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भारत करेगा गेंहूं का आयात! पीएम मोदी का 'पूरे विश्व को खिलाने का विजन' हो सकता है फेल
चार महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन-रूस युद्ध के संकट को देखते हुए पूरे विश्व को खिलाने के लिए तैयार होने का ऐलान किया था.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्लीः चार महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन-रूस युद्ध के संकट को देखते हुए पूरे विश्व को खिलाने के लिए तैयार होने का ऐलान किया था. हालांकि अब सरकार दुनिया के बजाए भारत में ही गेहूं की मांग की पूर्ति करने के लिए इसके आयात पर विचार कर रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में गेहूं का भंडार 14 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.
गेहूं महंगा भी हो गया
अनाज की कमी के बीच अभी गेहूं की कीमत देश की विभिन्न मंडियों में 10-16 फीसदी तक बढ़ गई है. सबसे अच्छा माना जाने वाला एमपी का शरबती गेहूं का भाव भी 2500 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है. कमजोर उत्पादन के चलते गेहूं महंगा बिक रहा है और सरकारी खरीद भी इस बार न के बराबर रही है.
इस साल मार्च में शुरू हुई रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी ने भारतीय गेहूं के उत्पादन को खतरे में डाल दिया, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में कटौती हुई, दाना कमजोर हुआ और स्थानीय कीमतों में तेजी आई. नान और रोटी जैसे मुख्य खाद्य पदार्थ बनाने के लिए गेहूं का उपयोग करोड़ों भारतीय रोजाना करते हैं. ऐसे में इनकी रोजमर्रा की जिंदगी और अधिक महंगी हो गई है.
मई में लगा दिया था निर्यात पर प्रतिबंध
गेहूं की बंपर फसल होने का हवाला देते हुए, सरकार ने मई के मध्य में निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था. भारतीय खाद्य निगम के अनुसार, अगस्त में भंडार 14 साल में महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गया है. भारत अधिक आयात के माध्यम से अपनी घरेलू गेहूं की आपूर्ति को बढ़ाने पर विचार कर रहा है. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक होने के बावजूद भारत कभी भी एक प्रमुख निर्यातक नहीं रहा है आयात पक्ष पर, इसकी विदेशी खरीद सालाना उत्पादन का लगभग 0.02% थी.
इतनी है 2021-22 में गेहूं की पैदावार
अधिकारियों के अनुसार, 2021-22 में गेहूं की फसल लगभग 107 मिलियन टन होने वाली है, जो फरवरी के 111 मिलियन के अनुमान से कम है. हालांकि, व्यापारियों और आटा मिलों ने 98 मिलियन से 102 मिलियन टन का अनुमान लगाया है. खाद्य मंत्रालय के अनुसार, सरकार द्वारा गेहूं का आयात 2021 के आधे स्तर से भी कम रहने की उम्मीद है.
इस बीच गेहूं की मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़कर 11.7% हो गई और थोक कीमतों में जुलाई में 13.6% और भी अधिक वृद्धि हुई है. ऐसे में सरकार के पास कीमतों में कमी करने और गेहूं की आपूर्ति को बाजार में बरकरार रखने के लिए आयात करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है.
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