लखनऊ में सबसे बड़ा मॉल खोलकर सुर्खियों में आया लुलु ग्रुप, जानें कौन है इसका मालिक

करीब 2 हजार करोड़ रुपए की लागत से लखनऊ की सुशांत गोल्फ सिटी में 11 एकड़ जमीन पर बना लुलु मॉल देश के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल्स में से एक है.

Last Modified:
Monday, 11 July, 2022
लुलु मॉल, लखनऊ

लखनऊ का सबसे बड़ा मॉल आज से आम जनता के लिए खुल जाएगा. कल यानी रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका उद्घाटन किया था. करीब 2 हजार करोड़ रुपए की लागत से सुशांत गोल्फ सिटी में 11 एकड़ जमीन पर बना लुलु मॉल देश के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल्स में से एक है. मॉल बनाने वाली कंपनी संयुक्त अरब अमीरात की है, लेकिन उसका मालिक एक भारतीय है. 

भारत में चौथा मॉल 
लुलु समूह के अब तक कोच्चि, बेंगलुरु और तिरुवनंतपुरम में ही मॉल थे, अब इस लिस्ट में लखनऊ भी शामिल हो गया है. सबसे पहले लखनऊ के इस मॉल की खासियतों के बारे में जानते हैं. यहां 300 से अधिक इंटरनेशनल-नेशनल ब्रांड और 15 रेस्टोरेंट, 25 आउटलेट वाला फूडकोर्ट है, जिसमें 1600 लोगों के एक साथ बैठने की व्यवस्था है. इस मॉल में 11 स्क्रीन वाला सुपरप्लेक्स, बेबी केयर रूम, ATM, बैगेज काउंटर, कस्टमर लिफ्ट, कार वॉशिंग भी उपलब्ध है. लखनऊ के लुलु मॉल में 50 हजार लोग एक साथ शॉपिंग कर सकते हैं और 3000 गाड़ियां यहां पार्क हो सकती हैं. साथ ही दिव्यांगों और गर्भवती महिलाओं के लिए पार्किंग की अलग व्यवस्था है.

क्या करता है लुलु ग्रुप?
लुलु ग्रुप का अरब देशों खासतौर पर UAE में सबसे अधिक कारोबार फैला है. इसका सालाना टर्नओवर करीब 8 अरब डॉलर का है. UAE की राजधानी अबू धाबी में लुलु ग्रुप का मुख्यालय है और इसका बिज़नेस अमेरिका सहित 22 देशों में फैला है. इस तरह, ग्रुप लगभग 57 हजार लोगों को रोजगार मुहैया करा रहा है. लुलु ग्रुप हाइपरमार्केट और रिटेल कंपनियों की एक बड़ी चेन चलाता है. पिछले कुछ समय में इस ग्रुप ने काफी तरक्की की है. इसने अबू धाबी में अपना पहला सुपरमार्केट खोला था.

कौन हैं लुलु ग्रुप के मालिक?
लुलु ग्रुप के मालिक यूसुफ अली हैं, जो मूलरूप से केरल के रहने वाले हैं. वह 1973 में अबू धाबी अपने चाचा के पास चले गए थे. अब वह UAE की नागरिकता हासिल कर चुके हैं और कारोबार की दुनिया में जाना-पहचान नाम हैं. 15 नवंबर 1955 को जन्मे यूसुफ अली की 3 बेटियां हैं और उनका पूरा परिवार इस वक्त अबू धाबी में रहता है. यूसुफ लगातार अपना बिज़नेस फैला रहे हैं और लखनऊ मॉल इसी का हिस्सा है. उन्होंने 1990 के दशक में UAE में अपना पहला हाइपरमार्केट शुरू किया, उसके बाद लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं. आज उनका बिज़नेस मध्य पूर्व, एशिया, अमेरिका और यूरोप में सहित कुल 22 देशों में है.
 


HNG Insolvency: आखिर कब तक हल होगा भारत का सबसे विवादास्पद कॉर्पोरेट ऋण समाधान?

मामला SC में है और अगले 2-3 हफ्ते में अंतिम फैसला आने की संभावना है. फिर भी, यदि COC कंपनियों को ARC को बेचने का कदम उठाती है तो कर्मचारी संघ विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.

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Monday, 29 April, 2024
HNG Insolvency

पलक शाह

HNG रिजोल्यूशन भारत में सबसे लंबी चलने वाली कॉर्पोरेट दिवाला प्रक्रियाओं में से एक है. दो वर्षों से अधिक समय से, यह सौदा गंभीर विवाद से गुजर रहा है, जहां भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम तीन पूर्व न्यायाधीशों ने रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की कमियों को उजागर किया है. मामला अब मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के पास है. BW आपको इस तरह के विवादों से रूबरू कराता है.

COC, RP से हुई देरी

भारत की सबसे पुरानी ग्लास बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान नेशनल ग्लास (HNG) के कर्मचारियों ने कंपनी के दिवालियापन समाधान को पूरा करने में लंबी देरी के लिए ऋणदाताओं की समिति (COC) और रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को दोषी ठहराया है. जबकि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के नेतृत्व वाली COC रिज़ॉल्यूशन को अंतिम रूप देने में देरी के लिए न्यायपालिका को दोषी ठहरा रही थी, कर्मचारियों का कहना है कि OC और RP ने पिछले कुछ वर्षों में गलत कदम उठाए हैं. सबसे बड़े HNG कर्मचारी संघ द्वारा लिखे गए पत्र इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कंपनी को संभालने के लिए आवेदक की प्रारंभिक पसंद ही देरी का मुख्य कारण था.

जस्टिस सीकरी ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके सीकरी ने अपनी राय देते हुए कहा था कि कंडीशन रिज्युलेशन प्लान को कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के नियमों का अनुपालन नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा, न्यायमूर्ति सीकरी ने यह भी कहा कि RP द्वारा लिया गया निर्णय स्पष्ट रूप से एक आवेदक के पक्ष में था. RP द्वारा लिया गया निर्णय स्पष्ट रूप से केवल AGI के पक्ष में था जो एकमात्र अन्य था बोली लगाने वाले और जिनके पास सीसीआई की मंजूरी नहीं थी, यदि आरपी का निर्णय नहीं लिया गया होता, तो एजीआई की संकल्प योजना मतदान के लिए पात्र नहीं होती.

क्या कहते हैं जस्टिस एनवी रमन्ना?

वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना की राय में RP के कार्यों ने AGI को अनुचित लाभ दिया होगा. दिलचस्प बात यह है कि रमन्ना ने यह भी कहा कि AGI की रिज़ॉल्यूशन प्लान पहली बार में मतदान के लिए पात्र नहीं होगी क्योंकि योजना जमा करने के साथ-साथ मतदान की तारीख पर एजीआई के पास सीसीआई के समक्ष कोई आवेदन लंबित नहीं था. फिर भी RP ने AGI की समाधान योजना पर अत्यधिक भरोसा जताया है. इस तर्क में दम है कि RP की कार्रवाई एक बोली लगाने वाले को विशेष प्राथमिकता देने के लिए थी और CIRP के रेगुलेशन 36 के तहत NCLT द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए.

CCI कंडीशनल अप्रूवल का रहस्य

15 मार्च, 2023 के CCI ऑर्डर से पता चलता है कि CCI की पहली राय यह थी कि HNG और AGI के संयोजन के परिणामस्वरूप सामान्य रूप से और उप-कंटेनर ग्लास पैकेजिंग में 'कंपटीशन पर सराहनीय प्रतिकूल प्रभाव' पड़ने की संभावना है. हालाँकि, CCI ने AGI द्वारा संशोधनों का प्रस्ताव रखा जिसमें HNG के ऋषिकेश संयंत्र का डिवेस्टमेंट शामिल था, जिससे AGI के प्रस्तुतीकरण से प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव कम हो जाएगा. इस प्रकार, CCI ने इस संशोधन के आधार पर ही AGI को मंजूरी दे दी. संशोधन केवल 10 और 14 मार्च को प्रस्तुत किए गए थे और CCI ऑर्डर 15 मार्च को पारित किया गया था. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि CCI ऑर्डर पूरी तरह से AGI की प्रस्तुति पर आधारित है और इसे सत्यापित करने और जांचने का मौका नहीं मिला है. यदि AGI की दलीलें झूठी साबित हुईं तो CCI ऑर्डर का आधार गलत हो जाएगा और रद्द कर दिया जाएगा.

क्या सशर्त मंजूरी की अनुमति है?

जस्टिस रमन्ना ने कहा इसके साथ ही कहा कि किसी रिज़ॉल्यूशन प्लान को सशर्त मंजूरी नहीं दी जा सकती. पूर्व CJI ने Ebix Singapore v/s CoC of Educomp Ltd के COC मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जहां यह माना गया था कि भविष्य की घटनाओं/बातचीत के लिए सशर्त एक रिज़ॉल्यूशन प्लान को वर्तमान स्वरूप में अप्रूव्ड नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि HNG के अधिग्रहण से प्रत्यक्ष होरिजेंटल ओवरलैप और वर्टिकल ओवरलैप भी होंगे और कंपटीशन एक्ट की धारा 5 की कठोरता को आकर्षित किया जाएगा. मामला अब SC में है और अगले 2-3 हफ्ते में अंतिम फैसला आने की संभावना है. फिर भी, यदि COC कंपनियों को ARC को बेचने का कदम उठाती है तो कर्मचारी संघ कड़ा विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.

HNG इनसोलवेंसी मामला भारत में सबसे लंबे समय से लंबित डेब्ट रिज्यूलेशन में से एक है और यह कई विवादों से घिरा रहा है, मुख्य रूप से रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) द्वारा अपनाई गई अत्यधिक खराब प्रक्रिया के कारण. भारत के दो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एनवी रमना और एके सीकरी ने HNG समाधान मामले में RP की संदिग्ध भूमिका पर विस्तृत राय दी है.

फॉर्म H के पीछे की कहानी

फॉर्म H, IBC डेब्ट रिज्यूलेशन में एक कंपाइलेशन सर्टिफिकेट है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सौदे के लिए कोई शर्त नहीं हो सकती है. HNG ग्लास मामले में फॉर्म H आवेदक के लिए भविष्य के CCI अप्रूवल पर निर्भर करता है. रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल की ओर से निर्णायक एप्लीकेंट को यह फॉर्म H देता है. इससे पता चलता है कि HNG के संबंध में फाइनल प्लान कंडीशन पर आधारित थी, जिसकी भारतीय दिवालियापन संहिता के तहत अनुमति नहीं है. इसके अलावा RP ने फॉर्म H में यह भी उल्लेख किया है कि HNG एक चालू चिंता का विषय है, जो 15 मार्च, 2023 के सीसीआई के आदेश का खंडन करता है, जिसमें पैरा 87 में निष्कर्ष निकाला गया है कि HNG एक चिंता का विषय नहीं है. यदि कंपनी एक चालू संस्था थी तो उसकी संपत्तियां नहीं बेची जा सकतीं.

AGI ग्रीनपैक के स्टॉक एक्सचेंज खुलासे पर मंडरा रहा है संकट

कर्नाटक के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन का मानना है कि AGI ने CCI की मंजूरी के बारे में खुलासा किया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन ने राय दी है कि शेयरधारकों को भौतिक जानकारी का खुलासा करने में विफलता के लिए बाजार नियामक सेबी को AGI और HNG दोनों के खिलाफ जांच और कार्रवाई करनी चाहिए. BW ने न्यायमूर्ति सेन के दृष्टिकोण से संबंधित दस्तावेजों को देखा है, जिसमें कहा गया है कि सौदे के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की सशर्त मंजूरी के संबंध में AGI और HNG द्वारा चयनात्मक खुलासे SEBI और स्टॉक एक्सचेंज डिस्क्लोजर रूल्स का उल्लंघन हैं.

एजीआई शेयर मूल्य का ड्रीम रन

अप्रैल और अक्टूबर के बीच AGI के शेयर की कीमत में 334 रुपये के निचले स्तर से लेकर 1089 रुपये के उच्चतम स्तर तक 236 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. विशेष रूप से, एजीआई ग्रीनपैक द्वारा 16.03.2023 को भेजा गया पत्र स्टॉक एक्सचेंजों को CCI की मंजूरी के बारे में सूचित करता है, यह उल्लेख करने में स्पष्ट रूप से विफल रहता है कि दी गई मंजूरी एजीआई द्वारा प्रस्तावित संशोधन को क्रियान्वित करने पर सशर्त थी, जो कि HNG के ऋषिकेश संयंत्र का स्वैच्छिक डिवेस्टमेंट है. AGI ने अपने पत्र दिनांक 16.03.2023 के माध्यम से स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया कि CCI ऑर्डर अभी इंतजार है.
 


कौन हैं लंदन में पाकिस्तानी से सियासी जंग लड़ रहे Tarun Ghulati? 

भारतीय मूल के तरुण गुलाटी के पास फाइनेंस सेक्टर में लंबा अनुभव है. वह लंदन के मेयर पद का चुनाव लड़ रहे हैं.

Last Modified:
Monday, 29 April, 2024
Photo Credit: Tarun Ghulati

भारतीय मूल के एक बिजनेसमैन ब्रिटेन की सियासत में पैर जमाने की कोशिश में लगे हैं. वह लंदन के मेयर (London Mayor) पद के चुनाव में हिस्सा लेने वाले हैं. आगामी 2 मई को यह साफ हो जाएगा कि स्थानीय जनता उनकी दावेदारी को कितना पसंद करती है. दिल्ली से रिश्ता रखने वाले तरुण गुलाटी (Tarun Ghulati) का कहना है कि लंदन के नागरिकों को सभी दलों ने निराश किया है. इसलिए वह चुनावी मैदान में उतरे हैं, ताकि इस शहर को एक अनुभवी सीईओ की तरह संभाल सकें.

सादिक खान से मुकाबला
भारतीय मूल के तरुण गुलाटी का मुकाबला पाकिस्तानी मूल के लेबर पार्टी लीडर सादिक खान से है. सादिक लंदन के पहले मुस्लिम मेयर ही नहीं, बल्कि यूरोपियन यूनियन की किसी भी राजधानी के पहले मुस्लिम मेयर भी हैं. उन्होंने 2016 में कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार जैक गोल्डस्मिथ को हराया था. गुलाटी के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी, लेकिन माना जाता है कि लंदन में रहने वाले भारतीयों के साथ ही उनकी दूसरे समुदायों के बीच भी अच्छी पकड़ है और इसका फायदा उन्हें मिल सकता है. 

13 उम्मीदवार हैं मैदान में 
दिल्ली में जन्मे 63 वर्षीय बिजनेसमैन तरुण गुलाटी लंदन की तस्वीर बदलना चाहते हैं. 2 मई को होने वाले चुनाव के लिए कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं. गुलाटी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. अपने चुनावी भाषण में उन्होंने कहा था - मैं मेयर के रूप में लंदन की बैलेंसशीट इस तरह बनाऊंगा कि यह निवेशकों का सबसे पसंदीदा और सुविधाजनक विकल्प हो. सभी शहरवासियों की सुरक्षा और समृद्धि की रक्षा की जाएगी. मैं एक अनुभवी सीईओ की तरह लंदन की तस्वीर बदलना चाहता हूं.  

कैसा है गुलाटी का प्रोफाइल?
तरुण गुलाटी का जन्म भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ था, लेकिन वह पिछले 20 सालों से लंदन में रह रहे हैं. वह Squared Watermelon Ltd के फाउंडर एवं सीईओ हैं. गुलाटी एशिया पैसेफिक, मिडिल ईस्ट अफ्रीका के 7 देशों में काम कर चुके हैं. वह HSBC के साथ इंटरनेशनल मैनेजर के तौर पर भी जुड़े रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने भारत की सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी UTI के ग्लोबल सीईओ के रूप में भी सेवाएं दी हैं. तरुण गुलाटी Citibank India में रीजनल हेड सेल्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन, क्रेडिट एंड रिस्क की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. साथ ही विभिन्न समितियों और कंपनियों के बोर्ड में भी शामिल हैं. उनके पास वित्तीय क्षेत्र में एक लंबा अनुभव है. 


आखिर Banks में पैसा जमा क्यों नहीं करा रहे लोग, क्या है वजह और क्या होगा असर?

पिछले कुछ समय से बैंक डिपॉजिट में कमी से जूझ रहे हैं. यानी कि लोग अब बैंकों में पैसा जमा कराने में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे.

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Monday, 29 April, 2024
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बैंक (Banks) आजकल एक नई समस्या का सामना कर रहे हैं. बैंकों में पैसा जमा (Bank Deposit) कराने वालों की संख्या में कमी आई है या कह सकते हैं कि लोगों ने अब बैंकों में अपना पैसा डिपॉजिट करना कम कर दिया है. देश के अधिकांश बैंक इस समस्या से जूझ रहे हैं, जो उनके भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) ने इस स्थिति पर चिंता जताई है. साथ ही उसने यह भी कहा है कि अगर यही हालात बने रहते हैं, तो लोगों के लिए लोन लेना कठिन हो जाएगा.  

चिंतित बैंकों ने कस ली कमर 
बैंक पिछले कुछ समय से घटते डिपॉजिट की समस्या से जूझ रहे हैं. S&P ने भले ही इस पर अभी चिंता जाहिर की हो, लेकिन बैंकों को बिगड़ती स्थिति का आभास है. इसलिए उन्होंने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है. कुछ सरकारी बैंकों ने इसके लिए बाकायदा अलग टीम तैयार की है, जिसका काम काम केवल घटते डिपॉजिट को बढ़ाना है. इसके अलावा भी बैंक लोगों को पैसा जमा कराने के लिए अलग-अलग तरह से प्रेरित करने में जुटे हैं. 

Loan लेने वालों की संख्या बढ़ी
बैंक डिपॉजिट भले ही घट रहा है, लेकिन बैंकों से लोन लेने वालों की कोई कमी नहीं है. बैंकों की लोन ग्रोथ लगातार बढ़ रही है. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि डिपॉजिट में लगातार कमी से बैंक लोन संबंधी नियमों को सख्त बना सकते हैं और लोगों के लिए लोन लेना वर्तमान जितना सरल नहीं रह जाएगा. दरअसल, बैंकों में लोग जो पैसा जमा करते हैं, बैंक उसी को कर्ज के रूप में देकर ब्याज से मुनाफा कमाते हैं. ऐसे में अगर बैंकों में पैसा ही जमा नहीं होगा, तो उनके पास लोन देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं होगा. लिहाजा, लोन के आसान नियमों को कड़ा कर देंगे. 

बैंक ऐसा करने को होंगे मजबूर
चालू वित्त वर्ष में भारतीय बैंकों की लोन वृद्धि, प्रॉफिटेबिलिटी और संपत्ति की गुणवत्ता मजबूत रहेगी. हालांकि, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि बैंक अपनी लोन वृद्धि को धीमा करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि जमा राशि समान गति से नहीं बढ़ रही है. एशिया-प्रशांत में बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बैंकिंग अपडेट में S&P ग्लोबल रेटिंग्स की निदेशक एसएसईए निकिता आनंद ने कहा चालू वित्त वर्ष में यदि जमा वृद्धि, विशेष रूप से खुदरा जमा की गति धीमी रहती है, तो क्षेत्र की मजबूत ऋण वृद्धि 16% से घटकर 14% रह जाएगी.

लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट
आनंद ने कहा कि प्रत्येक बैंक में लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट आई है. लोन वृद्धि डिपॉजिट वृद्धि की तुलना में दो-तीन प्रतिशत अधिक है. लोन  वृद्धि सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में हुई है. इनमें यह लगभग 17-18 प्रतिशत रही है. जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यानी कि सरकारी बैंकों में यह 12-14 प्रतिशत देखी गई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिपॉजिट के घटने से बैंकों को लोन देने में परेशानी होगी. लिहाजा, वे कर्ज देने की प्रक्रिया को मुश्किल कर सकते हैं. इसका मतलब है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं रह जाएगी कि आवेदन करने वालों को लोन मिल ही जाए.

इस वजह से घट रहा आकर्षण
बैंकिंग सेक्टर्स से जुड़े एक्सपर्ट्स का मानना है कि डिपॉजिट में कमी की एक सबसे बड़ी वजह है इन्वेस्टमेंट के ढेरों विकल्प. उनके अनुसार, बैंकों में पैसा रखना अब उतना आकर्षक नहीं रहा है. सेविंग अकाउंट पर बैंक साधारण ब्याज देते हैं. बैंक में खुलाए जाने वाले बचत खाते पर सामान्यतः 3 से 5 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है. कुछ प्राइवेट और स्मॉल फाइनेंस बैंक बचत खाते पर 7% तक इंटरेस्ट रेट भी ऑफर करते हैं, लेकिन यह डिपॉजिट रकम की सीमा पर निर्भर करता है. वहीं, म्यूचुअल फंड या कुछ दूसरी इन्वेस्टमेंट स्कीम्स में इससे ज्यादा अच्छा रिटर्न मिल जाता है. इसलिए लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए अब उसे म्यूचुअल फंड आदि में निवेश करने लगे हैं. इसी तरह, शेयर बाजार की तरफ भी लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है, निसंदेह बाजार में जोखिम बैंक डिपॉजिट से ज्यादा है. मगर रिटर्न की संभावना भी ज्यादा रहती है. उनका कहना है कि बैंकों को लोगों को आकर्षित करने के लिए कुछ नया करना होगा.   


मौका भी था और दस्तूर भी, फिर ख्वाब पूरा करने क्यों नहीं आए Musk, क्या चीन की है चालबाजी? 

भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है.

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Monday, 22 April, 2024
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दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क (Elon Musk) की इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) की भारत में एंट्री कब होगी? इस सवाल का जवाब देना फिलहाल मुश्किल हो गया है. मस्क की 21-22 अप्रैल की प्रस्तावित भारत यात्रा में इस संबंध में ऐलान की पूरी उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त पर मस्क ने भारत आने का इरादा टाल दिया. हालांकि, वह इस साल के अंत में भारत आने की बात कह रहे हैं पर उसमें अभी बहुत समय है और इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि तब इस बार की तरह दौरा न टले. लिहाजा, ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो गया है कि क्या एलन मस्क की भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ है?

चुनौतियों का दिया था हवाला
एलन मस्क ने अपनी भारत यात्रा टालने का ऐलान चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में छपी उस रिपोर्ट के बाद किया, जिसमें टेस्ला की भारत में सफलता पर शंका जाहिर की गई थी. ग्लोबल टाइम्स ने टेस्ला के भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक तरह से यह साफ कर दिया था कि चीनी सरकार इससे खुश नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया था कि टेस्ला के भारत में EV प्लांट लगाने से भारत को जरूर फायदा होगा, लेकिन यह टेस्ला के लिए फायदे का सौदा नहीं रहने वाला. तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.

पूरी तस्वीर बदलने की है शंका
अमेरिका के बाद चीन टेस्ला का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. ऐसे में कंपनी का चीन के बजाए भारत पर फोकस करना बीजिंग को बिल्कुल भी रास नहीं आएगा. मस्क पहले चाहते थे कि वह चीन में निर्मित अपनी कारों को भारतीय बाजार में उतारें और संभावनाओं का पता लगाने के बाद यहां प्लांट लगाने का फैसला लें. लेकिन भारत सरकार के इंकार के बाद उनके लिए प्लांट लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. चीनी सरकार को मस्क की पहली वाली चाहत से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि उससे चीन में टेस्ला के उत्पादन में ही इजाफा होता. मगर प्लांट लगाने से तस्वीर पूरी तरह पलट सकती है. 

चीन को सता रहा नुकसान का डर
भारत में बिजनेस के लिए अनुकूल स्थितियां मस्क को बीजिंग के बजाए नई दिल्ली पर फोकस करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं. और यदि ऐसा होता है, तो चीन को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना होगा. लिहाजा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मस्क की प्रस्तावित भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ हो. बता दें कि टेस्ला वैश्विक स्तर पर कैलिफोर्निया, चीन, टेक्सास और जर्मनी में इलेक्ट्रिक कार कारखाने संचालित करती है. चीन स्थित फैक्ट्री टेस्ला के ग्लोबल प्रोडक्शन नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हाल के वर्षों में यहां टेस्ला की EV कारों के कुल उत्पादन का आधे से अधिक तैयार हुआ है.

परेशान करने में माहिर है China
चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत के प्रति प्यार दर्शाने वाली कंपनियों को परेशान करने की कला में माहिर है. आईफोन बनाने वाली Apple से चीनी सरकार काफी नाराज है, क्योंकि वह भारत के काफी करीब आ गई है. कुछ समय पहले कम्युनिस्ट सरकार ने अपने अधिकारियों को iPhone इस्तेमाल न करने का अघोषित फरमान सुनाया था. इसे Apple की भारत से करीबी के परिणाम के तौर पर ही देखा गया था. इसी तरह, जब ताइवान की दिग्गज कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी फॉक्सकॉन (Foxconn) ने भारत में बड़े निवेश की इच्छा जाहिर की, तो चीन इसे पचा नहीं पाया. उसने फॉक्सकॉन के खिलाफ जांच शुरू कर दी. स्थानीय टैक्स विभाग ने फॉक्सकॉन की सहयोगी कंपनियों का ऑडिट किया. इसके अलावा, नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री ने हेनान और हुबेई प्रांतों में कंपनी के लैंड यूज की जांच के भी आदेश दिए.  

Luxshare ने बदल लिया था रास्ता  
चीनी सरकार की बदले की इस कार्रवाई के चलते उन कंपनियों में भय व्याप्त हो गया है, जो Apple और Foxconn की तरह भारत में संभावनाएं तलाशना चाहती हैं. शायद यही वजह रही कि लक्सशेयर (Luxshare) ने भारत का रुख करने के बजाए वियतनाम में पिछले साल 330 मिलियन डॉलर का निवेश कर दिया. इस चीनी कंपनी ने पहले भारत में निवेश का फैसला किया था, लेकिन अचानक योजना में बदलाव करते हुए उसने वियतनाम में निवेश कर डाला. Luxshare भी Foxconn की तरह Apple के लिए कंपोनेंट बनाती है. Foxconn जहां कॉन्ट्रैक्ट पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. वहीं, Luxshare बड़ी कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में शुमार है.

क्या मस्क को किया गया विवश?
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है. इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि शी जिनपिंग की सरकार ने टेस्ला के खिलाफ इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित कर दी हों कि मस्क को फिलहाल भारत से दूरी बनाने को विवश होना पड़ा हो. ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से चीनी सरकार ने अपनी नाखुशी तो जाहिर कर ही दी थी. मस्क के लिए चीन टेस्ला का जमा हुआ बाजार है और भारत में अभी उन्हें पैर जमाने हैं. ऐसे में उनके लिए चीन को नाराज करना मुश्किल है. चलिए यह भी जान लेते हैं कि ग्लोबल टाइम्स ने किस तरह मस्क को डराने की कोशिश की.

Tesla चीफ को इस तरह डराया गया      
ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें ऐसे कई कारणों का हवाला दिया गया है जिसकी वजह से भारत में टेस्ला का सफर अच्छा नहीं रहेगा. रिपोर्ट में कहा गया कि टेस्ला मिड एवं हाई-एंड सेक्टर और परिपक्व बाजारों पर ध्यान केंद्रित करती है. ऐसे में भारत के बेहद कम तैयारी वाले और अपरिपक्व बाजार में उसे सफलता मिलेगी या नहीं, कहना मुश्किल है. चीन के मुताबिक, भारत का ईवी बाजार बढ़ रहा है, लेकिन इसका आकार अभी काफी छोटा है. भारत में EV के लिए बुनियाद ढांचे का अभाव है. यहां पर्याप्त संख्या में पब्लिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. ऐसे में तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा. 


क्या वाकई TATA और महिंद्रा का खेल बिगाड़ सकती है Tesla? समझिए पूरा गणित

अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती.

Last Modified:
Saturday, 20 April, 2024
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इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) के चीफ एलन मस्क (Elon Musk) का भारत दौरा टल गया है. मस्क 2 दिवसीय यात्रा पर कल भारत आने वाले थे, लेकिन अब उनकी यात्रा इस साल के अंत तक के लिए टल गई है. माना जा रहा था कि मस्क भारत यात्रा के दौरान टेस्ला के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को लेकर घोषणा कर सकते हैं. अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस घोषणा के लिए भी साल के अंत तक इंतजार करना होगा. 

टाटा और महिंद्रा को थी ये आपत्ति
एलन मस्क लंबे समय से टेस्ला की कारों को भारत में दौड़ते देखना चाहते हैं. हाल ही में मोदी सरकार द्वारा पेश की गई नई EV नीति से वह बेहद खुश हैं. हालांकि, टाटा मोटर्स (Tata Motors) और महिंद्रा (Mahindra) जैसी भारतीय कंपनियों को इस नीति से खास खुशी नहीं हुई होगी. क्योंकि उन्होंने इम्पोर्ट ड्यूटी में जिस छूट पर आपत्ति जताई थी, उसका जिक्र इस नीति में है. दरअसल, यह माना जा रहा है कि टेस्ला की एंट्री से घरेलू कंपनियों के लिए प्रतियोगिता बढ़ जाएगी. साथ ही EV बाजार में उनकी हिस्सेदारी पर भी असर पड़ेगा. लेकिन क्या वास्तव में Tesla, टाटा मोटर्स या महिंद्रा के लिए चुनौती बन सकती है? क्या वाकई इन कंपनियों को परेशान होने की जरूरत है? चलिए इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं. 

इस समय TATA का है दबदबा
मौजूदा समय में भारत के EV मार्केट में टाटा मोटर्स का दबदबा है. टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड (TPEML) की देश के EV मार्केट में 73 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. पिछले वित्त वर्ष में कंपनी 53,000 से अधिक EV बेच चुकी है. वैसे, टाटा मोटर्स के पोर्टफोलियो में ईवी की हिस्सेदारी केवल 12 फीसदी है, लेकिन इसमें तेजी से विस्तार हो रहा है. वहीं, महिंद्रा भी अपने EV पोर्टफोलियो को मजबूत करने की योजना पर काम कर रही है. आने वाले समय में कंपनी कुछ नई EV कारें बाजार में उतार सकती है. टाटा के EV पोर्टफोलियो में इस समय चार कारें हैं - Tata Nexon EV, टाटा टियागो EV, टाटा टिगॉर EV और टाटा पंच EV. टाटा ने 2019 में अपना इलेक्ट्रिक व्हीकल्स बिजनेस शुरू किया था. निजी इक्विटी फर्म TPG और अबू धाबी की होल्डिंग कंपनी एडीक्यू ने 2021 में टाटा की इस कंपनी में 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया था.  

दोनों के अलग-अलग हैं Target 
वहीं, अगर टेस्ला की बात करें, तो इसमें पोर्टफोलियो में मुख्यतौर पर मॉडल 3, मॉडल Y, मॉडल X और मॉडल S शामिल हैं. कीमत के मामले में टेस्ला के ये सभी मॉडल टाटा और महिंद्रा की देश में बिकने वालीं इलेक्ट्रिक कारों से काफी महंगे हैं. टाटा पंच ईवी की दिल्ली में एक्स शोरूम कीमत 10.99 से  15.49 लाख रुपए है. टाटा नेक्सन ईवी की 14.74 से 19.99 लाख, टाटा टियागो ईवी की 7.99 से 11.89 लाख और टिगॉर इलेक्ट्रिक की 12.49 से 13.75 लाख रुपए है. महिंद्रा एक्सयूवी400 ईवी की कीमत 15.49-19.39 लाख रुपए है. जबकि टेस्ला मॉडल 3 की शुरुआती कीमत 40,240 डॉलर है और भारत में इसकी अनुमानित कीमत 39 से 40 लाख रुपए तक रह सकती है. इसी तरह, मॉडल Y की 49 लाख, मॉडल S की 85 लाख और मॉडल X की भारत में अनुमानित कीमत 95 लाख रुपए हो सकती है. इस लिहाज से देखें तो टाटा और टेस्ला की टारगेट ऑडियंस अलग है. टाटा जहां मिडिल क्लास के लिए EV कार बनाती है. वहीं, टेस्ला का फोकस अमीरों पर होगा. 

इन कंपनियों को मिलेगी चुनौती
अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती. हां, यदि भारत में लॉन्च के अगले कुछ सालों में टेस्ला मिडिल क्लास पर फोकस करती है, तब टाटा को चुनौती मिल सकती है. लेकिन इसकी संभावना भी कम है. भारत में टेस्ला के आने से उन लग्जरी कार निर्माताओं को परेशानी हो सकती है, जो पहले से भारत में मौजूद हैं. चीन की कंपनी BYD (Build Your Dreams भारत में तीन कारें लॉन्च कर चुकी है. इसकी नई नवेली EV कार Seal की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 41 लाख और टॉप वैरिएंट की कीमत 53 लाख रुपए तक है. साउथ कोरियाई ऑटोमोबाइल कंपनी Hyundai को भी टक्कर मिल सकती है. कंपनी के मौजूदा EV पोर्टफोलियो में Kona और IONIQ 5 शामिल हैं. Kona की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत करीब 24 लाख रुपए है. जबकि IONIQ 5 की 45 लाख. इसी तरह, Kia की EV6 प्रीमियम इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 60 लाख रुपए है. इसके अलावा, BMW और स्वीडन का कार मेकर Volvo को भी टेस्ला से प्रतियोगिता मिल सकती है. वोल्वो की इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती कीमत 55 लाख रुपए है.
 


जिस घोटाले में फंसे Shilpa Shetty के पति राज कुंद्रा, क्या है उसकी पूरी कहानी?

कुछ साल पहले शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा खबरों में आए थे और अब फिर से उनकी चर्चा हो रही है.

Last Modified:
Friday, 19 April, 2024
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बिजनेसमैन और बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) एक बार फिर खबरों में हैं. कुछ साल पहले उन पर अश्लील फिल्में बनाने का आरोप लगा था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से वह चर्चा में आ गए हैं. दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने कुंद्रा और उनकी वाइफ शिल्पा शेट्टी की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. ED ने यह कार्रवाई 2002 के बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले (Bitcoin Ponzi Scam) में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले (Money Laundering Case) में की है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला है क्या.

2001 में जाना पड़ा था जेल
ED की कार्रवाई के बारे में विस्तार से बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं और जानते हैं कि 2001 में क्यों हर नजर राज कुंद्रा पर आकर ठहर गई थी. जुलाई 2021 में, राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस ने चार महिलाओं की शिकायत पर गिरफ्तार किया था. महिलाओं ने आरोप लगाया था कि एक वेब सीरीज में काम का वादा करके उन्हें अश्लील कंटेंट मामले (Pornographic Content) शूट करने के लिए मजबूर किया गया. इस मामले को लेकर कुंद्रा परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. दो महीने की कैद के बाद सितंबर 2021 में कुंद्रा को आर्थर रोड जेल से रिहा कर दिया गया था.

इनके खिलाफ हुई FIR
अब राज कुंद्रा बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले में फंस गए हैं. यह घोटाला तब सुर्खियों में आया जब महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस द्वारा 2017 में 'गेन बिटकॉइन' नामक योजना में पैसा लगाने वाले निवेशकों की शिकायत पर FIR दर्ज की गईं. बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम के प्रमोटर अजय और महेंद्र भारद्वाज ने निवेशकों को बिटकॉइन के रूप में प्रति माह 10 प्रतिशत रिटर्न का वादा किया था, लेकिन ये वादा कभी पूरा नहीं हुआ. इस मामले में वेरिएबल टेक पीटीई लिमिटेड नामक कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई थीं. इस कंपनी के प्रमोटर्स अमित भारद्वाज, अजय भारद्वाज, विवेक भारद्वाज, सिम्पी भारद्वाज और महेंद्र भारद्वाज का भी नाम एफआईआर में शामिल था.

6,600 करोड़ रुपए जुटाए
FIR के मुताबिक, आरोपियों ने 2017 में अपने निवेशकों से 6,600 करोड़ रुपए जुटाए थे. कथित तौर पर निवेशकों को शुरुआत में नए निवेश से भुगतान किया गया था. लेकिन, पेमेंट तब रुक गया जब भारद्वाज समूह नए निवेशकों को स्कीम में पैसा लगाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया. इसके बाद आरोपियों ने बचे हुए पैसे से बिटकॉइन खरीदे और उन्हें ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. दरअसल, इन बिटकॉइन का इस्तेमाल बिटकॉइन माइनिंग में होना था, लेकिन प्रमोटरों ने निवेशकों को धोखा दिया, उन्होंने गलत तरीके से अर्जित बिटकॉइन को ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. 

ऐसे हुई राज कुंद्रा की एंट्री
ED का कहना है कि राज कुंद्रा को यूक्रेन में बिटकॉइन माइनिंग फर्म स्थापित करने के लिए बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले के मास्टरमाइंड और प्रमोटर अमित भारद्वाज से 285 बिटकॉइन मिले थे. ईडी के अनुसार, कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है. हालांकि, राज कुंद्रा इस मामले में मुख्य आरोपी नहीं हैं. ED ने इस मामले में शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. जिसमें शिल्पा का जुहू वाला फ्लैट, राज के नाम पर पुणे में रजिस्टर्ड बंगला और इक्विटी शेयर शामिल हैं. वहीं, राज के वकील प्रशांत पाटिल का कहना है कि ED की जांच में राज और शिल्पा पूरा सहयोग करेंगे. हमें निष्पक्ष जांच पर भी पूरा भरोसा है.


क्या सुप्रीम कोर्ट का DRMC फैसला कानून को प्रभावित कर रहा है? जानिए कैसे

DRMC की 'क्यूरेटिव पिटीशन' पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है. BW आपके लिए मध्यस्थता पुरस्कारों के इतिहास में अब तक के 'ऐतिहासिक मामले' का सबसे गहन 'विश्लेषण' लेकर आया है.

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
Judicial

पलक शाह

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा हाल ही में 'Arbitration Award' में 'क्यूरेटिव पिटीशन' को अनुमति देने और उन्हें बरकरार रखने का निर्णय विश्व स्तर पर कानूनी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि यह देश की छवि को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रभावित करता है, जहां वाणिज्यिक मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 'क्यूरेटिव पिटीशन' न्यायशास्त्र की एक अत्यंत संकीर्ण गली है जो 'Doctrine of Finality' या Res Judicata को चुनौती देती है, इसे केवल 'दुर्लभतम मामलों' में ही लागू किया जा सकता है, लेकिन यह 'Arbitration Award' के मामले में न्यायालयों का हस्तक्षेप के बिल में फिट नहीं हो सकता है.

सच यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कानूनी बिरादरी को भी झकझोर देने की क्षमता थी, इसका अंदाजा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जे. डीवाई चंद्रचूड़ और बेंच के दो अन्य न्यायाधीशों जे. बीआर गवई और जे. सूर्यकांत द्वारा 'क्यूरेटिव याचिका' पर जारी चेतावनी से लगाया जा सकता है. फैसला सुनाने से पहले, तीनों न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि हम स्पष्ट करते हैं कि इस न्यायालय के क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग सामान्य तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. 

DMRC बनाम DAMEL केस है स्टडी का विषय 

DMRC बनाम DAMEL मध्यस्थता निर्णय पहले से ही कोलंबिया लॉ स्कूल में केस स्टडी का विषय है और इसे अमेरिकन रिव्यू ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि दुनिया की नजर भारत में मध्यस्थता निर्णयों से संबंधित प्रक्रियाओं पर है. एक ओर, सुप्रीम कोर्ट ने DMRC के आदेश में 'क्यूरेटिव पिटीशन' के लिए दरवाजे खोलने पर रोक लगा दी है, वहीं फरवरी में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने नागपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर GMR's के अधिकारों को बरकरार रखने वाले फैसले के खिलाफ एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की एक और क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने पर सहमति जताई. अगर क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला GMR's के खिलाफ जाता है, तो भारत में अन्य एयरपोर्ट संचालकों के लिए नागपुर हवाई अड्डे के लिए बोली लगाने का रास्ता खुल जाएगा.

कानूनी दांवपेंच का मामला है DMRC बनाम DAMEL

DMRC ने नवंबर 2021 में जे.एल. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट द्वारा अपनी समीक्षा याचिका खारिज किए जाने के लगभग 8 महीने बाद जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर की. क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से राहत पाने से पहले, DMRC ने 4.5 साल तक चली एक मध्यस्थता खो दी थी जो मई 2017 में DAMEL के पक्ष में समाप्त हुई थी. क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई, इसके दायर होने के लगभग 18 महीने बाद हुई और DMRC को क्यूरेटिव याचिका दायर करने के बाद जे. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट दोनों के सेवानिवृत्त होने तक 'टाइम शॉपिंग' का लाभ मिला. अगर क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई पहले हुई होती, तो पूरी संभावना थी कि जे.एस.आर. भट उसी पर सुनवाई करने वाली बेंच में हो सकते थे, क्योंकि वह DMRC द्वारा क्यूरेटिव याचिका दायर करने के एक साल बाद अक्टूबर 2023 में सेवानिवृत्त हुए थे.

कुल मिलाकर, डिवीजन बेंच ने 15 जनवरी 2019 को अपना फैसला सुनाया, जो 11 मई 2017 को दिए गए फैसले के 1.5 साल बाद आया. लेकिन जस्टिस खन्ना का आदेश और DMRC को मिली राहत कुछ ही समय के लिए रही, क्योंकि J. नागेश्वरराव और J. भट की अगुवाई वाली SC की डिवीजन बेंच ने जस्टिस खन्ना के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसने मध्यस्थता के मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप के सिद्धांत को प्रभावित किया है. DMRC की समीक्षा याचिका को भी J. नागेश्वरराव और J. भट ने SC में खारिज कर दिया, जिससे 'Doctrine of Finality’ को मजबूती मिली, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने, पक्षों को बार-बार होने वाले मुकदमों और कार्रवाइयों से उत्पीड़न से बचाने और न्यायिक संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक नीति विचारों पर आधारित सिद्धांत है. 

क्यूरेटिव पिटीशन जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के फैसलों को खराब करती है?

सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर मध्यस्थ पुरस्कारों की वैधता की जांच में न्यायिक संयम की आवश्यकता पर जोर दिया है और आम तौर पर न्यूनतम न्यायिक जांच की वकालत की है. सरकार द्वारा गठित मध्यस्थता पर न्यायमूर्ति सराफ समिति का विचार था कि प्रस्तावित संशोधन (2015) न्यायालय द्वारा पर्याप्त हस्तक्षेप की गुंजाइश देते हैं और विवादास्पद भी हैं. इसके बाद विधि आयोग ने संशोधनों का व्यापक अध्ययन किया और दोषों को दूर करने के लिए आगे की सिफारिशें कीं. इससे पता चलता है कि इरादा हमेशा स्पष्ट था: यानी मध्यस्थता के मामलों में अदालतों की खोज को न्यूनतम रखना. 

अपने शानदार करियर के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. रोहिंटन फली नरीमन ने मध्यस्थता कानून पर कई फैसले सुनाए लेकिन उनके 25 ऐतिहासिक फैसलों ने भारत में मध्यस्थता कार्यवाही को आकार दिया है। 25 में से, नरीमन के दो फैसलों, "सैंगयोंग इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण" और "एसोसिएट बिल्डर्स बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण" ने "मध्यस्थता पुरस्कारों में न्यायालयों के हस्तक्षेप के दायरे" को अच्छी तरह से परिभाषित किया था. हालांकि, अब क्यूरेटिव याचिका के बाद, जिसने HC की डिवीजन बेंच के आदेश को बरकरार रखा है, मध्यस्थता पुरस्कारों को अदालतों में चुनौती देने का क्षेत्र खुला है, जो DMRC मामले में दिल्ली HC की डिवीजन बेंच के आदेश के अनुरूप इसकी जांच कर सकते हैं, भले ही वे J. नरीमन और J. MB शाह के निर्णयों की कसौटी पर खरे न उतरते हों.

एक पुरस्कार पेटेंट अवैध कब होता है?

मध्यस्थ पुरस्कार भारत की सार्वजनिक नीति के साथ तभी संघर्ष में होता है जब (i) पुरस्कार का निर्माण धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था या धारा 75 या धारा 81 का उल्लंघन था. या (ii) यह भारतीय कानून की मूल नीति का उल्लंघन करता है. या (iii) यह नैतिकता या न्याय की सबसे बुनियादी धारणाओं के साथ संघर्ष में है. 
 


आखिर इजरायल-ईरान की टेंशन से Gold का क्या है नाता, क्यों चढ़ सकते हैं दाम?

दुनियाभर में चल रही उथल-पुथल से सोना और भी ज्यादा मजबूत हो सकता है. पहले से ही इसकी कीमत काफी ज्यादा है.

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Thursday, 18 April, 2024
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इजरायल और ईरान के बीच तनाव (Israel-Iran Tension) बना हुआ है. ईरान के हमले के बाद अब इजरायल जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. यदि ऐसा होता है, तो स्थिति काफी खतरनाक हो जाएगी. दो देशों के बीच की इस लड़ाई से पूरी दुनिया के बाजार प्रभावित होंगे. हालांकि, सोने की कीमतें (Gold Price) जंग के माहौल में और चढ़ सकती हैं. भारत में पहले से ही सोना और चांदी के भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. आज भले ही इसमें मामूली गिरावट आई है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके रॉकेट की रफ्तार से दौड़ने की संभावना है. 

इतनी चढ़ सकती हैं कीमतें
पिछले कुछ समय से सोने-चांदी के भाव लगातार बढ़ रहे हैं. युद्ध के हालातों ने इसे हवा दे दी है. ग्लोबल फर्म गोल्डमैन सैक्स को लगता है कि इस साल के अंत तक सोना 2,700 डॉलर प्रति औंस के पार जा सकता है, जबकि पहले यह अनुमान 2,300 डॉलर का था. जबकि, कुछ विशेषज्ञ इसके 3000 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सोने का इजरायल-ईरान से ऐसा क्या कनेक्शन है, जो वहां हालात बिगड़ते ही इसकी कीमतों में आग लगने की बात कही जा रही है. 

कुछ न कुछ रिटर्न मिलना ही है
इजरायल-ईरान संघर्ष से सोने की कीमतों में आग लगने की आशंका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भविष्य की अस्थिरता को देखते हुए Gold में निवेश बढ़ेगा. जब डिमांड ज्यादा हो और सप्लाई लिमिटेड, तो कीमतों में उछाल आना स्वभाविक है. दरअसल, Gold यानी सोने को निवेश का बेहतरीन विकल्प माना जाता है, इसलिए जब भी युद्ध या किसी अन्य संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोग बड़े पैमाने पर सोने में निवेश करने लगते हैं. वह जानते हैं कि स्टॉक मार्केट भले ही क्रैश हो जाए, लेकिन गोल्ड में किया हुआ निवेश कुछ न कुछ देकर ही जाएगा. 

इंश्योरेंस की तरह करता है काम
मुश्किल समय में लोग सोने में सबसे ज्यादा निवेश इसलिए करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए इंश्योरेंस की तरह काम करता है. इजरायल-ईरान तनाव से पहले इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन के वक्त भी यही स्थिति थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों के चलते जियो पॉलिटिकल तनाव लंबे समय तक देखने को मिल सकता है. इस वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन और वित्तीय बाजार प्रभावित हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में लोग अपना जोखिम कम करने के लिए सोने में निवेश सकते हैं. जब सोने की डिमांड बढ़ेगी, तो इसके दाम बढ़ना लाजमी है. 

सोना सबसे अच्छा विकल्प
अमेरिकी फर्म स्पार्टन कैपिटल सिक्योरिटीज के चीफ मार्केट इकोनॉमिस्ट पीटर कार्डिलो इजरायल-हमास युद्ध के समय कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल के दौरान इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की सुरक्षा के लिए सोना अच्छा विकल्प है. तब से अब तक सोने के भाव काफी बढ़ चुके हैं. आज यानी 18 अप्रैल को सोने के दाम की बात करें, तो राजधानी दिल्ली में 24 कैरेट वाले 10 ग्राम सोने के दाम करीब 74,120 रुपए हैं. वहीं, चांदी 86,400 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर मिल रही है.   

कौन तय करता है Gold Price?
जब सोने की बात निकली है, तो यह भी जान लेते हैं कि इसकी कीमत कैसे तय होती है. दुनियाभर में लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) द्वारा सोने की कीमत तय की जाती है. वह यूएस डॉलर में सोने की कीमत प्रकाशित करता है। यह कीमत बैंकरों और बुलियन व्यापारियों के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है. भारत में, इंडियन बुलियन ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आयात शुल्क और अन्य लागू टैक्स को जोड़कर यह तय करता है कि रिटेल विक्रेताओं को सोना किस दर पर दिया जाएगा. 

Bharat यहां से करता है इम्पोर्ट
भारत के लिए स्विट्जरलैंड सोने के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. यहां से हमारे कुल गोल्ड आयात की हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत है. इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात से भारत लगभग 13 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका से करीब 10 प्रतिशत सोना आयात करता है. भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा Gold कंज्यूमर है. देश में सोने का आयात मुख्य रूप से ज्वैलरी इंडस्ट्री की मांग पूरी करने के लिए किया जाता है. देश के कुल आयात में सोने की हिस्सेदारी पांच प्रतिशत से ज्यादा की है.


Dubai: बारिश कराने चले थे बाढ़ आ गई, जानें Artificial Rain से जुड़ी हर बात 

क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. दुबई में यही कोशिश हो रही थी.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 17 April, 2024
Last Modified:
Wednesday, 17 April, 2024
Photo Credit: Al Jazeera

दुबई (Dubai) इस वक्त बाढ़ का सामना कर रहा है. इस बाढ़ की वजह प्रकृति नहीं बल्कि इंसान खुद है. दरअसल, दुबई में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) करवाई जा रही थी, लेकिन इस कोशिश के दौरान बदल फट गया और पूरा शहर पानी-पानी हो गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुबई शॉपिंग मॉल्स में पानी भर गया है. सड़कें तालाब बन गई हैं और पार्किंग में गाड़ियां तैर रहीं हैं. इतना ही नहीं, एयरपोर्ट भी बाढ़ के पानी में डूब गया है. हवाई पट्टी नजर नहीं आ रही है. इस वजह से विमानों के संचालन में परेशानी हो रही है. 

चंद मिनटों में रिकॉर्ड बारिश
दुबई में सोमवार और मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के लिए विमान उड़ाए गए थे. क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. हालांकि, ये पूरा प्लान उस वक्त फेल हो गया जब आर्टिफिशियल रेन की कोशिश में बादल फट गया. बताया जा रहा है कि महज कुछ ही देर में दुबई में इतनी बारिश रिकॉर्ड हो गई, जिसके लिए डेढ़ साल का इंतजार करना पड़ता था. जाहिर है जब इतनी ज्यादा बारिश होगी, तो व्यवस्थाएं बिगड़ेंगी ही. देखते ही देखते पूरा शहर जलमग्न हो गया.

75 सालों में ऐसा मंजर नहीं देखा
दुबई के अलावा फुजैराह में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं. यहां 5.7 इंच तक बारिश हुई है. इस बाढ़ में अब तक एक व्यक्ति के मरने की खबर है. वहीं, दुनिया के सबसे बड़े शॉपिंग सेंटर्स में शुमार मॉल ऑफ अमीरात में कई दुकानों की छत गिर गई हैं. दुबई के जानकारों का कहना है कि बीते 75 सालों के इतिहास में कभी इतनी बारिश नहीं हुई. बादल फटने से शारजाह सिटी सेंटर और दिएरा सिटी सेंटर को भी नुकसान पहुंचा है. दुबई प्रशासन पंप के जरिए पानी निकाल रहा है. 

खाड़ी देशों में कम होती है बारिश
दुबई में महज 24 घंटे के अंदर ही 142 मिलीमीटर बारिश हुई है. जबकि आमतौर पर यहां एक साल में 94.7 मिलियन बारिश होती है. बता दें कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में बारिश काफी कम होती है. पूरा साल एक तरह से सूखा ही गुजरता है. सर्दी के मौसम में जरूर कुछ समय तक हल्की बारिश होती है. यूएई के अलावा सऊदी अरब, बहरीन, कतर जैसे खाड़ी देशों में बारिश कम होती है. वैसे, कृत्रिम बारिश कोई नई चीज नहीं है. अब तक कई देशों में ऐसा हो चुका है. भारत की राजधानी दिल्ली में भी इस तरह के प्रयास की कोशिश हुई थी. 

Delhi में भी होनी थी ऐसी बारिश
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से लोगों को कुछ राहत देने के लिए आर्टिफिशियल बारिश की योजना तैयार की गई थी. आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश करवाने वाली थी, लेकिन बाद में इस योजना को टाल दिया गया. 20 और 21 नवंबर 2023 को दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश करवाने की बात कही थी. मगर प्रदूषण में कमी आने के बाद ऐसा नहीं किया गया. इसकी एक वजह यह भी थी कि मौसम विभाग की तरफ से बादलों की संभावना से इनकार किया गया था. विभाग ने कहा था कि 21 नवंबर को बादल छाए रह सकते हैं, लेकिन ये कृत्रिम बारिश करवाने के लिए काफी नहीं है. कृत्रिम बारिश तभी हो सकती है जब आसमान में बदल छाए हों. 

कैसे होती है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश के लिए केमिकल एजेंट्स जैसे कि सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ा जाता है. इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और वो इन केमिकल एजेंट्स को छोड़ते हैं. इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं, जो बाद में बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. इसे टेक्निकल भाषा में इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का होना सबसे जरूरी है. वैसे, 2023 से पहले 2019 में भी दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारियां की गई थीं. 

कितना आता है खर्चा?
कृत्रिम बारिश काफी महंगी पड़ती है. दिल्ली में 2 दिनों की इस बारिश पर करीब 13 करोड़ रुपए खर्च के का अनुमान लगाया गया था. एक इंटरव्यू में IIT-Kanpur के प्रोफेसर Maninder Agarwal ने बताया था कि प्रत्येक वर्ग किमी क्लाउड सीडिंग की लागत लगभग 1,00,000 रुपए आती है. भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयास 1951 में वेस्टर्न घाट में बारिश के लिए हुआ था. इसके बाद 1973 में आंध्र प्रदेश में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई गई. 1993 में भी तमिलनाडु में ऐसी बारिश करवाई गई थी. भारत ही नहीं, 50 से ज्यादा देशों में इस तरह का प्रयोग हो चुका है. 


Lok Sabha Election: नेताओं की अग्निपरीक्षा में कारोबारियों के चमक रहे चेहरे

लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर पैसा खर्च हो रहा है. प्रत्याशी और पार्टी जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

Last Modified:
Tuesday, 16 April, 2024
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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) को लेकर पार्टियों से लेकर प्रत्याशी तक हर कोई जोश में है. जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं. वैसे, तो चुनावी माहौल में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. लेकिन इस बार इस 'बहाव' की रफ्तार पहले से ज्यादा रहने का अनुमान है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के आम चुनाव में 2019 की तुलना में दोगुना से अधिक खर्च होगा. पिछले चुनाव में कुल उम्मीदवारों ने जहां करीब 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे. वहीं, इस बार यह राशि 1.20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रह सकती है. जाहिर है, जब इतने बड़े पैमाने पर खर्चा होगा, तो इससे कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी और कारोबारियों के चेहरे भी चमक जाएंगे.  

प्रचार पर जमकर हो रहा खर्चा 
चुनाव के मौसम में कई तरह के रोजगार उत्पन्न होते हैं और कई सेक्टर्स के कारोबार को बूस्ट मिलता है. उदाहरण के तौर पर चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने, प्रचार अभियान का हिस्सा बनने के लिए बड़े पैमाने पर युवाओं को रोजगार मिलता है. भले ही यह मौसमी रोजगार हो, लेकिन इससे कुछ न कुछ आमदनी तो हो ही जाती है. प्रचार के लिए जिस बैनर, झंडे, पैम्पलेट आदि की जरूरत होती है, उससे जुड़े कारोबारियों के लिए चुनावी सीजन मानसून जैसी राहत लेकर आता है. इस बार का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ-साथ संपूर्ण विपक्ष के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रचार में पूरी ताकत झोंकी जा रही है. इस वजह से फ्लैक्स-बैनर का रोजगार भी चमक रहा है. इस सेक्टर को कम से कम 15 हजार करोड़ रुपए की कमाई होने का अनुमान है.

इन सेक्टर्स को सबसे ज्यादा फायदा
ढाई महीनों के इस चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा फायदा, हॉस्पिटैलिटी, ट्रैवल, सर्विस प्रोवाइडर, फूड इंडस्ट्री, टेंट-कैटरर्स कारोबारियों को होगा. साथ ही इस दौरान, कम से कम डेढ़ लाख ऐसे लोगों को नया रोजगार भी मिलेगा. चुनावी मौसम में नेताओं को कार्यकर्ताओं की खुशी का पूरा ख्याल रखना पड़ता है. उनके खाने-पीने की जिम्मेदारी भी प्रत्याशी उठाता है. ऐसे में बड़ी मात्र में फूड पैकेट तैयार करवाए जाते हैं, जिसके चलते क्लाउड किचन से जुड़े व्यापारियों की अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. इन क्लाउड किचन को लंच और डिनर संबंधित केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौप दी जाती है. उत्तर होटल-रेस्टोरेंट-कैटरर्स एसोसिएशन का मानना है कि इस चुनावी सीजन में सेक्टर के पास कम से कम 2000 करोड़ के अतिरिक्त ऑर्डर होंगे.

पानी के कारोबार में लगी आग
फेडरेशन ऑफ एमपी टेंट एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी रिंकू भटेजा का कहना है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में कारोबार अपेक्षाकृत कुछ कम रहता है. मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कारोबार का आंकड़ा मोटे तौर पर 50 करोड़ रुपए को पार कर गया था. लोकसभा चुनाव में यह कुछ कम रह सकता है. वहीं, लोकसभा चुनाव में इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों की भी मोटी कमाई हो रही है. ये कंपनियां प्रत्याशियों के लिए हर तरह का इंतजाम करती हैं. इसमें नुक्कड़ नाटक से लेकर डोर-टू-डोर कैंपेन, स्टार प्रचारकों की व्यवस्था आदि. इसके साथ ही नेताओं के भाषण लिखने के लिए कंटेंट राइटर की व्यवस्था का जिम्मा भी अक्सर इन्हीं के पास रहता है. चुनावी मौसम में आसमान से बरस रही आग के मद्देनजर ठंडे का बाजार भी उफान पर है. पानी के साथ-साथ सॉफ्ट ड्रिंक की मांग भी बढ़ गई है. पिछले दो महीने में यूपी और एनसीआर में 176 वॉटर बोटलिंग प्लांट पंजीकृत हुए हैं.

कार से विमान तक की भारी डिमांड 
इस लोकसभा चुनाव में ट्रैवल इंडस्ट्री को भी अच्छे दोनों का अहसास हो रहा है. गर्मी के कारण इस बार कार्यकर्ताओं में चार पहिया वाहनों की डिमांड ज्यादा है. ऐसे में कई बड़े ट्रैवल ऑपरेटरों ने खास चुनावी सीजन के लिए नई कारें खरीदी हैं. कुछ का तो कहना है कि डिमांड इतनी ज्यादा है कि मुंहमांगा पैसा मिल रहा है. ऐसे में महज तीन महीने में अगले एक साल की किश्त का इंतजाम हो जाएगा. वहीं, बड़े नेता चुनावी रैलियों के लिए हेलिकॉप्‍टर और चार्टर्ड विमान से पहुंच रहे हैं, तो इनकी डिमांड पर 40% ज्यादा हो गई है. इसके चलते निजी विमान और हेलीकॉप्टर संचालकों को 15-20 प्रतिशत अधिक कमाई होने की उम्मीद है. मौके का फायदा उठाने के लिए चार्टर्ड सेवाओं के लिए प्रति घंटा दरें भी बढ़ गई हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि एक विमान के लिए शुल्क करीब 4.5 – 5.25 लाख रुपए और दो इंजन वाले हेलीकॉप्टर के लिए करीब 1.5- 1.7 लाख रुपए प्रति घंटा लिया जा रहा है. 

इससे लगाइए कमाई का अंदाजा 
जिन राज्यों में मतदान की तारीख करीब आ रही है, वहां प्रचार काफी तेज हो गया है और कारोबारियों की कमाई में भी तेजी आई है. उदाहण के तौर पर राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 12 सीटों पर वोटिंग 19 अप्रैल को होगी. इसके मद्देनजर पार्टियों के स्टार प्रचारक राजस्थान में सभा और रैलियों के लिए पहुंच रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में चुनाव आयोग के समक्ष प्रत्याशियों की ओर से पेश किए गए खर्चे की जानकारी दी गई है. उसके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो सभा और रोड-शो पर ही 76 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं. 5 अप्रैल को चूरू में प्रधानमंत्री मोदी के रोड-शो और जनसभा में 11 लाख रुपए कारपेट बिछाने पर खर्च हुए थे. 18.90 लाख रुपए का वॉटर प्रूफ टेंट लगा था और 72 हजार रुपए का विशेष पांडाल बनाया गया था. सभा में बैठने के लिए 30 हजार कुर्सियां पर 2.10 लाख रुपए खर्च हुए थे. इससे चुनाव में कारोबारियों की आमदनी का अंदाजा लगाया जा सकता है. जब काम बढ़ता है, तो कर्मचारी भी बढ़ाने पड़ते हैं. यानी रोजगार में भी इजाफा होता है.