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इकोनॉमी पर पड़ी दोहरी मारः अगस्त में फिर से बढ़ गया Retail Inflation, Production भी गिरा
भारतीय रिजर्व बैंक के तमाम प्रयासों के बावजूद महंगाई दर में बढ़ोतरी रहना संकेत देता है कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट में फिर से बढ़ोतरी कर सकता है ताकि इसको 2-6 फीसदी के स्तर पर लाया जा सके.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्लीः अगस्त महीने में इकोनॉमी पर दोहरी मार पड़ी है. जहां खुदरा महंगाई दर में एक बार फिर से इजाफा देखने को मिला, वहीं जुलाई महीने के लिए औद्योगिक उत्पादन में गिरावट देखने को मिली है. यह बढ़ोतरी खाने-पीने के सामान की कीमतों में वृद्धि होने की वजह से हुई है. भारतीय रिजर्व बैंक के तमाम प्रयासों के बावजूद महंगाई दर में बढ़ोतरी रहना संकेत देता है कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट में फिर से बढ़ोतरी कर सकता है ताकि इसको 2-6 फीसदी के स्तर पर लाया जा सके.
इतनी रही महंगाई दर
अगस्त के अंत में भारत द्वारा गेहूं के आटे के निर्यात को प्रतिबंधित करने के बावजूद, मुद्रास्फीति अगस्त में 7 फीसदी तक पहुंच गई. अगस्त 2022 में खाद्य मुद्रास्फीति 7.62 फीसदी पर आ गई, जबकि पिछले महीने यह 6.75 फीसदी थी. सब्जियों की महंगाई दर अगस्त में 13.23 फीसदी बढ़ी. दालों के लिए महंगाई दर 2.52 फीसदी पर आ गई. दालों, चावल और गेहूं सहित कुछ प्रमुख घटकों में उनकी औसत कीमतों में वृद्धि देखी गई. यह अगस्त 2022 के लिए खुदरा खाद्य महंगाई का एक प्रमुख चालक बन गया. चावल और दालों की खरीफ बुवाई में पिछड़ने से महंगाई के दबाव में वृद्धि हुई है.
केंद्रीय बैंक पर बढ़ेगा रेपो रेट बढ़ाने का दबाव
आरबीआई का अगला नीतिगत फैसला 30 सितंबर को होना है. केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि मार्च तक मुद्रास्फीति औसतन 6.7 फीसदी रहेगी. चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में खुदरा महंगाई 7 फीसदी से ऊपर रही है.
महंगाई घटेगी नहीं
लगभग 45 अर्थशास्त्रियों के एक रॉयटर्स पोल ने सुझाव दिया था कि भारत सरकार द्वारा पिछले महीने के अंत में गेहूं के आटे के निर्यात को प्रतिबंधित करने के बावजूद, मुद्रास्फीति की संभावना अगस्त में बढ़कर 6.90 फीसदी हो गई, जबकि पिछले महीने में यह 6.71 फीसदी थी.
सोसाइटी जनरल में भारत के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू के हवाले से रॉयटर्स ने कहा, "उत्पादन की चुनौतियों और तेज गर्मी के कारण कमी के कारण वार्षिक आधार पर प्रमुख अनाज, दालों और सब्जियों के लिए खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई है."
आईआईपी के आंकड़ें भी निराशाजनक
वहीं औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) द्वारा मापी गई औद्योगिक वृद्धि जुलाई में घटकर 2.4 फीसदी रह गई, जबकि जून में यह 12.3 फीसदी थी. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि विनिर्माण क्षेत्र जो आईआईपी का 77 फीसदी हिस्सा रखता है उसने जुलाई में 3.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की, जबकि जून में यह 12.5 फीसदी थी.
खनन (माइनिंग) क्षेत्र में 3.3 फीसदी की कमी आई है. इस बीच, बिजली खंड में जून में 16.4 फीसदी की तुलना में 2.3 फीसदी की वृद्धि हुई. प्राथमिक वस्तु खंड में जुलाई में 2.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. बुनियादी ढांचे, पूंजीगत सामान और मध्यवर्ती वस्तुओं सहित अन्य क्षेत्रों में क्रमशः 3.9 फीसदी, 5.8 फीसदी और 3.6 फीसदी की वृद्धि देखी गई.
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सेक्टर में 2.4 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली, जबकि नॉन ड्यूरेबल्स सेक्टर में यह 2 फीसदी गिर गया जिससे लगता है कि लोग अपने रोजना के खर्चों में काफी कटौती कर रहे हैं.
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