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रुपये की गिरावट पर इतना हो-हल्ला क्यों? दूसरे देशों की करेंसीज के हाल तो जान लीजिए
रुपए में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है. रुपया आज डॉलर के मुकाबले 79.58 डॉलर तक लुढ़क गया है. डॉलर इंडेक्स भी अब 108.3 की ऊंचाई तक पहुंच चुका है, जो कि अक्टूबर 2002 के बाद सबसे ऊंचा लेवल है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली: ये सौ आने सच है कि रुपये की सेहत काफी लंबे समय से पतली चल रही है. आज डॉलर की कदकाठी के आगे रुपया 79.58 प्रति डॉलर तक कमजोर हो चुका है. जबकि डॉलर इंडेक्स 20 साल की नई ऊंचाई पर जा पहुंचा है. डॉलर इंडेक्स 108.3 की ऊंचाई पर जा पहुंचा है, जो कि अक्टूबर 2002 के बाद सबसे ऊंचाई स्तर है. डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 करेंसीज का एक बास्केट है. अब समझने वाली बात ये है कि डॉलर इंडेक्स की मजबूती यूरो में आई गिरावट की वजह से है न कि रुपये की वजह से. यूरो में गिरावट है क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि यूरोप में एनर्जी संकट खड़ा होने वाला है.
बाकी देशों की करेंसी भी कमजोर
इसमें कोई दो राय नहीं कि कमजोर रुपये का असर आम आदमी की जेब से लेकर देश की पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. इस पहलू से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है जिसे 'कमजोर रुपये' के शोर के बीच समझने की जरूरत है. रुपया अकेला नहीं है जो बीते एक साल में लगातार कमजोर हुआ है. अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो बाकी देशों की करेंसीज रुपये के मुकाबले ज्यादा टूटी हैं. साल 2022 के शुरुआती 6 महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 6.5 परसेंट कमजोर हुआ है, जबकि यूरो 16 परसेंट, जापानी येन 23 परसेंट और ब्रिटिश पाउंड 15 परसेंट तक कमजोर हुए हैं. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान की करेंसीज की सेहत भी बिगड़ी है.
ग्लोबल कारणों का असर
इसलिए सिर्फ रुपये को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड कमजोर बताना, ये कहानी का एक ही पहलू है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इसी बात को समझाने की कोशिश की है. वित्त मंत्री ने कहा था कि दुनिया भर में जो भी घटनाक्रम चल रहे हैं, उसका असर हम पर भी पड़ेगा, क्योंकि हम भी ग्लोबल इकोनॉमी का हिस्सा है. रुपये और डॉलर की वैल्यू डिमांड-सप्लाई पर चलती है. यानी अगर रुपये के मुकाबले डॉलर की डिमांड ज्यादा है तो रुपये कमजोर होगा. रुपये की कमजोरी के पीछे कई ग्लोबल वजहे हैं, जैसे- रूस और यूक्रेन की जंग, कोरोना महामारी की वजह से पैदा हुई आर्थिक चुनौतियां और महंगा कच्चा तेल.
डिमांड-सप्लाई का गेम
अगर भारत एक्सपोर्ट से ज्यादा इंपोर्ट करता है तो डॉलर में उसका पेमेंट करता है, यानी डॉलर की डिमांड बढ़ती है, ऐसे में रुपये कमजोर होता है. पिछले महीने जून में
देश का व्यापार घाटा 25.6 बिलियन डॉलर की नई ऊंचाई पर पहुंच गया, जो कि मई में 24.3 बिलियन डॉलर था. व्यापार घाटा बढ़ने की सबसे बड़ी वजह थी कि भारत ने कच्चा तेल और कोयले का बंपर इंपोर्ट किया. इसके अलावा विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी 30 बिलियन डॉलर की इस साल बिकवाली की है, जबकि साल 2008 की ग्लोबल मंदी में FIIs ने 11.8 बिलियन डॉलर की ही बिकवाली की थी. ऐसा दुनिया भर में हो रहा है. जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कमजोर हो रही हैं तो वहां के निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं और अमेरिका की कड़ी मॉनिटरी पॉलिसी पर भरोसा जता रहे हैं, जिससे डॉलर मजबूत हो रहा है. इसलिए बेहतर होगा कि रुपये की रिकॉर्ड गिरावट पर हो-हल्ला मचाने की बजाय उसके कारणों को समझा जाए और उस पर काम किया जाए.
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