BW Class: क्या होती है डीलिस्टिंग, निवेशकों पर इसका क्या असर होता है, समझिए आसान भाषा में

जब कोई कंपनी डीलिस्ट होती है, तो उसके शेयरों की खरीद फरोख्त नहीं होती, सिर्फ कंपनी या उसके प्रमोटर की उसके शेयरों को खरीद सकते हैं.

Last Modified:
Tuesday, 20 September, 2022
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कई बार आप सुनते होंगे कि किसी कंपनी ने खुद को डीलिस्ट करवा लिया है, इसका क्या मतलब है, क्योंकि लिस्टिंग तो समझ आती है, लेकिन डीलिस्टिंग से क्या होता है और कंपनियां आखिर ऐसा करती क्यों हैं, इससे उन निवेशकों के ऊपर क्या असर पड़ता है जिनके पास उस कंपनी के शेयर मौजूद होते हैं. 

क्या होती है डीलिस्टिंग?
सबसे पहले तो समझते हैं कि डीलिस्टिंग क्या होती है, लिस्टिंग का ठीक उल्टा होता है डीलिस्टिंग. जैसे लिस्टिंग में कोई कंपनी IPO लाती है और शेयर बाजार में लिस्ट होती है. उसके बाद उस कंपनी के शेयरों में ट्रेड शुरू होती है. यानी जब कोई कंपनी लिस्ट हो जाती है तो वो कंपनी निजी कंपनी से पब्लिक लिस्टेड कंपनी बन जाती है, यानी पब्लिक उस कंपनी की बिजनेस ग्रोथ में हिस्सेदारी ले सकती है. लेकिन डीलिस्टंग में इसके ठीक उल्टा होता है. जब कोई कंपनी पब्लिक लिस्टेग कंपनी ने वापस प्राइवेट कंपनी बनाया जाए तो उसे ही डीलिस्टिंग कहते हैं. जब कंपनी डीलिस्ट हो जाती है तो उसके शेयरों में ट्रेडिंग भी नहीं सकती.

डीलिस्टिंग भी दो तरह से होती है. 
1- Involuntary Delisting- इसका मतलब है कि कंपनी की इच्छा डीलिस्टिंग की नहीं है लेकिन हालात ऐसे बन जाते हैं कि उसे मजबूरी में आकर डीलिस्ट करना पड़ता है. जैसे कंपनी दिवालिया हो जाए, उसका किसी और कंपनी में विलय हो जाए और कंपनी इसको डीलिस्ट करा दे. अगर कंपनी सेबी या एक्सचेंज की लिस्टिंग गाइडलाइंस पर खरा नहीं उतरे तो सेबी इस कंपनी को डीलिस्ट कर सकता है. 

2- Voluntary Delisting - इसमें कंपनी खुद ही डीलिस्ट होकर वापस से प्राइवेट कंपनी बनना चाहती है. ऐसा इसलिए हो सकता है कि उस कंपनी को प्राइवेट होने में ज्यादा फायदा दिख रहा है, पब्लिक लिस्टेड कंपनी होने की वजह से वो काफी दायरों में बंध जाती है. पब्लिक लिस्टेड कंपनी के लिए कंप्लायंस ज्यादा होते हैं, मुनाफे, डिविडेंड में सभी की हिस्सेदारी होती है. अगर कंपनी नहीं चाहती कि वो अपनी ग्रोथ की हिस्सेदारी किसी को दे तो वो खुद को डीलिस्ट कराने की सोचती है

डीलिस्टिंग में निवेशकों का क्या होता है 
जब कोई कंपनी डीलिस्ट होती है, तो उसके शेयरों की खरीद फरोख्त नहीं होती, सिर्फ कंपनी या उसके प्रमोटर की उसके शेयरों को खरीद सकते हैं, इस प्रक्रिया को रिवर्स बुक बिल्डिंग कहते हैं. डीलिस्टिंग के लिए कंपनी एक फ्लोर प्राइस तय करती है, फिर एक बिडिंग अवधि रखी जाती है, जिसके अंदर ही निवेशकों को फ्लोर प्राइस पर बिडिंग करनी होती है. जब सभी निवेशक अपनी बोलियां लगा लेते हैं तो प्राइस डिस्कवरी होती है, ठीक वैसे ही जैसे IPO लाते समय बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के तहत किया जाता है लेकिन यहां उसे रिवर्स बुक बिल्डिंग कहते हैं. इसके बाद कंपनी एक फाइनल प्राइस का ऐलान करती है. अगर कंपनी का ये ऑफर प्राइस निवेशकों को पसंद आता है तो वो अपने शेयर कंपनी को बेच देते हैं. 10 दिन के अंदर कंपनी की जिम्मेदारी होती है कि वो सभी निवेशकों जिन्होंने डीलिस्टिंग प्रोसेस में हिस्सा लिया था उनका पेमेंट कर दे. 

अगर बिडिंग प्रक्रिया से चूक गए
मगर मान लीजिए कि इस बिडिंग अवधि के दौरान कुछ निवेशकों जिन्होंने इस बिडिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया, तो उनका क्या होा, क्या उनके शेयर बेकार हो जाएंगे. जी नहीं- ऐसे निवेशक जिनके पास कंपनी के शेयर पड़े हैं उनके पास 1 साल का वक्त होता है कि वो अपने शेयर फाइनल एक्जिट ऑफर प्राइस पर अपने शेयरों को बेच दें.

 


BW Class: आखिर क्या होता है FPO और IPO? दोनों में क्या है अंतर? यहां जानें सब कुछ

क्या आप जानते हैं कि FPO और IPO क्या होता है और कोई कंपनी इसे क्यों लेकर आती है? साथ ही, FPO और इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) में फर्क क्या है? आइए आज इसी को समझते हैं.

Last Modified:
Saturday, 13 April, 2024
IPO vs FPO

आजकल कंपनिया शेयर मार्केट में IPO और FPO लॉन्च कर रही हैं. जब किसी कंपनी को अपनी क्षमता या बिजनेस का विस्तार करने या अपने कर्ज को कम करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, तो वे सार्वजनिक हो जाते हैं. IPO और FPO दोनों ही प्रोसेस हैं जो उन्हें इन्वेस्टर से पैसे प्राप्त करने और अपने बिजनेस के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करते हैं. IPO का अर्थ प्रारंभिक पब्लिक ऑफर है और FPO का अर्थ है फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर. आइए जानते हैं कि FPO क्या है? यह कैसे काम करता है? IPO और FPO में क्या अंतर है?

क्या है इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO)?

जब कोई कंपनी पहली बार शेयर बाजार से पैसा जुटाना चाहती है, तो वह अपनी पूरी योजना के साथ SEBI में आवेदन करती है. मंजूरी मिलने के बाद ही IPO लॉन्च किया जा सकता है. कोई भी IPO एक तय समय के लिए खुलता और बंद होता है. यह समय प्रायः तीन से पांच दिन तक के लिए हो सकता है. ज्यादातर तीन वर्किंग दिन में ही यह प्रक्रिया पूरी की जाती है. अगर किसी कंपनी ने 10 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है और 20 हजार करोड़ रूपये के आवेदन आ गए तो इसे अच्छा माना जाता है. अगर 10 हजार करोड़ के अगेंस्ट कम से कम नौ हजार करोड़ यानि कि 90 फीसदी रकम निवेशकों से नहीं आई तो IPO रद्द हो जाएगा और निवेशकों का पैसा उनके खाते में वापस चला जाएगा. IPO ज्यादा कम्पनियां लाती हैं.

क्या है फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (FPO)?

जब भी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कोई कंपनी निवेशकों को नए शेयर्स जारी करते हुए फंड जुटाती है, तो सीधी भाषा में इसे ही FPO कहते हैं. इसके लिए कंपनी को SEBI से अनुमति लेनी होती है. कोई भी FPO तय दिन के लिए खुल सकता है. उसी समय में कोई भी व्यक्ति या कंपनी FPO के लिए अप्लाई कर सकती है. भारत सरकार के नियम के मुताबिक यह तभी कामयाब माना जाएगा जब कुल लक्ष्य का 90 फीसदी रकम बाजार से जुट जाए. अगर इससे कम रकम जुटती है तो FPO फेल माना जाएगा और निवेशकों का पैसा उन्हें वापस कर दिया जाएगा.

IPO और FPO में अंतर? 

कंपनियां अपने एक्सपेंशन के लिए IPO या FPO का इस्तेमाल करती हैं. कारोबार बढ़ाने के लिए फंड की जरूरत पड़ने पर कंपनियां IPO या FPO का सहारा लेती हैं. कैश फ्लो की जरूरतों को पूरा करने या फिर कारोबार बढ़ाने के लिए इस फंड का इस्तेमाल होता है. 

- IPO के जरिए कंपनी पहली बार बाजार में अपने शेयर्स उतारती है. 
- FPO में अतिरिक्त शेयर्स को बाजार में लाया जाता है. 
- IPO में शेयरों की बिक्री के लिए फिक्स्ड प्राइस होता है, जिसे प्राइस बैंड कहते हैं. कंपनी शेयर का प्राइस बैंड लीड बैंकर्स तय करते हैं. 
- FPO के वक्त शेयरों का प्राइस बैंड बाजार में मौजूद शेयरों की कीमत से कम रखा जाता है. इसको शेयरों की संख्या के हिसाब भी तय किया जाता है. 
 


BW Class: UPI जानते हैं, PPI के बारे में पता है कुछ. इसका कैसे होता है इस्‍तेमाल?

RBI द्वारा थर्ड-पार्टी यूपीआई ऐप्स को पीपीआई से लिंक करने का प्रस्ताव दिया गया है. यूपीआई ट्रांजैक्शन के बारे में तो सब जानते लेकिन PPI के बारे में काफी कम लोगों को जानकारी होती है.

Last Modified:
Saturday, 06 April, 2024
UPI vs PPI

देशभर में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) से भुगतान करना काफी आम बात हो गई है. इस बीच प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (PPI) को लेकर खूब चर्चा हो रही है. आरबीआई (RBI) द्वारा थर्ड-पार्टी यूपीआई ऐप्स को पीपीआई से लिंक करने का प्रस्ताव दिया गया है. इससे पीपीआई वॉलेट (PPI Wallet) रखने वाले लोगों को यूपीआई पेमेंट करने में और मदद मिलेगी. आइए जानते हैं कि PPI और UPI में क्या अंतर है और इनका कहां और कैसे इस्तेमाल होता है.

प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (PPI) क्या है? 

PPI असल में ऐसा पेमेंट सिस्टम होता है, जिसमें आप पहले से डाले गए पैसे के जरिए कोई सामान या सर्विस खरीदते हैं या फिर फंड ट्रांसफर करते हैं. PPI सिस्टम अमूमन तीन का तरह होता है. क्लोज्ड, सेमी-क्लोज्ड और ओपन सिस्टम. क्लोज्ड सिस्टम का मतलब है कि इन PPI का इस्तेमाल उन्हीं जगहों पर हो सकता है, जो इन्हें जारी करते हैं. मिसाल के लिए, मेट्रो कार्ड और टोकन. वहीं, क्लोज्ड PPI के उलट सेमी-क्लोज्ड PPI का उपयोग कई सेवाओं के लिए किया जा सकता है, लेकिन सभी सेवाओं के लिए नहीं. वहीं, ओपन PPI का यूज हर जगह हो सकता है, जैसा कि इसके नाम से ही है. इस तरह के PPI के दायरे में डेबिट और क्रेडिट कार्ड आते हैं. इनसे आप तकरीबन हर सर्विस खरीद सकते हैं. हालांकि, अन्य दो PPI के उलट इन्हें सिर्फ RBI ही जारी कर सकता है.

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क्या होता है यूनिफाइड पेमेंट्स सिस्टम (UPI)?

UPI एक मोबाइल पेमेंट सिस्टम है, जिसका बड़ी संख्या में लोग इस्तेमाल करते हैं. इसमें आपको एक अकाउंट से दूसरे में तुरंत पैसे भेजने की सहूलियत मिलती है, वह भी बिना किसी शुल्क के। UPI काफी फास्ट है. इसमें पेमेंट अमूमन चंद सेकंड के भीतर ही हो जाता है. इसमें ज्यादा तकनीकी उलझन नहीं होती और यूजर को कोई चार्ज नहीं देना होता, जैसा कि अमूमन PPI के मामले में होता है. इस सिस्टम के जरिए पैसे ट्रांसफर करने के लिए यूजर के पास एक UPI आईडी होनी चाहिए. यह आपके बैंक अकाउंट के लिए खास पहचान होती है, जिसका उपयोग करके एक बैंक से दूसरे बैंक में पैसा भेजा और प्राप्त किया जाता है.

PPI और UPI में क्या अंतर होता है?

PPI और UPI में अंतर की बात करें, तो PPI को आप अपने पर्स की तरह समझ सकते हैं। आपके पर्स में जितनी रकम होगी, आप उतने का ही सामान खरीद सकेंगे। लेकिन, UPI में ऐसी बंदिश नहीं होती। आप इसमें उधार पैसे लेकर या फिर किसी को कर्ज दिया है, तो उसे फौरन वापस मांगकर भी खर्च सकते हैं। इन दोनों में कुछ और भी अंतर हैं:

- PPI में सिर्फ भुगतान कर सकते हैं, लेकिन UPI में पैसे लेने की सुविधा भी मिलती है.
- UPI में आप कई बैंक अकाउंट जोड़ सकते हैं। PPI में एक ही तक सीमित होती है.
- PPI की तुलना में UPI कहीं अधिक पेमेंट ऑप्शन देता है। कोई शुल्क भी नहीं लगता.
- UPI में PPI के मुकाबले आपको पेमेंट की लिमिट भी काफी अधिक मिलती है.
 


BW Class: PMI क्या है, अर्थव्यवस्था पर कैसे डालता है असर, कैसे होती है इसकी गणना?

पीएमआई इंडेक्स किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण सूचकांक होता है. पीएमआई नंबर 50 से ऊपर होना उस सेक्टर में बढ़ोतरी को दिखाता है.

Last Modified:
Friday, 05 April, 2024
PMI

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए उसके पीएमआई (PMI) पर गौर फरमाना होता है. पीएमआई मतलब पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स. साफ शब्दों में कहें तो यह मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की आर्थिक सेहत को मापने का एक इंडिकेटर है, जिसके जरिए किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का आकलन करना विशेषज्ञों के लिए आसान हो जाता है. पीएमआई का मुख्‍य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के बारे में पुष्‍ट जानकारी को आधिकारिक आंकड़ों से भी पहले उपलब्‍ध कराना है, जिससे उसके इकोनॉमी के बारे में सटीक संकेत पहले ही मिल जाते हैं.

5 प्रमुख कारकों पर आधारित होता है PMI

आम तौर पर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का पीएमआई 5 प्रमुख कारकों पर आधारित होता है, जिनमें नए ऑर्डर, इन्‍वेंटरी स्‍तर, प्रोडक्‍शन, सप्‍लाई डिलिवरी और रोजगार वातावरण शामिल हैं. अमूमन, बिजनेस और मैन्युफैक्चरिंग माहौल का पता लगाने के लिए ही पीएमआई का सहारा लिया जाता है. बता दें कि पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स को 1948 में अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सप्लाई मैनेजमेंट यानी आईएसएम ने शुरू किया, जो कि सिर्फ अमेरिका के लिए काम करती है. जबकि इससे जुड़ा मार्किट ग्रुप दुनिया के अन्‍य देशों के लिए भी काम करती है. इस प्रकार यह 30 से भी ज्‍यादा देशों में  काम करती है.

कैसे काम करता है पीएमआई?

PMI मिश्रित सूचकांक है जिसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की स्थिति का आंकलन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है. पीएमआई आंकड़ों में 50 को आधार माना गया है. पीएमआई आंकड़े अगर 50 से ऊपर हैं तो इसे कारोबारी गतिविधियों के विस्तार के तौर पर देखा जाएगा और अगर 50 से नीचे के आंकड़े हैं तो कारोबारी गतिविधियों में गिरावट के तौर पर देखा जाता है. PMI हर माह जारी किया जाता है.

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ऐसे निकालते हैं पीएमआई

भारत में मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के पीएमआई के आंकड़े किए जाते हैं. दोनों का आंकलन अलग-अलग तरीकों से किया जाता है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के पीएमआई डेटा का निकालने के लिए 500 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के पर्चेजिंग मैनेजरों को प्रश्नवली भेजी जाती है. इसमें उनसे न्यू ऑर्डर, रोजगार, आउटपुट और इनपुट कॉस्ट और मौजूदा स्टॉक से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. सर्विस सेक्टर का पीएमआई निकालने के लिए छह सेक्टरों ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन, फाइनेंशियल, आईटी, होटल इंडस्ट्री, बिजनेस और पर्सनल सर्विसेज को शामिल किया जाता है. मैन्युफैक्चरिंग की तरह इसमें भी परचेजिंग मैनेजरों को प्रश्नवली भेजी जाती है.

क्या है पीएमआई?

पीएमआई (PMI) की प्रासंगिकता यही है कि पीएमआई सूचकांक (PMI INDEX) को ही मुख्य सूचकांक माना जाता है. यह किसी खास सेक्टर में आगे की स्थिति का संकेत हमें देता है. चूंकि यह सर्वे मासिक आधार पर होता है, लिहाजा इससे आय में बढ़ोत्तरी का अंदाजा भी लगाया जा सकता है. इससे यह भी पता चलता है कि आर्थिक गतिविधियों में उछाल आएगा या नहीं. देखा जाए तो पीएमआई हमारी अर्थव्यवस्था में सेंटिमेंट को भी दर्शाता है. लिहाजा, इसका बेहतर होना हमारी अर्थव्यवस्था में उत्साह का संचार करता है. वाकई, अर्थव्यवस्था पर इसका असर आमतौर पर महीने की शुरुआत में ही होता है, जब पीएमआई आंकड़ा जारी होता है, जिसे जीडीपी वृद्धि दर से पहले जारी किया जाता है. 

बताते चलें कि कई देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों पर फैसला करने के लिए भी शीर्ष अधिकारी इस सूचकांक की मदद लेते हैं। क्योंकि अच्छे पीएमआई आंकड़े बताते हैं कि सम्बन्धित देश में आर्थिक हालात सुधर रहे हैं और अर्थव्यवस्था में मांग निरंतर बढ़ रही है, जिसकी वजह से कंपनियों को ज्यादा सामान बनाने के ऑर्डर मिलते हैं। इस प्रकार यदि कंपनियों का उत्पादन बढ़ता है तो लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।  

PMI का इकोनॉमी पर सकारात्मक प्रभाव

पीएमआई (PMI) का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है. इसलिए अर्थशास्त्री भी पीएमआई आंकड़ों को मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ का अच्छा संकेतक मानते हैं. वहीं, वित्तीय बाजार में भी पीएमआई की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है. क्योंकि, परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स ही वह आंकड़ा होता है जो कंपनियों की आय का स्पष्ट संकेत देता है. इसी वजह से बॉन्ड बाजार और निवेशक दोनों ही इस सूचकांक पर लगातार नजर रखते हैं. वास्तव में, इसके आधार पर ही निवेशक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करने का फैसला करते हैं. 
 


BW Class: क्या होती है चुनाव आचार संहिता? जानें नियम, शर्तें और पाबंदियां

चुनाव तारीखों की घोषणा से ही आदर्श आचार संहिता को लागू किया जाता है और यह चुनाव प्रक्रिया के पूर्ण होने तक लागू रहती है. लोकसभा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता पूरे देश में लागू होती है.

Last Modified:
Saturday, 16 March, 2024
code of conduct

चुनाव आयोग जैसे ही 'चुनावी महाकुंभ' की तारीखों का ऐलान करता है उसके साथ ही देशभर में आचार संहिता लागू हो जाती है, जो चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहेगी. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम बनाए हैं. उसे ही आचार संहिता कहा जाता है. इसके लागू होते ही कई बदलाव हो जाते हैं. सरकार के कामकाज में भी कई अहम बदलाव हो जाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या होती है चुनाव आचार संहिता?
 
क्या होती है आचार संहिता?

चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए कई नियम बनाता हैं. आचार संहिता भी उन्हीं नियमों का एक हिस्सा है. जिसके तहत चुनाव में भाग लेने वाली पार्टी और उम्मीदवारों के लिए गाइडलाइंस होती है. इसके तहत कुछ नियम होते हैं, जिन्हें इसका पालन करना होता है. अगर इसका उल्लंघन होता है तो चुनाव आयोग एक्शन ले सकता है.

आचार संहिता कब तक रहती है लागू?

चुनाव आयोग जब चुनाव की तारीखों की घोषणा करता है. उसी के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है. आचार संहिता निर्वाचन प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है. या दूसरे शब्दों में कहें तो आचार संहिता चुनावी परिणाम आने तक लागू रहती है. चुनाव प्रक्रिया पूरी होते ही आचार संहिता समाप्त हो जाती है. 

क्या हैं चुनाव आचार संहिता के नियम?

चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई नियम भी लागू हो जाते हैं. इनकी अवहेलना कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता नहीं कर सकता. सार्वजनिक धन का इस्तेमाल किसी विशेष राजनीतिक दल या नेता को फायदा पहुंचाने वाले काम के लिए नहीं होगा, सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान या सरकारी बंगले का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाएगा, किसी भी तरह की सरकारी घोषणा, लोकार्पण और शिलान्यास आदि नहीं होगा, किसी भी राजनीतिक दल, प्रत्याशी, राजनेता या समर्थकों को रैली करने से पहले पुलिस से अनुमति लेनी होगी, किसी भी चुनावी रैली में धर्म या जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे जाएंगे.

आम आदमी के लिए क्या है नियम?

कोई आम आदमी भी इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भी आचार संहिता के तहत कार्रवाई की जाएगी. इसका मतलब यह है कि यदि आप अपने किसी नेता के प्रचार में लगे हैं, तब भी आपको इन नियमों को लेकर जागरूक रहना होगा. कोई राजनेता आपको इन नियमों के इतर काम करने के लिए कहता है तो आप उसे आचार संहिता के बारे में बताकर ऐसा करने से मना कर सकते हैं. क्योंकि ऐसा करते पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई होती है. उल्लंघन करने पर आपको हिरासत में भी लिया जा सकता है.

आचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होगा?

अगर कोई प्रत्याशी आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो उसके प्रचार करने पर रोक लगाई जा सकती है. आचार संहिता के उल्लंघन पर 1860 का भारतीय दंड संहिता, 1973 का आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1951 का लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम प्रयोग में लाया जा सकता है. प्रत्याशी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. इतना ही नहीं, जेल जाने का प्रावधान भी है. इसके अलावा इलेक्शन कमीशन के पास 1968 के चुनाव चिन्ह आदेश के पैराग्राफ 16ए के तहत किसी पार्टी की मान्यता को निलंबित करने या वापस लेने का अधिकार है.

कब हुई थी आचार संहिता की शुरुआत?

चुनाव संहिता की शुरुआत साल 1960 में केरल में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान हुई थी, जब प्रशासन ने राजनीतिक दलों के लिए एक आचार संहिता बनाने की कोशिश की थी. चुनाव संहिता पहली बार भारत के चुनाव आयोग द्वारा न्यूनतम आचार संहिता के शीर्षक के तहत 26 सितंबर, 1968 को मध्यावधि चुनाव 1968-69 के दौरान जारी की गई थी. इस संहिता को 1979, 1982, 1991 और 2013 में संशोधित किया गया.
 


क्या होता है Sector Rotation Strategy, कैसे निवेशक इससे कमा सकते हैं मुनाफा ?

आम निवेशकों को भी सेक्टोरल रोटेशन रणनीति के बारे में जानना चाहिए ताकि उभरते सेक्टर में पैसा लगाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सके.

Last Modified:
Friday, 15 March, 2024
sector rotation strategy

शेयर बाजार में सेक्टोरल रोटेशन रणनीति एक बड़ा व्यापक विषय बन गया है, जो फंडामेंटल एनालिसिस और किसी भी देश की आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा रहता है. शेयर मार्केट में निवेशकों की एक ही शिकायत रहती है कि हम जिस स्टॉक में निवेश करते हैं वो गिरने लगता है और जैसे ही बेच देते हैं वह चढ़ने लगता है. इसलिए आम निवेशकों को भी सेक्टोरल रोटेशन के बारे में जानना चाहिए ताकि उभरते सेक्टर में पैसा लगाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सके.

क्या होता है सेक्टोरल रोटेशन रणनीति

शेयर बाजार से बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए कोई भी स्टॉक खरीदने से पहले बहुत-सी बातों का ध्यान रखना होता है. मसलन आप किस कंपनी के शेयर में पैसा लगा रहे हैं, उसका बिजनेस मॉडल कैसा है, उस सेक्टर में क्या चल रहा है आदि. बड़े निवेशक हमेशा इन बातों को ध्यान में रखकर ही किसी कंपनी या सेक्टर में पैसा लगाते हैं. शेयर बाजार में इसे सेक्टोरल रोटेशन कहा जाता है. सेक्टर रोटेशन से मतलब है शेयरों में निवेश किए गए पैसों का एक उद्योग से दूसरे उद्योग में ट्रांसफर करना है क्योंकि निवेशक और व्यापारी इकोनॉमिक साइकल के अनुसार निवेश करते हैं. उन्हें जब लगता है कि इस सेक्टर में ज्यादा ग्रोथ नहीं है और कोई और सेक्टर उभर रहा है तो पैसों वहां लगा दिया जाता है.

पहले ही लगा सकते हैं मुनाफे का अनुमान 

सेक्टरोल रोटेशन, एक ऐसा नजरिया जिसमें निवेशक समय-समय पर विभिन्न सेक्टर में हो रहे नए डेवलपमेंट को भांपकर एक सेक्टर से पैसा निकालकर दूसरे सेक्टर में लगाता है. जब कभी निवेशकों को लगता है कि इस विशेष क्षेत्र में मंदी आने वाली है या ग्रोथ की ज्यादा संभावना नहीं है तो निवेशक दूसरे उभरते सेक्टर में पैसा लगाना शुरू कर देते हैं. जब भी निवेशकों किसी सेक्टर में उनके अनुमान के आधार पर तय मुनाफा मिल जाता है तो वे बिकवाली करके दूसरे सेक्टर्स की ओर रुख करते हैं. हाल ही में पीएसयू शेयर्स में बड़ी तेजी आई थी लेकिन इसके बाद इन शेयरों में मुनाफावसूली हावी हुई.

कैसे लगाएं सेक्टोरल रोटेशन का अनुमान 

सेक्टोरल रोटेशन से जुड़ा अनुमान लगाने के लिए आम निवेशक रोजाना हर सेक्टर में होने वाले पूंजी निवेश के डाटा को देखना चाहिए आखिर किन सेक्टर्स में पूंजी का प्रवाह बढ़ रहा है. इसके लिए मनीकंट्रोल समेत कई बिजनेस वेबसाइट पर जा सकते हैं, जहां इस तरह के डाटा की उपलब्धतता होती है. उदाहरण के लिए सरकार देश के बुनियादी ढांचे के विकास पर काफी ध्यान दे रही है. इसलिए इस सेक्टर से संबंधित कंपनियों के शेयरों में अच्छा निवेश देखने को मिल सकता है. हालांकि, इसके लिए सर्टिफाइड सलाहकार से सलाह लें या खुद अच्छे से रिसर्च करके निर्णय लें.
 


BW Class: क्या होता है Stock Split और क्यों पड़ती है इसकी जरूरत, जानते हैं आप?

नेस्ले इंडिया ने अपने शेयरों को विभाजित कर दिया है. इसी के साथ कंपनी के शेयर का भाव 27 हजार से घटकर 2668.10 रुपए हो गया है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Saturday, 06 January, 2024
Last Modified:
Saturday, 06 January, 2024
Photo Credit:  Teji mandi

मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले इंडिया (Nestle India) ने अपने शेयरों को 10 टुकड़ों में विभाजित कर दिया है. कंपनी ने 1:10 के रेश्यो में अपने स्टॉक को स्प्लिट किया है. यानी अगर रिकॉर्ड डेट तक आपके पास नेस्ले इंडिया का 1 शेयर होगा, तो स्प्लिट के बाद में आपके खाते में उसके 10 शेयर पहुंच जाएंगे. इसी के साथ नेस्ले इंडिया के एक शेयर का भाव 27,116.40 से घटकर 2668.10 रुपए आ गया है. चलिए जानते हैं कि आखिर स्टॉक स्प्लिट (Stock Split) क्या होता है, कंपनी को इसकी जरूरत क्यों पड़ती है, क्या इससे कंपनी के मार्केट कैप पर कोई असर होता है और निवेशकों के लिए इसमें क्या लाभ छिपा है? 

क्या होता है स्टॉक स्प्लिट?
जैसा कि नाम से ही समझ आ रहा है स्टॉक स्प्लिट यानी शेयरों का विभाजन. इस प्रक्रिया के तहत स्टॉक एक्सचेंज को सूचित करके एक निर्धारित तिथि पर अपने शेयरों को एक निश्चित अनुपात में बांट देती है. जैसे कि नेस्ले ने 1:10 के रेश्यो में बंटवारे को अंजाम दिया. जिस अनुपात में कंपनी स्टॉक स्प्लिट करती है, उसी अनुपात में शेयरहोल्डर्स के शेयरों में बदलाव हो जाता है. उदाहरण के तौर पर, यदि आपके पास किसी कंपनी के 400 शेयर हैं और कंपनी स्टॉक स्प्लिट लाकर 1 शेयर को 2 में तोड़ देती है, आपके पास कंपनी के 800 शेयर हो जाएंगे. हालांकि, इससे उसकी निवेश की वैल्यू पर कोई असर नहीं होगा.  

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क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?
जब कंपनी के शेयर की डिमांड काफी ज्यादा होती है, लेकिन उसकी कीमत के चलते छोटे निवेशक ना चाहते हुए भी दूरी बना लेते हैं, तो कंपनी स्टॉक स्प्लिट करती है. इस प्रक्रिया से महंगा शेयर सस्ता हो जाता है और छोटे निवेशक आसानी से निवेश कर सकते हैं. कुछ समय पहले तक नेस्ले इंडिया के एक शेयर का भाव 27,116.40 रुपए था. एक शेयर के लिए इतना बड़ा अमाउंट इन्वेस्ट करना हर किसी के बस की बात नहीं. लेकिन शेयरों के बंटवारे के बाद अब इसकी कीमत घटकर 2668.10 रुपए आ गई है, तो छोटे निवेशक भी इसमें पैसा लगा पाएंगे. कुल मिलाकर कहें तो कोई कंपनी स्टॉक स्प्लिट केवल इसलिए करती है, ताकि छोटे निवेशकों को आकर्षित किया जा सके. 

मार्केट कैप होता है प्रभावित?
क्या स्टॉक स्प्लिट से कंपनी के मार्केट कैप पर भी कोई असर पड़ता है? इस सवाल का जवाब है -ना. चलिए इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं. पिज्जा अक्सर 4 टुकड़ों में विभाजित होता है, लेकिन यदि आप छह लोग खाने वाले हों तो आप अपने हिसाब से उसे छह हिस्सों में भी बांट सकते हैं. क्या आपके ऐसा करने से पिज्जा का साइज घट या बढ़ जाएगा? निश्चित तौर पर नहीं. ठीक इसी तरह, स्टॉक स्प्लिट से केवल शेयर के टुकड़े होते हैं, इससे कंपनी के मार्केट कैप पर कोई असर नहीं पड़ता. बस शेयरों की संख्या बढ़ जाती है. रही बात निवेशकों के फायदे की, तो शेयरों के विभाजन से उनके पास डिमांड वाले शेयरों को कम कीमत में खरीदने का मौका मिल जाता है.


IPO से पहले आयोजित की जाने वाली Anchor Book के बारे में कितना जानते हैं आप?

साल 2009 में मार्केट रेगुलेटर SEBI ने भारतीय शेयर मार्केट में एंकर इन्वेस्टर्स का आईडिया पेश किया था.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 13 December, 2023
Last Modified:
Wednesday, 13 December, 2023
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पिछले कुछ समय के दौरान भारत में बहुत ही भारी संख्या में एक से बढ़कर एक शानदार कंपनियों के IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफर हमें देखने को मिल रहे हैं और अभी बहुत से IPO ऐसे भी हैं जिनका लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जैसे कि ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric) का IPO. इसके साथ ही धीरे-धीरे इन्वेस्टर्स भी ज्यादा जागरूक हो रहे हैं और IPO जारी करने वाली कंपनी और उससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद ही अपने पैसे इन्वेस्ट कर रहे हैं. आपने अक्सर सुना होगा कि किसी भी कंपनी के IPO से पहले उसकी एंकर बुक (Anchor Book) को खोला जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एंकर बुक होती क्या है और ये एंकर इन्वेस्टर्स आखिर किस बला का नाम हैं?

Anchor Book का इतिहास और एंकर इन्वेस्टर्स
एंकर बुक शब्द का इस्तेमाल अमेरिका में काफी पहले से होता आया है और 1953 के आस पास एंकर बुक का इस्तेमाल दिन भर के दौरान हुए ट्रेड को लिखने के लिए किया जाता था. इसके बाद साल 2009 में मार्केट रेगुलेटर SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) ने भारतीय शेयर मार्केट में एंकर इन्वेस्टर्स का आईडिया पेश किया था. कुछ ग्लोबल मार्केटों में एंकर इन्वेस्टर्स को कॉर्नरस्टोन इन्वेस्टर्स की संज्ञा भी दी जाती है. किसी भी IPO को जनता के लिए खोले जाने से पहले उसे एंकर इन्वेस्टर्स के लिए खोला जाता है. एंकर इन्वेस्टर्स संस्थागत इन्वेस्टर होते हैं और जनता के लिए IPO खोले जाने से एक दिन पहले ही एंकर इन्वेस्टर्स IPO में इन्वेस्ट कर सकते हैं. 

आधुनिक Anchor Book
एंकर इन्वेस्टर्स के बारे में तो अब आपको थोड़ा बहुत मालुम चल ही गया होगा तो आइये अब एंकर बुक की बात कर लेते हैं. अमेरिका में सिर्फ एक शब्द के तौर पर इस्तेमाल होने वाला एंकर बुक, आधुनिक एंकर बुक से काफी अलग है, लेकिन काम के स्तर पर थोड़ी बहुत समानता भी देखने को मिलती है. दरअसल जो भी संस्थागत इन्वेस्टर किसी कंपनी के IPO में भाग लेते हैं उनके नाम एंकर बुक (Anchor Book) में दर्ज कर लिए जाते हैं और जितने ज्यादा बड़े नाम किसी कंपनी की एंकर बुक में शामिल होते हैं, उतना ही ज्यादा विश्वास रिटेल इन्वेस्टर्स को कंपनी के IPO पर हो जाता है.

मानक के रूप में भी होता है इस्तेमाल
अब आप जब भी किसी कंपनी के IPO में पैसे लगाने के बारे में विचार करें तो एक बार उसकी एंकर बुक पर नजर जरूर डाल लें. एंकर बुक के माध्यम से आपको पता चल सकता है कि संस्थागत इन्वेस्टर्स उस IPO के बारे में क्या सोचते हैं और आप भी अपने मेहनत के पैसे IPO में इन्वेस्ट कर सकते हैं. रिटेल इन्वेस्टर्स अक्सर एंकर बुक से ही किसी IPO के बारे में अंदाजा लगाते हैं.
 

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Secure और Unsecure लोन में क्या है अंतर? क्या आपको है जानकारी?

इसे सिक्योर्ड लोन इसलिए कहा जाता है क्योंकि वितीय संस्थान के पास आपका लोन सुरक्षा के रूप में पड़ा होता है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Tuesday, 05 December, 2023
Last Modified:
Tuesday, 05 December, 2023
home loan

जब भी कोई आवश्यक वित्तीय स्थिति बिना किसी दस्तक के आ जाती है तो हमें उससे निपटने के लिए सबसे पहले लोन ही याद आता है. कोई भी बैंक या फिर वित्तीय संस्थान प्रमुख रूप से दो ही प्रकार के लोन देते हैं. इन्हें सिक्योर और अनसिक्योर लोन के नाम से जाना जाता है. अक्सर लोग लोन तो ले लेते हैं लेकिन उन्हें सिक्योर या फिर अनसिक्योर लोन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती. आइये जानते हैं, लोन के इन दोनों ही प्रकारों में क्या अंतर होता है?

क्या है सिक्योर्ड लोन?
पहले के जमाने में साहू से लोन लेने के लिए आपको कुछ न कुछ कीमती गिरवी रखना पड़ता था. आज के जमाने में लोन के इसी प्रकार को आज के जमाने में सिक्योर्ड लोन (Secured Loan) के नाम से जाना जाता है. उदाहरण के लिए ये समझ लीजिये कि आज आपको 1 लाख रुपयों की जरूरत पड़ती है और लोन लेने के लिए आप अपने मकान/फ्लैट या फिर किसी प्रॉपर्टी के कागजों को गिरवी रख देते हैं तो आपके द्वारा लिया गया ये लोन सिक्योर्ड लोन में गिना जाएगा. इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि जब भी आप अपने किसी एसेट के बदले लोन लेते हैं तो इसे सिक्योर्ड लोन की कैटेगरी में रखा जाएगा. इसे सिक्योर्ड लोन इसलिए कहा जाता है क्योंकि वितीय संस्थान के पास आपका लोन सुरक्षा के रूप में पड़ा होता है. अगर आप अपने लोन का भुगतान नहीं कर पाते हैं तो बैंक आपके एसेट को बेचकर आपके लोन की रकम को पूरा कर सकता है. 

क्या होता है अनसिक्योर्ड लोन?
अगर अनसिक्योर लोन (Unsecured Loan) की बात की जाए तो यह लोन का एक ऐसा प्रकार है जिसमें वित्तीय संश्तान के पास आपका कोई भी एसेट नहीं होता. आसान शब्दों में कहें तो बैंक आपको लोन तो दे देता है लेकिन उस लोन के बदले आपसे कुछ भी गिरवी नहीं रखवाता है. लोन की ऐसी स्थिति में देनदार यानी बैंक को काफी ज्यादा रिस्क उठाना पड़ता है और इसीलिए इसे अनसिक्योर लोन यानी असुरक्षित लोन कहा जाता है. कभी भी आपको अनसिक्योर्ड लोन आपकी क्रेडिट हिस्ट्री और CIBIL स्कोर के आधार पर ही दिया जाता है. तो अगर आप भी अनसिक्योर्ड लोन लेने के बारे में विचार कर रहे हैं तो अपनी क्रेडिट हिस्ट्री के साथ-साथ अपना CIBIL स्कोर भी अच्छा बनाये रखें.  

आपके लिए कौन सा सही?
सिक्योर लोन बहुत ही आसानी से मिल जाते हैं क्योंकि वित्तीय संस्था या फिर बैंक इसके लिए आपसे एसेट को गिरवी रखने के लिए कहते हैं. अब क्योंकि आपका कुछ सामान बैंक के पास गिरवी होता है तो वह पैसे देने में देरी नहीं करते न ही हिचकिचाते हैं. इसके साथ ही सिक्योर लोन का भुगतान करने के लिए आपको ज्यादा समय भी मिलता है और लोन के इस तरीके में आपको ज्यादा रकम लोन के रूप में दी जा सकती है. वैसे तो अनसिक्योर्ड लोन भी जल्दी ही मिल जाता है लेकिन इसका भुगतान करने के लिए न आपको सिक्योर लोन के जितना समय दिया जाता है और न ही आपको ज्यादा बड़ी रकम अनसिक्योर्ड लोन में मिलती है.
 

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क्या है ‘Deepfake’ जिसका शिकार हुईं Rashmika Mandanna? इस तरह पहचानें फेक वीडियो!

दुनिया काफी तेजी से डिजिटलाइजेशन की तरफ बढ़ रही है लेकिन साथ ही टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.

पवन कुमार मिश्रा by
Published - Tuesday, 07 November, 2023
Last Modified:
Tuesday, 07 November, 2023
Rashmika Mandanna deepfake video

अभिनेत्री रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna) फिलहाल सुर्खियों का हिस्सा बनी हुई हैं. दरअसल हाल ही में रश्मिका एक ‘डीप-फेक’ (Deepfake) वीडियो का शिकार हुई हैं और उनकी वीडियो के वायरल होने के बाद से ही इस वीडियो को बनाने वाले पर कानूनी कार्यवाही की मांग ने रफ्तार पकड़ ली है. 

Rashmika Mandanna हुईं Deepfake का शिकार?
इस वीडियो में रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna) को एलीवेटर में प्रवेश करते हुए देखा जा सकता है. असल में यह वीडियो भारतीय मूल की ब्रिटिश लड़की जारा पटेल की है और उनके चहरे की जगह रश्मिका मंदाना का चेहरा लगाकर उसका इस्तेमाल किया गया है. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से ही इन्टरनेट पर कंट्रोवर्सी काफी ज्यादा बढ़ गई है. इस वीडियो के जवाब में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं टेक्नोलॉजी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर कहा है कि ‘डीप-फेक’ (Deepfake) वीडियो बहुत ही आधुनिक हैं एवं ये बेहद खतरनाक होती हैं. 

क्या है Deepfake?
दुनिया काफी तेजी से आधुनिकता और डिजिटलाइजेशन की तरफ बढ़ रही है लेकिन टेक्नोलॉजी के बेहतर होने के साथ-साथ इसके गलत जगह इस्तेमाल होने के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है. इसी कड़ी में सबसे आधुनिक तरीका डीप-फेक (Deepfake) हैं. आइये समझते हैं कि आखिर डीप-फेक होता क्या है और एक फेक वीडियो की पहचान आप किस तरह से कर सकते हैं? डीप-फेक की प्रक्रिया में 'डीप जनरेटिव तरीकों का इस्तेमाल करके' आपके चहरे की दिखावटी बनावट में बदलाव किया जाता है और एक इंसान का चहरा दूसरे इंसान से बदला जाता है. हालांकि फेक वीडियो नए बिलकुल नहीं हैं, लेकिन ताकतवर जनरेटिव उपकरणों का इस्तेमाल करके चहरे को इस तरह से बदल देना कि असल और नकली में फर्क ही न पता चले यह नया है और यह ‘डीप-फेक’ की ताकत के बारे में हमें बताता है. 

कैसे पहचानें फेक वीडियोज?
डीप-फेक (Deepfake) में मशीन लर्निंग (Machine Learning) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे ताकतवर उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है और इन्हीं उपकरणों की मदद से विडियो को पहचानना बेहद मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह हकीकत के बेहद करीब नजर आती हैं. आइये समझते हैं कि एक फेक वीडियो को किस तरह से समझा जा सकता है? 

चेहरे को गौर से देखें और रंग एवं लाइटिंग के फर्क को समझें: जब भी किसी इंसान का चेहरा किसी दूसरे इंसान से बदला जा सकता है तो उसके चेहरे को थोड़ा ज्यादा ही हाईलाइट किया जाता है जिसकी वजह से कभी चेहरे का रंग तो कभी चेहरे की लाइटिंग वीडियो के अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा या कम होती है. ‘डीप-फेक’ (Deepfake) वीडियोज में बिलकुल परफेक्ट लाइटिंग और रंग नहीं होता और यहां से भी आप फेक वीडियो को पहचान सकते हैं. 

आंखों की मूवमेंट पर करें गौर: डीपफेक वीडियोज में एक अन्य चीज जिसकी वजह से इन विडियोज की पहचान की जा सकती है, वह है आंखों की मूवमेंट. जब भी किसी व्यक्ति की फेक वीडियो बनाई जाती है तो उसमें दूसरे व्यक्ति का चेहरा उठाने पर उसकी आंखों की मूवमेंट काफी अलग नजर आती है और अगर आप गौर से आंखों की मूवमेंट देखें तो आप फेक वीडियो की पहचान कर सकते हैं. 

ऑडियो की तुलना करें: वीडियो के अलग अलग हिस्सों में जिस व्यक्ति की वीडियो फेक की गई है उसकी आवाज भी वीडियो के अलग-अलग हिस्सों में आवाज अलग-अलग होती है. डीप-फेक वीडियोज में अक्सर AI से बनाई गई आवाज का इस्तेमाल किया जाता है और इस आवाज में बहुत सी खामियां होती हैं जिन्हें ध्यान देने पर पकड़ा जा सकता है और आप पहचान सकते हैं कि वीडियो फेक है. 

फेशियल फीचर्स पर दें ध्यान: फेक वीडियो में अक्सर चेहरे के फीचर्स और उनके भाव बदलते रहते हैं. उदाहरण के लिए अगर आप फेक वीडियो को ध्यान से देखें तो हो सकता है किसी हंसी वाली बात पर चेहरे पर कोई भाव ही न आये और ऐसे ही भौंहे और आंखें भी अलग-अलग क्षणों में अलग अलग बातों के भाव पर सही नहीं बैठती. अगर आप वीडियो को थोड़ा ध्यान से देखें तो आप इस चीज को पकड़ सकते हैं और पहचान सकते हैं कि वीडियो फेक है. 
 

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IPO में निवेश का है इरादा? इन बातों का रखें विशेष ध्यान!

अगर आप भी किसी कंपनी के IPO के बारे में इन्वेस्ट करने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Friday, 03 November, 2023
Last Modified:
Friday, 03 November, 2023
IPO

पिछले कुछ समय के दौरान शेयर मार्केट (Share Market) में लोगों की रुचि बढ़ी है और ज्यादातर लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने के बारे में अब एक्टिव रूप से सोच-विचार भी करने लगे हैं. अगर आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं तो यह खबर आपके लिए काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है. किसी भी कंपनी द्वारा अपनी लिस्टिंग से पहले IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग को जारी किया जाता है. 

इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पिछले कुछ सालों के दौरान कई जानी-मानी कंपनियों और स्टार्टअप्स ने भी अपने IPO जारी किये हैं. जिनमें जोमैटो (Zomato), LIC (Life Insurance Corporation), पेटीएम (Paytm), RR काबेल (RR Kabel) जैसी कंपनियों के नाम शामिल हैं. इसके साथ ही स्विगी (Swiggy) और टाटा टेक्नोलॉजीज जैसी कई महत्त्वपूर्ण कंपनियां ऐसी भी हैं जो भविष्य में अपने IPO जारी करने के बारे में विचार कर रही हैं. ऐसे में अगर आप भी किसी कंपनी के IPO के बारे में इन्वेस्ट करने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा. 

कंपनी की जानकारी: अगर आप IPO में इन्वेस्ट करने के बारे में विचार कर रहे हैं तो सबसे पहले आपको कंपनी की सारी जानकारी प्राप्त करनी होगी. जब भी कोई निजी कंपनी खुदको लिस्ट करने वाली होती है तो उसके बारे में जानकारी प्राप्त करना काफी मुश्किल हो जाता है. निजी कंपनियां अपनी कुछ जानकारी छुपाने की कोशिश करती हैं. आप जब भी अपने म्हणत के पैसे किसी कंपनी में इन्वेस्ट करें तो पहले उस कंपनी के बारे में मौजूद ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त कर लें. जैसे, कंपनी के विरोधी कौन हैं, कंपनी ने IPO की घोषणा से पहले क्या प्रेस रिलीज जारी की हैं, और इसके साथ ही यह भी पता करने की कोशिश करें कि आप जिस इंडस्ट्री की कंपनी में इन्वेस्ट करने जा रहे हैं उस इंडस्ट्री में क्या चल रहा है?

हमेशा ऐसे कंपनी का करें चयन: आप हमेशा ऐसी कंपनी का चयन करें जिसके ब्रोकर काफी मजबूत हों और मशहूर हों. ऐसा नहीं है कि बड़े ब्रोकर्स हमेशा अच्छे परिणाम ही दें लेकिन जब बात आपके मेहनत से कमाए पैसों की आती है तो हमेशा ऐसे ब्रोकर्स पर विश्वास करें जो इंडस्ट्री में लंबे समय से मौजूद हैं और ऐसे ब्रोकर्स द्वारा करवाई गई डील्स की जानकारी भी प्राप्त कर लें. 

कंपनी का विवरण ध्यान से जरूर पढ़ें: अगर आप किसी भी कंपनी के IPO में इन्वेस्ट करने के बारे में विचार कर रहे हैं तो आप इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप एक बार ही सही लेकिन कंपनी द्वारा जारी किया गया विवरण जरूर पढ़ें. आपने बहुत जगह सुना होगा कि हमें पूरी तरह से कंपनी द्वारा जारी किये गए विवरण पर निर्भर नहीं होना चाहिए लेकिन फिर भी कंपनी के विवरण को पढ़ना जरूरी होता है और पैसे इन्वेस्ट करने से पहले एक बार इसे जरूर पढ़ लें. अपने विवरण में ही कंपनी बताती है कि वो IPO से इकठ्ठा हुए पैसों का इस्तेमाल किस प्रकार ससे करने वाली है और इसीलिए कंपनी का विवरण पढ़ना काफी आवश्यक हो जाता है. 

सावधान रहें: IPO के मामले में बहुत सी अनिश्चितताएं बनी रहती हैं और इसीलिए यह काफी जरूरी हो जाता है कि आप जब भी एक IPO में इन्वेस्ट करें तो सावधानी बरतें और जिस कंपनी के IPO में आप इन्वेस्ट कर रहे हैं उसको लेकर पूरी तरह से जागरूक रहें. कंपनी के बारे में मौजूद सारी जानकारी पढ़ते रहें और IPO के समय तक कंपनी से संबंधित हर छोटी बड़ी खबर पर ध्यान दें. 
 

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