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अब देश में बर्बाद नहीं होगी फसल, सरकार बना रही है प्लानिंग
दरअसल हमारे देश में होने वाली तीन किस्म की फसलों में लेट खरीफ फसल की उम्र बहुत कम होती है. एक महीने की उम्र होने के कारण इसका प्रबंधन सही से नहीं हो पाता है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
हमारे देश में अक्सर ये देखने में आता है कि फसलों के ज्यादा होने पर किसानों को उसकी कीमत नहीं मिल पाती है. ऐसा होने पर फसल पैदा करने वाले किसान उसे या तो कम कीमत पर बेच देते हैं या वो कम कीमत लेने से बेहतर उसे नष्ट कर देते हैं. इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है. कई मीडिया रिपार्ट ऐसी सामने आई हैं जिसमें किसान उसे या तो उसे नष्ट कर रहे थे या उन्हें उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिली. लेकिन अब सरकार ने इसे लेकर प्लानिंग कर ली है. अब किसानो को आने वाले समय में अपनी फसल को नष्ट नहीं करना पड़ेगा. सरकार इसे लेकर योजना बनाने में जुट गई है.
क्यों पैदा होती है ये समस्या
बिजनेस वर्ल्ड को मिली जानकारी के अनुसार दरअसरल हमारे देश में तीन तरह की फसले पैदा होती हैं. इसमें एक रबी की होती है दूसरी खरीफ की होती है तीसरी वो होती है जिसे लेट खरीफ कहा जाता है. इस लेट खरीफ फसल के साथ परेशानी ये होती है कि इसकी उम्र बहुत कम होती है. इसकी उम्र सिर्फ एक महीना होती है. लेकिन बाकी रबी और खरीफ में पैदा होने वाली फसलों की उम्र तीन से चार महीना होती है. उम्र कम होने के कारण इसे एक्सपोर्ट नहीं किया जा सकता है, इसके चलते ये समस्या पैदा होती है. बाजार में ज्यादा प्याज या आलू आने के कारण उसके दाम कम हो जाते हैं.
क्या कर रही है सरकार इसका उपाय
सूत्र बता रहे हैं कि सरकार इसके लिए गंभीरता से विचार कर रही है. दरअसल किसी भी तरह की फसल को एक्सपोर्ट करने के लिए तीन महीने का एडवांस समय लगता है. लेकिन इसकी उम्र 1 महीना होने के कारण इसकी प्लानिंग नहीं हो पाती थी. लेकिन अब इसे लेकर भी सरकार की ओर से प्लानिंग की जा रही है. सरकार इसकी ये प्लानिंग कर रही है कि इस फसल के आने से पहले ही इसे बेचने को लेकर काम कर लिया जाए, जिससे इस फसल को भी एक्सपोर्ट किया जा सके. इसके बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिल पाएगा.
इस साल भी रहा कुछ ऐसा ही हाल
ये एक बहुत पुरानी परेशानी है. इस साल भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. महाराष्ट्र जहां की प्याज बंपर पैदावार होती है वहां तो इस बार किसानों को आलू और प्याज के लिए 2 रुपये तक का भाव मिला है. ऐसे में सवाल सबसे बड़ा ये है कि अगर ऐसा हुआ है तो किसान की लागत मूल्य कहां से सामने आएगी. उसका घाटा बढ़ जाएगा. लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि अगर इस फसल को भी एक्सपोर्ट करने का काम हो जाता है तो किसानों को नुकसान नहीं हो पाएगा.
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