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आखिर क्यों भारत के कारोबारी घराने प्रोफेशनल्स CEO को अपने यहां रख रहे हैं?
कारोबारी घराने केवल बोर्ड मीटिंग में बैठते हैं, पूंजी का आवंटन करते है, बहुमत के शेयर अपने पास रखते हैं और डिविडेंड के जरिए इनकम जेनरेट करते हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्लीः भारतीय कारोबारी जगत में ऐसा देखने को मिल रहा है कि कारोबारी घराने जो कि नामचीन है वो अपने परिवार के सदस्यों के बजाए अब प्रोफेशनल्स सीईओ को अपने यहां पर रख रहे हैं. कारोबारी घराने केवल बोर्ड मीटिंग में बैठते हैं, पूंजी का आवंटन करते है, बहुमत के शेयर अपने पास रखते हैं और डिविडेंड के जरिए इनकम जेनरेट करते हैं, लेकिन रोजाना के कार्यों को सीईओ पर छोड़ दिया जाता है.
क्यों हो रहा है आखिर ऐसा?
बर्जर पेंट्स इंडिया के एमडी और सीईओ अभिजित रॉय कहते हैं कि "आप शुरू में भरोसा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि दूसरा व्यक्ति भी आप पर भरोसा करता है. लेकिन एक समय के बाद ही आप अपनी भावनाओं में फंस जाते हैं कि मैं इस व्यक्ति पर अधिक भरोसा कर सकता हूं. यह एक अरेंज मैरिज की तरह है- एक पेशेवर सीईओ जो परिवार के स्वामित्व वाला व्यवसाय चलाने के लिए आ रहा है.”
1991 से हुई इसकी शुरुआत
भारत में कंपनियों ने पेशेवर सीईओ को रखने की शुरुआत 1991 में उदारीकरण के बाद की. उदारीकरण के बाद देश में आक्रामक बहुराष्ट्रीय कंपनियों आ गई और भारतीय व्यवसायों को जगाया कि अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होती है. व्यापार कौशल और प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता का स्तर अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में - पेंट से लेकर फार्मास्यूटिकल्स तक बढ़ रहा था. ऐसे में कारोबारी घरानों को मार्केटिंग से लेकर के फाइनेंस तक के रोजाना के कार्यों को संभालने के लिए एक पेशेवर सीईओ उनका सबसे अच्छा दांव था. यह तब था जब अगली पीढ़ी को कारोबार में विशेष रूप से दिलचस्पी नहीं हो या व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा हो.
डाबर जैसी कंपनियों ने लिया यह फैसला
इसकी शुरुआत सबसे पहले डाबर ने की थी. एफएमसीजी दिग्गज के नव-नियुक्त गैर-कार्यकारी अध्यक्ष मोहित बर्मन कहते हैं, “जब आप पांचवीं पीढ़ी में आते हैं, तो कई चचेरे भाई होते हैं. संघर्ष से बचने के लिए, हमने यह सबसे अच्छा समझा कि व्यवसाय पेशेवरों द्वारा चलाया जाए. उदारीकरण हो रहा था. अगर परिवार के सभी सदस्य इस व्यवसाय के संचालन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमने सोचा कि हम अन्य क्षेत्रों में अवसरों को खो सकते हैं. ” हालांकि इसके पहले पेशेवर सीईओ नीनू खन्ना, 2002 में नियुक्ति के तीन साल में चले गए. लेकिन बर्मन बागडोर सौंपने के इच्छुक थे. एक्सेंचर की मदद से कॉरपोरेट गवर्नेंस में कुछ आत्मनिरीक्षण और सुधार के बाद उन्होंने कंपनी के ही कर्मचारी सुनील दुग्गल को सीईओ के रूप में चुना.
इन कंपनियों में यही स्थिति
एशियन पेंट्स, पिडिलाइट इंडस्ट्रीज, ब्रिटानिया, सिप्ला, बर्जर पेंट्स, मैरिको, आरपीजी एंटरप्राइजेज, डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज और पेज इंडस्ट्रीज ने भी प्रबंधन को स्वामित्व से सफलतापूर्वक अलग कर दिया है. एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (एसपीजेआईएमआर) में स्ट्रैटेजी एंड इनोवेशन विभाग के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल कहते हैं, "आम तौर पर पेशेवरों को इसलिए लाया जाता है क्योंकि परिवार के सदस्यों को पता चलता है कि उनके सर्वोत्तम इरादों के बावजूद वे व्यवसाय को आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए अनुभव, विशेषज्ञता और कंपनी को आगे ड्राइव करने के लिए किसी के साथ की आवश्यकता होती है."
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