सोशल मीडिया पर लाइक और ध्यान बटोरने के लिए सेल्फी पोस्ट करते रहने के हम आदि हो चुके हैं. जानिए, इसका दिल पर क्या हो रहा असर?
डॉ. मिकी मेहता
(Global leading holistic health guru / corporate life coach)
नई दिल्ली: आज बड़े पैमाने पर लोग फिटनेस के प्रति जागरूक हो गए हैं और एक सेल्फी-फ्रेंडली, पिक्चर परफेक्ट छवि दिखाना चाहते हैं. एक परफेक्ट और आकर्षक, फ्लेक्स मसल्स दिखने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं और अब ये लगभग अधिकांशतः लोगों की एक लत बन चुकी है.
सोशल मीडिया पर लाइक बंटोरने की होड़
सोशल मीडिया पर लाइक और ध्यान बटोरने के लिए सेल्फी पोस्ट करते रहना और अपने लाइक्स की संख्याओं को गिनाना और फिर एक-दूसरे से बेटर लुक्स की चाह ने हमें दीवाना बना दिया है. इन सबके बीच हम ये भूल ही जाते हैं कि केवल लुक्स और लाइक्स की जरूरत से कहीं ज्यादा बेहतर और वास्तविक रूप में हमारा भीतरी मन कैसा है. हमें उस पर ध्यान देना चाहिए. अगर हमारा भीतरी मन सुंदर हो सके तो बाहर की सुंदरता गौन हो जाती है और यही हमारी प्राकृतिक और असली सुंदरता होती है.
सिक्स पैक पर ध्यान
अपने सपनों को साकार करने के लिए और सिर्फ सिक्स पैक हो, ये सब हमें एक–दूसरों को प्रभावित करने की होड़ में शामिल करता है. हम जिम में अपनी शारीरीक क्षमता से बढ़कर, हद से भी आगे निकल जाते हैं. आखिर हमें इस तरह से जिम करने की जरूरत ही क्यों है?
कॉलेज के बच्चों में ज्यादा चस्का
स्कूली बच्चे अपनी बोर्ड परीक्षा देने वाली पीढ़ी और जिसने अभी-अभी अपने कॉलेज के जीवन में कदम रखा ही है, वे सुंदरियों को प्रभावित करने के लिए जिम कर रहे हैं, जबकि शरीर को चुस्त, लचीला और स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करना बहुत अच्छा है. ट्रेडमिल पर कुछ अधिक परिश्रम करना और विभिन्न फिटनेस उपकरणों का उपयोग करना आखिरकार हमारे हृदय पर एक बड़ा प्रभाव डालता है. इसलिए जिम में व्यायाम करते समय आपको ब्राउनी पॉइंट तो जरूर मिल सकते हैं, पर आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप उस प्रदर्शन का हिस्सा न बनें, जहां तीव्र और दबाव में आकर जिम करने की होड़ में जुट जाएं.
दिल हमेशा तनाव में रहता है
किसी मानसिक दवाब में आकर एक दौड़ता हुआ दिल हमेशा तनाव में रहता है और दबाव, खिंचाव और धक्का से हमारा ह्रदय लगातर दबाव में होता है. हमारे हृदय की एक नपी–तुली लय होती है और इस प्रकरण में हमारे ह्रदय की गति की लय में बाधा पड़ती है और हृदय घात होने के कारकों में से एक मु्ख्य कारण बन जाता है. एक स्थिर लयबद्ध प्रवाह और जीवन की गति हृदय को सुचारू रूप से संचालन में सहयोग करती है. जब एक लय होती है, तब हमारा जीवन सुचारू रूप से चलता है.
हृदय प्रभावित होने का दूसरा कारण
एक और मु्ख्य कारण है, जिससे हृदय प्रभावित होता है और वो है- हमारा एक तेज-रफ्तार से जीवन जीना, जिससे हमारा पूरा अस्तित्व संकुचित और प्रतिबंधित होता जा रहा है. इसलिए धीमी और आराम से सांस लेना और गहरी स्वास लेते रहने भर से ये आपको स्वयं के प्रति सचेत बना देती है और गहरी सांस आपके दिल को फिर से जीवंत कर सकती है.
भोजन की भी महत्वपूर्ण भूमिका
हमारे भोजन की भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. कुछ खाद्य पदार्थ आपके शरीर को उत्तेजित, परेशान और क्रोधित करते हैं. लगातार भागदौड़ के साथ खराब भोजन के कारण कोशिकीय सूजन स्थिर रहती है. पुल-पुश, नींद की कमी और अत्यधिक व्यायाम या गहन व्यायाम करेंगे, तो दिल निश्चित रूप से तनाव में आ जाएगा और जितनी जल्दी आप सोच सकते हैं उतनी जल्दी गिर सकता है.
अच्छी सेहत के लिए नींद बहुत जरूरी
एक अच्छी सेहत के लिए नींद बहुत जरूरी है. एक ध्यानपूर्ण मनःस्थिति में गहरे विश्राम के साथ सोना वास्तव में आपको स्वस्थ कर सकता है. अपने फेफड़ों, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र और अपने दिमाग को स्वस्थ्य करें. ये सभी कर्म आपके हृदय को स्वस्थ, सामंजस्यपूर्ण और लयबद्ध बनाते हैं.
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बैंकों का बिजनेस बहुत सरल है. यह एक लॉन्ग-टर्म बिजनेस मॉडल होता है जो कुछ शॉर्ट-टर्म एसेट्स के साथ चलता है.
Srinath Sridharan, Independent markets commentator. Media columnist. Board member. Corporate & Startup Advisor / Mentor.
सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) टेक्नोलॉजी की दुनिया का फेवरेट बैंक था और इसे खड़ा करने में 40 साल लगे थे. डिपॉजिटर्स के डिस्ट्रेस सिग्नल्स की बदौलत मैच्योरिटी पूरी होने से पहले डिपॉजिट वापस लेने की वजह से यह बैंक सिर्फ 40 घंटों में ही दिवालिया हो गया. अमेरिका की वैंचर-कैपिटल समर्थित टेक्नोलॉजी और लाइफ-साइंसेज कंपनियों के आधे उपभोक्ता इस बैंक के ग्राहक थे और यह बैंक स्टार्टअप इकोसिस्टम का प्रिय बैंक था. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बैंक के लिए क्या गलत हुआ?
ऐसे चलता है बैंकों का बिजनेस
अच्छी तरह से चलने वाले बैंकों का बिजनेस बहुत सरल है. यह एक लॉन्ग-टर्म बिजनेस मॉडल है जो कुछ शॉर्ट-टर्म एसेट्स के साथ चलता है. उनके एसेट्स और लिक्विडिटी किसी भी ऐसी लायबिलिटी को कवर करते हैं जो मैच्योर होने वाली होती है. बिजनेस में हुए किसी भी नुकसान को कवर करने के लिए उन्हें अतिरिक्त कैपिटल और आउट-ऑफ-टर्न निकासी को कवर करने के लिए लिक्विडिटी भी मिलती है. यदि सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपना पैसा निकाल लेते हैं, तो बैंक उन मांगों को पूरा नहीं कर पाएगा जिसकी वजह से ‘बैंक -रन’ की स्थिति पैदा हो जाएगी. SVB के गिरने से हमें यह 10 सबक सीखने को मिलते हैं:
पहला सबक: अच्छे चलने वाले बैंकों में बैंक-रन हो सकता है. US के केन्द्रीय बैंक, फेडरल बैंक ने इन्फ्लेशन से लड़ने के लिए एक साल के दौरान बहुत तेजी से 8 बार इंटरेस्ट रेट्स में वृद्धि की. इसकी वजह से बैंक के पास पड़े एसेट्स की कीमत में कमी आई और यह बैंक की लायबिलिटी के साथ सही तरीके से मेल नहीं कर पाए.
दूसरा सबक: जीरो इंटरेस्ट रेट के साथ ही सही लेकिन पैसे पर भी एक गंभीर कीमत जुड़ी हुई होती है. SVB के गिरने के बाद से अब US फेडरल बैंक का ध्यान इन्फ्लेशन से कहीं ज्यादा, आर्थिक स्थिरता पर है. वह भारत के केंद्रीय बैंक RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) से सीख सखते हैं जो आर्थिक स्थिरता के लिए एक इन्फ्लेशन-मैनेजर, प्रमुख डेब्ट-मैनेजर और मोनेटरी-रेगुलेटर की भी भूमिकाएं निभाता है.
तीसरा सबक: पश्चिम में स्थित सभी चीजें सबसे बेस्ट हों जरूरी नहीं है. सिर्फ इसलिए कि वह बहुत कठिन सवाल पूछता है और थोड़ा साधारण है, हमें RBI को US फेडरल बैंक से कम बिलकुल नहीं समझना चाहिए. US गवर्नमेंट बॉन्ड्स में अपनी बड़ी इन्वेस्टमेंट और बढ़ते हुए इंटरेस्ट रेट्स की बदौलत SVB ने अपने एसेट्स की कीमत को बहुत तेजी से कम होते देखा. लेकिन फिर भी उसने अपनी बुक्स पर वैल्युवेशन में किसी तरह का बदलाव नहीं किया और न ही पर्याप्त लिक्विडिटी को इकट्ठा किया. जब बैंक ने लिक्विडिटी इकट्ठा करने के लिए डिस्काउंट पर अपने एसेट्स को बेच दिया और एसेट्स की कीमत में हुई इस कमी को पूओरा करने के लिए जब बैंक को कैपिटल इकट्ठा करना था तो उसके ग्राहकों को लगा कि यह बैंक डूब रहा है. इसलिए उन्होंने पैसे निकालने शुरू कर दिए जिसकी वजह से ‘बैंक-रन’ की स्थिति पैदा हुई. भारत में RBI अपनी इकाइयों की निगरानी करता है ताकि उनके ALM (एसेट-लायबिलिटी मैनेजमेंट) पर RBI की पकड़ बनी रहे और साथ ही उनके पास पड़े एसेट्स की कीमत RBI मार्केट में तय कर सके. इंटरेस्ट रेट के जोखिम को यहां इस तरह मैनेज किया जाता है.
चौथा सबक: एसेट लायबिलिटी मैनेजमेंट एक रियल-टाइम जॉब है. आपस में डिजिटली लिंक्ड ग्लोबल मार्केट्स में किसी भी एसेट की कीमत को शुन्य तक लाया जा सकता है.
डिजिटल जमाने की परेशानी: SVB के साथ जो हुआ, वो ज्यादातर बैंकों में या खासकर उन बैंकों में बिल्कुल नहीं होता जिनके ग्राहक नॉन-टेक्नोलॉजी बिजनेस हैं. बैंक्स के पास अक्सर ही लिक्विडिटी की समस्या रहती है और इस समस्या से निपटने के लिए वह कैपिटल भी इकट्ठा करते हैं और एसेट्स भी बेचते हैं. लेकिन SVB के ग्राहक उन लोगों में से थे जो बैंक द्वारा दी गयी चेतावनी को नहीं पढ़ते हैं और एक दुसरे से उसी SVB इकोसिस्टम के माध्यम से जुड़े हुए हैं. इसलिए जब किसी ने बैंक की लोन चुकाने की क्षमता पर सवाल उठाया तो यह मामला बहुत ही जल्दी लिक्विडिटी की समस्या के साथ जुड़कर एक हो गया. बैंक का बिजनेस एक क्षेत्र में केन्द्रित था और रिस्क झेलने के लिए फैला हुआ नहीं था और साथ ही बॉन्ड मार्केट की कीमतों के उतार-चढ़ावों से बचने में भी सक्षम नहीं था.
पांचवां सबक: चाहे वह प्रोडक्ट्स हों, कंज्यूमर सेगमेंट हो या भूगोल ही क्यों न हो, लेकिन किसी भी चीज का एक ही क्षेत्र में केन्द्रित होना कभी कभी दुःख देता है, या फिर जैसा SVB के मामले में देखने को मिला, कभी कभी यह बहुत घातक भी हो सकता है. बैंकों का बिजनेस ही जोखिमों की कीमत पर आधारित है.
गंभीर जांच के लिए पर्याप्त साइज: 2008 की ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद 2010 में US ने Dodd-Frank एक्ट को अपना लिया और इस एक्ट ने ‘व्यवस्था के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण’ वित्तीय संस्थाओं के लिए अतिरिक्त रेगुलेटरी निगरानी को सुनिश्चित किया. डोनल्ड ट्रम्प के समय US सरकार ने अपने बैंकिंग सिस्टम को ज्यादा उदारवादी बनाने का निर्णय लिया और US की सरकार ने क्षेत्र के बहुत से नियमों को हटा दिया. पहले अतिरिक्त निगरानी के लिए जहां 50 बिलियन डॉलर्स के एसेट्स की सीमा थी वहीं, अब इसे बढ़ाकर 250 बिलियन डॉलर्स के एसेट्स तक कर दिया गया. इत्तफाक से जब SVB गिरा तो उसके एसेट्स की कीमत 213 बिलियन डॉलर्स थी.
छठा सबक: वित्तीय संस्थान, कम निगरानी कि बजाय ज्यादा निगरानी में ही ठीक हैं. वो कहते हैं न शॉर्ट-टर्म का दर्द लॉन्ग-टर्म में परेशानी झेलने से ज्यादा बेहतर है.
अब US में क्या होगा?
रिसेशन आने की सम्भावनाओं के चलते US में अब ज्यादातर स्टॉक मार्केट इन्वेस्टर्स अपना पैसा बैंकिंग स्टॉक्स से वापस निकालेंगे. बैंकिंग सेक्टर को लेकर बढ़ती अफवाहें मुख्य रूप से क्षेत्रीय और छोटे बैंकों पर प्रभाव डालेंगी जो पूरी तरह से ‘होलसेल फंडिंग’ पर निर्भर होते हैं. कैपिटल की अपनी नई जरूरतों को कम करने और अपने बिजनेस और शाखाओं को टाईट करने के लिए यह बैंक क्रेडिट जांच के नियमों को इकट्ठा करेंगे और अंतत: क्रेडिट एक्सेस की वजह से बंद हो जायेंगे.
सातवां सबक: फाइनेंस, कॉन्फिडेंस की वजह भी होता है और इसका प्रभाव भी. बेशक इस क्राइसिस का प्रभाव अब और न फैले लेकिन इस क्राइसिस की वजह से बैंकिंग की रफ्तार धीमी पड़ जायेगी. 10 मार्च को SVB गिरने के बाद यह क्राइसिस बैंकिंग के क्षेत्र में एक के बाद एक दूसरी क्राइसिस को जन्म न डे उसके लिए US गवर्नमेंट से बहुत फुर्ती से एक्शन नहीं लिया. भारत इससे सीख सकता है कि, एक रेगुलेटर कितनी जल्दी फैसले लेकर एक गिरे हुए फाइनेंशियल संस्थान की लोन चुकाने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और उसे वापस से खड़ा कर सकता है. यह कुछ ऐसा है जिससे भारतीय रेगुलेटर्स अपनी वर्तमान व्यवस्था को बदल सकते हैं.
आठवां सबक: फाइनेंशियल संस्थानों की समस्याओं को निपटाने की रफ्तार बहुत जरूरी है. किसी भी रुक चुके फाइनेंशियल संस्थान की कीमत में समय की वजह से बहुत जल्दी गिरावट आने लगती है. यह मामला फाइनेंशियल संस्थानों के रियल-टाइम डिजिटल देख-रेख के महत्त्व को और ज्यादा जरूरी साबित करता है.
नौवां सबक: रेगुलेटर्स को सुनिश्चित करना होगा कि, फाइनेंशियल संस्थान केवल कागजों पर ही न रह जाएं बल्कि सच में बिजनेस कर पायें. भारतीय फाइनेंशियल सुविधाओं के पास लाइसेंस वाली बहुत सी इकाइयां मौजूद हैं जो सिर्फ कागज पर ही रह गयी हैं. रेगुलेटर्स को ऐसी फाइनेंशियल संस्थाओं को बंद कर देना चाहिए जो सिर्फ अपने लाइसेंस की कीमत की वजह से कागज पर बनी हुई हैं और असलियत में कोई बिजनेस नहीं करतीं.
दसवां सबक: फाइनेंस के बिजनेस के लिए आपका उद्देश्य सीरियस होना चाहिए और साथ ही आपका ध्यान केन्द्रित और इन्वेस्टमेंट्स को लेकर सब्र चाहिये न कि दिखाने के लिए सिर्फ एक लाइसेंस.
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गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का हर नया संस्करण असंभव माने जाने वाले चमत्कारों से भरा होता है, जो हमें याद दिलाता है कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है.
स्वीडिश मूल के धावक गुंडर हैग एक प्रतिभाशाली धावक थे, जिन्होंने धावक के रूप में एक दर्जन से भी ज्यादा नए रिकार्ड बनाए. सन् 1945 में उन्होंने 4 मिनट और डेढ़ सेकंड से कुछ कम समय (4:1.4 मिनट) में एक मील की दूरी तय की. उनके बनाए रिकॉर्ड की धूम इस कदर थी कि उस वक्त के ट्रेनर, साइकोलॉजिस्ट और डॉक्टर ये कहते थे कि इससे कम समय में एक मील की दूरी तय करना मानव शरीर की क्षमता के बाहर होने के कारण “असंभव” है. अगले 9 साल तक यह रिकॉर्ड बरकरार रहा, लेकिन सन् 1954 में एक क्रांति हुई. इंग्लैंड के हैरो में जन्मे सर रोजर गिलबर्ट बैनिस्टर ने 3 मिनट और साढ़े उनसठ सेकंड से भी कुछ कम समय (3:59.4 मिनट) में यह दूरी पूरी कर दिखाई. सर बैनिस्टर की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद एक और चमत्कार हुआ. उनका रिकॉर्ड सिर्फ 46 दिनों में ही टूट गया तथा एक अन्य धावक ने उनसे भी कम समय में यह दूरी तय कर ली, और फिर कुछ ही समय में 26 अलग-अलग धावकों ने 66 बार चार मिनट से कम समय में एक मील की दूरी तय करके दिखाई.
यह चमत्कार क्यों हुआ, कैसे हुआ?
गुंडर हैग ने जब लगभग चार मिनट में एक मील की दूरी तय की तो एथलीट, उनके कोच और मनोवैज्ञानिकों ने यह मान लिया कि यह उपलब्धि मानवीय शारीरिक क्षमता की सीमा है और इससे कम समय में इस दूरी को तय नहीं किया जा सकता. “असंभव” के इस अवरोध के कारण धावकों में एक प्रकार की “मानसिक विकलांगता” ने घर कर लिया और धावकों ने इस रिकॉर्ड को तोड़ने का प्रयास ही बंद कर दिया. सर रोजर गिलबर्ट बैनिस्टर एक जूनियर डॉक्टर होने के साथ-साथ धावक भी थे और उन्हें गुंडर हैग के तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड और इससे जुड़े मिथक की जानकारी थी. डॉक्टर के रूप में वे नर्वस सिस्टम की प्रतिक्रियाओं पर शोध कर रहे थे और उनका दृढ़ विश्वास था कि चार मिनट की सीमा मात्र एक मानसिक अवरोध है और इसे तोड़ा जा सकता है. वे इस झांसे में नहीं आये कि यह मानवीय शारीरिक क्षमता की सीमा है और इसलिए उन्होंने इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार किया और रिकॉर्ड तोड़ दिखाया. “असंभव” के अवरोध का मिथक जैसे ही टूटा, कई लोग आसानी से चार मिनट से कम समय में यह दौड़ पूरी करने लगे. जिस उपलब्धि को पहले असंभव मान लिया गया था, वह अब पहुंच के भीतर थी. सफलता उनकी पहुंच में है, इस बात के प्रत्यक्ष उदाहरण ने शेष सभी धावकों को भी बेहतर रिकॉर्ड बनाने के लिए प्रेरित किया.
कमजोरियों को छिपाने वाला शब्द
“असंभव” एक ऐसा शब्द है जो हमने अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए गढ़ लिया है. दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. आदमी जहाज खा जाता है, आदमी ऐसा करंट बर्दाश्त कर लेता है जिसके संपर्क में आने मात्र से हमारे हृदय की धड़कन बंद हो सकती है, आदमी अपने शरीर के मुलायम अंगों की सहायता से लोहे को मोड़ सकता है, आदमी असहनीय माने जाने वाले दर्द को सह सकता है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का हर नया संस्करण असंभव माने जाने वाले चमत्कारों से भरा होता है जो हमें याद दिलाता है कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है.
परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं
हमें यह समझना चाहिए कि परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं, या यूं कहें कि दिमाग में शुरू होते हैं. यह ध्यान देने की बात है कि सोच को बदलना एक प्रणालीगत (सिस्टेमैटिक) कार्य है, जो कई चरणों में पूरा होगा. यह असंभव नहीं है. युगबोध का यह एक बड़ा परिवर्तन है. उल्लेखनीय है कि परिवर्तन की मानसिक यात्रा हमें सफलता की ओर ले चलती है. यदि हमें जीवन की बाधाओं से पार पाना है और सफल होना है तो हमें इस मानसिक यात्रा में भागीदार होना पड़ेगा जहां हम नये विचारों को आत्मसात कर सकें और किसी भी अवरोध को अवरोध मानने की मानसिक विकलांगता से बच सकें. इसी से हम सफल होंगे, समाज सफल होगा, देश सफल होगा.
आज BW लीगल वर्ल्ड द्वारा अवार्ड समारोह ‘30 अंडर 30’ के दूसरे एडिशन का आयोजन किया गया. इस दौरान देश की जानी मानी हस्तियों और दिग्गज वकीलों ने इस समारोह में भाग लिया.
आज BW (बिजनेसवर्ल्ड) लीगल वर्ल्ड द्वारा अवार्ड समारोह ‘30 अंडर 30’ के दूसरे एडिशन का दिल्ली में आयोजन किया गया. अवार्ड समारोह में ‘How to build legal department inhouse for the future’ पैनल का आयोजन किया गया. यह पैनल मुख्य रूप से एक फ्यूचरिस्टिक लीगल डिपार्टमेंट को बनाने और उसकी प्रमुख विशेषताओं के विषय पर आधारित था. इस पैनल में फोर्ड इंडिया के लीगल सर्विसेज के डायरेक्टर अनुभव कपूर, L&T के ग्रुप जनरल काउंसल हेमंत कुमार, यम डिजिटल एंड टेक्नोलॉजी की हेड लीगल प्रियंका वलेशा और भारतपे के जनरल काउंसल, कॉर्पोरेट अफेयर और कॉर्पोरेट रणनीति के प्रमुख सुमित सिंह जैसे दिग्गज शामिल थे. इस पैनल के सेहन प्रमुख बिजनेसवर्ल्ड के चीफ एडिटर डॉक्टर अनुराग बत्रा थे.
फ्यूचरिस्टिक बनने के लिए जारी रखनी होगी तेज रफ्तार
पैनल डिस्कशन की शुरुआत करते हुए डॉक्टर अनुराग बत्रा ने कहा कि यह एक बहुत ही 'हाई-पावर्ड' पैनल है और हमारे पास इस विषय पर चर्चा करने के लिए इससे बेहतर पैनल नहीं हो सकता था. डॉक्टर अनुराग बत्रा का पहला सवाल L&T के ग्रुप जनरल काउंसल हेमंत कुमार से था. डॉक्टर बत्रा ने सवाल करते हुए कहा - लीगल की दुनिया को ज्यादा फ्यूचरिस्टिक बनने के लिए अपनी रफ्तार को बनाये रखना होगा. ऐसे में L&T जैसी कंपनी लीगल डिपार्टमेंट को फ्यूचरिस्टिक बनाने के लिए कौनसे कदम उठा रही है और हायरिंग के प्रोसेस में क्या बदलाव आये हैं? जवाब में हेमंत कुमार ने कहा - मेरे पास जनरल काउंसल के तौर पर काम करने का 39 सालों का अनुभव है और अपने अनुभव के आधार पर मैं बताना चाहता हूं कि इस मामले पर राज्य की कोई जवाबदेही नहीं होती. स्पेशलाइजेशन महत्त्वपूर्ण होता है. कॉर्पोरेट लीगल डिपार्टमेंट आमतौर पर दो हिस्सों में बंटा होता है. पहला लिटिगेशन और दूसरा नॉन-लिटिगेशन. नॉन-लिटिगेशन जहां कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट्स और बाकी मुद्दों की देखरेख करता है वहीं, लिटिगेशन डिपार्टमेंट घरेलु और अंतरराष्ट्रीय मुकदमों की देख-रेख करता है.
होनी चाहिए बिजनेस की अच्छी समझ
हायरिंग के प्रोसेस में हुए बदलावों के बारे में बताते हुए हेमंत कुमार ने कहा - मुझे जब किसी को हायर करना होता है तो मैं सबसे पहले देखता हूं कि डिपार्टमेंट में वैकेंसी है या नहीं और फिर मैं अपनी अपेक्षाओं को देखता हूं कि, कैंडिडेट मेरी उम्मीदों पर कितना खरा उतर पायेगा. L&T में हम कैंडिडेट को बिजनेस और कंपनी का कल्चर समझने के लिए 1 साल का भरपूर समय देते हैं जबकि दूसरी कंपनियों में आप पर पहले दिन से ही अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव होता है. आपको बिजनेस को समझना होगा केवल तभी आप एक अच्छे वकील बन सकते हैं. आने वाले समय में L&T और ITC जैसी सभी बड़ी कंपनियां आपसे उम्मीद करेंगी कि आपको बिजनेस की अच्छी जानकारी हो और यह लीगल की दुनिया को फ्यूचरिस्टिक बनाने के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है.
'सीखने की इच्छा' होना भी है बहुत जरूरी
डॉक्टर बत्रा का अगला सवाल यम डिजिटल एंड टेक्नोलॉजी की हेड लीगल प्रियंका वलेशा से था. डॉक्टर बत्रा ने सवाल पूछते हुए कहा - किसी भी नए शख्स की हायरिंग करते हुए आप उसकी किन विशेषताओं पर प्रमुख रूप से ध्यान देती हैं और पिछले 6 या 7 सालों के दौरान इसमें क्या बदलाव देखने को मिला है? प्रियंका वलेशा ने डॉक्टर बत्रा के जवाब की शुरुआत हेमंत कुमार जी से सहमती जताकर की. उन्होंने कहा - हेमंत जी ने जो भी कहा मैं उससे पूरी तरह से सहमत हूं और मुझे भी लगता है कि, बिजनेस की जानकारी होने बहुत जरूरी होता है. 6 सालों पहले जब किसी की हायरिंग की जाती थी तो विशेष रूप से इस बात पर ध्यान दिया जाता था कि, उसे कानून की कितनी समझ है लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब इस बात को ज्यादा जरूरी समझा जाता है कि व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि कानूनी रूप से समर्थन की जरूरत कहां है? आपको अपने उद्देश्य को पहचानने के साथ-साथ यह भी देखना होता है कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं. आपके कानूनी समर्थन का बिजनेस पर क्या प्रभाव पद रहा है यह देखना भी बहुत जरूरी होता है. आप जिस लेवल के लिए हायरिंग कर रहे हैं उसकी वजह से भी बहुत से अंतर देखने को मिल सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर मैं एक फ्रेशर को हायर कर रही हूं तो मैं इस बात पर ज्यादा गौर करूंगी उस व्यक्ति में सीखने की इच्छा हो और आप सीधा नतीजों पर जाने कि बजाय यह समझने कि कोशिश करें. साथ ही, आज के समय में जरूरी है कि आपको यह समझ हो कि आप अपने टैलेंट और सीखने की इच्छा से बिजनेस को किस प्रकार का समर्थन दे पा रहे हैं.
सीखने के लिए उत्सुक है यंग इंडिया
भारतपे के जनरल काउंसल, कॉर्पोरेट अफेयर और कॉर्पोरेट रणनीति के प्रमुख सुमित सिंह से डॉक्टर बत्रा ने सवाल करते हुए कहा - आपकी कंपनी अभी एक बढ़ता बिजनेस है और कंपनी का हेडक्वार्टर कहां बनाया जाए जैसे बहुत से सवालों के साथ बहुत सी पॉलिसी को लेकर अभी क्लेरिटी नहीं है और बहुत से क्षेत्रों में कंपनी उभर भी रही है. ऐसे में आप भविष्य के लिए कैसी टीम बना रहे हैं? सुमित सिंह ने जवाब देते हुए कहा - जैसा कि आपने बताया, हमारी कंपनी यहां मौजूद अन्य कंपनियों की तुलना में बहुत नई है और यंग इंडिया के बहुत से यंग वकील पिछले कुछ समय में प्रमुख रूप से उभरे हैं और वह सीखने के लिए बहुत उत्सुक हैं. मुझे जिस टीम को बिलकुल शुरुआत से बनाना है उसमें हर एक व्यक्ति भले ही एक सुपरस्टार जैसा परफॉर्म न करे लेकिन एक टीम के तौर पर आपको सबके लिए फोट होना होगा और यह समझना होगा कि आप से किस चीज की उम्मीद की जा रही है. हमारे जैसी कंपनियों के पास एक अतिरिक्त फायदा यह होता है कि हमें किसी तरह के कॉम्पनसेशन को देने में कोई परेशानी नहीं होती और अब यह टॉप-टियर फर्म्स के लिए कोई चिंता का बड़ा कारण भी नहीं रह गया है. ज्यादा से ज्यादा यंग टैलेंट को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए हम SOP का इस्तेमाल करते हैं जो कि बहुत ही आकर्षक होती हैं. लेकिन हमें एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि, बेशक एक व्यक्ति बहुत अच्छा परफॉर्म कर सकता है और सबसे आगे निकल सकता है लेकिन किसी भी कोर्पोरेशन के इन-हाउस में आपको एक अच्छी और कुशल टीम की ज्यादा जरूरत होती है और यह मैं अपने अनुभव के आधार पर बता रहा हूं.
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इस बात को कभी मत सोचिए कि आपको ब्लैक को व्हाइट करना है और व्हाइट को ब्लैक करना है. एक वकील का काम है कि सच को जज के सामने लाना. ये आपकी सबसे बड़ी योग्यता है.
BW LEGAL के दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में बोलते हुए पटना हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने कहा कि जब मैंने अपनी लाइफ में पहली बार ओवरक्राउडेड बार को देखा तो मैंने अपने पिता को कहा कि यहां कई सौ लोग हैं जिनमें से मैं एक हूं. मेरी ये बात सुनकर मेरे पिता ने मुझसे कहा कि बेटा सुई की नोंक पर हमेशा स्पेस होता है, बस आपको ये पता होना चाहिए कि आपको वहां पर पहुंचना कैसे है. उन्होंने यंग लॉयर को संबोधित करते हुए कई और महत्वपूर्ण बातें भी कही.
वकील की ड्यूटी जज के सामने सच लाना
पटना हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने कहा आप लोगों में ज्यादातर कानून से जुड़े लोग हैं. कानून से जुड़े किसी भी शख्स में सबसे जरूरी ये है कि वो एक वकील होता है. हम सभी को ये बहुत ही क्लीयर तरीके से समझना होगा कि एक वकील की ड्यूटी क्या होती है. उन्होंने कहा कि जब मैं छोटा था तब मेरे पिता बैरिस्टर थे, और मेरे दिमाग में ये इम्प्रेशन था कि वकील कोर्ट में झूठ बोलता है, तो मैं वकील नहीं बनना चाहता था. लेकिन जब मैं इस फील्ड मैं आया तो नजदीक आकर महसूस किया की तब मैंने पाया कि कानून का क्षेत्र बहुत ही दिलचस्प है.
उन्होंने वकील के पेशे को समझाने के लिए एक पुरानी कहानी भी सुनाई जिसमें, उन्होंने कहा कि एक बार एक महिला को व्यभिचार करने के लिए पकड़ लिया गया. इस पूरे अपराध के दो विटनेस भी मौजूद थे. तभी वहां पर एक शख्स खड़ा हुआ और बोला कि राजा अगर मुझे अनुमति दें तो मैं इनसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. मैं यहां पर ये साबित कर सकता हूं कि दो आदमी झूठ बोल रहे हैं. सभी लोग आश्चर्यकित हुए और बोले कि ये सवाल पूछकर कैसे साबित कर सकते हैं. सभी के मन में जिज्ञासा जाग गई.
तभी उसने किंग से अनुमति ली कि एक आदमी को यहां से दूर कर दिया जाए जब मैं दूसरे से सवाल पूछूं. राजा ने इसकी भी अनुमति दे दी. उसने उससे पूछा कि जब ये महिला उस दिन व्यभिचार कर रही थी तब मौसम कैसा था, उसने कहा कि दिन था सूर्य चमक रहा था और मैंने साफ देखा कि ये व्यभिचार कर रही थी. उसके बाद पहले विटनेस को बुलाया गया उससे भी वहीं सवाल पूछा तो उसने कहा कि मौसम बादलों वाला था और लग रहा था कि हल्की बारिश हो सकती है. लेकिन ये काफी साफ दिख रहा था कि महिला गलत आचरण कर रही थी. तभी वहां बैठा राजा और बाकी लोग समझ गए कि ये दोनों झूठ बोल रहे है. ये एक वकील का काम है.
वकालत का क्षेत्र संघर्ष भरा है
जस्टिस इकबाल अंसारी ने कहा कि कानून का क्षेत्र संघर्ष से भरा हुआ है. जस्टिस चावला ने कहा कि शुरूआत में आप स्ट्रगल करते हैं तब आपके सामने बेड होता है, जिसमें सुंदर गुलाब के फूल होते हैं, लेकिन जब आप सक्सेस होते हैं तो आपके पास रोजेज होते हैं लेकिन बेड नहीं होता. कहने का मतलब ये है कि जब आप शुरु करते हैं तो आपको स्ट्रगल करना पड़ता है और आप चिंता में होते हैं आपके पास सोने के लिए बहुत समय होता है लेकिन चिंता के कारण आप सो नहीं पाते हैं. लेकिन जब आप सक्सेस होते हैं तब आपके पास रोजेज होते हैं लेकिन बेड नहीं होता, क्योंकि आपके पास सबकुछ होता है लेकिन आप सोने का समय नहीं होता है.
निर्भर इस बात पर करता है कि आप कितने डेडीकेशन से काम करते है
एक बात और मैं आपसे कहना चाहूंगा कि ओवरक्राउडेउ बार को लेकर हर किसी मन में अलग बात आती है. जब मैं अपनी इच्छा के विरुध बार में गया तो मैने देखा कि मैने अपने पिता को कहा कि यहां बहुत सारे लोग हैं जिनमें एक मै हूं. मेरे पिता ने कहा कि सुई की टॉप पर हमेशा से स्पेस होता है लेकिन आपको ये पता होना चाहिए कि आपको वहां पहुंचना कैसे है. एक अन्य जज ने कहा कि क्राउड हमेशा नीचे होता है ऊपर कुछ ही लोग होते हैं. सबसे ज्यादा मैटर करता है कि आप कितने डेडीकेशन के साथ काम करते हैं. आप कितने सीनसियर हैं. मैं आप सभी के उज्जवल भविष्य को लेकर शुभकामनाएं देता हूं और आप लोग कानून की जिस विंग में भी काम कर रहे हैं वो भले ही जज हो या वकील हो आपका भविष्य उज्जवल हो.
भारतीय इकॉनमी पर पड़ने वाले प्रभाव और उससे जुड़ा जो डर भारत में फैल रहा है वह मुझे बेबुनियाद लगता है. SVB में जिन स्टार्टअप का भारतीय फंड जमा था वह पूरी तरह सुरक्षित है.
Srinath Sridharan, Independent markets commentator. Media columnist. Board member. Corporate & Startup Advisor / Mentor.
US के 16वें सबसे बड़े बैंक यानी सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) के गिरने से भारतीय इकॉनमी पर पड़ने वाले प्रभाव और उससे जुड़ा जो डर भारत में फैल रहा है वह मुझे बेबुनियाद लगता है. भारतीय स्टार्टअप जिनका फंड SVB में था, पूरी तरह सुरक्षित हैं. भारतीय बैंकिंग सेक्टर भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. जिनकी इन्वेस्टमेंट से भारतीय स्टार्ट-अप्स को आकार मिला है उन भारतीय प्राइवेट इन्वेस्टर्स के लिए यह एक सीख है कि ज्यादा ब्याज के लालच में उन्हें अपना सारा पैसा एक ही इकाई में जमा नहीं करना चाहिए और अपनी इन्वेस्टमेंट में अच्छी तरह से विविधता बनाकर रखनी चाहिए.
भारतीय फाइनेंशियल संस्थान
भारतीय फाइनेंशियल संस्थानों के लिए सबक ये है कि, उन्हें अपने रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क में सुधार करें और एसेट लायबिलिटी मैनेजमेंट (ALM) की रियल टाइम में जांच करते रहें. ब्याज दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के साथ, ALM को पहले से ज्यादा मजबूत बनाने की आवश्यकता होती है. RBI (भारतीय रिजर्व बैंक) के सावधानी और दखल देने वाले नियम और रेगुलेशंस यहीं काम में आते हैं.
US के बैंक हो गए फेल
SVB पिछले चालीस सालों से बिजनेस में था और टेक्नोलॉजी फर्मों के साथ-साथ वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री के लिए भी पहली पसंद का बैंक था. सिलिकन वैली के सबसे बड़े डिपॉजिट बैंक SVB के पास गिरने से ठीक पहले 209 बिलियन डॉलर्स की संपत्ति और 175 बिलियन डॉलर्स की जमा राशि थी. अमेरिकी इतिहास में यह दूसरी सबसे बड़ी बैंकिंग असफलता है और 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल संकट (GFC) के बाद से यह अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम को पहला झटका है. अमेरिका में सिस्टमैटिकली इम्पोर्टेन्ट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन (SIFI) के रूप में रैंक करने के लिए SVB पूरी तरह से बड़ा बैंक नहीं था. इंडिया बैंक पर नजर रखने वालों के लिए बता दूं कि, बैंकिंग के नजरिए से केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), HDFC बैंक और ICICI बैंक ही SIFI टैग में आ सकते हैं.
SVB के पास US ट्रेजरी और सरकार द्वारा समर्थित मॉर्गेज सिक्योरिटीज जैसे शानदार एसेट्स हैं, जिन्हें सुरक्षित दांव कहा जा सकता है. लेकिन जब US फेडरल ने ब्याज दरों में आक्रामक रूप से वृद्धि की, तो SVB होल्डिंग्स का मूल्य काफी कम हो गया था.
अमेरिका से पैदा हुए 2008 के वित्तीय संकट के बाद, अमेरिका में ब्याज दरें रुक गयी हैं. इस फैसले की वदौलत लोन सस्ते हुए और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट कम्युनिटी ने स्टार्ट-अप्स में ज्यादा पैसे लगाए. बदले में इनमें से कई स्टार्टअप्स ने फ्लश ट्रेजरी पॉकेट्स के साथ SVB जैसे बैंकों में अपने पैसे जमा करवाए. लेकिन फिर मार्च 2022 में जो ब्याज दरें 0.25-0.50% के रेट पर स्थिर थीं वह बढ़कर 4.5-4.75% हो गईं. हाल ही में US फेडरल के चेयरमैन ने भी इशारा किया था कि ब्याज दरें 5.75% तक जा सकती हैं. इन बढ़ती ब्याज दरों ने बॉन्ड पर रिटर्न को कम कर दिया, और स्टार्टअप की फंडिंग साइकल को भी कम कर दिया. SVB अपने रिस्क मैनेजमेंट में असफल रहा - उन्होंने इतनी तेजी से काम नहीं किया कि बढ़ती ब्याज दर का रिस्क उठाया जा सके., SVB अपने खुद के कैश भंडार का उपयोग करके जितनी तेजी से भुगतान कर सकता था, उससे ज्यादा तेजी से SVB के जमाकर्ता अपने जमा पैसों को निकाल रहे थे. अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए बैंक ने 1.8 बिलियन डॉलर का नुक्सान उठाते हुए अपने 21 बिलियन डॉलर की कीमत वाले अपने सिक्योरिटीज पोर्टफोलियो को बेच दिया. SVB द्वारा लिए गए इस फैसले की वजह से इतनी ही कीमत की कैपिटल इकट्ठा करने के लिए एक मांग शुरू हुई जिससे बाजार में घबराहट पैदा हो गयी और परेशान कस्टमर्स द्वारा अपनी जमा राशि को निकालने में और तेजी आई,
बैंकों का बिजनेस
बैंक में जमा पैसे निकालने की ऐसी भगदड़ किसी भी मार्केट में कभी भी हो सकती है. डिजिटल और सोशल मीडिया के इस जमाने में अफवाहों और कानाफूसी से बहुत ध्यान से निपटना चाहिए.
एक बैंक अपने ग्राहकों से जमा (लायबिलिटी) स्वीकार करता है और अन्य ग्राहकों को लोन (एसेट्स) देने के लिए जमा राशि का इस्तेमाल करता है. किसी भी जमा राशि का सरप्लस कहीं और इन्वेस्ट किया जाता है. किसी भी बैंक के सेफ में निवेश की न्यूनतम कानूनी मात्रा को तय करने के लिए बैंक के रेगुलेटर्स के पास नियम होते हैं. बैंकिंग का यह बिजनेस इस आधार पर काम करता है, कि सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी जमा राशि वापस नहीं लेंगे. SVB के साथ जो हुआ वह क्लासिक बैंक रन का एक शानदार मामला है, जहां बहुत से जमाकर्ता एक ही समय में बैंक से अपना पैसा निकालते हैं. ऐसे मामले में बिना किसी गवर्नेंस समस्या वाला एक सही बैंक भी कुछ ही दिनों में दिवालिया हो सकता है. SVB की यह असफलता गवर्नेंस की असफलता नहीं थी. खराब ALM की वजह से SVB का दिवाला हो गया इसके पीछे कोई समस्या वजह नहीं थी.
1 ट्रिलियन डॉलर्स से अधिक की बैंक जमा राशि बीमाकृत नहीं है और यह अमेरिकी सरकार के सामने इस वक्त मौजूद एक बड़ा जोखिम है. फेडरल डिपॉजिट बीमा निगम द्वारा केवल 250,000 डॉलर्स तक की जमा राशि का ही बीमा किया जाता है. अगर हालत ऐसे ही रहे तो अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली भविष्य में ऐसी बैंक-रन की चुनौतियों का सामना कैसे करेगी?
भारत पर नहीं पड़ा है कोई प्रभाव?
US फेडरल ने SVB संकट को बहुत जल्दी सुलझा दिया जिससे जमाकर्ताओं के पैसे बचे हैं. इसमें SVB के साथ भारतीय या भारतीय मूल की SaaS (सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस) संस्थाओं के 600 गिने हुए फंडों में से लगभग 2.5 बिलियन डॉलर्स शामिल हैं, जबकि कुछ भारतीय स्टार्टअप्स के फंड SVB में बंधे हुए हैं. ये बातें चिंता का विषय नहीं होनी चाहिए.
एक, वे अपने धन का उपयोग कर सकते हैं क्योंकि US फेडरल सुनिश्चित करेगा कि बैंकिंग चलती रहे. दूसरा, SVB की ट्रेजरी इन्वेस्टमेंट्स में भारतीय इकाइयों का हिस्सा उनकी अपनी लिक्विडिटी इन्वेस्टमेंट्स से बहुत कम है. तीसरा, इन संस्थाओं के फंड पर अब सख्त और बेहतर रिस्क मैनेजमेंट सुनिश्चित करने के लिए उनके बोर्ड द्वारा पूछताछ की जाएगी. चौथा, एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक सहित अन्य भारतीय बैंकों ने GIFT सिटी में अपनी शाखाओं का उपयोग करते हुए इन स्टार्टअप्स के SVB खातों को अपनी शाखा में ट्रान्सफर करने के लिए प्रोडक्शन-माइग्रेशन ऑपरेशन की शुरुआत की है.
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जब आप सुविधा देने की बात कर रहे हैं तो सबसे कम संसाधनों वाले पैसेंजर्स को सबसे आगे रखें न कि सबसे ज्यादा एडवांटेज वाले पैसेंजर्स को.
Dr. Sandeep Goyal
Managing Director of Rediffusion
Chairman of the Mogae Group
पिछले कुछ महीनों में मुझे मेरे बाएं घुटने की वजह से मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा है. हालांकि मैं अपने ऑफिस और घर के रोजमर्रा के कामों को ठीक तरीके से पूरा कर पा रहा हूं लेकिन एयरपोर्ट पर लम्बी लाइनों के चलते और कभी-कभी एयरपोर्ट के गेटों तक की दूरी को तय करने के लिए मुझे व्हीलचेयर की जरूरत पड़ रही है. विभिन्न एयरलाइन्स द्वारा दी जाने वाली कस्टमर केयर सुविधाओं को जांचने के लिए व्हीलचेयर मेरा सबसे कीमती लिटमस टेस्ट बनकर सामने आया है. पिछले कुछ महीनों में मुझे समझ आया कि जरूरी नहीं है हंसती हुई एयर होस्टेस अच्छी कस्टमर केयर सुविधाएं भी दे पायें. एक असमर्थ दिव्यांग कस्टमर को सम्मान और क्षमता से हैंडल करना अच्छाई जांचने का ज्यादा बेहतर टेस्ट है.
Qantas एयरलाइन्स के साथ अनुभव
इससे पहले कि मैं आपको भारतीय एयरलाइन्स के साथ अपना व्हीलचेयर का किस्सा सुनाऊं, मैं आपको कुछ महीनों पहले अपनी ऑस्ट्रेलिया ट्रिप के बारे में बताकर शुरुआत करता हूं. पर्थ-सिडनी-केनबेरा-ब्रिसबेन की हमारी पूरी ट्रिप के दौरान हम क्वांटास एयरलाइन्स (Qantas Airlines) से यात्रा कर रहे थे. पूरे ऑस्ट्रेलिया में स्टाफ की कमी की वजह से हर बार क्वांटास एयरलाइन्स का स्टाफ हमें व्हीलचेयर के ढेर की तरफ इशारा करके भेज देता और मेरी बेटी बोर्डिंग गेट तक व्हीलचेयर धकेलकर मुझे ले जाती. मुझे यकीन है कि अकेले यात्रा कर रहे असमर्थ लोगों की सहायता के लिए उनके पास स्टाफ मौजूद रहा होगा, लेकिन क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहा था इसलिए मेरी व्हीलचेयर मेरे परिवार की अतिरिक्त जिम्मेदारी बन गयी. एयरलाइन का व्यवहार वास्तविक रूप से बहुत अलग और ऐसा था जैसे वह कह रहे हों – इतना काफी है कि हमने आपको व्हीलचेयर उपलब्ध करवाई है अब आप अपना जुगाड़ खुद करें. क्वांटास एयरलाइन्स को मैं 10 में 2 रेटिंग देना चाहूंगा.
सिंगापुर एयरलाइन्स का अनुभव
ऑस्ट्रेलिया की हमारी यात्रा के दौरान मुंबई-सिंगापुर-मुंबई क्षेत्र के लिए हम सिंगापुर एयरलाइन्स (SIA) से यात्रा कर रहे थे और हमें चांगी एयरपोर्ट से फ्लाइट बदलनी थी. सिंगापुर एयरलाइन्स की सुविधा बहुत ही अच्छी थी और स्टाफ हवाई जहाज के गेट पर मेरा इन्तजार कर रहा था. इतना ही नहीं, आते और जाते समय वह मुझे बिजनेस लाउन्ज से लेने भी आये थे. लेकिन वापस आते समय व्हीलचेयर अटेंडेंट ने मुझे एक गोल्फ कार्ट में ट्रान्सफर कर जिया जिसने मुझे सिक्योरिटी चेक पर उतार दिया लेकिन उसके बाद मुझे गेट तक ले जाने के लिए किसी प्रकार की मदद नहीं मिली. सिंगापुर एयरलाइन्स को मैं 10 में से 5 रेटिंग देना चाहूंगा.
इंडिगो के साथ कुछ ऐसा रहा अनुभव
भारत में सभी घरेलू यात्राओं के लिये मैं हमेशा इंडिगो एयरलाइन्स (Indigo) को ही चुनता हूं. पिछले 6 महीनों के दौरान मैं इंडिगो एयरलाइन्स से लगभग 20 बार यात्रा कर चुका हूं. इंडिगो एयरलाइन्स के पास एक वेंडर होता है जो व्हीलचेयर मुहैया करवाता है. वास्तिविकता में यह वेंडर हमेशा जल्दी में होता है और हमेशा इनके पास स्टाफ की कमी होती है. इतना ही नहीं, इनके पास हमेशा व्हीलचेयर की कमी होती है. भारतीय एयरलाइन बिजनेस में लगभग 50% शेयर इंडिगो के पास है लेकिन ऐसा लगता है जैसे अतिरिक्त व्हीलचेयर और पर्याप्त स्टाफ को हायर करने के लिए एयरलाइन इन्वेस्ट करने में हिचकिचाती है. एक बार आपको अगर व्हीलचेयर हैंडलर दे दिया जाता है तो सभी एयरपोर्ट्स में यात्रा काफी आरामदायक हो जाती है. हैंडलर्स केयरिंग, नम्र और कुशल होते हैं. इंडिगो एयरलाइन्स को मैं 10 में से 7.5 रेटिंग देना चाहता हूं.
एयर इंडिया है सबसे आगे
घरेलू यात्राओं के दौरान मेरा अब तक का सबसे अच्छा अनुभव एयर इंडिया के साथ रहा है. इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर इंडिया के पास इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर्स हैं जो बहुत आरामदायक होती हैं. ना कोई धक्का, न व्हीलिंग, बस बोर्डिंग गेट तक एक आरामदायक यात्रा. सिर्फ एक बार दिल्ली की यात्रा के दौरान ऐसा हुआ था कि मुझे बिजनेस लाउन्ज में छोड़कर हैंडलर अचानक गायब हो गया और मेरी बोर्डिंग करवाने की खातिर उसे ढूंढने के लिए लाउन्ज के स्टाफ को काफी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. एयर इंडिया को मैं 10 में से 8 रेटिंग देना चाहूंगा.
विस्तारा एयरलाइन्स का अनुभव
विस्तारा एयरलाइन्स से यात्रा करना हमेशा ही एक काफी अच्छा अनुभव होता है. लेकिन टाटा-सिंगापुर एयरलाइन्स के वेंचर वाली विस्तारा एयरलाइन्स में मेरा व्हीलचेयर का अनुभव हद से हद भी बस ठीक-ठाक ही रहा है. एक बार यात्रा के दौरान मैं भूल गया कि मैं किस क्षेत्र के लिए यात्रा कर रहा हूं और प्लेन को भी टर्मिनल की बिल्डिंग से काफी दूर पार्क किया गया था. इसका मतलब यह था कि, टर्मिनल तक जाने के लिए मुझे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ेगा. मुझे प्लेन की सीढ़ियों के अंत में मेरा व्हीलचेयर हैंडलर तो मिल गया लेकिन उसने मेरे साथ बस में यात्रा करने से मना कर दिया और कहा कि मुझे टर्मिनल के गेट पर कोई मिल जाएगा जो मेरी सहायता करेगा. लेकिन यह सिर्फ एक झूठा वादा भर था. मुझे टर्मिनल के गेट पर कोई व्हीलचेयर दिखाई तक नहीं दी. मैंने विस्तारा के कस्टमर केयर को मेल किया लेकिन कोई जवाब भी नहीं मिला. मैंने फिर से मेल किया तो मुझे एक ऑटोमेटेड मेल मिला कि मेरी कंप्लेंट प्राप्त हो गयी है लेकिन उसके बाद फिर से कोई जवाब नहीं आया. मेरी जिद में मैंने एक और मेल लिखा और एक ऑटोमेटेड बॉट ने मुझे हुई मुश्किलों के लिए मुआवजे के रूप में एक 500 रुपये का वाउचर दे दिया. कोई कॉल नहीं आया न ही गलती की माफ़ी मांगी गयी. विस्तारा एयरलाइन्स को मैं 10 में से 3 या 4 रेटिंग देना चाहूंगा.
अकासा एयर को करना पड़ रहा है शुरुआती मुश्किलों का सामना
अब तक का मेरा सबसे खराब अनुभव अकासा एयर के साथ रहा है. आप इसे नई एयरलाइन्स के लिए शुरुआती मुश्किलें कहें या एयरलाइन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का खराब स्टैण्डर्ड लेकिन अहमदाबाद में फ्लाइट लेते हुए एयरलाइन्स के साथ मेरे अनुभव को मैं C+ की कैटेगरी में रखना चाहूंगा. मेरा व्हीलचेयर हैंडलर बहुत बेचैन और जल्दी में था. शायद इसलिए भी क्योंकि प्लेन पहले से ही लेट था. हालांकि मुझे बहुत ज्यादा हैरानी हुई जब अकासा एयर के CEO विनय दुबे ने मुझे कॉल करके मेरा फीडबैक मांगा और साथ ही मुझे हुई मुश्किलों के लिए माफी भी मांगी. अकासा को मैं 10 में से 2 रेटिंग दूंगा और फ्लाइट के बाद विनय दुबे के कॉल के लिए 10 में से 10 रेटिंग दूंगा.
कुछ एवरेज तो कुछ शानदार अनुभव
मैंने स्पाइसजेट और गो एयर की बस एक फ्लाइट ली है और मेरा अनुभव काफी एवरेज रहा है इसलिए रेटिंग्स देना ठीक नहीं होगा. आखिर में मैं एमिरेट्स (Emirates) की बात करना चाहूंगा. दुबई में एमिरेट्स की कस्टमर सर्विस बहुत ही अच्छी थी. इतना ही नहीं मेरे इजिप्शियन हैंडलर ने 20 मिनट तक पार्किंग में रुककर तब तक इन्तजार किया जब तक मेरी कार मुझे लेने नहीं आ गयी. मैं एमिरेट्स को 10 में से 10 रेटिंग देना चाहूंगा.
सिर्फ अहमदाबाद एयरपोर्ट पर है यह सुविधा
एक चीज जो मुझे बहुत ज्यादा हैरान करती है और जिसपर DGCA (डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन) को भी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है वह ये कि आपको एयरपोर्ट टर्मिनल में बने एयरलाइन काउंटर पर खुद जाना पड़ता है और उसके बाद ही आपको व्हीलचेयर उपलब्ध करवाई जाती है. मेरे मामले में मैं किसी तरह से मैनेज कर पाया लेकिन बाकी लोगों को मोबिलिटी की कमी की वजह से समस्या हो सकती है. सिर्फ अहमदाबाद एयरपोर्ट में कार-ड्रॉप-ऑफ वाली जगह पर ही व्हीलचेयर काउंटर बना हुआ है जो सभी लिस्टेड यात्रियों को व्हीलचेयर की सुविधा प्रदान करता है. इसके साथ ही यह लोग बहुत कुशल और फुर्तीले भी हैं.
एयरलाइन्स को सीखना चाहिए ये पाठ
सभी एयरलाइन्स हंसती हुई एयर होस्टेस पर ज्यादा ध्यान देती हैं. मुझे विश्वास है कि कस्टमर सर्विस चेकलिस्ट पर व्हीलचेयर पैसेंजर्स बहुत ऊपर नहीं आते होंगे. सच कहूं तो अगर मैंने व्हीलचेयर का इस्तेमाल नहीं किया होता तो मैं भी इस बात की इतनी परवाह नहीं करता. मेरी छोटी से असमर्थता ने मुझे एक बहुत कीमती पाठ पढ़ाया है और मुझे लगता है एयरलाइन्स को भी यह बात समझनी चाहिए कि, जब आप सुविधा देने की बात कर रहे हैं तो सबसे कम संसाधनों वाले पैसेंजर्स को सबसे आगे रखें न कि सबसे ज्यादा एडवांटेज वाले पैसेंजर्स को.
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भारतीय शेयर बाजार पहले ही उच्च मूल्यांकन, तंग मौद्रिक स्थितियों और अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के कारण घाटे से जूझ रहा है.
अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) के बाद अब सिग्नेचर बैंक पर भी ताला लग गया है. ब्रिटेन में भी सिलिकॉन वैली बैंक ऑफ अमेरिका की यूके इकाई पर भी पिछले सप्ताह ताला लगा था, जिसे एचएसबीसी ने सिर्फ 1 पाउंड में खरीद लिया. अधिग्रहण की कीमत सिर्फ सिंबोलिक है, क्योंकि सिलिकॉन वैली बैंक का पूरा कर्ज सरकार समर्थित है. इससे डील के बाद एचएसबीसी को कोई कर्ज नहीं चुकाना होगा. दूसरी तरफ अमेरिका के सिग्नेचर बैंक के बंद होने से संकट और बढ़ गया है. इस बैंक के पास क्रिप्टोकरेंसी का भंडार था. सिग्नेचर बैंक बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों को कर्ज देता है. इसे फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन अधिग्रहण कर लिया. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और अन्य बैंक नियामकों ने एक संयुक्त बयान में कहा, 'करदाताओं को सिग्नेचर बैंक और सिलिकॉन वैली बैंक के किसी भी नुकसान का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा'. बावजूद इसके, इन बैंकों की तालाबंदी का असर भारतीय बैंकिंग सेक्टर से लेकर कैप मार्केट में दिखने लगा है. यह किस हद तक नुकसान को बढ़ाएगा, यह भविष्य की गर्त में है मगर आशंकायें चिंताजनक हैं.
अमेरिकी बैंको का असर दिखा भारतीय बाजार पर
अमेरिका की दोनों बैंकों की तालाबंदी का असर भारतीय शेयर बाजार में भी देखने को मिला. सप्ताह के पहले कारोबारी दिन सोमवार को सेंसेक्स 897 अंक गिरकर 58,237 पर बंद हुआ. वहीं निफ्टी में भी 257 अंकों की गिरावट आई है. सेंसेक्स के 30 में से 29 शेयर नुकसान के साथ बंद हुए. इस गिरावट से निवेशकों के 4 लाख करोड़ रुपये डूब गए. बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का टोटल मार्केट कैप 258.95 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. पिछले सप्ताह यह 262.94 लाख करोड़ रुपए था. निफ्टी में 50 में 45 शेयरों में गिरावट रही. निफ्टी-50 में इंडसइंड बैंक, एसबीआई, टाटा मोटर्स, एमएंडएम, अडानी पोर्ट्स, आयशर मोटर्स, एक्सिस बैंक, बजाज फिनसर्व समेत 45 शेयरों में गिरावट रही. केवल 4 स्टॉक टेक महिंद्रा, अपोलो हॉस्पिटल्स, ब्रिटानिया और ओएनजीसी आगे बढ़े. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में बैंकिंग संकट से यह स्पष्ट है कि केंद्रीय बैंक महंगाई पर काबू पाने की प्रक्रिया में मंदी की संभावना पर विचार नहीं कर रहे हैं. एसवीबी के ठप होने से भारतीय बैंकों और प्रौद्योगिकी क्षेत्र की चिंता भी बढ़ी हैं. अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था में आई दिक्कत का कुछ असर यहां भी देखा जा सकता है.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले ही बाजार हिला हुआ था मगर इन बैंकों के बंद होने से एक बार फिर वही स्थिति पैदा हुई है. एनएसई के सभी 11 सेक्टोरल इंडेक्स में गिरावट रही. सबसे ज्यादा 2.87 फीसदी की गिरावट पीएसयू बैंक सेक्टर में देखी गई. बैंक, ऑटो, मीडिया और निजी बैंक सेक्टर में भी 2 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है. वित्तीय सेवाएं और रियल्टी क्षेत्र भी 1 फीसदी से अधिक गिर गए. एफएमसीजी, आईटी, मेटल और फार्मा सेक्टर में भी मामूली गिरावट आई है.
सेबी की जांच के दायरे में कई कंपनियां
हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट के आने से पहले और बाद में शॉर्ट-सेलिंग के घरेलू और विदेशी दोनों तरह से लेनदेन को लेकर सेबी की निगरानी के दायरे में तकरीबन एक दर्जन से अधिक कंपनियां उसके दायरे में आ गई हैं. अदाणी समूह के शेयर मूल्यों में इजाफे की जांच करने वाला सेबी इन कंपनियों के कारोबारी आंकड़ों और कारोबार के स्वरूप की भी जांच कर रहा है, जो कथित रूप से शॉट-सेलिंग में शामिल रहीं और खासा मुनाफा कमाया. हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने के बाद से अदाणी समूह की सात सूचीबद्ध सूची के मूल्यों में लगभग 135 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है. ऐसे में सेबी यह जांच कर रही है कि क्या शॉर्ट-सेलिंग करने वाली कंपनियों को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की जानकारी पहले से थी? इस जांच में नतीजा कुछ भी निकले मगर नुकसान बाजार का हुआ. अब इन बैंकों की तालाबंदी ने संकट खड़ा कर दिया है. यह संकट आर्थिक मंदी की स्थिति में बाजार को कहां ले जाएगा? यह सवालों में है.
भारतीय बाजार से तरलता खत्म हो रही है
हम लगातार देख रहे हैं कि कैप बाजारों में जोखिम बढ़ रहे हैं, मगर इसमें बड़े कॉरपोरेट समूह में हुई बिकवाली अधिक रही है. अल्पावधि से मध्यावधि में, जोखिम अधिक बना रहेगा. भारतीय बाजार अतिरिक्त तरलता के कारण पिछले डेढ़ साल तेजी से बढ़ा था. अब यह तरलता खत्म हो रही है. हम गिरावट के बजाय कंसॉलिडेशन साफ दिख रहा है. हालांकि, तकनीकी तौर पर बाजार अल्पावधि से मध्यावधि में अनिश्चित बने रह सकते हैं, मगर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं. मंदी का खतरा मंडरा रहा है मगर भारत इससे निपटने में सामान्य तौर पर सक्षम है.र
भारतीय बैंकों के लिए नहीं है संकट
भारतीय रिजर्व बैंक इस संकट से निपटने के लिए घरेलू कंपनियों और बैंकों पर इन दोनों अमेरिकी बैंकों की तालाबंदी से पड़ने वाले असर का आकलन कर रहा है. बैंकिंग नियामक ने एसबीवी सहित अन्य वित्तीय जमा को लेकर सूचना हासिल कर रहा है. बैंकिंग नियामक इन अमेरिकी बैंकों में हमारे निवेशकों का ब्योरा हासिल करने में जुटा है. इसके साथ ही नियामक अमेरिका में बैंक के विफल होने के मद्देनजर देश की वित्तीय प्रणाली पर इसके असर का आकलन कर रहा है. कुछ भारतीय बैंकों का अमेरिका में भी परिचालन है. इनमें भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं. बैंकरों के मुताबिक भारतीय कंपनियों का अमेरिका के इन बैंकों में अधिक रकम नहीं लगी है. भारतीय बैंकों की तरलता पर्याप्तता है. इससे अधिक चिंतित होने का कोई कारण मौजूद नहीं है.
भारतीय बैंकों के लिए क्या है सीख
हम भी बैंकरों और अर्थ विशेषज्ञों की राय से इत्तेफाक रखते हैं. हमारा मानना है कि भारतीय बैंकों को इन अमेरिकी बैंकों से सबक लेना चाहिए कि वो जांच परखकर न सिर्फ कर्ज दें बल्कि अपने व्यवसाय को आगे बढ़ायें. वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना बैंकों की जिम्मेदारी है. ऐसे में उन्हें जमाकर्ताओं की पूंजी की सर्वोच्च सुरक्षा का एहसास कराने के साथ ही पूंजी वृद्धि पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है. पूंजी बाजार की दिशा और दशा को लेकर सतर्कता भी बेहद जरूरी है, जिससे हिंडनबर्ग जैसी रिपोर्ट बनाने की नौबत ही न आये. बहराल, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट निश्चित रूप से भारतीय पूंजी बाजार के लिए चिंता का विषय है. मौजूदा संकट के वक्त की स्थितियों को समझना बेहद जरूरी है, नहीं तो हमारे देश में भी कुछ ऐसे बैंक शिकार हो सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ विश्लेषक पत्रकार हैं.)
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जब कोई हमारी बात न माने, हमें चिढ़ा दे, हमारा अपमान कर दे या हमारा कोई नुकसान कर दे तो हमें गुस्सा आ जाता है.
मैं कई ऐसे ग्रुप्स में शामिल हूं, जिसके सदस्य वरिष्ठ पदों पर विराजमान हैं, या कंपनियों के मालिक हैं. मेरा अनुभव है कि ये वरिष्ठ, सफल और प्रतिष्ठित लोग भी तीन समस्याओं से परेशान हैं और वे समस्याएं हैं अपने जीवन से शिकायत, अचानक गुस्से का लावा फूट पड़ना और किसी प्रियजन को उसके लाभ की सलाह देने के बावजूद उसकी उपेक्षा या नाराज़गी मोल लेना.
बाकी सब भूल जाते हैं
अगर कभी हमारे किसी दांत में कीड़ा लगने के कारण जब वह दांत दर्द करने लगे तो मानो दिल, दिमाग और शरीर उसी दांत में सिमट जाते हैं. दर्द दे रहा दांत याद रहता है और हम बाकी सब कुछ भूल जाते हैं. तब हमें याद रखना चाहिए कि हमारे सभी दांत दर्द नहीं कर रहे और हमारा बाकी शरीर भी स्वस्थ है. जीवन की किसी एक समस्या से परेशान हों तो भी जीवन की दूसरी खुशियों को न भूलें और उन खुशियों का भरपूर आनंद लें.
गुस्सा आना स्वाभाविक है
हमारे गुस्से का भी यही हाल है. जब कोई हमारी बात न माने, हमें चिढ़ा दे, हमारा अपमान कर दे या हमारा कोई नुकसान कर दे तो हमें गुस्सा आ जाता है, पर बहुत बार ऐसा भी होता है कि हमें गुस्सा आया लेकिन हम अपना गुस्सा प्रकट नहीं कर पाते और चुपचाप गुस्सा पी जाते हैं. ऐसा जाने-अनजाने कई बार होता है. इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि हमें गुस्सा आया, हम फट पड़े और बाद में हमें पछताना पड़ा. कोई हमारा अपमान कर दे या नुकसान कर दे तो गुस्सा आना स्वाभाविक है, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि गुस्सा आना और गुस्सा दिखाना दो अलग-अलग बातें हैं, दो अलग-अलग क्रियाएं हैं?
गुस्सा होने की एक्टिंग
गुस्सा आया, इसका मतलब है कि हम गुस्से में हैं और गुस्सा हमें नियंत्रित कर रहा है. गुस्सा दिखाया, इसका मतलब है कि हमें गुस्सा आया या नहीं आया, आया भी तो हमने उसका विश्लेषण किया और अपने गुस्से पर काबू पाकर ऐसा अभिनय किया मानो हम गुस्से में हों. ऐसी स्थिति में हम अपने कंट्रोल में हैं, हम गुस्सा होने की एक्टिंग कर रहे हैं ताकि सामने वाले से मनचाहा काम करवा सकें. “गुस्सा आया” और “गुस्सा दिखाया” में यही अंतर है.
बेवजह की सलाह
इसी तरह कभी जब हमारा कोई प्रियजन किसी समस्या से दो-चार होता है तो हमारा बहुत मन होता है कि हम उसे सलाह दें ताकि वह उस समस्या से मुक्ति पा सके. इस उत्साह में कई बार हम पूरी पृष्ठभूमि जाने बिना सलाह दे डालते हैं, या बिना मांगे ही सलाह दे डालते हैं. अगर सचमुच किसी ने हमसे सलाह मांगी तो भी हमारा रुख क्या होता है? अक्सर हम पूरी स्थिति समझे बिना फटाफट सलाह दे डालते हैं और उससे बात बिगड़ जाती है. हम सामने वाले का भला चाहते हैं लेकिन हम इस ढंग से काम नहीं करते कि हमारा रुख उसे पसंद आये. यही स्थिति तब होती है जब हम अपनी कोई बात किसी को समझाना चाहें, मनवाना चाहें तो हमारा रुख क्या होना चाहिए? यह एक आम समस्या है जिससे हम रोज़ ही दो-चार होते हैं. इस समस्या से पार पाने का तरीका यह है कि हम सवाल पूछें, ज्यादा सवाल पूछें और अंतत: सवालों के ही माध्यम से सामने वाले को उस स्थिति तक ले आएं, जहां या तो उसे अपनी समस्या का समाधान मिल जाए या वह हमारी बात से सहमत हो जाए.
ये है आदर्श स्थिति
जब हम बिना कोई सुझाव दिये सिर्फ सवाल पूछते चलते हैं और सामने वाले को इस स्थिति पर ले आते हैं कि उसे ही हल सूझ जाए तो वह आदर्श स्थिति है क्योंकि सामने वाले को यह नहीं लगता कि हमने उस पर कोई निर्णय या हल थोप दिया, बल्कि उसे लगता है कि वह हल उसने खुद ढूंढ़ा. ऐसे किसी हल को जीवन में उतारना उनके लिए आसान हो जाता है. सफलता के इन तीनों मंत्रों को अपना लें तो हमारा जीवन सुखमय हो जाता है.
अर्थशास्त्री रघुराम राजन और एसबीआई सहित कुछ अर्थशास्त्रियों की बात से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर अपेक्षित नहीं है और बेहद कम है.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर और दुनिया के नामचीन अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और नीतियों को लेकर कहा कि मौजूदा दौर में यह अर्थव्यवस्था 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' पर चल रही है. धीमी विकास दर को जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्ण 1978 में 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' का नाम दिया. तब से यह वाक्य आर्थिक जगत में जुमले के तौर पर प्रयोग किया जाता है. 1950-80 के दौर में सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश की औसतन सालाना आर्थिक विकास दर 3.5 फीसदी पर अटक जाती थी. मौजूदा वक्त में भी पिछली तीन तिमाहियों में लगातार विकास दर गिरी है. इस पर अर्थशास्त्री राजन ने कहा कि अभी निजी क्षेत्र का निवेश कम हो रहा है. कर्ज पर ब्याज दरें बहुत बढ़ गई हैं. वैश्विक स्तर पर विकास दर काफी खराब है. ऐसे में 2022 के दौरान तीनों तिमाहियों के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल तीसरी तिमाही में विकास दर घट कर 4.4 फीसदी पर आ गई है. इससे दूसरी तिमाही में विकास दर 6.3 फीसदी थी और पहली तिमाही में 13.2 फीसदी. इससे साफ है कि भारत की विकास दर लगातार गिरती जा रही है, जबकि यूपीए1 (डॉ मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में) साल 2004 से 2009 के बीच देश की आर्थिक विकास दर (GDP) औसतन 9 फीसदी के आस-पास रही थी.
कोर क्षेत्र में भी उत्पादन गिरा
भारत में खपत कम होने से मांग घटी है जिससे, कोर क्षेत्र में भी उत्पादन गिरा है. निर्यात घटना और रुपए का अवमूल्यन होना चिंताजनक है. इन हालात में भी आरबीआई के स्तर पर ब्याज दरें आक्रामक तौर पर बढ़ाने से नकारात्मक माहौल बनता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर पर बाहरी वातावरण को प्रभावित करने की दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाए गए हैं. इसे देखते हुए संभावित विकास दर की मंदी के बारे में चिंतित होना लाजिमी है. हालांकि, आरबीआई ने 2023-24 के लिए 6.4 फीसदी के विकास का अनुमान लगाया है, यह आंकड़ा कुछ आशावादी दिखाई देता है. 2023-24 की पहली और दूसरी तिमाही में विकास दर के क्रमशः 7.8 फीसदी और 6.2 फीसदी के आरबीआई के अनुमान से कम रहने की संभावना है. इस पर राजन का मानना है कि आने वाली तिमाहियों में विकास दर 4 फीसदी से नीचे आ जाएगी. यह भी सच है कि भारत में विकास दर G20 देशों में सबसे अधिक है. इस समूह के कई अन्य देश मंदी या कर्ज संकट के कगार पर हैं. ऐसे में राजन के आंकलन पर सवाल उठना लाजिमी है.
सेबी की भूमिका पर सवाल
रघुराम राजन ने अडानी समूह से जुड़े मामले में बाजार नियामक सेबी पर सवाल खड़े किए हैं. राजन ने अभी तक मॉरीशस स्थित संदिग्ध फर्मों के स्वामित्व के बारे में कोई पड़ताल नहीं करने पर भारतीय शेयर बाजार रेगुलेटर सेबी पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है कि हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए, उसकी जांच करने की सेबी ने जरूरत क्यों नहीं समझी? ये बड़ा मुद्दा है. राजन ने कहा, ‘आशावादी निश्चित ही पिछले जीडीपी आंकड़ों में किए गए सुधार की बात करेंगे लेकिन मैं क्रमिक नरमी को लेकर चिंतित हूं. निजी क्षेत्र निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं है, आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है और वैश्विक वृद्धि के आने वाले समय में और धीमा पड़ने के आसार हैं. ऐसे में मुझे नहीं मालूम कि वृद्धि किस तरह रफ्तार पकड़ेगी.’ उन्होंने सरकारी आंकड़ों पर चर्चा करते हुए कहा कि आगामी वित्त वर्ष (2023-24) में भारत की वृद्धि दर, पांच फीसदी भी हासिल हो जाए तो यह हमारी खुशनसीबी होगी. अक्टूबर-दिसंबर के जीडीपी आंकड़े बताते हैं कि साल की पहली छमाही में वृद्धि कमजोर पड़ेगी. यही वजह है कि ‘‘मेरी आशंकाएं बेवजह नहीं हैं. आरबीआई ने तो चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में और भी कम 4.2 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान जताया है. इस समय, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही की औसत वार्षिक वृद्धि तीन साल पहले की तुलना में 3.7 फीसदी है. यह पुरानी 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' के बहुत करीब है और यह डराने वाली बात है. हमें इससे बेहतर करना होगा.’
बचत के आंकड़ों के खिलाफ
इस पर एसबीआई रिसर्च ने कहा कि राजन का आंकलन दुर्भावनापूर्ण, पक्षपातपूर्ण और अपरिपक्व है. जब देश आगे बढ़ रहा है तब भारत की अर्थव्यवस्था को 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' की तरफ बढ़ रहा है, कहना निवेश और बचत के आंकड़ों के खिलाफ है. एसबीआई के इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी की तिमाही विकास में गिरावट का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. चुनिंदा तिमाहियों के आधार पर यह तर्क दिया जाना कि भारत हिंदू ग्रोथ रेट (3.5-4 फीसदी) की ओर जा रहा है, कहना गलत होगा. एसबीआई रिसर्च का तर्क है कि कुल सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का संस्थागत हिस्सा वित्त वर्ष 12 से जीडीपी के क्रमशः लगभग 10 प्रतिशत और 34 प्रतिशत पर लगभग स्थिर रहा है. कुछ अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं कि तिमाही जीडीपी की विकास संख्या अस्थिर होती है. इसका उपयोग विकास को लेबल करने के लिए नहीं किया जा सकता है. 2022-23 की तीसरी तिमाही में पिछले वर्ष की इसी तिमाही की संख्या में ऊपर की ओर संशोधन के कारण कम वृद्धि दर्ज की गई.
तो हालात और भी खराब होंगे
अर्थशास्त्री रघुराम राजन और एसबीआई सहित कुछ अर्थशास्त्रियों की बात से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर अपेक्षित नहीं है और बेहद कम है. देश के पूंजीबाजार और हालात को देखकर हम इस आशंका से बाहर नहीं हो सकते कि अगर नीतियां आम नागरिक और कामगार को उपेक्षित करके चंद पूंजीपतियों के इर्दगिर्द घूमती रहीं, तो हालात और भी खराब होंगे. निश्चित रूप से सरकार को उन आशंकाओं का सकारात्मक जवाब देना चाहिए और वो होते हुए भी दिखना चाहिए. दुखद यह है कि इन सकारात्मक टिप्पणियों को भी नकारात्मक राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, जो हमारे लिए घातक है. आत्मनिर्भर बनाने के लिए आमजन के पास जरूरत की पूंजी पहुंचना और अधिक से अधिक योग्यतानुसार रोजगार पैदा करना हमारी बड़ी जरूरत है. उसके लिए पूंजी लाने का माहौल बनाने के बारे में काम करना चाहिए, न कि राष्ट्रीय पूंजी और संपत्तियों को चंद पूंजीपतियों के हाथों में सौंप देना चाहिए. एक स्वस्थ वाणिज्यिक-कारोबारी प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाने की जरूरत है.
'Zee एक ऐसा नाम है, जिस पर भारतीय निवेशक अपना विश्वास प्रदर्शित करते आए हैं. लिहाजा, मुझे लगता है कि नई एंटिटी के नाम में जी और सोनी दोनों का उल्लेख अच्छा रहेगा'.
मैंने अक्सर लोगों से पूछा है कि क्या वे 5 मिलियन डॉलर के लिए अपना नाम बदलेंगे? इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि क्या आपने सवाल किसी ऐसे व्यक्ति से पूछा है जिसके बैंक में पहले से ही 50 मिलियन डॉलर या उससे अधिक हैं और उसने एक पर्सनल ब्रैंड बनाया है. नाम हमारी पहचान है. जीवन भर लोग हमें हमारे नाम से जानते हैं. नाम हमारा ब्रैंड है. नाम अपेक्षाओं को निर्धारित करता है, संबंध विकसित करता है और उन्हें कायम रखता है.
लगातार किया अच्छा प्रदर्शन
मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में देश का सबसे बड़ा विलय यानी मर्जर Sony और Zee के बीच पूरा होने वाला है. सोनी और जी दोनों की अपनी अलग पहचान है. दोनों बड़े ब्रैंड के रूप में दर्शकों के बीच स्थापित है. Zee स्टॉक मार्केट में भी एक बड़ा ब्रैंड है और लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. ऐसे में सोनी-जी के मर्जर का मतलब है एक व्यापक रूप से बड़ी मीडिया एवं मनोरंजन कंपनी का उदय.
1982 में हुई थी स्थापना
मैंने पहले भी लिखा है कि मर्जर सभी हितधारकों, दर्शकों, विज्ञापनदाताओं और ओमनी-ब्रॉडकास्टिंग इकोसिस्टम के लिए एक अच्छी बात है. लेकिन करोड़ों रुपए का सवाल यह है कि सोनी और जी के विलय से बनने वाले नई इकाई यानी एंटिटी का नाम क्या होगा? Zee एक विशाल उपभोक्ता ब्रैंड है, भारत और उसके दर्शकों का गौरव है. Zee की स्थापना 25 नवंबर, 1982 को हुई थी, और यह अपने जीवनकाल के 31वें वर्ष में है. मुझे यह बताना चाहिए कि इस विलय के बाद के बाद, जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज (Zee Entertainment Enterprises) का एक नई एंटिटी में विलय हो जाएगा.
दो महत्वपूर्ण सवाल
तो, यहां दो प्रश्न हैं: पहला- क्या नई एंटिटी के लिए कोई नया नाम तय किया जाएगा? उत्तर है, हां. दूसरा इससे भी बड़ा सवाल यह है कि नया नाम क्या होगा? मैं करीब 4 सप्ताह पहले Madison World और Madison Communications के फाउंडर एवं चेयरमैन सैम बलसारा के एनुअल डिनर में Sony Pictures Networks के MD और सीईओ एनपी सिंह से मिला और उनसे यही सवाल पूछा, लेकिन क्लासिक एनपी की तरह, वह खामोश रहे और केवल इतना कहा, 'हम इस विचार कर रहे हैं'. इसकी संभावना काफी ज्यादा है कि इस एंटिटी को कोई नया नाम दिया जाए. सोनी पिक्चर्स की भारतीय इकाई Culver मैक्स एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड है. मुझे यकीन है कि आप इससे परिचित नहीं होंगे, फिर भले ही आप इंडस्ट्री लीडर क्यों न हों. यदि सीनियर एग्जीक्यूटिव और इंडस्ट्री लीडर होने के बावजूद आपको यह नहीं पता, तो उपभोक्ता इससे कैसे जुड़ाव महसूस कर पाएंगे?
इस कंपनी के नाम पर है 'नाम'
1995 से 2007 तक, सोनी पिक्चर्स की भारतीय इकाई को SET इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कहा जाता था और फिर 2007 से 2015 तक सोनी पिक्चर्स की 'इंडिया आर्म को मल्टी स्क्रीन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड कहा गया. Culver मैक्स एंटरटेनमेंट 26 टेलीविजन चैनलों, स्ट्रीमिंग मीडिया प्लेटफॉर्म सोनी लिव, साथ ही टेलीविजन स्टूडियो 'स्टूडियो नेक्स्ट' और फिल्म स्टूडियो सोनी पिक्चर्स इंटरनेशनल स्टूडियो, का प्रबंधन और संचालन करता है. अप्रैल 2022 में, SPN ने अपना कॉर्पोरेट नाम बदलकर Culver Max Entertainment रख लिया था. इसका नाम उस वैनिटी प्रोडक्शन कंपनी के नाम और लोगो से लिया गया है, जिसका इस्तेमाल सोनी /मार्वल एनिमेटेड सीरीज ‘The Spectacular Spider-Man’ के लिए किया जाता है.
पिछले साल हुई थी रीब्रैंडिंग
नाम का उपयोग विशेष रूप से होल्डिंग कंपनी द्वारा सोनी पिक्चर्स नेटवर्क के साथ किया जाता है, जिसे कंज्यूमर-फेसिंग ब्रैंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहेगा. मुझे यकीन है आपने ध्यान दिया होगा कि 24 अक्टूबर, 2022 को, सोनी नेटवर्क के लगभग सभी चैनल एक नए रूप में सामने आए थे. उनकी दिवाली से मेल खाने वाले अंदाज में रीब्रैंडिंग की गई. इसके तहत क्रॉप्ड ‘S' वाले उस लोगो को बदला गया, जिसका उपयोग इसके लॉन्च के बाद से SET द्वारा किया जा रहा था. सोनी टेलीविजन नेटवर्क द्वारा दुनियाभर में 2019 से S कर्व वाला लोगो टेम्पलेट इस्तेमाल किया जा रहा था. सबसे पहले SonyLIV पर यह देखने को मिला था.
खुद को काफी मजबूत किया
मुझे लगता है आप जानते होंगे कि सोनी पिक्चर्स का मुख्यालय Culver City, कैलिफोर्निया, अमेरिका में है. इसीलिए इसका नाम Culver मैक्स एंटरटेनमेंट रखा गया है. एनपी सिंह, नितिन नादकर्णी और अशोक नांबिसन इसके प्रमुख कर्ताधर्ताओं में शामिल हैं. सिंह जहां Sony Pictures Networks के MD और सीईओ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. वहीं, नादकर्णी इसके CFO और नांबिसन जनरल काउंसल हैं. सोनी एक बहुत बड़ा ब्रैंड है और भारत में पिछले 27 सालों में इसने खुद को काफी मजबूत किया है. ऐसे में बात घूमकर फिर उसी सवाल पर आ जाती है कि Zee-Sony के मर्जर से बनने वाली एंटिटी का नाम क्या होगा? मैं भी इस सवाल का जवाब नहीं जानता, हमें अगले कुछ हफ्तों में पता चल ही जाएगा. हालांकि, मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि Zee एक ऐसा नाम है, जिस पर भारतीय निवेशक अपना विश्वास प्रदर्शित करते आए हैं. लिहाजा, मुझे लगता है कि नई एंटिटी के नाम में जी और सोनी दोनों का उल्लेख अच्छा रहेगा. Zee भारत में एक बहुत बड़ा ब्रैंड है, जिसमें शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण भारत शामिल है. जी पिछले तीन दशकों से भारत में है, और यहां उसकी उपस्थिति सोनी की तुलना में कुछ ज्यादा पहले से है.
क्या इनके नाम भी बदलेंगे?
तो क्या नई एंटिटी का नाम Sony-Zee होना चाहिए? यह दोनों के लिए ही बेस्ट रहेगा. एक और सवाल यह है कि क्या प्लेटफॉर्म्स, चैनलों और आईपी के नाम बदल दिए जाने चाहिए? इस मामले में मैं सहानुभूतिपूर्वक कह सकता हूं कि उपभोक्ताओं, दर्शकों का इन बड़े ब्रैंड और प्लेटफॉर्म्स से एक खास रिश्ता है, इसलिए ब्रैंड फ्रेंचाइजी को बरकरार रखना अच्छा होगा. पिछले 3 दशकों में, जी और सोनी दोनों ने दर्शकों के बीच खुद की पहचान बनाने में काफी कुछ निवेश किया है और इसलिए मुझे लगता है Zee और Sony के नाम पर दर्शकों का जो भरोसा है, उसी को ध्यान में रखते हुए नई एंटिटी का नाम रखा जाना चाहिए. मार्च शुरू हो चुका है और मर्जर को मार्च के आखिरी या अप्रैल तक पूरा करना होगा. निश्चित रूप से पहली तिमाही में, और मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही पूरा हो जाएगा.
तब तक देखें कि Culver Max Entertainment और Zee Entertainment Enterprises मर्जर से जन्म लेने वाली नई इकाई के नामकरण पर क्या फैसला लेते हैं. हालांकि, मुझे यकीन है कि यह एक ऐसा नाम होगा, जो जी और सोनी के दोनों मजबूत ब्रैंड्स पर आधारित होगा.
(लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं. लेखक दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया पर लिख रहे हैं. )