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अनिल अंबानी की जुबां पर क्यों होगा बस यही तराना...'कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो'?
अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल को अपना बनाने वालों की दौड़ में गुजरात की टोरेंट पावर भी पहले शामिल थी.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 month ago
अनिल अंबानी (Anil Ambani) की कर्ज में डूबी कंपनी रिलायंस कैपिटल (Reliance Capital) के बिकने की राह में क्या कोई नई रुकावट आने वाली है? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि बीमा नियामक इरडा (IRDAI) ने रिलायंस कैपिटल के लिए हिंदुजा समूह की कंपनी इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स (IIHL) के रिजोल्यूशन प्लान पर कुछ आपत्तियां जताई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI) ने रिलायंस कैपिटल के एडमिनिस्ट्रेटर नागेश्वर राव वाई को पत्र लिखकर कहा है कि IIHL द्वारा पेश प्लान बीमा नियमों के अनुरूप नहीं है.
इस पर जताई आपत्ति
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने फरवरी में इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (IIHL) को रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण की मंजूरी दी थी. यानी अनिल अंबानी के नए खरीदार के रूप में IIHL के नाम पर मुहर लग गई थी, लेकिन अब इस मामले में यह नई उलझन सामने आ गई है. IRDAI ने उस इक्विटी पूंजी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है, जिसे आईआईएचएल रिलायंस कैपिटल के लिए निवेश करने के लिए तैयार है. दूसरे शब्दों में कहें तो इरडा ने उस कर्ज को लेकर आपत्ति जताई है, जिसे IIHL ने रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के लिए जुटाने की योजना बनाई है.
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इस बारे में मांगा स्पष्टीकरण
दरअसल, बीमा नियामक IRDAI की राय है कि प्रमोटर्स को अपनी पूंजी निवेश करनी चाहिए, क्योंकि बीमा कंपनियां पॉलिसीधारकों के धन का प्रबंधन करती हैं और नियामक के रूप में पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. इसके साथ ही बीमा नियामक ने कंपनी की कर्ज लेने की योजनाओं के बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा है. इरडा ने रिलायंस कैपिटल की हिस्सेदारी IIHL को हस्तांतरित होने के बाद FDI तय सीमा से अधिक होने की आशंका भी व्यक्त की है. अब जब तक IRDAI की शंकाएं दूर नहीं हो जातीं और रिलायंस कैपिटल के एडमिनिस्ट्रेटर से इरडा को संतुष्टिदायक जवाब नहीं मिल जाता, तक मामला अटका रहेगा. ऐसे में अनिल अंबानी तो यही चाहेंगे कि इरदा इस मामले में ज्यादा कुछ न कहे और उनकी ये डील पूरी हो जाए.
तय समय से ज्यादा वक्त लगा
अनिल अंबानी की इस कंपनी को अपना बनाने वालों की दौड़ में गुजरात की टोरेंट पावर और हिंदुजा समूह शामिल थे. टोरेंट ने पहली नीलामी के दौरान 8,640 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी. नीलामी प्रक्रिया के बाद हिंदुजा समूह ने 9000 करोड़ की बोली लगाकर कर्जदाताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि, टोरेंट का कहना था कि चूंकि हिंदुजा ने नीलामी प्रक्रिया के बाद बोली लगाई, लिहाजा उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. इसके बाद मामला लगातार लटकता चला गया. इसी साल फरवरी में जाकर यह साफ हुआ कि हिंदुजा समूह इस दौड़ में विजेता रहा है. हालांकि, यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि टोरेंट और हिंदुजा ग्रुप की बोली को लेकर विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. ऐसे में यदि कोर्ट टोरेंट के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो क्या होगा ये देखने वाली बात होगी.
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