इन सेक्‍टरों को वित्‍त मंत्री से ये है उम्‍मीद….क्‍या पूरा कर पाएंगी वित्‍त मंत्री? 

इंश्‍योरेंस सेक्‍टर जहां जीएसटी में कमी की मांग कर रहा है तो वहीं रियल स्‍टेट सेक्‍टर ब्‍याज दरों में कमी की मांग कर रहा है. 

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Saturday, 13 January, 2024
File Photo Budget Day

जिन सेक्‍टरों को इस बजट से बड़ी उम्‍मीद है उनके अनुसार आने वाली 1 फरवरी को वित्‍त मंत्री बजट पेश करने जा रही हैं. वित्‍त मंत्री का बजट एक ऐसा दस्‍तावेज है जिससे देश के हर आम से लेकर खास को सरोकार रहता है. जहां घर की गृहणी चाहती है कि उसका घर का बजट कम हो तो वहीं देश के कारोबारी चाहते हैं कि बजट में ऐसे प्रावधान हो जिससे उनकी लागत कम हो. आज इसी कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अलग-अलग सेक्‍टर के लोग वित्‍त मंत्री से क्‍या चाह रहे हैं. 

इंश्‍योरेंस सेक्‍टर की क्‍या है मांग? 
पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के चीफ बिजनेस ऑफिसर- लाइफ इंश्योरेंस संतोष अग्रवाल बताते हैं कि इंश्योरेंस पॉलिसी पर मिलने वाला टैक्स डिस्काउंट इंश्योरेंस को अपनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का काम करता रहा है, साथ ही इससे 2047 तक पूरे भारत के लोगों द्वारा इंश्योरेंस अपनाने के IRDAI के लक्ष्‍य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी. वो कहते हैं कि उचित संतुलन खोजने के लिए संपूर्ण बीमा श्रेणी के टैक्स पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. धारा 80 सी के तहत 1,50,000 रुपये की अधिकतम डिडक्टिबल लिमिट पीपीएफ, लोन इत्यादि जैसे अन्य स्वीकार्य खर्चों के कारण समाप्त हो जाती है.इस अंतर को भरने के लिए केवल टर्म इंश्योरेंस के लिए एक छूट श्रेणी घोषित करने की जरूरत है. इससे करदाताओं को अधिक कवरेज वाला टर्म प्लान चुनने के लिए भी प्रोत्साहन मिलेगा. साथ ही 18% की जीएसटी दर पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिससे इसका लाभ अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे और अधिक लोगों को लाइफ इंश्योरेंस में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

क्‍या चाहता है रियल स्‍टेट सेक्‍टर? 
रियल स्‍टेट सेक्‍टर में पिछले कुछ सालों के मुकाबले 2023 में खासी पॉजिटिव प्रोग्रेस देखने को मिलती है. लेकिन बावजूद इसके रियल स्‍टेट को इंडस्‍ट्री का दर्जा देने की मांग काफी लंबी है बावजूद इसके इस साल के बजट से जो इन्‍हें उम्‍मीदें हैं उन्‍हें लेकर क्रेडाई एनसीआर के अध्यक्ष और गौड़ ग्रुप के सीएमडी मनोज गौड़ कहते हैं कि आगामी अंतरिम बजट से कई सारी उम्मीदें हैं. वो कहते हैं कि इस बार के बजट में होम लोन के टैक्स दायरे को बढ़ाने के साथ-साथ इस सेक्टर को उद्योग का भी दर्जा मिलने की उम्मीद है. गौड़ के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में रियल एस्टेट का हमेशा से महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वे इस बजट से होम बॉयर्स और डेवलपर्स के लिए मांग को प्रोत्साहित करने, बाजार में लिक्विडिटी संबंधी चिंताओं को दूर करने और नियमों को सरल बनाने के लिए उपाय की उम्मीद कर रहे हैं. इस बजट से कई उम्मीदें हैं जो भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर को मजबूत करेंगे. 

ब्‍याज दरों में होनी चाहिए कमी
मौजूदा ब्याज दरों को लेकर कहते हैं कि ये निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण चुनौती है. देखा जाय तो 2024 की दूसरी तिमाही तक रेपो दर में कटौती की संभावना नहीं है. ऐसे में होम लोन के टैक्स दायरे को बढ़ाने की जरूरत है. रेपो रेट में हालिया उछाल दरों के कारण होम लोन की ब्याज दरों में लगातार वृद्धि हो रही है और जब तक सरकार टैक्स में छूट नहीं देती तब तक इस सेक्टर में तेजी नहीं आ पाएगी. 

स्‍वास्‍थ्‍य बजट में होना चाहिए इजाफा

स्‍वास्‍थ्‍य एक अहम क्षेत्र है जिसे लेकर हर आदमी की उम्‍मीद होती है कि आखिर सरकार क्‍या कर रही है. इस सेक्‍टर में काम करने वालों की भी सरकार से बड़ी उम्‍मीदें होती हैं. एशियन हॉस्पिटल फ़रीदाबाद  के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, डॉ. एन के पांडे,ने कहा कि  2024 के आगामी भारतीय केंद्रीय बजट में, हम एक मजबूत नीतिगत बदलाव देखने की उम्मीद कर रहे हैं जो पारंपरिक सीमाओं से परे है. हमारी बजट अपेक्षाओं में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के आवंटन में बढ़़ोतरी की संभावना है,  जो महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.साथ ही मुझे लगता है कि सरकार को सामूहिक स्वास्थ्य प्रगति की भावना के अनुरूप स्वास्थ्य देखभाल की प्रगति के लिए वैश्विक विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ उठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की सुविधा के लिए भी कदम उठाने चाहिए. इसके अलावा हम स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच बढ़ाने के लिए पर्याप्त फोकस देखने की उम्मीद करते हैं. बेहतर बुनियादी ढांचे और उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाओं के साथ भारत के ग्रामीण और छोटे शहरों में सेवाएं इसमें शामिल हैं. हम आयुष के बढ़ते एकीकरण पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने की भी उम्मीद करते हैं, क्योंकि समग्र स्वास्थ्य देखभाल में पारंपरिक चिकित्सा की स्वीकार्यता बढ़ रही है.

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लंबे समय बाद BYJU'S के कर्मचारियों को मिली खुशखबरी, देर से ही सही जेब में आया पैसा 

BYJU'S ने NCLT से राईट्स इश्‍यू के जरिए जुटाए गए 200 मिलियन डॉलर के इस्‍तेमाल करने को लेकर अनुमति मांगी है. लेकिन इस पर अभी निर्णय नहीं हुआ है. 

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Friday, 03 May, 2024
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सैलरी के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे BYJU'S के कर्मचारियों को आखिरकार अप्रैल महीने का वेतन मिल गया है. BYJU'S मौजूदा समय में लिक्विडिटी की समस्‍या से जूझ रही है. इससे पहले फरवरी और मार्च में कंपनी ने अपने केवल टीचिंग स्‍टॉफ से लेकर कम सैलरी वाले कर्मचारियों को ही पूरी सैलेरी दी थी. जबकि बाकी कर्मचारियों को आंशिक सैलेरी ही दी गई थी. 

कंपनी ने NCLT से भी ली थी अनुमति 
मीडिया‍ रिपोर्ट के अनुसार, BYJU'S की ओर से इस भुगतान को करने से पहले NCLT से भी अनुमति ली गई थी. NCLT से अपने कर्मचरियों को सैलरी और वेंडरों का बकाया चुकाने के लिए अनुमति ली थी. कंपनी ने राईट्स इश्‍यू के जरिए जुटाए गए 200 मिलियन डॉलर के इस्‍तेमाल की भी अनुमति मांगी है. हालांकि अभी तक इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है और अगली सुनवाई 6 जून को होने की संभावना है. यही नहीं BYJU'S के चार निवेशकों पीक XV पार्टनर्स, जनरल अटलांटिक, चैन-जुकरबर्ग इनिशिएटिव और प्रोसस ने उस पर एनसीएलटी के आदेशों का उल्‍लंघन करते हुए अपने हालिया राईट्स इश्‍यू के तहत पूंजी बढ़ाने से पहले संस्‍थापकों को शेयर जारी करने का आरोप लगाया है. 

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आखिर कैसे चुकायी जाएगी अगले महीने की सैलरी 
BYJU'S के मामले में कोर्ट की कोई स्‍पष्‍ट गाइडलाइन न आने के कारण अब सबसे बड़ा सवाल ये पैदा हो रहा है कि आखिर कंपनी कैसे सैलरी चुकाएगी. यही नहीं कंपनी पिछले कुछ सालों में 10 हजार से ज्‍यादा कर्मचारियों को निकाल चुकी है. कंपनी के फाइनेंशियल चैलेंज के कारण, बायजू ने दो टीमों में अपने सेल्‍स कर्मचारियों के वेतन को उनके द्वारा लगभग एक महीने के साप्ताहिक राजस्व से जोड़ दिया है.

OPPO ने भी NCLT में BYJU’s को लेकर दी याचिका 
 BYJU'S की परेशानियां खत्‍म होने का नाम नहीं ले रही हैं. कंपनी की स्थिति ये है कि एक के बाद एक नई कंपनी उसके खिलाफ दिवालिया मुकदमा दायर कर रही है. इस कड़ी में ओप्‍पो ने भी कंपनी के खिलाफ NCLT में दिवालिया याचिका दायर कर उसका बकाया चुकाने की अपील की है. इससे पहले बीसीसीआई से लेकर कई और कंपनियां BYJU'S के खिलाफ दिवालिया याचिका दायर कर अपने कर्ज की मांग कर चुके हैं. 
 


Raymond ने जारी किए वित्त वर्ष 2024 तिमाही के नजीते, इतना दर्ज हुआ रेवेन्यू

रेमंड (Raymond) ने शुक्रवार 3 मई को वित्त वर्ष 2024 के मार्च तिमाही के नतीजे जारी किए.

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Friday, 03 May, 2024
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रेमंड (Raymond) ने शुक्रवार 3 मई को वित्त वर्ष 2024 के मार्च तिमाही के नतीजे जारी किए. साथ ही कंपनी ने बताया कि उसके बोर्ड ने गौतम सिंघानिया को अगले 5 साल के लिए दोबारा मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त करने की मंजूरी दी है. सिंघानिया का नया कार्यकाल 1 जुलाई 2024 से शुरू होगा. 

सालान राजस्व 9,286 करोड़ रुपये 
वित्त वर्ष 2024 में रेमंड ने 17 प्रतिशत के EBITDA (Net Income, Interest, Taxes, Depreciation, Amortisation) मार्जिन के साथ अपना अब तक का सबसे अधिक सालान राजस्व 9,286 करोड़ रुपये और EBITDA 1,575 करोड़ दिया. लाइफस्टाइल बिजनेस में उपभोक्ता मांग में कमी और चुनौतीपूर्ण बाजार स्थितियों के बावजूद रेमंड के ब्रैंडेड कपड़े, गारमेंटिंग और रियल एस्टेट क्षेत्रों में मजबूत वृद्धि हुई. रियल एस्टेट व्यवसाय ने 134 प्रतिशत की वृद्धि के साथ मजबूत बिक्री प्रदर्शन किया, जो पिछले वर्ष की समान तिमाही में ₹289 करोड़ से बढ़कर  677 करोड़ हो गया. इसके अलावा ब्रैंडेड कपड़ों के व्यवसाय में 23 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 409 करोड, ब्रैंडेड टेक्सटाइल सेगमेंट में 920 करोड़, गार्मेंटिंग सेगमेंट में 280 करोड़ और हाई वैल्यू कॉटन शर्टिंग की बिक्री में 213 करोड़, इंजीनियरिंग व्यवसाय ने 234 करोड़ रुपये रेवेन्यू दर्ज हुआ. 

ये व्यवसाय भविष्य के विकास के इंजन
कंपनी के अनुसार गौतम हरि सिंघानिया के नेतृत्व में कंपनी ने अच्छी प्रगति की है. उनका लक्ष्य रेमंड ब्रैंड को दुनिया के सबसे बेहतर भारतीय ब्रैंड्स में से एक बनाना है और इसे ग्लोबल स्तर पर पहचान दिलाना है. वहीं, रेमंड लिमिटेड के चेयपमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर गौतम हरि सिंघानिया ने कहा है कि वह सभी व्यवसायों के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं और उन्होंने पूरे वर्ष लगातार वृद्धि का प्रदर्शन किया है. उनके लाइफस्टाइल व्यवसाय ने प्रतिकूल परिस्थितियों और उपभोक्ता मांग में कमी के बावजूद मजबूत वृद्धि दर्ज की. रियल एस्टेट व्यवसाय में विशेष रुप से मुंबई के बांद्रा में अपनी पहली जेडीए परियोजना के लॉन्च के साथ मजबूत बुकिंग फ्लो बनाए रखा है. उनके पास लाइफस्टाइल, रियल एस्टेट और इंजीनियरिंग व्यवसाय जैसे तीन कार्यक्षेत्र हैं जो भविष्य के विकास के इंजन हैं जो भारत के विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं.

एयरोस्पेस, रक्षा और ईवी के कारोबार में प्रवेश
कंपनी ने बताया कि तिमाही के दौरान रेमंड ने मैनी प्रिसिजन प्रोडक्ट लिमिटेड का व्यवसाय अधिग्रहण पूरा किया. इसके साथ ही रेमंड समूह ने एयरोस्पेस, रक्षा और ईवी घटकों के कारोबार के उभरते क्षेत्रों में प्रवेश किया. अब आगे बढ़ते हुए व्यवस्थाओं की एक समग्र योजना के माध्यम से दो सहायक कंपनियां बनाई जाएंगी. एक एयरोस्पेस और रक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा, जबकि दूसरा ईवी और इंजीनियरिंग उपभोग्य सामग्रियों के क्षेत्र के साथ ऑटो घटकों को पूरा करेगा.  

इस साल 200 से अधिक स्टोर खुले
इस वर्ष रेमंड ने 200 से अधिक स्टोर खोले हैं जिनमें 56 'एथनिक्स बाय रेमंड' स्टोर शामिल हैं. 31 मार्च 2024 तक कुल रीटेल स्टोर नेटवर्क अब 1,518 स्टोर है. 2024 में कंपनी ने 840 करोड़ रुपये का कुल बुकिंग मूल्य दर्ज किया, जो मुख्य रूप से 'द एड्रेस बाय जीएस, बांद्रा' के सफल लॉन्च से प्रेरित था, जिसे 40 दिनों के भीतर बेची गई लॉन्च की गई इन्वेंट्री का लगभग 62 प्रतिशत के साथ जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली.

9 मई को डिमर्जर की सुनवाई
रेमंड के अनुसार रणनीतिक पहलों के अनुरूप, लाइफस्टाइल बिजनेस का प्रस्तावित पृथक्करण योजना के अनुसार आगे बढ़ रहा है, जिसे सेबी, शेयरधारक और लेनदार की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है. इसके अलावा डिमर्जर की मंजूरी के लिए एनसीएलटी की सुनवाई 9 मई 24 को होनी है.


MRF ने इस बार नहीं किया 'मजाक', देश के सबसे महंगे शेयर पर मिलेगा इतना Dividend 

देश के सबसे महंगे शेयर वाली कंपनी MRF ने फाइनल डिविडेंड का ऐलान कर दिया है.

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Friday, 03 May, 2024
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शेयर बाजार (Stock Market) में कई महंगे शेयर हैं, लेकिन सबसे महंगे शेयर का रिकॉर्ड MRF के नाम है. टायर बनाने वाली इस कंपनी का एक शेयर 1,28,400 रुपए में मिल रहा है. हालांकि, इस साल जनवरी में यह डेढ़ लाख रुपए तक पहुंच गया था. पिछले कुछ समय से शेयर में गिरावट का रुख है. इसके बावजूद कंपनी ने अपने निवेशकों को डिविडेंड देने का ऐलान किया है. 

सोशल मीडिया पर खूब बने थे मीम्स 
MRF के डिविडेंड देने के फैसले से इन्वेस्टर्स में खुशी का माहौल है. हालांकि, पिछली बार जब कंपनी ने डिविडेंड देने की घोषणा की थी, तो उसे लोगों के तंज और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. दरअसल, इतने महंगे शेयर वाली कंपनी से निवेशकों को उम्मीद थी कि वो डिविडेंड भी कुछ भारी-भरकम देगी, लेकिन हुआ उसके एकदम उलट. MRF ने लगातार 2 बार प्रति शेयर तीन-तीन रुपए डिविडेंड की घोषणा कर डाली. इसके बाद सोशल मीडिया पर कंपनी के खिलाफ मीम्स की बाढ़ आ गई थी. लोगों ने इसे मजाक करार दिया था. शायद यही वजह है कि अब कंपनी ने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की है. 

अब इतना मिलेगा डिविडेंड
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, MRF ने फाइनेंशियल ईयर 2024 के लिए प्रति शेयर 194 रुपए का फाइनल डिविडेंड देने का ऐलान किया है. इस तरह कंपनी इस वित्तीय वर्ष में प्रति शेयर कुल 200 रुपए का डिविडेंड देगी. क्योंकि उसने दो बार तीन-तीन रुपए का अंतरिम डिविडेंड दिया था. बता दें कि मार्च तिमाही में कंपनी का कंसोलिडेटेड नेट प्रॉफिट 16% की तेजी के साथ 396 करोड़ रुपए रहा. जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 341 करोड़ था. हालांकि तिमाही आधार पर इसमें 22 प्रतिशत की गिरावट आई है.

पिछले साल 1 लाख हुई थी कीमत
पिछले साल जून में MRF के Stock की कीमत एक लाख रुपए पहुंची थी और यह मुकाम हासिल करने वाला यह देश का पहला शेयर था. MRF दुनिया की टॉप-20 टायर कंपनियों में शामिल है. यह दोपहिया वाहनों से लेकर फाइटर विमानों के लिए भी टायर बनाती है. MRF का पूरा नाम मद्रास रबर फैक्ट्री है. अब जब MRF की बात निकली है, तो इसकी सक्सेस स्टोरी के बारे में जान लेते हैं. लेकिन पहले ये समझते हैं कि कंपनी का शेयर देश का सबसे महंगा शेयर कैसे बन गया.

शेयर इसलिए है इतना महंगा
कंपनी के शेयर के इतना महंगा होने की प्रमुख वजह ये है कि उसने कभी भी शेयर्स को स्प्लिट नहीं किया. रिपोर्ट्स की मानें, तो 1975 के बाद से MRF ने अभी तक अपने शेयरों को कभी स्प्लिट नहीं किया. स्टॉक स्प्लिट का फैसला कंपनी तब लेती हैं, जब शेयर की कीमत काफी ज्यादा हो जाती है. ऐसा करके वह छोटे खरीदारों की पहुंच में अपने शेयर ले आती हैं, लेकिन MRF ने ऐसा नहीं किया. कंपनी की मजबूत वित्तीय स्थिति के चलते उसके शेयर भी मजबूत होते गए और आज एक शेयर की कीमत एक लाख से भी ज्यादा है. साल 2000 में इस शेयर की कीमत महज 1000 रुपए थी.  

इस तरह अस्तित्व में आई MRF
MRF के फाउंडर केरल के एक ईसाई परिवार में जन्मे केएम मैमन मापिल्लई (K. M. Mammen Mappillai) हैं. उन्होंने 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई थी. सबकुछ बढ़िया चल रहा था, फिर मापिल्लई ने देखा कि एक विदेशी कंपनी टायर रीट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की सप्लाई कर रही है. तब उनके दिमाग में भी ऐसा कुछ करने का आइडिया आया. बता दें कि रीट्रेडिंग पुराने टायरों को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाने को कहा जाता है. जबकि ट्रेड रबर टायर का ऊपरी हिस्सा होती है. इसके बाद मापिल्लई ने अपनी सारी पूंजी ट्रेड रबर बनाने के बिजनेस में लगा दी और इस तरह मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) का जन्म हुआ.

इनसे है MRF का मुकाबला
MRF ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी थी. केएम मैमन मापिल्लई ने हाई क्वालिटी टायर बनाये और विदेशी कंपनियों की बादशाहत खत्म कर दी. 1960 के बाद से कंपनी ने टायर बनाना शुरू कर किया और आज भारत में टायर की सबसे बड़ी टायर मैन्युफैक्चरर है. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में टायर इंडस्ट्री का मार्केट करीब 60,000 करोड़ रुपए का है. MRF का असली मुकाबला जेके टायर एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड और सिएट टायर्स से है. कंपनी के देश में 2500 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं. कंपनी दुनिया के 75 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट भी करती है.

मापिल्लई ने सड़क पर बेचे थे गुब्बारे
केएम मैमन मापिल्लई का बचपन अभावों में गुजरा था. मापिल्लई के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और आजादी की लड़ाई के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मापिल्लई के कन्धों पर आ गई. परिवार का पेट भरने के लिए उन्होंने सड़कों पर गुब्बारे बेचने का काम शुरू किया. 6 साल तक यह करने के बाद 1946 में उन्होंने बच्चों के लिए खिलौने और गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई, जो आगे चलकर MRF बन गई. उन्होंने कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. साल 2003 में 80 साल की उम्र में मापिल्लई का निधन हो गया. मापिल्लई के दुनिया से जाने के बाद उनके बेटों ने बिजनेस संभाला और जल्द ही उनकी कंपनी नंबर-1 की पोजीशन पर आ गई.  


शेयर बाजार से भी खूब पैसा बना रहे हैं Rahul Gandhi, कुछ ऐसा है उनका पोर्टफोलियो

राहुल गांधी ने कई कंपनियों के शेयरों में पैसा लगाया हुआ है. इसमें पिडलाइट इंडस्ट्रीज, बजाज फाइनेंस और नेस्ले इंडिया भी शामिल हैं.

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Friday, 03 May, 2024
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शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करने वालों में केवल आप और हम जैसे सामान्य निवेशक ही शामिल नहीं हैं. पॉलिटिकल लीडर्स ने भी उसमें जमकर इन्वेस्टमेंट किया हुआ है. देश के गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के स्टॉक मार्केट पोर्टफोलियो से हमने आपको कुछ दिन पहले परिचित कराया था. अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि कांग्रेस लीडर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने शेयर बाजार में कितना पैसा लगाया है. 

2 सीटों से लड़ रहे चुनाव 
राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट के साथ ही उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से भी चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. यह सीट अब तक कांग्रेस के लिए लकी साबित होती आई है. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से सोनिया गांधी ने जीत हासिल की थी. राहुल गांधी ने वायनाड से नामांकन दाखिल करते हुए अपनी संपत्ति का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को दिया था. इसके आधार पर यह बात सामने आई है कि कांग्रेस लीडर ने शेयर बाजार में कितना पैसा लगाया है.

ये हैं टॉप 5 स्टॉक
कांग्रेस लीडर के स्टॉक पोर्टफोलियो के टॉप 5 शेयर हैं - पिडलाइट इंडस्ट्रीज, बजाज फाइनेंस, नेस्ले इंडिया, एशियन पेंट्स और टाइटन. राहुल के पिडलाइट इंडस्ट्रीज के शेयरों की वैल्यू 42.27 लाख रुपए है. पिछले 1 साल में इस स्टॉक ने उन्हें 29.30% रिटर्न दिया है. उनके पास एशियन पेंट्स लिमिटेड, बजाज फाइनेंस लिमिटेड और नेस्ले इंडिया लिमिटेड के 35-36 लाख रुपए के शेयर हैं. मिड और स्मॉलकैप शेयरों में उनके पास 14 लाख रुपए की वैल्यू वाले GMM Pfaudler, 11.92 लाख रुपए के दीपक नाइट्राइट, ट्यूब इन्वेस्टमेंट्स के 12.10 लाख, फाइन ऑर्गेनिक्स के 8.56 लाख और Info Edge के 4.45 लाख रुपए के शेयर हैं.  

ये है पूरा पोर्टफोलियो
उनके पास एल्काइल अमाइंस केमिकल्स के 373, एशियन पेंट्स के 1231, बजाज फाइनेंस के 551, Deepak Nitrite के 568, डिविस लैब के 567, डॉ लाल पैथलैब्स के 516, फाइन आर्गेनिक इंडस्ट्रीज के 211, गरवारे टेक्निकल फाइबर्स के 508, GMM Pfaudler के 1121, हिंदुस्तान यूनिलीवर के 1161, ICICI बैंक के 2299, इन्फो ऐज इंडिया के 85, इंफोसिस के 870, ITC के 3093, LTI माइंडट्री के 407, मोल्ड टेक पैकेजिंग के 1953, नेस्ले इंडिया के 1370, पिडलाइट इंडस्ट्रीज के 1474, सुपराजित इंडस्ट्रीज के 4068, TCS के 234, टाइटन के 897, ट्यूब इन्वेस्टमेंट के 340, वेटरीज एडवरटाइजिंग के 260, विनाइल केमिकल्स के 960 और ब्रिटानिया के 52 शेयर हैं. इस तरह उनके पोर्टफोलियो में कुल 25169 शेयर हैं, जिनकी वैल्यू 4,33,60, 519 रुपए है.   


भारत की Tesla के खिलाफ कोर्ट पहुंची मस्‍क की Tesla, ये लगाए आरोप 

टेस्‍ला की ओर से दायर की गई इस याचिका की अगली सुनवाई अब 22 मई को होगी. उस सुनवाई तक हाईकोर्ट ने भारत की टेस्‍ला पर विज्ञापन देने पर रोक लगा दी है. 

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Friday, 03 May, 2024
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एलन मस्‍क की पीएम मोदी से होने वाली मुलाकात के फिलहाल स्‍थगित होने के बाद उनकी कंपनी ने टेस्‍ला ने भारत की एक कंपनी के खिलाफ ट्रेडमार्क एक्‍ट के तहत दिल्‍ली हाईकोर्ट में मुकदमा दाखिला कर दिया है. कंपनी ने हाईकोर्ट में लगाई अपनी याचिका में कहा है कि गुरुग्राम स्थित बैटरी कंपनी उसके नाम और लोगो का इस्‍तेमाल कर रही है, जिससे उसकी छवि प्रभावित हो रही है. 

दिल्‍ली हाईकोर्ट में टेस्‍ला ने कही क्‍या बात? 
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने गुरुग्राम स्थित जिस कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की है उसका नाम टेस्‍ला पावर इंडिया है. मस्‍क की कंपनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उस कंपनी को टेस्‍ला का नाम इसतेमाल करने से रोका जाए क्‍योंकि इससे ग्राहकों के बीच में भ्रम पैदा हो रहा है. टेस्‍ला की ओर से पेश हुए वकील चंदर कुमार ने कोर्ट को बताया कि टेस्‍ला पॉवर के द्वारा नाम इस्‍तेमाल किए जाने के कारण ग्राहकों में भ्रम पैदा हो रहा. 

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खुद को बता रही है इलेक्ट्रिक व्‍हीकल कंपनी 
मस्‍क की कंपनी टेस्‍ला की ओर से ये भी कहा गया है कि टेस्‍ला पावर इंडिया अखबारों में विज्ञापन देकर खुद को इलेक्ट्रिक व्‍हीकल कंपनी बता रही है. कंपनी टेस्‍ला के लोगो का भी इस्‍तेमाल कर रही है जिससे कंपनी की प्रतिष्‍ठा को छवि पहुंच रही है. याचिका में ये भी कहा गया है कि टेस्‍ला पावर की बैटरी में आने वाली समस्‍याओं के लिए अमेरिकी कंपनी ईवी मेकर टेस्‍ला इंक को रिडायरेक्‍ट कर दी जा रही हैं. क्‍योंकि ग्राहक समझ रहे हैं कि वो एलन मस्‍क की कंपनी का प्रोडक्‍ट है. 

22 मई को होगी अगली सुनवाई
अमेरिकी कंपनी की याचिका के बाद इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गुरुग्राम स्थित कंपनी को नोटिस जारी कर दिया है. कंपनी को अगली सुनवाई तक ट्रेडमार्क इस्‍तेमाल करने और ईवी प्रोडक्‍ट के साथ विज्ञापन देने पर रोक लगा दी है. अब कोर्ट इस मामले की सुनवाई 22 मई को करेगी जब देखना होगा कि आखिर गुरुग्राम स्थि‍त कंपनी मस्‍क की कंपनी की इस याचिका पर क्‍या जवाब देती है. 


आखिर कौन है किशोरी लाल शर्मा, जिन्‍हें कहा जा रहा है गांधी परिवार का भरोसेमंद !

किशोरी लाल शर्मा वैसे तो मूल रूप से लुधियाना के रहने वाले हैं लेकिन 80 के दशक में जब राजीव गांधी उन्‍हें अमेठी लेकर आए तो उसके बाद वो यहीं के होकर रह गए. 

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Friday, 03 May, 2024
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लंबे समय से चले आ रहे संशय के बीच आखिरकार गांधी परिवार ने रायबरेली और अमेठी से अपने उम्‍मीदवारों का ऐलान कर दिया है. रायबरेली से जहां राहुल गांधी चुनाव लड़ने जा रहे हैं वहीं अमेठी से जिस शख्‍स पर गांधी परिवार ने भरोसा जताया है उसकी हर ओर चर्चा हो रही है. अमेठी से जिस शख्‍स पर पार्टी ने भरोसा जताया है उसका नाम है किशोरी लाल शर्मा. आखिर कौन है ये किशोरी लाल शर्मा आज अपनी इस स्‍टोरी में हम आपको यही इनसाइड स्‍टोरी बताने जा रहे हैं. 

गांधी परिवार से लंबे समय से जुड़े हैं किशोरी लाल 
किशोरी लाल शर्मा मूल रूप से लुधियाना पंजाब के रहने वाले हैं. कहा जाता है कि 1983 के आसपास राजीव गांधी उन्‍हें लुधियाना से अमेठी लेकर आए थे. तब से वो अमेठी में ही रह रहे हैं और यहीं के होकर रह गए. 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद वो लगातार पार्टी के लिए लगातार काम करते रहे. इसके बाद जब रायबरेली से जब सोनिया गांधी लगातार सांसद रही तो किशोरी लाल ही उनकी अनुपस्थिति में उनकी भूमिका निभाते थे. वो सोनिया गांधी के सांसद प्रतिनिधि थे. क्‍योंकि इस बार सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों को भावनात्‍मक खत लिखकर चुनाव न लड़ने की बात कही थी तो ऐसे में कयास यही लगाए जा रहे थे कि पार्टी किशोरी लाल को यहां से अपना उम्‍मीदवार बनाएगी. लेकिन इस बीच राहुल के एक बार फिर अमेठी और प्रियंका के रायबरेली से चुनाव लड़ने की खबरों के बीच किशोरी लाल का नाम चर्चा से दूर हो गया. लेकिन पार्टी की रणनीति में बदलाव होते ही पार्टी ने रायबरेली से राहुल को तो अमेठी से किशोरी लाल को उम्‍मीदवार बना दिया है. 

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आज अमेठी और रायबरेली में होगा नामांकन 
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अमेठी और रायबरेली सीट में चुनाव लड़ने के लिए आज नामांकन प्रक्रिया का आखिरी दिन है. इसी कड़ी में राहुल गांधी भी आज नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं. साथ ही कांग्रेस पार्टी की ओर से अमेठी से उम्‍मीदवार बनाए गए के एल शर्मा भी आज नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं. केएल शर्मा के सामने बीजेपी की कद्दावर नेता स्‍मृति ईरानी चुनाव लड़ रही हैं. वो अमेठी से पिछले चुनाव में राहुल गांधी को हराकर चुनाव जीती थी. 

अमेठी, रायबरेली से रहा है गांधी परिवार का पुरान रिश्‍ता 
अमेठी और रायबरेली से गांधी परिवार का पुराना रिश्‍ता रहा है. इस सीट पर सबसे पहले फिरोज गांधी ने 1952 और 1957 में चुनाव लड़ा था. इसके बाद 1967 में हुए लोकसभा चुनावों में यहां से इंदिरा गांधी लड़ी और जीतकर लोकसभा में पहुंची. इसके बाद 1971 में भी वो रायबरेली से लड़ी और जीतीं लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में वो इस सीट से चुनाव हार गई. ये वो दौर था जब कांग्रेस पार्टी ही चुनाव हार गई थी. लेकिन इसके बाद 1980 में हुए चुनावों में इंदिरा गांधी ने यहां से फिर चुनाव लड़ा और वो जीत गई. वहीं अमेठी सीट से कांग्रेस पार्टी का रिश्‍ता 1980 के दशक के जुड़ा, जब संजय गांधी इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. संजय गांधी की मौत हो जाने के बाद 1981 में हुए चुनाव में राहुल गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा और वो जीतकर लोकसभा पहुंचे. लेकिन उसके बाद 1991 से 1999 तक गांधी परिवार को कोई भी आदमी इस सीट पर नहीं रहा. लेकिन उसके बाद 2004 से राहुल गांधी इस सीट से लड़े और 2014 तक सांसद रहे. लेकिन 2019 में स्‍मृति ईरानी यहां से चुनाव जीत गई. अब 2024 में किशोरी लाल इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. 


राहुल गांधी को टक्‍कर देने वाले BJP उम्‍मीदवार को कितना जानते हैं आप? करोड़ों की है दौलत 

दिनेश प्रताप सिंह इससे पहले 2019 में भी सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. 2019 में वो चुनाव जीत तो नहीं सके लेकिन 4 लाख वोट पाने में कामयाब जरूर रहे थे. 

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Friday, 03 May, 2024
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आखिरकार अमेठी और रायबरेली जैसी हाट सीटों से उम्‍मीदवारों के नामों का ऐलान हो चुका है. रायबरेली से जहां राहुल गांधी आज नामांकन कर चुके हैं वहीं दूसरी ओर अमेठी से कांग्रेस ने के एल शर्मा को मैदान में उतारा है. जबकि बीजेपी पहले ही रायबरेली से अपने उम्‍मीदवार के नाम का ऐलान कर चुकी है. बीजेपी वहां से अपने पुराने उम्‍मीदवार दिनेश प्रताप सिंह के नाम का ऐलान कर चुकी है. आज हम आपको दिनेश प्रताप सिंह के सफर से लेकर उनकी दौलत के बारे में विस्‍तार से जानकारी देने जा रहे हैं. 

आखिर कहां से शुरू हुआ राजनीतिक करियर 
दिनेश प्रताप सिंह का राजनीतिक करियर 2004 में हुआ जब उन्‍होंने समाजवादी पार्टी से विधान परिषद का चुनाव लड़ा. लेकिन इसके बाद 2007 में उन्‍होंने बीएसपी के टिकट पर तिलोई से चुनाव लड़ा और हार गए. इसके बाद दिनेश प्रताप सिंह पहुंचे कांग्रेस में और 2010 और 2016 में पार्षद बने. इसके बाद दिनेश प्रताप सिंह 2019 में बीजेपी में शामिल हो गए और पार्टी ने उन्‍हें रायबरेली से अपना उम्‍मीदवार बना दिया. हालांकि दिनेश प्रताप सिंह जीतने में कामयाब नहीं हो पाए लेकिन 4 लाख वोट पाकर सभी की नजरों में जरूर आ गए. 

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आखिर कितनी है दिनेश प्रताप सिंह के पास दौलत 
बीजेपी उम्‍मीदवार दिनेश प्रताप सिंह को पार्टी ने 2019 में भी यहां से अपना उम्‍मीदवार बनाया था. उस वक्‍त यहां से कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही थी. 2019 में चुनाव आयोग को दिए अपने शपथ पत्र में दिनेश प्रताप सिंह ने जो जानकारी दी थी उसके अनुसार उन्‍होंने 2016-17 में अपनी आय 14,28,917 रुपये दिखाई थी जबकि 2017-18 में उसमें बेहद कम बदलाव दिखाई दिया. उनकी आय 1493722 रुपये रही. जबकि उन्‍होंने बताया था कि उनके पास 5 लाख रुपये हाथ में कैश है जबकि उनकी पत्‍नी के पास 3 लाख 40 हजार रुपये का कैश था. उनके आरबीएल बैंक में 525069 रुपये, ओबीसी बैंक में 2 लाख 50 हजार रुपये हैं. 

कहां किया है दिनेश प्रताप सिंह ने निवेश 
बीजेपी उम्‍मीदवार दिनेश प्रताप सिंह ने मालविका सीमेंट में 51 लाख का निवेश किया है जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा के भी शेयर उनके पास हैं. इसी तरह से उन्‍होंने 41,54,743 लाख रुपये अलग-अलग पॉलिसी में जमा किए हैं. उनके पास एक फॉर्च्‍यूनर कार है जिसकी कीमत 14 लाख रुपये है. इसी तरह से एक टाटा सफारी भी है जिसकी कीमत 11 लाख से ज्‍यादा है. उन्‍होंने 2019 के शपथ पत्र में जो जानकारी दी है उसके अनुसार उनके पास 1 लाख 10 हजार की पिस्‍टल, 80 हजार की रायफल, और एक 14 हजार रुपये की डीबीबीएल गन मौजूद है. कुल मिलाकर उनके पास 1 करोड़ 39 लाख 34 हजार 980 रुपये की चल संपत्ति है. जबकि 1 करोड़ 40 लाख रुपये की अचल संपत्ति है. उनके उपर कुल 9 लाख 72 हजार 748 रुपये का कर्ज भी है. 
 


कर्ज में डूबी इस कंपनी को खरीदने के लिए अडानी, जिंदल भी कतार में, अब भागेंगे इसके शेयर?

कर्ज में डूबी 1,800 मेगावाट की केएसके महानदी थर्मल पावर प्रोजेक्ट को खरीदने के लिए 26 कंपनियां लाइन में लगी हैं. 

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Friday, 03 May, 2024
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छत्तीसगढ़ स्थित केएसके (KSK) महानदी थर्मल पावर इस समय राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (NCLT) में कॉरपोरेट दीवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) से गुजर रही है. वहीं, अब कई बड़ी कंपनियां इस कर्ज में डूबी कंपनी को खरीदना चाहती हैं. आपको ये जानकर हैरानी हो रही होगी, कि इस कंपनी को खरीदने के लिए गौतम अडानी से लेकर जिंदल, स्वान एनर्जी, वेदांता, कोल इंडिया और NTPC जैसी 26 कंपनियां लाइन में लगी हुई हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि इतने बड़े ग्रुप क्यों इस कंपनी को खरीदना चाहेंगे, तो चलिए आपको इसके पीछे का कारण भी बताते हैं.

32,000 करोड़ रुपये का लोन 
केएसके (KSK) महानदी थर्मल पावर साल 2018 में 20,000 करोड़ रुपये बैंक लोन का भुगतान करने से चूक गई थी. जिसके बाद इसे नीलामी के लिए रखा गया था, लेकिन अब नीलामी केनेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने इसकी नीलामी पर से लगी रोक हटा दी है, जिससे बोली के नए दौर का रास्ता साफ हो गया है. इस प्रोजेक्ट पर ऋणदाताओं का कुल दावा लगभग 32,000 करोड़ रुपये आंका गया है. यह प्रोजेक्ट इनसॉल्वेंसी प्रोसेस के तहत नीलामी के फ्रेश राउंड से गुजर रहा है. NCLT ने एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सौंपने के लिए 26 अप्रैल तक का समय दिया था, लेकिन इसके लिए 18 जून तक रिजॉल्यूशन प्लान सौंपा जा सकता है.

इसलिए मची प्रोजेक्ट को खरीदने की होड़
जानकारी के अनुसार केएसके महानदी का पावर प्लांट चालू है और हाल में देश में थर्मल पावर कैपेसिटी को रिवाइव करने के प्रयास किए जा रहे हैं. यही कारण है कि कंपनियां ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए बोली लगाने में रुचि दिखा रही हैं. प्रोजेक्ट के स्टेकहोल्डर्स चाहते थे कि प्रोजेक्ट से जुड़ी दो कंपनियां केएसके महानदी वॉटर और रायगढ़ चंपा रेल को कंसोलिडेट किया जाए. केएसके महानदी वॉटर इस प्रोजेक्ट तक पानी की एक पाइपलाइन ऑपरेट करती है, जबकि रायगढ़ चंपा रेल प्रोजेक्ट तक कच्चा माल ले जाती है. लेकिन देरी होने के कारण NCLT ने केएसके महानदी प्रोजेक्ट को स्टैंडअलोन बेसिस पर इनसॉल्वेंसी में भेजने पर सहमति जताई है.

कंपनियां पहले भी लगा चुकी हैं बोली
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जिंदल पावर लिमिटेड बिजली क्षेत्र में संकटग्रस्त एसेट्स को खरीदने के अवसर तलाश रही है. छत्तीसगढ़ में स्थित 1,800 मेगावाट क्षमता वाला केएसके महानदी ऐसा ही एक प्लांट है, जिसे वो खरीदना चाहते हैं. एनसीएलटी ने केएसके महानदी और उसकी दो सहायक कंपनियों की बिक्री पर जून 2022 में रोक लगा दी थी. इंडस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि इस दौर में प्रोजेक्ट को बेहतर वैल्यू मिलने की उम्मीद है. अडानी पावर, जिंदल पावर और वेदांता समेत कई कंपनियों ने पहले दौर की नीलामी में भी बोली लगाई थी.

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SBI ने दिया था लोन
इस प्रोजेक्ट को लोन देने वाला भारतीय स्टेट बैंक (SBI) सबसे बड़ा बैंक था. मार्च में 6 एसेट कंस्ट्रक्शन कंपनियों (ARC) ने 55 प्रतिशत कर्ज ले लिया था. इसमें आदित्य बिड़ला और कोटक महिंद्रा समर्थित एआरसी शामिल हैं. आदित्य बिड़ला एआरसी के पास केएसके महानदी पावर से प्राप्त दावों में सबसे अधिक 33.38 प्रतिशत हिस्सा है. एएसआरईसी (इंडिया) लिमिटेड की हिस्सेदारी 11.98 प्रतिशत है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लेंडर्स के कुल 32,000 करोड़ रुपये के दावे में से पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन और आरईसी का दावा 5,500 करोड़ रुपये का है.


Raebareli में नाक की लड़ाई, यूपी की 'नाक' ऊंची रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है ये शहर 

रायबरेली में BJP और कांग्रेस के बीच नाक की लड़ाई होगी. राहुल गांधी यहां से BJP के दिनेश प्रताप सिंह के खिलाफ लड़ रहे हैं. ये शहर आर्थिक रूप से यूपी की नाक ऊंची रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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Friday, 03 May, 2024
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कांग्रेस लीडर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अमेठी के बजाए रायबरेली (Raebareli) से चुनाव लड़ रहे हैं. पहले उनके अमेठी से मैदान में उतरने की खबर थी. रायबरेली उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित लोकसभा सीट है. सालों तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन अब स्थिति काफी अलग है. रायबरेली का जहां अपना एक दिलचस्प राजनीतिक इतिहास है. वहीं, ये शहर उत्तर प्रदेश की अर्थव्यस्था में अहम योगदान भी देता रहा है. यहां बहुत कुछ ऐसा है, जो इसे दूसरों से खास बनाता है. रायबरेली में पारंपरिक कलाओं का भी बहुत लंबा इतिहास है. सेमरौता के जूते, महराजगंज के पीतल के बर्तन और ककोरन के मिट्टी के खिलौने इस जिले की शान को हमेशा से बढ़ाते रहे हैं.

इतनी है इंडस्ट्रियल GDP
रायबरेली की अर्थव्यवस्था पहले केवल कृषि पर ही आधारित थी, लेकिन सत्तर के दशक में यह जिला देश के औद्योगिक मानचित्र पर नजर आने लगा. आजाद भारत की पहली पब्लिक सेक्टर यूनिट मेसर्स इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इसके बाद कई औद्योगिक घरानों ने रायबरेली का रुख किया. कुछ वक्त पहले तक शहर इंडस्ट्रियल GDP प्रति वर्ष 4% की दर से बढ़ रही थी, जो राष्ट्रीय औसत के अनुकूल है. आज रायबरेली में कई मेजर और मिनी इंडस्ट्रियल एरिया हैं, जहां से कई कंपनियां कारोबार कर रही हैं. हालांकि, रायबरेली पेपर मिल्स, मित्तल फर्टिलाइजर्स, नेशनल स्विचगियर, वेस्पा कंपनी सहित कुछ उद्योग बंद भी हुए हैं. लेकिन योगी सरकार इस दिशा में सुधार के लिए तेजी से काम कर रही है.

NTPC सहित कई बड़े नाम
फिरोज गांधी थर्मल पावर प्रोजेक्ट की शुरुआत रायबरेली में 27 जून 1981 को की गई थी. यह यूनिट पूरे भारत में उच्चतम प्लांट लोड फैक्टर के लिए जानी जाती है. इस इकाई को 1992 में NTPC को सौंप दिया गया था. 840 मेगावाट की उत्पादन क्षमता अब 1500 मेगावाट पर अपग्रेड हो गई है. NTPC की यह यूनिट थर्मल पावर इकाइयों के लिए रोल मॉडल की तरह है. इस जिले में नंदगंज सिरोही चीनी मिल भी स्थित है. गन्ना किसानों की समस्याओं को समझने के बाद 1979 में इस मिल की स्थापना की गई थी. 1998 में मिल का विस्तार किया गया और तब से इसका दैनिक उत्पादन 1500 क्विंटल हो गया. यह चीनी मिल स्थानीय गन्ना उत्पादकों को एक अच्छा बाजार प्रदान करती है. साथ ही इस मिल से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है. इसके अलावा, यहां बिड़ला सीमेंट फैक्ट्री, श्री भवानी पेपर मिल्स लिमिटेड, कॉन्सेप्टा केबल्स लिमिटेड भी मौजूद हैं. श्री भवानी पेपर मिल्स की शुरुआत वर्ष 1983 में हुई थी. पेपर मिल प्रतिदिन लगभग 45 से 50 टन कागज का उत्पादन कर रही है. कागज के उत्पादन के लिए कच्चा माल जिले से ही खरीदा जाता है, जिससे जिले के चावल मिल मालिकों और व्यापारियों को लाभ होता है. जबकि कॉन्सेप्टा केबल्स की फैक्ट्री की स्थापना 1983 में हुई थी.

हैंडीक्राफ्ट बिजनेस काफी लोकप्रिय
रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री भी है. यहां देश की तीसरी रेल कोच निर्माण इकाई है, जिसे नवंबर 2012 में सोनिया गांधी द्वारा बतौर सांसद स्थापित किया गया था. रायबरेली, देश के औद्योगिक कारोबार में अपना एक अलग स्थान रखता है और उत्तर प्रदेश की इकॉनमी में महत्वपूर्ण योगदान देता है. Vishakha Industries Ltd, U. P. State Spinning Mill Company, Malwika Cement Pvt., Shri Niwasji Oil, Refiners और Shreya Engineering भी रायबरेली के प्रमुख उद्योगों में शामिल हैं. इसके अलावा, यहां कई स्मॉल स्केल इंडस्ट्री भी मौजूद हैं, जो जिले की बढ़ती अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं. यहां का हैंडीक्राफ्ट बिजनेस काफी लोकप्रिय है. जिले में कई बेहतरीन एजुकेशन इंस्टीटूट भी हैं. 

पर्यटन से कमाई में भी योगदान
उत्तर प्रदेश को पर्यटन से होने वाली कमाई में रायबरेली भी कॉन्ट्रिब्यूशन देता है. 250 से अधिक पक्षी प्रजातियों की विविधता वाला समसपुर पक्षी अभयारण्य, बेहटा ब्रिज और 1986 में स्थापित इंदिरा गांधी मेमोरियल बॉटनिकल गार्डन जैसे कुछ बेहतरीन पर्यटन स्थल यहां मौजूद हैं. इसके अलावा मुगल काल और अवध राजवंश के प्रमुख आकर्षण पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को रायबरेली की ओर खींचते हैं. पिछले साल रायबरेली जिले में 1262 करोड़ रुपए की लागत से 80 उद्योग लगाने के लिए प्रस्ताव आए थे, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा. योगी सरकार इस शहर के महत्व को समझती है, इसलिए इसे लगातार बेहतर बनाने के प्रयास जारी हैं. 


जब दुनिया में मंदी की खबर तो अमेरिका-भारत की अर्थव्यवस्था उड़ान पर, जानिए कैसे?

पूंजीगत व्यय 3 गुना हायर मल्टिप्लायर के माध्यम से अधिक बड़ा और उच्च गुणवत्ता वाला लाभ प्रदान करता है और शेष विश्व के मुकाबले भारत को बेहतर स्थिति में बनाए रखना चाहिए.

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Friday, 03 May, 2024
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सच्चिदानंद शुक्ला

 

कीमतों के दबाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था आश्चर्यजनक रूप से लचीली रही है, लेकिन अब इसकी कोई खबर नहीं है. परंतु कुछ समय पहले, मॉडलों द्वारा समर्थित अधिकांश पूर्वानुमानों में निराशा का भाव था और वे अमेरिका, यूरोपीय संघ में मंदी का संकेत दे रहे थे और फिर बाद में इसे धीमी वृद्धि में बदल दिया, अंत में विकास में मजबूती के सामने घुटने टेक दिए. आर्थिक मॉडल और धारणाएं नीति में कठोरता लाती हैं लेकिन वे विनाश भी लाती हैं.

अर्थव्यवस्थाओं में दिखी सकारात्मकता

दो अर्थव्यवस्थाएँ, खास तौर पर अमेरिका और भारत ने अपने डेटा और विकास पूर्वानुमानों में उम्मीदों की तुलना में महत्वपूर्ण सकारात्मकता दिखाई है. वास्तव में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती अब विकास के कारण के बारे में नए सिद्धांतों को जन्म दे रही है. अमेरिका में कुछ विशेषज्ञों ने एक ऐसा सवाल पूछना शुरू कर दिया है जो अजीब लग सकता है. वे पूछते हैं, क्या होगा अगर पिछले दो सालों में ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी वास्तव में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है? वे कहते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था कम समय में 5 गुना बढ़ी उच्च ब्याज दरों के बावजूद नहीं बल्कि उनके कारण बढ़ रही है.

लेकिन ऐसे सिद्धांत अभी भी प्रचलन में हैं क्योंकि अर्थशास्त्री और शोधकर्ता इससे भी अधिक गूढ़ सिद्धांत लेकर आते हैं. कुछ समय पहले का MMT याद है? समय में थोड़ा पीछे जाएं, 1978 में एक युवा शोधकर्ता ने एक अध्ययन शुरू किया जिसका शीर्षक था; इंटरस्टेलर व्यापार सिद्धांत को समझना, प्रकाश की गति से यात्रा करने पर वस्तुओं पर ब्याज कैसे लगाया जाना चाहिए. यह शोध प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के तत्वावधान में किया गया था और अंदाजा लगाइए कि उस शोध के लेखक कौन थे, वह पॉल क्रुगमैन थे, जिन्होंने वर्ष 2008 में अर्थशास्त्र में नोबेल जीता था.

अमेरिका ने किया है बेहतर प्रदर्शन

अमेरिका के मामले में, निजी खपत में अपेक्षा से अधिक वृद्धि तथा श्रम बाजार में कमी के कारण यह प्रदर्शन बेहतर रहा. रोजगार में मजबूती बनी रही, मार्च में 303,000 नौकरियां जुड़ीं जो एक साल से अधिक समय में सबसे बड़ी वृद्धि है तथा बेरोजगारी दर भी कम होकर 3.8 प्रतिशत पर आ गई. इसके साथ ही कॉर्पोरेट मुनाफा भी मजबूत बना हुआ है.

भारत के GDP के अनुमान में हुई है बढ़ोत्तरी

आइए अब भारत पर नज़र डालें, IMF ने वित्त वर्ष 2024 में भारत की जीडीपी वृद्धि के लिए अपने पूर्वानुमान को 110 BPS बढ़ाकर 7.8 प्रतिशत कर दिया है, जो संयोग से NSO द्वारा अपने दूसरे एडवांस अनुमान में देखी गई 7.6% की विस्तार दर से भी अधिक है. इसने वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान को भी 30 BPS बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया और वित्त वर्ष 2026 के लिए पूर्वानुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा. हमने हाल ही में ORCD, विश्व बैंक, S&P और फिच आदि को एक के बाद एक अपने पूर्वानुमान बढ़ाते हुए देखा है.

US फेड की आक्रामक दर डाल सकती है असर

लेकिन क्या अच्छी खबरों की बाढ़ जैसे कि मजबूत विकास डेटा, ऊपर की ओर संशोधन आदि में कोई समस्या है? मुद्दा यह है - यह सब सकारात्मक लगता है, लेकिन ये सभी रुझान जरूरी नहीं कि उन बाजारों के लिए ‘अच्छी खबर’ हों जो 2023 की दूसरी छमाही से दर में कटौती की उम्मीद कर रहे हैं. US फेड आक्रामक दर बढ़ोतरी के माध्यम से अर्थव्यवस्था को धीमा करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन निरंतर लचीलापन इसे कटौती के बजाय दरें बढ़ाने के लिए भी मजबूर कर सकता है, एक ऐसा कदम जो विकास को प्रभावित कर सकता है और नौकरी के नुकसान को ट्रिगर कर सकता है. निरंतर मजबूत विकास, लेबर की शॉर्टेज में कमी, प्रोडक्टिविटी में उछाल इस बात के संकेत हैं कि पाइपलाइन में आगे भी अव्यक्त मुद्रास्फीति दबाव हो सकता है और इसका हिसाब केंद्रीय बैंक को देना होगा.
पिछले साल के आखिर में बाजार वित्त वर्ष 2024 में फेड से लगभग 150 BPS की दर कटौती की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन अब यह अधिकांश के लिए 50 BPS और कुछ के लिए शून्य तक गिर गया है. भारत में भी निकट भविष्य में वायदा दरों में कटौती की संभावना नहीं दिख रही है.

अमेरिका का राजकोषीय घाटा चिंताजनक स्तर पर पहुंचा

इन व्याख्याओं में जो कमी रह गई है, वह राजकोषीय खर्च की भूमिका हो सकती है. वर्ष 2024 में दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी वाले रिकॉर्ड संख्या में देश में चुनाव हो रहे हैं. IMF दिखाता है कि सरकारें चुनाव के वर्षों में ज़्यादा खर्च करती हैं और कम टैक्स लगाती हैं और इसलिए गैर-चुनावी वर्षों की तुलना में घाटा जीडीपी के 0.4 प्रतिशत अंकों से पूर्वानुमान से ज़्यादा होता है.

अमेरिका की राजकोषीय नीति अस्वाभाविक रूप से लचर है और राजकोषीय घाटा चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है. ढीली वित्तीय स्थितियों ने फेड की आक्रामक दर वृद्धि को बेअसर कर दिया है. जैसे-जैसे महामारी गुज़री, राजकोषीय नीति को सख्त करने की व्यापक रूप से आवश्यकता होने की उम्मीद थी. हालाँकि, IRA और CHIPS एक्ट ने राजकोषीय सख्ती की प्रक्रिया को आंशिक रूप से उलट दिया और  सरकार का घाटा जीडीपी के 5.3% से बढ़कर 6.3% हो गया.

भारत अपना रहा है स्मार्ट खर्च नीति

IMF ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया को अब तक के सबसे बड़े चुनावी वर्ष में राजकोषीय रिस्ट्रेन की जरूरत है और सरकारों को बढ़ते कर्ज के बीच राजकोषीय समेकन पर बने रहना चाहिए. पिछले दो वर्षों में ऋण और घाटे में तेजी से सुधार के बाद पिछले साल राजकोषीय नीति विस्तारवादी हो गई, लेकिन दुनिया की केवल आधी अर्थव्यवस्थाओं ने 2023 में राजकोषीय नीति को कड़ा किया, जो 2022 में लगभग 70% था.

हालांकि, इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि भारत अपने 'स्मार्ट' खर्च राजकोषीय दृष्टिकोण के साथ अलग खड़ा है, जो आम चुनावी वर्ष की फिजूलखर्ची से बचता है, जो एक उल्लेखनीय बदलाव है. महामारी के दौरान राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 9.2 प्रतिशत के शिखर से घटाकर वित्त वर्ष 25 में लक्षित 5.1 प्रतिशत पर लाया गया है. साथ ही भारत की वृद्धि 'अच्छे' राजकोषीय खर्च यानी बुनियादी ढांचे में मजबूत सार्वजनिक निवेश से प्रेरित हो रही है. पूंजीगत व्यय के लिए केंद्र का बजट आवंटन महामारी से पहले वित्त वर्ष 2019 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.6 प्रतिशत से दोगुना होकर वित्त वर्ष 2025 में सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 प्रतिशत हो गया है. राज्यों को भी पूंजीगत व्यय पर अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. कैपिटल एक्सपेंडिचर 3 गुना हायर मल्टिप्लायर के माध्यम से पैसे के लिए एक बड़ा और उच्च गुणवत्ता प्रदान करता है और इसे दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले भारत को अच्छी स्थिति में जारी रखना चाहिए.

(यह लेख L&T की ग्रुप चीफ इकोनॉमिस्ट सच्चिदानंद शुक्ला के निजी विचार है)