अडानी पोर्ट्स और पतंजलि फूड्स ने तिमाही नतीजे जारी कर दिए हैं. दोनों कंपनियों के प्रॉफिट में उछाल आया है.
गौतम अडानी (Gautam Adani) की कंपनी अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक और बाबा रामदेव (Baba Ramdev) की कंपनी पतंजलि फूड्स अपने निवेशकों को खुश करने वाली हैं. दरअसल, दोनों ही कंपनियों के प्रॉफिट में उछाल आया है और इससे उत्साहित ये कंपनियां अपने इन्वेस्टर्स को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर डिविडेंड देने वाली हैं. पतंजलि फूड्स द्वारा जारी किए गए मार्च तिमाही के नतीजों के अनुसार, कंपनी का प्रॉफिट 13% की वृद्धि के साथ 264 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. पिछले वर्ष की समान अवधि में कंपनी का प्रॉफिट 234 करोड़ था.
कंपनी के रिवेन्यु में इजाफा
पतंजलि फूड्स (Patanjali Foods) को परिचालन से मिलने वाले राजस्व में भी 18% की वृद्धि हुई है और यह बढ़कर 7,873 करोड़ रुपए हो गया है. एक वर्ष पहले की इसी तिमाही में यह आंकड़ा 6,664 करोड़ था. नतीजों से उत्साहित कंपनी के बोर्ड ने मार्च 2023 को समाप्त वित्तीय वर्ष के लिए प्रत्येक 2 रुपए के फेस वैल्यू पर 6 रुपए के डिविडेंड की सिफारिश की है. बाबा रामदेव की इस FMCG कंपनी ने मार्च तिमाही में 416 करोड़ रुपए का EBITDA दर्ज किया है. खाद्य और FMCG सेगमेंट से मिलने वाला रिवेन्यु तीन गुना बढ़कर 1,805 करोड़ रुपए हो गया है. जबकि एक साल पहले यह 452 करोड़ रुपए था. Patanjali Foods के शेयरों की बात करें, तो यह 1,021 रुपए पर कारोबार कर रहे हैं.
प्रॉफिट में 5.1% का उछाल
वहीं, Adani Ports and Special Economic Zone Ld ने मार्च तिमाही के नतीजे अच्छे रहे हैं. इस तिमाही में कंपनी का नेट प्रॉफिट 1,158.88 करोड़ रुपए रहा, जो एक साल पहले इसी अवधि में 1,102.61 करोड़ था. इस तरह इसमें 5.1% से ज्यादा का उछाल आया है. कंपनी के राजस्व में भी 40% की मजबूत तेजी देखी गई है. अडानी पोर्ट्स ने EBITDA में भी 59% की बढ़ोतरी दर्ज की है, यह करीब 3270 करोड़ रुपए रहा है. इसके साथ ही कंपनी का मार्जिन भी Q4FY23 में बढ़कर 56.4 प्रतिशत हो गया, जो Q4FY22 में 49.7% था. नतीजों से उत्साहित कंपनी के बोर्ड ने 5 रुपए प्रति शेयर डिविडेंड देने की सिफारिश की है, जो फेस वैल्यू के आधार पर यह करीब 250% है. हालांकि, इसके लिए आगामी वार्षिक आम बैठक में शेयरधारकों की मंजूरी जरूरी है. अडानी पोर्ट्स का शेयर 734 रुपए पर ट्रेड कर रहा है और मंगलवार को गिरावट के साथ बंद हुआ था.
एक ओर जहां ओला फाइनेंस पर तीन मामलों में 87 लाख रुपये की कार्रवाई हुई तो वहीं दूसरी ओर मणप्पुरम फाइनेंस पर 41.50 लाख रुपये की कार्रवाई हुई है.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नियमों का पालन न करने वाले बैंकों पर कार्रवाई करने में देरी नहीं लगा रहा है. पेटीएम से लेकर आईआईएफएल जैसी फाइनेंस कंपनियों पर कार्रवाई करने के बाद अब आरबीआई के रडार में तीन और कंपनियां आ गई हैं. इसी कड़ी में अब आरबीआई ने ओला फाइनेंशियल सर्विसेज, वीजा और मणप्पुरम फाइनेंस जैसी कंपनियों पर कार्रवाई कर दी है. इन कंपनियों पर आरबीआई का चाबुक नियमों का पालन न करने को लेकर चला है. आरबीआई ने इन पर जुर्माना भी लगाया है.
ओला फाइनेंस पर हुई सबसे बड़ी कार्रवाई
आरबीआई ने ओला फाइनेंशियल पर 87.50 लाख रुपये से ज्यादा का जुर्माना लगाया है. कंपनी के ऊपर तीन मामलों में कार्रवाई की गई है इनमें एक मामले में 33.40 लाख रुपये का जुर्माना केवाईसी प्रावधानों का पालन न करने को लेकर लगाया गया है. जबकि पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम से जुड़े प्रावधानों का पालन न करने के लिए 54.15 लाख रुपये का जुर्माना किया गया है.
ये भी पढ़ें: नीति आयोग की बैठक में ऐसा क्या हुआ कि छोड़कर चली गई ममता बनर्जी, PIB ने दिया जवाब
मणप्पुरम फाइनेंस पर दूसरी बड़ी कार्रवाई
एक ओर जहां ओला फाइनेंस पर तीन मामलों में 87 लाख रुपये की कार्रवाई हुई तो वहीं दूसरी ओर मणप्पुरम फाइनेंस पर 41.50 लाख रुपये की कार्रवाई हुई है. मणप्पुरम फाइनेंस पर केवाईसी के नियमों का सही से पालन न करने को लेकर कार्रवाई की गई है. इन्हीं कारणों के चलते आरबीआई की ओर से मणप्पुरम फाइनेंस पर कार्रवाई की गई है और इतना बड़ा जुर्माना लगाया गया है.
वीजा पर हुई सबसे बड़ी कार्रवाई
मल्टीनेशनल कंपनी वीजा के ऊपर भी आरबीआई ने बड़ी कार्रवाई की है. वीजा के ऊपर ये कार्रवाई आरबीआई की ओर से इसलिए की गई क्योंकि उसने अनुमति के बिना पेमेंट ऑथेंटिकेशन सॉल्यूशन को एक्टिवेट किया. वहीं आरबीआई की ओर से की गई इस कार्रवाई पर टिप्पड़ी करते हुए कहा कि वो सभी नियमों का सम्मान करती है और उनका पालन करती है. वीजा फाइनेंस की ओर से कहा गया है कि वो भविष्य में सभी नियमों का पालन करेगी.
इलेक्ट्रिक परिवहन प्रोत्साहन योजना (EMPS) को इस साल मार्च में भारी उद्योग मंत्रालय ने शुरू किया था. इसका उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है.
अगर आप इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपके लिए ये एक अच्छा मौका है. दरअसल, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इलेक्ट्रिक परिवहन प्रोत्साहन योजना (Electric Mobility Promotion Scheme-EMPS) को 2 महीने आगे बढ़ा दिया है. आपको बता दें, ये योजना 1 अप्रैल 2024 से 31 जुलाई, 2024 तक के लिए लागू की गई थी, जिसका कुल खर्च 500 करोड़ रुपये था. वहीं, अब सरकार ने योजना को आगे बढ़ाने के साथ इसके कुल खर्च को भी बढ़ा दिया है. तो आइए जानते हैं इस योजना से आपको आपको कैसे लाभ मिलेगा?
सरकार ने बढ़ाया कुल खर्च
केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक परिवहन प्रोत्साहन योजना (Electric Mobility Promotion Scheme-EMPS) का कुल खर्च बढ़ाकर 778 करोड़ रुपये कर दिया है. इस योजना को इस साल मार्च में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने शुरू किया था. इसका उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है.
5 लाख से ज्यादा ईवी को सब्सिडी में मदद
योजना का लक्ष्य अब 5,60,789 इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को सब्सिडी सहायता प्रदान करना है, जिसमें 500,080 इलेक्ट्रिक दोपहिया (ई-2डब्ल्यू) और 60,709 इलेक्ट्रिक तिपहिया (ई-3डब्ल्यू) शामिल हैं. इसमें 13,590 रिक्शा और ई-कार्ट, साथ ही एल5 श्रेणी में 47,119 ई-3डब्ल्यू शामिल हैं. उन्नत प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन केवल अपग्रेड बैटरी से सुसज्जित इलेक्ट्रिक वाहन के लिए उपलब्ध होंगे.
इन्हें मिलेगा योजना का लाभ
योजना के तहत पात्र इलेक्ट्रिक वाहनों की कैटेगरी में रजिस्टर्ड ई-रिक्शा एवं ई-कार्ट सहित इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहन शामिल हैं. आम लोगों के लिए किफायती और पर्यावरण-अनुकूल सार्वजनिक परिवहन विकल्प मुहैया कराने पर जोर देने के साथ यह योजना मुख्य रूप से उन ई-दोपहिया और ई-तिपहिया पर लागू होगी, जो कॉमर्शियल जरूरतों के लिए रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा निजी या कॉरपोरेट स्वामित्व वाले रजिस्टर्ड ई-दोपहिया भी योजना के तहत पात्र होंगे.
ईवी प्रोडक्शन को मिलेगा बढ़ावा
यह योजना देश में एक कुशल, प्रतिस्पर्धी और सुगम इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण उद्योग को प्रोत्साहन देती है, जिससे प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है. इस उद्देश्य के लिए, चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) को अपनाया गया है, जो घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करता इलेक्ट्रिक वाहन की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करता है. इससे मूल्य श्रृंखला के साथ-साथ महत्वपूर्ण रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे.
इसे भी पढ़ें-HP ने लॉन्च किए दो नए AI लैपटॉप्स, इस कीमत पर मिलेगा यूजर्स को प्रीमियम एक्सपीरियंस
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी नीति आयोग को बर्खास्त कर वापस योजना आयोग बनाने की मांग कर चुकी हैं. वो कह चुकी हैं कि इस मीटिंग का कोई मतलब नहीं है यहां से कुछ भी हासिल नहीं होता है.
दिल्ली में हो रही है नीति आयोग की बैठक में सभी राज्यों के सीएम पहुंचे हुए हैं. लेकिन साल में एक बार होने वाली नीति आयोग की बैठक में शनिवार को कुछ ऐसा हुआ जिससे नाराज होकर ममता बनर्जी मीटिंग छोड़कर चली गई. ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि विपक्ष की एकमात्र सीएम होने के बावजूद पहले तो उन्हें बोलने के लिए काफी कम समय दिया गया और उसके बाद जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनका माइक बंद कर दिया गया. वहीं नीति आयोग ने उनके आरोपों को लेकर जवाब दिया है और इस दावे को भ्रामक और गलत बताया है कि उनका माइक बंद कर दिया.
ममता बनर्जी ने लगाए क्या आरोप?
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने सरकार पर राज्य सरकारों से भेदभाव का आरोप लगाते हुए कई गंभीर आरोप लगाए. ममता बनर्जी ने कहा कि मैं बोल रही थी और मेरा माइक बंद कर दिया गया. ममता बनर्जी ने कहा कि आपने मुझे क्यों रोका आप इस तरह से भेदभाव क्यों कर रहे हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि विपक्षी दलों के बॉयकाट के बीच वो अकेली विपक्षी सीएम हैं जो मीटिंग में भाग ले रही हैं. उन्होंने कहा कि इस पर सरकार को खुश होना चाहिए. लेकिन जिस तरह से मेरा माइक बंद किया गया है वो बंगाल का ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय दलों का अपमान है.
ये भी पढ़ें: अब देश छोड़ने से पहले लेना होगा इनकम टैक्स क्लीयरेंस, ये है इस फैसले की वजह?
पीआईबी फैक्ट चेक ने दिया जवाब
वहीं पीआईबी फैक्ट चेक ने इन दावों को पूरी तरह से गलत बताया है जिसमें ये कहा गया है कि माइक बंद कर दिया गया. पीआईबी फैक्ट चेक ने कहा है कि ममता बनर्जी के बोलने का समय पूरा हो गया था. पीआईबी फैक्ट चेक की ओर से ये कहा गया कि घड़ी में केवल ये दिखाया गया कि उनके बोलने का समय पूरा हो चुका है. जबकि घंटी भी नहीं बजाई गई.
It is being claimed that the microphone of CM, West Bengal was switched off during the 9th Governing Council Meeting of NITI Aayog#PIBFactCheck
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) July 27, 2024
▶️ This claim is #Misleading
▶️ The clock only showed that her speaking time was over. Even the bell was not rung to mark it pic.twitter.com/P4N3oSOhBk
योजना आयोग बनाने की कर चुकी हैं मांग
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी नीति आयोग को बर्खास्त कर वापस योजना आयोग बनाने की मांग कर चुकी हैं. वो कह चुकी हैं कि इस मीटिंग का कोई मतलब नहीं है यहां से कुछ भी हासिल नहीं होता है. दिल्ली में आज नीति आयोग की बैठक हो रही है जिसकी अध्यक्षता पीएम मोदी कर रहे हैं. इस बैठक का मकसद केन्द्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय के साथ पीने के पानी, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता, जमीन और संपत्ति के डिजीटलीकरण और रजिस्ट्रेशन, साइबर सुरक्षा, सरकारी कामकाज में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस जैसे विषय शामिल हैं.
जानिए कैसे काम करता है नीति आयोग
नीति आयोग से पहले देश में इस काम को योजना आयोग किया करता था. लेकिन 2014 में मोदी सरकार के बनने के बाद 2015 में नीति आयोग का गठन कर दिया गया. नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं. जबकि मौजूदा समय में इसके उपाध्यक्ष सुमन बेरी हैं. इस संगठन में कुछ पूर्णकालिक सदस्य भी हैं जिनमें डॉ. वी के सारस्वत, प्रोफेसर रमेश चंद्र, डॉ, वी के पॉल, और अरविंद विरमानी शामिल हैं. इसके पदेन सदस्यों में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं.
देश छोड़ने की वजह के बारे में एक्सपर्ट जो कह रहे हैं वो ये कि कोविड काल में कोई भी देश किसी दूसरे देश के नागरिक को ले नहीं रहा था. ऐसे में कोविड के थमने के बाद इसमें तेजी देखी गई है.
भारत सरकार ने वित्त विधेयक 2024 के माध्यम से देश छोड़ने से पहले आयकर निकासी प्रमाण पत्र की अनिवार्यता को जरूरी बना दिया है. अब कोई भी शख्स इस प्रमाण पत्र के बिना देश को नहीं छोड़ पाएगा. ये व्यवसथा 1 अक्टूबर 2024 से लागू होगी. अभी तक देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.
आखिर क्या है ये व्यवस्था?
आयकर विभाग ने फाइनेंस बिल के माध्यम से सब सेक्शन की धारा (1A) में ये प्रावधान किया है कि कोई भी व्यक्ति को जो भारत में निवास करता है, वो तब तक भारत नहीं छोड़ सकता है जब तक वो आयकर निकासी प्रमाण पत्र हासिल नहीं कर लेता है. कानून के अनुसार, आयकर अधिनियम, या संपत्ति कर अधिनियम-1957 या उपहार कर अधिनियम 1958, या व्यय कर अधिनियम 1987 के अंतर्गत उसकी कोई देनदारी नहीं है. साथ इसमें वैकल्पिक तौर पर ये व्यवस्था की गई है कि वो इसके लिए संतोषजनक व्यवस्था कर सकता है जिसमें वो इन टैक्स का भुगतान कर सकता है. ये सर्टिफिकेट हासिल करना तभी अनिवार्य होगा जब आयकर विभाग के अधिकारी की ऐसी राय हो.
अभी किए जाने हैं विधेयक में ये प्रस्ताव
विधेयक में ये भी कहा गया है कि इसमें काला धन(अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) के साथ कर अधिरोपण अधिनियम 2015 का संदर्भ भी डालकर उक्त उप-धारा के प्रावधान में संशोधन करने का प्रस्ताव है, ताकि देनदारियों को लागू किया जा सके. वहीं इस विधेयक का सेक्शन 230 कहता है कि भारत में रहने वाले हर शख्स को देश छोड़ने से पहले ये प्रमाण पत्र प्राप्त करने की जरूरत है. ये प्रमाण पत्र इस बात का सुबूत है कि इस व्यक्ति पर अब किसी भी तरह का बकाया नहीं है. इससे पहले विदेशी काला धन के खुलासा न करने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
ये भी पढ़ें: HP ने लॉन्च किए दो नए AI लैपटॉप्स, इस कीमत पर मिलेगा यूजर्स को प्रीमियम एक्सपीरियंस
भारत छोड़ रहे हैं हजारों लोग
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हर साल बड़ी संख्या में लोग भारत छोड़ रहे हैं. 2011 से 2022 तक के 11 साल के सफर में 138620 लोग भारत छोड़ चुके हैं. पिछले 11 सालों में ये संख्या 1,20,000 से लेकर 1,40,000 रुपये रही है. आंकड़ों को देखें तो 2022 में सबसे ज्यादा लोगों ने भारत छोड़ा है. इस साल में सबसे ज्यादा 225620 लोगों ने भारत छोड़ा है. दरअसल इसके पीछे की वजह के बारे में एक्सपर्ट जो कह रहे हैं वो ये कि कोविड काल में कोई भी देश किसी दूसरे देश के नागरिक को ले नहीं रहा था. ऐसे में सभी प्रोसेस स्लो हो गए थे. ऐसे में कोविड के थमने के बाद इसमें तेजी देखी गई है. इसके पीछे की वजहों के बारे में मीडिया रिपोर्टस कहती हैं कि बेहतर कमाई साधन, उच्च जीवन स्तर, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कारण लोगों के देश छोड़ने की वजह हो सकते हैं.
असम के किसानों ने भारत सरकार के एक प्रोजेक्ट के तहत अपने खेतों में प्रायोगिक तौर पर मक्के की खेती शुरू कर दी है. इसका उन्हें काफी फायदा मिल रहा है.
वैसे तो असम राज्य के किसान परंपरागत रूप से धान की खेती करते हैं. लेकिन अब किसानों ने सरकार के एक प्रोजेक्ट के तहत अपने खेतों में मक्के की खेती शुरू की है. ऐसे में मक्के की खेती अब किसानों को काफी फायदा दे रही है. वहीं, वहां अब धान का रकबा घट रहा है और मक्का का रकबा बढ़ रहा है. तो आइए जानते हैं कि मक्का किसानों के लिए कैसे फायदेमंद साबित हो रहा है?
मक्के की इंडस्ट्रियल डिमांड अधिक
असम में पहले धान की खेती बहुत होती थी, लेकिन अब वहां के किसानों में मक्के की खेती को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (IIMR) के अनुसार असम में मक्के की खेती के अनुकूल मौसम और मिट्टी है. मक्के की खेती के लिए पर्याप्त बारिश होती है. मक्के की फसल में पानी भी कम लगता है और इसमें धान के मुकाबले उपज भी ज्यादा मिलती है. वहीं, मक्के की इंडस्ट्रियल डिमांड खूब है, इसलिए यहां के किसानों को इसकी खेती करना अधिक फायदेमंद है.
इन जिलों में हो रही मक्के की खेती
असम में सरकार द्वारा शुरू किए गए इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि ( Increase in maize production in the catchment area of ethanol industries) नामक प्रोजेक्ट के तहत मक्के की खेती को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं. इसके तहत असम के 12 जिलों में काम किया जा रहा है, जिनमें धुबरी, कोकराझार, बोरझार, बरपेटा और ग्वालपाड़ा प्रमुख हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत काम करने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (IIMR) का कहना कि मक्का खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में पैदा होता है, लेकिन मुख्य तौर पर यह खरीफ सीजन की फसल है.
असम में मक्का का प्रोडक्शन 259 किलोग्राम/हैक्टेयर बढ़ा
IIMR के अनुसार असम में रबी सीजन के दौरान करीब 10 लाख हैक्टेयर जमीन खाली रह जाती थी. इन खेतों में किसी फसल की बुवाई नहीं होती थी. ऐसे में उन्होंने असम सरकार द्वारा स्पॉन्सर्ड वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण के साथ-साथ रबी सीजन में 360 हेक्टेयर में किसानों से मिलकर फार्म डेमोस्ट्रेशन (खेत प्रदर्शन) लगाया. साल 2023-24 के रबी सीजन में इस खेती से 10 टन प्रति हैक्टेयर की उत्पादकता हासिल की गई. इससे किसानों में मक्का फसल में दिलचस्पी बढ़ गई है. तभी तो असम में इस साल मक्का का रकबा पिछले साल के मुकाबले दोगुना होकर 1.07 लाख हेक्टेयर हो गया है. इसके साथ ही इसका प्रोडक्शन भी 259 किलोग्राम/हैक्टेयर बढ़ गया है.
यहां पर है मक्के की खूब मांग
असम में इथेनॉल बनाने वाली अकेले एक कंपनी में 5 लाख टन मक्के की मांग है. इसके अलावा पशु आहार और पोल्ट्री फीड के लिए भी मक्के की बहुत मांग है. वहीं, खाने-पीने की चीजों में भी मक्का का उपयोग होता है. ऐसे में आईआईएमआर असम सहित पूरे देश में मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए अभियान चला रहा है.
आईपीओ को लाकर ओला देश की पहली लिस्टेड इलेक्ट्रिक वेहिकल कंपनी बनने जा रही है. उसे एथर एनर्जी, बजाज और टीवीएस मोटर कंपनी से तगड़ी चुनौती मिल रही है.
ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric) के आईपीओ का बहुत दिनों से बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था. अब भविष अग्रवाल के नेतृत्व वाली इस कंपनी के IPO की डेट सामने आई हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ओला इलेक्ट्रिक के IPO की एंकर बुक 1 अगस्त को खुलेगी. साथ ही इस इश्यू का सब्सक्रिप्शन 2 अगस्त से 6 अगस्त तक खुला रहेगा. सॉफ्टबैंक (SoftBank) समर्थित कंपनी इस IPO के जरिए लगभग 4.5 अरब डॉलर की वैल्यूएशन हासिल करने की कोशिश में है. IPO की लिस्टिंग 9 अगस्त को हो सकती है.
लगभग 5,500 करोड़ रुपये का IPO
पिछले महीने जून में ही ओला इलेक्ट्रिक के 5,500 करोड़ रुपये के IPO को मार्केट रेगुलेटर SEBI से हरी झंडी मिली थी. इस IPO से कंपनी के लिए अपने सेल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की क्षमता विस्तार के लिए पैसों का इंतजाम हो जाएगा. कंपनी रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर अपना काम तेजी से आगे बढ़ा सकेगी. ओला इलेक्ट्रिक ने अपना प्री IPO पेपर दिसंबर 2023 में दाखिल किया था, जून 2024 में कंपनी को IPO लाने की मंजूरी मिल गई थी.
20 जून को IPO लाने की मिली थी मंजूरी
ओला इलेक्ट्रिक को एथर एनर्जी (Ather Energy), बजाज (Bajaj) और टीवीएस मोटर कंपनी (TVS Motor Company) से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है. आईपीओ की तारीखों पर फिलहाल ओला इलेक्ट्रिक ने पुष्टि नहीं की है. कंपनी ने मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) के पार आईपीओ के दस्तावेज (DRHP) 22 दिसंबर, 2023 को जमा कराए थे. सेबी ने इसी साल 20 जून को आईपीओ लाने की मंजूरी दे दी थी. इस आईपीओ के जरिए भविष अग्रवाल लगभग 4.7 करोड़ शेयर मार्केट में उतारेंगे. इसके अलावा कई बड़े शेयरहोल्डर्स भी अपने शेयर इसमें बेचेंगे.
कहां होगा पैसों का इस्तेमाल?
ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) के मुताबिक, ओला इलेक्ट्रिक के 5,500 करोड़ रुपये के IPO में नए शेयर भी जारी होंगे और ऑफर फॉर सेल (OFS) भी होगा. DRHP के मुताबिक ओला इलेक्ट्रिक 1,226.43 करोड़ रुपये का इस्तेमाल अपने सेल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की क्षमता को 5GW से 6.4GW तक बढ़ाने पर करेगी. जबकि 1,600 करोड़ रुपये का इस्तेमाल रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर करने पर भी विचार कर रही है, जबकि अन्य 800 करोड़ रुपये कर्ज चुकाने के लिए लगाए जाएंगे.
टाटा के बाद अब बिड़ला ग्रुप ने भी ज्वैलरी सेगमेंट में एंट्री ली है. कंपनी ने 'Indriya' के नाम से ज्वैलरी ब्रांड को लॉन्च किया है.
आदित्य बिड़ला ग्रुप ने ज्वैलरी सेगमेंट में एंट्री मार ली है. कंपनी ने 'Indriya' नाम से ब्रांड लॉन्च किया है. देश के तीन शहरों में 4 स्टोर्स के साथ कंपनी मैदान में उतरी है. इंद्रिय के स्टोर दिल्ली के करोल बाग, जयपुर और इंदौर में खोले गए हैं. कंपनी ने कहा कि अगले 5 साल में भारत का तीसरा सबसे बड़ा ज्वैलरी रिटेल ब्रांड बनने का लक्ष्य लेकर वह चल रही है. इस बिजनेस में विस्तार के लिए 5000 करोड़ का निवेश किया जाएगा.
अगले 6 महीनों में खोले जाएंगे 11 स्टोर
भारत में ज्वैलरी का बाजार करीब 6.7 लाख करोड़ रुपए का है. इस ज्वैलरी बाजार में बिड़ला ग्रुप ने एंट्री ली है. कंपनी ने कहा कि फिलहाल 3 शहरों में चार रीटेल स्टोर खोले गए हैं. अगले 6 महीने में 11 शहरों में इंद्रिय स्टोर खोलने की योजना कंपनी की है. कंपनी ने 5000 एक्सक्लूसिव डिजाइन के साथ हर 45 दिन में नया डिजाइन लॉन्च करने की बात की है.
इन बड़े ब्रांड के साथ होगी टक्कर
बिड़ला समूह ने ब्रांडेड ज्वेलरी के रिटेल बिजनेस में ऐसे समय कदम रखा है, जब देश में अनब्रांडेड आभूषणों की तुलना में ब्रांडेड आभूषणों का आकर्षण बढ़ा है. ग्राहकों का एक बड़ा हिस्सा अब पारंपरिक सर्राफा दुकानों के बजाय ब्रांडेड आभूषणों को खरीदना पसंद कर रहा है. इस सेगमेंट में पहले से मौजूद कई दिग्गजों से बिड़ला की सीधी टक्कर होने वाली है. तनिष्क ब्रांड के जरिए टाटा समूह, रिलायंस जेवेल्स के माध्यम से रिलायंस समूह के अलावा ब्रांडेड ज्वेलरी के सेगमेंट में कल्याण ज्वेलर्स, जोयालुक्कास, मालाबार आदि जैसे ब्रांड इस सेगमेंट में पहले से हैं.
टॉप-3 ब्रांड में एक बनने का लक्ष्य
कुमार मंगलम बिड़ला ने अपने समूह के ज्वेलरी ब्रांड इंद्रीय की लॉन्चिंक के मौके पर कहा कि इस ब्रांड को अगले पांच साल में देश के टॉप-3 ज्वेलरी ब्रांड में से एक बनाना लक्ष्य है. कुमार मंगलम बिड़ला अभी आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन हैं. उन्होंने बताया कि अभी उनके समूह का लगभग 20 फीसदी राजस्व कंज्युमर बिजनेस से आ रहा है. उन्हें अगले पांच साल में यह आंकड़ा 25 फीसदी से ज्यादा हो जाने और 25 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच जाने की उम्मीद है.
सेबी ने अपनी जांच में पाया कि विजय माल्या फर्जी तरीके से अपनी ही ग्रुप के शेयरों में लेन-देन कर रहे थे जो कि निवेशकों के लिए हानिकारक था.
भगोड़े विजय माल्या पर सरकार की ओर से बड़ी कार्रवाई की गई है. ये कार्रवाई शेयर बाजार रेगुलेटर SEBI की ओर से हुई है. SEBI ने भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को सिक्योरिटी मार्केट्स से बैन करने के साथ ही उन्हें तीन साल के लिए किसी भी लिस्टिड कंपनी से जुड़ने से रोक दिया. SEBI ने यह कार्रवाई यूबीएस एजी के साथ विदेशी बैंक अकाउंट्स का इस्तेमाल कर इंडियन सिक्योरिटी मार्केट में पैसा भेजने के मामले में की है. भारत सरकार माल्या को उनकी अब बंद हो चुकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस से संबंधित धोखाधड़ी के आरोपों का सामना करने के लिए ब्रिटेन से प्रत्यर्पित करने का प्रयास कर रही है.
SEBI का आदेश फौरी तौर पर लागू
सेबी ने जारी अपने आदेश में कहा, विजय माल्या किसी भी हैसियत में लिस्टेड कंपनी या कोई भी प्रस्तावित लिस्टेड कंपनी के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर आदेश के जारी होने की तारीख से लेकर अगले तीन सालों तक नहीं जुड़े रहेंगे. इस अवधि के दौरान विजय माल्या की किसी भी सिक्योरिटीज की होल्डिंग जिसमें म्यूचुअल फंड्स में यूनिट्स भी शामिल है वो फ्रीज रहेगा. सेबी का विजय माल्या को लेकर जारी आदेश फौरी तौर पर लागू हो चुका है.
ऐसे भेज रहा था पैसा
SEBI ने जनवरी 2006 से मार्च 2008 तक की अवधि की जांच में पाया कि माल्या ने अपने ग्रुप की कंपनियों- हर्बर्टसन लिमिटेड और यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड (USL) के शेयरों का गोपनीय ढंग से कारोबार करने के लिए विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) मैटरहॉर्न वेंचर्स का इस्तेमाल किया. इसके लिए विभिन्न विदेशी खातों के माध्यम से धन भेजा गया. पूर्व शराब कारोबारी माल्या ने मैटरहॉर्न वेंचर्स का इस्तेमाल कर यूबीएस एजी के साथ विभिन्न खातों के माध्यम से भारतीय प्रतिभूति बाजार में धन लगाया. उसने अपनी असली पहचान छिपाने के लिए विभिन्न विदेशी संस्थाओं का इस्तेमाल किया.
2019 में विजय माल्या को भगोड़ा घोषित
किंगफिशर एयरलाइंस समेत कई कंपनियों के मालिक रहे भारतीय बिजनेसमैन विजय माल्या पर देश के 17 बैंकों के करीब 9 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं. माल्या 2016 में देश छोड़कर ब्रिटेन भाग गया था, जहां से भारत सरकार उसे देश लाने का प्रयास कर रही है. माल्या पर फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग के केस चल रहे हैं. 5 जनवरी 2019 को अदालत ने विजय माल्या को भगोड़ा घोषित कर दिया था.
पूंजी बाजार नियामक ने जुलाई में तीन आईपीओ के कागजात को पीछे धकेल दिया है.
विशाल मेगा मार्ट (Vishal Mega Mart) और अवांसे फाइनेंशियल सर्विसेज (Avanse Financial Services) के आईपीओ का इंतजार अभी और लंबा हो सकता है. इसकी वजह ये है कि बाजार नियामक सिक्योरिटीज (SEBI) के IPO पेपर को वापस भेज दिया है. अब इन कंपनियों को सोमवार तक फिर से आईपीओ के लिए प्रॉस्पेक्टस फाइल करना है. सेबी ने आईपीओ के ड्राफ्ट को खारिज नहीं किया बल्कि किसी अन्य वजह से उन्हें फिर से आवेदन करने का निर्देश दिया है.
तकनीकी कारणों से वापस भेजा ड्राफ्ट
विशाल मेगा मार्ट ने करीब दो हफ्ते पहले गोपनीय फाइलिंग के तहत आईपीओ का ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस दाखिल किया था. वहीं अवांसे फाइनेंशियल ने 21 जून को अपने आईपीओ का ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) फाइल किया था. मीडिया रिपोर्ट्स ने जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक सेबी ने इनके प्रॉस्पेक्टस को खारिज नहीं किया है बल्कि इसे वापस भेजने की वजह तकनीकी है और इन कंपनियों को सोमवार तक फिर से ड्राफ्ट फाइल करना है.
एक और अन्य IPO पर भी लगाई रोक
इस महीने की शुरुआत में सेबी ने एक और नॉन-बैंक लेंडर एसके फाइनेंस के भी प्रस्तावित आईपीओ को रोक दिया था. सेबी ने 8 जुलाई को अपनी वेबसाइट पर इसका खुलासा किया था. इसने मई में आईपीओ के लिए ड्राफ्ट फाइल किया था. इसकी योजना 500 करोड़ रुपये के नए शेयर जारी करने की थी. इसके अलावा 1700 करोड़ रुपये के शेयरों की प्रमोटर्स और मौजूदा शेयरहोल्डर्स ऑफर फॉर सेल विंडो के तहत बिक्री करते.
दोनों कंपनियों के बारे में
केदार कैपिटल (Kedaara Capital) और पार्टनर्स ग्रुप (Partners Group) के निवेश वाली विशाल मेगा मार्ट देश में फैशन से जुड़ी हाइपरमार्केट चेन चलाती है. इसका लक्ष्य आईपीओ के दरिए 100 करोड़ डॉलर जुटाने का है. इसके आईपीओ के लिए लीड इनवेस्टमेंट बैंकर्स कोटक महिंद्रा कैपिटल, जेफरीज, जेपी मॉर्गन, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज और मॉर्गन स्टेनले हैं. वहीं अवांसे फाइनेंशियल सर्विसेज एक NBFC है जिसका फोकस एडुकेशन पर है. यह एडुकेशन लोन मुहैया कराती है. इसमें वारबर्ग पिनकस, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन, केदार कैपिटल, मुबादला इनवेस्टमेंट कंपनी और एवेंडुस फ्यूचर ने निवेश किया हुआ है.
कंपनी भारत में अपने प्रोडक्शन को और बढ़ाने की तैयारी कर रही है, इसके तहत कर्नाटक में एक प्लांट लगाने जा रही है.
भारत में मेड इन इंडिया आईफोन के सफल उत्पादन के बाद अब कंपनी आने वाले दिनों में भारत में आईपैड बनाने जा रही है. एप्पल के लिए फोन और आईपैड बनाने का काम फॉक्सकॉन करती है. फॉक्सकॉन आने वाले दिनों में अपने प्लांट का विस्तार करने जा रही है. इस विस्तार के बाद कंपनी उसमें आईपैड का भी निर्माण करने लगेगी. इस प्लांट के विस्तार का काम पूरा होने के बाद कंपनी भारत में ही आईपैड की असेंबलिंग करना शुरू कर देगी.
आखिर क्या है कंपनी की पूरी योजना?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, फॉक्सकॉन अपने तमिलनाडु स्थित प्लांट का विस्तार करने जा रही है. कंपनी के इस प्लांट में मुख्य रूप से आईफोन बनाने का काम हो रहा है. लेकिन अब कंपनी इस प्लांट में विस्तार करने के साथ यहां आईपैड की असेंबलिंग का काम भी करने जा रही है. खबर आ रही है कि कंपनी श्रीपेरुबंदुर में कंपनी आने वाले दिनों में एप्पल की असेंबलिंग करने का काम करेगी.
ये भी पढ़ें: AI का सबसे अच्छा इस्तेमाल गलतियों को पकड़ने के लिए होना चाहिए : IEEE प्रेसिडेंट
भारत के साथ कई और देशों में जा रहे हैं आईफोन
भारत में असेंबल हुए आईफोन की सिर्फ देश में ही घरेलू आपूर्ति नहीं हो रही है बल्कि उन्हें दुनिया के कई अन्य देशों में भी निर्यात किया जा रहा है. खास बात ये भी है कि इस समय भारत में एप्पल 14 फीसदी फोन की असेंबलिंग कर रही है. भारत में मौजूदा समय में आईफोन 12,आईफोन 13, आईफोन 14 और आईफोन 15 बनाए जा रहे हैं. वहीं 23 जुलाई को पेश हुए बजट में सरकार से इलेक्ट्रॉनिक इक्यूपमेंट के आयात पर कस्टम ड्यूटी को 20 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया है. इस कस्टम फीस के कम होने से भारत में इलेक्ट्रॉनिक इक्यूपमेंट का आयात कम हो जाएगा. इससे कीमतों में भी कमी आने की संभावना है.
कंपनी कर्नाटक में भी लगा रही है प्लांट
फॉक्सकॉन आने वाले दिनों में भारत में अपने प्रोडक्शन को बढ़ाने की भी तैयारी कर रही है. फॉक्सकॉन की सहयोगी कंपनी 1200 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है जिसके माध्यम से कंपनी कर्नाटक में एक और प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है. सबसे विशेष बात ये भी है कि कंपनी उसमें आने वाले दिनों में एप्पल और उसके दूसरे प्रोडक्ट का प्रोडक्शन शुरू करने की तैयारी कर रही है. फॉक्सकॉन गूगल से भी उसके पिक्सल फोन की असेंबलिंग के लिए बातचीत कर रही है. अगर ये बात बनती है तो माना जा रहा है कि कंपनी उसकी असेंबलिंग भी यहां कर सकती है.