. लेकिन केजरीवाल को मुख्य साजिशकर्ता के रूप में पेश किया जाएगा. 

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सिसोदिया भी हैं जेल में
वैसे, ED के वकील मौखिक रूप से कोर्ट में केजरीवाल को मुख्य साजिशकर्ता और सरगना बता चुके हैं, लेकिनचार्ज शीट में उन्हें आरोपी बनाया जाना अलग बात है. कथित शराब घोटाले से जुड़े मामले में केजरीवाल के अलावा दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जेल में हैं. जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) सांसद संजय सिंह 4 महीने की जेल के बाद बाहर आ चुके हैं. अदालत ने हाल ही में उन्हें कुछ शर्तों के साथ जमानत दी है. 

ED का पक्ष होगा मजबूत
केजरीवाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान ऐसा लगा कि उन्हें राहत मिल सकती है. अदालत ने कहा था कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, वह आदतन अपराधी नहीं. चूंकि, लोकसभा चुनाव पांच साल बाद आता है, इसलिए प्रचार के लिए उन्हें अंतरिम जमानत देने पर विचार किया जा सकता है. हालांकि, अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या केजरीवाल को राहत मिलेगी? माना जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई से पहले ही ED ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट पेश कर सकती है. जानकारों का मानना है कि इससे सुप्रीम कोर्ट में ED का पक्ष मजबूत हो सकता है और ऐसे में केजरीवाल की जमानत की आस टूट सकती है.
 


जबरन GST वसूली पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार को दिए ये निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जीएसटी कलेक्शन में बल प्रयोग का कानून में कोई प्रावधान नहीं है. 

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Thursday, 09 May, 2024
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(GST) वसूली को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार को कारोबारियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन के दौरान धमकी और जोर-जबरदस्ती का इस्तेमाल न करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें स्वेच्छा से बकाया चुकाने के लिए मनाया जाए. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 281 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है, जिसमें कोर्ट की एक पीठ जीएसटी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों की जांच कर रही है.

भुगतान स्वेच्छा से हो, विभाग नहीं कर सकता बल का प्रयोग
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि जीएसटी कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो अधिकारियों को बकाया राशि के भुगतान के लिए बल के इस्तेमाल का अधिकार देता हो. 

सरकार की ओर से आया से पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तलाशी और जब्ती के दौरान ज्यादातर भुगतान स्वैच्छिक ही हुए हैं. ज्यादातर भुगतान स्वेच्छा से या वकील से परामर्श कर कुछ दिनों के बाद किए जाते हैं. हां, अतीत में कुछ उदाहरण हो सकते हैं लेकिन यह मानक नहीं है.

281 याचिकाओं पर सुनवाई
एक याचिकाकर्ता के वकील सुजीत घोष ने कहा कि कानून के तहत प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों को लागू नहीं किया गया है और इसके बजाय लोगों को भुगतान करने के लिए गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है. कोर्ट जीएसटी अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम और धनशोधन निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली 281 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

नहीं बना सकते गिरफ्तारी का दबाव 
कोर्ट की पीठ ने कहा कि कई याचिकाकर्ताओं ने अधिकारियों पर तलाशी और जब्ती अभियान के दौरान धमकी और जबरदस्ती करने के आरोप लगाए हैं. अगर कोई टैक्स भुगतान से इनकार करता है, तो आप उनकी संपत्तियां अस्थायी रूप से कुर्क कर सकते हैं, लेकिन आपको परामर्श करने, सोचने और विचार करने के लिए कुछ समय देना होगा. आप उसे धमकी और गिरफ्तारी के दबाव में नहीं रख सकते हैं. अगर गिरफ्तारी करनी भी है तो वह कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया में हो, जीएसटी अधिनियम की धारा 69 के तहत गिरफ्तारी का प्रावधान है.

सुरक्षा उपाय किए जाएं लागू
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 69 (गिरफ्तार करने की शक्ति) और धारा 70 (समन करने की शक्ति) का कड़ाई से अनुपालन होना चाहिए. जब विधायिका ने सुरक्षा उपाय किए हैं तो उन्हें कड़ाई से लागू करने की जरूरत है.
 


बैंकर्स को सस्ते लोन पर सुप्रीम कोर्ट की तिरछी नजर, सुना दिया ये बड़ा फैसला

सरकारी बैंक के कर्मचारियों को सामान्य नागरिकों की तुलना में सस्ता लोन मिलता है.

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Thursday, 09 May, 2024
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बैंक कर्मचारियों (Bankers) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है. अदालत ने बैंकर्स को मिलने वाले सस्ते लोन पर एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिससे उनकी जेब ढीली होना लाजमी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक कर्मचारियों को ब्याज मुक्त या रियायती दर पर मिलने वाला लोन एक ‘अनुलाभ’ है और इसलिए यह आयकर अधिनियम के तहत टैक्सेबल है. कोर्ट के इस फैसले का सीधा मतलब है कि सरकारी बैंक के कर्मचारियों को सस्ता लोन अब उतना भी सस्ता नहीं पड़ेगा.  

क्रूर नहीं है ये प्रावधान
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 17(2)(viii) और आयकर नियम, 1962 के नियम 3(7)(i) की वैधता को बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान न तो अन्यायपूर्ण है, न ही क्रूर है और न ही करदाताओं पर कठोर. बैंक कर्मियों को मिलने वाला लोन बाजार के मुकाबले काफी सस्ता पड़ता है. बैंकर्स को सिंपल इंटरेस्ट रेट पर लोन मिलता है, जबकि सामान्य नागरिकों को कंपाउंड इंटरेस्ट रेट के हिसाब से लोन का भुगतान करता पड़ता है.  

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SBI की दरें बेंचमार्क 
एक ही अमाउंट के लोन के लिए बैंक कर्मी जितनी EMI चुकाते हैं और सामान्य व्यक्ति को जितने का भुगतान करना पड़ता है, उसके बीच का अंतर अब कर योग्य होगा. इसका मतलब है कि बैंक कर्मियों के लिए सस्ता लोन पहले जितना सस्ता नहीं रह जाएगा. अपने फैसले में न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि ब्याज मुक्त या रियायती कर्ज के मूल्य को अनुलाभ के रूप में टैक्स लगाने के लिए अन्य लाभ या सुविधा माना जाना चाहिए. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की ब्याज दर को एक बेंचमार्क के रूप में तय करने से एकरूपता सुनिश्चित होती है. इससे विभिन्न बैंकों द्वारा ली जाने वाली अलग-अलग ब्याज दरों पर कानूनी विवादों को रोका जा सकता है. 

काम नहीं आया ये तर्क
न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ ने ‘अनुलाभ’ की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह रोजगार की स्थिति से जुड़ा एक लाभ है, जो ‘वेतन के बदले लाभ’ से अलग है. अनुलाभ रोजगार के लिए आकस्मिक हैं और रोजगार की स्थिति के कारण लाभ प्रदान करते हैं, जो सामान्य परिस्थितियों में उपलब्ध नहीं होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें तर्क दिया गया था कि भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख लेडिंग रेट को मानक बेंचमार्क के रूप में उपयोग करना मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.


Ramdev की पतंजलि को घेरते-घेरते आखिर खुद कैसे फंस गए IMA के चीफ? 

भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट पतंजलि को कड़ी फटकार लगा चुका है और लगता है अब बारी IMA की है.

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Wednesday, 08 May, 2024
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बड़े-बड़े दांवों पर बाबा रामदेव (Baba Ramdev) की पतंजलि को घेरते-घेरते इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) प्रमुख डॉ. आरवी अशोकन कुछ ऐसा कर गए हैं कि आने वाले दिन उनके लिए मुश्किलों भरे हो सकते हैं. अब तक पतंजलि (Patanjali) को सुप्रीम कोर्ट से मिली फटकार से आत्म-संतुष्टि का अनुभव करने वाले अशोकन खुद भी कोर्ट के निशाने पर आ गए हैं. शीर्ष अदालत ने डॉ. अशोकन को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है. चलिए जानते हैं कि भ्रामक विज्ञापन मामले में फरियादी की भूमिका निभा रहा IMA आखिर आरोपी के किरदार में कैसे पहुंच गया. 

बाबा वाली गलती कर बैठे अशोकन
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. कुछ वक्त पहले जब बाबा रामदेव ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके अपना गुस्सा जाहिर किया था, तो IMA ने इस मुद्दे को खूब उछाला था और इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करार देते हुए बाबा पर निशाना साधा था. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना था कि बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रेस कांफ्रेंस काके डॉक्टरों के खिलाफ दुष्प्रचार किया. इसके अलावा, रोक के बावजूद विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है. अब आईएमए प्रमुख डॉ. अशोकन खुद बाबा रामदेव वाली गलती कर बैठे हैं और बाबा के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने उनकी इस गलती को पकड़ लिया है.  

बालकृष्ण चाहते हैं कार्रवाई 
पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने डॉ. अशोकन के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है, जिस पर अदालत ने IMA प्रमुख को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब मांगा है. जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मामला लंबित रहने के दौरान डॉ. अशोकन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर कड़ी फटकार लगाई. जस्टिस कोहली ने IMA के वकील से बेहद कड़े शब्दों में कहा कि जब मामला अदालत में लंबित है, तो आपका मुवक्किल इस बारे में इंटरव्यू कैसे दे सकता है? आप कह रहे हैं कि दूसरा पक्ष भ्रामक विज्ञापन चला रहा है, आप क्या कर रहे हैं? अदालत की कार्यवाही पर टिप्पणियां कर रहे हैं.

क्या कहा था IMA चीफ ने? 
अब यह भी जान लेते हैं कि आखिर आईएमए अध्यक्ष अशोकन ने कहा क्या था. उन्होंने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत करते हुए कहा था कि ये बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने IMA और प्राइवेट डॉक्टरों की प्रैक्टिस की आलोचना की. उच्चतम न्यायालय के कुछ बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है और हमें ऐसा लगता है कि उन्हें देखना चाहिए था कि उनके सामने क्या जानकारी रखी गई है. बता दें कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ याचिका दायर की थी. IMA ने बाबा की कंपनी पर आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्राकशित करने का आरोप लगाया है. इसी मुद्दे को लेकर अदालत में सुनवाई चल रही है. कोर्ट पतंजलि को कड़ी फटकार लगा चुका है और लगता है अब बारी IMA की है.


केजरीवाल को राहत के आसार, सुप्रीम कोर्ट का ED से सवाल - 100 से 1100 करोड़ कैसे हो गए?

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शराब नीति मामले में अरविन्द केजरीवाल की याचिका पर आज ED से कई सवाल पूछे.

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Tuesday, 07 May, 2024
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कथित शराब नीति घोटाले में तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आज पहली बार उनके बाहर आने की उम्मीद दिखाई दी. अदालत ने इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) से कई सवाल पूछे. हालांकि, ED की तरफ से पेश वकील के यह कहते ही कि हमें नहीं लगता कि आज हम अपनी दलील पूरी कर पाएंगे, केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर आज कोई फैसला आने की उम्मीद कम हो गई है. 

पूरी आय अपराध की आय कैसे हुई?
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच के समक्ष केजरीवाल की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी, ED की तरफ से Additional Solicitor General (ASG) एसवी राजू और Solicitor General (SG) तुषार मेहता ने दलीलें रखीं. आज सुनवाई शुरू होते ही एसवी राजू ने कहा कि मामले में 100 करोड़ के हवाला ट्रांजेक्शन की बात कही गई है और मनीष सिसोदिया की जमानत खारिज होने के बाद 1100 करोड़ अटैच किए जा चुके हैं. इस पर कोर्ट ने पूछा कि 2 साल में ये 1100 करोड़ हो गए? आपने पहले कहा था कि 100 करोड़ का मामला है, अब ये इतने करोड़ कैसे हो गए? इस पर राजू ने कहा कि ये शराब नीति के फायदे हैं. जस्टिस खन्ना ने कहा कि पूरी आय अपराध की आय कैसे हुई?

उनके खिलाफ कोई केस भी नहीं है
करीब डेढ़ घंटे दलीलें सुनने के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने ED के वकील से पूछा कि क्या आप 1 बजे तक अपनी बातें खत्म कर पाएंगे? फिर हम लंच के बाद केजरीवाल को आधा घंटा देंगे. इस पर ASG राजू ने कहा कि हमें नहीं लगता कि आज हम अपनी दलील पूरी कर पाएंगे. अदालत ने कहा कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं. चुनाव चल रहे हैं, यह आम हालात नहीं है. उनके खिलाफ कोई केस भी नहीं है. इसका विरोध करते हुए SG तुषार मेहता ने कहा कि हम क्या उदाहरण रख रहे हैं? क्या दूसरे लोग मुख्यमंत्री से कम महत्वपूर्ण हैं. इस आधार पर कोई फर्क होना चाहिए कि वह मुख्यमंत्री हैं. इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह अलग बात है. चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं, हमें यह पसंद नहीं है. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि केजरीवाल छह महीने तक समन टालते रहे. अगर पहले सहयोग करते, तो संभव है कि गिरफ्तारी नहीं होती.

आपको इतना समय कैसे लग गया?  
सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से पहले की फाइल भी ED से मांगते हुए कहा कि 2 सालों से जांच चल रही है. ये किसी भी एजेंसी के लिए सही नहीं है कि इतने लंबे समय तक इस तरह जांच चले. जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा कि बयानों में केजरीवाल का नाम पहली बार कब लिया गया? एसवी राजू ने कहा कि 23 फरवरी 2023 को बुची बाबू के बयान में केजरीवाल का नाम सामने आया था. इस पर अदालत ने पूछा कि आपको इतना समय क्यों लगा? एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यदि हम शुरुआत में ही केजरीवाल की जांच शुरू कर देते तो गलत होता. केस को समझने में समय लगता है. बता दें कि दिल्ली के कथित शराब घोटाले में ED ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था. इससे पहले ED ने उन्हें पूछताछ के लिए 9 समन जारी किए थे. 


क्‍या मंगलवार को केजरीवाल को मिल जाएगी बेल? सुप्रीम कोर्ट ने कही ये अहम बात

21 मार्च से बंद दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रहा है जिसमें उन्‍होंने उनकी गिरफ्तारी को अवैध बताया है.

Last Modified:
Friday, 03 May, 2024
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क्‍या दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मंगलवार को बेल मिलने वाली है. शराब घोटाले को लेकर पिछले महीने से जेल में बंद अरविंद केजरीवाल  के मामले को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा उसने इस सवालों को पैदा कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो आने वाले चुनावों को देखते हुए अरविंद केजरीवाल को अंतरिम बेल दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के वकील को मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई के लिए तैयार रहने को कहा है. 

सुप्रीम कोर्ट ने आखिर क्‍या कहा? 
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वो मंगलवार को एक बार फिर इस मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा कि हम अरविंद केजरीवाल को बेल दे भी सकते हैं और नहीं भी दे सकते हैं. कोर्ट ने ईडी से कहा कि अगर वो अरविंद केजरीवाल को जमानत देती है तो उसके आधार को लेकर सुझाव दे. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि क्‍या बतौर मुख्‍यमंत्री होते हुए उन्‍हें कागजी कामकाज संभालना चाहिए. कोर्ट ने ये भी कहा कि जमानत दी जाएगी या नहीं दी जाएगी इस बारे में हम कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन हम चुनाव के कारण अंतरिम जमानत देने को लेकर विचार करना चाहेंगे. इस पर ईडी के वकील एसवी राजू ने कहा कि हम इसका विरोध करेंगे. 

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कही ये बात 
एसवी राजू के जवाब पर कोर्ट ने कहा कि हम ये कह रहे हैं कि  हम जमानत पर सुनवाई करेंगे. हम ये नहीं कह रहे हैं कि हम जमानत दे देंगे. हम अंतरिम जमानत दे भी सकते हैं और नहीं भी दे सकते हैं. इसलिए कोर्ट ने कहा कि 7 तारीख को वो अंतरिम जमानत की दलीलों को लेकर तैयार होकर आएं. सुप्रीम कोर्ट केजरीवाल की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें उन्‍होंने ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है. कोर्ट ने कहा इस मामले में किसी भी पक्ष को आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए. इसलिए हम कह रहे हैं कि आप जमानत की दलीलों को लेकर तैयार होकर आएं. 

ED के वकील ने कही ये बात 
ईडी के वकील एसवी राजू ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर हमारे पास पर्याप्‍त सामाग्री मौजूद है लेकिन उसका खुलासा हम ट्रायल के दौरान करेंगे. एसवी राजू ने कहा कि ये जांच अधिकारी का विशेषाधिकार होता है कि उपलब्‍ध सामाग्री पर गिरफ्तार किया जाए या नहीं. एएसजी राजू ने कहा कि सभी सामाग्री का खुलासा करने की अभी जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस बात पर सहमति जताते हुए कहा कि बिल्‍कुल ये जांच अधिकारी का अधिकार होता है. इसका मतलब है कि पूरी सामाग्री कब्‍जे में है न कि आंशिक सामाग्री. एएसजी राजू ने ये भी कहा कि गिरफ्तारी केवल जांच अधिकारी की राय पर नहीं है बल्कि इसकी पुष्टि मजिस्‍ट्रेट ने भी की है.  

दो मुख्‍य आरोपी नहीं हो सकते हैं
जस्टिस खन्‍ना ने कहा कि केजरीवाल को ये उम्‍मीद नहीं थी कि ईडी उन्‍हें गिरफ्तार कर लेगी. उन्‍होंने कहा कि ईडी के हिसाब से अगर आम आदमी पार्टी इस मामले में आरोपी है तो एक ही मामले में दो प्राइम आरोपी नहीं हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर पार्टी इस मामले में मुख्‍य आरोपी है तो क्‍या जब तक पार्टी के खिलाफ न्‍यायिक कार्रवाई शुरू नहीं होती तब तक केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं. अब इस मामले की सुनवाई 7 मई को होनी है. उस दिन कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि जमानत दी जाए या नहीं. 
 


खुलासे का साइड इफेक्ट: जान बचाने वाली वैक्सीन से हुई मौत, अब सीरम को Court में घसीटेंगे 2 परिवार

ब्रिटिश फार्मा कंपनी ने अदालत में दाखिल दस्तावेजों में खुलासा किया है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं.

Last Modified:
Thursday, 02 May, 2024
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कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के साइड इफेक्ट्स का मुद्दा अब बड़ा बनता जा रहा है. ब्रिटिश कंपनी AstraZeneca के साथ ही भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. SII के खिलाफ 2 परिवारों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. उनका दावा है कि सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड का पहला डोज लेने के कुछ दिनों बाद ही उनकी बेटियों की मौत हो गई थी. बता दें कि AstraZeneca ने स्वीकार किया है कि उसकी कोरोना वैक्सीन के कुछ गंभीर दुष्परिणाम का खतरा रहता है. SII की वैक्सीन भी AstraZeneca के फ़ॉर्मूले पर आधारित है.   

2 सप्ताह के अंदर मौत 
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 18 वर्षीय रितिका ओमैत्री को मई 2021 में कोविशील्ड का पहला डोज लगाया गया था. इसके सात दिनों के अंदर उन्हें तेज बुखार आया और चलने में दिक्कत होने लगी. MRI स्कैन में पाया गया कि उनके दिमाग में खून के कई थक्के हैं. दो सप्ताह के अंदर ही उनकी मौत हो गई. रितिका के पैरेंट्स ने बेटी की मौत का सही कारण जानने के लिए RTI दाखिल की. इसके जवाब से उन्हें पता चला कि रितिका थ्रोम्बोसिस से जूझ रही थीं और उनकी मौत वैक्सीन प्रोडक्ट से जुड़े रिएक्शन की वजह से हुई. अब उनका परिवार वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई चाहता है.

पिता ने की जांच की मांग
ऐसी ही एक घटना जुलाई 2021 में हुई थी. पीड़ित वेणुगोपाल गोविंदन का कहना है कि उनकी बेटी करुण्या की कोविशील्ड वैक्सीन लेने के महीने भर बाद मौत हो गई थी. करुण्या की मौत मामले में परिवार की शिकायत पर सरकार ने राष्ट्रीय समिति का गठन भी किया था, लेकिन समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि करुण्या की मौत का कारण वैक्सीन है, इसके पर्याप्त सबूत नहीं मिले. अब गोविंदन ने अपनी बेटी की मौत की जांच के लिए स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड की नियुक्ति की मांग करते हुए अदालत में एक याचिका दायर की है. 

इसलिए भारत में है चिंता
भारत में सबसे ज्यादा कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में कोविशील्ड के 175 करोड़ डोज लगे हैं. जबकि कोवैक्सीन के केवल 36 करोड़ डोज लगाए गए थे. इस वजह से लोगों में चिंता और घबराहट काफी ज्यादा है. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब चिंता करने वाली कोई बात नहीं है. वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स खुराक लेने के कुछ दिन बाद ही सामने आते हैं. अब वैक्सीन को लगे काफी समय गुजर चुका है, इसलिए घबराने वाली कोई बात नहीं है. बता दें कि अदार पूनावाला भारत में कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्‍टीट्यूट के सीईओ हैं. 1966 में अदार पूनावाला के पिता साइरस पूनावाला ने सीरम इंस्टीट्यूट की नींव रखी थी. 

क्या कहा है कंपनी ने?
ब्रिटिश फार्मा कंपनी ने अदालत में दाखिल दस्तावेजों में खुलासा किया है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) हो सकता है. इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिरने लगती है. एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उसकी कोवीशील्ड से कई लोगों की मौत हुई थी. जबकि कई लोगों को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा. कंपनी के खिलाफ ब्रिटिश हाई कोर्ट में करीब 51 केस चल रहे हैं. पीड़ितों ने कंपनी से करीब 1 हजार करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा है. 


सब्जी-तेल दूध में मिलावट तो अब FSSAI ऐसे चलाएगा “चाबुक”

फूड सेफटी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) को सब्जियों से लेकर खाने के तेल और दूध तक में मिलावट मिली है. ऐसे में जल्द खाने-पीने की चीजों को लेकर नई गाइडलाइन आएंगी.

Last Modified:
Tuesday, 30 April, 2024
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आजकल खाने-पीने की चीजों में काफी मिलावट होने लगी है. इतना ही नहीं बड़े ब्रैंड्स, जो अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के लिए ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूलते हैं, वो भी इस मिलावट के खेल में किसी से पीछे नहीं हैं. दरअसल, फूड सेफटी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI)  को जांच के दौरान सब्जियों से लेकर खाने के तेल और दूध तक में मिलावट मिली है, ऐसे में अब फूड रेगुलेटर भी एक्शन में आ चुका है. इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi HC) के आदेश पर शुरू हुई जांच भी लगभग पूरी हो गई है. अब अगले महीने FSSAI कोर्ट को रिपोर्ट सौंप देगा, जिसके बाद खाने-पीने के प्रोडक्ट्स को लेकर नई गाइडलाइन जारी की जाएंगी.   
 

चीनी, नमक की घटेगी मात्रा 
कोर्ट के आदेश पर ई कॉमर्स साइट्स से हेल्थ ड्रिंक्स की कैटेगरी भी खत्म कर दी है. वहीं, अब कंपनियां चीनी और नमक की मात्रा घटाने के लिए तेजी से फॉर्मूले में बदलाव कर रही है. चॉकलेट जैसे जिन उत्पादों में कॉन्फीगरेशन नहीं बदला जा सकता, उनमें कितना खाना है जैसी एडवाइजरी पैकेट्स पर दिखाने की शुरुआत हो गई है.

खाने पीने के प्रोडक्ट्स को लेकर नए सिरे से गाइडलाइंस 
पैकेज्ड कमोडिटीज के लिए एडेड शुगर/सॉल्ट समेत MRL की मात्रा को लेकर दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं. FSSAI लगातार जांच कर रहा है और अब तक खाद्य पदार्थ के लिए 700 स्टैंडर्ड तय कर चुका है. कई मानकों की मौजूदा फूड हैबिट के आधार पर समीक्षा की गई है. FSSAI ने 21 साइंटिफिक पैनल बनाए हैं, जिसमें यूनिवर्सटीज, रिसर्च इंस्टीट्यूट और  CSIR, ICAR, ICMR, IITR, NIFTEM, IIT, CFTRI जैसे संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हैं. उपभोक्ता मामले मंत्रालय की कमेटी ने भी फूड सेफ्टी को लेकर रिपोर्ट सौंप दी है. इसके अलावा Bournavita समेत अन्य हेल्थ ड्रिंक्स को लेकर एक्शन का असर दिखना शुरू हो गया है. कंपनियां लगातार एडेड सुगर और सॉल्ट कम कर रही हैं.

इन 5 उत्पादों को लेकर आ सकती हैं गाइडलाइंस
FSSAI ने चायपत्ती और खाने का तेल पर जांच लगभग पूरी कर ली है. वहीं, आने वाले वक्त में 5 अन्य उत्पादों को लेकर गाइडलाइंस आ सकती हैं. जिसमें फल और सब्जियां, फिश प्रोडक्ट्स में Salmonella, मसाले और जड़ी-बूटियां, फोर्टिफाइड राइस और दूध व दूध के प्रोडक्ट शामिल हैं. 
 

इन चीजों में केमिकल्स से लेकर चर्बी तक की हो रही मिलावट
FSSAI ने अब तक की जांच में खाने के तेल में पाम ऑयल, रंग, खुशबू और मिर्च का अर्क, सिंथेटिक एलाइल आइसोथायोसाइनेट, प्याज का रस और फैटी एसिड की मिलावट पाई है. सब्जियों में पेस्टीसाइड जरूरत से ज्यादा मिले हैं. खाद और अन्य प्रिजर्वेटिव्स भी MRL से ज्यादा मिले हैं. सब्जियों को ताजा दिखाने के लिए रंग का इस्तेमाल पाया गया है, इससे नींबू और मिर्ची भी सुरक्षित नहीं है. कुछ लोग डिटर्जेंट, यूरिया, एनिमल फैट, सॉल्वेंट से भी दूध बना रहे हैं. जानवरों को इंजेक्शन देकर दूध निकालने की प्रक्रिया में केमिकल्स का इस्तेमाल पाया गया है. इतना ही नहीं, चायपत्ती में केमिकल्स, चर्बी, रंग, हेवी मेटल्स पाए गए हैं.

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अदालत की नसीहत का क्या Kejriwal पर होगा कोई असर, क्या छोड़ेंगे दिल्ली के CM की कुर्सी?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पिछले महीने प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था.

Last Modified:
Tuesday, 30 April, 2024
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कथित शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पिछले काफी समय से तिहाड़ जेल में बंद हैं. हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी जगह से उन्हें कोई राहत नहीं मिली है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जिस मजबूती से अपना पक्ष रखा है, उससे इसकी संभावना बेहद कम हो गई है कि केजरीवाल जल्द जेल से बाहर आ पाएंगे. इस बीच, दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ ऐसा कहा है, जिसके बाद यह सवाल पूछा जाने लगा है कि केजरीवाल CM की कुर्सी छोड़ेंगे?

यह कोई औपचारिक पद नहीं 
हाई कोर्ट ने एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल का गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहना उनका निजी फैसला है, लेकिन राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित की मांग है कि CM की कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति लंबे समय तक या अनिश्चित समय के लिए अनुपस्थित न रहे. हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मनमोहन और जस्टिस पी.एस.अरोड़ा की बेंच ने केजरीवाल को नसीहत देते हुए कहा कि दिल्ली जैसी व्यस्त राजधानी ही नहीं किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का पद कोई औपचारिक पद नहीं है. इस पद की जिम्मेदारी संभालने वाले को प्राकृतिक आपदा या संकट से निपटने के लिए 24 घंटे और सप्ताह के सातों दिन उपलब्ध रहना पड़ता है.

MCD स्कूलों से जुड़ा है मामला
दरअसल, अदालत एमसीडी स्कूलों से जुड़े एक मामले में सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने कहा कि अरविंद केजरीवाल का गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहना उनका निजी फैसला है, लेकिन इसका आशय यह नहीं कि छात्रों के मौलिक अधिकारों को रौंद दिया जाए. कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि एमसीडी स्कूलों के छात्र संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों के अनुसार मुफ्त किताब, लेखन सामग्री और ड्रेस के हकदार हैं, इसलिए नगर निगम आयुक्त को निर्देश दिया जाता है कि वे इस मामले में कार्रवाई करें. इसके साथ ही अदालत ने नगर निगम आयुक्त को एमसीडी के स्कूलों के छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तक, ड्रेस, नोटबुक, आदि पर खर्च करने का अधिकार भी दे दिया.

AAP ने कर दिया साफ 
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कहना कि आदर्श आचार संहिता के दौरान कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता अनुपयुक्त है. अब, अदालत की नसीहत का केजरीवाल पर असर होता है या नहीं, ये समय ही बताएगा. लेकिन आम आदमी पार्टी (AAP) ने साफ कर दिया है कि केजरीवाल CM बने रहेंगे. पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि केजरीवाल को मुख्यमंत्री बने रहना चाहिए, यह फैसला दिल्ली की जनता का है. केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, मुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री बने रहेंगे. उन्होंने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट केजरीवाल को CM पद से हटाने की मांग करने वाली तीन जनहित याचिकाओं को खारिज किया था. बता दें कि केजरीवाल को शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था.