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एनर्जी एक्सपोर्ट का हब बनाने की तैयारी में भारत, RIL और L&T करेंगे इतने करोड़ का निवेश
भारत सालाना अरबों डॉलर का कच्चा तेल आयात करता है, लेकिन जल्दी ही यह स्थिति बदलने वाली है. देश में बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के उत्पादन की तैयारी हो रही है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 month ago
ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन माना जा रहा है. इसी के चलते मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ-साथ ऊर्जा कंपनियां ग्रीनको ग्रुप (Greenko Group) और वेलस्पन न्यू एनर्जी (Welspun New Energy) गुजरात के कांडला में दीनदयाल पोर्ट अथॉरिटी (DPA) में बड़े पैमाने पर ग्रीन एनर्जी में निवेश की तैयारी में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये कंपनियां वहां ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया यूनिट स्थापित करेंगी. इस प्रोजेक्ट पर एक लाख करोड़ रुपये तक का निवेश हो सकता है. यह भारत में इस क्षेत्र और एनर्जी इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा निवेश होगा. प्रत्येक लैंड पार्सल को सालाना 10 लाख टन (MTPA) ग्रीन अमोनिया के लिए निर्धारित किया गया है.
1.4 MTPA ग्रीन हाइड्रोजन को होगा उत्पादन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक DPA ने कुल 4,000 एकड़ भूमि के साथ 14 भूखंडों की पेशकश की. इसमें से रिलायंस को छह भूखंड आवंटित किए गए हैं. L&T को पांच, ग्रीनको ग्रुप को दो और वेलस्पन न्यू एनर्जी को एक भूखंड आवंटित किया गया है. इन चार कंपनियों ने नीलामी में सबसे अधिक बोली लगाई थी. आम चुनाव से पहले आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया है. चुनाव के बाद जून में इस बारे में औपचारिक घोषणा की हो सकती है. कांडला पोर्ट में 7 MTPA ग्रीन अमोनिया और 1.4 MTPA ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य है. कच्छ की खाड़ी में स्थित, DPA देश के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख बंदरगाहों में से एक है.
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क्या है लक्ष्य?
ग्रीन हाइड्रोजन (GH2) को रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों से प्राप्त बिजली का उपयोग करके पानी को इलेक्ट्रोलाइज करके बनाया जाता है. इसमें किसी भी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं होता है. यह ग्रीन हाइड्रोजन को फ्यूल बनाने के वैश्विक प्रयास का एक हिस्सा है. यह दुनिया को नेट-जीरो एमिशन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है. अमोनिया ग्रीन हाइड्रोजन के लिए सबसे बड़ा एंड-यूजर सेगमेंट है और बड़े पैमाने पर GH2 के उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है. नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के हिस्से के रूप में मिनिस्ट्री ऑफ पोर्ट्स, शिपिंग एंड वॉटलेज ने ऐसे तीन बंदरगाहों की पहचान की है जिन्हें 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनाया जाना है. इनमें DPA के अलावा ओडिशा में पारादीप और तमिलनाडु में चिदंबरनार पोर्ट शामिल हैं.
8 लाख करोड़ रुपये निवेश की संभावना
मिनिस्ट्री ने ग्रीन शिपिंग के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना भी तैयार की है. इसमें बंदरगाहों पर वीकल एमिशन को कम करने के लिए रिन्यूएबल एनर्जी और ग्रीन फ्यूल का यूज बढ़ाना शामिल है. इसका मकसद बंदरगाहों पर भविष्य में उपयोग के लिए अमोनिया और हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में पेश करना भी है. नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का मकसद भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक ग्लोबल हब बनाना है ताकि ट्रिलियन डॉलर के ऊर्जा आयात को कम किया जा सके. मिशन का लक्ष्य 2030 तक पांच MTPA की ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का टारगेट हासिल करना है. साथ ही 125 GW रिन्यूएबल एनर्जी टारगेट और फॉसिल फ्यूल में एक लाख करोड़ रुपये की कमी लाना है. इससे सालाना करीब 50 MT ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी. इस मिशन पर आठ लाख करोड़ रुपये निवेश की संभावना है.
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