इस मामले में आयकर विभाग की ओर ट्रिब्यूनल में जब शिकायत की गई तो उन्होंने पार्टी के खाते सीज करने पर रोक लगा दी थी.
आयकर विभाग की ओर से कांग्रेस पार्टी को 210 करोड़ की रिकवरी का नोटिस जारी करने के बाद अब कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि इस मामले की सुनवाई के बावजूद उसके खातों से 65 करोड़ रुपये निकाल लिए गए हैं. कांग्रेस पार्टी ने ये भी कहा कि सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये कार्रवाई उनके खिलाफ तब हुई है जब उनका मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. ऐसे में ये कार्रवाई गलत है. इसमें कांग्रेस के खाते से 60 करोड़ और आईवाईसी के खाते से 5 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं.
Yesterday, the Income Tax Department mandated banks to transfer over ₹65 crores from @INCIndia, IYC, and NSUI accounts to the government—₹5 crores from IYC and NSUI, and ₹60.25 crores from INC, marking a concerning move by the BJP Government.
— Ajay Maken (@ajaymaken) February 21, 2024
Is it common for National… pic.twitter.com/eiObPTtO1D
ट्रिब्यूनल ने 210 करोड़ के नोटिस पर दिया स्टे
कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि आयकर विभाग की ओर से उनकी पार्टी को जो 210 करोड़ रुपये का नोटिस दिया गया था, उस मामले में ट्रिब्यूनल पहले ही स्टे दे चुकी है. उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले में ग्रहणाधिकार (Lien) भी दर्ज कर लिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि फिर भी विभाग ने पार्टी खातों से पैसे निकालकर गैर लोकतांत्रिक कार्रवाई की है. इससे देश की बहुदलीय व्यवस्था को खतरा हो सकता है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर इस मामले में न्यायपालिका ने हस्तक्षेप नहीं किया तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा.
आईटी ट्रिब्यूनल ने दी थी पार्टी को दी थी राहत
आयकर विभाग की ओर से पार्टी को दिए गए 210 करोड़ रुपये के नोटिस के मामले में कांग्रेस पार्टी के द्वारा ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाए जाने के बाद उसे वहां से राहत मिल गई थी. ट्रिब्यूनल ने पैसों की जब्ती पर भी राक लगा दी थी. इस मामले में कांग्रेस पार्टी को 115 करोड़ रुपये रोककर बाकी रकम खर्च करने की अनुमति दे दी है. कांग्रेस पार्टी के वकील ने बताया कि खातों को सीज किए जाने के बाद पार्टी लोकतंत्र के पर्व चुनावों में भाग नहीं ले पाएगी.
अजय माकन ने लगाया ये आरोप
कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि अगर जांच एजेंसियों की कार्रवाई इसी तरह से जारी रही तो आने वाले समय में लोकतंत्र पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस पार्टी को न्यायपालिका पर पूरी तरह से विश्वास है.
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महाराष्ट्र में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं. सियासी दल सीटों के गुणाभाग में जुटे हुए हैं.
महाराष्ट्र को इसी साल विधानसभा चुनाव से गुजरना है. राज्य में इस समय भाजपा की अगुवाई वाली महायुति की सरकार है. भाजपा , एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार गुट की एनसीपी सरकार का हिस्सा है. इस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. इसलिए विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा फूंक-फूंककर कदम आगे बढ़ा रही है. इस बीच, महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान करके सबको चौंका दिया है. उन्होंने साफ किया है कि मनसे राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 225 से 250 पर लड़ने के लिए तैयारी कर रही है. राज ठाकरे ने संभावित उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए 5 नेताओं की एक टीम भी बनाई है.
ऐसा रहा है प्रदर्शन
महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें केवल एक सीट मिली थी. लिहाजा, राज के 'एकला चलो' की घोषणा किसी को समझ नहीं आ रही है. विपक्ष भी ठाकरे के मजे ले रहा है. उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के प्रवक्ता आनंद दुबे का कहना है कि मनसे एकमात्र विधायक के दम पर सत्ता में आने की इच्छुक है. लगता है कि पार्टी भ्रमित है और उसे स्पष्ट करना चाहिए कि वो असल में चाहती क्या है. बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद उद्धव और राज ठाकरे की राह अलग हो गई थी. राज ने 2006 में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) नाम से अपनी पार्टी बनाई. 2009 में मनसे ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और 13 सीटों पर जीत हासिल की. लेकिन इसके बाद राज का 'सूर्य' अस्त हो गया. 2014 और 2019 में हुए चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. 2019 में तो उसे केवल एक ही सीट नसीब हुई.
क्या स्थायी है ब्रेक?
राज ठाकरे ने लोकसभा चुनाव में बिना शर्त के PM मोदी को समर्थन दिया था. हालांकि, ये बात अलग है कि उनके पास समर्थन देने जैसा कुछ था. इस कदम को उनकी भाजपा से नजदीकी के तौर पर देखा गया. यह माना जा रहा था कि राज महायुति में शामिल होकर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. क्योंकि इससे उनके ज्यादा सीटों पर प्रभाव छोड़ने की संभावना बनी रहेगी. महायुति में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकप्रियता की बदौलत महाराष्ट्र में भाजपा मजबूत हुई है. ऐसे में इस 'साथ' का कुछ न कुछ फायदा राज ठाकरे की मनसे को भी मिल सकता है. लेकिन ठाकरे ने इस संभावना पर खुद ही ब्रेक लगा दिया है. तो क्या इस 'ब्रेक' को स्थायी माना जाए? मौजूदा वक्त में सबसे बड़ा सवाल यही है.
रणनीति नंबर 1
मनसे प्रमुख के इस कदम के पीछे दो रणनीतियां हो सकती हैं. पहली, महायुति पर दबाव बनाना. राज ठाकरे को इल्म है कि भाजपा के नेतृत्व वाले इस गठबंधन का हिस्सा बनने से उन्हें कुछ लाभ मिल सकता है. ऐसे में अगर वो ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ते हैं, तो लाभ का प्रतिशत बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाएगी. इसलिए वह 'एकला चलो' का नारा लगाकर खुद को मोल-भाव की स्थिति में ला रहे हैं. और इसका शुरुआती असर दिखाई भी देने लगा है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के विधायक एवं प्रवक्ता संजय शिरसाट का कहना है कि मनसे को विधानसभा चुनाव महायुति के साथ मिलकर लड़ना चाहिए. अभी सीट बंटवारे पर अंतिम सहमति नहीं बनी है, जब बनेगी तो मनसे को भी प्रस्ताव दिया जाएगा.
रणनीति नंबर 2
ठाकरे की दूसरी रणनीति, लोकसभा चुनाव के परिणामों से प्रेरित हो सकती है. इस चुनाव में महाराष्ट्र के सियासी समीकरणों को बिगाड़ कर भाजपा का साथ देने वाली पार्टियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना में तोड़फोड़ की थी और अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़कर आए थे. चुनाव में अजित की NCP महज एक सीट जीत पाई. वहीं, एकनाथ शिंदे की पार्टी को 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा. जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) को 9 सीटों पर जीत मिली और शरद पवार की एनसीपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया. वहीं, भाजपा को भी राज्य में बड़ा नुकसान हुआ है. यदि यही स्थिति विधानसभा चुनाव में भी रही तो महायुति से जुड़े सभी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है और जाहिर है राज ठाकरे भी इससे अछूते नहीं रहेंगे. लिहाजा, संभव है कि इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया हो. वैसे भी उनके पास चुनाव बाद भी हाथ मिलाने का विकल्प रहेगा.
ऐसा है समीकरण
महायुति में सीटों का बंटवारा अभी नहीं हुआ है, लेकिन भाजपा राज्य की 288 सीटों में से 160-170 पर चुनाव लड़ सकती है. अजित पवार की NCP ने 80 से 90 सीटों पर लड़ने का दावा किया है. वहीं, शिंदे की शिवसेना लगभग 100 सीटों पर किस्मत आजमाना चाहती है. पिछले चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिली थीं. शिवसेना ने 56, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत हासिल की थी. चुनाव के बाद शिवसेना ने भाजपा के नेतृत्व वाले NDA से रिश्ता तोड़कर एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. लेकिन जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 40 विधायकों को तोड़कर अलग पार्टी बनाई और BJP के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए. इसी तरह अजित पवार भी एनसीपी तोड़कर सरकार का हिस्सा बन गए.
मोदी सकरार के प्रमुख सहयोगी नीतीश कुमार प्रवर्तन निदेशालय की एक कार्रवाई को लेकर नाराज बताए जा रहे हैं.
सरकार की सबसे मजबूत एजेंसी मानी जाने वाली ED की एक कार्रवाई मोदी सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है. प्रवर्तन निदेशालय ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी कहे जाने वाले एक IAS अधिकारी के ठिकानों पर छापेमारी की थी. जांच एजेंसी के इस एक्शन से नीतीश कुमार नाराज बताए जा रहे हैं. नीतीश की जनता दल यूनाइटेड केंद्र की मोदी सरकार की प्रमुख सहयोगी है. नीतीश और चंद्रबाबू नायडू के कंधों पर मोदी सरकार टिकी है. ऐसे में नीतीश की नाराजगी केंद्र सरकार को भारी पड़ सकती है. भले ही JDU के किसी भी नेता ने सार्वजनिक तौर पर ED की कार्रवाई के लिए केंद्र पर सवाल न उठाए हों, लेकिन इससे उनका पारा हाई ज़रूर हुआ है.
इशारों-इशारों में चेताया
आईएस संजीव हंस ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव हैं. उन्हें CM नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है. हाल ही में ईडी की टीम ने पटना, दिल्ली, अमृतसर, चंडीगढ़ और पुणे के करीब 20 ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिसमें हंस के भी ठिकाने शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, संजीव हंस के घर से 1100 ग्राम यानी 110 तोला सोना और अन्य कीमती सामान बरामद किया गया है. ED की इस कार्रवाई से जनता दल यूनाइटेड में रोष है. बताया तो यहां तक जाता है कि हंस से जुड़े परिसरों पर छापेमारी के बाद, JDU के एक वरिष्ठ नेता ने बीजेपी कोटे से उप-मुख्यमंत्री बने नेता को साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि इस तरह की कार्रवाई से सहयोगियों के बीच मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं.
यूपी पर भी JDU नाखुश
माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में कावड़ यात्रा को लेकर सरकार के आदेश से JDU की नाराज़गी , संजीव हंस पर छापेमारी से उपजी नाराज़गी का ही परिणाम है. योगी सरकार ने कावड़ यात्रा को जारी आदेश में कहा है कि यात्रा के रास्ते में हर खाने वाली दुकान या ठेले के मालिक को अपने नाम का बोर्ड लगाना होगा.जेडीयू नेता केसी त्यागी ने यूपी सरकार के इस फैसले पर नाराज़गी व्यक्त की थी. उन्होंने कहा था कि कांवड़ यात्रा सदियों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों से गुजर रही है और सांप्रदायिक तनाव की सूचना नहीं मिली है. हिंदू, मुस्लिम और सिख भी स्टॉल लगाकर तीर्थयात्रियों का स्वागत करते हैं. इतना ही नहीं, मुस्लिम कारीगर भी कांवर बनाते हैं. लिहाजा ऐसे आदेशों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.
यहां भी बढ़ सकता है विवाद
बिहार को विशेष दर्जा देने के मुद्दे पर भाजपा और JDU में मतभेद दिखाई दे रहे हैं. नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार को विशेष दर्जे का ऐलान जल्द से जल्द किया जाए. जबकि भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले से ही बिहार को ज्यादा देते रहे हैं. बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा था कि राज्य के विकास के लिए जो भी जरूरी होगा, PM मोदी ज़रूर देंगे. सियासी पंडितों का मानना है कि नीतीश की इस मांग के पूरी होने की संभावना बेहद कम है, और ऐसे में उनका भाजपा से टकराव बढ़ सकता है. यदि ऐसा हुआ तो फिर केंद्र की मोदी सरकार मुश्किल में पड़ जाएगी. नीतीश कुमार का वैसे भी पाला बदलने का इतिहास रहा है.
Editors Guild ने प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा को लेकर एक पत्र लिखा है. गिल्ड ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कई नए कानून अपर्याप्त हितधारक परामर्श और संसदीय जांच के साथ लागू किए गए हैं.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild Of India-EGI) ने इंडिया गठबंधन (विपक्ष) के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को एक पत्र लिखा है. अपने इस पत्र में, एडिटर्स गिल्ड ने मीडिया की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले विधायी उपायों पर महत्वपूर्ण चिंता व्यक्त की है.
नए कानून और संशोधन से वैध पत्रकारिता को दबाने की कोशिश
ईजीआई ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कई नए कानून और संशोधन, जैसे कि आईटी नियम 2021 और आईटी अधिनियम 2000 के तहत इसका 2023 संशोधन- अपर्याप्त हितधारक परामर्श और संसदीय जांच के साथ लागू किए गए हैं. गिल्ड ने कहा है कि ये नियम ऑनलाइन स्पेस, प्रसारण, प्रिंट और दूरसंचार क्षेत्रों को प्रभावित कर रहे हैं और इसमें ऐसे प्रावधान हैं जो अत्यधिक व्यापक और अस्पष्ट हैं, जिनका संभावित रूप से वैध पत्रकारिता को दबाने के लिए दुरुपयोग किया जाता है.
प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा, राहुल गांधी से मांगा समर्थन
गिल्ड ने इस बात पर जोर दिया कि ये उपाय सरकारी अधिकारियों को व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं, जिससे बढ़ते नियंत्रण और दंडात्मक उपायों के कारण प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का खतरा है. एडिटर्स गिल्ड ने भी इस महत्वपूर्ण मामले में राहुल गांधी का समर्थन मांगते हुए अपने सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ इन मुद्दों पर अधिक विस्तार से चर्चा करने की इच्छा व्यक्त की है.
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सात राज्यों की कुल 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है. जबकि इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है.
लोकसभा चुनाव में उम्मीद अनुरूप परिणाम हासिल करने में नाकाम रही भाजपा को फिर झटका लगा है. सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टी को केवल 2 पर जीत मिली है. जबकि इंडिया गठबंधन 10 सीटों पर जीत गया है. बिहार की सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गई है. इस परिणाम का सीधा मतलब है कि जनता में भाजपा के प्रति नाराज़गी है. महंगाई, बेरोज़गारी जैसे आम आदमी से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ निजीकरण पर सरकार के रुख के खिलाफ लोगों का गुस्सा पहले भी सामने आता रहा है. ये बात अलग है कि सरकार और भाजपा इसे अनदेखा करते रहे. पहले लोकसभा और अब विधानसभा उप चुनाव के नतीजे यह स्पष्ट इशारा कर रहे हैं कि इन मुद्दों की अनदेखी आगे भाजपा के लिए बड़ा संकट बन सकती है.
आम का रखना होगा खास ध्यान
उपचुनाव के नतीजों का असर सरकार की आर्थिक नीतियों पर भी देखने को मिल सकता है. जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव परिणाम सीधे तौर पर केंद्र के कामकाज को भले ही प्रभावित न करें, लेकिन आवाम के मिजाज को तो दर्शाते ही हैं. 7 राज्यों की 13 सीटों में से भाजपा केवल 2 पर जीत हासिल कर पाई है. यदि कुछ साल पहले की बात करें, तो इस तरह के टेस्ट में भाजपा शत प्रतिशत से पास होती आई है. लिहाजा, इस बार प्रदर्शन में गिरावट पार्टी के लिए मंथन का समय है. साथ ही सरकार के लिए भी संकेत है कि उसे आमजन को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनानी होंगी. ऐसे में सरकार के लिए अब कड़े आर्थिक फैसले लेना और मुश्किल हो सकता है.
बजट पर ऐसा हो सकता है असर
23 जुलाई को पेश होने वाले बजट पर क्या इन नतीजों का कोई असर पड़ेगा? जानकारों का मानना है कि इससे पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता. सरकार को हर हाल में जनता के बीच व्याप्त नाराज़गी को दूर करना होगा और बजट इसका सबसे बेहतरीन माध्यम हो सकता है. संभावना है कि बजट में महंगाई को नियंत्रित करने और रोज़गार के अवसर बढ़ाने को लेकर कोई घोषणा हो. साथ ही इसकी भी संभावना है कि वित्तमंत्री निजीकरण को लेकर कोई बात न कहें. क्योंकि निजीकरण के एजेंडे ने देश के लाखों सरकारी कर्मचारियों को मोदी सरकार से दूर करने का काम किया है.
नीतीश कुमार को भी मिला संकेत
मोदी सरकार में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू प्रमुख सहयोगी हैं. बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी JDU के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है. रुपौली सीट पर ही उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह जीत गए हैं. भले ही बात केवल एक सीट की है, लेकिन नीतीश कुमार को अब इसका ज्यादा ख्याल रखना होगा कि वो आमजन को नाराज करने वाले मोदी सरकार के फैसलों पर सहमत नजर न आएं. बता दें कि सात राज्यों की इन 13 सीटों पर उपचुनाव इसलिए कराने पड़े हैं क्योंकि ये सीटें विधायकों के निधन या उनके इस्तीफे के चलते खाली हुई थीं.
ऐसा है रहा है चुनाव का परिणाम
भाजपा उत्तराखंड की बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हार गई है, अयोध्या के बाद यह उसके लिए दूसरा सबसे बड़ा झटका है. यहां से कांग्रेस उम्मीदवार लखपत सिंह बुटोला जीते हैं. उत्तराखंड की दूसरी सीट भी कांग्रेस के खाते में गई है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को तीन में से दो सीटों पर जीत मिली है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की TMC ने चारों सीटें अपने नाम कर ली हैं. पंजाब की जालंधर वेस्ट सीट से आम आदमी पार्टी को जीत मिली है. इसी तरह तमिलनाडु की एकमात्र सीट DMK के पास चली गई है. भाजपा को केवल मध्य प्रदेश की अमरवाडा सीट पर हुए उपचुनाव और हिमाचल की हमीरपुर सीट पर जीत मिली है.
लोकसभा स्पीकर के चयन के बाद अब सवाल यह उठता है कि डिप्टी स्पीकर के पद पर कौन बैठेगा.
लोकसभा के स्पीकर पद पर ओम बिरला (Om Birla) विराज चुके हैं. बिरला को भाजपा के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन ने अपना उम्मीदवार बनाया था. जबकि विपक्षी गठबंधन की तरफ से के. सुरेश उम्मीदवार थे. हालांकि, आखिरी वक्त पर कांग्रेस ने मतविभाजन का फैसला छोड़ दिया और बिरला को ध्वनिमत से स्पीकर चुन लिया गया. अब सवाल यह उठता है कि क्या डिप्टी स्पीकर की कुर्सी पर विपक्ष अपना उम्मीदवार बैठा पाएगा? लोकसभा में यह अघोषित परंपरा रही है कि सत्ता पक्ष सर्वसम्मति से स्पीकर पद अपने पास रखता है और डिप्टी स्पीकर की कुर्सी विपक्ष को दी जाती है. लेकिन जिस तरह से इस बार स्पीकर को लेकर खींचतान हुई है उससे लगता नहीं कि NDA विपक्ष को डिप्टी स्पीकर की कुर्सी सौंपेगा.
TDP को मिल सकता है पद
फिलहाल डिप्टी स्पीकर के मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों खामोश हैं. हालांकि, माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने 8 बार के सांसद के. सुरेश की दावेदारी के लिए जोर लगा सकती है. उधर, भाजपा भी इस मुद्दे पर बड़ा दांव खेल सकती है. यदि डिप्टी स्पीकर को लेकर दोनों पक्षों में कोई सहमति नहीं बनती है, तो भाजपा अपनी सहयोगी TDP के किसी सांसद को उम्मीदवार बना सकती है. TDP चद्रबाबू नायडू की पार्टी है और मोदी सरकार नायडू और नीतीश कुमार के सहयोग से ही खड़ी हुई है. ऐसे में डिप्टी स्पीकर की कुर्सी TDP के सहयोगी का तोहफा होगी.
स्पीकर का क्या होगा रुख?
17वीं लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली थी. विपक्ष द्वारा पद भरने की मांग लगातार अनसुनी की गई थी. हालांकि, इस बार स्थिति काफी अलग है. विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेतृत्व कर रही कांग्रेस पहले से ज्यादा मजबूत स्थिति में है. सामने आ रही खबरों के मुताबिक, भाजपा ने अभी तक इस मुद्दे पर अपने सहयोगियों से चर्चा नहीं की है. पहले पार्टी अपने सहयोगियों के साथ एक राय कायम करेगी और फिर विपक्ष को सूचित किया जाएगा. वैसे, यह भी देखने वाली बात होगी कि लोकसभा अध्यक्ष का रुख क्या होता है. क्या वे इस बार डिप्टी स्पीकर रखने में रुचि दिखाएंगे या पिछली बार कि तरह बगैर डिप्टी स्पीकर काम करेंगे.
पिछली बार नहीं माने नियम
विपक्ष डिप्टी स्पीकर पद भरने को लेकर सरकार पर दबाव डाल सकता है. पार्टी लीडर जयराम रमेश का कहना है कि हम निश्चित रूप से उपसभापति पद के लिए दावा करेंगे. चाहे वह भाजपा का उम्मीदवार हो या उसके सहयोगी दलों का, हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 93 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लोकसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होना आवश्यक है. ये बात अलग है कि पिछली बार सरकार ने इस नियम का उल्लंघन किया, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है. अनुच्छेद 93 में कहा गया है - ' लोकसभा यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी. जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होगा, सदन किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में चुन सकेगा'.
जम्मू -कश्मीर में जल्द विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं. भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर कश्मीर पहुंचे. PM मोदी ने यहां योग किया और उसके बाद लोगों के साथ फोटो भी खिंचवाई. खासकर महिलाओं में PM मोदी को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला. प्रधानमंत्री योग दिवस के मौके पर अलग-अलग जगह जाते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने कश्मीर को चुना. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए मोदी का कश्मीर को चुनना उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा है. लोकसभा चुनाव में विपक्षी इंडिया गठबंधन के प्रदर्शन के मद्देनजर भाजपा घाटी को लेकर बेहद सतर्क हो गई है. पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए फुलप्रूफ रणनीति तैयार करने में जुटी है.
2014 में हुए थे चुनाव
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर PM मोदी ने कश्मीरी आवाम के बीच जाकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि उन्हें कश्मीर के लोगों की फिक्र है. जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे, ये अभी स्पष्ट नहीं है. लेकिन माना जा रहा है कि जल्द ही इसे लेकर तस्वीर साफ हो सकती है. जम्मू कश्मीर में आखिरी चुनाव 2014 में हुए थे. इस चुनाव में भाजपा ने 87 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके बाद राज्य में भाजपा और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) गठबंधन की सरकार बनी. यह सरकार करीब तीन साल तक चली. BJP के समर्थन वापस लेने के चलते महबूबा मुफ्ती की सरकार 19 जून 2018 को गिर गई. उसके बाद अब राज्य में विधानसभा चुनाव होंगे.
2 लोकसभा सीटों पर लड़ा चुनाव
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने केवल हिंदू बहुल जम्मू और उधमपुर पर ही उम्मीदवार उतारे थे. राज्य की मुस्लिम बहुल तीन सीटों पर BJP ने खाली छोड़ दिया था. जिन 2 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा, वहां उसे जीत मिली. शेष तीन में से दो सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई. इस चुनाव में BJP ने 24.36% वोट हासिल किए. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 22.30%, कांग्रेस ने 19.38% और पीडीपी को 8.48% वोट मिले. 2019 के लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की छह सीटे थीं. जिनमें से तीन सीटें BJP और 3 नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीती थीं.
ऐसे मिलेगी सत्ता
भाजपा राज्य में लोकसभा चुनाव के नतीजों से खुश है, लेकिन लगभग इसी रणनीति को विधानसभा चुनाव में भी लागू करेगी. कहने का मतलब है कि उसका पूरा ध्यान हिंदू बहुल जम्मू पर होगा. जबकि मुस्लिम बहुल सीटों के लिए वह निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दे सकती है और छोटे दलों से तालमेल कर सकती है. पार्टी राज्य की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने से बचेगी. भाजपा भी अच्छे से जानती है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर उसकी जीत मुश्किल हो सकती है, इसलिए वो निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करके और छोटे दलों को साथ लाकर सत्ता तक पहुंच सकती है.
नतीजों से उत्साहित
लोकसभा चुनाव में राज्य के दो बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री एवं PDP लीडर महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस लीडर एवं पूर्व CM उमर अब्दुल्ला को हार का सामना करना पड़ा है. इससे यह संदेश जाता है कि राज्य की जनता इन दोनों से नाखुश है, भाजपा इसे के बड़े मौके के तौर पर देख रही है. हालांकि, यह भी सही है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़ा जाता है. भाजपा आतंकवाद में कमी और राज्य के विकास को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ेगी. वहीं, विपक्षी दल अनुच्छेद-370 हटाए जाने के वक्त सामने आई नाराजगी को भुनाने की कोशिश करेंगे. भाजपा अनुच्छेद-370 हटाने को राज्य के लिए ऐतिहासिक फैसला करार देती है, ऐसे में इस चुनाव में उसकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
कांग्रेस पार्टी की खटाखट स्कीम के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट के एक वकील विभोर आनंद ने विपक्षी सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखा है.
रिश्वत के आरोप में कांग्रेस (Congress) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सांसदों (Member Of parliament) को अयोग्य ठहराने की याचिका राष्ट्रपति (Droupadi Murmu) के पास लंबित है, जिन्होंने आरोपों पर कानूनी राय मांगी है. अयोग्यता याचिका लंबित रहने तक एक वकील ने राष्ट्रपति से इन सभी 136 सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने की मांग की है.
विपक्षी पार्टी के सांसदों की शपथ पर रोक के लिए राष्ट्रपति को लिखा पत्र
कांग्रेस पार्टी की खटाखट स्कीम विपक्षी पार्टी के संसद सदस्यों (सांसदों) के लिए ये अभिशाप साबित हो सकती है. दरअसल, राहुल गांधी ने इस स्कीम के तहत महिला मतदाताओं को 8500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था. ऐसे में अब गांधी परिवार के सदस्यों और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप लगाने वाले दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट के वकील विभोर आनंद ने अब विपक्षी सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखा है. आपको बता दें, राष्ट्रपति ने 24 जून, 2024 को निचले सदन (लोकसभा) को बुलाया है, जिसमें नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी.
कांग्रेस पर कैश फॉर वोट घोटाले का आरोप
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा गया है कि कांग्रेस के 99 सांसदों और समाजवादी पार्टी (सपा) के 37 सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि उनकी अयोग्यता की याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है. इससे पहले, जिस सप्ताह 4 जून को चुनाव परिणाम घोषित हुए थे, उस दौरान आनंद ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कांग्रेस और सपा के सभी 136 सांसदों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी. आनंद ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी कैश फॉर वोट घोटाले के वादे में शामिल हो गई है. उन्होंने मतदाताओं को पैसों का लालच देकर वोट हासिल किए हैं.
गारंटी कार्ड का वितरण मतदाताओं को रिश्वत देना
वकील के अनुसार खटाखट योजना और कांग्रेस द्वारा गारंटी कार्ड का वितरण मतदाताओं को रिश्वत देना था. उन्होंने एक पत्र में राष्ट्रपति मुर्मू को बताया कि कांग्रेस ने हाल ही में संपन्न आम चुनावों में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (1) के तहत अपराध किया है, जो मतदाताओं को रिश्वत देने के एकमात्र इरादे से घोर भ्रष्ट आचरण है. राष्ट्रपति ने पत्र को कानूनी राय के लिए भेजा है.
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वोट के बदले पैसे देने का आरोप
चुनाव प्रचार के आखिरी कुछ हफ्तों के दौरान, राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका दोनों को 'खटाखट योजना' का प्रचार करते देखा गया, जिसमें कांग्रेस को वोट देने पर महिला मतदाताओं के खातों में हर महीने 8500 रुपये और हर साल 1 लाख रुपये ट्रांसफर करने का वादा किया गया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 2019 में सत्ता में आने के लिए हर गरीब परिवार की महिला मुखिया को हर साल 1 लाख रुपये देने का वादा करते हुए कई परिवारों को 'गारंटी कार्ड' या वचन पत्र वितरित किए थे, जिसके बाद भी वह अपने पारिवारिक गढ़ अमेठी से हार गए थे. वहीं, इस बार खटाखट योजना के दम पर राहुल गांधी रायबरेली और केरल के वायनाड, इन दोनों सीटों पर जीतने में कामयाब रहे.
कांग्रेस ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम का किया उल्लंघन
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में आनंद ने बताया कि भारत में चुनाव जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act), 1951 के तहत शासित होते हैं. आरपी अधिनियम की धारा 123 के अनुसार चुनाव के दौरान उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा लोगों को दिया गया कोई उपहार, प्रस्ताव या वादा, भ्रष्ट आचरण या रिश्वत से संबंधित है. सीधे शब्दों में कहें तो, राहुल गांधी का कांग्रेस पार्टी के पक्ष में मतदान करने पर मतदाताओं को सीधे उनके खाते में 1 लाख रुपये देने का वादा और इस तरह के गारंटी कार्ड का वितरण, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धाराओं के तहत रिश्वत के बराबर है.
कांग्रेस के खिलाफ ठोस कदम उठाने की जरूरत
राष्ट्रपति से आनंद की नवीनतम अपील में कहा गया कि आज देश की लाखों महिलाएं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं और सदस्यों द्वारा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं, जिन्होंने उन्हें प्रति माह 8500 रुपये का भुगतान करने की गारंटी दी थी. ऐसे अपराधियों को रोकने के लिए महामहिम की ओर से कठोर कदम उठाने की जरूरत है, जिससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास बना रहे.
असम के मुख्यमंत्री ने राज्य के मंत्रियों, अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली सब्सिडी बिजली पर रोक लगा दी है. साथ ही वह खुद भी बिजली का बिल भरेंगे.
असम (Assam) में दशकों पुराना वीआईपी (VIP) कल्चर खत्म होने जा रहा है. दरअसल, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने ये घोषणा की है कि अब राज्य सरकार अपने मंत्री और अधिकारियों के घरों पर खपत होने वाली बिजली का बिल नहीं भरेगी, साथ ही मुख्यमंत्री के घर के बिल का खर्च भी अब राज्य सरकारी खजाने से नहीं भरा जाएगा.
1 जुलाई से भरने पड़ेंगे बिजली
हिमंत बिस्वा ने घोषणा करते हुए कहा है कि 1 जुलाई से सभी मंत्रियों और अधिकारियों को बिजली बिल देना होगा. वह खुद भी बिजली का बिल भरेंगे. ये घोषणा उन्होंने असम सचिवालय परिसर में आयोजित एक समारोह में जनता भवन सौर परियोजना, 2.5 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता ग्रिड से जुड़ी छत और जमीन पर लगे सौर पीवी प्रणाली का उद्घाटन के दौरान कही.
सरकारी क्वार्टर में लगेंगे प्रीपेड मीटर
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने जानकारी दी कि हालिया संवाद के दौरान बिजली विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन से बहुत ही मामूली राशि बिजली बिल के रूप में काटी जाती है. उन्होंने अब विभाग को निर्देश दिया कि मंत्रियों की कॉलोनी सहित सभी सरकारी क्वार्टर में प्रीपेड मीटर लगाए जाएं.
75 वर्षों से चला आ रहा वीआईपी कल्चर होगा खत्म
असम के मुख्यमंत्री ने कहा है कि टैक्सपेयर के पैसों से सरकारी अधिकारियों के बिजली के बिल भरने का वीआईपी कल्चर खत्म होने जा रहा है. मंत्री और हाई रैंकिंग की सरकारी अधिकारियों की बिजली का बिल सरकारी खजाने से भरा जाता है और यह 75 वर्षों से चला आ रहा है. वहीं, इस कल्चर के कारण बिजली बोर्ड को होने वाले घाटे के बदले बिजली शुल्क में बढ़ोतरी भी करनी पड़ती थी. उन्होंने कहा है कि उन्हें 3 साल से मुफ्त में बिजली मिल रही थी लेकिन उन्हें इसका पता नहीं था इसके बारे में हाल ही में चर्चा के दौरान पता चला होगा. उन्हें उम्मीद है कि उनके इस कदम से बिजली बोर्ड को मदद मिलेगी.
देश का पहला ग्रीन स्टेट गवर्नमेंट हेडक्वार्टर
असम सचिवालय परिसर देश का पहला ऐसा सचिवालय बन गया है, जो दैनिक खपत के लिए पूरी तरह से सौर ऊर्जा से उत्पन्न बिजली पर निर्भर है. 25 वर्षों के जीवनकाल के साथ, यह सौर संयंत्र सालाना 3060 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन और अपने जीवनकाल के दौरान 76,500 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन खत्म कर देगा. इस परियोजना से मासिक रूप से औसतन 3 लाख यूनिट बिजली प्राप्त होगी और निवेश राशि 12.56 करोड़ रुपये की वसूली 4 साल की अवधि के भीतर होने का अनुमान है. इससे मासिक बचत लगभग 30 लाख रुपये होगी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी की वाराणसी सीट से लगातार तीसरी बार जीत ज़रूर हासिल की है, लेकिन जीत का अंतर कम हुआ है.
इस लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद शायद ही किसी को थी. जैसे भाजपा को बहुमत न मिलना, अयोध्या में भाजपा का हारना और नरेंद्र मोदी का काउंटिंग के दौरान कुछ देर के लिए पिछड़ना. अयोध्या में भाजपा की हार की प्रमुख वजह बाहरी व्यापारियों का 'कब्जा' और अधिग्रहण रही. लेकिन वाराणसी (बनारस) में ऐसा क्या हुआ कि PM मोदी कुछ देर के लिए पिछड़े और उनकी जीत का अंतर भी कम हो गया? ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट कारपोरेशन यानी BBC ने अपनी रिपोर्ट में वाराणसी में PM मोदी की जीत के घटते अंतर के लिए स्थानीय लोगों की घटती इनकम को कारण बताया है. हालांकि, ये बात अलग है कि पैसों को लेकर उसकी खुद की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही है. उस पर टैक्स चोरी के आरोप लग चुके हैं. पिछले साल इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने बीबीसी पर टैक्स सर्वे किया था, जिसमें 2016 से टैक्स चोरी पकड़ी गई. बीबीसी ने साल 2016 से लेकर 2022 तक के बीच 40 करोड़ रुपए कम टैक्स भरा था.
केवल इतने अंतर से मिली जीत
वाराणसी से इस बार नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर महज एक लाख 52 हजार वोटों का रहा. जबकि 2019 में उन्होंने लगभग चार लाख 80 हज़ार मतों के अंतर से इस सीट पर जीत हासिल की थी. चुनाव पूर्व माना जा रहा था कि वाराणसी से मोदी बड़े अंतर के साथ जीतेंगे. बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में पीएम मोदी की जीत के कम हुए अंतर का उत्तर देने की कोशिश की है. यह रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के कुछ फैसलों के चलते वाराणसी के लोगों की इनकम प्रभावित हुई, जिसका बदला उन्होंने भाजपा के खिलाफ वोट करके लिया.
पहले भरी रहती थीं नाव
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों में बनारस के मल्लाहों की कमाई पर सुनियोजित तरीके से चोट पहुंचाई गई है. दरअसल, सरकार गंगा नदी में क्रूज चलवा रही है. क्रूज की टिकट ऑनलाइन बुक की जा सकती है. इस व्यवस्था से सरकार को टैक्स मिल रहा है. लेकिन क्रूज के गंगा में उतरने से मल्लाहों की कमाई न के बराबर रह गई है. अपनी नाव से उनके लिए क्रूज का मुकाबला संभव नहीं. गंगा घाट आने वाले भी क्रूज से गंगा की सैर करना ज्यादा पसंद करते हैं. जबकि पहले नाव सैलानियों से भरी रहती थीं.
क्रूज से ठप हो गई कमाई
उत्तर प्रदेश कीयोगी आदित्यनाथ ने 2018 में गंगा नदी में फाइव स्टार लग्ज़री क्रूज़ उतारा था. यह क्रूज गंगा की 82 घाटों की सैर कराता है. 30 मीटर लंबे डबल डेकर क्रूज में एक साथ 110 लोग बैठ सकते हैं और इसका किराया प्रति व्यक्ति 750 रुपए का है. क्रूज लाने के पीछे सरकार की सोच निश्चित तौर पर विकास से मेल खाती है, लेकिन इसने स्थानीय मल्लाहों की कमाई को बुरी तरह प्रभावित किया है. कभी-कभी तो उन्हें पूरे दिन के इंतजार के बाद भी कोई सवारी नहीं मिलती. ऐसे में उनके मन में भाजपा और उसके मुखिया को लेकर गुस्सा पनपने लगा था, जो वोटिंग के समय सामने आ गया.
दुकानदारों से छिना रोजगार
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि बात केवल क्रूज तक ही सीमित नहीं है. सरकार ने मणिकर्णिका घाट से बाबा विश्वनाथ मंदिर तक कॉरिडोर बनाया है. इससे मणिकर्णिका घाट के दुकानदार प्रभावित हुए हैं. खासतौर पर वो जो मछली बेचा करते थे. दुकान हटाते समय वादा किया गया था कि सभी प्रभावितों को कॉरोडिर बनने के बाद एक-एक नई दुकान मिलेगी. लेकिन दुकान तैयार होने के बाद एक दुकान के लिए 25 लाख रुपए की मांग की गई जो सामान्य दुकानदार के लिए देना नामुमकिन था. मणिकर्णिका घाट से गरीबों को बेदखल कर दिया गया और वहां ब्रैंडेड शोरूम बसाए गए. यहां आपको अमूल डेयरी का बूथ भी मिल जाएगा.
बुनकर भी हैं BJP से नाराज
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं, तो गंगा नदी में नाव चलाने की इजाजत नहीं दी जाती, लेकिन क्रूज चलता रहता है. स्थानीय बुनकरों में भी भाजपा को लेकर नाराज़गी है. उनका कहना है कि बनारसी साड़ी अब सूरत में तैयार होती है और वहीं से बनकर बनारस आती है. ऐसे में यहां के कारीगर बेकार हो गए हैं, उनके लिए पेट भरना भी मुश्किल हो गया है. रिपोर्ट के अनुसार, मोदी जब 2014 में वाराणसी से चुनाव लड़ने आए थे, तो उन्होंने बुनकरों की स्थिति सुधारने का वादा किया था. मोदी ने नौकरशाहों से कहा था कि हैंडलूम को फैशन से जोड़ने का कोई तरीका निकालें. लेकिन आज तक ऐसा नहीं ही पाया है.
लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद शनिवार को पहली बार गोरखपुर में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करेंगे.
लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत गोरखपुर में पांच दिन के प्रवास पर हैं. वह 16 जून तक गोरखपुर के एसवीएम पब्लिक स्कूल चिऊंटहा में ही प्रवास करेंगे. इस बीच शनिवार को सीएम योगी सो उनकी मुलाकात हो सकती है. यूपी के खराब चुनाव नतीजों और बीजेपी से नाराजगी के बीच मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ की इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है. आपको बता दें, मोहन भागवत 17 जून तक गोरखपुर में ही रहेंगे, इस बीच उन्होंने स्वयंसेवकों को बौद्धिक संंबोधन देकर आरएसएस को गांव गांव तक पहुंचाने के लिए प्रेरित भी किया.
गांव गांव तक पहुंच बनाए आरएसएस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों से कहा है कि वह संघ के विस्तार की चिंता करें. संघ से कैसे जन-जन को जोड़ना है, इसके लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करें. शहर की गली-मोहल्लों तक तो इसके लिए पहुंचे ही, गांव-गांव तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करें. इस दौरान मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को उनकी कार्यक्षमता याद दिलाकर संघ के लिए उपयोगी बनने का मंत्र दिया. उन्होंने कहा कि सभी प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं और संघ की रीति-नीति को अच्छी तरह से समझते हैं. जरूरत केवल संघ के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर विस्तार के लिए सक्रिय होने की है.
राष्ट्र व समाज का उत्थान और सुरक्षा संघ का उद्देश्य
संघ का उद्देश्य राष्ट्र व समाज का उत्थान व सुरक्षा है, इस दिशा में पूरी ईमानदारी से काम करें. राष्ट्र व समाज के विकास पर जोर दें. संघ प्रमुख ने कहा कि संगठन की कार्ययोजनाओं के क्रियान्वयन के प्रति प्रतिबद्धता हर स्वयंसेवक में दिखनी चाहिए. यही स्वयंसेवकों की पहचान और ताकत है.
शताब्दी वर्ष तक हर गांव में लगवानी है शाखा
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कह कि वर्ष 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा. यह संघ के लिए सौभाग्य का वर्ष रहेगा और हमें इसे और भी सौभाग्यशाली बनाना है. इस वर्ष हमें कुछ बड़ा करना है, स्थापना वर्ष तक हर खंड व गांव तक संघ को पहुंचाना है. गांव-गांव में स्वयंसेवकों का समूह बनाकर खंड स्तर पर शाखाएं लगवानी हैं, जिससे राष्ट्र व समाज के विकास में संघ की भूमिका अंतिम पायदान तक सुनिश्चित हो सके. आपको बता दें, 2027 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में मोहन भागवत यूपी में संघ को मजबूत बनाने की ओर काम कर रहे हैं.
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